हिटलर के उदय के क्या कारण था? - hitalar ke uday ke kya kaaran tha?

लोकतंत्र का विनाश

राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग नें 30 जनवरी 1933 को हिटलर को चांसलर का पद संभालने का न्यौता दिया। यह मंत्रिमंडल का सर्वोच्च पद होता था, जैसे हमारे देश में प्रधानमंत्री का पद होता है। सत्ता हाथ में आते ही हिटलर ने लोकतांत्रिक शासन की संरचना को तहस नहस करना शुरु कर दिया।

जर्मनी की संसद में फरवरी में एक रहस्यमयी आग लगी जिससे हिटलर का रास्ता साफ हो गया। 28 फरवरी 1933 को एक फायर डिक्री की घोषणा हुई। उस अध्यादेश के अनुसार, कई नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। उसके बाद हिटलर ने अपने धुर विरोधियों (कम्यूनिस्ट) पर काम करना शुरु किया। अधिकतर कम्यूनिस्टों को नये नये बने कंसंट्रेशन कैंपों में बंद कर दिया गया।

3 मार्च 1933 को मशहूर विशेषाधिकार अधिनियम (इनैबलिंग एक्ट) पास हुआ। इस नियम से हिटलर को जर्मनी में तानाशाही स्थापित करने के लिए अकूत शक्ति मिल गई। नात्सी पार्टी को छोड़कर बाकी हर राजनैतिक पार्टी और ट्रेड यूनियन पर बैन लग गया। सरकार ने अर्थव्यवस्था, मीडिया, सेना और न्यायपालिका पर पूरी पकड़ बना ली।

समाज पर नियंत्रण करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा दस्ते बनाये गये। उस समय पहले से नियमित पुलिस (हरी वर्दी वाली) और स्टॉर्म ट्रूपर्स (SA) थे। अब अतिरिक्त पुलिस बल बनाया गया, जैसे गेस्तापो ((गुप्तचर राज्य पुलिस), सुरक्षा बल (SS), अपराध नियंत्रण पुलिस और सुरक्षा सेवा (SD).

इन पुलिस बलों को बेहिसाब असंवैधानिक अधिकार मिले हुए थे। किसी भी व्यक्ति को गेस्तापो के यातना गृहों में बंद किया जा सकता था, पकड़ कर कंसंट्रेशन कैंप में भेजा जा सकता था, बंदी बनाया जाता था या फिर देशनिकाला दे दिया जाता था। इन सबको अंजाम देने के लिए किसी भी प्रकार की कानूनी औपचारिकता नहीं की जाती थी।


एडोल्फ़ हिटलर
Adolf Hitler
हिटलर के उदय के क्या कारण था? - hitalar ke uday ke kya kaaran tha?
औपचारिक चित्र, 1938

जर्मन राइख के कुलाधिपति
(नाज़ी जर्मनी)

पूर्वा धिकारी पॉल वोन हिनडेनबर्ग (राष्ट्रपति)
उत्तरा धिकारी कार्ल डोनिट्ज़ (राष्ट्रपति)
पद बहाल
30 जनवरी 1933 – 2 अगस्त 1934
राष्ट्रपति पॉल वोन हिनडेनबर्ग
(1933–1934)
सहायक फ्रांज़ वोन पैपेन
(वाइस-कुलाधिपति, 1933–1934)
पूर्वा धिकारी कर्ट वोन श्लाइडर
उत्तरा धिकारी जोसेफ़ गोबेल्स

नाज़ी पार्टी के फहरर

पद बहाल
29 जुलाई 1921[1] – 30 अप्रैल 1945
सहायक रूडोल्फ हेस (1933–1941)
पूर्वा धिकारी एंटन ड्रेक्सलर (चेयरमैन)
उत्तरा धिकारी मार्टिन बोर्मैन (पार्टी मत्री)

जन्म २० अप्रैल १८८९
ब्रानो आम इन, ऑस्ट्रिया हंगरी (वर्तमान ऑस्ट्रिया)
मृत्यु 30 अप्रैल 1945 (उम्र 56)
बर्लिन, नाज़ी जर्मनी
नागरिकता

  • ऑस्ट्रियाई (1889–1925)
  • राज्यविहीन (1925–1932)
  • जर्मन (1932–1945)

राजनीतिक दल नाज़ी पार्टी (1921–1945)
अन्य राजनीतिक
संबद्धताऐं
जर्मन श्रमिक पार्टी (1919–1920)
जीवन संगी ईवा ब्रॉन (वि॰ 1945)
कैबिनेट हिटलर कैबिनेट
हस्ताक्षर
हिटलर के उदय के क्या कारण था? - hitalar ke uday ke kya kaaran tha?
सैन्य सेवा
निष्ठा
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German Empire
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Weimar Republic
सेवा/शाखा शाही जर्मन सेना
  • बवेरियाई सेना

'Reichswehr'

सेवा काल
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1914–1920
पद Gefreiter
एकक 16th बवारियाई रिज़र्व रेजिमेंट
लड़ाइयां/युद्ध प्रथम विश्वयुद्ध
  • पश्चिमी फ्रंट
    • यप्रेस का प्रथम युद्ध
    • सोमे का युद्ध (घायल)
    • आरास का युद्ध
    • पासशेनडेले का युद्ध

