ऊँचे कुल में जनमिया करनी ऊँच न होय हिंदी मीनिंग Unche Kul Me Janamiya Karni Unch Na Hoy Hindi Meaning कबीर दोहे हिंदी मीनिंगकबीर दोहे व्याख्या हिंदी में Show
Oonche Kul Mein Janamiya, Karanee Oonch Na Hoy . "ऊँचे कुल में जनमिया" शब्दार्थ Word Meaning of Unche Kul Me Janamiyaऊँचे कुल में जनमिया-ऊँचे कुल में जनम लेने से. ऊँचे कुल में जनमिया करनी ऊँच न होय हिंदी मीनिंग मीनिंग Unche Kul Me Janamiya Karni Unch Na Hoy Hindi MeaningHindi Meaning of Kabir Doha/दोहे का हिंदी मीनिंग : कबीर साहेब ने व्यतिगत/गुणों के आधार पर श्रेष्ठता को स्वीकार किया है लेकिन जन्म आधार पर / जाति आधार पर किसी की श्रेष्ठता को नकारते हुए कहा की मात्र ऊँचे कुल में जन्म ले से ही कोई विद्वान् और श्रेष्ठ नहीं बन जाता है, इसके लिए उसमे गुण भी होने चाहिए। यदि गुण हैं तो भले ही वह किसी भी जाती और कुल का क्यों ना हो वह श्रेष्ठ ही है। यदि सोने के बर्तन में शराब भरी हुयी है, तो क्या वह श्रेष्ठ बन जायेगी ? नहीं वह निंदनीय ही रहेगी/ साधू और सज्जन व्यक्ति उसकी निंदा ही करेंगे। पाड़ोसी सू रुसणां, तिल- तिल सुख की होणि। उत्पत्ति ब्यंद कहाँ थै आया, जोति धरि अरु लगी माया। पांडे कौन कुमति तोहि लगि, तू राम न जपहि आभागा। Kabir Bhajan By Shabnam Virmani. कबीर साहेब इन इस दोहे में स्वंय / आत्मा का परिचय देते हुए स्पष्ट किया है की मैं कौन हूँ, जाती हमारी आत्मा, प्राण हमारा नाम। अलख हमारा इष्ट, गगन हमारा ग्राम।। जब आत्मा चरम रूप से शुद्ध हो जाती है तब वह कबीर कहलाती है जो सभी बन्धनों से मुक्त होकर कोरा सत्य हो जाती है। कबीर को समझना हो तो कबीर को एक व्यक्ति की तरह से समझना चाहिए जो रहता तो समाज में है लेकिन समाज का कोई भी रंग उनकी कोरी आत्मा पर नहीं चढ़ पाता है। कबीर स्वंय में जीवन जीने और जीवन के उद्देश्य को पहचानने का प्रतिरूप है। कबीर का उद्देश्य किसी का विरोध करना मात्र नहीं था अपितु वे तो स्वंय में एक दर्शन थे, उन्होंने हर कुरीति, बाह्याचार, मानव के पतन के कारणों का विरोध किया और सद्ऱाह की और ईशारा किया। कबीर के विषय में आपको एक बात हैरान कर देगी। कबीर के समय सामंतवाद अपने प्रचंड रूप में था और सामंतवाद की आड़ में उनके रहनुमा मजहब के ठेकेदार अपनी दुकाने चला रहे थे। जब कोई विरोध का स्वर उत्पन्न होता तो उसे तलवार की धार और देवताओं के डर से चुप करवा दिया जाता। तब भला कबीर में इतना साहस कहाँ से आया की उन्होंने मुस्लिम शासकों के धर्म में व्याप्त आडंबरों का विरोध किया और सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा भी की। कबीर का यही साहस हमें आश्चर्य में डाल देता है। जहाँ एक और कबीर ने हर आडंबर और बाह्याचार का विरोध किया वहीँ तमाम तरह के अत्याचार सहने के बावजूद कबीर की वाणी में प्रतिशोध और बदले की भावना कहीं नहीं दिखती है। कबीर साहेब ने आम आदमी को धर्म को समझने की राह दिखलाई। जहाँ धर्म वेदों के छंदों, क्लिष्ट श्लोकों, वृहद धार्मिक अनुष्ठान थे जिनसे आम जन त्रस्त था, वही कबीर ने एक सीधा सा समीकरण लोगों को समझाया की ईश्वर ना तो किसी मंदिर विशेष में है और ना ही ईश्वर किसी मस्जिद में, ना तो वो काबे तक ही सीमित है और ना ही कैलाश तक