फ्रांस में गणतन्त्र की घोषणा कब हुई - phraans mein ganatantr kee ghoshana kab huee

कन्वेन्शन अथवा सम्मेलन तीसरी क्रांतिकारी सभा थी, जिसने 20 सितंबर, 1792 से 26 अक्टूबर, 1795 तक शासन चलाया। उसने अपने शासनकाल में देश में एक गणराज्य स्थापित किया। एक स्थायी सरकार का संगठन किया और देश को छिन्न – भिन्न होने से बचाया और देश की स्वतंत्रता की रक्षा की, परंतु उसके शासनकाल में अत्याचार और निर्दयता का ऐसा अमानवीय दौर भी चला, जिससे गणतंत्र की सफलताओं पर काला धब्बा लग गया।

गणराज्य की घोषणा

21 सितंबर, 1792 को बिना किसी धूमधाम के कन्वेन्शन ने एक प्रस्ताव पास करके फ्रांस के राजतंत्र की समाप्ति और गणराज्य की स्थापना की घोषणा कर दी, तुरंत ही संविधान बनाने के लिये समिति गठित कर दी गयी, परंतु जिरोंदीस्त और जैकोबिन दलों के आपसी संघर्ष के लिये समिति गठित कर दी गई, परंतु जिरोंदीस्त और जैकोबिन दलों के आपसी संघर्ष के कारण लंबे समय तक समिति अपना कार्य भी शुरू न कर पाई। देश की भावी सरकार में पेरिस का क्या स्थान होगा, इसी प्रश्न पर मतभेद उठ खङा हुआ था। जिरोंदीस्त फ्रांस के 83 जिलों के प्रतिनिधि थे, अतः वे पेरिस को उसी अनुपात में हिस्सा देना चाहते थे, जबकि जैकोबिन जिनकी शक्ति का मूल स्त्रोत पेरिस थी, भावी व्यवस्था में पेरिस का वर्चस्व कायम करना चाहते थे। इसके अलावा एक व्यक्तिगत कारण भी था। जिरोंदीस्तो को जैकोबिन के तीन प्रमुख नेताओं – रोबस्पियर, मारा और दांतो से सख्त घृणा थी। जैकोबिन नेताओं को जिरोंदीस्तो से घृणा थी। झगङे का मूल कारण लुई सोलहवें के भावी भविष्य को लेकर शुरू हुआ और दोनों दलों में प्राणघातक संघर्ष शुरू हो गया।

राजा का वध

जैकोबिन दल लुई सोलहवें को क्रांति का सबसे बङा शत्रु मानता था और उसने माँग की कि राजा को तुरंत बिना अभियोग चलाए ही मृत्युदंड दे दिया जाय, किन्तु अन्य लोगों ने इसका विरोध किया अंत में उस पर मुकदमा चलाया गया और कन्वेन्शन ने राजा के विरुद्ध प्रस्ताव पारित कर दिया। इसके बाद राजा को मृत्युदंड दिया या नहीं, इस पर मतदान हुआ। कुल 721 सदस्यों ने मतदान में भाग लिया। 387 ने मृत्युदंड के पक्ष में और 334 ने विरोध में मतदान किया। 21 जुलाई, 1793 को लुई सोलहवें को सूली पर चढा दिया गया। राजा के वध में मतदान किया। राजा के वध के परिणाम बुरे निकले। क्रांति की क्रूरता ने इंग्लैण्ड, रूस, स्पेन, हालैण्ड और जर्मनी के राज्यों तथा इटली को फ्रांस का शत्रु बना दिया और ये सभी देश फ्रांस के विरुद्ध चल रहे युद्ध में आस्ट्रिया और प्रशिया के साथ हो गये। इस प्रकार, क्रांतिकारी फ्रांस के विरुद्ध प्रथम यूरोपीय गुट अस्तित्व में आ गया। फ्रांस में भी गृह युद्ध की ज्वाला धधक उठी। बाँदे के एक लाख किसानों ने गणतंत्र के विरुद्ध विद्रोह का झंडा फहरा दिया।

जिरोंदीस्त दल का सफाया

जिरोंदीस्त दल सितंबर हत्याकाण्ड के लिये उत्तरदायी लोगों को सजा दिलवाना चाहता था। सितंबर हत्याकाण्ड के लिये जैकोबिन नेता मारा को उत्तरदायी ठहराया गया। जिरोंदीस्त ने कन्वेन्शन में प्रस्ताव पास करके मारा को क्रांति अधिकरण के सामने भिजवा दिया, परंतु अधिकरण ने मारा को मुक्त कर दिया। अब पेरिस की कम्यून ने जिरोंदीस्तों के विरुद्ध कार्यवाही की। उसकी विशाल भीङ ने कन्वेन्शन भवन को घेर लिया और कन्वेन्शन भवन से माँग की कि जिरोंदीस्त नेताओं को निकाल दिया जाय। असहाय और विवश कन्वेन्शन को तीस जिरोंदीस्त नेताओं की गिरफ्तारी का प्रस्ताव पास करना पङा। परिणाम यह निकला कि फ्रांस के जिलों के लोगों ने सरकार के विरुद्ध हथियार उठा लिये। इस प्रकार गृह युद्ध का कार्यक्षेत्र व्यापक हो गया।

