Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 15 जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 11 Hindi Solutions Antra Chapter 15 जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजलेRBSE Class 11 Hindi जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले Textbook Questions and Answersजाग तुझको दूर जाना - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. कला पक्ष-इस अंश में विश्व का क्रन्दन' सारे संसार के दुख का प्रतीक है, ' मधुप की गुंजन' और 'ओस गीले पुष्प दल' मधुर आकर्षण के प्रतीक हैं। भाषा का सौन्दर्य और प्रतीक-योजना आकर्षक है। प्रश्नात्मक शैली है। अनुप्रास अलंकार और व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है। (ख) कह न ठण्डी साँस.........सजेगा आज पानी। कला पक्ष की दृष्टि से जलती कहानी हार की निराशा का प्रतीक है। 'उर की आग' और 'सजेगा पानी' दोनों ही लाक्षणिक प्रयोग हैं। भाषा संस्कृतनिष्ठ, प्रांजल खड़ी बोली है। छन्द और लय के रूप में एक श्रेष्ठ छन्द है। (ग) है तुझे अंगार-शय्या...........कलियाँ बिछाना! प्रश्न 5. जो सांसारिक बन्धन हमें लक्ष्य से भटकाएँ वे कारागार के समान हैं। उन्होंने भारतीयों को अमरता-पुत्र कहकर अपने स्वरूप को पहचानने का संदेश दिया है। आलस्य त्याग दृढ़ता से डटे रहना, बलिदान देकर अमर होना, स्वतंत्रता-प्राप्ति के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सन्नद्ध रहना, आलस्य त्याग आदि बातों के लिए प्रेरित किया है। आत्मसम्मान के साथ जीने की प्रेरणा देते हुए पतंगे के समान जीवन त्याग करने का सन्देश दिया है। इसलिए वे देशवासियों से यह आशा करती हैं कि वे अपने लक्ष्य को भूलें नहीं और हर प्रकार के कष्ट सहन करने की क्षमता पैदा करें। सब आँखों के आँसू उजले - प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. (ख) नभ-तारक सा.........हीरक, पिघला? प्रश्न 9. RBSE Class 11 Hindi जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले Important Questions and Answersबहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर - जाग तुझको दूर जाना - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. सब आँखों के आँसू उजले - प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. किन्तु उसके हृदय से निकले झरनों से जीवन मिलता है। प्रकृति का यह स्वरूप सत्य है। सागर ने पथ्वी को भुजाओं में भर रखा है। उसकी यह स्थिति सत्य है। दोनों अपनी जगह सत्य हैं। हीरा और सोना दोनों बहुमूल्य हैं, प्रकृति की देन हैं। दोनों का स्वरूप सत्य है। नीलम और पन्ना अपनी कठोरता के लिए प्रसिद्ध हैं, खराद पर चढ़कर शोभा पाते हैं। उनके गुण सत्य हैं। धरती और आकाश के बीच में जीवन चल रहा है यह व सत्य है। इस प्रकार प्रकृति का प्रत्येक अवयव अपने गुणों के साथ सत्य है। कवयित्री ने प्रकृति के चुने हुए अवयवों द्वारा प्रकृति के सत्य और यथार्थ स्वरूप की चर्चा की है। प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. निबंधात्मक प्रश्नोत्तर - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. नीलम और पन्ना का उदाहरण बड़ा सार्थक है। दोनों रत्न कटते हैं घटते हैं फिर कीमती बनते हैं पर अपना प्रण नहीं छोड़ते। जो सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष से डर गया, उसके सपने अधूरे ही रह जाते हैं। सोना आग में तपता है, पिटता है तब गले का हार बनता है। इसी प्रकार सपनों को देखना ही पर्याप्त नहीं है, उनको साकार करने के लिए प्रयत्न भी करना है। