बेतरतीब बंधे होने से क्या आशय है ? - betarateeb bandhe hone se kya aashay hai ?

इसे सुनेंरोकेंसांख्यिकीय पद्धतियां अनियत सांख्यिकीय अध्ययन के दो प्रमुख प्रकार हैं, प्रयोगात्मक अध्ययन और अवलोकन अध्ययन. अध्ययन के दोनों प्रकार में, एक स्वतंत्र चर (या चरों) के मतभेदों का, एक आश्रित चर के व्यवहार पर असर का अवलोकन किया जाता है।

सांख्यिकी के उपकरण कौन कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंसांख्यिकी तुलना की एक विधि प्रस्तुत करती है : सांख्यिकीय उपकरणों जैसे-औसत, प्रतिशत, सह-संबंध आदि का प्रयोग कर तथ्यों से तुलनात्मक निष्कर्ष निकाला जा सकता है। 4. सांख्यिकी विभिन्न तथ्यों के संबंध का अध्ययन करती है : सह-संबंध विश्लेषण से विभिन्न तथ्यों के कार्यात्मक संबंध की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

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इसे सुनेंरोकेंसांख्यिकीय अध्ययन का दूसरा कदम एकत्रित आँकड़ों का वर्गीकरण और सारणीकरण है। यदि प्रेक्षणों की संख्या अधिक है, तो आँकड़ों का वर्गीकरण अभीष्ट ही नहीं, आवश्यक भी है। संघनन करते समय कुछ मात्रा में सूचनाओं का त्याग करना पड़ता है। किंतु मस्तिष्क वृहद् अंक राशि का अर्थ समझने में असमर्थ होता है।

सांख्यिकी की सार्वभौमिक उपयोगिता क्या है स्पष्ट कीजिए?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर – सांख्यिकी की सार्वभौमिक उपयोगिता एवं महत्व- डॉ . बाउले के अनुसार , ” सांख्यिकी का ज्ञान विदेशी भाषा या बीजगणित के समान है जो किसी भी समय , किसी भी परिस्थिति में उपयोगी सिद्ध हो सकता है । ” अतः अन्त में यह कहा जा सकता है कि वर्तमान युग सांख्यिकी का युग है।

सांख्यिकीय इकाई से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंमें आँकड़े , एक इकाई संस्थाओं का एक सेट में से एक सदस्य अध्ययन किया जा रहा है। यह ” यादृच्छिक चर ” के गणितीय अमूर्तता का मुख्य स्रोत है । एक इकाई के सामान्य उदाहरण एकल व्यक्ति, पशु, पौधे, निर्मित वस्तु या देश होंगे जो अध्ययन की जा रही ऐसी संस्थाओं के बड़े संग्रह से संबंधित हैं।

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सांख्यिकी शब्द के आविष्कारक कौन है?

इसे सुनेंरोकेंसर रोनाल्ड एलेमर फिशर (Sir Ronald Aylmer Fisher) का जन्म 17 February 1890 और मृत्यु 29 July 1962 को हुई, वे एक ब्रिटिश सांख्यिकीविद् थे। उन्हें ही आधुनिक आँकड़ों (सांख्यिकी) के जनक के रूप में जाना जाता है।

बेतरतीब बंद होने से क्या आशय है?

इसे सुनेंरोकें- 1. कोई क्रम न होना; क्रमहीनता 2. असंबद्धता।

सांख्यिकी गणना का विज्ञान है किसका कथन है?

इसे सुनेंरोकेंसांख्यिकी गणना का विज्ञान है”-बाउले ने कहा है। कहलाते हैं। एकत्र करता है, तो उन आँकड़ों को प्राथमिक (a) प्राथमिक आँकड़े आँकड़े कहते हैं। वर्ष जनसंख्या शिक्षित अशिक्षित योग विभिन्न प्रेक्षणों से प्राप्त आँकड़ों को संग्रहित कर एक व्यवस्थित रूप में प्रदर्शित अथवा प्रस्तुत करना ही आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण है।

बेतरतीब का क्या अर्थ है व्यवस्थित अव्यवस्थित व्यवस्था इनमें से कोई नहीं?

इसे सुनेंरोकेंजो व्यवस्थित न हो। जो क्रम या विचार से ठीक न हो। जो विधानों शास्त्रों आदि की व्यवस्था या मर्यादा से रहित हो या उनके विपरीत हो। जिसमें उचित व्यवस्था या प्रबंध का अभाव हो।

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जूतों के बंद को बेतरतीब से क्यों बांध लिया गया है?

इसे सुनेंरोकेंपांवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बंधे हैं. लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है. तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं.

http://web.archive.org/web/20110101192753/http://hindini.com/fursatiya/archives/148

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अमेरिका-कुछ बेतरतीब विचार

By फ़ुरसतिया on June 26, 2006

लगता है हम तथा स्वामी आपसी जुगलबंदी के लिये ‘फिट आइटम’ हैं। हमने कुछ लिखा अमेरिका के बारे में जो हमने दूसरों के माध्यम से जाना था। स्वामीजी ने इससे ‘उकस’ कर कुछ लिखा अमेरिका के बारे में। किसी अमेरिकी को कोई फरक नहीं पड़ता इस जुगलबंदी से कि दो हिंदुस्तानी उसके बारे में क्या लिख रहे हैं। लेकिन हम जुटे हैं इसे कहते हैं- बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना।
अमेरिका के बारे में कुछ और लिखने के पहले स्वामीजी को बता दें अमेरिका में अभी इतनी औकात नहीं कि हमारी नींद उड़ा दे। हमारा यह सोने का सामान्य समय है। हम असल में जिस दिन सोते हैं उसी दिन जागते हैं। पिछली पोस्ट तो हमने लिखी थी रात को तीन बजे। इसके पहले भी कई पोस्टें सबेरे की गईं। ये पीला वासन्तिया चाँद तो हमने पोस्ट की थी रात भर लिखने के बाद सबेरे पाँच बजे। फिर चले गये थे झंडा फहराने फिर लौट के दोपहर को सोये थे। आज भी दोपहर को जमकर सोया सो मन तरोताजा है सो सोचा कि अमेरिका पर अपने कुछ और विचार लिखे जायें शायद इससे स्वामीजी को एक लेख और लिखने का मन बने।
पहले मैंने इसे स्वामीजी के लेख पर टिप्पणी के रूप में लिखने का विचार किया था लेकिन टिप्पणी दौप्रदी का चीर होती गयी सो इसे लेख के रूप में पोस्ट कर रहा हूँ। विचार कुछ बेतरतीब से हैं लेकिन उन्हें सहेजने में मेहनत करने के बजाय नीर-क्षीर विवेकी साधुओं की समझ पर ज्यादा भरोसा करते हुये इसे जस- का -तस पोस्ट कर दे रहा हूँ।
स्वामीजी ने जो बताया कि जो बताया कि अमेरिका मनोवृत्ति के हिसाब से किशोर राष्ट्र है। यह बात तथा उसके कारण सार्त्र के लेख में कही गई है:-
उनमें ‘कम से कम’ ऐतिहासिक होने का सामूहिक अहंकार है। उनके सामने वंशगत रीति-रिवाजों और उपलब्ध अधिकारों से पैदा होने वाली समस्यायें और जटिलतायें नहीं हैं। ये किसी परंपरा या लोकसाहित्य से घबराये हुये लोग नहीं हैं।
