भारतेन्दु युगीन काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियां कौन सी हैं? - bhaaratendu yugeen kaavy kee pramukh pravrttiyaan kaun see hain?

भारतेन्दु युगीन काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियां कौन सी हैं? - bhaaratendu yugeen kaavy kee pramukh pravrttiyaan kaun see hain?
Bhartendu Yug

भारतेन्दु युग (1850 ई०-1900 ई०)

भारतेंदु युग का नामकरण हिंदी नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850-1885 ई०) के नाम पर किया गया है। भारतेंदु युग की प्रवृत्तियां नवजागरण, सामाजिक, चेतना, भक्ति भावना, श्रृंगारिक्ता रीति निरूपण समस्या पूर्ति थी।

आधुनिक काल के हिंदी साहित्य में भारतेंदु को केंद्र में रखते हुए अनेक कृति साहित्यकारों का एक उज्जवल मंडल प्रस्तुत हुआ जिसे भारतेंदु मंडल के नाम से जाना गया। इसमें भारतेंदु के समान धर्मा रचनाकार थे। इस मंडल के रचनाकारों ने भारतेंद्र से प्रेरणा ग्रहण की और हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि का काम किया।

आधुनिक हिंदी काव्य के प्रथम चरण को “भारतेन्दु युग” की संज्ञा प्रदान की गई है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र को हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग का प्रतिनिधि माना जाता है। उन्होंने “कविवचन सुधा”, “हरिश्चन्द्र मैगज़ीन” और “हरिश्चंद्र पत्रिका” भी निकाली। इसके साथ ही अनेक नाटकों आदि की रचना भी की। भारतेन्दु युग में निबंध, नाटक, उपन्यास तथा कहानियों की रचना हुई।

नवजागरण काल – भारतेंदु काल को “नवजागरण काल” भी कहा गया है। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के संक्राति काल के दो पक्ष हैं। इस समय के दरम्यान एक और प्राचीन परिपाटी में काव्य रचना होती रही और दूसरी ओर सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में जो सक्रियता बढ़ रही थी और परिस्थितियों के बदलाव के कारण जिन नये विचारों का प्रसार हो रहा था, उनका भी धीरे-धीरे साहित्य पर प्रभाव पड़ने लगा था।

प्रारंभ के 25 वर्षों (1843 से 1869) तक साहित्य पर यह प्रभाव बहुत कम पड़ा, किन्तु सन 1868 के बाद नवजागरण के लक्षण अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे थे। विचारों में इस परिवर्तन का श्रेय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को है। इसलिए इस युग को “भारतेन्दु युग” भी कहते हैं। भारतेन्दु के पहले ब्रजभाषा में भक्ति और श्रृंगार परक रचनाएँ होती थीं और लक्षण ग्रंथ भी लिखे जाते थे।

भारतेन्दु के समय से काव्य के विषय चयन में व्यापकता और विविधता आई। श्रृंगारिकता, रीतिबद्धता में कमी आई। राष्ट्र-प्रेम, भाषा-प्रेम और स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम कवियों के मन में भी पैदा होने लगा। उनका ध्यान सामाजिक समस्याओं और उनके समाधान की ओर भी गया। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में गतिशील नवजागरण को अपनी रचनाओं के द्वारा प्रोत्साहित किया।

भारतेन्दु युगीन काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियां कौन सी हैं? - bhaaratendu yugeen kaavy kee pramukh pravrttiyaan kaun see hain?

भारतेंदु युग की रचनाएं

भारतेंदु युग का साहित्य अनेक अमूल्य रचनाओं का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा का साहित्य एवं रचनाएँ अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। भारतेंदु युग के कवि और उनकी रचनाएँ; भारतेंदु युग की रचनाएँ और रचनाकार उनके कालक्रम की द्रष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारतेंदु युग की मुख्य रचना एवं रचयिता या रचनाकार इस list में नीचे दिये हुए हैं।

भारतेंदु युग के कवि

भारतेंदु युग के प्रमुख कवियों में खुद भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और प्रताप नारायण मिश्र, बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, बाल कृष्ण भट्ट, अम्बिका दत्त व्यास, राधा चरण गोस्वामी, ठाकुर जगमोहन सिंह, लाला श्री निवास दास, सुधाकर द्विवेदी, राधा कृष्ण दास आदि।

