कक्षा शिक्षण में कंप्यूटर के प्रयोग को स्पष्ट कीजिए - kaksha shikshan mein kampyootar ke prayog ko spasht keejie

कम्प्यूटर सहायता अधिगम , कम्प्यूटर सहायता अनुदेशन 

कक्षा शिक्षण में कंप्यूटर के प्रयोग को स्पष्ट कीजिए - kaksha shikshan mein kampyootar ke prayog ko spasht keejie

कम्प्यूटर सहायक अधिगम ( C.A.L. - Computer Assisted Learning ) :

कम्प्यूटर सहायक अधिगम ( सी.ए.एल. ) ई . लर्निंग का भाग है । कम्प्यूटर सहायक अधिगम का इतिहास पुराना है । यह तकनीक सम्पूर्ण विश्व में विभिन्न परिप्रेक्ष्य में प्राथमिक विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक उपयोग में आ रही है । सर्वप्रथम 1950 से 1960 के मध्य अमेरिका में कम्प्यूटर सहायक अधिगम प्रारम्भ हुआ था ।

वर्तमान समय में कम्प्यूटर मानव गतिविधियों के अधिकतर क्षेत्रों में , विशेषकर शिक्षा के क्षेत्र में उपयोगी है । समस्त शिक्षा तंत्र में कम्प्यूटर के उपयोग द्वारा परिर्वतन आ रहा है , जैसे -शिक्षण विधाओं में , अधिगमकर्ता की भागीदारी में , शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में , मूल्यांकन में , अनुसंधान क्रिया में आदि । कम्प्यूटर सहायक अधिगम की प्रक्रिया में यह एक सक्रिय साझेदार की भूमिका में होता हैं , जिससे अधिगम अधिक प्रभावी हो जाता है । यह एक व्यक्तिगत शिक्षण विधा है । कम्प्यूटर सहायता अधिगम , कम्प्यूटर द्वारा सिखाए जाने वाली विषयवस्तु या समाधानों के लिए प्रयुक्त होता है । शिक्षा में जब कम्प्यूटर का प्रयोग किया जाता है तो उसे हम कम्प्यूटर सहायक शिक्षण अथवा कम्प्यूटर सहायक अधिगम कहते हैं । इसके माध्यम शिक्षण , व्याख्या तथा परीक्षण सम्बन्धी कार्य किया जा सकता है । कम्प्यूटर सहायक अधिगम की प्रकृति अंतःक्रियात्मक होती है । यह अधिगमकर्ता की आवश्यकतानुसार व्यक्तिगत अधिगम अनुभव कराने सक्षम है । अतः यह वर्तमान समय में शिक्षा में निम्न कारणों से महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक है-

विद्यार्थी के अधिगम में सहायक :

पारम्परिक शिक्षण विधियों की तुलना में कम्प्यूटर सहायक अधिगम में विद्यार्थी का अधिगम अधिक प्रभावी एवं सरल होता है , क्योंकि इसमें विद्यार्थी स्वयं सक्रिय रहता है और उसकी दृश्य श्रव्य इन्द्रियाँ सक्रिय रहती है ।

  • शिक्षक प्रशिक्षकों पर दबाव कम होता है :  कम्प्यूटर सहायक अधिगम में शिक्षक प्रशिक्षक पर शिक्षण का दबाव कम होता है . क्योंकि कम्प्यूटर सहायक अधिगम की सहायता से शिक्षक - प्रशिक्षक , विद्यार्थियों को उनकी रुचि एवं योग्यतानुरूप गतिविधि देकर उनका ज्ञानवर्धन कर सकता है ; जैसे- अभिक्रमित अनुदेशन , परियोजना विधि , समस्या समाधान आदि । इससे प्राप्त ज्ञान रुचिपूर्ण , सुगम एवं स्थायी होता है । 
  • कम्प्यूटर सहायक अधिगम द्वि - पक्षीय सम्प्रेषण में सहायकः पारम्परिक पुस्तकों और व्याख्यान शिक्षण में एक पक्षीय सम्प्रेषण होता है , साथ ही इनमें विद्यार्थी उद्दीपन प्राप्त नहीं करते , क्योंकि इनमें अंतःक्रिया की न्यूनता होती है । इसके विपरीत कम्प्यूटर सहायक अधिगम में मीडिया अथवा प्रकरण के साथ अंतःक्रिया करते हुए विद्यार्थी अध्ययन करते हैं । 
  • विद्यार्थी में कम्प्यूटर के प्रति जानकारी में वृद्धिः कम्प्यूटर सहायक अधिगम से विद्यार्थी में कम्प्यूटर साक्षरता , डेटा प्रोसेसिंग , कम्प्यूटर - विज्ञान आदि की जानकारी में वृद्धि होती है । परिणामस्वरूप इससे विद्यार्थी को शिक्षा में मदद मिलती है , तथा वह आत्मविश्वास से भरकर स्वयं अध्ययन हेतु प्रेरित होता हैं ।