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. हिमालय, प्रलय, तूफान, विद्युत-मेघ आदि का वर्णन वे मानव के हृदय के कठोर भावों को व्यक्त करने के लिए करती हैं तो फूल, तितली, मकरंद, भँवरों का गुंजन आदि का प्रयोग मोम जैसी कोमल भावनाओं को व्यक्त करने के लिए करती हैं। आकाश और पृथ्वी को सीपी का संपुट और जीवन को मोती का प्रतीक देकर वे प्रकृति के सर्जक रूप को दर्शाती हैं। इस प्रकार अन्य कवियों की भाँति महादेवी वर्मा ने भी प्रकृति को अपनी भावाभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है, यह उनकी काव्य कला का श्रेष्ठ उदाहरण है। प्रश्न 7. उन्होंने मानव को मोह की बलिवेदी पर हँसते-हँसते प्राण न्योछावर करने की प्रेरणा दी है। वे मानव को मोह के कोमल बंधनों को त्यागकर अपने कर्तव्य-पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। कला पक्ष की दृष्टि से उनके गीत संगीत की श्रेष्ठ रचनाएँ हैं। उन गीतों का गेयात्मक तत्व एक ओर भक्तिमती मीरा की याद दिलाता है तो दूसरी ओर आधुनिक संगीत गोष्ठियों में गाये जाने वाले लोकप्रिय गीतों की याद दिलाता है। तत्सम प्रधान संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली के साथ लक्षणा का प्रयोग किया गया है। अतः काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से आपका काव्य श्रेष्ठ है। जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले Summary in Hindiकवित्री परिचन : महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद नामक नगर में हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई। महादेवी जी ने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. किया। इसके बाद इनकी नियुक्ति प्रयाग महिला विद्यापीठ में हो गई जहाँ इन्होंने लम्बे समय तक प्राचार्य के पद पर कार्य किया। सन् 1987 में इनका निधन हो गया। महादेवी वर्मा छायावाद के चार स्तम्भों से एक सुदृढ़ स्तम्भ मानी जाती हैं। आपके जीवन और चिन्तन पर स्वतंत्रता आन्दोलन का गहरा प्रभाव पड़ा। आपके विचारों पर गाँधी और बुद्ध के विचारों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। वे भारतीय समाज और साहित्य में स्त्रियों को उचित स्थान दिलाने के लिए प्रयत्नशील रहीं। इन्होंने कुछ समय तक 'चाँद' पत्रिका का सम्पादन किया। इस पत्रिका के सम्पादकीय में आपने भारतीय नारी की पराधीनता का यथार्थ चित्रण किया और उसकी स्वतंत्रता की आकांक्षा की। आपके काव्य में जागरण की चेतना है, स्वतंत्रता की कामना है और करुणा का बोध है। आपको आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। आपकी भाषा संस्कृतनिष्ठ तत्सम प्रधान है। प्रकृति के अछूते बिम्ब और प्रतीकों ने आपकी रचनाओं को अनूठा सौन्दर्य प्रदान किया है। आपकी प्रमुख काव्य रचनाएँ-नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा और दीपशिखा हैं। पथ के साथी, अतीत के चलचित्र और स्मृति की रेखाएँ आपकी कलात्मक गंध रचनाएँ हैं। भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया। 