भारतेंदु युग के कवि और उनकी रचनाएँ

भारतेंदु युग के प्रमुख कवि और उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:-

क्रमरचनाकारभारतेन्दुयुगीन रचना
1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र प्रेम मालिका, प्रेम सरोवर, गीत गोविन्दानन्द, वर्षा विनोद, विनय प्रेम पचासा, प्रेम फुलवारी, वेणु गीति; दशरथ विलाप, फूलों का गुच्छा (खड़ी बोली में)
2. बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ जीर्ण जनपद, आनन्द अरुणोदय, हार्दिक हर्षादर्श, मयंक महिमा, अलौकिक लीला, वर्षा बिन्दु, लालित्य लहरी, बृजचन्द पंचक
3. प्रताप नारायण मिश्र प्रेमपुष्पावली, मन की लहर, लोकोक्ति शतक, तृप्यन्ताम्, शृंगार विलास, दंगल खंड, ब्रेडला स्वागत
4. जगमोहन सिंह प्रेमसंपत्ति लता, श्यामालता, श्यामा सरोजिनी, देवयानी, ऋतु संहार, मेघदूत
5. अम्बिका दत्त व्यास पावस पचासा, सुकवि सतसई, हो हो होरी
6. राधा कृष्ण दास कंस वध (अपूर्ण), भारत बारहमासा, देश दशा

भारतेन्दु युग का नामकरण हिन्दी नवजागरण के अग्रदूत भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाम पर किया गया है।

भारतेन्दु युग की प्रवृत्तियाँ– 1. नवजागरण, 2. सामाजिक चेतना, 3. भक्ति भावना, 4. शृंगारिकता, 5. रीति निरूपण, 6. समस्या-पूर्ति।

भारतेन्दु मण्डल

भारतेन्दु युग में भारतेन्दु को केन्द्र में रखते हुए अनेक कृती साहित्यकारों का एक उज्ज्वल मंडल प्रस्तुत हुआ, जिसे ‘भारतेन्दु मण्डल’ के नाम से जाना गया। इसमें भारतेन्दु के समानधर्मा रचनाकार थे। इस मंडल के रचनाकारों ने भारतेन्दु से प्रेरणा ग्रहण की और हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि का काम किया।

भारतेन्दु मंडल के प्रमुख रचनाकार

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, बाल कृष्ण भट्ट, अम्बिका दत्त व्यास, राधा चरण गोस्वामी, ठाकुर जगमोहन सिंह, लाला श्री निवास दास, सुधाकर द्विवेदी, राधा कृष्ण दास आदि।


इस प्रष्ठ में भारतेंदु युग का साहित्य, काव्य, रचनाएं, रचनाकार, साहित्यकार या लेखक दिये हुए हैं। भारतेंदु युग की प्रमुख कवि, काव्य, गद्य रचनाएँ एवं रचयिता या रचनाकार विभिन्न परीक्षाओं की द्रष्टि से बहुत ही उपयोगी है।

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भारतेंदु के काव्य में कौन कौन सी प्रवृत्ति है?

राजभक्ति.
देशभक्ति.
समाज सुधार.
अर्थनीति.
भाषा-प्रेम.
परिहास काव्य.
लोकगीत.
निबंध काव्य.

भारतेन्दु युग की कविता की प्रमुख विशेषताएं क्या है?

भारतेन्दु युगीन काव्य की विशेषताएं (bhartendu yug ki visheshta) भारतेंदु युग के कवियों ने देश-प्रेम की रचनाओं के माध्यम से जन-मानस मे राष्ट्रीय भावना का बीजारोपण किया। भारतेंदु युग काव्य सामाजिक चेतना का काव्य है। इस युग के कवियों ने समाज मे व्याप्त अंधविश्वासों एवं सामाजिक रूढ़ियों को दूर करने हेतु कविताएँ लिखीं।

भारतेन्दु युग के प्रवर्तक कौन है?

भारतेंदु हरिश्चंद्र युग प्रवर्तक, युग निर्माता थे। हरिश्चंद्र पीजी कालेज में आयोजित भारतेंदु जयंती के मौके पर प्राचार्य प्रो. सोहन लाल यादव ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ¨हदी भाषा को एक नई दिशा दी। डा.