कम्प्यूटर सहायक अधिगम के लिए मूलभूत आवश्यकताएँ 

कम्प्यूटर सहायक अधिगम में उत्तम अधिगम करवाने के लिए निम्नलिखित मूलभूत आवश्यकताएँ होती है-

  • कलात्मक ढंग से सूचनाओं को प्रदर्शन : कम्प्यूटर सहायक अधिगम में प्रकरण अथवा विषयवस्तु की सूचनाओं को कलात्मक ढंग से प्रदर्शित किया जाना चाहिए जिससे विद्यार्थी में अध्ययन के प्रति रुचि उत्पन्न हो एवं अधिक अच्छी अंतःक्रिया हो सकें । 
  • सॉफ्टवेयर के द्वारा सूचनाओं के प्रदर्शन के तरीकों और गति को नियंत्रित करना : कम्प्यूटर पर अध्ययन में प्रयुक्त की जा रही सूचनाओं के प्रदर्शन के तरीकों एवं गति को नियंत्रित करना आवश्यक होता है , क्योंकि इसमें विद्यार्थी स्वगति से अधिगम करता है । अतः विद्यार्थी की स्वयं की सीखने की गति के अनुसार सूचना का प्रदर्शन व गति होने से अधिगम अधिक उपयुक्त होगा । 
  • विद्यार्थियों से उत्तर प्राप्त करना : कम्प्यूटर सहायक अधिगम में प्रकरण एवं विषयवस्तु का सॉफ्टवेयर ऐसा होना चाहिए , जिसे पढ़कर विद्यार्थी अपने उत्तर दे सकें और प्राप्त उत्तरों के आधार पर कम्प्यूटर उन्हें पृष्ठपोषण प्रदान करें । सही उत्तर पर विद्यार्थी आगे बढ़ेंगे तथा स्व अभिप्रेरित होंगे , जबकि गलत उत्तर प्राप्त होने पर वह पुनः उसी विषयवस्तु का अध्ययन करेंगे । 
  • विद्यार्थियों को संदेश भेजना : अध्ययन के दौरान विद्यार्थी को कम्प्यूटर द्वारा समय - समय पर स्पष्ट एवं सरल निर्देश प्राप्त होने चाहिए , जिससे कम्प्यूटर सहायक अधिगम की प्रक्रिया सही ढंग से चल सके । इसके अभाव में यह प्रक्रिया बाधित हो सकती है । 
  • एनीमेशन का उपयोग करना : कम्प्यूटर सहायक अधिगम में एनीमेशन के प्रयोग से सूचनाओं को अधिक अच्छे ढंग से व रुचिपूर्वक प्रस्तुत किया जा सकता है एवं इससे विद्यार्थियों में शिक्षण अधिगम के प्रति लगन बनी रहेगी ।
  • शिक्षक के लिए उत्तर फाइल तैयार करनाः कम्प्यूटर सहायक अधिगम में अध्ययन प्रक्रिया के मूल्यांकन हेतु शिक्षक के लिए उत्तर फाइल के निर्माण से मूल्यांकन तथा साथ ही रिकॉर्ड संधारण में भी मदद मिलती है । 

कम्प्यूटर सहायक अधिगम के उपयोग 

कम्प्यूटर सहायक अधिगम शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित तरीकों से उपयोगी है-