ही, वह तो हर जगह व्याप्त है। आचरण की शुद्धता और सत्य मार्ग का अनुसरण करके कोई भी जीवन के उद्देश्य को पूर्ण कर सकता है। यही कारण है की कबीर साहेब ने किसी भी पंथ की स्थापना नहीं की, यह एक दीगर विषय है की आज कुछ लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कबीर साहेब के बताये मार्ग का अनुसरण नहीं कर रहे हैं और वास्तव में उसके विपरीत कार्य कर रहे हैं जो की एक गंभीर विषय है। कबीर साहेब के विषय में एक बात और है जो गौरतलब है उनका ख़ालिश सत्य के साथ होना, उसमे हिन्दू मुस्लिम, बड़े छोटे का कोई भेद नहीं था। जहाँ एक और विदेशी शासकों के मुस्लिम धर्म में व्याप्त अंधविश्वास और स्वार्थ जनित रीती रिवाजों का विरोध कबीर साहेब ने किया वहीँ उन्होंने हिन्दू धर्म में व्याप्त पोंगा पंडितवाद, धार्मिक भाह्याचार, कर्मकांड, अंधविश्वास, चमत्कार, जाति प्रथा का भी मुखर विरोध किया। वस्तुतः कबीर आम जन, पीड़ित, शोषित, लोगों की जबान थे और इन लोगों ने कबीर के पथ का अनुसरण भी किया। उल्लेखनीय है की कबीर साहेब ने ईश्वर को लोगों तक पहुंचाया।
वेदों की भारी भरकम ऋचाएं, संस्कृत की क्लिष्टता को दूर करते हुए कबीर साहेब ने लोगो को एक ही सूत्र दिया की ईश्वर किसी ग्रन्थ विशेष, स्थान विशेष तक ही सिमित नहीं है, वह हर जगह व्याप्त है। कोई भी व्यक्ति सत्य को अपनाकर ईश्वर की प्राप्ति बड़ी ही आसानी से कर सकता है। मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे कबीर साहेब किसी वर्ग विशेष से ना तो स्नेह रखते थे और नाहीं किसी वर्ग विशेष से उनको द्वेष ही था। उन्होंने मानव जीवन में जहाँ भी कोई कमी देखी उसे लोगों के समक्ष सामान्य भाषा में रखा। उल्लेखनीय है की संस्कृत भाषा तक आम जन की कोई पकड़ नहीं थी, एक तो उन्हें धार्मिक ग्रंथों से दूर रखा जाता था
और दूसरा संस्कृत भाषा की क्लिष्टता। धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में थे और वे एक जाति और वर्ग विशेष तक सीमित रह गए थे। कबीर साहेब ने गूढ़ रहस्यों को घरेलू आम जन की भाषा में लोगो को समझाया और लोगों को उनकी सुनते ही समझ में आ जाती थी, यही कारण है कबीर साहेब के लोकप्रिय होने का। भले ही जिन लोगों की दुकाने कबीर साहेब ने चौपट कर दी थी वे कबीर साहेब के आलोचक थे लेकिन कई मौकों पर उन्होंने भी कबीर साहेब की बातों को सुनकर उसे समझा और उनकी सराहना की। कबीर साहेब ने अपना जीवन जहाँ वाराणसी में बिताया वही उन्होंने इसी मिथक को तोड़ने के लिए अपने अंतिम समय के लिए मगहर को चुना जहां १५१८ में उन्होंने दैहिक जीवन को छोड़ दिया। मगहर में जहाँ कबीर साहेब ने दैहिक जीवन छोड़ा वहां पर मजार और मस्जिद दोनों स्थापित है जहाँ पर प्रति दिन कबीर विचारधारा को मानने वाले व्यक्ति आते रहते हैं। ‘क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा जिस हृदय में राम का वास है उसके लिए काशी और मगहर दोनों एक ही समान हैं। यदि काशी में रहकर कोई प्राण का त्याग करें तो इसमें राम का कौनसा उपकार होगा ? भाव है की भले ही काशी हो या फिर मगहर यदि हृदय में राम का वास है तो कहीं भी प्राणों का त्याग किया जाय, राम सदा उसके साथ हैं। यहाँ राम से अभिप्राय निर्गुण ईश्वर से है। गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान। गुरू को कीजै दंडवत, कोटि कोटि परनाम।