'यामा' कृति पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार' मिला। पाठ परिचय : 1. जाग तुझको दूर जाना - जागरण गीत के रूप में रचित इस गीत का मूल स्वर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के लिए सजग प्रहरियों को आलस्य, भय और प्रमाद को त्यागकर अपने कर्त्तव्य-पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है। चाहे हिमालय काँप उठे, तफान आये, बिजली चमके लेकिन इन कठिनाइयों से घबराना नहीं है और न ही सौन्दर्य के कोमल बन्धनों का आकर्षण ही तुझे तेरे मार्ग से भटकाने का प्रयास करे, परन्तु तुझे कठिन-से-कठिन परिस्थिति में भी अपना बलिदानी पथं नहीं त्यागना है। सदैव चेतन अवस्था में रहकर दूर लक्ष्य को प्राप्त करना है। मोम जैसे कोमल, तितली जैसे रंगीले आकर्षण भी तुझे लक्ष्य से नहीं भटका सकते। इस गीत के माध्यम से कवयित्री ने कायर हृदयों में भी जाग्रति लाने का प्रयास किया है। देश की आजादी ही उनका दूरगामी लक्ष्य रहा है। 2. सब आँखों के आँसू उजले - प्रकृति की पवित्रता और जीवन के यथार्थ को रूपायित करते हुए इस गीत में कवयित्री ने मनुष्य को अपने सपनों को साकार करने की प्रेरणा दी है। प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को प्रतीक रूप में चुनकर महादेवी जी ने प्रकृति की स्थिरता का वर्णन किया है। दीपक, पुष्प, झरने, सागर, पर्वत सभी मानव को कर्तव्य पथ का ज्ञान कराते हैं। दीपक जलकर, पुष्प गंध बाँटकर, पर्वत झरना देकर, सागर मर्यादा में पृथ्वी को बाँधकर, सीपी में नीलम मरकत का जन्म, आकाश के मेघ, धूल से अंकुरण सभी तत्व प्रकृति के संचालन में अपने-अपने ढंग से संलग्न हैं। अत: मानव का जीवन भी संसार के निर्माण पथ में समर्पित हो जाये कवयित्री, का यही लक्ष्य इस गीत में उजागर हआ है। काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ - 1. चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! शब्दार्थ :
सन्दर्भ - प्रस्तुत काव्यांश पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा' काव्यखण्ड से उद्धृत किया गया है। इसकी रचयिता छायावादी काव्यधारा की प्रमुख स्तम्भ महादेवी वर्मा हैं। उनकी 'जाग तुझको दूर जाना' नामक कविता में से संकलित की गई है। इन पंक्तियों में प्रेरणा के स्वर मुखरित हुए हैं। प्रसंग - इन पंक्तियों में महादेवी वर्मा देशवासियों को सजग होकर संघर्ष करने की प्रेरणा दे रही है। इस 'जागरण गीत' द्वारा उन्होंने सदा संघर्ष करने वाले बलिदानियों को उनके कर्त्तव्य का स्मरण कराया है। वे कहती हैं कि - व्याख्या - सदैव संघर्ष के लिए उद्यत रहने वाले बलिदान की परम्परा से बँधे हुए उत्साही नवयुवको! आज तुम्हारी सतेज आँखों को क्या हो गया जो सहज ही अपना उचित मार्ग खोजने में चतुर थीं। आज उनमें आलस्य के कारण निद्रालस क्यों भरा हुआ है। तुम्हारी वेश-भूषा भी अस्त-व्यस्त बिखरी-बिखरी-सी है जैसा कि अधिकांशतया निद्रा से जागे हुए व्यक्ति की होती है। क्या तुम भूल गये कि अभी स्वाधीनता की घड़ी नहीं आई। तुम्हें अभी बहुत चलना पड़ सकता है। अत: जाग्रत होकर लक्ष्य तक पहुँचने के लिए निरन्तर चलते रहो। संघर्ष करते हुए आगे बढ़ो, मंजिल अभी बहुत दूर है। तुम अपने दृढ़ निश्चय पर सदैव आगे बढ़ने वाले रहे हो फिर चाहे हिमालय जैसा विशाल और विस्तृत पर्वत काँप उठे और चाहे सम्पूर्ण आकाश प्रलयकाल की भयंकर वर्षा करने वाला बन जाये, चारों तरफ घोर-अन्धकार छा जाये और प्रकाश की छोटी-से-छोटी किरण को भी निगल जाये अर्थात् प्रकाश का एक नक्षत्र भी दिखाई न दे, चारों ओर घोर अन्धेरा छा जाये। इतना तीव्र तूफान उठे जिसमें आँधी, वर्षा और वज्रपात जैसी भयंकर घटनाएँ, घटित हो रही हों, तेरा मार्ग रोकने वाली भयंकर बाधाएँ उपस्थित हो जायें। लेकिन हे बलिदानी! तुम्हें तो इन विनाशकारी मार्गों पर भी अपनी उपस्थिति अंकित करनी है और ऐसी याद छोड़ जानी है कि आने वाली पीढ़ियाँ भी सदैव तेरे बलिदान को याद करती रहें। अतः सजग होरक अपने दूर लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर आगे बढ़ते रहो। घबराकर रास्ते में मत रुकना। स्वाधीनता का लक्ष्य प्राप्त कर ही शान्त होना, तब तक निरन्तर विशेष :
2. बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले? शब्दार्थ :
सन्दर्भ - हमारी पाठय-पस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड से उदधत इन पंक्तियों की रचयिता छायावाद की प्रमख कवयित्री महादेवी वर्मा हैं। उनके जागरण गीत 'जाग तुझको दूर जाना' से संकलित इन पंक्तियों में उद्बोधन का भाव भरा गया है। प्रसंग - बलिदान के पथ पर आगे बढ़ने वाले संघर्षशील व्यक्ति को संसार का कोई भी आकर्षण, कोई भी बंधन पथभ्रष्ट नहीं कर सकता। प्रश्नों के माध्यम से कवयित्री ने संघर्ष-पथ के पथिकों को जाग्रत करते हुए कहा है कि - व्याख्या - ये सांसारिक बंधन जो मोम की भाँति कोमल होते हैं तथा आकर्षण से भी परिपूर्ण होते हैं, क्या तुझे आगे बढ़ने से रोक सकते हैं। इसी प्रकार सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति रंगीन तितलियों जैसी सुन्दर बालाएँ क्या तुझे अपनी सुन्दरता के आकर्षण में बाँधकर पथ से डिगा सकती हैं, मार्ग से भटका सकती हैं। स्वाधीनता की लड़ाई में जूझने वाले के समक्ष संसार के भोग-विलास और आकर्षण भी आते हैं लेकिन उन्हें ठुकराकर उसे अपने कर्त्तव्य-पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। कवयित्री उन जुझारू साथियों को याद दिला रही हैं कि सारा संसार हर प्रकार के कष्टों से दुखी होकर चीख रहा है; क्या तेरी आत्मा पर इन चीख-पुकारों का असर न होकर दूसरी ओर आकर्षण से भरे हुए राग रंग जो भँवरों के आकर्षक गुंजन के समान ही होता है, अपनी ओर खींचकर पथभ्रष्ट कर सकता है। ऐसा कदापि नहीं हो सकता। क्या ओस से भीगी फूलों की पंखुड़ियों अर्थात तुम्हारे प्रियजनों की आँसुओं से भीगी आँखें तुम्हारे संकल्प को शिथिल कर देंगी? कवयित्री कहती हैं कि बलि-पथ के पथिक को अपनी छाया का भी विश्वास नहीं करना चाहिए। वह आत्ममुग्ध होकर भी अपने पथ से भटक सकता है। अतः कवयित्री संघर्षरत स्वाधीनता सेनानियों को हर मोह-माया और ममता से दूर रहकर अपनी पूर्ण सजगता के साथ लक्ष्य प्राप्ति हेतु संघर्ष करने की प्रेरणा दे रही हैं। विशेष :
3. वज्र का उर एक छोटे, अश्रु-कण में धो गलाया, शब्दार्थ :
सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड के 'जाग तुझको दूर जाना' नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता छायावाद की प्रमुख कवयित्री महादेवी वर्मा हैं। प्रसंग - कवयित्री इस जागरण-गीत के माध्यम से भारत के सोये हुए बलिदानी स्वभाव के वीरों को जाग्रत होकर देश की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दे रही हैं। वे कहती हैं कि - व्याख्या - हे स्वतन्त्रता के चिर अभिलाषी भारतवासियो! तुमने अपने कर्त्तव्य पथ पर चलते हुए सर्वस्व दान करने की परम्परा का पालन किया है। क्या वह वज्र जैसा कठोर हृदय प्रिया की एक आँसू की बूंद से पिघलकर अपने कर्तव्य पथ से विचलित हो गया है। हे बलिदानी! तुमने अपनी अमृत जैसी जीवन शैली को कहाँ भुला दिया है और उसके बदले में तुम मद-मस्त कर देने वाली मदिरा कहाँ से ले आये हो अर्थात् अमरता के सिद्धान्त को भुलाकर तुमने तुच्छता प्रदान करने वाली मदिरा के नशे का भाव कहाँ से ग्रहण कर लिया है। सांसारिक मोह-ममता ने तुम्हें अपने जाल में