लेकिन संयोग कुछ ऐसा है कि ‘सामूहिकता की भावना’ में यह किशोर मन किसी आज्ञाकारी बालक से ज्यादा बबुआ की हरकतें करता है। यह दुनिया भर में दिखा कि ईराक वगैरह पर आक्रमण के समय दुनिया भर में अमेरिकी में ही अपनी सरकारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के हल्ले थे लेकिन सारे विरोध करने वाले कुछ दिन बाद अच्छे बच्चों की तरह चुप हो गये। कारण शायद यह हो कि सही समझने वाली बात पर अड़ने की प्रवृत्ति की भी ‘सेल्फ लाइफ’ यहाँ बहुत कम होती होगी। यहाँ ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का इस्तेमाल भी शायद फैशन की तरह होता हो। देश कोई भी हो,दुनिया के किसी भी कोने में हो कुछ सार्वभौमिक नियम वहाँ लागू होते ही हैं। मुझे तो, जितना मैं समझता हूँ ,अमेरिका एक ऐसे डायनासोर की तरह लगता है जो किसी खास इमारत तक पहुँचने के लिये अपनी अन्धी दौड़ में इस बात की परवाह नहीं करता कि वह रास्ते की कितनी इमारतों को बेमतलब जमींदोज करता गया। चूंकि अमेरिका पर किसी तरह के इतिहास का बोझ नहीं है लिहाजा वह बगदाद के हजारों सालों के अतीत को हंसते हुये रौंद देता है,क्योंकि किशोरमना अमेरिका को वहां हथियार खोजने थे। यह कुछ उसी तरह की बात है जैसे कि सौंदर्य बोध से अछूते जाटों को आगरा के ताजमहल तथा दूसरी खूबसूरत इमारतों का इससे बेहतर कोई इस्तेमाल नहीं कि वे उसे भूसे के गोदाम में तब्दील कर दें।ऐसी बेहूदगी की हरकतें तथा उसके समर्थन में बेसिरपैर के बहाने गढ़ने की कोशिश करने वाले करने वाले देश को बालमना बताना बालमन के साथ ज्यादती होगी।
यह कहना कुछ-कुछ अटलजी के बयान जैसा ही है जो राहुल महाजन के हीरोइन-कोकीन लेने को युवामन के बहके कदम बतायें।
मैंने बताया कि अमेरिका के बारे में मेरी जानकारी समाचार पत्र,टेलीविजन तथा कुछ लेखों के माध्यम से ही है। उसके आधार पर ही मेरे विचार बने हैं जो कि एकदम गलत भी हो सकते हैं। इस तरह के लेख किसी वृहद अध्ययन के आधार पर नहीं वरन्‌ अपनी धारणा के हिसाब से तर्क तैयार करके लिखे जाते हैं -कुछ-कुछ उसी तरह जिस तरह अमेरिका ने पहले ईराक पर हमला करने का मन बनाया तब बाद में उसके लिये तर्कजाल गढ़े।
यह सच है कि अमेरिका में बहुत अच्छाइयां होंगीं। बहुत सारी समृद्धि है। स्वतंत्रता है। नये विचारों के लिये अवसर हैं। तमाम रिसर्च हैं। तमाम सारे ऐसे लोक-लुभावन आकर्षण हैं जिनके चुम्बकीय आकर्षण में दुनिया भर की मेधा वहां भागी चली जा रही है। नित नये अविष्कार हो रहे हैं वहां। मेहनत की वकत है और भी न जाने क्या-क्या ।लेकिन यह भी सच है कि वह दुनिया के तमाम देशों में से मात्र एक देश है। अगर मैं गलत नहीं हूँ तो वहां रहने वाले भी लोग आदमी ही होंगे। और जहां आदमी होंगे ,समाज होगा वहाँ कुछ न कुछ विसंगतियाँ जरूर होंगी। ये विसंगतियाँ वहाँ के समाज की होंगी वहाँ के हालात के कारण।इन्हीं विसंगतियों के प्रति मेरे मन में जिज्ञासा थी कि वह समाज जो दुनिया का सबसे उन्नत समाज माना जाता है वहाँ सामाजिक स्थिति कैसी है। जैसा कि हिंदी ब्लागर ने लिखा भी-

