भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती हैं? - bhaaratavarsh kee unnati kaise ho sakatee hain?

Show

317 Views

भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?

लेखक – भारतेन्दु हरिश्चंद्र

विधा – निबंध (1884) (ददरी मेले में दिए गए भाषण का अंश)

निबंध सार :-

  • आलोचनात्मक निबंध में भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी ने ददरी मेले के अवसर पर बलिया में एक उत्साहवर्धक भाषण एवं व्याख्यान के रूप में प्रस्तुत किया था I इस निबंध मे साहित्यकार ने भारतीय दुर्दशा के लिए अंग्रेजी औपनिवेशिक साम्राज्यवाद को जिम्मेदार माना है I तो दूसरी तरफ भारतीय नागरिकों में विद्यमान आलस्य,अशिक्षा, अकर्मण्यता एवं दिशा हीनता को भी जिम्मेदार माना है I इस निबंध में भारतेन्दु ने भारतीयों में भारतीय अस्मिता को स्थापित करने के लिए ललकारा है I

  • भारतेन्दु ने भारतवासियों में नेतृत्व क्षमता को विकसित करना चाहा है I कई दशकों की गुलामी ने हमारी नेतृत्व क्षमता को हतोत्साहित किया है I इसलिए हम अंग्रेजों के पिछलग्गू बन गए हैं I भारत को सांस्कृतिक स्वतन्त्रता तभी मिलेगी जब हम अपना नेतृत्व स्वयं करना सीख लें I इस सृजनात्मक विचारधारा का सकारात्मक परिणाम हमने गांधी, सुभाषचंद्र बोस, जवाहर लाल नेहरू, पटेल एवं अंबेडकर आदि के लोकतान्त्रिक नेतृत्व में दृष्टि गोचर होता है I

  • भारतेन्दु जी अंग्रेजों के विरोधी तो थे लेकिन पाश्चात्य आधुनिकतावादी संस्कृति के नहीं I उन्होने बलिया के कलेक्टर राबर्ट साहब की खुलकर प्रसंशा की है, साहित्यकार ने अकबर,बीरबल,टोडरमल की धार्मिक सहिष्णुता, तीक्ष्ण नेतृत्व क्षमता एवं भूराजस्व नीतियों के कारण, उनकी सराहना की है I भारतेन्दु ने भारतवासियों की तुलना रेलगाड़ी के डिब्बों से की है I इसका तात्पर्य यह है कि हम भारतवासी बिना नेतृत्व के चल ही नहीं सकते I वे धार्मिक, पौराणिक उदाहरणों द्वारा सिद्ध करते हैं कि अगर भारतीयों को कोई बल एवं पराक्रम याद दिला दे तो ये सभी कार्य सम्पन्न कर सकते हैं I

  • भारतेन्दु इतिहास के मर्मज्ञ चित्रक हैं I इन्हे इतिहास की गतिशील नब्ज की पहचान थी I भारत गुलाम क्यों हुआ ? भारत के विभाजित होने के कारण क्षेत्रवाद, अकर्मण्यता, धर्मभीरुता एवं आलस्य आदि कुप्रवृत्तियों के कारण ही भारतीय अस्मिता खतरे में पड़ी I इसके अतिरिक्त जमींदारी प्रथा एवं सामंतवाद, जैसी भयावह कुरीतियों ने भी भारतीय राजनीतिक प्रशासनिक व्यवस्था को चकनाचूर किया I

  • भारतेन्दु पुनरुत्थानवादी समाज सुधारक साहित्यकार हैं I उनके समय में आम जनता अपने देश भारत के अतीत का गौरव भूल सी गई थी I ये सब जान बूझकर नहीं हुआ था बल्कि अंग्रेजी शासन उनका भय, आतंक, दमनकारी रवैया और भारतीयों का अशिक्षित होना इसके लिए जिम्मेदार था I अतः भारतेन्दु जी के सामने सबसे बड़ी समस्या यही थी कि भारतीयों का पुनर्जागरण किया जाये I तभी इनके विचारों में अतीतोन्मुखी परंपरा का बोध मिलता है I वे भारतीयों को विश्वस्तर पर उनका योगदान याद दिलाते हैं I वे बताते हैं कि भारतीयों ने खगोशास्त्र, गणितीय प्रणाली, चिकित्साशास्त्र एवं रसायनशास्त्र, दर्शन, अध्यात्मवाद, संस्कृति आदि क्षेत्र में योगदान दिया है I इसी कारण भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता है I अतः आज हमे फिर से अपने योगदान, अपने ज्ञान, ताकत को याद करने कि जरूरत है I अपने पौरुष को पहचानने की आवश्यकता है I वे आगे यह बताते हैं कि भारत विश्व विकास की दौड़ में इसी अज्ञानता की वजह से पिछड़ रहा है और हम अपनी पुरातन रूढ़ियों की वजह से विकास की दौड़ में पिछड़ गए हैं I