फंसाकर जीवन के लक्ष्य से डिगा दिया है। तुम्हें शीघ्र ही इस मोह जाल से मुक्त होकर अपने शाश्वत कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ना है। कवयित्री उन बलिदानी परम्परा के वीरों से प्रश्न करते हुए पूछ रही हैं कि तुम्हारे हृदय में सदैव संघर्ष करने की भावनारूपी आँधी उठा करती थी, क्या वह आँधी मलयगिरि पर्वत की सुगन्धित वायु का तकिया लगाकर सो गई है। एक सौन्दर्याश्रित आकर्षण ने तेरे हृदय की क्रान्तिकारी भावनाओं को सुला दिया है अथवा सारे संसार के अभिशाप ही साकार रूप धारण करके तुझे सदैव के लिए चिरनिद्रा में सुलाने आ गये हैं। तेरे संघर्षशील रूप को तिरोहित करने के लिए अभिशाप बनकर आ गये हैं। हे अमर देवताओं की सन्तानो! आज तुम भी आश्चर्यजनक रूप से मृत्यु को अपने हृदय में स्थान देने को उद्यत हो गये हो। जो देश सदैव ही अपने आपको अमर देवताओं की सन्तान मानता आ रहा था, आज वही मृत्यु के भय से आक्रान्त होकर कर्तव्य पथ से विचलित हो गया है? तु इस विनाशकारी निराशा के भाव को त्याग दे, अभी देश की स्वाधीनता का लक्ष्य बहुत दूर है। अतः सचेत होकर आगे बढ़ते रहो तभी तुम लक्ष्य तक पहुँच सकोगे। जिस उद्देश्य को प्राप्त करना परमावश्यक विशेष :
4. कह न ठण्डी साँस में अब भूल वह जलती कहानी, शब्दार्थ :
सन्दर्भ - यह काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड से प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित गीत 'जाग तझको दर जाना' से लिया गया है। प्रसंग - कवयित्री उन निराश वीरों के हृदय में बलिदान होने की प्रेरणा दे रही हैं जो अपनी हार का रोना-रोकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाते हैं और उस बलिदानी पथ पर आगे बढ़ने वालों को भी निराश का देते हैं। वे उन्हें उत्तेजित करते हुए कह रही हैं कि व्याख्या - हे अमर बलिदानियो! अपनी हार की कहानियों को ठण्डी आह भरते हुए मत सुनाओ। क्योंकि निराशा में डूबी तुम्हारी आँखों में जो आँसू उभर रहे हैं, वे शोभायुक्त नहीं हैं। ये आँसू उनकी आँखों में ही शोभा पाते हैं जो अपने हृदय में हार का प्रतिशोध लेने की ज्वाला में धधक रहे होते हैं। हे स्वातन्त्र्य वीर! अमर सेनानी! तू अपनी हार से घबराकर निराश मत हो। एक दिन तेरी यह हार ही स्वाभिमान के साथ जीत की विजय-पताका फहरायेगी। एक छोटा-सा कीट-पतंगा दीपक के अमर प्रेम में डूबकर अपने प्राणों की बलि दे देता है लेकिन उसकी बलिदानी राख भी दीपक के प्रेम की निशानी बनकर उसको अमर कर देती है। सारा संसार पतंगे की राख से ही प्रेम पर न्योछावर हो जाने की भावना को याद रखता है। हे अमर वीर! यह बलिदान का पथ एक तरह से अंगारों की जलती हुई शय्या है। जिस प्रकार पतंगा दीपक की लौ की अंगार शय्या पर स्वयं जलकर सिद्ध कर देता है कि यह अंगारों की सेज भी एक तरह से कोमल कलियों की शय्या है, उसी प्रकार तेरा बलिदान भी इस पथ पर चलने वाले अनेक लोगों को बलिदान होने की प्रेरणा देगा। हे वीर! अभी स्वाधीनता का लक्ष्य बहुत दूर है। अतः सचेत होकर आगे बढ़ते रहो और अन्य लोगों को भी जो इस मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हुए आगे बढ़ते रहो। विशेष :
सब आँखों के आँसू उजले - 1. सब आँखों के आँसू उजले सबके सपनों में सत्य पला! शब्दार्थ :