हमारे ब्लॉगरों में से ज़्यादातर अमरीका में हैं. वो हमें बताएँ कि अमरीका में स्ट्रीट क्राइम की स्थिति भारत से बुरी है कि नहीं? जघन्य अपराधों के मामले में अमरीका को भारत से ऊपर रखा जा सकता है या नहीं? वहाँ पारिवारिक समस्याएँ भारत से ज़्यादा हैं या नहीं? अमरीका में अमीरों और ग़रीबों के बीच की खाई भी भारत के मुक़ाबले बड़ी है कि नहीं? एक आम अमरीकी एक आम भारतीय के मुक़ाबले ज़्यादा स्वार्थी है कि नहीं? भारत में आमतौर पर विदेशियों को (ख़ास कर गोरों को) जिस तरह इज़्ज़त दी जाती है क्या अमरीका में विदेशियों को (ख़ास कर भूरों को) उस दृष्टि से देखा जाता है?
किसी भी महान की ,चाहे वह देश हो या व्यक्ति के कुछ स्याह पक्ष होते हैं। इस मामले में अमेरिका भी अपवाद नहीं है। वह दुनिया भर की आजादी का पक्षधर है दुनिया भर में लोकतंत्र का झंडा फहराना चाहता है लेकिन उसकी तमाम हरकतें किसी गली के गुंडों सरीखी हैं जो केवल उनकी हिफाजत करता है जो उसको हफ्ता देते रहते हैं। अफगानिस्तान तथा इराक में लोकतंत्र की स्थापना के लिये जितनी तड़फ होती रही वह दुनिया ने देखी। लेकिन पाकिस्तान ,सउदी अरब आदि में अलोकतांत्रिक सरकारें देखने के लिये उसकी आंख में माड़ा पड़ जाता है। ये सरकारें जब तक अमेरिका के लिये दुधारू गायें बनी रहेंगीं वह आंख मूदे रहेगा । इस मामले में अमेरिका में अमेरिका का रुख धूर्तता की हद तक दोमुंहा है। किशोरमन इतना धूर्त नहीं होता।
बहरहाल, हर चीज की सेल्फ लाइफ होने के नियम के अनुपालन में अमेरिका की भी कुछ सेल्फ लाइफ होगी। जब मैं अमेरिकी ब्लागर्स से वहाँ के बारे में लिखने के बारे में कहता हूँ तो मेरा आशय न वहाँ के कसीदे काढ़ना होता है न यह कि वे वहाँ का कीचड़ हमें दिखायें। मेरा मतलब यह होता है कि लोग हमें वहाँ के बारे में जानकारी दें। जैसे यहाँ के कोने-अतरे में हुई कोई भी घटना पर लोग पट से पोस्ट लिख मारते हैं वैसे वहां की गतिविधियों से हमें अवगत कराते रहें।वहाँ भी तमाम भौतिक समृद्धि के बावजूद तमाम विसंगतियाँ होंगी उनके बारे में कभी खुटुर-पुटुर करें।हर तरह की श्रेष्ठता के बावजूद अमेरिका भी एक देश है जहाँ भी आदमी ही बसते हैं। जहां आदमी बसते हैं वहाँ कुछ अच्छाइयां होती हैं कुछ बुराइयाँ। जब मैं अच्छाइयों-बुराइयों के बारे में लिखने की बात करता हूँ तो मेरा आशय वहां के बारे में जानने का होता है न कि अमेरिका की कमियों से खुश होकर मस्त होकर यह कहने का कि ससुरा अमेरिका में भी कौन कम गड़बड़ियाँ हैं। अभी जितनी जानकारी हमें वहाँ के बारे में मिलती है ,अपने साथियों से, वह सम्मोहन में डूबे लोगों की होती है।
यह सम्मोहन वहाँ की साफ-सफाई के लिये,भ्रष्टाचार मुक्त समाज के लिये तथा हर एक के लिये समान अवसर होने के लिये है। इसके अलावा वहां की पारदर्शी जिंदगी के लिये,खुलेपन के लिये है। भारत जैसे समाज से जाकर ऐसे माहौल के प्रति सम्मोहन तथा उसकी मुक्तकंठ तारीफ करना स्वाभाविक है।