एडोल्फ़ हिटलर (20 April 1889 – 30 April 1945) एक जर्मन शासक थे । वे "राष्ट्रीय समाजवादी जर्मन कामगार पार्टी" (NSDAP) के नेता थे। इस पार्टी को प्रायः "नाज़ी पार्टी" के नाम से जाना जाता है। सन् 1933 से सन् 1945 तक वह जर्मनी के शासक रहा। हिटलर को द्वितीय विश्वयुद्ध के लिये सर्वाधिक जिम्मेदार माना जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध तब हुआ, जब उसके आदेश पर नात्सी सेना ने पोलैंड पर आक्रमण किया। फ्रांस और ब्रिटेन ने पोलैण्ड को सुरक्षा देने का वादा किया था और वादे के अनुसार उन दोनों ने नाज़ी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

जीवनी[संपादित करें]

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हिटलर की माँ, क्लारा

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हिटलर के पिता, अलोइस (Alois)

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आस्ट्रिया में स्थित वह घर जहाँ हिटलर का बचपन बीता था। (फोटो २०१२ ई)

अडोल्फ हिटलर का जन्म आस्ट्रिया के वॉन नामक स्थान पर 20 अप्रैल 1889 को हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा लिंज नामक स्थान पर हुई। पिता की मृत्यु के पश्चात् 17 वर्ष की अवस्था में वे वियना चले गए। कला विद्यालय में प्रविष्ट होने में असफल होकर वे पोस्टकार्डों पर चित्र बनाकर अपना निर्वाह करने लगे। जब प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ तो वे सेना में भर्ती हो गए और फ्राँस में कई लड़ाइयों में उन्होंने भाग लिया। 1918 ई॰ में युद्ध में घायल होने के कारण वे अस्पताल में रहे। जर्मनी की पराजय का उनको बहुत दु:ख हुआ।

1918 ई॰ में उन्होंने नाज़ी दल की स्थापना की। इसके सदस्यों में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा था। इस दल ने यहूदियों को प्रथम विश्वयुद्ध की हार के लिए दोषी ठहराया। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण जब नाज़ी दल के नेता हिटलर ने अपने ओजस्वी भाषणों में उसे ठीक करने का आश्वासन दिया तो अनेक जर्मन इस दल के सदस्य हो गए। हिटलर ने भूमिसुधार करने, वर्साई संधि को समाप्त करने और एक विशाल जर्मन साम्राज्य की स्थापना का लक्ष्य जनता के सामने रखा जिससे जर्मन लोग सुख से रह सकें। इस प्रकार 1922 ई. में हिटलर एक प्रभावशाली व्यक्ति हो गए। उन्होंने स्वस्तिक को अपने दल का चिह्र बनाया, समाचारपत्रों के द्वारा हिटलर ने अपने दल के सिद्धांतों का प्रचार जनता में किया। भूरे रंग की पोशाक पहने सैनिकों की टुकड़ी तैयार की गई। 1923 ई. में हिटलर ने जर्मन सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया। इसमें वे असफल रहे और जेलखाने में डाल दिए गए। वहीं उन्होंने मीन कैम्फ ("मेरा संघर्ष") नामक अपनी आत्मकथा लिखी। इसमें नाज़ी दल के सिद्धांतों का विवेचन किया। उन्होंने लिखा कि जर्मन जाति सभी जातियों से श्रेष्ठ है। उन्हें विश्व का नेतृत्व करना चाहिए। यहूदी सदा से संस्कृति में रोड़ा अटकाते आए हैं। जर्मन लोगों को साम्राज्यविस्तार का पूर्ण अधिकार है। फ्रांस और रूस से लड़कर उन्हें जीवित रहने के लिए भूमि प्राप्ति करनी चाहिए।

1930-32 में जर्मनी में बेरोज़गारी बहुत बढ़ गई। संसद् में नाज़ी दल के सदस्यों की संख्या 230 हो गई। 1932 के चुनाव में हिटलर को राष्ट्रपति के चुनाव में सफलता नहीं मिली। जर्मनी की आर्थिक दशा बिगड़ती गई और विजयी देशों ने उसे सैनिक शक्ति बढ़ाने की अनुमति की। 1933 में चांसलर बनते ही हिटलर ने जर्मन संसद् को भंग कर दिया, साम्यवादी दल को गैरकानूनी घोषित कर दिया और राष्ट्र को स्वावलंबी बनने के लिए ललकारा। हिटलर ने डॉ॰ जोज़ेफ गोयबल्स को अपना प्रचारमंत्री नियुक्त किया। नाज़ी दल के विरोधी व्यक्तियों को जेलखानों में डाल दिया गया। कार्यकारिणी और कानून बनाने की सारी शक्तियाँ हिटलर ने अपने हाथों में ले ली। 1934 में उन्होंने अपने को सर्वोच्च न्यायाधीश घोषित कर दिया। उसी वर्ष हिंडनबर्ग की मृत्यु के पश्चात् वे राष्ट्रपति भी बन बैठे। नाज़ी दल का आतंक जनजीवन के प्रत्येक क्षेत्र में छा गया। 1933 से 1938 तक लाखों यहूदियों की हत्या कर दी गई। नवयुवकों में राष्ट्रपति के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन करने की भावना भर दी गई और जर्मन जाति का भाग्य सुधारने के लिए सारी शक्ति हिटलर ने अपने हाथ में ले ली।

हिटलर ने 1933 में राष्ट्रसंघ को छोड़ दिया और भावी युद्ध को ध्यान में रखकर जर्मनी की सैन्य शक्ति बढ़ाना प्रारंभ कर दिया। प्राय: सारी जर्मन जाति को सैनिक प्रशिक्षण दिया गया।