1793 का संविधान

गृह युद्ध से कन्वेन्शन परेशानी में पङ गया। उस पर पेरिस की कम्यून का कोई प्रभाव नहीं है, उसने जल्दी से एक नया संविधान बना डाला, जो 1793 के संविधान के नाम से प्रसिद्ध हुआ। नए संविधान में प्रांतों के अधिकारों तथा जनता के अधिकारों को सुरक्षित रखने की ऐसी व्यवस्था की गई, जिससे भविष्य में पेरिस के लिये अपना वर्चस्व कायम करना असंभव हो गया। नए संविधान में सार्वभौम मताधिकार की व्यवस्था की गई तथा शासन के विकेन्द्रीकरण को और अधिक बढा दिया गया। व्यवस्थापिका की अवधि केवल एक वर्ष रखी गयी और व्यवस्थापिका द्वारा पारित प्रत्येक कानून को जनमत के सामने रखने और जनमत की स्वीकृति के बाद लागू का प्रावधान रखा गया।

अस्थायी सरकार की स्थापना

देश को विपत्तियों से मुक्त कराने के लिये कन्वेन्शन की देखरेख में एक अस्थायी सरकार की स्थापना की गयी जो इतनी निरंकुश और अत्याचारी सिद्ध हुई कि बोर्बों राजाओं की सरकार भी उसके सामने कुछ न थी। अस्थायी सरकार में दो महत्त्वपूर्ण समितियाँ थी। एक जनरक्षा समिति और सेना का प्रबंध सौंपा गया था, परंतु धीरे-धीरे वह शासन का सर्वोच्च शक्तिशाली अंग बन गई और इतने अधिक अत्याचार किए कि गिनती करना असंभव है, परंतु उसने फ्रांस की सेनाओं का पुनर्गठन किया और फ्रांसीसी सेनाएँ शत्रुओं को रोकने में कामयाब रही।

जनरक्षा समिति और सामान्य सुरक्षा समिति ने मिलकर फ्रांस के नगरों – लियोंस तथा बाँदे के विद्रोहों का क्रूरता के साथ दमन किया। पेरिस के दो सार्वजनिक चौकों में गिलोटीन खङे किए गये और वहां प्रतिदिन अनेक लोगों का वध किया जाता रहा। 31 अक्टूबर, 1793 को इक्कीस जिरोंदीस्त नेताओं को भी गिलोटीन पर चढाया गया। मदाम रोलां भी उनमें से एक थी। इससे कुछ दिनों पहले 16 अक्टूबर को रानी को सूली पर चढाया गया था।

  • आतंक का राज्य (रॉब्सपियर)
  • 1795 का संविधान
  • डाइरेक्टरी का शासन
फ्रांस में गणतन्त्र की घोषणा कब हुई - phraans mein ganatantr kee ghoshana kab huee
1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

फ्रांस में गणतंत्र की घोषणा कब की?

नवनिर्वाचित असेंबली को कन्वेंशन का नाम दिया गया। 21 सितंबर 1792 को इसने राजतंत्र का अंत कर दिया और फ़्रांस को एक गणतंत्र घोषित किया।

फ्रांस में तृतीय गणराज्य की स्थापना कब हुई?

तृतीय फ्रांसीसी गणतंत्र (The French Third Republic ; फ्रांसीसी: La Troisième République) ने फ्रांस पर १८७० से लेकर १९४० तक शासन किया। इसकी स्थापना फ्रांस-प्रशा युद्ध के समय द्वितीय फ्रांसीसी साम्राज्य के समाप्त होने पर हुई तथा १९४० में नाजी जर्मनी द्वारा फ्रांस को पराजित करने के साथ इसका अन्त हुआ। 1870 ई.

फ्रांस में तृतीय गणतंत्र का प्रधान कौन था?

फ्रांस और जर्मनी के बीच लगभग 13 महीने तक चलनेवाली लड़ाई (1870-1871) फ्रांसीसी जर्मन युद्ध कहलाती है जिसके परिणाम फ्रांस की पराजय, नेपोलियन राजवंश की सत्ता का अंत तथा तृतीय गणतंत्र की स्थापना और प्रशा के नेतृत्व में एकीकृत जर्मन राज्य के उदय के रूप में हुए। .

3 फ्रांस में मारियान के स्वतंत्रता और गणतंत्र के चिन्ह क्या थे?

मारीआन- इसने जन राष्ट्रीय के विचारों को रेखांकित किया। उसके चिह्न भी स्वतंत्रता और गणतंत्र के थे-लाल टोपी, तिरंगा और कलगी। मारीआन की प्रतिमाएँ चौकों पर लगाई गई ताकि जनता को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे और लोगों मरियान की छवि डाक टिकटों पर अंकित की गई।