भारत से जो भी प्रवासी अमेरिका जाते हैं वे आमतौर पर औसत से अधिक बुद्धिमान,मेहनती तथा अनुशासित होते हैं। ज्यादातर बच्चे वे होते हैं जो जिंदगी भर मन लगाकर पढ़ते रहे तथा पढ़ाई खतम करने के बाद एक से पांच साल के अंदर अवसर मिलने पर तथा संयोग बनने पर अमेरिका चले गये। यह सारी की सारी खेप जो जाती है वह अनुशासित खेप होती है किसी भी तरह के पंगे से बचने के प्रयास में रहती है। किसी तरह की गैरकानूनी हरकत अपने जानते-बूझते नहीं करती।
चाहे जितना आसान हो गया हो अमेरिका जाना आजकल लेकिन आज भी हमारे देश में ‘स्टेट्‌स’ जाना ‘स्टेटस सिंबल’ है। ऐसे में वहां के हर पहलू को चौंधियाती नजरों से देखना तथा बयान करना कुछ स्वाभाविक सा है।
औसत भारतीय प्रवासी की हालत अमेरिका जैसे देश में जाकर उदयप्रकाश की कहानी रामसजीवन की प्रेमकथा के रामसजीवन ,जो कि गांव से शहर उच्च शिक्षा के लिये जाते हैं,की तरह की होती है (कभी पढ़वाउंगा अगर न पढ़ी हो)।
लेकिन मुझे लगता है कि सम्मोहन इतना तगड़ा नहीं होना चाहिये कि हर सही-गलत हरकत में ‘इस्टाइल’ से लहालोट हो जाया जाय। लेकिन यह मानव सभ्यता के लिहाज से विडंबना ही है कि जो देश दुनिया का सबसे ज्यादा ताकतवर है वह दुनिया का सबसे डरपोक ,स्वार्थी, तथा अपने फायदे के लिये सबसे घटिया कुतर्क गढ़ने वाला देश है। अमेरिका ने यह सब कुछ अपनी निरंतर सामूहिक मेहनत तथा समर्पण से प्राप्त किया लेकिन समय बदलते देर नहीं लगती।
भारतीयों की कामेच्छायें दमित होना या न होना तो बहुत बड़ी बहस का विषय है। इस पर फिर कभी बाद में।लेकिन जैसा सार्त्र ने लिखा है अमेरिकी समाज के बारे में:-
हजारों वर्जनाएं हैं,जो विवाहेतर संबंधों को अवैध करार देती हैं,मगर कोएजुकेशनल कालेजों के पिछवाड़े वापरे हुये निरोध बिखरे रहते हैं। बहुत से मर्द और औरते हैं,जो नशे की हालत में हमबिस्तर हो जाते हैं और नशा उतरते ही भूल जाते हैं।
और इसके पहले देबाशीष ने जो बताया था रात गई-बात गई वाले ‘हुक-अप’ संबंधों के बारे में ।
तो कहीं न कहीं लगता है कि ऐसे खुलेपन से भगवान बचाये।
मेरा मंतव्य सिर्फ यही है कि तमाम दूसरे समाजों की तरह अमेरिका भी एक देश है,समाज है। कोई खुदा नहीं है कि उसमें कोई कमी न हो। उसकी हर हरकत को कृष्ण की बाललीला की तरह बयान करने का मतलब है कि बयान करने वाला दिमागी तौर पर सूरदास है।
एक महान देश से महान हरकतें करने की अपेक्षा एक स्वाभाविक चाहत है। अगर मैं चाहना करता हूँ तो मुझे नहीं लगता कि यह मेरा किसी ‘किसिम’ का हीनभाव है।एक महान ,ताकतवर देश को हमेशा अपने ‘लौंडपने’ झंडा उठाये देखना कभी-कभी अखरता है। आपको क्या लगता है?