1934 में जर्मनी और पोलैंड के बीच एक-दूसरे पर आक्रमण न करने की संधि हुई। उसी वर्ष आस्ट्रिया के नाज़ी दल ने वहाँ के चांसलर डॉलफ़स का वध कर दिया। जर्मनीं की इस आक्रामक नीति से डरकर रूस, फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया, इटली आदि देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए पारस्परिक संधियाँ कीं।

उधर हिटलर ने ब्रिटेन के साथ संधि करके अपनी जलसेना ब्रिटेन की जलसेना का 35 प्रतिशत रखने का वचन दिया। इसका उद्देश्य भावी युद्ध में ब्रिटेन को तटस्थ रखना था किंतु 1935 में ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने हिटलर की शस्त्रीकरण नीति की निंदा की। अगले वर्ष हिटलर ने बर्साई की संधि को भंग करके अपनी सेनाएँ फ्रांस के पूर्व में राइन नदी के प्रदेश पर अधिकार करने के लिए भेज दीं। 1937 में जर्मनी ने इटली से संधि की और उसी वर्ष आस्ट्रिया पर अधिकार कर लिया। हिटलर ने फिर चेकोस्लोवाकिया के उन प्रदेशों को लेने की इच्छा की जिनके अधिकतर निवासी जर्मन थे। ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने हिटलर को संतुष्ट करने के लिए म्यूनिक के समझौते से चेकोस्लोवाकिया को इन प्रदेशों को हिटलर को देने के लिए विवश किया। 1939 में हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया के शेष भाग पर भी अधिकार कर लिया। फिर हिटलर ने रूस से संधि करके पोलैड का पूर्वी भाग उसे दे दिया और पोलैंड के पश्चिमी भाग पर उसकी सेनाओं ने अधिकार कर लिया। ब्रिटेन ने पोलैंड की रक्षा के लिए अपनी सेनाएँ भेजीं। इस प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ। फ्रांस की पराजय के पश्चात् हिटलर ने मुसोलिनी से संधि करके रूम सागर पर अपना आधिपत्य स्थापित करने का विचार किया। इसके पश्चात् जर्मनी ने रूस पर आक्रमण किया। जब अमरीका द्वितीय विश्वयुद्ध में सम्मिलित हो गया तो हिटलर की सामरिक स्थिति बिगड़ने लगी। हिटलर के सैनिक अधिकारी उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे। जब रूसियों ने बर्लिन पर आक्रमण किया तो हिटलर ने 30 अप्रैल 1945, को आत्महत्या कर ली। प्रथम विश्वयुद्ध के विजेता राष्ट्रों की संकुचित नीति के कारण ही स्वाभिमानी जर्मन राष्ट्र को हिटलर के नेतृत्व में आक्रमक नीति अपनानी पड़ी।

हिटलर का उत्थान[संपादित करें]

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात जहाँ एक ओर तानाशाही प्रवृति का उदय हुआ। वहीं दूसरी ओर जर्मनी में हिटलर के नेतृत्व में नाज़ी दल की स्थापना हुई। जर्मनी के इतिहास में हिटलर का वही स्थान है जो फ्राँस में नेपोलियन बोनापार्ट का, इटली में मुसोलनी का और तुर्की में मुस्तफा कमालपाशा का। हिटलर के पदार्पण के फलस्वरुप जर्मनी का कायाकल्प हो सका। उन्होने असाधारण योग्यता, विलक्षण प्रतिभा और राजनीतिक कटुता के कारण जर्मनी गणतंत्र पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया तथा जर्मनी में हिटलर का अभ्युदय और शक्ति की प्राप्ति एकाएक नहीं हुई। उनकी शक्ति का विकास धीरे- 2 हुआ। उनका जन्म 1889 ई॰ में आस्ट्रिया के एक गाँव में हुआ था। आर्थिक कठिनाइयों के कारण उनकी शिक्षा अधूरी रह गई। वे वियेना में भवन निर्माण कला की शिक्षा लेना चाहते थे। लेकिन उसके भाग्य में तो जर्मनी का पुनर्निर्माण लिखा था। प्रथम विश्व युद्ध से ही उनका भाग्योदय होने लगा। वे जर्मन सेना में भर्ती हो गए। उन्हें बहादुरी के लिए Iron Cross की उपाधि मिली। युद्ध समाप्ति के पश्चात् उन्होंने सक्रिय राजनीति में अभिरुची लेना शुरु किया।

नाज़ीवाद[संपादित करें]

एक राजनीतिक विचारधारा जिसे जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने प्रारंभ किया था। हिटलर का मानना था कि जर्मन आर्य है और विश्व में सर्वश्रेष्ठ हैं। इसलिए उनको सारी दुनिया पर राज्य करने का अधिकार है। अपने तानाशाहीपूर्ण आचरण से उसने विश्व को द्वितीय विश्व युद्ध में झोंक दिया था। १९४५ में हिटलर के मरने के साथ ही नाज़ीवाद का अंत हो गया परन्तु ‘नाज़ीवाद’ और ‘हिटलर होना’ मानवीय क्रूरता के पर्याय बन कर आज भी भटक रहे है।

