जाग तुझको दूर जाना शीर्षक कविता में कौन सा रस है? - jaag tujhako door jaana sheershak kavita mein kaun sa ras hai?

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 15 जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले Textbook Exercise Questions and Answers.

RBSE Class 11 Hindi Solutions Antra Chapter 15 जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले

RBSE Class 11 Hindi जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले Textbook Questions and Answers

जाग तुझको दूर जाना - 

प्रश्न 1.
'जाग तुझको दूर जाना' कविता में कवयित्री मानव को किन विपरीत स्थितियों में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित कर रही है?
उत्तर :
कवयित्री भारतीय बलिदानियों को मृत्यु से भयभीत न होकर तथा मोह-ममता के आकर्षणों से अपने आपको बचाते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही है। चाहे हिमालय काँप उठे या प्रलय की भीषण वर्षा हो, चाहे घनघोर अन्धेरा छा जाये लेकिन तुझे सदैव आगे ही बढ़ते जाना है। इस प्रकार मोम जैसे कोमल बन्धन या सौन्दर्य का आकर्षण और प्रियजनों की मोह-ममता भी तुझे तेरे मार्ग से विचलित न कर सके इतनी दृढ़ता के साथ तुझे देश की स्वाधीनता की लड़ाई में भाग लेना है। यह लक्ष्य बहुत दूर है। अतः निरन्तर आगे ही आगे बढ़ते जाने का दृढ़ संकल्प लेकर बढ़ता जा। यही प्रेरणा दी गई है। 

प्रश्न 2.
कवयित्री किस मोहपूर्ण बन्धन से मुक्त होकर मानव को जागृति का सन्देश दे रही है?
उत्तर :
कवयित्री ने संसार के सभी आकर्षणों को बन्धनयक्त बताया है, जिसमें सगे-सम्बन्धी, प्रेयसी या सन्दरियों का आकर्षण और धन-वैभव तथा भोग-विलासपूर्ण जीवन की ओर संकेत किया है। ये ऐसे बन्धन हैं जो दृढ़ निश्चयी वज्र जैसे कठोर हृदय को भी अपने बन्धन में बाँधने की सामर्थ्य रखते हैं। अतः इनको त्यागकर ही बलिदान के मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है तभी हम स्वाधीनता की वायु में साँस ले सकते हैं। 

जाग तुझको दूर जाना शीर्षक कविता में कौन सा रस है? - jaag tujhako door jaana sheershak kavita mein kaun sa ras hai?

प्रश्न 3.
'जाग तुझको दूर जाना' स्वाधीनता आन्दोलन की प्रेरणा से रचित एक जागरण गीत है। इस कथन के आधार पर कविता की मूल संवेदना को लिखिए।
उत्तर :
छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा का युग स्वतन्त्रता संग्राम का युग रहा है। चारों ओर देश की आजादी के दीवाने जेलें भर रहे थे। पुलिस और सेना के अत्याचार सहन कर रहे थे। बात-बात में हमारे देश के आन्दोलनकारियों पर गोली वर्षा होती थी। अनेक लोग मौत के मुँह में समा चुके थे। अतः हर सजग कवि आजादी के दीवानों को बलिदान होने की प्रेरणा दे रहा था। अतः 'जाग तुझको दूर जाना' कविता भी कवयित्री का एक प्रेरणादायक जागरण-गीत ही है। उन्होंने हमारे देश के स्वाधीनता सेनानियों को देश की बलिदानी परम्परा का ज्ञान कराया है और किसी भी कष्टदायक स्थिति और मोह-ममता या सौन्दर्य के आकर्षण अथवा धन के प्रलोभन में न फंसकर देश की स्वतन्त्रता के लिए मर-मिटने की, बलिदान होने की प्रेरणा दी है। बलिदानी पुरुष ही इतिहास द्वारा स्मरण किये जाते हैं। कवयित्री ने प्रतीकात्मक शैली में स्वाधीनता के प्रेमियों को बलिदान देने की प्रेरणा दी है। यही इस जागरण-गीत की मूल संवेदना है। 

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए -
(क) विश्व का क्रंदन..........कारा बनाना!
उत्तर :
भाव पक्ष-इस अंश में महादेवी वर्मा देशवासियों को आह्वान करते हुए कह रही है कि क्या भंवरों के मधुर गुंजन जैसी प्रियजनों की बातों पर मुग्ध होकर तुम विश्व मानवता के क्रन्दन को भूल जाओगे? क्या प्रियजनों की फूलों जैसी आँखों में आँस देखकर तुम अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ लोगे? कवयित्री प्रेरणा देते हुए कह रही हैं कि हे स्वाधीनता के सजग प्रहरी! तू अपनी छाँह का भी विश्वास मत करना, यह प्रतिबिम्ब भी तुझे अपने पथ से भटका सकता है। छाँह का बन्धन (कारा) भी तुझे तोड़ना होगा। तुझे अपने मार्ग पर आगे-ही-आगे बढ़ते जाना है। 

कला पक्ष-इस अंश में विश्व का क्रन्दन' सारे संसार के दुख का प्रतीक है, ' मधुप की गुंजन' और 'ओस गीले पुष्प दल' मधुर आकर्षण के प्रतीक हैं। भाषा का सौन्दर्य और प्रतीक-योजना आकर्षक है। प्रश्नात्मक शैली है। अनुप्रास अलंकार और व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है। 

जाग तुझको दूर जाना शीर्षक कविता में कौन सा रस है? - jaag tujhako door jaana sheershak kavita mein kaun sa ras hai?

(ख) कह न ठण्डी साँस.........सजेगा आज पानी।
उत्तर :
भाव पक्ष-कवयित्री स्वाधीनता सेनानी और बलिदानियों को प्रेरणा देते हुए कह रही हैं कि तुम अपनी असफलताओं की कहानी को आह भर के मत सुनाओ, दूसरों को दुखी मत करो। क्योंकि जब हृदय में प्रतिशोध लेने की आग होती है तभी आँखों के आँसू शोभा पाते हैं वरना भावुकतावश हार से निराश होकर रोने से देश स्वतन्त्र नहीं हो सकता। 

कला पक्ष की दृष्टि से जलती कहानी हार की निराशा का प्रतीक है। 'उर की आग' और 'सजेगा पानी' दोनों ही लाक्षणिक प्रयोग हैं। भाषा संस्कृतनिष्ठ, प्रांजल खड़ी बोली है। छन्द और लय के रूप में एक श्रेष्ठ छन्द है। 

(ग) है तुझे अंगार-शय्या...........कलियाँ बिछाना!
उत्तर :
भाव पक्ष कवयित्री महादेवी वर्मा ने इन पंक्तियों के माध्यम से स्वाधीनता के अमर सेनानियों को अंगारों जैसी कठिन परिस्थितियों को फूलों की सेज मानकर लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने की प्रेरणा दी है।
कला पक्ष - भाषा एवं भाव दोनों दृष्टियों से यह श्रेष्ठ पंक्ति है। तत्सम प्रधान शब्दावली में लाक्षणिकता है। प्रतीकात्मक शैली है। अंगार-शय्या पर कोमल कलियाँ बिछाने में विरोधाभास है। 

प्रश्न 5.
कवयित्री ने स्वाधीनता के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को इंगित कर मनुष्य के भीतर किन गुणों का विस्तार करना चाहा है? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
स्वाधीनता के लिए संघर्ष का मार्ग काँटों भरा है, अतः महादेवी देशवासियों को कठिनाइयों की चिन्ता न करते .... हुए लक्ष्य की ओर बढ़ने का आह्वान करती हैं। परिवार के बन्धन, प्रेयसी का प्रेम, स्त्रियों के सौन्दर्य से मुक्त होकर अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर बढ़ते रहने की प्रेरणा देती हैं। जब देश में स्वतंत्रता की आँधी चल रही थी, यह गीत उस समय का है। अतः महादेवी जी परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़े और कष्ट सहन करने वाले भारतीयों को उद्बोधित कर रही हैं। 

जो सांसारिक बन्धन हमें लक्ष्य से भटकाएँ वे कारागार के समान हैं। उन्होंने भारतीयों को अमरता-पुत्र कहकर अपने स्वरूप को पहचानने का संदेश दिया है। आलस्य त्याग दृढ़ता से डटे रहना, बलिदान देकर अमर होना, स्वतंत्रता-प्राप्ति के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सन्नद्ध रहना, आलस्य त्याग आदि बातों के लिए प्रेरित किया है। आत्मसम्मान के साथ जीने की प्रेरणा देते हुए पतंगे के समान जीवन त्याग करने का सन्देश दिया है। इसलिए वे देशवासियों से यह आशा करती हैं कि वे अपने लक्ष्य को भूलें नहीं और हर प्रकार के कष्ट सहन करने की क्षमता पैदा करें। 

सब आँखों के आँसू उजले - 

प्रश्न 6.
महादेवी वर्मा ने 'आँसू' के लिए 'उजले' विशेषण का प्रयोग किस सन्दर्भ में किया है और क्यों?
उत्तर :
कवयित्री उन आँसुओं को 'उजला' कहती हैं जो पवित्र और सात्विक भाव से निकलते हैं। अपने दुःख-दर्द से विचलित होकर आँसू बहाना सभी सामान्य लोगों की स्वाभाविक क्रिया है, जिससे वे अपने दुःख को प्रकट कर देते हैं, परन्तु जो आँसू मानवता अथवा उनसे भी उदात्त जीवन मात्र के दुःख में बहाये जाते हैं, वास्तव में वे ही आँसू 'उजले' पवित्र होते हैं। 

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प्रश्न 7.
सपनों को सत्य रूप में डालने के लिए कवयित्री ने किन यथार्थपूर्ण स्थितियों का सामना करने को कहा है?
उत्तर :
स्वप्न देखने का अधिकार तो सभी को बराबर है, परन्तु सपनों को सत्य वही कर सकता है जो केवल अपने स्वार्थ के लिए सपने देखता है। वास्तव में जो व्यक्ति दूसरों के दुख दूर करने के लिए होते हैं, वे ही सपने सत्य होते हैं। मार्ग में आने वाली बाधाओं को अपने अनुकूल बनाकर भी हम अपने सपनों को सत्य सिद्ध कर सकते हैं। हमें फूल, दीपक, सागर, झरनों आदि की तरह सर्बजन हिताय सपने देखने होंगे, वे ही सपने सत्य होते हैं। 

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए -
(क) आलोक लुटाता वह .........कब फूल जला?
उत्तर :
भाव-दीपक अपने आपको तिल-तिलकर मिटाकर संसार को प्रकाश देता है और फूल झर-झरकर अपनी सुगन्ध बाँटता है अर्थात् दूसरों को सुख पहुँचाने के लिए हमें अपना ही बलिदान करना पड़ता है। फिर भी वे दोनों एक-दूसरे के मार्ग में हस्तक्षेप नहीं करते। . 

