बायोडीजल हेतु उत्तराखंड राज्य में कौन सी खेती की जाती है? - baayodeejal hetu uttaraakhand raajy mein kaun see khetee kee jaatee hai?

Biodiesel, सीधे वनस्पति तेल, पशुओं के वसा, तेल और खाना पकाने के अपशिष्ट तेल से उत्पादित किया जा सकता है. इन तेलों को बायोडीजल में परिवर्तित करने के लिए प्रयुक्त प्रक्रिया को ट्रान्स-इस्टरीकरण कहा जाता है. अतः बायोडीजल पारंपरिक या 'जीवाश्म' डीजल के स्थान पर एक वैकल्पिक ईंधन है. शहरों में बढ़ते वायु प्रदूषण को कम करने के लिए बायोडीजल का प्रयोग बढ़ाना बहुत जरूरी कदम है.

बायोडीजल हेतु उत्तराखंड राज्य में कौन सी खेती की जाती है? - baayodeejal hetu uttaraakhand raajy mein kaun see khetee kee jaatee hai?

बायोडीजल किसे कहते हैं  (What is Biodiesel)
बायोडीजल पारंपरिक या 'जीवाश्म' डीजल के स्थान पर एक वैकल्पिक ईंधन है. बायोडीजल सीधे वनस्पति तेल, पशुओं के वसा, तेल और खाना पकाने के अपशिष्ट तेल से उत्पादित किया जा सकता है. इन तेलों को बायोडीजेल में परिवर्तित करने के लिए प्रयुक्त प्रक्रिया को ट्रान्स-इस्टरीकरण कहा जाता है.

jetropha plant
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बायोडीजल जैविक स्रोतों से प्राप्त डीजल के जैसा ही गैर-परम्परागत ईंधन है. बायोडीजल नवीनीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से बनाया जाता है. यह परम्परागत ईंधनों का एक स्वच्छ विकल्प है. बायोडीजल में कम मात्रा में पट्रोलियम पदार्थ को मिलाया जाता है और विभिन्न प्रकार की गाडियों में प्रयोग किया जा सकता है. बायोडीजल विषैला नही होने के साथ साथ बायोडिग्रेडेबल भी है. इसको भविष्य का इंधन माना जा रहा है.

भारत का पहला बायोडीजल संयंत्र आस्ट्रेलिया के सहयोग से काकीनाड़ा सेज (KSEZ) में स्थापित किया गया है. बायोडीजल की सहायता से डीजल वाहनों को चलाने के लिए उनमे किसी प्रकार का तकनीकी परिवर्तन भी नही करना पड़ता है. बायोडीजल प्रयोग में सबसे  आसान इंधनों में से एक है और सबसे अच्छी बात यह है कि यह खेती में काम आने वाले उपकरणों को चलाने के लिये सबसे उपयुक्त है.

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ट्रान्स-इस्टरीकरण प्रक्रिया में वनस्पति तेल या वसा से ग्लीसरीन को निकालना होता है. इस प्रक्रिया में मेथिल इस्टर और ग्लीसरीन आदि सह-उत्पाद (by products) भी मिलते हैं. बायोडीजल में हानिकारक तत्व सल्फर और अरोमैटिक्स नहीं होते जो कि परम्परागत इंधनों में पाये जाते हैं.
बायोडीजल बनाने के लिए आवश्यक सामग्री है: जेट्रोफा तेल, मेथेनोल, सोडियम हाइड्रोक्साइड   

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ज्ञातव्य है कि भारत अपनी पेट्रोलियम जरूरतों का केवल 20% हिस्सा ही भारत में पैदा करता है बकाया का पेट्रोलियम विदेशों से आयात किया जाता है. जिस गति से हमारे देश में पेट्रोलियम पदार्थों का उपयोग बढ़ रहा है उस गति से देश के तेल भंडार अगले 40 या 50 सालो में समाप्त हो जायेंगे. अतः भविष्य में जैविक ईंधन के स्थानापन्न पदार्थ के तौर पर जैविक ईंधन का विकास करना समय की जरुरत है.

इस जरुरत को "जैट्रोफा" नामक पौधे से दूर किया जा सकता है. यह पौधा देश के विभिन्न भागों में बहुत अधिक मात्रा में उगने वाला पौधा है. इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे ट्रोफा मिथाईल ईस्टर , रतनजोत, बायो डीजल , बायोफ्यूल जैव ईंधन , जैव डीजल, जैट्रोफा करकास आदि.