सन्दर्भ - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा के प्रसिद्ध गीत 'सब आँखों के आँसू उजले' से ली गई हैं, जो कि हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड में संकलित की गई हैं। प्रसंग - दीपक और पुष्प दोनों ही अपना सर्वस्व दान कर प्रकृति का कर्ज उतारते हैं क्योंकि प्रकृति ही पुष्प को पराग-रस और दीपक को प्रकाश सौंपती है, एक ही काम करते हुए भी वे एक-दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करते। इसी भाव को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा है व्याख्या - संसार के सभी प्राणी जो आँसू बहाते हैं या दुःख प्रकट करते हैं वह पवित्र भावों से युक्त होते हैं तथा स्वप्न देखने वाली सभी की आँखों के सपने भी सत्य ही होते हैं। जो प्रकृति की शक्ति दीपक को आग अर्थात् प्रकाश सौंपती है वही शक्ति पुष्प को सुगन्धित पराग-रस प्रदान करती है। इसलिए ही दीपक अपने आपको तिल-तिलकर गला देता है। लेकिन प्रकृति के प्रांगण को अपने सुनहरे प्रकाश से आलोकित कर देता है तथा पुष्प भी अपने कर्तव्य का ध्यान रखते हुए स्वयं को मिटा देता है लेकिन अपने पराग-रस की वर्षा करने या सुगन्ध बिखेरने से पीछे नहीं हटता। दीपक और पुष्प दोनों ही एक जैसा स्वभाव रखते हैं। अतः एक-दूसरे के साथी जैसे ही हैं। दोनों को लक्ष्य भी संसार को प्रसन्नता प्रदान करना है लेकिन कोई भी एक-दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करते। इसीलिए न तो दीपक पुष्प की तरह प्रातः खिलता है और न ही पुष्प रात्रि में दीपक की तरह जलता रहता है। विशेष :
2. वह अचल धरा को भेंट रहा शब्दार्थ :
सन्दर्भ - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा के प्रसिद्ध गीत 'सब आँखों के आँसू उजले' से ली गई हैं, जो कि हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड में संकलित की गई हैं। प्रसंग - कवयित्री महादेवी वर्मा ने पर्वत और सागर का उदाहरण देकर सिद्ध करने का प्रयास किया है कि सागर अपनी दयालुता और पर्वत अपनी कठोरता को स्थिर रखते हुए भी परोपकार करते हैं। वे कहती हैं कि - कवयित्री कहती हैं कि पर्वत और सागर, दोनों ही धरती से प्यार करते हैं। पर्वत अपने सैकड़ों झरनों रूपी भुजाओं से धरती को गले लगाता है और सागर एक परिधि जैसा बनकर धरती को चारों ओर से घेरे रहता है। दोनों ही अपने-अपने स्वरूप और स्वभाव को बदले बिना धरती पर अपने प्रेम का प्रदर्शन करते आ रहे हैं। न कभी समुद्र ने पर्वत बनने का प्रयास किया और न पर्वत ने समुद्र बनने का। पर्वत का कठोर शरीर और सागर का करुणा से तरल जल सदा यथावत ही बने रहते हैं। विशेष :
3. नभ तारक-सा खण्डित पुलकित शब्दार्थ :
सन्दर्भ - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा के प्रसिद्ध गीत 'सब आँखों के आँसू उजले' से ली गई हैं, जो कि हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड में संकलित की गई हैं। प्रसंग कवयित्री सबके प्राकृतिक स्वभाव का वर्णन करते हुए कह रही हैं कि कैसी भी परिस्थिति हो पर कोई भी अपना स्वभाव नहीं बदलता। व्याख्या - बहुमूल्य हीरा आरंभ में एक टूटे हुए तारे के समान कुरूप होता है। वह तभी मूल्यवान बनता है जब वह खराद की पैनी धार से काटा जाता है, तराशा जाता है। वह उसी पैनी धारा को बड़ी प्रसन्न्ता के साथ चूमता है तभी सुंदर चमक और बहुमूल्यता प्राप्त करता है। - दूसरी ओर सोना भी आरंभ में कुरूप खनिज होता है और अंगारों में तपाया जाने पर केसरी रंग की किरणों को छिटकाता हुआ अतिमूल्यवान धातु बन जाता है। अर्थात् हीरा अपने आपको हर्ष के साथ तराशने के लिए पैनी धारयुक्त खराद को समर्पित कर देता है और सोना भयंकर अग्निकणों को स्वेच्छा से चूमता है। तभी ये दोनों मूल्यवान बनते हैं। इस प्रकार बहुमूल्य या अनमोल बनने के लिए न तो सोना टूटता है और न ही हीरा पिघलता है अर्थात् कोई किसी दूसरे का अनुकरण करके अपने स्वभाव को बदलता नहीं है। विशेष :
