भारतीय मैदानों का निर्माण कैसे होता है? - bhaarateey maidaanon ka nirmaan kaise hota hai?

मैदान क्या हैं?

मैदान प्रायः भूपटल पर समतल, किन्तु निचले स्थलखण्ड होते हैं। कुछ मैदान हॉलैण्ड के तट के समान सागर तल से नीचे भी होते हैं। इसके विपरीत कुछ मैदान सागर तल से कुछ ही मीटर ऊँचे होते हैं जबकि कुछ मैदान सैकड़ों मीटर तक ऊँचे होते हैं। ऊँचाई की दृष्टि से समुद्र तल से 150 मीटर तक ऊँचे, किन्तु समतल तथा विस्तृत स्थलखण्ड को मैदान की संज्ञा दी जाती है।

भारतीय मैदानों का निर्माण कैसे होता है? - bhaarateey maidaanon ka nirmaan kaise hota hai?

फिन्च तथा ट्रिवार्था के अनुसार, "समुद्र तल से लगभग 500 फीट तक ऊँचे निम्न भू-भाग मैदान कहलाते हैं।" सीमेन के अनुसार, "मैदान कम ढाल तथा उच्चावच वाले समतल भू-भाग होते हैं।"

स्थिति के आधार पर मैदानों का वर्गीकरण

इस आधार पर मैदान दो प्रकार के होते हैं :

  1. तटीय मैदान - सागर तटों के निकट के मैदान तटीय मैदान कहलाते हैं, जैसे-फ्लोरिडा का मैदान, भारत का पूर्वी तटीय मैदान।
  2. आन्तरिक मैदान - महाद्वीपों के आन्तरिक भाग में पाए जाने वाले मैदान आन्तरिक मैदान कहलाते हैं। जैसे- यूरोप का मैदान।

जलवायु के आधार पर मैदानों का वर्गीकरण

स्थलाकृतियों के स्वरूप निर्धारण में जलवायु महत्वपूर्ण कारक होती है। जलवायु की परिस्थितियों के अनुसार मैदानों के निम्न भेद किए जा सकते हैं:-

  • उपोष्ण आर्द्र मैदान
  • उपोष्ण शुष्क मैदान
  • उपध्रुवीय शीतल मैदान

उत्पत्ति या निर्माण प्रक्रिया के अनुसार मैदानों का वर्गीकरण

इसके अनुसार दो प्रकार के मैदान होते हैं :

अन्तर्जात बल द्वारा उत्पन्न मैदान

अन्तर्जात बलों द्वारा रचनात्मक प्रक्रियाएं होती हैं। इनमें पटल विरूपण तथा ज्वालामुखी क्रिया मुख्य हैं। इनसे निम्नलिखित दो प्रकार के मैदान उत्पन्न होते हैं

पटल विरूपणी मैदान

पटल विरूपण के अन्तर्गत महादेशजनक बल द्वारा भूपटल का उत्क्षेप तथा अवतलन होता है। सागर तट पर स्थल खण्ड का निमज्जन या उन्मज्जन होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका का विशाल मैदान क्रिटेशियस युग में सागर तल से नीचे स्थित था। सागरीय तलछट के निक्षेपों के बाद प्लीस्टोसीन युग में व्यापक उत्थान क्रिया से इस मैदान की रचना हुई।

सागर तट पर निमज्जन की क्रिया से भी मैदानों की रचना होती है। भारत के कोरोमण्डल एवं उत्तरी सरकार तटवर्ती मैदान स्थल के अवतलन से उत्पन्न हुए हैं।

ज्वालामुखी (लावा) मैदान

ज्वालामुखी के विदरी उद्गार से निस्सृत लावा का प्रवाह दूर तक होता है। जब लावा की परत चादर के रूप में निक्षेपित हो जाती हैं तब अधिक ऊँचे व ऊबड़-खाबड़ धरातल से पठार तथा समतल धरातल होने पर मैदान की रचना होती है।

भारतीय मैदानों का निर्माण कैसे होता है? - bhaarateey maidaanon ka nirmaan kaise hota hai?