  • यह तकनीक विद्यार्थियों से द्वि - पक्षीय सम्प्रेषण के द्वारा संवाद स्थापित करती है , जिससे विद्यार्थी सक्रिय रहकर अधिगम करता है । 
  • यह तकनीक शिक्षक के पूरक के रूप में उपयोगी है . क्योंकि इसके द्वारा शिक्षक की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति दोनों स्थितियों में विद्यार्थी अधिगम कर सकता है । 
  • इसके माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है , क्योंकि इसमें सूचनाओं को एनीमेशन एवं ध्वनि के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है । 
  • इस तकनीक में विद्यार्थी स्वयं अधिगम करता है , जिससे प्रत्येक विद्यार्थी को स्वयं को प्रदर्शित करने के अवसर उपलब्ध रहते हैं । 
  • यह तकनीक शिक्षा में आधारभूत अवधारणाओं का परीक्षण करने के लिए बहुत उपयोगी है , जैसे - समस्या समाधान , अभिक्रमित अनुदेशन आदि । 
  • इससे विद्यार्थी के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है . क्योंकि वह स्वयं क्रिया करके सीखता है तथा उसे तुरंत प्रोत्साहन स्वरूप पृष्ठपोषण प्राप्त होता है । 
  • इसमें मल्टीमीडिया के द्वारा बहु आयामी तरीकों से अधिगम किया जा सकता है , जिससे प्राप्त ज्ञान अधिक स्थायी और रुचिपूर्ण होता है । 
  • इसमें अधिगम प्रक्रिया को पूर्व में रिकॉर्डेड तथा पूर्व में तैयार किए हुए संसाधनों से अध्ययन करने की सुविधा होती है , जिससे अपनी सुविधा के अनुसार अध्ययन की सुविधा रहती है । 
  • कम्प्यूटर एवं विद्यार्थियों के मध्य अंतःक्रिया के फलस्वरूप विद्यार्थी के सीखने की गति में वृद्धि होती है । 
  • इसमें उत्तम व उपयोगी प्रकरणों अथवा अध्यायों को रिकॉर्ड करके संकलित रूप में रखा जा सकता है तथा समय अनुसार जब चाहे पुनः उपयोग में लाया जा सकता हैं ।

कम्प्यूटर सहायता अनुदेशन ( C.A.I. - Computer Assisted Instruction )

प्रेसीज ( Pressy's ) ने सर्वप्रथम 1925 में एक बहुविकल्पीय मशीन तथा पंच बोर्ड उपकरण का निर्माण किया, जिसने वर्तमान में नेटवर्क आधारित ट्यूटोरियल्स के लिए आधार का कार्य किया । प्रेसीज की बहुविकल्पी मशीन की प्रक्रिया में उपयोगकर्ता के लिए सर्वप्रथम अनुदेशन थे , जिसमें उपयोगकर्ता का परीक्षण होता , फिर एक उत्तर के लिए उपयोगकर्ता प्रतीक्षा करता एवं उत्तर देने पर उसे तुरंत पृष्ठपोषण की प्राप्ति होती थी । इस सम्पून प्रयास का डेटा रिकॉर्ड किया जाता था । 1950 में क्राउडर ( Crowder ) ने अमेरिकी वायुसेना के लिए एक प्रक्रिया का निर्माण किया , जिसके अंतर्गत कम्प्यूटर सहायता अनुदेशन कार्यक्रम में कुछ विषयवस्तु टेक्स्ट ( Text ) के का में थी , इसे उपयोगकर्ता परीक्षण करता था । उपयोगकर्ता को कुछ पृष्ठपोषण प्राप्त होता , जिसमें यदि यह गलत उत्तर देता तो उसे संशोधन के निर्देश प्राप्त होते . और यदि वह सही उत्तर देता तो वह प्राप्त अनुक्रिया के अनुसार नवीन सूचना पर जाता था । क्राउडर का यह शाखयीकरण प्रेसीज की बहुविकल्पीय मशीन का उन्नत रूप था । कालांतर में इसका प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में भी किया गया एवं धीरे - धीरे कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन का उन्नत रूप प्राप्त हुआ ।

