एक पिता का कर्तव्य क्या है? - ek pita ka kartavy kya hai?

        पिता का कर्तव्य क्या होना चाहिए ?

एक प्रौढ़ और दुनिया की निगाह में सफल व्यक्ति के इस  तरह के प्रश्न पूछे जाने पर हमे ताज्जुब हुआ था ।

खुद एक शक्ति शाली और सभी क्षेत्र मे सफल होकर भी उन्होने  अपने परिवार को काफी वक्त दिया था । अच्छे स्कूल ही नहीं ,बच्चो को अच्छी परवरिस भी किया ,और बच्चो ने उनकी अभिलाषा भी पूरी की ।

फिर उनके जेहन मे यह प्रश्न आया क्यो ? शायद “बहुजन हिताय”। वाकई यह एक गहन परिचर्चा का विषय बनता है।

   वेदो का उदघोष है  ‘मनुरभव; अर्थात मनुष्य बनो ।

भारतीय संस्कृति मे सोलह संस्कारो का जो विधि विधान है ,उनका मनोवैज्ञानिक प्रभाव मनुष्य को सन्मार्गगामी बनने की प्रेरणा देना है । इसलिए यहा विधिवत विवाह का प्रावधान किया गया है ,एवं विवाह का उद्देश्य ही संतानोत्पति रखा गया है । माता पिता को सुसंसकारी होना चाहिए , गर्भ एक कौतुक नहीं बल्कि एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है ,उसे समझा जाए और गर्भ के माध्यम से जो जीव धरती पर आने को उत्सुक है ,उसे ईश्वर का प्रतिनिधि मान कर उसके स्वागत की तैयारी करनी चाहिए ।

मनुष्य के सोलह संस्कारों मे पनदरह तो उसके माता पिता ही सम्पन्न कराते हैं । प्रत्येक संस्कार मनुष्य को एक पूर्ण मानव बनने की प्रेरणा देता है ।

      शास्त्रो के मुताबिक एक कुशल एवं योग्य पिता को अपने संतान के पालन पोषण मे ज्यादा सतर्क रहना चाहिए । उसे बेहतर परिवेश मिले ,पौष्टिक आहार मिले ,उसका अन्य व्यक्ति द्वारा किसी प्रकार का शारीरिक ,आर्थिक ,मानसिक शोषण न होना चाहिए । उसके मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए उसकी शिक्षा दीक्षा का सही समय पर प्रबंध करना चाहिए ।

    कहा गया है कि ‘लालयेत पाँच वर्षानि दस वर्षानी ताडयेत ,प्रापते तू शोड़से वरखे पुत्र मित्राणी समाचरेत’ । यानि कि लालन पालन मे ताड़न का भी महत्व है । अनुशासन सीखने के लिए दंड या भय आवश्यक है ,जो बच्चे  को सही और गलत मार्ग का एहसास कराता है । जिस प्रकार एक नाजुक पौधे की रक्षा के लिए उसके इर्द गिर्द एक सुरक्षात्मक घेरा डाल दिया जाता है जिससे पशुओ,आदि से उसकी रक्षा होती है ,जब वह बड़ा होकर विशाल वृक्ष बनता है तब उसे भयंकर तूफान भी नहीं हिला सकती है {शहरो वाले पेड़ नहीं} साथ ही वह कितनों का अपने फल,फूल, छाया लकड़ी आदि के माध्यम से कितनों का सहारा भी बनता है उसी प्रकार पिता अपने बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए एक मजबूत रक्षा कवच है ।

सत्यनिष्ठा ,पवित्रता, ईमानदारी ,सच्चरित्रता ,दया ,करुणा ,क्षमा ,विनम्रता ,मैत्री , सेवा ,त्याग आदि  मानवीय  गुण मनुष्य परिवार मे ही सिखाता है ।

इस लिए पिता का कर्तव्य बहुत व्यापक हो जाता है ।सदाचार का पाठ पढाने वाला पिता ही होता है ,यदि बच्चे ज्यादा उदण्ड हों या पिता के पास कोई और मजबूरी होऔर वैसे भी ,  वह उनके लिए योग्य गुरु निर्धारित करता है जो उन्हें सही शिक्षा देकर ,सभ्य समाज मे जीने लायक बनाता है । यानि कभी भी  उन्हें  बेलगाम नहीं छोड़ता । उसके इर्द गिर्द सपनों का सुनहरा जाल बुनने वाला,स्वर्णिम भविष्य का निर्माण करने वाला पिता ही होता है ।वह क्या पढ़ रहा है ,किसके संगत मे है ,कैसी सोच विचार रख ने लगा है यह जानना पिता का अधिकार है ।

   पिता का यह भी कर्तव्य है कि  उचित उम्र प्राप्त करने पर शादी ब्याह क र के एक सद गृहस्थ के रूप मे जीवन यापन करनेकी  प्रेरणा दे । अगर पिता सही और सुंदर आचरण वाला होगा तो उसके रक्त से एक अच्छे भविष्य का ही निर्माण होगा ॥

चूंकि आज के इस परिवर्तित समाज मे बेटियो को भी बेटो के समान दर्जा हासिल है ,अत; पिता का कर्तव्य और भी ज्यादा बढ़ गया है । सिर्फ नसीहत से नहीं बल्कि आचरण से उन्हे बताना होगा कि जीवन का लक्ष्य ‘असतो मा सदगमय ,होना चाहिए ।