इनसे निर्मित काली मिट्टी बहुत उर्वर होती है। न्यूजीलैण्ड, आइसलैण्ड, फ्रांस, अर्जेण्टीना आदि में ऐसे मैदान स्थित हैं।

बहिर्जात बल द्वारा उत्पन्न मैदान

भूपटल पर हिमानी, पवन तथा लहरें समतल स्थापक साधन हैं जो स्थलखण्ड की विषमताओं को अपरदन एवं निक्षेप द्वारा दूर करती हैं। इन साधनों से दो प्रकार के मैदानों का निर्माण होता है :

अपरदनात्मक मैदान

अपरदन के साधनों के अनुसार अपरदनात्मक मैदानों में बहुत भिन्नता पाई जाती है। तदनुसार निम्न प्रकार के अपरदनात्मक मैदान होते हैं:

नदी अपरदित मैदान

नदियाँ स्थल का अपरदन करती हैं तो वह अपरदन (विकास) चक्र की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है। नदी के अपरदन चक्र की अन्तिम अवस्था में समप्राय मैदान की रचना होती है। नदी प्रायः सभी विषमताओं को दूर करके आधार तल को प्राप्त कर लेती है। केवल कठोर व प्रतिरोधी शैलें टीलों के रूप में जहाँ-तहाँ अवशिष्ट रह जाती हैं, जिन्हें मोनाडलॉक कहते हैं।

हिम अपरदित मैदान

हिमानी का कार्य क्षेत्र उच्च पर्वत तथा उच्च अक्षांश होते हैं। प्राय: पर्वतीय या घाटी हिमानी ही अपरदनात्मक स्थल रूपों का विकास करती है। अतएव हिमानी द्वारा घर्षित मैदान अधिक विस्तृत तथा सपाट नहीं होते। इनमें गोलाकार चोटियों युक्त पहाड़ियों व टीले, गड्ढे, झीलें व दलदल पा जाते हैं। किन्तु नदी की भाँति हिमानी, समप्राय मैदान की रचना नहीं करती, क्योंकि हिमानी का अपरदन सामान्य आधार तल (सागर तल) द्वारा नियन्त्रित नहीं होता। हिम अपरदित मैदानों के उदाहरण उत्तरी भाग तथा उत्तरी-पश्चिमी युरेशिया में मिलते हैं।

पवन अपरदित मैदान

नदी व हिमानी की अपेक्षा पवन का अपरदन कार्य बहुत धीमा होता है। यान्त्रिक अपक्षय द्वारा पहले से ढीले शैल कणों को पवन अपवाहन क्रिया द्वारा उड़ाकर ले जाती है तथा अपघर्षण द्वारा शैलों को घिसती व खुरचती है। कालान्तर में घिसे हुए टीलों युक्त विषम मैदान की रचना होती है। रेग, सेरिर व हमादा इसी प्रकार के मैदान हैं। किन्तु इन मैदानों के निर्माण में प्रवाही जल के द्वारा चादरी अपरदन का भी योगदान होता है। इन मैदानों के अतिरिक्त पर्वतीय ढालों पर पवन तथा जल की सम्मिलित क्रिया से ढालू मैदान भी बनते हैं जिन्हें पेडिमेन्ट कहते हैं। इनके भूआकृतिक विकास की अन्तिम अवस्था में पदस्थली की रचना होती है।

कार्स्ट मैदान

चूने की शैल वाले धरातल पर प्रवाही जल (नदी) रिसकर भूमिगत हो जाता है। घुलन क्रिया द्वारा यह जल असंख्य छिद्रों (sink holes), डोलाइन पों, युवाला तथा पोलजे बेसिनों युक्त मैदान की रचना करता है। यहाँ सती निवेशिकाएं, कन्दराएँ, अन्धी घाटी, कार्ट पुल एवं खिड़की आदि आकार भी विकसित हो जाते हैं। यूगोस्लाविया के कार्ट प्रदेश, फ्रांस में कौसे, उत्तरी अमेरिका में यूकाटन व फ्लोरिडा, भारत में नैनीताल व अल्मोड़ा जिले में इस प्रकार के मैदान विकसित हुए हैं

निक्षेपात्मक मैदान

अपरदन के उपरोक्त साधनों, (नदी, हिमानी, पवन आदि) द्वारा ही निक्षेप कार्य भी होता है। वास्तव में विश्व के विशालतम मैदान निक्षेपात्मक मैदान ही हैं। साधनों के अनुसार इनमें विविधता पाई जाती है। इनके प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं :

जलोढ़ मैदान

अपरदन व निक्षेप के कारकों में नदी का कार्य सबसे महत्वपूर्ण होता है। नदी के अपरदनात्मक मैदानों की अपेक्षा निक्षेपात्मक मैदान अधिक व्यापक एवं महत्वपूर्ण होते हैं। जलोढ़ मैदानों की रचना नदी की युवावस्था समाप्त होने पर प्रौढ़ तथा वृद्धावस्था में होती है। नदी जब पर्वतों से नीचे उतरती है तो पर्वतों की तलहटी या आधार पर वह मोटे कणों के रूप में तलछट का निक्षेप करती है, इससे जलोढ़ शंकु व पंख बनते हैं। कई पंखों के मिलने से एक मैदान बन जाता है, जिसे गिरिपदीय जलोढ़ मैदान कहते हैं। भारत में भाबर व तराई के मैदान इसी प्रकार के हैं।

भारतीय मैदानों का निर्माण कैसे होता है? - bhaarateey maidaanon ka nirmaan kaise hota hai?

प्रौढावस्था में नदी समतल धरातल पर मोड़ बनाती हुई बहती है। वर्षा काल में नदी अपने कगारों को तोड़कर जल के साथ सूक्ष्म तलछट पदार्थ को दूर-दूर तक फैला देती है। इससे बाढ़ के मैदान उत्पन्न होते हैं। जहाँ पर प्रतिवर्ष बाढ़ का जल पहुँचता है, जिससे नवीन कॉप मिट्टी का निक्षेप होता रहता है, उस भाग को 'खादर मैदान' तथा इसके विपरीत बाढ़ के उच्च भागों को जहाँ पर बाढ़ का जल नहीं पहुंच पाता है, 'बांगर मैदान' कहते हैं। भारत में सतलुज, गंगा, ब्रह्मपुत्र, मिन में नील, चीन में यांग्टीसीक्यांग संयुक्त राज्य में मिसीसिपी आदि नदियों ने बाढ़ के उपजाऊ मैदान बना लिए हैं। डेल्टा के निकट भी नदी उर्वर मैदान की रचना करती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र, नील, मिसीसिपी, यांग्टीसीकयांग आदि नदियों के डेल्टाई मैदान बहुत उपजाऊ और घने आबाद हैं।

हिमानी-जलोढ़ मैदान

हिमानी निक्षेप कार्य से दो प्रकार के मैदान उत्पन्न होते हैं- (i) हिमोढ़ निक्षेपों से निर्मित गर्तयुक्त, दलदली ऊबड़ खाबड़ मैदान तथा (ii) हिमानी के प्रौथ या अग्न भा में हिम पिघल कर जल धाराएँ फूट निकलती हैं, तब हिमानों के साथ लाया गया अपोढ़ दूर तक फैल जाता है। ऐसे मैदान ढीले पदार्थों से निर्मित दलदली तथा अनुपजाऊ होते हैं। इन्हें हिमनद अवक्षेप कहते हैं। जर्मनी व पोलैण्ड के ऐसे मैदान प्लीस्टोसीन हिमाच्छादन से उत्पन्न हुए हैं।

लोयस मैदान

मरूस्थलीय प्रदेशों में हवा के साथ प्रवाहित बारीक मिट्टी के जमाव से इनका निर्माण होता है। चीन, अर्जेन्टाईना, केस्पियन सागर के सहारे लोयस के मैदान उल्लेखनीय है।

पवन निक्षेपित मैदान

पवन के द्वारा निक्षेपित मैदान दो प्रकार के होते हैं-

(i) बालू का पत्थर शैल युक्त धरातल पर मरुस्थलों में यान्त्रिक अपक्षय की क्रिया द्वारा शैलें ढीली पड़ती हैं। पवन की अपवाहन क्रिया यह ढीली रेत उड़ाकर ले जाती हैं। इस प्रकार पवन की निक्षेप क्रिया से रेतीले मैदान बनते हैं जिनमें बालू के स्तूपों की प्रधानता होती है। सहारा, थार आदि मरुस्थल इसी प्रकार के हैं।

(ii) मरुस्थल की रेत व धूल के कण जब सैकड़रें व हजारों मील दूर ले जाकर निक्षेपित कर दिए जाते हैं तो 'लोएस' मैदान बनते हैं। उत्तरी पश्चिमी चीन का लोयस मैदान, गोबी मरुस्थल से उड़ाकर लाई गई रेत व धूल से बना है।