कम्प्यूटर असिस्टेड इन्स्ट्रक्शन को संक्षेप में ( C.A.I. ) कहते हैं । कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन एक विद्यार्थी - शिक्षक , कम्प्यूटर नियंत्रित डिस्ले तथा अनुक्रिया एवं आउट पुट डिवाइस के मध्य शैक्षिक निष्कर्ष को प्राप्त करने हेतु को गयी अंतःक्रिया है । यहाँ कम्प्यूटर एक अनुदेशक को सहायता करता है अर्थात यह शिक्षण अथवा अधिगम दोनों में सहायता करता है ।

अतः शिक्षण विधा के निर्देशन में जब कम्प्यूटर सहायक होता है , तो उसे कम्प्यूटर सहायक निर्देशन कहते हैं । यह एक स्वतः अधिगम की तकनीक है , जिससे प्रायः ऑफलाइन अथवा ऑन - लाइन रूप से विद्यार्थी के साथ अभिक्रमित अनुदेशनात्मक सामग्री के मध्य अंतःक्रिया होती है । कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में पाठ / पाठ्य / टेक्स्ट ग्राफिक ध्यान तथा विडियो को अधिगम प्रक्रिया बढ़ाने हेतु सम्मिलित किया जाता है । कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन का प्रयोग शिक्षा में निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जा सकता है

  • पृष्ठ भूमि का ज्ञान उपलब्ध करवाना : किसी प्रकरण एवं विषयवस्तु के पूर्व ज्ञान को आसानी से कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन के द्वारा विद्यार्थियों को अधिगम हेतु उपलब्ध करवाया जा सकता है ।
  • निदानात्मक शिक्षण करवाना : कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में अभिक्रमित अनुदेशन तथा सॉफ्टवेयर के उपयोग के द्वारा छोटे - छोटे फ्रेम की पाठ्यवस्तु को विद्यार्थी को प्रस्तुत करके उस पर स्व अधिगम करवाया जा सकता है । 
  • आधारभूत ज्ञान में पारंगत करना : जब विद्यार्थी कम्प्यूटर पर बैठकर स्वयं किसी प्रकरण एवं विषयवस्तु का अध्ययन करता है , तो वह करके सीखने के सिद्धांत के परिणामस्वरूप अपने आधारभूत ज्ञान को स्थायी कर लेता है । 
  • पुनरावलोकन की क्षमता का विकास : कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में विद्यार्थी को अपनी विषयवस्तु के अध्ययन में गलत उत्तर देने पर कम्प्यूटर उसको उत्तर सही करने का निर्देश देता है , जिसका अनुकरण करते हुए वह अपना उत्तर सही करता है , जिससे उसकी पुनरावलोकन क्षमता का विकास होता है । 
  • पुनर्बलन प्रदान करना : कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में विद्यार्थी को सही उत्तर देने पर कम्प्यूटर द्वारा सकारात्मक पुनर्बलन प्राप्त होता है जैसे - सही है । इसके परिणामस्वरूप विद्यार्थी आगे की विषयवस्तु पर चला जाता है , जबकि यदि विद्यार्थी गलत उत्तर देता है , तो कम्प्यूटर उसे नकारात्मक पुनर्बलन प्रदान करता है , जैसे- गलत हैं । कम्प्यूटर विद्यार्थी को पुनः शैक्षिक तकनीकी , सूचना प्रौद्योगिकी एवंई - लर्निग इकाई 1 उस विषयवस्तु को सही करने के निर्देश प्रदान करता है । 
  • शिक्षण में उन्नयन का आंकलन करना : कम्प्यूटर द्वारा तुरंत मूल्यांकन करने के फलस्वरूप विद्यार्थी को शिक्षण के उन्नयन अर्थात उसने कितना सीखा है , का तुरंत ज्ञान हो जाता है । अतः कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन के माध्यम से विद्यार्थी स्वगति से अध्ययन करते हुए अपना मूल्यांकन स्वयं कर सकता है , और अपने ज्ञान को स्थायी बना सकता है ।