(ख) नभ-तारक सा.........हीरक, पिघला?
उत्तर :
भाव-हीरा तभी बहुमूल्य बनता है, जब हीरा खराद पर तराशा जाकर अपना अंग-अंग तीखी धार से कटवा देता है और सोना तभी बहुमूल्य बनता है जब वह अग्नि में जलता है लेकिन दोनों एक-दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करते। सोना काटने का कार्य नहीं करता और हीरा पिघलता नहीं है। 

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प्रश्न 9.
काव्य सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए संसति के प्रति पग में मेरी.......एकाकी प्राण चला!
उत्तर :
विद्यार्थी च्या खण्ड में इन पंक्तियों का काव्य सौन्दर्य देखें। 

RBSE Class 11 Hindi जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर - 

प्रश्न 1.
कवयित्री के अनुसार दूर जाना है -
(क) यात्री को
(ख) स्वतंत्रता सेनानियों को
(ग) स्वयं कवयित्री को
(घ) किसी पक्षी को
उत्तर :
(ख) स्वतंत्रता सेनानियों को 

प्रश्न 2.
'नाश पथ' का आशय है -
(क) अनुचित आचरण
(ख) संकटमय मार्ग
(ग) बलिदान का पथ
(घ) मानव जीवन
उत्तर :
(घ) मानव जीवन 

जाग तुझको दूर जाना शीर्षक कविता में कौन सा रस है? - jaag tujhako door jaana sheershak kavita mein kaun sa ras hai?

प्रश्न 3.
कर्तव्यपथ के पथिक के मार्ग की बाधाएँ हो सकती हैं -
(क) भयंकर वर्षा
(ख) घोर अंधकार
(ग) दूर की प्रियजन
(घ) ये सभी
उत्तर :
(घ) ये सभी 

प्रश्न 4.
सभी के सपनों में पलता है -
(क) उल्लास
(ख) सत्य
(ग) आशा
(घ) मधुर कल्पनाएँ
उत्तर :
(ख) सत्य 

प्रश्न 5.
कवयित्री ने सभी आँखों के आँसुओं को बताया है -
(क) शोक सूचक
(ख) मलिन
(ग) उजले
(घ) हृदयस्पर्शी
उत्तर :
(ग) उजले 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -

जाग तुझको दूर जाना - 

प्रश्न 1.
'जाग तुझको दूर जाना' गीत में महादेवी जी ने किसको संबोधित किया है ?
उत्तर :
इस गीत में कवयित्री ने स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को संबोधित किया है। 

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प्रश्न 2.
'अचल हिमगिरी' से कवयित्री का आशय क्या है?
उत्तर :
'अचल हिमगिरी' से कवयित्री का आशय बड़े धैर्यशाली व्यक्तियों से है। 

प्रश्न 3.
आकाश देशप्रेमियों के मार्ग में क्या बाधा डाल सकता है?
उत्तर :
आकाश प्रलयकारी वर्षा द्वारा देशप्रेमियों के मार्ग में बाधा डाल सकता है। 

प्रश्न 4.
'नाश पथ' से कवयित्री का आशय क्या है?
उत्तर :
'नाश पथ' से आशय विनाशकारी शक्तियों से अथवा नाशवान मानव जीवन है। 

प्रश्न 5.
महादेवी जी ने 'मोम के बंधन से किस ओर संकेत किया है?
उत्तर :
महादेवी जी ने 'मोम के बंधन' द्वारा प्रियजनों के कोमल संबंधों की ओर संकेत किया है। 

प्रश्न 6.
कवयित्री ने बलिदानी वीरों का हृदय कैसा बताया है?
उत्तर :
कवयित्री ने बलिदानी वीरों का हृदय वज्र के समान दृढ़ या धैर्यशाली बताया है। 

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प्रश्न 7.
'सो गई आँधी' से कवयित्री का क्या आशय है?
उत्तर :
'सो गई आँधी' से कवयित्री का अभिप्राय देश पर बलिदान हो जाने की तीव्र अभिलाषा का शांत हो जाना है। 

प्रश्न 8.
'जलती कहानी' से कवयित्री ने किस ओर संकेत किया है?
उत्तर :
कवयित्री ने स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा सहे गए.घोर कष्टों और उत्पीड़न को 'जलती कहानी' बताया है। 

प्रश्न 9.
देशभक्तों की हार भी कब विजय बन जाती है?
उत्तर :
देश के लिए सर्वस्व निछावर करते हुए भी हार जाना देशभक्तों की विजय ही मानी जाती है। 

प्रश्न 10.
महादेवी जी ने 'जाग तुझको दूर जाना' कविता में 'अंगार शय्या' किसे कहा है?
उत्तर :
कवयित्री ने देशप्रेमियों के संघर्ष को अंगारों की सेज माना है क्योंकि इसमें पग-पग पर कष्ट और उत्पीड़न सहना पड़ता है। 

सब आँखों के आँसू उजले -

प्रश्न 11.
दीपक को ज्वाला और पुष्य को मकरंद किसने सौंपा है?
उत्तर :
दीपक को ज्वाला और पुष्प को मकरंद प्रकृति ने सौंपा है। 

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प्रश्न 12.
दीपक और फूल दोनों परोपकार का कार्य किस प्रकार कर रहे हैं?
उत्तर :
दीपक अपने प्रकाश द्वारा और फूल अपनी सुगंध द्वारा लोगों को प्रसन्न करते हुए परोपकार में लगे हुए हैं। 

प्रश्न 13.
पर्वत और सागर दोनों किस पर अपना प्रेम प्रदर्शित कर रहे हैं?
उत्तर :
पर्वत और सागर दोनों धरती पर अपना प्रेम प्रदर्शित कर रहे हैं। 

प्रश्न 14.
हीरा सुंदर और मूल्यवान कैसे बनता है?
उत्तर :
हीरा, काटने-छाँटने और चमकाने वाली खराद द्वारा कष्ट सहकर सुंदर और मूल्यवान बन पाता है। 

प्रश्न 15.
सोना बहुमूल्य और चमकदार कैसे बन पाता है?
उत्तर :
सोना अग्नि में गलकर बहुमूल्य और चमकीला बन पाता है। 

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प्रश्न 16.
'जीवन मोती' में कौन सा अलंकार है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'जीवन मोती' में 'जीवन' उपमेय पर 'मोती' उपमान का भेदरहित आरोप किया गया है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

प्रश्न 17.
कवयित्री का एकाकी जीवन कैसे व्यतीत हो रहा है?
उत्तर :
कवयित्री का एकाकी जीवन दीपक के जलने, फूल के खिलने और जगत के आगे बढ़ने के साथ घुल-मिल कर व्यतीत हो रहा है। 

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर - 

प्रश्न 1.
'जाग तुझको दूर जाना' गीत का प्रेरणा-स्रोत क्या है?
उत्तर :
महादेवी वर्मा का रचना काल स्वाधीनता आन्दोलन का काल था : विदशी शासन के अत्याचार बढ़ रहे थे। जनता परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी कष्ट पा रही थी। वाणी पर बन्धन था। देश में जगह-जगह पर आन्दोलन हो रहे थे और देशभक्त जेल जा रहे थे। ऐसे समय में महादेवी को नवयुवकों को जगाने और कर्तव्य का ज्ञान कराने की आवश्यकता अनुभव हुई। अत: उन्होंने इस जागरण गीत की रचना की। नवयुवकों से आलस्य त्याग. कर स्वतंत्रता संग्राम में कूदने का आह्वान किया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ही इस गीत का प्रेरणा स्रोत था। 

प्रश्न 2.
'मोम के बन्धन' और 'तितलियों के पर' का प्रयोग कवयित्री ने किस सन्दर्भ में किया है और क्यों?
उत्तर :
मोम के बन्धन' से कवयित्री का आशय प्रियजनों के साथ हमारे कोमल संबंधों से है। प्रियजनों के जरा से संताप से हमारे हृदय पिघल जाते हैं। अर्थात् माता-पिता, पुत्र-पुत्री, पत्नी, निकट सम्बन्धी आदि वे बन्धन हैं जो हमें बाँध लेते हैं। "तितलियों के पर' उन सौन्दर्यशाली प्रेमिकाओं की ओर संकेत करते हैं जिनके आकर्षण में बँधकर हम अपने कर्तव्य पथ से भटक जाते हैं। 

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प्रश्न 3.
कविता में 'अमरता-सुत' का सम्बोधन किसके लिए आया है क्यों?
उत्तर :
कवयित्री ने अमरता-सुत भारतवर्ष के निवासियों के लिए कहा है। क्योंकि भारतीय संस्कृति मानव-आत्मा को अमर मानती है जिसका कभी अन्त नहीं होता। दूसरी ओर हमारी संस्कृति में सबसे पहले सृष्टि, देव सृष्टि मानी जाती है। हमारे यहाँ मनु से मानव का जन्म माना जाता है जबकि वैवश्वत मनु स्वयं देवता थे। अतः हमारे देश का प्रत्येक वीर पुरुष अपने आपको अमरता-सुत मानता है। कवयित्री ने इसी ओर संकेत करते हुए स्वाधीनता सेनानियों को अमरता-सुत कहा है। 