  • भारतेन्दु के अनुसार मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ एवं अति महत्वपूर्ण है I मनुष्य को कायरों की भांति जीवन नहीं व्यतीत करना चाहिए I बल्कि उसको समग्र सम-विषम अवसरों का लाभ उठाना चाहिए I इस विचारधारा का तात्पर्य यह है कि सम्पूर्ण भारतवासियों को भारतवर्ष के समग्र विकास एवं उन्नति हेतु प्रयत्नशील रहना चाहिए I भारतेन्दु जी ने राष्ट्र हित के लिए व्यक्तिगत हित को महत्व नही दिया I यह साहित्यकार का प्रगतिशील दृष्टिकोण है I

  • भारतेन्दु जी ने भारतीय संस्कृति की अस्मिता के उद्धार हेतु निवृत्तिमूलक एवं पालयनवादी विचारों के स्थान पर प्रवृत्तिमूलक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने पर बल दिया है I उनके अनुसार भारत में जितना कोई निकम्मा होता है उसे उतना ही बड़ा अमीर समझा जाता है I हालांकि इस कुप्रवृत्ति ने आज भी भारत को तोड़ने का प्रयास किया है I हमारे यहाँ मानसिक श्रम की अपेक्षा शारीरिक परिश्रम को कम महत्व दिया जाता है I लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मानसिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार के श्रम को समान महत्व देकर श्रमजीवी संस्कृति को समेकित धरातल प्रदान किया है I भारतेन्दु जी भारतवासियों को समय के साथ चलने के लिए कहते हैं I वे चाहते थे कि भारतवासी अपनी आवश्यकताओं के लिए किसी दूसरी ताकतों का मोहताज न रहे I

  • भारतेन्दु जी ने भारतवासियों में उत्साह का संचार करने के लिए ऐतिहासिक,धार्मिक एवं पौराणिक साक्ष्यों को प्रस्तुत किया है I भारतेन्दु जी इतिहास की गंभीर अवधारणा की जानकारी रखते थे I उपर्युक्त तथाकथित संदर्भों का प्रयोग भारतेन्दु जी ने सांस्कृतिक राष्ट्रीय चेतना को समेकित रूप देने में किया है I भारतेन्दु जी भारत के कण-कण में उन्नति एवं अभ्युत्थान देखना चाहते थे I वे चाहते थे कि भारत का सामाजिक,राजनीतिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, मानवीय, धार्मिक एवं आर्थिक आदि क्षेत्रों में सर्वांगीण विकास सम्पन्न हो I भारतेन्दु जी ने भारतीय समस्याओं का बहुत सूक्ष्म विचार विश्लेषण किया है I वे समस्या मुक्त भारतीयता के हिमायती थे I

  • वे धर्म नीति के हिमायती थे I लेकिन वे धर्मांधता, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद आदि तात्कालिक दोषों से मुक्त होने की तरफ भी इशारा करते हैं I भारतेन्दु के विचारों में देशभक्ति के साथ ही साथ राजभक्ति की प्रार्थना अखिल भारतीय राष्ट्रवादियों को खटकती है I वे तीज-त्योहार की नैतिक, मानवीय एवं वैज्ञानिक व्याख्या के हिमायती थे I वे नारी शोषण, दलित शोषण किसी भी प्रवृत्ति के खिलाफ थे I

 

COMMENT                                                 SUBSCRIBE                                                        SHARE

भारत देश की उन्नति कैसे हो सकती है?

धर्म में, घर के काम में, बाहर के काम में, रोजगार में, शिष्टाचार में, चाल चलन में, शरीर में, बल में, समाज में, युवा में, वृद्ध में, स्त्री में, पुरुष में, अमीर में, गरीब में, भारतवर्ष की सब आस्था, सब जाति,सब देश में उन्नति करो। सब ऐसी बातों को छोड़ो जो तुम्हारे इस पथ के कंटक हों।

भारत उन्नति कैसे हो सकती है निबंध?

भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है – निबंध सारांश इस निबंध में भारतेन्दु ने भारतीय के आ​लसी होने पर व्यंग्य किया है। ➡️ इस निबंध में अंग्रेजों के परिश्रम के प्रति आदर भाव भी व्यक्त किया गया है। ➡️ भारतेन्दु ने भारतीय लोगों को रेल की गाड़ी कहा है। ➡️ भाषण में ब्रिटिश शासन ​की मनमानी पर व्यंग्य किया गया है।

भारतेंदु जी के अनुसार सब उन्नति का मूल क्या है?

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी कहते हैं कि हमारे यहाँ धर्म की आड़ में विविध प्रकार की नीति, समाज-गठन आदि भरे हुए हैं। ये उन्नति का मार्ग प्रशस्त नहीं करते। इसलिए धर्म की उन्नति से सभी प्रकार की उन्नति सम्भव है। (iii) लेखक ने धर्म को सभी उन्नतियों का मूल बताया है।