हिटलर का जन्म १८८९ में आस्ट्रिया में हुआ था। १२ वर्ष की आयु में उसके पिता का निधन हो गया था जिससे उसे आर्थिक संकटों से जूझना पड़ा। उसे चित्रकला में बहुत रूचि थी। उसने चित्रकला पढ़ने के लिए दो बार प्रयास किये परन्तु उसे प्रवेश नहीं मिल सका। बाद में उसे मजदूरी तथा घरों में पेंट करके जीवन यापन करना पड़ा। प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ होने पर वह सेना में भरती हो गया। वीरता के लिए उसे हल क्रास से सम्मानित किया गया। युद्ध समाप्त होने पर वह एक दल जर्मन लेबर पार्टी में सम्मिलित हो गया जिसमें मात्र २०-२५ लोग थे। हिटलर के भाषणों से अल्प अवधि में ही उसके सदस्यों की संख्या हजारों में पहुँच गई। पार्टी का नया नाम रखा गया ‘नेशनल सोशलिस्ट जर्मन लेबर पार्टी’। जर्मन में इसका संक्षेप में नाम है ‘नाज़ी पार्टी’। हिटलर द्वारा प्रतिपादित इसके सिद्धांत ही नाज़ीवाद कहलाते हैं।

हिटलर ने जर्मन सरकार के विरुद्ध विद्रोह का प्रयास किया। उसे बंदी बना लिया गया और ५ वर्ष की जेल हुई। जेल में उसने अपनी आत्म कथा ‘मेरा संघर्ष’ लिखी। इस पुस्तक में उसके विचार दिए हुए हैं। इस पुस्तक की लाखों प्रतियाँ शीघ्र बिक गईं जिससे उसे बहुत ख्याति मिली। उसकी नाज़ी पार्टी को पहले तो चुनावों में कम सीटें मिलीं परन्तु १९३३ तक उसने जर्मनी की सत्ता पर पूरा अधिकार कर लिया और एक छत्र तानाशाह बन गया। उसने अपने आसपास के देशों पर कब्जे करने शूरू कर दिए जिससे दूसरा विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया। वह यहूदियों से बहुत घृणा करता था। उसने उन पर बहुत अत्याचार किये, कमरों में ठूँसकर विषैली गैस से हजारों लोग मार दिए गए। ६ वर्षों के युद्ध के बाद वह हार गया और उसने अपनी प्रेमिका, जिसके साथ उसने एक-दो दिन पहले ही विवाह किया था, के साथ गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

नाज़ीवाद के उदय के कारण[संपादित करें]

प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक चला। इसमें जर्मनी हार गया। युद्ध के कारण उसकी बहुत क्षति हुई। इन सब के ऊपर ब्रिटेन, फ़्राँस आदि मित्र राष्ट्रों ने उस पर बहुत अधिक दंड लगा दिए। उसकी सेना बहुत छोटी कर दी, उसकी प्रमुख खदानों पर कब्ज़ा कर लिया तथा इतना अधिक अर्थ दंड लगा दिया कि अनेक वर्षों तक अपनी अधिकांश कमाई देने के बाद भी कर्जा कम नहीं हो रहा था। १९१४ में एक डालर = ४.२ मार्क था जो १९२१ में ६० मार्क, नवम्बर १९२२ में ७०० मार्क,जुलाई १९२३ में एक लाख ६० हजार मार्क तथा नवम्बर १९२३ में एक डालर = २५ ख़रब २० अरब मार्क के बराबर हो गया। अर्थात मार्क लगभग शून्य हो गया जिससे मंदी, मँहगाई और बेरोजगारी का अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया। उस समय चुनी हुई सरकार के लोग अपना जीवन तो ठाट-बाट से बिता रहे थे परन्तु देश की समस्याएँ कैसे हल करें, उन्हें न तो इसका ज्ञान था और न ही बहुत चिंता थी। ऐसे समय में हिटलर ने अपने ओजस्वी भाषणों से जनता को समस्याएँ हल करने का पूरा विश्वास दिलाया। इसके साथ ही उसके विशेष रूप से प्रशिक्षित कमांडों, विरोधियों को मारने तथा आतंक फ़ैलाने के काम भी कर रहे थे जिससे उसकी पार्टी को धीरे- धीरे सत्ता में भागीदारी मिलती गई और एक बार चांसलर (प्रधान मंत्री) बनने के बाद उसने सभी विरोधियों का सफाया कर दिया और संसद की सारी शक्तियाँ अपने हाथों में केन्द्रित कर लीं। उसके बाद वे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सबकुछ बन गए। उन्हें फ्यूरर कहा जाता था।

नाज़ीवाद का आधार[संपादित करें]

हिटलर से 11वर्ष पूर्व इटली के प्रधानमंत्री मुसोलिनी भी अपने फ़ासीवादी विचारों के साथ तानाशाही पूर्ण शासन चला रहे थे। दोनों विचारधाराएँ समग्र अधिकारवादी, अधिनायकवादी, उग्र सैनिकवादी, साम्राज्यवादी, शक्ति एवं प्रबल हिंसा की समर्थक, लोकतंत्र एवं उदारवाद की विरोधी, व्यक्ति की समानता, स्वतंत्रता एवं मानवीयता की पूर्ण विरोधी तथा राष्ट्रीय समाजवाद (अर्थात राष्ट्र ही सब कुछ है, व्यक्ति के सारे कर्तव्य राष्ट्रीय हित में कार्य करने में हैं) की कट्टर समर्थक हैं। ये सब समानताएं होते हुए भी जर्मनी ने अपने सिद्धांत फासीवाद से नहीं लिए। इसका विधिवत प्रतिपादन १९२० में गाटफ्रीड ने किया था जिसका विस्तृत विवरण हिटलर ने अपनी पुस्तक ‘मेरा संघर्ष’ में किया तथा १९३० में ए॰ रोज़नबर्ग ने पुनः इसकी व्याख्या की थी। इस प्रकार हिटलर के सत्ता में आने के पूर्व ही नाज़ीवाद के सिद्धांत स्पष्ट रूप से लोगों के सामने थे जबकि अपने कार्यों को सही सिद्ध करने के लिए मुसोलिनी ने सत्ता में आने के बाद अपने फ़ासीवादी सिद्धांतों को प्रतिपादित किया था। इतना ही नहीं जर्मनों की श्रेष्ठता का वर्णन अनेक विद्वान् करते आ रहे थे और १०० वर्षों से भी अधिक समय से जर्मनों के मन में अपनी श्रेष्ठता के विचार पनप रहे थे जिन्हें हिटलर ने मूर्त रूप प्रदान किया।