प्रश्न 4.
'तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना' पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवयित्री का लक्ष्य नवयुवकों में वीरता के भावों को भरना है। वे नवयुवकों से कहती हैं कि तुम जब अपने लक्ष्य की ओर बढ़ोगे तो बहुत सारी बाधाएँ तुम्हारे मार्ग को रोकने का प्रयास करेंगी। पारिवारिक मोह और प्रिय वस्तुओं का मोह तुझे लक्ष्य-भ्रष्ट करने का प्रयास करेंगे। ये परिस्थितियाँ गतिरोध पैदा की तेरे पैरों की बेड़ियाँ बनकर तुझे स्वतंत्रता के संग्राम में कूदने से रोकेंगी। यदि तैने इन आकर्षणों से अपने को अलग नहीं रखा तो तुझे पछताना पड़ेगा। अपनी करनी पर ग्लानि होगी। इसलिए सजग हो और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने को तत्पर होजा। 

प्रश्न 5.
'है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना!' कथन से महादेवी वर्मा बलिदानियों को क्या प्रेरणा दे । रही हैं?
उत्तर :
महादेवी जी बलिदानियों से कहती हैं कि यह समय बड़ी कठिनाई का है, संघर्ष का है। निराशा की दुख भरी प्रयत्न न कर. अर्थात निराश मत हो और किसी से अपनी दखभरी कहानी कह मत। दख के आँस आँखों में नहीं आने चाहिए। दुख के आँसू शोभा नहीं देते। ये आँसू उन्हीं की आँखों में शोभा पाते हैं जो हार का प्रतिशोध लेने के लिए तत्पर रहते हैं। यह हार ही एक दिन स्वाभिमान के साथ विजय पताका फहराने का अवसर प्रदान करेगी। दीपक से प्रेम करने वाला पतंगा अपने को दीपक की लौ पर जाकर जला देता है। देशसेवा अंगारों की सेज के समान है। तू इसे कवियों और फूलों की सेज मानकर कष्टों को सहन करता रह। एक दिन लोग तेरे बलिदान की भी पतंगे. के बलिदान की तरह प्रशंसा करेंगे। 

प्रश्न 6.
'सब आँखों के आँसू उजले' गीत में प्रकृति के उस स्वरूप की चर्चा हुई है जो सत्य और यथार्थ है। इस सम्बन्ध में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
प्रकति शाश्वत है और सत्य तथा प्रकृति के अंग भी सत्य हैं। कवयित्री ने अपने गीत में उन्हीं सत्य अवयवों की चर्चा की है। प्रकृति ने दीपक को जलो की शक्ति दी है। वह जलकर अन्धकार दूर करता है और प्रकाश फैलाता है। प्रकृति ने पुष्प में सुगन्ध भर दी है, वह खि नकर अपनी सुगन्ध संसार को देता है। दोनों परोपकारी हैं, दोनों जलते और झड़ते हैं। यह सत्य है। पर्वत कठोर है, प्रकृति ने उसे अचल बनाया है। 

किन्तु उसके हृदय से निकले झरनों से जीवन मिलता है। प्रकृति का यह स्वरूप सत्य है। सागर ने पथ्वी को भुजाओं में भर रखा है। उसकी यह स्थिति सत्य है। दोनों अपनी जगह सत्य हैं। हीरा और सोना दोनों बहुमूल्य हैं, प्रकृति की देन हैं। दोनों का स्वरूप सत्य है। नीलम और पन्ना अपनी कठोरता के लिए प्रसिद्ध हैं, खराद पर चढ़कर शोभा पाते हैं। उनके गुण सत्य हैं। धरती और आकाश के बीच में जीवन चल रहा है यह व सत्य है। इस प्रकार प्रकृति का प्रत्येक अवयव अपने गुणों के साथ सत्य है। कवयित्री ने प्रकृति के चुने हुए अवयवों द्वारा प्रकृति के सत्य और यथार्थ स्वरूप की चर्चा की है। 

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प्रश्न 7.
'सब आँखों के आँसू उजले' गीत का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'सब आँखों के आँसू उजले' एक प्रेरणादायक गीत है। कवयित्री ने अनेक प्राकृतिक प्रतीकों द्वारा मनुष्य को कष्टों और परीक्षाओं का सामना करने की प्रेरणा दी है। साथ ही परोपकार की भावना जगाना भी गीत का लक्ष्य है। गीत में दीपक और फूलों के माध्यम से कवयित्री ने अपने आप को मिटाकर परोपकार करने की प्रेरणा दी है। पर्वत की तरह उदार हृदय वाले बनो, सागर की तरह सबको गले लगाओ और शीतलता दो। कष्टों से डरो मत, वे तुम्हें चमकाने के माध्यम हैं। मेघ की तरह बरसो और सबको अंकुरित होने दो, यह प्रेरणा भी इस गीत से मिलती है।

प्रश्न 8.
महादेवी वर्मा की काव्य-भाषा पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
छायावाद के कवियों में महादेवी वर्मा का विशिष्ट स्थान है। छायावादी कवियों ने खड़ी बोली को अपनाया। उन्होंने अपनी काव्य-भाषा को अधिक प्रभावी बनाने के लिए तत्सम शब्द प्रधान भाषा को अपनाया। महादेवी वर्मा ने अपनी काव्य-भाषा में तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया है। जैसे-पहाड़ को गिरि, घेरे को परिधि, पन्ना को मरकत, प्रकाश को आभा, जग को संसृति, पैरों को पग, अकेले को एकाकी, आसमान को व्योम, बिजली को विद्युत, रोने को क्रन्दन, शब्द के रूप में तत्समता प्रदान की है। बिम्ब और प्रतीकों के प्रयोग ने भी उनकी भाषा को नया रूप प्रदान किया है। उनकी भाषा सजीव और संस्कृतनिष्ठ है। 

प्रश्न 9.
बाँध लेंगे क्या तझे यह मोम के बन्धन सजीले ? पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले ? उपर्यक्त पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवयित्री ने नवयुवकों को राष्ट्र के प्रति उत्सर्ग करने की प्रेरणा दी है। मोम जैसे बन्धन, तितलियों की मोहकता, नारी सौन्दर्य आदि से बचने की प्रेरणा दी है। हिमालय की कठोरता, प्रलय की भयंकरता और तूफान की प्रलयकारी लीला का भयंकर रूप प्रस्तुत करके व्यक्ति को अडिग रहने की प्रेरणा दी है। कवयित्री ने कठिनाइयों और मोह के बन्धनों से मुक्त रहकर स्वतंत्रता प्राप्ति के लक्ष्य को पूरा करने का आह्वान किया है। कवयित्री ने 'मोम' और 'तितलियों के रंगीले पंखों' का जान-बूझकर प्रयोग किया है। प्रेम के बन्धन मोम की तरह हैं जो जरा-सी ऊष्मा पाकर पिघल जाते हैं। तितलियों के रंगीले पंखों से स्त्री-सौन्दर्य का वर्णन किया। कवयित्री ने चुनकर इन प्रतीकों का प्रयोग किया है। 

प्रश्न 10.
नीलम मरकत के संपुट दो।
जिनमें बनता जीवन-मोती,
इसमें बलते सब रंग-रूप
इसकी आभा स्पंदन होती!
जो नभ में विद्युत-मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला!
उपर्युक्त पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
नीलम नीले आकाश और मरकत हरी-भरी पृथ्वी का प्रतीक है। आकाश और धरती दोनों के बीच जीवन उसी प्रकार पलता है जैसे सीपी में मोती पलता है। आकाश मेघों से घिरकर वर्षा करता है और मेघ का पानी जब धरती को छूता है तो पृथ्वी पर अंकुर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार सृष्टि का क्रम चल रहा है। इस प्रकार मनुष्य प्रकृति के आँगन में जीवन धारण करके सरसता के साथ अपना विकास करके चलता है। नीलम और पन्ना को सीपी के संपुट का रूपक और मोती को जीवन का रूपक दिया है। बिम्ब योजना अच्छी है। भाषा तत्सम प्रधान संस्कृतनिष्ठ है। अलंकारों का सहज अनायास प्रयोग हुआ है। 

प्रश्न 11.
“महादेवी जी ने अपने गीतों में लाक्षणिकता, चित्रमयता और रहस्यमयता का अनुभव कराया है।" इस कथन की पुष्टि अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
महादेवी वर्मा के गीत जन-जन की भावनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान करने में समर्थ हैं। अतः उनकी भाषा में लाक्षणिकता एवं चित्रमयता का होना स्वाभाविक है। उन्होंने अपने गीतों में कबीर की भाँति आत्मा और परम सत्ता की बात प्रेमी प्रेमिका के रूपक से व्यक्त की है। अतः ऐसे गीतों में रहस्यात्मकता आ गई है। लाक्षणिकता उनकी काव्यभाषा का विशेष गुण है। हिमालय के हृदय में कंपन, प्रलय के आँसू, आलोक पीकर तिमिर का डोलना, मोम के बंधन, विश्व का क्रंदन आदि ऐसे अनेक लाक्षणिक और चित्रमय प्रयोग हैं जिनसे उनके गीतों में अद्भुत आकर्षण आ गया है। अतः कहा जा सकता है कि महादेवी वर्मा के गीतों में लाक्षणिकता, चित्रमयता और रहस्यमयता का अनुभव होता है। 

जाग तुझको दूर जाना शीर्षक कविता में कौन सा रस है? - jaag tujhako door jaana sheershak kavita mein kaun sa ras hai?