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जैट्रोफा वृक्ष कई वर्षों तक फल देने वाला वृक्ष है. इसके बीजो में लगभग 40% तेल होता है. इससे डीजल बनाने के लिए वास्तविक डीजल में लगभग 18% जैट्रोफा के बीजो से प्राप्त तेल को मिलाकर "बायो डीजल" बनाया जाता है. इस प्रकार बने "बायो डीजल" को डीजल चलित किसी भी इंजन में जैसे ट्रक, बस ,ट्रैक्टर, पम्पसैट, जेनरेटर आदि सभी डीजल चलित उपकरणों में प्रयोग किया जा सकता है. जैट्रोफा का पौधा एक बार उगने के बाद लगातार 8 - 10 वर्षो तक लगातार बीज देता रहता है. जैट्रोफा (jatropha) से प्रारम्भिक उत्पादन प्रति हेक्टेयर लगभग 250 किलोग्राम  माना गया है जो 5 वर्षो में 12 टन तक हो सकता है.

आज के दौर में सभी नीति निर्माता और कम्पनियां अब ईंधन के गैर परंपरागत स्रोतों जैसे बायोडीजल, हाइड्रोजन गैस चालित वाहनों, इलेक्ट्रिक कार आदि पर पूरा ध्यान दे रहीं हैं. अभी हाल ही में ब्रिटेन सरकार ने घोषणा की है कि वह अपने देश में 2020 से सिर्फ बिजली चलित कारों और दुपहिया वाहनों के लिए ही लाइसेंस जारी करेगी. इसलिए यह कहना गलत नही होगा कि आगे आने वाला कल बायोडीजल और इलेक्ट्रिक से चलने वाले वाहनों का ही होगा क्योंकि ये दोनों स्रोत परम्परागत ईंधनों की तरह प्रदूषण करने वाला धुंआ पैदा नही करते हैं.

नई दिल्‍ली. अगर आप डीजल की कार या ट्रैक्‍टर चलाते हैं और लगातार बढ़ती पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel)  की कीमतों से परेशान हैं तो यह खबर आपको राहत दे सकती है. अब आप घर पर इस्‍तेमाल के बाद बचे हुए तेल (Used Cooking Oil) से घर पर ही बायोडीजल (Biodiesel) तैयार कर सकते हैं जिसे न केवल आप अपनी कार और ट्रैक्‍टर (Car and tractor) में ही नहीं बल्कि ट्यूबवैल-जेनरेटर सहित हर उस मशीन में बतौर ईंधन (Fuel) इस्‍तेमाल कर सकते हैं जहां अभी तक डीजल (Diesel) का इस्‍तेमाल करते रहे हैं. इतना ही नहीं घर पर ही बायोडीजल का निर्माण करके और इसे बेचकर भी पैसा कमाया जा सकता है.

घर पर बायोडीजल बनाने के लिए सीएसआईआर-इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (CSIR-IIP) देहरादून ने दो मोबाइल यूनिट (Biodiesel-Mobile Unit) तैयार की हैं. जिनके माध्‍यम से घर पर इस्‍तेमाल के बाद बचे कुकिंग ऑयल (Used Cooking Oil) या ढढ़ेल को बायोडीजल बनाने में इस्‍तेमाल किया जा सकता है. इतना ही नहीं बेहद कम कीमत पर तैयार होने वाले इस बायोडीजल का इस्‍तेमाल भी बतौर ईंधन किया जा सकेगा. देश में पहली बार है कि इस यूनिट के माध्‍यम से बचे तेल से सिर्फ पांच मिनट की प्रोसेसिंग में बायोडीजल तैयार होगा.

आईआईपी के बायोफ्यूल डिविजन में वरिष्‍ठ प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. नीरज आत्रेय ने न्‍यूज 18 हिंदी को बताया कि इंस्‍टीट्यूट में एक छोटी और एक बड़ी मोबाइल यूनिट तैयार की गई है. छोटी यूनिट में पांच लीटर बायोडीजल एक बार में तैयार किया जा सकता है. इसकी कीमत 40 हजार रुपये रखी गई है. यूनिट में तीन बार इस्‍तेमाल के बाद बचे कुकिंग ऑयल को डालने के बाद मिनट तक हाथ से ही हिलाना होता है. इसके बाद इसे दो घंटे तक छोड़ना होता है और पांच लीटर बायोडीजल बनकर तैयार हो जाता है.

