गुरु और चेला कविता का सारांश एक थे गुरु और एक था उनका चेला। एक दिन बिना पैसे के वे घूमने निकल पड़े। चलते-चलते वे एक नगर में पहुँच गए। वहाँ उन्हें एक ग्वालिन मिली। उसने उन्हें बताया कि यह अंधेर नगरी है और इसका राजा बिल्कुल मूर्ख (अनबूझ) है। इस नगरी में सभी चीजों का दाम एक टका है। गुरुजी ने सोचा ऐसी नगरी में रहना ठीक नहीं है। अतः उन्होंने अपने चेले से वहाँ से चलने को कहा। चेले ने बात नहीं मानी।
गुरुजी चले गए परन्तु चेला उसी नगरी में रह गया। एक दिन चेला बाजार में गया। वहाँ उसने देखा कि सभी चीजें टके सेर मिल रही हैं। चाहे वह खीरा हो या रबड़ी मलाई। चेले को सब कुछ अजीब लग रहा था। उस साल बरसात में खूब बारिश हुई। नतीजा यह हुआ कि राज्य की एक दीवार गिर गई। राजा ने संतरी को फौरन बुलाया और उससे दीवार गिरने का कारण पूछा। संतरी ने कारीगर को दोषी ठहराया। फिर कारीगर को बुलाया गया। उसने भिश्ती को दोषी ठहराया क्योंकि उसने गारा गीला कर दिया। भिश्ती ने मशकवाले पर दोष मढ़ा जिसने ज्यादा पानी
की मशक बना दी थी। मशकवाले ने मंत्री को दोषी बताया क्योंकि उसी ने बड़े जानवर का चमड़ा दिलवाया था। फौरन मंत्री को बुलाया गया। वह अपने बचाव में कुछ न कह सका। अतः जल्लाद उसे फाँसी पर चढ़ाने चला। मगरे मंत्री इतना दुबला था कि उसकी गर्दन में फाँसी का फंदा आया ही नहीं। राजा ने आदेश दिया कि कोई मोटी गर्दन वाले को पकड़ लाओ और उसे फाँसी पर चढ़ा दो। संतरी मोटी गर्दन वाले की खोज में निकल पड़े। अचानक उन्हें चेला दिख गया। उसकी गर्दन मोटी थी। उन्होंने चेले को पकड़कर राजा के सामने प्रस्तुत किया। राजा ने उसे फाँसी पर चढ़ा देने का आदेश दे दिया। बेचारा चेला कठिन परिस्थिति में फँस गया। मगर वह चालाक था। उसने कहा कि फाँसी पर चढ़ाने से पहले मुझे मेरे गुरुजी का दर्शन कराओ। गुरुजी को बुलाया गया। उन्होंने चेले के कान में कुछ मंत्र गुनगुनाया। फिर गुरु-चेला आपस में झगड़ने लगे। गुरु कहता था मैं फाँसी पर चढ़ेगा और चेला कहता था कि मैं। राजा कुछ देर तक उनका झगड़ा देखता रहा। फिर उसने उन दोनों को अपने पास बुलाया और झगड़ा का कारण पूछा तो गुरु ने कहा कि यह बहुत ही शुभ मुहूर्त है। इस मुहूर्त में जो फाँसी पर चढ़ेगा वह रोजा नहीं बल्कि चक्रवर्ती बनेगा। पूरे संसार का छत्र उसके सिर चढ़ेगा। मूर्ख राजा बोल पड़ा-यदि ऐसी बात है तो मैं फाँसी पर चढ़ेगा। राजा को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। इधर प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई। आखिरकार उन्हें ऐसे मूर्ख राजा से मुक्ति मिल गई। काव्यांशों की व्याख्या 1. गुरु एक थे और था एक चेला, 2. कहा बढ़के ग्वालिनने महाराज पंडित, 3. गुरु ने कहा किंतु चेला न माना, 4. टके सेर मिलती है रबड़ी मलाई, 5. गिरी राज्य की एक दीवार भारी, 6. खता कारीगर की महाराज साहब, 7. यह भिश्ती की गलती यह उसकी शरारत, 8. मशक वाला आया, हुई कुछ न देरी, 9. है मंत्री की गलती तो मंत्री को लाओ, 10. चले संतरी ढूँढ़ने मोटी गर्दन, 11. यह मोटी है गर्दन, इसे तुम बढ़ाओ, 12. गुरुजी बुलाए गए झट वहाँ पर, 13. हटाए न हटते अड़े ऐसे दोनों, 14. कहा राजा ने बात सच गर यही Class 5 Hindi Notesगुरु और चेला चलते चलते कौन सी नगरी में पहुँच गए?एक दिन बिना पैसे के वे घूमने निकल पड़े। चलते-चलते वे एक नगर में पहुँच गए। वहाँ उन्हें एक ग्वालिन मिली। उसने उन्हें बताया कि यह अंधेर नगरी है और इसका राजा बिल्कुल मूर्ख (अनबूझ) है।
गुरु और चेला कविता में अंत में फांसी पर कौन चढ़ा था?Answer: मंत्री की गर्दन पतली होने के कारण राजा किसी मोटे व्यक्ति को उसके स्थान पर फाँसी पर चढ़ाने का हुक्म देता है। चेला उस राज्य में खूब खाकर-पीकर मोटा हो जाता है। मोटे होने के कारण राजा उसे ही फाँसी पर चढ़ाने का हुक्म देता है।
गुरु और चेला कविता में कौन कौन सी चीजें टके सेर मिल रही थी?टके सेर मिलती थी रबड़ी मलाई, बहुत रोज़ उसने मलाई उड़ाई । सुनो और आगे का फिर हाल ताज़ा । थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा ।
अंधेर नगरी में रुकना गुरुजी ने ठीक क्यों नहीं समझा?उत्तर - अंधेरी नगरी में रुकना गुरुजी ने इसलिए ठीक नहीं समझा क्योंकि ऐसी नगरी में किसी भी पल कोई भी मुसीबत आ सकती है !
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