प्रश्न 12.
"नीलम मरकत के संपुट दो जिनमें बनता जीवन-मोती" पंक्ति में नीलम-मरकत और जीवन-मोती के अर्थ को कविता के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवयित्री उक्त पंक्तियों के माध्यम से जीवन का महत्व प्रतिपादित कर रही हैं। जिस प्रकार सीपी के दो संपुटों के बीच में बहमुल्य मोती जन्म लेता है उसी प्रकार नीलम रत्न जैसा नीला आकाश और मरकत अर्थात पन्ना रत्न जैसी हरी-भरी धरती के दो संपुटों के बीच ही जीवनरूपी बहुमूल्य मोती पलता है, इन्हीं दो संपुटों में बिजलीयुक्त बादल भी रहते हैं जिनकी बूंदों के बरसने पर धरती में बीज अंकुरित होता है। अतः प्रकृति के सभी क्रिया-व्यापार एक मर्यादा में बँधे हुए हैं। 

प्रश्न 13.
'सपने-सपने में सत्य ढला' पंक्ति के आधार पर कविता की मूल संवेदना प्रकट कीजिए।
उत्तर :
महादेवी वर्मा ने अपने प्रसिद्ध गीत 'सब आँखों के आँसू उजले' की मूल भावना में यही भाव व्यक्त किया है कि संसार में जब कोई भी आँख सपना देखती है तो वह सपना सत्य ही होता है। केवल यह अन्तर होता है कि जिन आँखों में अपने ही सपने होते हैं, वे सत्य नहीं होते क्योंकि उनमें स्वार्थ का पुट होता है लेकिन जो परहित के सपने देखता है वे सपने अवश्य ही सत्य होते हैं।

प्रश्न 14.
प्रकृति किस प्रकार मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध होती है? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जब हम प्रकृति को अपनी मर्यादा की सीमाओं में बँधकर कार्य करते देखते हैं तो हमें भी प्रेरणा मिलती है कि हम भी प्रकृति के समान ही नियमों में बँधकर कार्य करें। प्रधान रूप से अचल पर्वत में भी झरने जैसी कोमलता, सागर में लहरों की चंचलता के साथ मर्यादा, दीपक दूसरों को प्रकाश देने के लिए जलता है। फूल दूसरों को सुगन्ध देने के लिए अपना अस्तित्व मिटा देता है। प्रकृति के ये सभी उपकरण हमें आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। 

निबंधात्मक प्रश्नोत्तर -

प्रश्न 1.
'जाग तुझको दूर जाना' गीत को जागरण गीत क्यों माना गया है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
महादेवी जी का यह गीत उद्बोधनात्मक गीत है। कवयित्री ने भारतीयों को देश के प्रति कर्त्तव्य का बोध कराने के लिए यह गीत लिखा है। उन्हें अनुभव हुआ कि नवयुवक देश के प्रति उदासीन है। इसलिए उन्होंने नवयुवकों को जाग्रत किया कि चाहे हिमालय काँप जाय, चारों ओर प्रलय का ताण्डव नृत्य हो, सर्वत्र अन्धकार छा जाय पर हे नवयुवक तुझे बलिदान के लिए तत्पर रहना है। परिवार को मोह, पत्नी का प्रेम और उसकी आँखों के आँसू, प्रकृति का सौन्दर्य देखकर तुझे मार्ग से भटकना नहीं है। दुखभरी साँसें मत ले अपना दुख किसी से कह मत। पतंगे की तरह देश से प्रेम कर तेरा त्याग तेरी अमरता की निशानी होगी। आने वाली पीढ़ी तेरा अनुकरण करेगी। यह गीत ओजभरी भावनाओं से ओतप्रोत है। इसी कारण इस गीत को जागरण गीत कहा गया है।

जाग तुझको दूर जाना शीर्षक कविता में कौन सा रस है? - jaag tujhako door jaana sheershak kavita mein kaun sa ras hai?

प्रश्न 2.
'सब आँखों के आँसू उजले' गीत में प्रकृति शिक्षिका है, जो मुनष्य को ज्ञान देती है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? स्पष्ट उत्तर दीजिए।
उत्तर :
प्रकृति हमेशा से मनुष्य की शिक्षक रही है। उसने मनुष्य को जीवन जीने का ज्ञान दिया है। मानव को परोपकार की भावना प्रकृति ने सिखाई है। जगत को प्रकाश देने वाला दीपक जलता है, धीरे-धीरे गलता है। पुष्प प्रात: खिलता है, रात को झड़ता है, किन्तु सुगन्ध बिखेरता है। दीपक की तरह प्रकाशित होकर सबको ज्ञान का प्रकाश दें। फूल की तरह सबको सुगन्धित करें। सागर की तरह सबको प्यार से बाँधे रखो और जल की तरह सबको शीतलता प्रदान करो। आकाश से होने वाली वर्षा से शिक्षा मिलती है, सबको अंकुरित और विकसित होने का अवसर दो। इस प्रकार प्रकृति शिक्षिका का कार्य करती है। 

प्रश्न 3.
'सब आँखों के आँसू उजले' गीत मनुष्य को अपने सपनों को साकार करने की राह बताता है। इस कथन के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
सुन्दर सपने मानव की प्रगति के साधन हैं। ये मनुष्य के हृदय में छिपी आकांक्षाओं के प्रतीक हैं। सपने देखना मनुष्य का स्वभाव है। वह सपनों को साकार करने के लिए नये-नये प्रयास करता है। कभी-कभी उसे अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष भी करना पड़ता है। पर वह उस संघर्ष से घबराता नहीं है। जो उन संघर्षों से घबराता नहीं है, विचलित नहीं होता, वह अवश्य ही सफल होता है। गीत में कवयित्री ने कुछ ऐसे उदाहरण दिये हैं जो मनुष्य को अपने सपनों का पूरा करने की प्रेरणा देते हैं। 

नीलम और पन्ना का उदाहरण बड़ा सार्थक है। दोनों रत्न कटते हैं घटते हैं फिर कीमती बनते हैं पर अपना प्रण नहीं छोड़ते। जो सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष से डर गया, उसके सपने अधूरे ही रह जाते हैं। सोना आग में तपता है, पिटता है तब गले का हार बनता है। इसी प्रकार सपनों को देखना ही पर्याप्त नहीं है, उनको साकार करने के लिए प्रयत्न भी करना है। 

प्रश्न 4.
'जाग तुझको दूर जाना' कविता का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भावपक्ष-प्रस्तुत गीत एक जागरण गीत है। जब यह गीत लिखा गया था उस समय देश स्वतंत्रता पाने के लिए विदेशी सत्ता से संघर्ष कर रहा था। उन्होंने नवयुवकों को प्रेरणा दी चाहे हिमालय काँप उठे, प्रलय हो जाय, सर्वत्र घना अन्धकार व्याप्त हो जाए, तूफान आ जाए पर तुझे अपने लक्ष्य को नहीं त्यागना है। परिवार के बन्धन, नारी-सौन्दर्य और प्राकृतिक सुषमा के आकर्षण से मुग्ध होकर अपने लक्ष्य को नहीं भूलना है। तुझे मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए बहुत संघर्ष करना है। इन्हीं भावों को इस गीत में अभिव्यक्ति मिली है। कलापक्ष-गीत की भाषा संस्कृतनिष्ठ है। तत्सम शब्दावली की प्रधानता है। बिम्ब योजना श्रेष्ठ है। हिमालय के हृदय का कम्पन, मोम के बन्धन और तितलियों के पर रंगीले आदि श्रव्य बिम्ब के सुन्दर उदाहरण हैं। लक्षणा शक्ति है और प्रसाद गुण है।

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प्रश्न 5.
'सब आँखों के आँसू उजले' गीत काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से श्रेष्ठ गीत है। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भावपक्ष गीत में कवयित्री के कोमल भाव एवं यथार्थ दृष्टिकोण स्पष्ट होता है। 'उजले आँस' पवित्र भाव और 'सपनों का सत्य' यथार्थ दृष्टिकोण के प्रतीक हैं। दीपक और फूल दोनों के कार्य परोपकारी हैं। पर्वत से झरते झरने हृदय की कोमलता के भाव को प्रकट करने वाला प्रतीक है। कंचन, हीरा, नीलम और पन्ना कष्ट सहिष्णुता को प्रदर्शित करते हैं। मेघों की वर्षा से बीज अंकुरण होता है जो दूसरों के विकसित होने का प्रतीक है। परसेवा में आत्मसमर्पण की भावना भी जीव को मार्मिकता प्रदान कर रही है। कलापक्ष कलापक्ष की दृष्टि से भी यह श्रेष्ठ गीत है। सुन्दर बिम्बों और प्रतीकों से गीत को अत्यधिक सुन्दरता प्राप्त हुई है। भाषा तत्सम शब्दावली युक्त है और लाक्षणिकता का सहारा लिया है। प्रसाद गुण है। इससे गीत में अधिक आकर्षण बढ़ गया है। 

प्रश्न 6.
'दूसरे छायावादी कवियों की तरह उनके गीतों में भी प्रकृति सौन्दर्य के कई रूप मिलते हैं।' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर :
काव्य कला की दृष्टि से कवयित्री महादेवी वर्मा का काव्य छायावाद का श्रेष्ठ काव्य है। अन्य छायावादी कवियों की तरह उन्होंने भी प्रकृति की विभिन्न छवियों को अपने गीतों का आधार बनाया है। छायावाद का अर्थ ही कवियों ने प्रकृति में मानव की छाया देखना माना है। मानवीकरण द्वारा प्रकृति के अनेक चित्र प्रस्तुत करना छायावादी कवियों का प्रिय विषय रहा है। महादेवी वर्मा के काव्य में भी प्रकृति के मोहक रूप को चित्र रूप में प्रस्तुत किया गया है। 

हिमालय, प्रलय, तूफान, विद्युत-मेघ आदि का वर्णन वे मानव के हृदय के कठोर भावों को व्यक्त करने के लिए करती हैं तो फूल, तितली, मकरंद, भँवरों का गुंजन आदि का प्रयोग मोम जैसी कोमल भावनाओं को व्यक्त करने के लिए करती हैं। आकाश और पृथ्वी को सीपी का संपुट और जीवन को मोती का प्रतीक देकर वे प्रकृति के सर्जक रूप को दर्शाती हैं। इस प्रकार अन्य कवियों की भाँति महादेवी वर्मा ने भी प्रकृति को अपनी भावाभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है, यह उनकी काव्य कला का श्रेष्ठ उदाहरण है। 