वैदिक वांगमय ,पुराणो मे ऐसे अनेक प्रसंग ,किस्से पाए गए है जब राजा दर्पण मे अपने सिर का पका हुआ केश देखता है ,तो राजगद्दी युवा पुत्र को सौप कर तपस्या करने जंगल की ओर प्रस्थान करते थे ।

यानि योग्य पुत्र को कार्य करने का अवसर प्रदान कराते थे ।  वहाँ पिता के प्रति पुत्र के मन मे विद्रोह नहीं बल्कि असीम प्रेम उमड़ता था ।पिता को पाँच गुरुओ मे स्थान प्राप्त था ।नारद पंचरात्र  {राजकुमार राय ,प्राच्य प्रकाशन वाराणसी }मे कहा गया है “सर्वेषामपि वंद्यानां पिता चैव महागुरु ;

ज्ञान दातु परो वंदयों न भूतो न भविष्यति”।

 ऐसी अवधारणा विश्व के अन्य किसी भी इतिहास मे नहीं देखी गई है ।

  मुग़ल सल्तनत मे सम्राट मुत्यु पर्यंत अपने सिंहासन पर आरूढ़ रहता था भले ही उसके पुत्र वृद्ध होते रहें । बहादुर शाह जफर 62 वर्ष की उम्र मे तख्त पर बैठने का नसीब पाया था ।इसलिए वहाँ पुत्रो मे पिता के प्रति बगावत की भावना पाई जाती थी ।यह उदाहरण इस लिए दिया गया कि जब बच्चे युवा हो जाए तो उन्हें भी अपने विचरो को व्यक्त करने का ,अपने ढंगसे जिंदगी जीने का मौका देना चाहिए ।

   पिता का कर्तव्य ही समाज को फिर से स्वर्ण कालीन स्थिति मे ले जा सकता है

एक बार संत तिरुवल्लुवर एक नगर में गए। जैसे ही लोगों को पता लगा कि तिरुवल्लुवर वहां आए हैं लोगों की भीड़ जुटने लगी। हर कोई उनसे अपनी समस्याओं का समाधान चाहता था। एक दिन एक बड़ा सेठ उनके पास आया और कहा, गुुरुवर मैंने पाई-पाई जोड़कर अपने इकलौते पुत्र के लिए अथाह संपत्ति जोड़ी। मगर वह मेरे गाढ़े पसीने की कमाई को बड़ी बेदर्दी के साथ व्यसनों में लुटा रहा है ? ऐसे तो वह सारी संपत्ति लुटा देगा और सड़क पर आ जाएगा।

तिरुवल्लुवर मुस्करा कर बोले, सेठ जी तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए कितनी संपत्ति छोड़ी थी। सेठ ने कहा, वे बहुत गरीब थे, कुछ भी नहीं छोड़ा था। संत बोले जबकि इतना धन छोड़ने के बावजूद तुम यह समझ गए कि तुम्हारा बेटा गरीबी में दिन काटेगा। सेठ बोला, आप सच कह रहे है प्रभु, परन्तु मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि गलती कहां हुई। तिरुवल्लुवर बोले, तुम यह समझकर धन कमाने में लगे रहे कि अपनी संतान के लिए दौलत का अंबार लगा देना ही एक पिता का कर्तव्य है। इस चक्कर में तुमने अपने बेटे की पढ़ाई व अन्य संस्कारों के विकास पर ध्यान नहीं दिया। पिता का पुत्र के प्रति प्रथम कर्तव्य यही है कि वह उसे पहली पंक्ति में बैठने योग्य बना दे। बाकी तो सब कुछ वह अपनी योग्यता के बलबूते हासिल कर लेगा। सेठ को सारी बातें समझ में आ गई थीं, उसने बेटे को सुधारने का प्रण किया और वहां से चल दिया।

पिता का क्या कर्तव्य होता है?

पिता के कर्तव्य है की बच्चे के पैदा होने के दिने से ही उसका ध्यान रखे। जब वो मुस्कुरा रहा हो सिर्फ तभी नहीं , जब वो रो रहा हो तभी उसके साथ रहे। उसकी ज़रूरतों का ख्याल रखे। उसे सही गलत का फ़र्क़ समझाए ।

बच्चों को माता पिता के प्रति क्या कर्तव्य है?

एक संतान को माँ बाप द्वारा जन्म देने के साथ ही उसे प्रेम, सुरक्षा, पालन पोषण, शिक्षा और संस्कारों के रूप में कई अमूल्य योगदान हमारे जीवन में होते हैं. बच्चें की माँ अपने स्नेह से तथा पिता जीवन में अनुशासन के भाव को जागृत करते हैं. चरित्र एवं व्यक्तित्व निर्माण का सम्पूर्ण श्रेय माता पिता को ही जाता हैं.

बेटी का कर्तव्य क्या है?

एक बेटी के क्या कर्तव्य होते हैं? माता पिता की निस्वार्थ भाव से सेवा। उनकी भावनाओं की कद्र करना । कोई भी ऐसा कार्य नही करना जिससे कि माता पिता की इज्जत पे किसी प्रकार की आंच नही आये ।

माता पिता से आप क्या समझते हैं?

माता पिता पूजनीय है, जो हमें भगवान से भी बढ़कर सुख सुविधाए प्रदान करते है. माता पिता बच्चो की ख़ुशी की लिए किसी भी हद तक जा सकते है. अपनी हर ख़ुशी का त्याग कर माता पिता अपने बच्चो को ख़ुशी देते है. बच्चे किस भी आयु के हो चाहे बूढ़े हो जाए पर माँ बाप हमेशा उनकी फिकर करते रहते है.