क्या होता है प्रोड्यूसर सरप्लस? प्रोड्यूसर सरप्लस (Producer Surplus) यानी उत्पादक अधिशेष इस बात के बीच का अंतर है कि कोई व्यक्ति किसी वस्तु की दी गई मात्रा को स्वीकार करने का कितना इच्छुक होगा, इसकी तुलना में कि मार्केट रेट पर उस वस्तु को बेचने पर उन्हें कितना प्राप्त हो सकता है। यह अंतर या अधिशेष राशि ही वह लाभ है जो उत्पादक वस्तु को बाजार में बेचने पर प्राप्त करता है। प्रोड्यूसर सरप्लस निम्नतम कीमतों की तुलना में अधिक बाजार कीमतों द्वारा जेनरेट होता है जिसे उत्पादक अन्यथा अपनी वस्तुओं के लिए स्वीकार करने का इच्छुक होता। मुख्य बातें Show प्रोड्यूसर सरप्लस को समझना कंज्यूमर सरप्लस और प्रोड्यूसर सरप्लस अतिरिक्त उत्पादन बेशी , अधिशेष किसे कहते है परिभाषा क्या है ? surplus production in hindi definition meaning ? उत्पादन प्रणाली उत्पादन प्रणाली परिभाषा में निर्णायक तत्त्व : अतिरिक्त उत्पादन उत्पादन प्रणाली में विशिष्ट उत्पादन संबंध उत्पादन प्रणाली की उत्पादन शक्तियों में बदलाव बोध प्रश्न 3 बोध प्रश्न 3 उत्तर उत्पादन प्रणाली के विभिन्न स्वरूप एशियाटिक उत्पादन प्रणाली मार्क्स ने भारत के इतिहास के बारे में कोई व्यवस्थित प्रस्तुति नहीं दी है। उसने तत्कालीन भारतीय प्रश्नों पर अपने विचार अवश्य दिए। ये प्रश्न वे थे, जिन्होंने जनता का ध्यान आकृष्ट कर रखा था। कभी-कभी उसने अपने सामान्य तर्कों को स्पष्ट करने के लिए भारत की विगत तथा वर्तमान दशाओं से उदाहरण भी लिए। परंतु भारतीय समाज और इतिहास की व्याख्या करने के लिए एशियाटिक उत्पादन प्रणाली की अवधारणा अनुपयुक्त है। प्राचीन उत्पादन प्रणाली अपनी चर्चा को कृषि से जुड़ी दासता (देखिए कोष्ठक 7.3) तक सीमित रखते हुए देखें तो हमें पता चलता है कि शोषण इस प्रकार से होता है कि दास मालिक की भूमि पर कार्य करता है तो बदले में उसे निर्वाह मिलता है। दास द्वारा किए गए उत्पादन और उपभोग में जो अंतर होता है वही मालिक का लाभ बन जाता है। परन्तु यह प्रायरू भुला दिया जाता है कि इसके परे दास को अपने स्वयं के जनन से वंचित रखा जाता है। किसी भी समाज में दासता का जनन (reproduction) इस बात पर निर्भर करता है कि उस समाज में नए दास प्राप्त करने की उस समाज की क्या क्षमता है। यहां संचय (accumulation) की दर इस बात पर निर्भर करती है कि कितने लोग दास बने हैं न कि दासों की उत्पादकता पर। समुदाय के अन्य सदस्यों से दास भिन्न होते हैं क्योंकि उन्हें अपनी सन्तान पैदा करने के अधिकार से वंचित रखा जाता है। समाज में ‘‘विदेशी‘‘ के रूप में उनकी प्रस्थिति स्थायी हो जाती है। ‘‘विदेशी‘‘ से लाभ कमाया जाता है। इस व्यवस्था को सावयवी (organic) तथा निरंतर चलने वाली बनाने के लिए जरूरी है कि दासों के अपने आश्रित न हों। प्रत्येक पीढ़ी में पुराने बूढ़े हुए दासों के स्थान पर नए विदेशियों को दास के रूप में लाने के साधन होने चाहिए। इस शोषण के इन दो स्तरों में एक अनिवार्य और गहन संबंध है। यह है कि एक समुदाय से दूसरे समुदाय में व्यक्ति चुराने का संबंध, और दास वर्ग तथा दासों के मालिक वर्गों के बीच शोषण का संबंध । दास प्रथा में श्रमशक्ति की वृद्धि वास्तविक जनांकिकीय शक्तियों से मुक्त होती है। यह प्राकृतिक वृद्धि पर आधारित जनांकिकीय वृद्धि पर निर्भर नहीं करती, अपितु विदेशी व्यक्तियों को पकड़ कर लाने के साधनों पर निर्भर करती है। संचय की संभावना दासों की वृद्धि से होती है, जो कि श्रम की उत्पादकता में वृद्धि से मुक्त होती है। शोषण का यह तरीका समाज को जनांकिकीय हेर-फेर करने की अनुमति देता है। साथ ही साथ जन्म दर में परिवर्तन, आयु में हेर-फेर, तथा जीवन अवधि और विशेषतः सक्रिय जीवन अवधि में हेर-फेर भी इस तरीके से संभव होता है। किसी भी दास उत्पादन प्रणाली के प्रभुत्व की परख दासों की संख्या में नहीं होती, अपितु उस सीमा में होती है, जिस सीमा तक अभिजन (elite) वर्ग अपनी दौलत पाने के लिए दासों पर निर्भर होते हैं। कोष्ठक 7.3ः कृषि से जुड़ी दासता मार्क्स ने जिस दासवादी उत्पादन प्रणाली के बारे में बताया है वह रोम साम्राज्य के दौरान इटली में प्रचलित थी। 