दंडवत गोविंद गुरू, बन्दौं ‘अब जन’ सोय। गुरू गोविंद कर जानिये, रहिये शब्द समाय। गुरू गोविंद दोऊ खङे, किसके लागौं पाँय। गुरू गोविंद दोउ एक हैं, दूजा सब आकार। गुरू हैं बङे गोविंद ते, मन में देखु विचार। गुरू तो गुरूआ मिला, ज्यौं आटे में लौन। गुरू सों ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजिये दान। गुरू की आज्ञा आवई, गुरू की आज्ञा जाय। गुरू पारस गुरू पुरुष है, चंदन वास सुवास। गुरू पारस को अन्तरो, जानत है सब सन्त। कुमति कीच चेला भरा, गुरू ज्ञान जल होय। गुरू धोबी सिष कापङा, साबू
सिरजनहार। गुरू कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट। गुरू समान दाता नहीं, याचक सीष समान। पहिले दाता सिष भया, तन मन अरपा सीस। गुरू जो बसै बनारसी, सीष समुंदर तीर। लच्छ कोस जो गुरू बसै, दीजै सुरति पठाय। गुरू को सिर
पर राखिये, चलिये आज्ञा मांहि। गुरू को मानुष जो गिनै, चरनामृत को पान। गुरू को मानुष जानते, ते नर कहिये अंध। गुरू बिन ज्ञान न ऊपजै, गुरू बिन मिलै न भेव। गुरू बिन ज्ञान न ऊपजै, गुरू बिन मिलै न मोष। गुरू नारायन रूप है, गुरू ज्ञान को घाट। गुरू महिमा गावत सदा, मन अति राखे मोद। गुरू सेवा जन बंदगी, हरि सुमिरन वैराग। गुरू मुक्तावै जीव को, चौरासी बंद छोर। गुरू सों प्रीति निबाहिये, जिहि तत निबहै संत। गुरू मारै गुरू झटकरै, गुरू बोरे गुरू तार।
घनघसिया जोई मिले, घन घसि काढ़े धार। सिष पूजै गुरू आपना, गुरू पूजे सब साध। गुरू सोज ले सीष का, साधु संत को देत। सिष किरपन गुरू स्वारथी, मिले योग यह आय। देस दिसन्तर मैं फ़िरूं,
मानुष बङा सुकाल। सत को ढूंढ़त में फ़िरूं, सतिया मिलै न कोय। स्वामी सेवक होय के, मन ही में मिलि जाय। धन धन सिष की सुरति कूं, सतगुरू लिये समाय। गुरू विचारा क्या करै, बांस न ईंधन होय। गुरू भया नहि सिष भया, हिरदे कपट न जाव। चच्छु होय तो देखिये, जुक्ती जानै सोय। गुरू कीजै जानि कै, पानी पीजै छानि। गुरू तो ऐसा चाहिये, सिष सों कछू न लेय। अंतर ज्योति सब्द यक नारी, हरि ब्रह्मा ताके त्रिपुरारी । जो गुरु बसै बनारसी, शीष समुन्दर तीर। जस जिव आपु मिलै अस कोई, बहुत धर्म सुख हृदया होई । क्या कबीर साहेब विवाहित थे : जिस प्रकार से कबीर साहेब के माता पिता के सबंध में अनेकों विचार प्रसिद्द हैं तो एक दुसरे से मुख्तलिफ हैं, वैसे ही उनके परिवार के विषय में कोई भी एक मान्य राय की सुचना उपलब्ध नहीं है। कबीर को जहाँ कुछ लोग अविवाहित मानते हैं वही कुछ लोग कबीर का भरा पूरा परिवार बताते हैं। इन्ही मान्यताओं के आधार पर ऐसा माना जाता
है की कबीर साहेब की पत्नि का नाम लोई था। कबीर पंथ के विद्वान व्यक्ति कहते हैं की कबीर ब्रह्मचारी थे और वे नारी को साधना में बाधक मानते थे। पहलो कुरूप, कुजाति, कबीर साहेब के पुत्र का नाम कमाल माना जाता है। बूडा़
वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल। ऊँचे कुल में जनमिया करनी ऊँच न होय हिंदी मीनिंग Unche Kul Me Janamiya Karni Unch Na Hoy Hindi Meaning कबीर दोहे हिंदी मीनिंगकबीर के विचार जो बदल सकते हैं आपका जीवन / Kabir Thoughts Can Change Your Life :
