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भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत 1984 एवं 1985 की औद्योगिक नीति से प्रारंभ हो चुकी थी, लेकिन इस दौर में इसे पूरे तरीके से नहीं अपनाया गया। भारत में आर्थिक सुधारों की प्रथम एवं व्यापक स्तर पर पाई जाने वाली नीति 1991 की औद्योगिक नीति थी। इस नीति में आर्थिक सुधारों की तीन प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया था- उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण। उदारीकरण आर्थिक सुधार की दिशा में उठाया गया एक प्रमुख कदम है। मूलतः इसका अर्थ अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप को कम कर बाज़ार प्रणाली पर निर्भरता बढ़ाना है। उदारीकरण का कृषि, उद्योग तथा सेवा तीनों क्षेत्रों पर अच्छा प्रभाव दिखता है। कृषि क्षेत्र में उदारीकरण से बाज़ार का विस्तार हुआ है, उत्पादकों को आकर्षक मूल्य तथा उपभोक्ताओं को सस्ती कीमत पर कृषि वस्तुओं की प्राप्ति सुलभ हुई। कृषि क्षेत्र में तकनीकी स्तर पर वृद्धि होने से उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है। साथ ही इस क्षेत्र में अनुसंधान तथा विकास पर बल दिया गया है। उदारीकरण के बाद उद्योगों की स्थिति भी सुधरी है। औद्योगिक उत्पादन में विविधता आई है, भारतीय औद्योगिक क्षेत्र को विदेशों से उच्च तकनीक प्राप्त होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि हुई है। उदारीकरण का सबसे ज़्यादा सकारात्मक प्रभाव सेवा क्षेत्र पर दिखाई देता है। वर्तमान में जीडीपी का अधिकांश हिस्सा इसी क्षेत्र से आता है। भारत सॉफ्टवेयर सेवा, पर्यटन सेवा, चिकित्सा सेवा इत्यादि के लिये आदर्श स्थल बन चुका है। बी.पी.ओ. के क्षेत्र में भी भारत अग्रणी है। परंतु इन सकारात्मक प्रभावों के साथ ही उदारीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष कुछ चुनौतियाँ भी उत्पन्न की हैं। उदारीकरण की प्रक्रिया को अपनाने के बाद हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का हिस्सा लगातार घट रहा है। पूरे देश में हर किसान के पास उदारीकरण का लाभ उठाने की क्षमता नहीं है, क्योंकि भारत में अधिकांश किसान सीमांत हैं। हमारे उद्योग बहुराष्ट्रीय निगमों से प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं तथा देशी उद्योग धंधे नष्ट हो रहे हैं। सेवा क्षेत्र में भी पर्यटन क्षेत्र के सामने कई समस्याएँ हैं, जो कि विकसित देशों की तुलना में कम सुविधायुक्त हैं। ऐतिहासिक सांस्कृतिक क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण स्थलों में अपार संभावना होते हुए भी इनका विकास नहीं हो पा रहा है। साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था बाह्य कारकों से बहुत ज्यादा प्रभावित होती दिखती है। अतः भारत अभी तक उदारीकरण का उचित लाभ नहीं उठा पाया है। उदारीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?अप्रैल, 2001 से कृषि पदार्थों और औद्योगिक उपभोक्ता पदार्थों के आयात भी मात्रात्मक प्रतिबंधों से मुक्त कर दिए गए भारतीय वस्तुओं का अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में स्पर्धा शक्ति बढ़ाने के लिए उन्हें निर्यात शुल्क से मुक्त कर दिया गया है।
उदारीकरण का भारत के उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा है?उदारीकरण के प्रभाव
सकल घरेलू उत्पाद में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। विभिन्न प्रोजेक्टों की स्थापना में व्यापक निवेश और आधुनिकीकरण ने विशेष रूप से कपडा, ऑटोमोबाइल, कोयला खदान, रसायन एवं पेट्रो-रसायन, धातु, खाद्य प्रसंस्करण, सॉफ्टवेयर उद्योग इत्यादि को ऊंचा उठाया। अवसंरचना के विकास के साथ, रोजगार अवसरों में वृद्धि हुई।
अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से क्या अभिप्राय है?निजी और विदेशी निवेश का विस्तार करने के लिए नियमों में ढील देना ही उदारीकरण कहलाता है। जब सरकार, कर नीति, आयात निर्यात नीति, औद्योगिक नीति, श्रम नीति, वाणिज्य नीति आदि के माध्यम से अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में निवेश, उत्पादन, विपणन इत्यादि में अपने नियंत्रणों को हटाती है तो उसे उदारवादी नीति कहा जाता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में निजीकरण की क्या भूमिका है?निजीकरण के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था कीकुशलता में वृद्धि होगी, प्रतियोगिता बढेगी उत्पादन की गुणवता तथा विविधता में वृद्धि होगी। इसका उपभोगताओं को विशेषरूप से लाभ होगा। राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में निजी क्षेत्र व सार्वजनिक छेत्र को बड़ी भूमिका देने के उद्देश्य से आर्थिक सुधारों के नए संस्करण लागू किये गये!
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