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प्रश्न 7.
महादेवी वर्मा के भाव पक्ष एवं कला पक्ष पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
महादेवी वर्मा में श्रेष्ठ मानवतावादी दृष्टिकोण एवं राष्ट्रवादी भावना होने के कारण उनके गीतों में राष्ट्र-मुक्ति के अभियान के प्रेरणा गीत एवं मानव को श्रेष्ठ मानव बनने की शिक्षा देने वाले भावों का सुन्दर सामंजस्य मिलता है। वे राष्ट्र के स्वतन्त्रता संग्राम में हर प्रकार का कष्ट सहकर भी भाग लेने की प्रेरणा देती हैं। दूसरी ओर फल और दीप की तरह खिलकर और जलकर भी समर्पण भाव से मानवता की सेवा करने की प्रेरणा देती हैं। प्रकृति के सुन्दर चित्रों के साथ उनकी प्रस्तुत कविताओं में दृश्य एवं श्रव्य बिम्बों की भरमार है। अनेक प्रतीकों द्वारा उन्होंने प्रेरणा दी है। 

उन्होंने मानव को मोह की बलिवेदी पर हँसते-हँसते प्राण न्योछावर करने की प्रेरणा दी है। वे मानव को मोह के कोमल बंधनों को त्यागकर अपने कर्तव्य-पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। कला पक्ष की दृष्टि से उनके गीत संगीत की श्रेष्ठ रचनाएँ हैं। उन गीतों का गेयात्मक तत्व एक ओर भक्तिमती मीरा की याद दिलाता है तो दूसरी ओर आधुनिक संगीत गोष्ठियों में गाये जाने वाले लोकप्रिय गीतों की याद दिलाता है। तत्सम प्रधान संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली के साथ लक्षणा का प्रयोग किया गया है। अतः काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से आपका काव्य श्रेष्ठ है।

जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले Summary in Hindi

कवित्री परिचन :

महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद नामक नगर में हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई। महादेवी जी ने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. किया। इसके बाद इनकी नियुक्ति प्रयाग महिला विद्यापीठ में हो गई जहाँ इन्होंने लम्बे समय तक प्राचार्य के पद पर कार्य किया। सन् 1987 में इनका निधन हो गया। 

महादेवी वर्मा छायावाद के चार स्तम्भों से एक सुदृढ़ स्तम्भ मानी जाती हैं। आपके जीवन और चिन्तन पर स्वतंत्रता आन्दोलन का गहरा प्रभाव पड़ा। आपके विचारों पर गाँधी और बुद्ध के विचारों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। वे भारतीय समाज और साहित्य में स्त्रियों को उचित स्थान दिलाने के लिए प्रयत्नशील रहीं। इन्होंने कुछ समय तक 'चाँद' पत्रिका का सम्पादन किया। इस पत्रिका के सम्पादकीय में आपने भारतीय नारी की पराधीनता का यथार्थ चित्रण किया और उसकी स्वतंत्रता की आकांक्षा की। 

आपके काव्य में जागरण की चेतना है, स्वतंत्रता की कामना है और करुणा का बोध है। आपको आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। आपकी भाषा संस्कृतनिष्ठ तत्सम प्रधान है। प्रकृति के अछूते बिम्ब और प्रतीकों ने आपकी रचनाओं को अनूठा सौन्दर्य प्रदान किया है। आपकी प्रमुख काव्य रचनाएँ-नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा और दीपशिखा हैं। पथ के साथी, अतीत के चलचित्र और स्मृति की रेखाएँ आपकी कलात्मक गंध रचनाएँ हैं। भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया। 'यामा' कृति पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार' मिला। 

पाठ परिचय :

1. जाग तुझको दूर जाना - जागरण गीत के रूप में रचित इस गीत का मूल स्वर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के लिए सजग प्रहरियों को आलस्य, भय और प्रमाद को त्यागकर अपने कर्त्तव्य-पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है। चाहे हिमालय काँप उठे, तफान आये, बिजली चमके लेकिन इन कठिनाइयों से घबराना नहीं है और न ही सौन्दर्य के कोमल बन्धनों का आकर्षण ही तुझे तेरे मार्ग से भटकाने का प्रयास करे, परन्तु तुझे कठिन-से-कठिन परिस्थिति में भी अपना बलिदानी पथं नहीं त्यागना है। सदैव चेतन अवस्था में रहकर दूर लक्ष्य को प्राप्त करना है। मोम जैसे कोमल, तितली जैसे रंगीले आकर्षण भी तुझे लक्ष्य से नहीं भटका सकते। इस गीत के माध्यम से कवयित्री ने कायर हृदयों में भी जाग्रति लाने का प्रयास किया है। देश की आजादी ही उनका दूरगामी लक्ष्य रहा है। 

जाग तुझको दूर जाना शीर्षक कविता में कौन सा रस है? - jaag tujhako door jaana sheershak kavita mein kaun sa ras hai?

2. सब आँखों के आँसू उजले - प्रकृति की पवित्रता और जीवन के यथार्थ को रूपायित करते हुए इस गीत में कवयित्री ने मनुष्य को अपने सपनों को साकार करने की प्रेरणा दी है। प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को प्रतीक रूप में चुनकर महादेवी जी ने प्रकृति की स्थिरता का वर्णन किया है। दीपक, पुष्प, झरने, सागर, पर्वत सभी मानव को कर्तव्य पथ का ज्ञान कराते हैं। दीपक जलकर, पुष्प गंध बाँटकर, पर्वत झरना देकर, सागर मर्यादा में पृथ्वी को बाँधकर, सीपी में नीलम मरकत का जन्म, आकाश के मेघ, धूल से अंकुरण सभी तत्व प्रकृति के संचालन में अपने-अपने ढंग से संलग्न हैं। अत: मानव का जीवन भी संसार के निर्माण पथ में समर्पित हो जाये कवयित्री, का यही लक्ष्य इस गीत में उजागर हआ है। 

काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ -

1. चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना
अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कंप हो ले,
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले,
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
जागकर विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना! 

शब्दार्थ :

  • चिर = सदैव, लम्बे समय से। 
  • सजग = चेतन सचेत। 
  • उनींदी = नींद से भरी, निद्रायुक्त।
  • व्यस्त-बाना = बेतरतीव, बिखरा हुआ स्वरूप। 
  • अचल = स्थिर, पर्वत। 
  • हिमगिरि = बर्फ का पहाड़ (हिमालय)।
  • कंप = काँपना। 
  • प्रलय = सर्वस्व विनाश। 
  • मौन = चुप्पी। 
  • अलसित = थकान से भरा, आलसी। 
  • व्योम = आकाश। 
  • आलोक = प्रकाश। 
  • डोले= भ्रमण 
  • तमिर = अन्धकार। 
  • घोर = अत्यधिक। 
  • विधुत = बिजली। 
  • शिखाओं = लपटों, चमक। 
  • निठुर = निष्ठुर, क्रूर। 
  • तूफान = आँधी। 
  • नाश-पथ = विनाश के मार्ग पर। 
  • चिह्न = निशान।

सन्दर्भ - प्रस्तुत काव्यांश पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा' काव्यखण्ड से उद्धृत किया गया है। इसकी रचयिता छायावादी काव्यधारा की प्रमुख स्तम्भ महादेवी वर्मा हैं। उनकी 'जाग तुझको दूर जाना' नामक कविता में से संकलित की गई है। इन पंक्तियों में प्रेरणा के स्वर मुखरित हुए हैं। 

प्रसंग - इन पंक्तियों में महादेवी वर्मा देशवासियों को सजग होकर संघर्ष करने की प्रेरणा दे रही है। इस 'जागरण गीत' द्वारा उन्होंने सदा संघर्ष करने वाले बलिदानियों को उनके कर्त्तव्य का स्मरण कराया है। वे कहती हैं कि -

व्याख्या - सदैव संघर्ष के लिए उद्यत रहने वाले बलिदान की परम्परा से बँधे हुए उत्साही नवयुवको! आज तुम्हारी सतेज आँखों को क्या हो गया जो सहज ही अपना उचित मार्ग खोजने में चतुर थीं। आज उनमें आलस्य के कारण निद्रालस क्यों भरा हुआ है। तुम्हारी वेश-भूषा भी अस्त-व्यस्त बिखरी-बिखरी-सी है जैसा कि अधिकांशतया निद्रा से जागे हुए व्यक्ति की होती है। क्या तुम भूल गये कि अभी स्वाधीनता की घड़ी नहीं आई। तुम्हें अभी बहुत चलना पड़ सकता है। अत: जाग्रत होकर लक्ष्य तक पहुँचने के लिए निरन्तर चलते रहो। संघर्ष करते हुए आगे बढ़ो, मंजिल अभी बहुत दूर है। 

तुम अपने दृढ़ निश्चय पर सदैव आगे बढ़ने वाले रहे हो फिर चाहे हिमालय जैसा विशाल और विस्तृत पर्वत काँप उठे और चाहे सम्पूर्ण आकाश प्रलयकाल की भयंकर वर्षा करने वाला बन जाये, चारों तरफ घोर-अन्धकार छा जाये और प्रकाश की छोटी-से-छोटी किरण को भी निगल जाये अर्थात् प्रकाश का एक नक्षत्र भी दिखाई न दे, चारों ओर घोर अन्धेरा छा जाये। इतना तीव्र तूफान उठे जिसमें आँधी, वर्षा और वज्रपात जैसी भयंकर घटनाएँ, घटित हो रही हों, तेरा मार्ग रोकने वाली भयंकर बाधाएँ उपस्थित हो जायें। 

लेकिन हे बलिदानी! तुम्हें तो इन विनाशकारी मार्गों पर भी अपनी उपस्थिति अंकित करनी है और ऐसी याद छोड़ जानी है कि आने वाली पीढ़ियाँ भी सदैव तेरे बलिदान को याद करती रहें। अतः सजग होरक अपने दूर लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर आगे बढ़ते रहो। घबराकर रास्ते में मत रुकना। स्वाधीनता का लक्ष्य प्राप्त कर ही शान्त होना, तब तक निरन्तर
आगे बढ़ते रहो। 

विशेष : 

  1. आँधी-तूफान, बिजली चमकना, हिमालय का कम्पन और आकाश से प्रलय के बादलों की घनघोर वर्षा भी संघर्षशील व्यक्ति को अपने लक्ष्य से नहीं डिगा सकती। महादेवी वर्मा ने मुर्दो में भी जान फूंकने की इस उत्साह भरी वाणी से सबको जाग्रत किया है। 
  2. भाषा-संस्कृतनिष्ठ तत्सम प्रधान खड़ी बोली की उत्साहजनक, प्रेरणादायी शब्दावली से कविता वास्तव में जागरण गीत बन गई है। 
  3. रस-उत्साहवर्द्धक वीर-रस है। 
  4. छन्द लयात्मक छन्द द्वारा सरस गीत का प्रणयन हुआ है। 
  5. शैली-बिम्ब विधान और प्रतीकात्मकता ने कविता को सदैव स्मृति पटल पर अंकित होने की सामर्थ्य प्रदान की है। अतः प्रतीकात्मक शैली है। 
  6. मानवीकरण द्वारा कविता को छायावादी संस्कार प्रदान किये गये हैं। 
  7. गुण-ओज गुण युक्त उद्बोधन गीत है। 

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2. बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे, तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी, मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना! 