नाज़ीवाद के सिद्धांत[संपादित करें]

प्रजातिवाद : १८५४ में फ्रेंच लेखक गोबिनो ने १८५४ तथ 1884 में अपने निबंध ‘मानव जातियों की असमानता’ में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि विश्व की सभी प्रजातियों में गोरे आर्य या ट्यूटन नस्ल सर्वश्रेष्ठ है। १८९९ में ब्रिटिश लेखक चैम्बरलेन ने इसका अनुमोदन किया। जर्मन सम्राट कैसर विल्हेल्म द्वितीय ने देश में सभी पुस्तकालयों में इसकी पुस्तक रखवाई तथा लोगों को इसे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। अतः जर्मन स्वयं को पहले से ही सर्व श्रेष्ठ मानते थे। नाज़ीवाद में इस भावना को प्रमुख स्थान दिया गया।

हिटलर ने यह विचार रखा कि उनके अतिरिक्त अन्य गोरे लोग भी मिश्रित प्रजाति के हैं अतः जर्मन लोगों को यह नैसर्गिक अधिकार है कि वे काले एवं पीले लोगों पर शासन करें, उन्हें सभ्य बनाएं इससे हिटलर ने यह स्वयं निष्कर्ष निकाल लिया कि उसे अन्य लोगों के देशों पर अधिकार करने का हक़ है। उसने लोगों का आह्वान किया कि श्रेष्ठ जर्मन नागरिक शुद्ध रक्त की संतान उत्पन्न करें। जर्मनी में अशक्त एवं रोगी लोगों के संतान उत्पन्न करने पर रोक लगा दी गई ताकि देश में भविष्य सदैव स्वस्थ एवं शुद्ध रक्त के बच्चे ही जन्म लें।

हिटलर का मानना था कि यहूदी देश का भारी शोषण कर रहे हैं। अतः वह उनसे बहुत घृणा करता था। परिणाम स्वरूप सदियों से वहाँ रहने वाले यहूदियों को अमानवीय यातनाएं दे कर मार डाला गया और उनकी संपत्ति राजसत कर ली गई। अनेक यहूदी देश छोड़ कर भाग गए। उस भीषण त्रासदी ने यहूदियों के सामने अपना पृथक देश बनाने की चुनौती उत्पन्न कर दी जिससे इस्रायल का निर्माण हुआ।

राज्य सम्बन्धी विचार : नाज़ीवाद में राज्य को साधन के रूप में स्वीकार किया गया है जिसके माध्यम से लोग प्रगति करेंगे। हिटलर के मतानुसार राष्ट्रीयता पर आधारित राज्य ही शक्तिशाली बन सकता है क्योंकि उसमें नस्ल, भाषा, परंपरा, रीति-रिवाज आदि सभी सामान होने के कारण लोगों में सुदृढ़ एकता और सहयोग की भावना होती है जो विभिन्न भाषा, धर्म एवं प्रजाति के लोगों में होना संभव नहीं है। हिटलर ने सभी जर्मनों को एक करने के लिए अपने पड़ोसी देशों आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया आदि के जर्मन बहुल इलाकों को उन देशों पर दबाव डाल कर जर्मनी में मिला लिया तथा बाद में उनके पूरे देश पर ही कब्ज़ा कर लिया। अनेक देशों पर कब्ज़ा करने को नाजियों ने इसलिए आवश्यक बताया कि सर्वश्रेष्ठ होते हुए भी जर्मनों के पास भूमि एवं संसाधन बहुत कम हैं जबकि उनकी आबादी बढ़ रही है। समुचित जीवन निर्वाह के लिए अन्य देशों पर अधिकार करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है। इसलिए हिटलर एक के बाद दूसरे देश पर कब्जे करता चला गया।

जर्मनी में राज्य का अर्थ था हिटलर। वह देश, शासन, धर्म सभी का प्रमुख था। हिटलर को सच्चा देवदूत कहा जाता था। बच्चों को पाठशाला में पढ़ाया जाता था – “ हमारे नेता एडोल्फ़ हिटलर, हम सब आप से प्रेम करते हैं, आपके लिए प्रार्थना करते हैं, हम आपका भाषण सुनना चाहते हैं। हम आपके लिए कार्य करना चाहते हैं।” हिटलर ने अपने कमांडों के द्वारा आतंक का वातावरण पहले ही निर्मित कर दिया था। उसे जैसे ही सत्ता में भागीदारी मिली, उसने सर्व प्रथम विपक्षी दलों का सफाया कर दिया। एक राष्ट्र, एक दल, एक नेता का सिद्धांत उसने बड़ी क्रूरता पूर्वक लागू किया था। उसके विरोध का अर्थ था मृत्यु।

नाज़ीवाद के उदय के कारण[संपादित करें]