डॉ. आत्रेय कहते हैं कि आईआईपी में तैयार की गई बड़ी मोबाइल यूनिट में एक बार में 50 लीटर बायोडीजल तैयार हो जाता है. जबकि पूरे दिन में करीब 150-200 लीटर बायोडीजल बन जाता है. इस मोबाइल यूनिट की कीमत पांच लाख रुपये रखी गई है. यह खासतौर पर उन किसानों के लिए बहुत उपयोगी है जो अपना ट्रैक्‍टर और ट्यूबवैल चलाकर खेती करते हैं. बायोडीजल का इस्‍तेमाल डीजल में 50 फीसदी तक मिलाकर वे जेनरेटर, ट्रैक्‍टर और ट्यूबवैल के लिए ईंधन के रूप में कर सकते हैं. घर पर बने सस्‍ते बायोडीजल के इस्‍तेमाल से डीजल की 50 फीसदी खपत बचेगी साथ ही बचा हुआ बायोडीजल बेचा भी जा सकता है.

वे कहते हैं कि केंद्र सरकार ने डीजल में पांच फीसदी की बायोडीजल की मिक्सिंग की अनुमति दे दी है. हालांकि 20 फीसदी तक भी अगर बायोडीजल की डीजल में मिलावट की जाए तो यह फायदेमंद है लेकिन बायोडीजल का उत्‍पादन कम होने के कारण फिलहाल इसकी आपूर्ति कम है. 50 लीटर वाली एक बड़ी यूनिट फिलहाल रायपुर के सीबीडीए में लगाई गई है.

डीजल से काफी सस्‍ता है बायोडीजल

डॉ. आत्रेय बताते हैं कि आज हर तरफ बचा हुआ तेल मिल सकता है. हर जगह खुले ढाबों, रेस्‍टोरेंट और होटलों के अलावा घरों से भी लोग जला हुआ या इस्‍तेमाल के बाद बचा हुआ तेल ले सकते हैं. चूंकि तीन बार के इस्‍तेमाल के बाद कुकिंग ऑयल सेहत के लिए हानिकारक हो जाता है ऐसे में इसे बायोडीजल बनाने के लिए उपयोग में लाना सही है. फिलहाल आईआईपी को 30 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से इस्‍तेमाल के बाद बचा हुआ कुकिंग ऑयल मिल रहा है. जबकि इसकी प्रोसेसिंग में करीब 16-17 रुपये लगते हैं. लिहाजा यह 47 रुपये में बनकर तैयार हो रहा है. जो कि मौजूदा समय में पेट्रोलियम से मिल रहे डीजल से काफी सस्‍ता है. हाल ही में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने यूज्‍ड कुकिंग ऑयल से बने बायोडीजल के लिए 52 रुपये 50 पैसे कीमत तय की दी है.

बायोडीजल के लिए कौन सी खेती की जाती है?

सही उत्‍तर जटरोफा है।

बायोडीजल हेतु उत्तराखंड राज्य में किसकी खेती की जाती है?

विदेशों में जहां खाद्य तेल के बीजों से बायोडीजल बनाया जाता है वहां उनके पास सोयाबीन, राई, मूंगफली, सूरजमुखी आदि कई विकल्प हैं किंतु अधिक बायोडीजल का उत्पादन करने हेतु हमारे यहां बायोडीजल उत्पादन के लिये जैट्रोफा (रतनजोत) के पौध सर्वदा उपयुक्त हैं क्योंकि इसे हम अकृषित भूमि तथा कम जल मांग वाले क्षेत्रों में भी उगा सकते ...

बायोडीजल कौन से पेड़ से प्राप्त होता है?

इस जरुरत को "जैट्रोफा" नामक पौधे से दूर किया जा सकता है. यह पौधा देश के विभिन्न भागों में बहुत अधिक मात्रा में उगने वाला पौधा है. इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे ट्रोफा मिथाईल ईस्टर , रतनजोत, बायो डीजल , बायोफ्यूल जैव ईंधन , जैव डीजल, जैट्रोफा करकास आदि. जैट्रोफा वृक्ष कई वर्षों तक फल देने वाला वृक्ष है.

बायोडीजल क्या काम आता है?

बायोडीजल का इस्‍तेमाल डीजल में 50 फीसदी तक मिलाकर वे जेनरेटर, ट्रैक्‍टर और ट्यूबवैल के लिए ईंधन के रूप में कर सकते हैं.