ये भी देखें:

  • बेतरतीब बंधे होने से क्या आशय है ? - betarateeb bandhe hone se kya aashay hai ?
    चिट्ठाकारी- पांच सवाल, पांच जवाब
  • बेतरतीब बंधे होने से क्या आशय है ? - betarateeb bandhe hone se kya aashay hai ?
    भौंरे ने कहा कलियों से
  • बेतरतीब बंधे होने से क्या आशय है ? - betarateeb bandhe hone se kya aashay hai ?
    अति सूधो सनेह को मारग है
  • बेतरतीब बंधे होने से क्या आशय है ? - betarateeb bandhe hone se kya aashay hai ?
    मोहब्बत में बुरी नीयत से कुछ भी सोचा नहीं जाता
  • बेतरतीब बंधे होने से क्या आशय है ? - betarateeb bandhe hone se kya aashay hai ?
    देबाशीष-बेचैन रुह का परिंदा

Posted in बस यूं ही | 3 Responses

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

3 responses to “अमेरिका-कुछ बेतरतीब विचार”

  1. Hindi Blogger

    June 26, 2006 at 5:39 am | Permalink

    देर हो चुकी है, इसलिए रमन जी के ब्लॉग पर टंकित टिप्पणी को ही यहाँ चेंप रहा हूँ. धृष्टता के लिए माफ़ी चाहूँगा.
    ‘धन्यवाद, रीडर्स डाइजेस्ट के सर्वे के बहाने छिड़ी बहस को आगे बढ़ाने के लिए.
    हम सभी लोगों का यही मानना है कि हर देश, हर समाज, हर व्यक्ति में विशेषताएँ और कमियाँ दोनों होती हैं. इतना ज़रूर हो सकता है कि किसी मामले में अच्छाइयाँ ज़्यादा हों और किसी में कमियाँ. किसी देश को या फिर किसी धर्म को सर्वश्रेष्ठ ठहराने का कोई भी प्रयास निरर्थक ही कहा जाएगा. बात सम्यक दृष्टि की होनी चाहिए.
    मुझे अमरीका में रहने का सौभाग्य तो नहीं मिला, लेकिन पाँच वर्षों तक भारत से दूर एक विकसित माने जाने वाले समाज में रहा हूँ- अतिथि श्रमिक के तौर पर नहीं, बल्कि स्थाई निवासी के तौर पर यानि पूरे अधिकारों के साथ(वोट देने के अधिकार समेत). इसके अलावा घुमक्कड़ी के दिनों में, जबकि बुढ़ापे के लिए बचत करने की जरा भी चिंता नहीं थी, कुल 13 यूरोपीय देशों में सप्ताह से लेकर तीन सप्ताह तक रह कर उन्हें थोड़ा-बहुत जानने का भी मौक़ा मिला है. इनमें ब्रिटेन, फ़्रांस या इटली जैसे विकसित देश, रूस या जर्मनी जैसे कड़े क़ानूनों में बंधे देश, और नीदरलैंड्स, डेनमार्क या स्वीडन जैसे उन्मुक्त देश शामिल हैं. हमें ऐसी कोई जगह नहीं दिखी जहाँ कि अपनी स्थानीय समस्याएँ नहीं हों(छोटी भी और अत्यंत गंभीर भी), या जहाँ कि स्थितियों को आदर्श मान कर उन्हें भारत में हूबहू उतारने का सपना दिखा हो.
    हर समाज के अपने-अपने आदर्श और मानदंड होते हैं. इसलिए भारत और अमरीका की नख-शिख तुलना करना ही बेमानी है.
    लेकिन ईस्वामी जी की दलीलों का क्या कहना! भावनाओं में बह कर न जाने कहाँ-कहाँ के तर्क दे बैठे. प्रस्तुत है एक नमूना- “जिस देश के लोगों ने … …, दुनिया को पीसी और इन्टरनेट जैसी चीज़ दे रखी है उसी इन्टरर्नेट पर उन्हें सीमित दायरे में जीने वाला कहा जा रहा है.”
    भइये, इसका मतलब तो ये हुआ कि इंग्लैंड ने दुनिया को टेलीविज़न दिया इसलिए टेलीविज़न पर वहाँ की ‘गंदगी’ नहीं दिखाई जाए, या चीन में काग़ज़ का आविष्कार हुआ तो पत्र-पत्रिकाओं के ज़रिए वहाँ की सेंसरशिप पर सवाल नहीं उठाए जाएँ!
    हमारे अमरीकावासी मित्र वहाँ के संविधान के पहले संशोधन को क्यों भूल जाते हैं?’

  2. बेतरतीब बंधे होने से क्या आशय है ? - betarateeb bandhe hone se kya aashay hai ?

    ई-स्वामी » भाग-२:अमरीका-शमरीका!

    June 26, 2006 at 5:50 am | Permalink

    [...] फ़ुरसतियाजी के अमरीका पर बेतरतीब विचार पढे. एक बेतरतीब विचारों वाला लेख मेरी तरफ़ से भी – वादा रहा अगले लेख में हर बचे प्रश्न का तमीज़ से बिंदूवार जवाब देने की कोशिश करूंगा.  लेकिन उस के पहले कुछ – [...]

  3. बेतरतीब बंधे होने से क्या आशय है ? - betarateeb bandhe hone se kya aashay hai ?

    तेरे मैनर्स मेरे मैनर्स से सफ़ेद कैसे! at अक्षरग्राम

    June 26, 2006 at 6:54 am | Permalink

    [...] (हिंदी चिट्ठामंडल में रीडर्स डाइजेस्ट के हालिया सर्वे से शुरू हुई एक बहस चल रही है, जो इस मुद्दे से कहीं आगे तक जाती है। मैं फिलहाल बस इस सर्वे के बारे में दो-चार बातें कहना चाहता था, जो टिप्पणियों के लिए बड़ी नज़र आती हैं। इसलिए यहाँ लिख रहा हूँ।) [...]

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बेतरतीब का मतलब क्या होता है?

बेतरतीब वि॰ [फा़॰] बिना सिलसिला या क्रम का ।

बेतरतीब बंधे होने से क्या आशय है ढीले बंधे होना कस कर बंधे होना लापरवाही से बांधे गए इनमें से कोई नहीं?

Answer. - 1. कोई क्रम न होना; क्रमहीनता 2. असंबद्धता।