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन के प्रकार कम्प्यूटर

सहायक अनुदेशन के उद्देश्यों को निम्नलिखित प्रकारों से प्राप्त किया जा सकता है-

  1.  ड्रिल एण्ड प्रेक्टिस : इसके अंतर्गत विद्यार्थी को शिक्षण - कौशलों पर निरंतर अभ्यास के अवसर प्रदान किए जाते हैं , जिससे उसके पूर्व के शिक्षण - कौशल पर स्वामित्व हो जाए । 
  2. ट्यूटोरियल्स : इसके अंतर्गत विद्यार्थियों को सूचना का प्रस्तुतीकरण किया जाता है तथा इसका कार्य के विभिन्न रूपों ; जैसे - ड्रिल एण्ड प्रेक्टिस , खेल तथा अनुकरण में विस्तारीकरण करते हैं । 
  3. खेल : खेल सॉफ्टवेयरों के माध्यम से विद्यार्थी विषयवस्तु में अधिकाधिक अंक लाता हैं , साथ ही दूसरे विद्यार्थी को कम्प्यूटर खेल की प्रतियोगिता में हराने हेतु प्रेरित भी होता है । 
  4. अनुकरण : अनुकरणीय सॉफ्टवेयरों के माध्यम से विद्यार्थियों को जीवंतता अथवा वास्तविक जीवन से लगभग परिचित करवा सकते हैं । 
  5. खोजः विद्यार्थी को एक विषयवस्तु से सम्बंधित खोज करने की चुनौती देना जैसे- संकलन , विश्लेषण , तुलना , मूल्यांकन आदि । 
  6. समस्या समाधान : इससे विद्यार्थियों में समस्या समाधान का कौशल विकसित होता है । समस्या समाधान के सॉफ्टवेयरों के द्वारा विद्यार्थी को बहुत सारी घटनाओं पर उनकी प्रतिक्रिया के परिणामों को दिखाया जा सकता गतिविधि : कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन के निम्नलिखित प्रकारों के अध्ययन के पश्चात् विद्यार्थी कक्षाकक्ष में समूह चर्चा करें कि उपरोक्त प्रकारों में से कौनसा प्रकार उनके अधिगम में अधिक उपयुक्त रहेगा और क्यों ? समूह चर्चा में आए महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को सभी विद्यार्थी सूचीबद्ध करें ।

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन के उपयोग : 

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन के इन सभी प्रकारों का उपयोग करते हुए कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन से निम्नलिखित कार्यों का सम्पादन किया जा सकता है - 

  • विद्यार्थियों में सीखने की प्रक्रिया के प्रति सुधारात्मक दृष्टिकोण का विकास होता है , क्योंकि वह स्वयं अथवा समूह में बैठकर कम्प्यूटर पर कार्य करते हुए पृष्ठपोषण प्राप्त करता है और अपनी गलतियों को सुधार कर आगे बढ़ता है । 
  • कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन से पारम्परिक शिक्षण विधियों की तुलना में विद्यार्थी अधिक अधिगम करता है , क्योंकि वह खोज , समस्या समाधान , खेल आदि विधियों के द्वारा जानार्जन करता है । फेचार के अनुसार कम्प्यूटर 1 शैक्षिक तकनीकी , सूचनाप्रौद्योगिकी एवं ई - लर्निग . सहायक अनुदेशन से ज्ञानार्जन करने वाले विद्यार्थी अपना कार्य पूर्ण करने में दूसरों की अपेक्षा 30 प्रतिशत है समय लेते हैं । 
  • विद्यार्थी मूल कौशलों को विकसित करने हेतु कम्प्यूटर पर स्वयं अभ्यास करते हैं , जिससे प्राप्त शान स्थात होता है । 
  • विद्यार्थी स्वयं अथवा समूह में बैठकर विषयवस्तु का कम्प्यूटर पर अंतःक्रिया करते हैं , एवं उनके श्रव्य - दृश्य ज्ञानेंद्रियों सक्रिय रहती है , जिससे वे अधिक एवं तीव्र गति से सीखते हैं । 
  • सॉफ्टवेयर द्वारा सही उत्तर पर तुरंत पृष्ठपोषण देने पर विद्यार्थी अधिक सीखने के लिए ज्यादा प्रेरित होते है । साथ ही उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है , जिसके परिणामस्वरूप उनकी महत्त्वाकांक्षा भी बढ़ती है ।

उपरोक्त कार्यों के साथ कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन का शिक्षा में निम्नलिखित अन्य उपयोग है-