व्यक्ति का स्थान : नाज़ी कान्त तथा फिख्टे के इस विचार को मानते थे कि व्यक्ति के लिए सच्ची स्वतंत्रता इस बात में निहित है कि वह राष्ट्र के कल्याण के लिए कार्य करे। उनका कहना था कि एक जर्मन तब तक स्वतन्त्र नहीं हो सकता जब तक जर्मनी राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र न हो जो उस समय वह वार्साय संधि की शर्तों के अनुसार नहीं था। नाजियों का एक ही नारा था कि व्यक्ति कुछ नहीं है, राष्ट्र सब कुछ है। अतः व्यक्ति को अपने सभी हित राष्ट्र के लिए बलिदान कर देने चाहिए। मित्र देशों के चंगुल से जर्मनी को मुक्त करने के लिए उस समय यह भावना आवश्यक भी थी। परन्तु नाजियों ने इसका विस्तार जीवन के सभी क्षेत्रों – शिक्षा, धर्म, साहित्य, संस्कृति, कलाओं, विज्ञान, मनोरंजन,अर्थ-व्यवस्था आदि सभी क्षेत्रों में कर दिया था। इससे सभी नागरिक नाज़ियो के हाथ के कठपुतले से बन गए थे।

बुद्धिवाद का विरोध : शापेनहार, नीत्शे, जेम्स, सोरेल, परेतो जैसे अनेक दार्शनिकों ने बुद्धिवाद के स्थान पर लोगों की सहज बुद्धि (इंस्टिंक्ट), इच्छा शक्ति,और अंतर दृष्टि (इंट्यूशन)को उच्च स्थान दिया था। नाज़ी भी इसी विचार को मानते थे कि व्यक्ति अपनी बुद्धि से नहीं भावनाओं से कार्य करता है। इसलिए अधिकांश पढ़े-लिखे और सुशिक्षित व्यक्ति भी मूर्ख होते हैं। उनमें निष्पक्ष विचार करने की क्षमता नहीं होती है। वे अपने मामलों में भी बुद्धि पूर्वक विचार नहीं करते हैं। वे भावनाओं तथा पूर्व निर्मित अवधारणाओं के अधर पर कार्य करते हैं। इसलिए जनता को यदि अपने अनुकूल कर लिया जाये तो उस्से बड़े से बड़े झूठ को भी सत्य मनवाया जा सकता है। बुद्धि का उपयोग करके लोग परस्पर असहमति तो बढ़ा सकते हैं परन्तु किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते हैं। अतः बुद्धिमानों को साथ लेकर एक सफल एवं शक्ति शाली संगठन नहीं बनाया जा सकता है। शक्ति शाली राष्ट्र निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को बुद्धमान बनाने के स्थान पर उत्तम नागरिक बनाया जाना चाहिए। उनके लिए तर्क एवं दर्शन के स्थान पर शारीरिक, नैतिक एवं औद्योगिक शिक्षा देनी चाहिए। उच्च शिक्षा केवल प्रजातीय दृष्टि से शुद्ध जर्मनों को ही दी जानी चाहिए जो राष्ट्र के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हों। नेताओं को भी उतना ही बुद्धिवादी होना चाहिए कि वह जनता की मूर्खता से लाभ उठा सके और अपने कार्य क्रम बना सकें। अबुद्धिवाद से नाज़ियों ने अनेक महत्वपूर्ण परिणाम निकाले और अपनी पृथक राजनीतिक विचारधारा स्थापित की।

लोकतंत्र विरोधी : प्लेटो की भांति हिटलर भी लोकतंत्र का आलोचक था। उसके अनुसार अधिकांश व्यक्ति बुद्धि शून्य, मूर्ख, कायर और निकम्मे होते हैं जो अपना हित नहीं सोच सकते हैं। ऐसे लोगों का शासन कुछ भद्र लोगों द्वारा ही चलाया जाना चाहिए।

साम्यवाद विरोधी : साम्यवाद मानता है कि अर्थ या धन ही सभी कार्यों का प्रेरणा स्रोत है। धन के लिए ही व्यक्ति कार्य करता है और उसी के अनुसार सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्थाएं निर्मित होती हैं। परन्तु अधिकांश व्यक्ति बुद्धिहीन होने के कारण अपना हित सोचने में असमर्थ होते हैं। उनके अनुसार साम्यवाद वर्तमान से भी बुरे शोषण को जन्म देगा।

अंध श्रद्धा (सोशल मिथ) : सोरेल की भांति हिटलर भी यही मानता था कि व्यक्ति बुद्धि और विवेक के स्थान पर अंध श्रद्धा से कार्य करता है। यह अंध श्रद्धा लोगों को राष्ट्र के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने के लिए प्रोत्साहित कर सके। नाज़ियों ने जर्मन लोगों में अनेक प्रकार की अंध श्रद्धाएँ उत्पन्न कीं और उन्हें राष्ट्र निर्माण में तत्पर कर दिया।

शक्ति और हिंसा का सिद्धांत : नाज़ियों ने लोगो में अन्द्ध श्रद्धा उत्पन्न कर दी कि जो लड़ना नहीं चाहता उसे इस दुनियां में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। इस सिद्धांत को प्रतिपादित करना हिटलर की मजबूरी भी थी क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुई वार्साय की संधि में उस पर जो दंड एवं प्रतिबन्ध लगे थे, वार्ता द्वारा उससे बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं था। उन परिस्थितियों में युद्ध ही एक मात्र रास्ता था और उसके लिए सभी जर्मन वासियों का सहयोग आवश्यक था। इसलिए लोगों ने उसे सहयोग भी दिया।

अर्थव्यवस्था: वह साम्यवाद का विरोधी था इसलिए जर्मनी के पूंजीपतियों ने उसे पूरा सहयोग दिया। परन्तु उसका पूंजीवाद स्वच्छंद नहीं था, उसे मनमानी लूट और धन अर्जन का अधिकार नहीं था। वह उसी सीमा तक मान्य था जो नाज़ियों के सिद्धांत और जर्मन राष्ट्र के हित के अनुकूल हो।

