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Learn with Criss Cross Classes बारहमासाIn this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 8 बारहमासा These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 8 बारहमासा के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Ch – 7 || बारहमासा (मलिक् मुहम्मद जायसी) || Class 12 (अंतरा) || Detailed Summary By Anshul Sir बारहमासा
मलिक मुहम्मद जायसीजीवन परिचयजन्म
रचनाएं: –12 ग्रंथ बताए जाते हैं, परंतु साक्ष्य के रूप में सात ही उपलब्ध हैं। प्रमुख रचनाएं –
साहित्यिक परिचय:जायसी सूफी काव्य धारा के प्रमुख कवि हैं, इन्हें पद्मावत महाकाव्य से प्रसिद्धि प्राप्त हुई। यह एक आध्यात्मिक कविता है, इसमें अलौकिक कहानी के माध्यम से लौकिक कहानी का उल्लेख है, और यह समन्वय शैली में लिखी गई एक रचना है। यहां हिंदू और मुस्लिम काव्य शैलियों का मेल है। पद्मावत में रत्नासेन ‘आत्मा’ का पद्मावती, ‘परमात्मा’ का हीरामन तोता, ‘गुरु’ का नागमती ‘सांसारिक मोह माया’ का प्रतीक है। भाषा शैली:फ़ारसी की मसनवी शैली की भाषा में आम बोलचाल की अवधी भाषा की लोकप्रिय भाषा में अनुप्रास, रूपक, उपमा, रूपक, अनुप्रास का प्रयोग। करुण और श्रृंगार रस के दोनों पक्ष सहयोग और वियोग के उपयोग हैं। गाम्भीर्य भाव मृत्यु है। मृत्यु 1542 में हुई।बारहमासा कविता की व्याख्याकविता का सारांश
1. अगहन देवस घटा निसि बाढ़ी। दूभर दुख सो जाइ किमि काढ़ी।। अब धनि देवस बिरह भा राती। जरै बिरह ज्यों दीपक बाती।। काँपा हिया जनावा सीऊ। तौ पै जाइ होइ सँग पीऊ।। घर घर चीर रचा सब काहूँ। मोर रूप रंग लै गा नाहू।। पलटि न बहुरा गा जो बिछोई। अबहूँ फिरै फिरै रंग सोई।। सियरि अगिनि बिरहिनि हिय जारा। सुलगि सुलगि दगधै भै छारा।। यह दुख दगध न जानै कंतू। जोबन जनम करै भसमंतू।। पिय सौं कहेहु सँदेसरा, ऐ भँवरा ऐ काग। सो धनि बिरहें जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग।। व्याख्या
2. पूस जाड़ थरथर तन काँपा। सुरुज जड़ाइ लंक दिसि तापा।। बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कॅपि कॅपि मरौं लेहि हरि जीऊ।। कंत कहाँ हौं लागौं हियरें। पंथ अपार सूझ नहिं नियरें।। सौर सुपेती आवै जूड़ी। जानहुँ सेज हिवंचल बूढ़ी।। चकई निसि बिछुरै दिन मिला। हौं निसि बासर बिरह कोकिला।। रैनि अकेलि साथ नहिं सखी। कैसें जिऔं बिछोही पँखी।। बिरह सचान भँवै तन चाँड़ा। जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा।। रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब संख। धनि सारस होइ ररि मुई, आइ समेटहु पंख।। व्याख्या
3. लागेउ माँह परै अब पाला। बिरहा काल भएउ जड़काला।। पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँपै।। आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।। एहि मास उपजै रस मूलू। तूं सो भँवर मोर जोबन फूलू।। नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू।। टूटहिं बुंद परहिं जस ओला। बिरह पवन होइ मारै झोला।। केहिक सिंगार को पहिर पटोरा। गियँ नहिं हार रही होइ डोरा।। तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई, तन तिनुवर भा डोल। तेहि पर बिरह जराइ कै, चहै उड़ावा झोल।। व्याख्या
4. फाल्गुन पवन झंकोरै बहा। चौगुन सीउ जाइ किमि सहा।। तन जस पियर पात भा मोरा। बिरह न रहे पवन होइ झोरा।। तरिवर झरै झरै बन ढाँखा। भइ अनपत्त फूल फर साखा।। करिन्ह बनाफति कीन्ह हुलासू। मो कहँ भा जग दून उदासू।। फाग करहि सब चाँचरि जोरी। मोहिं जिय लाइ दीन्हि जसि होरी।। जौं पै पियहि जरत अस भावा। जरत मरत मोहि रोस न आवा।। रातिहु देवस इहै मन मोरें। लागौं कंत छार जेऊँ तोरें।। यह तन जारौं छार कै, कहौं कि पवन उड़ाउ। मकु तेहि मारग होइ परौं, कत धरै जहँ पाउ।। व्याख्या
विशेष
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बारहमासा गीतों में किसका वर्णन मिलता है *?इसके पद्य या गीत में बारहों महीने की प्राकृतिक विशेषताओं का वर्णन किसी विरही या विरहनी के मुख से कराया जाता है। इस गीत में वह अपनी दशा को हर महीने की खासियत के साथ पिरोकर रखती है। इस शैली में ज्यादातर किसी स्त्री का पति परदेस कमाने चला जाता है और वह दुखी मन से अपनी सखी को बताती है कि पति के बिना हर मौसम व्यर्थ है।
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