संरचनात्मक मैदान

ये मैदान दो प्रकार से बनते हैं- (i) झील में गिरने वाली नदियाँ उसमें तलछट का निक्षेप करती हैं। कालान्तर में झील उथली होकर पट जाती हैं। इससे उर्वर मैदान का निर्माण होता है। (ii) अन्तर्जात बलों से झील की तली ऊपर उठ जाती है, तब झील का जल आसपास फैलकर सूख जाता है। इस प्रकार झील के स्थान पर मैदान की रचना होती है।

झील निर्मित मैदान

जब कभी नदियों के अवसादीय निक्षेपण से झील भर जाती है तो जमा तलछट, उपजाऊ मैदान का रूप ले लेता है। जब कभी आंतरिक हलचलों से झील की तली ऊपर उठ जाती है तो उसका जल इधर उधर फैल जाता है और तली मैदान में परिवर्तित हो जाती है। हंगरी का मैदान, अमेरिका, के प्रेयरी प्रदेश झील निर्मित मैदान है।

लावा निर्मित मैदान

ज्वालामुखी का लावा जब धरातल पर प्रवाहित होता है तो उसके जमने पर मैदान की उत्पत्ति होती है। (इसका विस्तृत विवरण पटल विरूपणी मैदानों के अन्तर्गत किया गया है।) ज्वालामुखी विस्फोट के साथ निकला लावा, राख व बारीक शैल कण विस्तृत क्षेत्र पर जमा होने से इन मैदानों का निर्माण होता है। दक्षिण भारत में लावा निर्मित मैदान पाये जाते हैं।

नदी द्वारा निर्मित मैदान

  • गिरिपद जलोढ़ मैदान (Piedmont Alluvial Plain)
  • बाढ़ के मैदान (Flood Plains)
  • डेल्टाई मैदान (Delta Plains)

गिरीपद जलोढ़ मैदान

  • इस प्रकार के मैदान का निर्माण कई जलोढ़ पंखों (पर्वतपाद के समीप नदी द्वारा परिवहित अवसादों के बड़े टुकड़ों का निक्षेप) के एक साथ मिलने से एक विस्तृत पंख के रूप में होता है।
  • इस मैदान के ऊपरी भाग में बड़े-बड़े आकार वाले पदार्थ निक्षेपित होते हैं तथा निचले अर्थात् किनारे की ओर छोटे-छोटे आकार वाले चट्टानों के टुकड़े के निक्षेप होते हैं। बड़े-बड़े टुकड़ों के कारण इनमें नदियों का पानी नीचे चला जाता है फलत: नदी धरातल से
  • अदृश्य हो जाती है।
  • भारत में हिमलाय पर्वत की निचली तलहटी में स्थित इस तरह का मैदान भाबर कहलाता है। भाबर मैदान वास्तव में एक शुष्क डेल्टा के रूप में है।
  • यहाँ पर बड़ी-बड़ी घासें जिसमें हाथी घास व सवाई घास प्रमुख है तथा अनेक प्रकार के छोटे-छोटे वृक्ष उगते हैं। इस तरह के मैदान का ढाल पर्वत की ओर अधिक तथा मैदान की ओर मन्द होता जाता है कृषि-कार्य के दृष्टिकोण से ये मैदान अनुपजाऊ होते हैं।

बाढ़ का मैदान (Flood plains)

इस प्रकार के मैदान का निर्माण जलोढ़ काँप या कछारी मिट्टी से होता है। इस मैदान को दो वर्गों में रखा जाता हैं।

खादर मैदान

इस मैदानी भाग में प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी आता है, फलतः यहाँ नवीन काँप मिट्टी का निक्षेप होता रहता है। यह मैदान कृषि के दृष्टिकोण से काफी उपजाऊ होता है।

बाँगर मैदान

यह मैदान खादर की तुलना में उच्च एवं प्राचीन होता है, जिस कारण यहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता। कृषि-कार्य की दृष्टि से यह मैदान भी उपजाऊ होता है लेकिन खादर की तुलना में कम उपजाऊ होता है। 

