मोहित धुपड़/अमर उजाला, अंबाला कैंट Updated Wed, 05 Nov 2014 03:06 PM IST
चंद्रमा पर जीवन पूरी तरह असंभव है। वहां कोई भी ऐसा तत्व नहीं, जो चंद्रमा पर जीवन की किसी भी संभावना को मजबूत करे। चंद्रमा केवल स्पेस टूरिज्म का केंद्र था और रहेगा। जबकि दूसरी ओर, मंगल ग्रह पर जीवन के अनुकूल वातावरण तो है, लेकिन उसकी परत ज्यादा पतली है। इसलिए अभी वहां जीवन की संभावनाएं ढूंढी जा रही हैं। दोनों ग्रहों से जुड़े इन शोध तथ्यों को मंगलवार को इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन (इसरो) के रिटायर्ड सीनियर साइंटिस्ट कृष्ण मुरारी माथुर ने अमर उजाला से साझे किए। वे अंबाला कैंट के एसडी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में बच्चों से रूबरू हुए। प्राचार्य रमेश बंसल ने उन्हें स्पेस की जानकारी देने के लिए आमंत्रित किया था। रहें हर खबर से अपडेट,
डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| पृथ्वी (Earth) अभी तक के ज्ञात अंतरिक्ष में एकमात्र ऐसा ग्रह है जहां जीवन हैं. यहां जीवन के होने के कई कारक हैं. अपने सूर्य से उचित दूरी, पथरीला ग्रह, बहुतायत में तरल पानी, इस नीले ग्रह की मैग्नेटिक फील्ड, एक शानदार वायुमंडल जिसमें ओजन परत जैसा सुरक्षा कवच, जैसे गुण पृथ्वी को आवासीय ग्रह बनाते हैं. वहीं पृथ्वी की कई प्रक्रियाओं को कायम रखने में चंद्रमा (Moon) की भी भूमिका है. लेकिन नए अध्ययन ने सुझाया है कि किसी भी ग्रह का चंद्रमा अपने ग्रह में जीवन को पनपने देने में एक लाभकारी कारक हो सकता है. इस तरह चंद्रमाओं के जरिए ऐसे ग्रह खोजे जा सकते हैं जहां जीवन हो सकता (Planet with life signs) है. पृथ्वी (Earth) का चंद्रमा अपने ग्रह की बहुत सी प्रक्रियाओं में योगदान देता है. दिन की लंबाई और महासागरों के ज्वार को नियंत्रित करने के अलावा चंद्रमा (Moon) हमारे ग्रह की कई जीवन संबंधी प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करता है. यह पृथ्वी की घूर्णन की धुरी को स्थिर रखता है जिससे पृथ्वी की जलवायु 'बेकाबू' नहीं होती है. लेकिन किसी भी अन्य ग्रह (Planet) का चंद्रमा वहां जीवन की संभावनों की जानकारी देने वाला हो सकता है. नेचर कम्यूनिकेशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में यह अनोखी बात पता चली है. अधिकांश ग्रहों (Planets) के अपने चंद्रमा (Moon) होते हैं. लेकिन पृथ्वी (Earth) की चंद्रमा बहुत अलग है. आकार के लिहाज से पृथ्वी की चंद्रमा आकार में बहुत बड़ा है. चंद्रमा की त्रिज्या पृथ्वी की त्रिज्या के चौथाई से अधिक है जो ग्रहों और उनके चंद्रमा की त्रिज्याओं के अनुपात की तुलना में ज्यादा है. यूनिवर्सिटी ऑफ रोचेस्टर में अर्थ एंड एनवायर्नमेंटल साइंसेस की असिस्टेंट प्रोफेसर मिकी नाकाजिमा का कहना है कि यह अंतर बहुत ज्यादा खास है. नाकाजिमा की अगुआई में हुए इस अध्ययन में टोक्यो इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के साथी और ऐरिजोना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने चंद्रमा (Moon) का अध्ययन किया और पाया कि केवल कुछ ही तरह के ग्रह इस तरह के बड़े चंद्रमा बना सकते हैं. उन्होंने ने बताया, "चंद्रमा की संरचनाओं को समझने के बाद हमें पता लगाने में आसानी हुई कि पृथ्वी (Earth) जैसे ग्रहों की खोज करते समय किन बातों का ध्यान रखना है. हम उम्मीद करते हैं कि बाह्यग्रहों (Exoplanet) के चंद्रमा हर जगह होने चाहिए, लेकिन अभी तह हमे एक भी पुष्टि नहीं कर सके. लेकिन हमने जिन गुणों का पता लगाया है, वे आगे की खोज में सहायक होंगे." बहुत से वैज्ञानिक मानते हैं कि पृथ्वी (Earth) का चंद्रमा (Moon) 4.5 अरब साल पहले पृथ्वी से एकबड़े पिंड के टकराव के कारण बना था. इस टकराव की वजह से पृथ्वी