शब्दार्थ :

  • मोम के बंधन = मोम जैसे कोमल बंधन, परिवार या प्रेम के मोहजनित बंधन। 
  • सजीले = मोहक, आकर्षक।
  • पंथ = मार्ग, लक्ष्य। 
  • सधा = रुकावट।
  • तितलियों के पर = सौन्दर्य का आकर्षण। 
  • विश्व = संसार। 
  • क्रंदन = रोना, चीख-पुकार। 
  • मधुप = भंवरा। 
  • मधुर गुनगुन = मीठी गुंजन। 
  • फूल के दल = पुष्प की पंखुड़ियाँ। 
  • ओस गीले = प्रातःकालीन ओस में भीगे। 
  • कारा = कैद, बंधन। 
  • छाँह = परछाईं।

सन्दर्भ - हमारी पाठय-पस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड से उदधत इन पंक्तियों की रचयिता छायावाद की प्रमख कवयित्री महादेवी वर्मा हैं। उनके जागरण गीत 'जाग तुझको दूर जाना' से संकलित इन पंक्तियों में उद्बोधन का भाव भरा गया है। 

प्रसंग - बलिदान के पथ पर आगे बढ़ने वाले संघर्षशील व्यक्ति को संसार का कोई भी आकर्षण, कोई भी बंधन पथभ्रष्ट नहीं कर सकता। प्रश्नों के माध्यम से कवयित्री ने संघर्ष-पथ के पथिकों को जाग्रत करते हुए कहा है कि -

व्याख्या - ये सांसारिक बंधन जो मोम की भाँति कोमल होते हैं तथा आकर्षण से भी परिपूर्ण होते हैं, क्या तुझे आगे बढ़ने से रोक सकते हैं। इसी प्रकार सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति रंगीन तितलियों जैसी सुन्दर बालाएँ क्या तुझे अपनी सुन्दरता के आकर्षण में बाँधकर पथ से डिगा सकती हैं, मार्ग से भटका सकती हैं। स्वाधीनता की लड़ाई में जूझने वाले के समक्ष संसार के भोग-विलास और आकर्षण भी आते हैं लेकिन उन्हें ठुकराकर उसे अपने कर्त्तव्य-पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। 

कवयित्री उन जुझारू साथियों को याद दिला रही हैं कि सारा संसार हर प्रकार के कष्टों से दुखी होकर चीख रहा है; क्या तेरी आत्मा पर इन चीख-पुकारों का असर न होकर दूसरी ओर आकर्षण से भरे हुए राग रंग जो भँवरों के आकर्षक गुंजन के समान ही होता है, अपनी ओर खींचकर पथभ्रष्ट कर सकता है। ऐसा कदापि नहीं हो सकता। क्या ओस से भीगी फूलों की पंखुड़ियों अर्थात तुम्हारे प्रियजनों की आँसुओं से भीगी आँखें तुम्हारे संकल्प को शिथिल कर देंगी?

कवयित्री कहती हैं कि बलि-पथ के पथिक को अपनी छाया का भी विश्वास नहीं करना चाहिए। वह आत्ममुग्ध होकर भी अपने पथ से भटक सकता है। अतः कवयित्री संघर्षरत स्वाधीनता सेनानियों को हर मोह-माया और ममता से दूर रहकर अपनी पूर्ण सजगता के साथ लक्ष्य प्राप्ति हेतु संघर्ष करने की प्रेरणा दे रही हैं। 

विशेष : 

  1. मनुष्य को जीवन के तुच्छ आकर्षण भी लक्ष्य से भटका देते हैं अतः कवयित्री ने उन कोमल और आकर्षक बंधनों को प्रतीकों में बाँधकर रखा है। 
  2. भाषा - तत्सम प्रधान खड़ी बोली है। 
  3. छन्द - गेयात्मक संगीतात्मक छंद। 
  4. शैली - प्रश्नात्मक शैली ने पद्य का आकर्षण बढ़ा दिया है।
  5. अलंकार - बाधा बनेंगे, का क्रन्दन में अनुप्रास, फूल के दल ओस गीले में रूपक अलंकार है। 
  6. गुण-रस-ओज गुण प्रधान वीर रस का प्रयोग। 
  7. जागरण गीत, उदबोधनपरक अभिव्यक्ति का प्रतीक है। 
  8. लक्षणायुक्त मुहावरेदार भाषा से छंद में आकर्षण बढ़ गया है।

जाग तुझको दूर जाना शीर्षक कविता में कौन सा रस है? - jaag tujhako door jaana sheershak kavita mein kaun sa ras hai?

3. वज्र का उर एक छोटे, अश्रु-कण में धो गलाया,
दे किसे जीवन सुधा दो घूट मदिरा माँग लाया?
सो गई आँधी मलय की वात का उपधान ले क्या?
विश्व का अभिशाप क्या चिर नींद बनकर पास आया?
अमरता-सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना! 

शब्दार्थ :

  • वज्र = कठोरता या दृढ़ संकल्प। 
  • उर = हृदय। 
  • अश्रुकण = आँसू की बूंद। 
  • सुधा = अमृत। 
  • मदिरा = शराब। 
  • मलय = सुगन्धित वायु, (मलयाचल) चन्दन के पर्वत की सुगन्धित वायु। 
  • वात = वायु। 
  • उपधान = तकिया, सहारा।
  • चिर नींद = मृत्यु। 
  • अमरता-सुत = देवता का पुत्र। 

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड के 'जाग तुझको दूर जाना' नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता छायावाद की प्रमुख कवयित्री महादेवी वर्मा हैं।

प्रसंग - कवयित्री इस जागरण-गीत के माध्यम से भारत के सोये हुए बलिदानी स्वभाव के वीरों को जाग्रत होकर देश की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दे रही हैं। वे कहती हैं कि -

व्याख्या - हे स्वतन्त्रता के चिर अभिलाषी भारतवासियो! तुमने अपने कर्त्तव्य पथ पर चलते हुए सर्वस्व दान करने की परम्परा का पालन किया है। क्या वह वज्र जैसा कठोर हृदय प्रिया की एक आँसू की बूंद से पिघलकर अपने कर्तव्य पथ से विचलित हो गया है। हे बलिदानी! तुमने अपनी अमृत जैसी जीवन शैली को कहाँ भुला दिया है और उसके बदले में तुम मद-मस्त कर देने वाली मदिरा कहाँ से ले आये हो अर्थात् अमरता के सिद्धान्त को भुलाकर तुमने तुच्छता प्रदान करने वाली मदिरा के नशे का भाव कहाँ से ग्रहण कर लिया है। सांसारिक मोह-ममता ने तुम्हें अपने जाल में फंसाकर जीवन के लक्ष्य से डिगा दिया है। तुम्हें शीघ्र ही इस मोह जाल से मुक्त होकर अपने शाश्वत कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ना है। 

कवयित्री उन बलिदानी परम्परा के वीरों से प्रश्न करते हुए पूछ रही हैं कि तुम्हारे हृदय में सदैव संघर्ष करने की भावनारूपी आँधी उठा करती थी, क्या वह आँधी मलयगिरि पर्वत की सुगन्धित वायु का तकिया लगाकर सो गई है। एक सौन्दर्याश्रित आकर्षण ने तेरे हृदय की क्रान्तिकारी भावनाओं को सुला दिया है अथवा सारे संसार के अभिशाप ही साकार रूप धारण करके तुझे सदैव के लिए चिरनिद्रा में सुलाने आ गये हैं। तेरे संघर्षशील रूप को तिरोहित करने के लिए अभिशाप बनकर आ गये हैं। 

हे अमर देवताओं की सन्तानो! आज तुम भी आश्चर्यजनक रूप से मृत्यु को अपने हृदय में स्थान देने को उद्यत हो गये हो। जो देश सदैव ही अपने आपको अमर देवताओं की सन्तान मानता आ रहा था, आज वही मृत्यु के भय से आक्रान्त होकर कर्तव्य पथ से विचलित हो गया है? तु इस विनाशकारी निराशा के भाव को त्याग दे, अभी देश की स्वाधीनता का लक्ष्य बहुत दूर है। अतः सचेत होकर आगे बढ़ते रहो तभी तुम लक्ष्य तक पहुँच सकोगे। जिस उद्देश्य को प्राप्त करना परमावश्यक 

विशेष :

  1. कवयित्री ने स्वतन्त्रता सेनानियों को बलिदानी परम्परा का ध्यान दिलाकर, निराशा के भावों का त्यागकर लक्ष्यपथ पर बढ़ने की प्रेरणा दी है। 
  2. भाषा-संस्कृतनिष्ठ तत्सम प्रधान हिन्दी खड़ी बोली। 
  3. शब्द शक्ति-लक्षणा शब्द शक्ति। 
  4. गुण-रस-ओजगुण प्रधान जागरण गीत वीर रस से युक्त है। 
  5. शैली-गेयात्मक छंद और प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग। 

जाग तुझको दूर जाना शीर्षक कविता में कौन सा रस है? - jaag tujhako door jaana sheershak kavita mein kaun sa ras hai?