 1. शिक्षण तथा निर्देशन में - यह व्यक्तिगत अनुदेशन का उच्च उपकरण है । प्रत्येक विद्यार्थी शिक्षक है । अलग - अलग प्रकार के प्रारम्भिक व्यवहार होते हैं । वे सभी एक ही विषयवस्तु को विभिन्न अनुदेशन सामग्री से अध्ययन कर सकते हैं । अतः विद्यार्थी के प्रारम्भिक व्यवहारों के अनुसार कम्प्यूटर निर्णय करता है , कि उसे कौनसी अनुदेशन सामग्री प्रदान की जाए । 

2. शोध कार्यों के दत्त प्रसंस्करण में - शोध परिकल्पनाओं की पुष्टि तथा शोध के परिणामों की प्राप्ति हेतु आंकड़ो के विश्लेषण में कम्प्यूटर का उपयोग शोध संस्थान , कॉलेज एवं विश्वविद्यालय करते हैं । इस कार्य हेतु कम्प्यूटर आर्थिक रूप से उचित व तीव्र गति युक्त एवं सही गणना करने वाला उपकरण है । इससे बड़े से बड़े डेटा ( आंकड़ो ) का विश्लेषण आसानी से किया जा सकता है । 

3. परीक्षा पद्धति में - शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षण तथा परीक्षा दो मुख्य भाग होते हैं । कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन दोनों कार्य में उपयोगी होता है । कम्प्यूटर के माध्यम से सम्पूर्ण मूल्यांकन पद्धति का तीव्र गति से एकदम सही ढंग से पूर्ण कर सकते है । 

4. शैक्षिक निर्देशन एवं परामर्श में - कम्प्यूटर निर्देशन एवं परामर्श में भी महत्त्वपूर्ण भमिका का निर्वाह करता है । कम्प्यूटर के द्वारा विद्यार्थियों के निदानात्मक शिक्षण के पश्चात् ज्ञात कमजोरियों के अनुरूप उपचारात्मक अनुदेशन दिए जाते हैं । साथ ही विद्यार्थी शिक्षक को व्यावसायिक निर्देशन भी दिया जा सकता है ।

शिक्षण में कंप्यूटर का क्या उपयोग है?

(1) कम्प्यूटर में विद्यार्थियों से सम्बन्धित जानकारी रखी जा सकती है। (2) किसी भी पूर्व अर्जित ज्ञान का अभ्यास करने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग किया जा सकता है। (3) इसके द्वारा विद्यार्थियों की प्रगति व विकास की जानकारी प्राप्त होती है। (4) कम्प्यूटर से जो कुछ भी पूछा जाता है उसका वह तुरन्त जवाब देता है।

शिक्षा में कंप्यूटर क्यों आवश्यक है?

कंप्यूटर शिक्षा से जटिलतम प्रश्नों तथा समस्याओं का हल आसानी से किया जा सकता है. व्यावसायिक क्षेत्र की सफलता के लिए कंप्यूटर का ज्ञान अति आवश्यक बन गया है. इसी से वर्तमान में दूरस्थ शिक्षा तथा ऑनलाइन एजुकेशन के कार्यक्रम चल रहे है. फलस्वरूप इससे बौद्धिक शारीरिक श्रम समय तथा धन की बचत हो रही है.

शिक्षण में कंप्यूटर का उपयोग कब किया गया?

1940 से 1970 तक इसका उपयोग शिक्षा में 1940 के बाद आया, जब अमेरिकी शोधकर्ताओं ने एक कम्प्युटर का निर्माण किया जिसके द्वारा यह जानकारी को रखा जा सकता है।

छात्रों के लिए कंप्यूटर के महत्व क्या है?

कंप्यूटर का महत्त्व (importance of computer in hindi) कम्प्युटर हमें डाटा को स्टोर करने गणना करने और हमें संगठित तरीके से काम करने में मदद करते हैं। कम्प्युटर काफी तरह के कार्यों में गति और अकाग्रता से समय और धन की बचत करने में काम आता है। कम्प्युटर ने विज्ञान, तकनीकी, शिक्षा और समाज के क्षेत्र में काफी विकास किया है।