कबीर के गुरु कौन थे Who Was Kabir's Guru : मान्यता है की कबीर साहेब के गुरु का नाम रामानंद जी थे। "काशी में परगट भये , रामानंद चेताये " हालाँकि कबीर साहेब के जानकारों की एक अलाहिदा राय है की कबीर साहेब स्वंय परमब्रह्म थे और उनका कोई गुरु नहीं था। कबीर साहेब का जन्म कहाँ हुआ : When was Kabir Born : महान संत और आध्यात्मिक कबीर दास का जन्म वर्ष 1440 में और मृत्यु वर्ष 1518 में हुई थी। इस्लाम के अनुसार ‘कबीर’ का अर्थ महान होता है। क्या कबीर साकार ईश्वर को मानते थे What are the ideas of Kabir on God : कबीर साहेब परम सत्ता को एक ही मानते थे उनके अनुसार लोगों ने उसका अपनी सुविधा के अनुसार नामकरण मात्र किया है जबकि वह एक ही है और सर्वत्र विद्यमान हैं। राम-रहीम एक है, नाम धराया दोय। कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परौ मति कोय।। वह किसी स्थान विशेष का मोहताज नहीं है, वह सर्वत्र विद्यमान है और वह घर पर भी है उसे ढूंढने के लिए किसी भी यात्रा की जरूरत हैं है। जो भी सत्य है वह ईश्वर ही है। कबीर साहेब ने तात्कालिक मूर्तिपूजा का घोर खंडन करते हुए ईशर को निराकार घोषित किया। कबीर साहेब ने मानव देह कब छोड़ी Where did Sant Kabir die? :कबीर साहेब ने जीवन भर लोगो को शिक्षाएं दी जो आज भी प्रसंगिक हैं और उन्होंने अपनी मृत्य को भी लोगो के समक्ष एक शिक्षा के रूप में रखा। उस समय मान्यता थी की यदि कोई काशी में मरता है तो स्वर्ग और मगहर में यदि कोई मरता है तो वह गधा बनता है, इसी रूढ़ि को तोड़ने के लिए कबीर साहेब ने मगहर को चुना। क्या कबीर सूफी संत थे Was Kabir a Sufi saint? : कबीर के विचार स्वतंत्र थे, निष्पक्ष थे और आडंबरों से परे थे, यही बात कबीर साहेब को अन्य पंथ और मान्यताओं से अलग करती है। कबीर साहेब सूफी संत नहीं थे लेकिन यह एक दीगर विषय है की बाबा बुल्ले शाह के विचार कबीर साहेब से बहुत मिलते जुलते हैं, मसलन- मक्का गयां गल मुकदी नाहीं, भावें सो सो जुम्मे पढ़ आएं कबीर साहेब ने किस भाषा में लिखा है In which language Kabir Das wrote : गौरतलब है की कबीर साहेब ने स्वंय कुछ भी नहीं लिखा है। जो भी लिखित है वह उनके समर्थक /अनुयायिओं के द्वारा कबीर साहेब की वाणी को सुन कर लिखा गया है। “मसि कागद छूऔं नहीं, कलम गहौं नहि हाथ चारों जुग कै महातम कबिरा मुखहिं जनाई बात” कबीर साहेब ने जो देखा वही कहा और यही कारण है की उनके अनुयायिओं के द्वारा विभिन्न भाषा / अपने क्षेत्र, अंचल की भाषा को काम में लिया गया जिसके कारन से हिंदी पंजाबी, राजस्थानी और गुजराती के शब्द हमें उनकी लेखनी में मिलते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल इस इस मिलीजुली भाषा को सधुकड़ि भाषा का नाम दिया है। ऊँचे कुल में जनमिया करनी ऊँच न होय हिंदी मीनिंग Unche Kul Me Janamiya Karni Unch Na Hoy Hindi Meaning कबीर दोहे हिंदी मीनिंगकबीर की जाति क्या थी? What is the Cast of Kabir, What is the Religion of Kabir Hindu or Muslim: वैसे तो यह सवाल ही अनुचित है की कबीर के जाति क्या थी क्योंकि कबीर ने सदा ही जातिवाद का विरोध किया। यह सवाल जहन में उठता है क्योंकि हम जानना चाहते हैं ! संत की कोई जाति नहीं होती और ना ही उसका कोई धर्म ! कबीर की जाति और धर्म जानने की उत्सुकता का कारन