4. कह न ठण्डी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उ में तभी दृग में, सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी मानिनी, जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है, अमर दीपक की निशानी!
है तझे अंगार-शय्या पर मदल कलियाँ बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना! 

शब्दार्थ :

  • ठण्डी साँस = आह भरकर। 
  • जलती कहानी = दुखभरी स्मृतियाँ। 
  • दृग = नेत्र।
  • सजेगा = शोभा देगा। 
  • मानिनी = सम्मान से युक्त, स्वाभिमानी। 
  • जय की पताका = विजयध्वज।
  • क्षणिक = क्षणभर एक घड़ी का।
  • पतंग (पतंगा) = एक छोटा-सा कीट जो दीपक पर जलकर प्राण दे देता है। 
  • निशानी = चिह्न। 
  • अंगार = आग के शोले, आग की बड़ी चिंगारियाँ।
  • शय्या = बिछौना, चारपाई, बिस्तर। 
  • मृदुल = कोमल। 

सन्दर्भ - यह काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड से प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित गीत 'जाग तझको दर जाना' से लिया गया है। 

प्रसंग - कवयित्री उन निराश वीरों के हृदय में बलिदान होने की प्रेरणा दे रही हैं जो अपनी हार का रोना-रोकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाते हैं और उस बलिदानी पथ पर आगे बढ़ने वालों को भी निराश का देते हैं। वे उन्हें उत्तेजित करते हुए कह रही हैं कि 

व्याख्या - हे अमर बलिदानियो! अपनी हार की कहानियों को ठण्डी आह भरते हुए मत सुनाओ। क्योंकि निराशा में डूबी तुम्हारी आँखों में जो आँसू उभर रहे हैं, वे शोभायुक्त नहीं हैं। ये आँसू उनकी आँखों में ही शोभा पाते हैं जो अपने हृदय में हार का प्रतिशोध लेने की ज्वाला में धधक रहे होते हैं।

हे स्वातन्त्र्य वीर! अमर सेनानी! तू अपनी हार से घबराकर निराश मत हो। एक दिन तेरी यह हार ही स्वाभिमान के साथ जीत की विजय-पताका फहरायेगी। एक छोटा-सा कीट-पतंगा दीपक के अमर प्रेम में डूबकर अपने प्राणों की बलि दे देता है लेकिन उसकी बलिदानी राख भी दीपक के प्रेम की निशानी बनकर उसको अमर कर देती है। सारा संसार पतंगे की राख से ही प्रेम पर न्योछावर हो जाने की भावना को याद रखता है। 

हे अमर वीर! यह बलिदान का पथ एक तरह से अंगारों की जलती हुई शय्या है। जिस प्रकार पतंगा दीपक की लौ की अंगार शय्या पर स्वयं जलकर सिद्ध कर देता है कि यह अंगारों की सेज भी एक तरह से कोमल कलियों की शय्या है, उसी प्रकार तेरा बलिदान भी इस पथ पर चलने वाले अनेक लोगों को बलिदान होने की प्रेरणा देगा। 

हे वीर! अभी स्वाधीनता का लक्ष्य बहुत दूर है। अतः सचेत होकर आगे बढ़ते रहो और अन्य लोगों को भी जो इस मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हुए आगे बढ़ते रहो। 

विशेष :

  1. कवयित्री ने दीपक और पतंगे के अमर प्रेम का उदाहरण देकर उन निराश बलिदानियों के मन में देश की स्वतन्त्रता की लड़ाई में निराश होकर बैठने के स्थान पर बलिदान देते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। 
  2. भाषा-संस्कृतनिष्ठ तत्सम प्रधान हिन्दी खड़ीबोली का भावानुकूल प्रयोग हुआ है। 
  3. शब्दशक्ति-ठण्डी साँस, जलती कहानी, आग हो उर में सजेगा आज पानी आदि ने लक्षणा शब्द शक्ति का प्रयोग दृष्टव्य है। 
  4. गुण-रस-ओज गुण प्रधान जागरण गीत वीर रस से युक्त है। 
  5. अलंकार-'अंगार शय्या' में रूपक अलंकार है। 
  6. शैली-गेयात्मक छंद और प्रतीकात्मक शैली का सुन्दर प्रयोग हुआ है। 
  7. कविता का उद्बोधनपरक रूप में प्रयोग दृष्टव्य है। 

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सब आँखों के आँसू उजले -

1. सब आँखों के आँसू उजले सबके सपनों में सत्य पला!
जिसने उसको ज्वाला सौंपी
उसने इसमें मकरंद भरा,
आलोक लुटाता वह घुल-घुल,
देता झर यह सौरभ बिखरा!
दोनों संगी, पथ एक किन्तु कब दीप खिला कब फूल जला? 

शब्दार्थ :

  • उजले = उज्ज्वल, पवित्र। 
  • ज्वाला = अग्नि, प्रकाश। 
  • मकरंद = सगन्धित। 
  • पराग = रस। 
  • घलघ = होकर। 
  • झर = झड़कर, नष्ट होकर।
  • सौरभ = सुगन्ध।
  • बिखरा = फैलाना, लुटाना।
  • संगी = साथ लक्ष्य। 

सन्दर्भ - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा के प्रसिद्ध गीत 'सब आँखों के आँसू उजले' से ली गई हैं, जो कि हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड में संकलित की गई हैं। 

प्रसंग - दीपक और पुष्प दोनों ही अपना सर्वस्व दान कर प्रकृति का कर्ज उतारते हैं क्योंकि प्रकृति ही पुष्प को पराग-रस और दीपक को प्रकाश सौंपती है, एक ही काम करते हुए भी वे एक-दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करते। इसी भाव को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा है 

व्याख्या - संसार के सभी प्राणी जो आँसू बहाते हैं या दुःख प्रकट करते हैं वह पवित्र भावों से युक्त होते हैं तथा स्वप्न देखने वाली सभी की आँखों के सपने भी सत्य ही होते हैं। 

जो प्रकृति की शक्ति दीपक को आग अर्थात् प्रकाश सौंपती है वही शक्ति पुष्प को सुगन्धित पराग-रस प्रदान करती है। इसलिए ही दीपक अपने आपको तिल-तिलकर गला देता है। लेकिन प्रकृति के प्रांगण को अपने सुनहरे प्रकाश से आलोकित कर देता है तथा पुष्प भी अपने कर्तव्य का ध्यान रखते हुए स्वयं को मिटा देता है लेकिन अपने पराग-रस की वर्षा करने या सुगन्ध बिखेरने से पीछे नहीं हटता। 

दीपक और पुष्प दोनों ही एक जैसा स्वभाव रखते हैं। अतः एक-दूसरे के साथी जैसे ही हैं। दोनों को लक्ष्य भी संसार को प्रसन्नता प्रदान करना है लेकिन कोई भी एक-दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करते। इसीलिए न तो दीपक पुष्प की तरह प्रातः खिलता है और न ही पुष्प रात्रि में दीपक की तरह जलता रहता है।

विशेष :

  1. कवयित्री ने दीपक और पुष्प को परोपकारी और एक-दूसरे का सहयोगी बताया है। 
  2. भाषा-संस्कृतनिष्ठ तत्सम प्रधान शब्दावली का भावानुकूल प्रयोग हुआ है।
  3. पुष्प और दीपक-सुख और दुख के प्रतीक हैं जो कष्ट सहकर भी संसार को सुगन्ध और प्रकाश से उपकृत ही करते हैं। 
  4. अलंकार-सबके सपनों में सत्य में अनुप्रास और घुल-घुल में पुनरुक्तिप्रकाश। 
  5. दीप खिला और फूल जला में विरोधाभास अलंकार है। 
  6. कविता का मूल स्वर उपदेशात्मक है। 
  7. रहस्यवादी संकेत के रूप में दीपक को ज्वाला और पुष्प को मकरंद सौंपने वाली शक्ति का स्मरण किया है। 
  8. शैली-प्रश्नात्मक शैली का व्यावहारिक प्रयोग हुआ है। 

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2. वह अचल धरा को भेंट रहा
शत-शत निर्झर में हो चंचल,
चिर परिधि बना भू को घेरे
इसका नित मिल करुणा-जल
कब सागर उर पाषाण हुआ, कब गिरि ने निर्मम तन बदला? 

शब्दार्थ : 

  • अचल = पर्वत, स्थिर। 
  • धरा = पृथ्वी। 
  • भेंट रहा = मिल रहा। 
  • शत-शत = सैकड़ों। 
  • निर्झर = झरने। 
  • चंचल = चलायमान। 
  • चिर = सदैव। 
  • परिधि = घेरा, मर्यादा। 
  • भू = पृथ्वी। 
  • उर्मिल = लहरों से युक्त, लहराता। 
  • करुणा-जल = दया धारा। 
  • पाषाण = पत्थर। 
  • गिरि = पर्वत। 
  • निर्मम = ममतारहित कठोर। 

सन्दर्भ - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा के प्रसिद्ध गीत 'सब आँखों के आँसू उजले' से ली गई हैं, जो कि हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड में संकलित की गई हैं। 

प्रसंग - कवयित्री महादेवी वर्मा ने पर्वत और सागर का उदाहरण देकर सिद्ध करने का प्रयास किया है कि सागर अपनी दयालुता और पर्वत अपनी कठोरता को स्थिर रखते हुए भी परोपकार करते हैं। वे कहती हैं कि - 

कवयित्री कहती हैं कि पर्वत और सागर, दोनों ही धरती से प्यार करते हैं। पर्वत अपने सैकड़ों झरनों रूपी भुजाओं से धरती को गले लगाता है और सागर एक परिधि जैसा बनकर धरती को चारों ओर से घेरे रहता है। दोनों ही अपने-अपने स्वरूप और स्वभाव को बदले बिना धरती पर अपने प्रेम का प्रदर्शन करते आ रहे हैं। न कभी समुद्र ने पर्वत बनने का प्रयास किया और न पर्वत ने समुद्र बनने का। पर्वत का कठोर शरीर और सागर का करुणा से तरल जल सदा यथावत ही बने रहते हैं। 

विशेष :

  1. कवयित्री प्रेमी-प्रेमिका के मिलन का भावुक दृश्य दो प्रतीकों द्वारा व्यक्त कर रही हैं। पर्वत के मिलन में झरना करुणा जल का प्रतीक है और सागर का लहराता जल भी इस प्रेम-मिलन का प्रतीक है। दोनों ही अपनी प्रेमिका पृथ्वी से मिलने के लिए आतुर हैं लेकिन अपने मूल स्वभाव को नहीं बदलते।
  2. भाषा-संस्कृतनिष्ठ, प्रांजल एवं भावानुकूल भाषा। 
  3. लाक्षणिकता का सुन्दर प्रयोग दृष्टव्य है। 
  4. अलंकार-विरोधाभास एवं मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग हुआ है। 
  5. 'शत-शत' में पुनरुक्तिप्रकाश और 'करुणा जल' में रूपक अलंकार है। 

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3. नभ तारक-सा खण्डित पुलकित
यह क्षुर-धारा को चूम रहा,
वह अंगारों का मध-रस पी
केशर-किरणों-सा झूम रहा,
अनमोल बना रहने को कब टूटा कंचन हीरक पिघला? 