उसने उत्पादन बढ़ने के लिए सभी तरह के आंदोलनों, प्रदर्शनों और हड़तालों पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। सभी वर्गों के संगठन बना दिए गए थे जो विवाद होने पर न्यायोचित समाधान निकाल लेते थे ताकि किसी का भी अनावश्यक शोषण न हो। अधिक रोजगार देने के लिए उसने पहले एक परिवार एक नौकरी का सिद्धांत लागू किया, फिर अधिक वेतन वाले पदों का वेतन घटा कर एक के स्थान पर दो व्यक्तियों को रोजगार दिया। इस प्रकार उसने दो वर्षों में ही अधिकांश लोगों, जिनकी संख्या लाखों में थी, को रोजगार उपलब्ध कराये। इससे शिक्षा, व्यवसाय, कृषि, उद्योग, विज्ञान, निर्माण आदि सभी क्षेत्रों में जर्मनी ने अभूतपूर्ण उन्नति कर ली। १९३३ से लेकर १९३९ तक छः वर्षों में उसकी प्रगति का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जिस जर्मनी का कोष रिक्त हो चुका था, देश पर अरबों पौंड का कर्जा था, प्राकृतिक संसाधनों पर मित्र देशों ने कब्ज़ा कर लिया था और उसकी सेना नगण्य रह गई थी, वही जर्मनी विश्व के बड़े राष्ट्रों के विरुद्ध एक साथ आक्रमण करने की स्थिति में था, सभी देशों में हिटलर का आतंक व्याप्त था और वह इंग्लैंड, रूस तक अपने देश में बने विमानों से जर्मनी में ही निर्मित बड़े-बड़े बम गिरा रहा था। मात्र छः वर्षों में उसने इतना धन एवं शक्ति अर्जित कर ली थी जो अनेक वर्षों में भी संभव नहीं थी।

स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने के कारण हिटलर युद्ध हार गया, उसने आत्म हत्या कर ली। पराजित हुआ व्यक्ति ही इतिहास में गलत माना जाता है अतः द्वितीय विश्वयुद्ध की सभी गलतियों के लिए हिटलर और मुसोलिनी उत्तरदायी ठहराए गए और आज भी सभी राजनीतिक विद्रूपताओं के लिए ‘हिटलर होना’, ‘फासीवादी होना’ मुहावरे बन गए हैं।

चांसलर बनना[संपादित करें]

बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर उन्हे चांसलर बनने के लिए आमंत्रित किया गया। सन् 1933 में उन्होंने इस पद को स्वीकार कर लिया। 1934 में उन्होने राष्ट्रपति और चांसलर के पद को मिलाकर एक कर दिया। और उन्होंने राष्ट्र नायक की उपाधि धारण की। इस प्रकार उनके हाथों में समस्त सत्ता केंद्रित हो गई। इस तरह अपनी विशिष्ट योग्यता के बल पर निरंतर प्रगति करता गया। और विश्व में महान व्यक्ति के रूप में उभर कर सामने आया। हिटलर तथा उनकी पार्टी के उत्थान के निम्नलिखित कारण थे जो इस प्रकार है।

वर्साय की संधि[संपादित करें]

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात यूरोप राष्ट्रों ने वर्साय की संधि की। जिसका प्रमुख उद्देश्य जर्मनी को कुचलना था। इसके द्वारा जर्मनी को आर्थिक राजनीतिक तथा अंतराष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से पुर्णत: पंगु बना दिया गया। वस्तुत: वर्साय की संधि जर्मनी की सारी तकलीफों की जड़ थी। जर्मन निवासी अपने प्राचीन गौरव को पुन: प्राप्त करना चाहते थे। और वह एक ऐसे नेता की तलाश में थे जो उनके राष्ट्र कलंक को मिटाकर जर्मनी के गौरव का पुर्ण उत्थान कर सके। हिटलर के व्यक्तित्व में उन्हें ऐसा नेता की तस्वीर दिखाई दी। उन्हें यह विश्वास हो गया की हिटलर के नेतृत्व में ही जर्मनी का उत्थान संभव है। हिटलर ने वर्साय की संधि की आलोचना करनी शुरु कर दी और लोगों के हृदय में इसके प्रति नफरत पैदा कर दी। उन्होंने जर्मन जाति को एक राजनीतिक सूत्र में बाँध कर लोगों के समक्ष जर्मन निर्माण का प्रस्ताव रखा। वे भाषण देने की कला में प्रवीण थे उनकी वाणी जादू का काम करती थी। यह कहा जा सकता है कि हिटलर ने अपनी जुबान की ताकत से जर्मनी की सत्ता हथिया ली।

जातीय परम्परा

जर्मन जाति की निजी परंपरा और प्रकृति ने भी हिटलर के उत्थान में सहयोग प्रदान किया। जर्मन स्वभावत: वीर और अनुशासन प्रिय होते हैं। अत: उन्होंने हिटलर के अधिनायकवाद को स्वीकार कर लिया। हिटलर ने जनता के समक्ष कोई नवीन कार्यक्रम नहीं रखा उन्होने वहीं किया जो व्हीगल, कॉन्ट और किक्टे आदि कर चुके थे। उनकी विचारधारा संपूर्ण जर्मन विचारधारा का निचोड़ थी इसलिए जनता ने उन्हें स्वीकार कर लिया।