200 ईस्वी के आसपास इस साम्राज्य में पश्चिमी एशिया, मिस्र से मोरक्को तक सारा उत्तरी अफ्रीका तथा ब्रिटेन सहित यूरोप के अधिकतर भाग शामिल थे। इसका क्षेत्र दस लाख पच्चत्तर हजार वर्ग मील था और जनसंख्या छरू करोड़ के लगभग थी। इतने बड़े साम्राज्य में विभिन्न उत्पादन प्रणालियों वाले समाजों का होना स्वाभाविक था। कृषि के क्षेत्र में दास प्रथा ने इटली में ऐसा स्वरूप धारण कर लिया था जैसा कि पहले कभी नहीं हुआ था। कुछ अन्य नगर राज्यों जैसे ऐथेंस में भी दास प्रथा ही प्रमुख उत्पादन प्रणाली थी। इन राज्यों में शासक वर्ग दास श्रम से सम्पदा अर्जित करता था। रोमन साम्राज्य के पश्चिमी भाग में प्राचीन उत्पादन प्रणाली का स्थान सामन्तवादी उत्पादन प्रणाली ने ले लिया था। सामन्तवादी उत्पादन प्रणाली सामन्तवादी व्यवस्था में भूमिहीन किसान वैधानिक रूप से स्वतंत्र नहीं होने के कारण सम्पति के अधिकार से वंचित थे। हाँ, वे भूमिपति की सम्पति का प्रयोग कर सकते थे। वे अपने श्रम अथवा श्रम के उत्पादों को भूपतियों के हाथ देने को मजबूर थे ताकि परिवार का निर्वाह कर सकें और एक किसान की सरल घरेलू अर्थव्यवस्था को चला सकें। सामन्तवादी समाज को मार्क्स तथा एंजल्स ने प्राचीन विश्व के दास समाज तथा आधुनिक युग के पूंजीपतियों एवं सर्वहाराओं के मध्य एक कड़ी जोड़ने वाली अवस्था माना। सामन्तवादी व्यवस्था के उद्विकास के कारण विनिमय का विकास हुआ है। इसने पूंजीवादी उत्पादन के सम्बन्धों की नींव डाली, जो कि बाद में सामंतवादी व्यवस्था का मुख्य विरोधाभास बन गये और जिनके कारण सामन्तवादी व्यवस्था का अंत हो गया। इस परिवर्तन की प्रक्रिया ने अनेक किसानों को भूमि से खदेड़कर मेहनतकश मजदूर बनने के लिए मजबूर कर दिया। इस तरह पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली का प्रारंभ हुआ। पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली की निम्न विशेषताएं होती हैं (देखिए बॉटोमोर 1983ः64)। अ) वस्तुएं प्रयोग के लिए नहीं अपितु विक्रय के लिए उत्पादित की जाती हैं। उत्पादन प्रणाली के रूप में पूंजीवाद सबसे पहले यूरोप में उभरा। पश्चिमी यूरोप में सामन्तवाद से पूंजीवाद में परिवर्तन के विषय में खंड 1 की इकाई 1 में चर्चा की गई है। आप इस चर्चा को पुनरू पढ़िए ताकि आप व्यापारिक पूंजी की वृद्धि, विदेश में व्यापारिक औपनिवेशिकीकरण का दुबारा स्मरण कर सकें। इस क्रांति में प्रौद्योगिकी की तीव्र वृद्धि हुई और इसके साथ-साथ पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में भी प्रगति हुई। मार्क्स ने पूंजीवाद को एक ऐसी ऐतिहासिक अवस्था माना जिसका स्थान समाजवाद लेगा। आइए, अब इकाई का सारांश पढ़ने से पहले बोध प्रश्न 4 पूरा कर लें। अधिशेष उत्पादन क्या होता है?उत्पादक अधिशेष (producer surplus) उत्पादकों द्वारा अपने स्वीकृत प्राप्त मूल्य से अधिक मूल्य पर किसी माल या सेवा को बेच पाने से हुआ लाभ होता है।
अधिशेष का मतलब क्या होता है?अधिशेष का हिंदी अर्थ
जो उपयोग या व्यवहार के उपरान्त बचा रहे।
अधिशेष की बिक्री क्या है?कृषि उपज का वह हिस्सा जो किसानों द्वारा बाजार में बेचा जाता है, उसे विक्रय अधिशेष कहा जाता है। हरित क्रांति अवधि ( विक्रय अधिशेष के रूप में) के दौरान उत्पादित चावल और गेहूं का एक अच्छा अनुपात किसानों द्वारा बाजार में बेचा गया था। नतीजतन, खाद्यान्न की कीमत खपत के अन्य मदों के सापेक्ष कम हो गई।
बड़े किसान उत्पादन अधिशेष का क्या कहते हैं?उन्हें किसान कहते हैं, जिनकी अपनी जमीन होती है, या जो हल जोतते हैं। धनी किसान वे किसान हैं, जो ग्रामीण गृहस्थ उत्पादन के साधन रखते हैं। वह भूमि पर स्वयं श्रम करता है। वह खेती से अधिकांश आय प्राप्त करता है।
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