है की वस्तुतः हम मान लेते हैं की दलित साहित्य चिंतन और लेखन करने वाला दलित ही होना चाहिए। कबीर साहेब ने बरसों से चली आ रही सामजिक और जातिगत मान्यताओं को खारिज करते हुए मानव को मानव होने का गौरव दिलाया और घोषित किया की एक बूंद एकै मल मूत्र, एक चम् एक गूदा। जातिगत और जन्म के आधार पर कबीर साहेब ने किसी की श्रेष्ठता मानने से इंकार किया। बहरहाल, क्या कबीर दलित थे ? मान्य चिंतकों और साहित्य की जानकारी रखने वाले विद्वानों के अनुसार कबीर साहेब दलित नहीं थे क्यों की समकालिक सामाजिक परिस्थितियों में दलितों को 'अछूत' माना जाता था। कबीर साहेब के विषय में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है। मान्यताओं के आधार पर कबीर साहेब जुलाहे (मुस्लिम जुलाहे ) से सबंध रखते थे और मुस्लिम समाज में अश्प्रश्य, छूआछूत जैसे कोई भी अवधारणा नहीं रही है, हाँ, गरीब और अमीर कुल का होना एक दीगर विषय हो सकता है। जाँति न पूछो साधा की पूछ लीजिए ज्ञान। इसके विपरीत आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी कबीर साहेब का जन्म ब्राह्मण जाती में होना बताते हैं और कबीर साहेब को 'नाथपंथी होना' बताते हैं। डॉक्टर धर्मवीर भारती जी के अनुसार कबीर साहेब मुस्लिम जुलाहे तो थे ही और अछूत भी थे जो कुछ समझ से परे की बात लगती है। कबीर साहेब दलित थे या नहीं यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन कबीर साहेब की दलित चेतना सभी को एक स्वर में मान्य है। kabir ke dohe pdf kabir ke dohe in english kabir ke dohe with meaning in hindi language kabir ke dohe song kabir ke dohe sakhi meaning in hindi kabir ke dohe audio kabir ke dohe class 10 kabir ke dohe videoसंत कबीर के दोहे कबीर के दोहे मीठी वाणी कबीर के दोहे साखी कबीर के दोहे डाउनलोड कबीर के दोहे mp3 कबीर के दोहे मित्रता पर कबीर के दोहे pdf कबीर के दोहे धर्मपर, कबीर साहेब के दलित चेतना पर विचार, कबीर साहेब के मूर्ति पूजा पर विचार, कबीर साहेब के धर्म पर विचार। kabir ke dohe pdf kabir ke dohe in english kabir ke dohe with meaning in hindi language kabir ke dohe song kabir ke dohe sakhi meaning in hindi kabir ke dohe audio kabir ke dohe class 10 kabir ke dohe videoसंत कबीर के दोहे कबीर के दोहे मीठी वाणी कबीर के दोहे साखी कबीर के दोहे डाउनलोड विनम्र निवेदन: वेबसाइट को और बेहतर बनाने हेतु अपने कीमती सुझाव नीचे कॉमेंट बॉक्स में लिखें व इस ज्ञानवर्धक ख़जाने को अपनें मित्रों के साथ अवश्य शेयर करें। यदि कोई त्रुटि / सुधार हो तो आप मुझे यहाँ क्लिक
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कबीर के अनुसार ऊँचे कुल में जन्म लेने पर भी अच्छे कर्म ना करने पर आदमी निंदा का पात्र ही होता है। जिस प्रकार किसी सोने के घड़े में शराब रख देने से सोने पर ही संदेह किया जाता है, उसी तरह ऊँचे कुल में गलत व्यक्ति के जन्म लेने से उनकी ही बदनामी होती है।
ऊँचे कुल में जन्म लेने से क्या ऊँचा होना चाहिए?सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय । भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।
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