आर्थिक संकट

जर्मनी में आर्थिक संकट के चलते भी हिटलर का उत्थान हुआ। वर्साय की संधि के फलस्वरुप जर्मनी की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी। हिटलर ने जनता को पूँजीपतियों और यहुदियों के खिलाफ भड़काना शुरु किया। 1930 में जर्मनी ने 50 लाख से अधिक व्यक्ति बेकार हो गए थे। वे सभी हिटलर के समर्थक बन गए। अत: यह कहा जा सकता है कि आर्थिक संकट के चलते हिटलर तथा उसकी पार्टी को काफी सफलता मिली।

यहूदी विरोधी भावना

इस समय संपूर्ण जर्मनी में यहुदियों के खिलाफ असंतोष फैला हुआ था। जर्मनी की पराजय के लिए यहुदियों को ही उत्तरदायी ठहराया जा रहा था। हिटलर इसे भली- भांती जानता था। जनता की कद्र करते हुए उन्होंने यहुदियों को देश से निकालने की घोषणा की। हिटलर की इस घोषणा से जनता ने इसका साथ देना शुरु किया।

साम्यवाद का विरोध

हिटलर के उदय का एक महत्वपूर्ण कारण साम्यवाद का विरोध भी था। हिटलर ने साम्यवादियों के खिलाफ नारा बुलंद किया और जनता का दिल जीत लिया। इस समय पूँजीपति, जमींदार, पादरी सभी साम्यवाद के बढ़ते हुए प्रभाव से आतंकित था। वे जर्मनी को साम्यवाद के चंगुल से मुक्त कराना चाहते थे। इसलिए हिटलर ने साम्यवाद की तीखी आलोचना की और इसके विकल्प में राष्ट्रीय समाजवाद का नारा बुलंद किया जो नाज़ी दल का दूसरा रूप था।

संसदीय परंपरा का अभाव

वहाँ के संसदीय शासन में दुगुर्णों के चलते भी जनता में काफी असंतोष था। वे इस व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे। जब राजनीतिक व्यवस्था में लोगों का विश्वास घट जाता है तो तानाशाही के लिए रास्ता साफ हो जाता है जर्मन के साथ भी यही बात हुई। संसदीय शासन प्रणाली में जब उनका विश्वास समाप्त हो गया तो उन्होंने हिटलर का साथ देना शुरु किया।

जर्मनी जनता की प्रवृति

जर्मनी जनता की अभिरुचि सैनिक जीवन में थी। वे स्वभाव से वीर और सैनिक प्रवृत्ति के थे परन्तु वर्साय की संधि के द्वारा वहाँ की सैनिक संख्या घटा दी गई थी। फलत: काफी संख्या में लोग बेरोजगार हो चुके थे। हिटलर तथा उनकी पार्टी के सदस्य जनता की स्थिति से भली भांति परिचित थे। अत: जब उन्होंने स्वंयसेवक सेना का गठन किया तो भारी संख्या में युवक उसमें भर्ती होने लगे। इससे बेकारी की समस्या का भी समाधान हुआ और हिटलर को उत्थान करने का मौका मिला।

हिटलर का व्यक्तित्व[संपादित करें]

उपर्युक्त सभी कारणों के अतिरिक्त हिटलर के अभ्युदय का महत्वपूर्ण कारण स्वयं उनका प्रभावशाली एवं आकर्षक व्यक्तित्व था वे उच्च कोटी के वक्ता थे। वे भाषण की कला में निपुण थे। उनकी वाणी जादू का काम करती थी और जनता का दिल जीत लेती थी। आधुनिक युग में प्रचार का काफी महत्व है। प्रचार वह शक्ति है जो झूठ को सच और सच को झूठ बना सकती है। संयोगवश हिटलर को एक महान प्रचारक मिल गया था। जिसका नाम था गोबुल्स उनका सिद्धांत था कि झूठी बातों को इतना दुहराओं कि वह सत्य बन जाए। इस तरह उनकी सहायता से जनता का दिल जीतना हिटलर के लिए आसान हो गया। इस तरह हम देखते हैं कि हिटलर और उनकी पार्टी के अभ्युदय के अनेक कारण थे। जिनमें हिटलर का व्यक्तित्व एक महत्वपूर्ण कारण था और अपने व्यक्तित्व का उपयोग कर उन्होंने वर्साय संधि की त्रुटियों से जनता को अवगत कराया उन्हें अपना समर्थक बना लिया। यह ठीक है कि युद्धोतर जर्मन आर्थिक दृष्टि से बिल्कुल पंगु हो गया था, वहाँ बेकारी और भुखमरी आ गई थी परन्तु हिटलर एक दूरदर्शी राजनितिज्ञ था। और उसने परिस्थिति से लाभ उठाकर राजसत्ता पर अधिपत्य कायम कर लिया।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

छबियाँ एवं विडियो
  • Color Footage of Hitler during WWII
  • Photos of Adolf Hitler
  • Download "The Young Hitler I Knew" on archive.org
भाषण एवं प्रकाशन
  • A speech from 1932 (text and audiofile), German Museum of History Berlin
  • Hitler Speech (10 फ़रवरी 1933) with English Translation
  • Hitler's book Mein Kampf (full English translation)
  • Adolf Hitler's Private Will, Marriage Certificate and Political Testament, April 1945 (34 pages)
  • "The Discovery of Hitler's Wills" Office of Strategic Services report on how the testament was found
  • The Testament of Adolf Hitler the Bormann-Hitler documents (transcripts of conversations in February–2 अप्रैल 1945)

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Evans 2003, पृ॰ 180.