शब्दार्थ :

  • नभ = आकाश। 
  • तारक = तारे, नक्षत्र। 
  • खण्डित = टूटा। 
  • पुलकित = प्रसन्नचित्त।
  • क्षुर-धारा = छुरे की पैनी धारा अथवा खराद जिस पर हीरा तराश कर कीमती बनाया जाता है। 
  • अंगारों = आग पर। 
  • मधु-रस = मीठा रस। 
  • केसर-किरणों सा = सुनहरी केसर की ज्योति जैसा। 
  • अनमोल = अत्यधिक कीमती। 
  • कंचन = सोना। 
  • हीरक = हीरा। 
  • पिघला = गला। 

सन्दर्भ - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा के प्रसिद्ध गीत 'सब आँखों के आँसू उजले' से ली गई हैं, जो कि हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड में संकलित की गई हैं। 

प्रसंग कवयित्री सबके प्राकृतिक स्वभाव का वर्णन करते हुए कह रही हैं कि कैसी भी परिस्थिति हो पर कोई भी अपना स्वभाव नहीं बदलता। 

व्याख्या - बहुमूल्य हीरा आरंभ में एक टूटे हुए तारे के समान कुरूप होता है। वह तभी मूल्यवान बनता है जब वह खराद की पैनी धार से काटा जाता है, तराशा जाता है। वह उसी पैनी धारा को बड़ी प्रसन्न्ता के साथ चूमता है तभी सुंदर चमक और बहुमूल्यता प्राप्त करता है। - दूसरी ओर सोना भी आरंभ में कुरूप खनिज होता है और अंगारों में तपाया जाने पर केसरी रंग की किरणों को छिटकाता हुआ अतिमूल्यवान धातु बन जाता है। अर्थात् हीरा अपने आपको हर्ष के साथ तराशने के लिए पैनी धारयुक्त खराद को समर्पित कर देता है और सोना भयंकर अग्निकणों को स्वेच्छा से चूमता है। तभी ये दोनों मूल्यवान बनते हैं। इस प्रकार बहुमूल्य या अनमोल बनने के लिए न तो सोना टूटता है और न ही हीरा पिघलता है अर्थात् कोई किसी दूसरे का अनुकरण करके अपने स्वभाव को बदलता नहीं है। 

विशेष : 

  1. कवयित्री का भाव यही है कि अपनी उन्नति के लिए हमें किसी दूसरे के स्वभाव का अनुकरण करना आवश्यक नहीं है। 
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ प्रांजल भाषा भावानुकूल अभिव्यक्ति में सक्षम है। 
  3. लाक्षणिकता का प्रयोग दृष्टव्य है। 
  4. अलंकार-समस्त पद में मानवीकरण का प्रयोग है। नभ-तारक-सा में उपमा, मधु-रस एवं क्षुर-धारा में रूपक, केशर-किरणों-सा में अनुप्रास एवं उपमा। 
  5. शैली-उपदेशात्मक शैली। 

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4. नीलम मरकत के संपुट दो।
जिनमें बनता जीवन-मोती,
इसमें ढलते सब रंग-रूप
उसकी आभा स्पन्दन होती!
जो नभ में विद्युत-मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला! 

शब्दार्थ :

  • नीलम = एक बहुमूल्य नीला पत्थर, आकाश। 
  • मरकत = एक हरे रंग का बहुमूल्य पत्थर, हरी-भरी पृथ्वी। 
  • ढलते = निर्मित होते। 
  • आभा = चमक। 
  • संपुट = दल। 
  • स्पंदन = चंचलता, धड़कन, हलचल। 
  • रज = मिट्टी, रेत। 
  • अंकुर = बीज का उगना। 

व्य पक्तियाँ छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा के प्रसिद्ध गीत 'सब आँखों के आँसू उजले' से ली गई हैं, जो कि हमारी पाठयपस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड में संकलित की गई हैं। 

प्रसंग - इस काव्यांश में कवयित्री धरती, आकाश और जगजीवन के परस्पर संबंध का एक मनमोहक शब्द चित्र प्रस्तुत कर रही है। 

व्याख्या - कवयित्री कहती हैं कि आकाश और धरती एक सीपी के दो संपुटों के समान हैं। आकाश नीलम से बना नीला और धरती पन्ने से बना हरा संपुट है। इस सीपी में जगजीवन रूपी मोती का जन्म होता है। इस जीवन में ही सारे रंग-रूप साकार होते हैं। इस जीवन में ही परम शक्ति (प्रकृति) का प्रकाश स्पंदित हुआ करता है। बह एक शक्ति आकाश में बिजली और बादल के रूप में दिखाई देती है और वही धरती की मिट्टी में बीज के रूप में दिखाई देती है। यी है। 

विशेष : 

  1. यह जगत और इस पर व्याप्त जीवन प्रकृति का ही व्यक्त स्वरूप है। प्रकृति नाना रूपों में हमें परहित का संदेश देती आ रही है। 
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ-प्रांजल तत्सम प्रधान शब्दावली का भावानुकूल प्रयोग। 
  3. अलंकार रंग-रूप में अनुप्रास, नीलम......होती में सांगरूपक अलंकार, सीपी में मोती का जन्म रूपक से समझाया है। 
  4. गुण - प्रसाद गुण से युक्त प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग किया है। 
  5. इस (गीत) छंद में कवयित्री ने छायावादी प्रकृति चित्रण एवं रहस्यवादी भाव के अनुसार अदृश्य शक्ति का वर्णन किया है। 

जाग तुझको दूर जाना शीर्षक कविता में कौन सा रस है? - jaag tujhako door jaana sheershak kavita mein kaun sa ras hai?

5 .संसृति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेरे बनने-मिटने में नित
अपनी साधों के क्षण गिन लो!
जलते खिलते बढ़ते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला!
सपने-सपने में सत्य ढला! 

शब्दार्थ :

  • संसृति = संसार। 
  • प्रति पग = प्रत्येक चरण, प्रत्येक गतिविधि। 
  • नव अंकन = नवीन लिखावट। 
  • नित = प्रत्येक दिन। 
  • साधों = इच्छाओं। 
  • घुलमिल = पूर्णतया मिलकर, एकाकार होकर। 
  • एकाकी = अकेला। 

सन्दर्भ - छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'सब आँखों के आँसू उजले' से अवतरित है जो कि हमारी पाठ्यपुस्तक 'अन्तरा' के काव्यखण्ड में संकलित किया गया है। 

प्रसंग - प्रकृति में सदैव परिवर्तन घटित होते रहते हैं। मनुष्य इसी परिवर्तन के आधार पर अनेक सपने देखता है। इस प्रकार मानव और प्रकृति के बीच के अटूट रिश्ते को बताते हुए कवयित्री कह रही हैं कि - 

व्याख्या - प्रकृति हर क्षण अपना रूप बदलकर नया रूप धारण करती रहती है। अतः इस परिवर्तन की नयी-नयी रूपरेखा के साथ ही मानव की प्रत्येक साँस नया रूप धारण करती रहे। कवयित्री अपने आपको एक मानव इकाई मानकर प्रकृति के प्रत्येक स्पन्दन में अपनी साँसों का स्पन्दन मिला देना चाहती है। प्रकृति की वह परम सत्ता मानव के क्रियाकलापों के साथ ही अपनी सभी इच्छाओं को पूरा कर लेती है। अतः मानव (कवयित्री) अपने बनते और मिटते सभी रूपों को प्रकृति के लिए समर्पित कर देता है।

अतः दीपक का प्रकाश बाँटना, फूलों का सुगंध वितरित करना, हीरे और सोने का कष्ट झेलकर बहुमूल्य बनना, आकाश और धरती द्वारा जीवन को जन्म देना और परिपालन करना। ये सभी प्राकृतिक गतिविधियाँ मानव जीवन को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही हैं। 

जाग तुझको दूर जाना है शीर्षक गीत के माध्यम से कवयित्री ने क्या संदेश दिया है?

उत्तर- कविता में मनुष्य रूपी पथिक को संबोधित किया गया है। कवयित्री चाहती है कि मनुष्य हर प्रकार की परिस्थिति में निरंतर आगे बढ़ता रहे। मार्ग में आने वाली बाधाओं से डरना व्यर्थ है। संघर्ष ही जीवन है और संघर्ष करते रहना ही उसकी सार्थकता है।

जाग तुझको दूर जाना कविता का मूल भाव क्या है?

इस कविता का मूल भाव स्वाधीनता आंदोलन में भाग ले रहे क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा प्रदान करना है। महादेवी वर्मा की ये कविता एक जागरण गीत की तरह है, जिसके माध्यम से कवयित्री स्वाधीनता आंदोलन के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहीं हैं।

जाग तुझको दूर जाना कविता किसकी है?

जाग तुझको दूर जाना / महादेवी वर्मा - कविता कोश

महादेवी वर्मा का जन्म कब हुआ था?

26 मार्च 1907महादेवी वर्मा / जन्म तारीखnull