4. नीलम मरकत के संपुट दो। शब्दार्थ :
व्य पक्तियाँ छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा के प्रसिद्ध गीत 'सब आँखों के आँसू उजले' से ली गई हैं, जो कि हमारी पाठयपस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड में संकलित की गई हैं। प्रसंग - इस काव्यांश में कवयित्री धरती, आकाश और जगजीवन के परस्पर संबंध का एक मनमोहक शब्द चित्र प्रस्तुत कर रही है। व्याख्या - कवयित्री कहती हैं कि आकाश और धरती एक सीपी के दो संपुटों के समान हैं। आकाश नीलम से बना नीला और धरती पन्ने से बना हरा संपुट है। इस सीपी में जगजीवन रूपी मोती का जन्म होता है। इस जीवन में ही सारे रंग-रूप साकार होते हैं। इस जीवन में ही परम शक्ति (प्रकृति) का प्रकाश स्पंदित हुआ करता है। बह एक शक्ति आकाश में बिजली और बादल के रूप में दिखाई देती है और वही धरती की मिट्टी में बीज के रूप में दिखाई देती है। यी है। विशेष :
5 .संसृति के प्रति पग में मेरी शब्दार्थ :
सन्दर्भ - छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'सब आँखों के आँसू उजले' से अवतरित है जो कि हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड में संकलित किया गया है। प्रसंग - प्रकृति में सदैव परिवर्तन घटित होते रहते हैं। मनुष्य इसी परिवर्तन के आधार पर अनेक सपने देखता है। इस प्रकार मानव और प्रकृति के बीच के अटूट रिश्ते को बताते हुए कवयित्री कह रही हैं कि - व्याख्या - प्रकृति हर क्षण अपना रूप बदलकर नया रूप धारण करती रहती है। अतः इस परिवर्तन की नयी-नयी रूपरेखा के साथ ही मानव की प्रत्येक साँस नया रूप धारण करती रहे। कवयित्री अपने आपको एक मानव इकाई मानकर प्रकृति के प्रत्येक स्पन्दन में अपनी साँसों का स्पन्दन मिला देना चाहती है। प्रकृति की वह परम सत्ता मानव के क्रियाकलापों के साथ ही अपनी सभी इच्छाओं को पूरा कर लेती है। अतः मानव (कवयित्री) अपने बनते और मिटते सभी रूपों को प्रकृति के लिए समर्पित कर देता है। अतः दीपक का प्रकाश बाँटना, फूलों का सुगंध वितरित करना, हीरे और सोने का कष्ट झेलकर बहुमूल्य बनना, आकाश और धरती द्वारा जीवन को जन्म देना और परिपालन करना। ये सभी प्राकृतिक गतिविधियाँ मानव जीवन को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही हैं। जाग तुझको दूर जाना है शीर्षक गीत के माध्यम से कवयित्री ने क्या संदेश दिया है?उत्तर- कविता में मनुष्य रूपी पथिक को संबोधित किया गया है। कवयित्री चाहती है कि मनुष्य हर प्रकार की परिस्थिति में निरंतर आगे बढ़ता रहे। मार्ग में आने वाली बाधाओं से डरना व्यर्थ है। संघर्ष ही जीवन है और संघर्ष करते रहना ही उसकी सार्थकता है।
जाग तुझको दूर जाना कविता का मूल भाव क्या है?इस कविता का मूल भाव स्वाधीनता आंदोलन में भाग ले रहे क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा प्रदान करना है। महादेवी वर्मा की ये कविता एक जागरण गीत की तरह है, जिसके माध्यम से कवयित्री स्वाधीनता आंदोलन के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहीं हैं।
जाग तुझको दूर जाना कविता किसकी है?जाग तुझको दूर जाना / महादेवी वर्मा - कविता कोश
महादेवी वर्मा का जन्म कब हुआ था?26 मार्च 1907महादेवी वर्मा / जन्म तारीखnull
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