के आसपास एक वाष्पीकृत डिस्क (Vaporized Disk) बन गई थी जिससे अंततः चंद्रमा बना. दूसरे ग्रह ऐसे चंद्रमा बना सकते हैं या नहीं यह जानने के लिए शोधकर्ताओं ने कम्प्यूटर इम्पैक्ट सिम्यूलेशन बनाए जिसमें बहुत सी काल्पनिक पृथ्वी जैसे ग्रह अलग अलग भार के बर्फीले ग्रह थे. उन्होंने उम्मीद थी कि इन टकराव के नतीजों से ऐसी ही वाष्पीकृत डिस्क बनेगी. शोधकर्ताओं ने पाया कि पृथ्वी (Earth) के भार से छह गुना ज्यादा वाले पथरीले ग्रह और पृथ्वी की आकार वाले बर्फीले ग्रह के टकराने से पूरी तरह से वाष्पीकृत डिस्क (Vaporized Disk) बनी, लेकिन ऐसी डिस्क से बड़े चंद्रमा (Moon) नहीं बन पाते हैं. वाष्पीकृत डिस्क बनने के बाद समय के साथ वह ठंडी होती है और छोटे- छोटे टुकड़े बन जाते हैं जो बाद में मिलकर चंद्रमा बना सकते हैं. लेकिन पूरी वाष्पीकृत डिस्क में ये टुकड़े गैस बन कर ग्रह की ओर खिंच जाते हैं. वहीं अधूरी वाष्पीकृत डिस्क में ऐसा खिंचाव नहीं होता है. शोधकर्ताओं ने नतीजे के रूप में पाया कि पूरी तरह से वाष्पीकृत डिस्क (Vaporized Disk) विशाल चंद्रमा (Moon) नहीं बना सकती है. ऐसे में ग्रहों के भार थोड़े कम होना चाहिए जिससे ऐसे चंद्रमा बन सकें. इस तरह की सीमा शर्तें खगोलविदों के लिए बहुत अहम है जिससे वे अपनी खोजबीन में उपयोग कर सकते हैं. खगोलविदों ने अभी तक हजारों बाह्यग्रह और उनके चंद्रमा भी खोजे है, लेकिन वे अभी तक हमारे सौरमंडल में इस तरह का एक भी चंद्रमा नहीं खोज सके हैं. अभी तक बाह्यग्रहों की खोज पृथ्वी (Earth) से छह गुना ज्यादा बड़े ग्रहों पर केंद्रित थी, लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि हमें थोड़े छोटेग्रहों पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि उनके चंद्रमा बड़े होने की संभावना है. क्या चंद्रमा पर मानव जीवन संभव है?भारत के चंद्रयान प्रथम समेत हाल के चंद्र मिशनों में चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की खोज के विपरीत वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उसके अंदरूनी क्षेत्र इतने शुष्क हो सकते हैं कि वहाँ जीवन संभव नहीं हो सकता।
चंद्रमा पर जीवन नहीं है क्यों?दरअसल, वैसे चांद की तहत पर तापमान काफी बदलता रहता है. चांद की अधिकांश सतह पर दिन के वक्त 260 डिग्री तक तापमान रहता है और रात में यह तापमान जीरो से 280 डिग्री नीचे तक आ जाता है. हालांकि, अब कुछ स्थानों पर स्थिर तापमान से लग रहा है कि आने वाले वक्त में यहां के जीवन की संभावना बढ़ सकती है.
चांद पर कितनी लड़कियां गई है?हालांकि, अभी तक कोई नहीं जानता वह महिला कौन है जो चंद्रमा पर कदम रखेंगी, पर नासा के वर्तमान रोस्टर में शामिल 12 महिला अंतरिक्ष यात्रियों में से किसी एक को यह मौका मिल सकता है। इन महिलाओं की उम्र 40 से 53 साल के बीच की है। नासा से जुड़ने से पहले ये सेना में पायलट, डॉक्टर और वैज्ञानिक रह चुकी हैं।
चंद्रमा पर क्या क्या पाया जाता है?क्या है चंद्रमा पर : चंद्रमा की खुरदुरी सहत पर बेहद अस्थिर और हल्का वायुमंडल होने की संभावना व्यक्त की जाती है और यहां पानी भी ठोस रूप में मौजूद होने के सबूत मिले हैं। हालांकि वैज्ञानिकों के अनुसार यह वायुमंडलविहीन उपग्रह है। नासा के एलएडीईई प्रोजेक्ट के मुताबिक यह हीलियम, नीयोन और ऑर्गन गैसों से बना हुआ है।
क्या चंद्रमा पर पानी है?वैज्ञानिकों के मुताबिक चांद पर पानी कहीं और से नहीं बल्कि धरती से गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रमा पृथ्वी के वायुमंडल से पानी निकाल रहा है और चंद्रमा में मौजूद गड्ढ़ों में यही पानी हजारों-लाखों सालों से बर्फ के रूप में जमा हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक चांद पर करीब 840 क्यूबिक मील पानी मौजूद है।
|