डेल्टाई मैदान

  • जब नदियाँ सागरों या झीलों में गिरती हैं तो मन्द ढाल के कारण उसका वेग कम हो जाता है। फलतः नदी अपने मुहाने के पास ही तलछट का निक्षेप करती है, जिसके कारण वहाँ समतल त्रिभुजाकार मैदान का निर्माण होता है, जिसे डेल्टा का मैदान कहा जाता है।
  • इसके ऊँचे भागों को चर तथा निचले भागों को बील (बंगाल में) कहा जाता है। यह मैदान भी कृषि-कार्य की दृष्टि से अति उपजाऊ होता है। नील नदी एवं गंगा नदी का डेल्टा इसका उत्तम उदाहरण है।

विश्व के प्रमुख मैदान

मध्यवर्ती बड़ा मैदान या Great Plain - उ. अमेरिका (कनाडा तथा संयुक्त राज्य); अमेजन का मैदान- द. अमेरिका; पैटागोनिया का मैदान- द. अमेरिका; पम्पास का मैदान- द. अमेरिका, फ्रांस का मैदान-फ्रांस; यूरोप का बड़ा मैदान-यूरोप; द. साइबेरिया का मैदान-एशिया; सहारा मैदान-अफ्रीका; नील नदी का मैदान-मिस; अफ्रीका का पूर्वी तटीय मैदान; अफ्रीका का पश्चिमी तटीय मैदान; मलागासी का मैदान मलागासी; गंगा, यमुना एवं ब्रह्मपुत्र का मैदान-भारत एवं बांग्लादेश; सिन्ध का मैदान- भारत एवं पाकिस्तान, अरब का बड़ा मैदान- सउदी अरब, इराक तथा ईरान आदि; चीन का मैदान-चीन; आस्ट्रेलिया का पूर्वी मैदान आस्ट्रेलिया।

मैदानों का महत्व

विश्व की 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या मैदानों में निवास करती है। विश्व की प्रमुख सभ्यताएँ-सिन्धु घाटी सभ्यता, दजला-फरात की बेबिलोनियन सभ्यता, नील घाटी सभ्यता इत्यादि मैदानों में विकसित हुई। इसीलिए मैदानों को 'सभ्यताओं का पालना' (Cradle ofCivilizations) कहते हैं। मानव बसाव, कृषि, चारागाह, यातायात एवं परिवहन की दृष्टि से मैदान सुगम एवं उपयोगी होते हैं। सममतल होने के कारण रेलमार्ग, सड़क मार्ग और हवाई अड्डे बनाने के लिए मैदान सुविधाजनक रहते हैं। मैदानों में सिंचाई के साधन, विशेषकर नहरें आसानी से बनाई जा सकती है। मैदान सभी प्रकार की मानवीय क्रियाओं (Human Activities) के सर्वोत्तम स्थल हैं। संसार की घनी आबादी वाले क्षेत्र मैदानों में ही बसे हुए मिलते हैं।

भारतीय मैदान का निर्माण कैसे होता है?

उत्तर भारत के मैदान का निर्माण मुख्यतः सिंधु, गंगा व ब्रह्मपुत्र नदी तथा इनकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के निक्षेपण से हुआ है। इन्हें गंगा व ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहते हैं। यह मैदान पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक फैला हुआ है।

मैदान कितने प्रकार के होते हैं?

स्थिति के आधार पर मैदानों का वर्गीकरण.
(1) तटीय मैदान (Coastal Plain ) -.
(2) आन्तरिक मैदान (Interior Plain) -.
समतल मैदान-.
(अ) गिरिपाद जलोढ़ मैदान-.
(ब) बाढ़ मैदान-.
(स) डेल्टा का मैदान-.
(2) झीलकृत मैदान-.

मैदान की परिभाषा क्या है?

भौगोलिक दृष्टि से मैदान उस भूमि क्षेत्र को कहतें हैं जो समतल हो (या जिसमे बहुत थोड़ा उतार-चढ़ाव हो) और जिसकी समुद्र तट से ऊंचाई ५०० फुट से कम हो।

मैदान की विशेषता क्या है?

मैदानी भाग की प्रमुख विशेषताएं मैदानों की उत्पत्ति निर्माण कैसे हुआ है ? धरातल पर क्रमिक ढाल वाला निम्न प्रदेश मैदान कहलाता है। सामान्यतः यह समतल क्षेत्र होता है जिसकी समुद्र तल से अधिकतम ऊँचाई 500 मीटर तक होती है। सीमेन के अनुसार – “मैदानों में निम्न उच्चावच होता है तथा ढाल की अपेक्षा समतल क्षेत्र अनि पाया जाता है।''