भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? - bhaarat mein mahilaon kee sthiti mein sudhaar ke lie kya kadam uthae gae hain?

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महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए भारत कर रहा है कड़े प्रयास

संयुक्त राष्ट्र की एक सर्वोच्च अधिकारी ने भारत को एक उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत करते हुए कहा है कि देश की सरकार अपनी आबादी के आधे हिस्से यानी महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए कड़े प्रयास कर रही...

भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? - bhaarat mein mahilaon kee sthiti mein sudhaar ke lie kya kadam uthae gae hain?

एजेंसीWed, 28 Oct 2009 10:54 AM

संयुक्त राष्ट्र की एक सर्वोच्च अधिकारी ने भारत को एक उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत करते हुए कहा है कि देश की सरकार अपनी आबादी के आधे हिस्से यानी महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए कड़े प्रयास कर रही है।

   उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि विश्व भर में बहुत सी ऐसी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं हैं, जो महिलाओं को समाज में समानता का अधिकार दिलाने से रोकती हैं। संयुक्त राष्ट्र की धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी विशेष दूत अस्मां जहांगीर ने पत्रकारों से कहा कि आपको भारत जैसे देश भी मिलेंगे, जहां पारंपरिक मान्यताएं हैं, लेकिन फिर भी वहां की महिलाओं को समानता का अधिकार मिल रहा है।

पाकिस्तान की एक जानी-मानी वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता अस्मां ने कहा कि इसका यह मतलब नहीं है कि उनके सामने परेशानियां नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब है कि कुछ आशाएं हैं कि महिलाओं को आगे मुकाम मिलेगा।

   दूसरी ओर, इसी दौरान भारत वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम के द ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2009 की रैंकिंग में अपने पिछले स्थान से एक स्थान नीचे पहुंच गया है। भारत को 134 देशों में से 114वां स्थान मिला है। रैंकिंग के तहत महिलाओं और पुरूषों के बीच संसाधन और अवसरों के वितरण का परीक्षण होता है।

   इस बात पर जोर देते हुए कि किसी भी समाज में वास्तविक समानता नहीं है, अस्मां ने कहा कि कई देश विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को मुख्यधारा में ला रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की अधिकारी ने भारत की तुलना ऐसे देशों से भी की, जहां महिलाओं के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव होता है।

   अस्मां ने कहा कि विश्व में कई देश ऐसे भी हैं, जहां महिलाओं को कार चलाने की भी अनुमति नहीं है और यह सिर्फ धर्म या परंपरा के नाम पर है। कई देश ऐसे हैं, जहां महिला अगर सिर न ढके तो भी उसे सजा दी जा सकती है। कई देशों में महिलाओं को उनके यौन संबंधों, उनके शरीर, जन्म और बच्चों को जन्म देने या नहीं देने के बारे में निर्णय करने का भी अधिकार नहीं दिया गया है।

अस्मां ने कहा सरकारों के सामने यह चुनौती है क्योंकि आप अभिव्यक्ति को नहीं रोक सकते। आपको इनसे निपटने के लिए राजनीतिक संदेशों और घोषणाओं का जरिया अपनाना होगा।

भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? - bhaarat mein mahilaon kee sthiti mein sudhaar ke lie kya kadam uthae gae hain?

समाज और परिवार में महिलाओं की स्थिति में धीरे धीरे ही सही, पर सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है. यह परिवर्तन शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक के आंकड़ों में दिखाई देता है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की हाल ही में जारी रिपोर्ट में महिलाओं की स्थिति को लेकर कुछ खुशखबरी हैं, और कुछ चिंताएं भी. सर्वेक्षण में प्रजनन, बाल और शिशु मृत्यु दर, परिवार नियोजन पर अमल, मातृ और शिशु स्वास्थ्य, पोषण, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता आदि का विवरण है.

बढ़ती भागीदारी

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. शिक्षण संस्थानों तक लड़कियों की पहुँच लगातार बढ़ रही है. एक दशक पहले हुए सर्वेक्षण में शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी 55.1 प्रतिशत थी जो अब बढ़ कर 68.4 तक पहुंच गयी है. यानी इस क्षेत्र में 13 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गयी है.

बाल विवाह की दर में गिरावट को भी महिला स्वास्थ्य और शिक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. कानूनन अपराध घोषित किये जाने तथा सामाजिक तौर पर लगातार जागरूकता फैलाने के बावजूद बाल विवाह का चलन अब भी बरकरार है.

भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? - bhaarat mein mahilaon kee sthiti mein sudhaar ke lie kya kadam uthae gae hain?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool

वैसे, संतोष की बात है कि इसमें गिरावट आ रही है. 18 वर्ष से कम उम्र में शादी 2005-06 में 47.4 प्रतिशत से घट कर 2015-16 में 28.8 रह गयी है. इस कमी का सीधा फायदा महिला स्वास्थ्य के आंकड़ों पर भी पड़ा है.

सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार बैंकिंग व्यवस्था में स्त्रियों की भागीदारी बढ़ी है. एक दशक पहले सिर्फ 15 प्रतिशत महिलाओं के पास अपना बैंक खाता था. नवीनतम आंकड़ों के अनुसार अब 53 प्रतिशत महिलाएं बैंकों से जुड़ चुकी हैं.

घर में सम्मान

शिक्षा और जागरूकता का असर घरेलू हिंसा पर भी पड़ा है. अब इस तरह के मामले पहले से कम हुए हैं. रिपोर्ट के अनुसार वैवाहिक जीवन में हिंसा झेल रही महिलाओं का प्रतिशत 37.2 से घटकर 28.8 प्रतिशत रह गया है. सर्वे में यह भी पता चला कि गर्भावस्था के दौरान केवल 3.3 प्रतिशत को ही हिंसा का सामना करना पड़ा.

इस सर्वेक्षण से यह भी सामने आया है कि 15 से 49 साल की उम्र में 84 प्रतिशत विवाहित महिलाएं घरेलू फैसलों में हिस्सा ले रही है. इससे पहले 2005-06 में यह आंकड़ा 76 प्रतिशत था. ताजा आंकड़ों के अनुसार लगभग 38 प्रतिशत महिलाएं अकेली या किसी के साथ संयुक्त रूप से घर या जमीन की मालकिन हैं.

और प्रयास की जरूरत 

महिला सशक्तिकरण की दिशा में देश में प्रगति हुई है लेकिन बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ और प्रयासों की ज़रूरत है. लिंगानुपात के मोर्चे पर देश ज्यादा प्रगति नहीं कर पाया है. पिछले पांच वर्षों में जन्म के समय लिंगानुपात मामूली रूप से सुधरकर प्रति एक हजार लड़कों पर 914 लड़कियों से बढ़कर 919 हो गया है. शहरी भारत में यह आंकड़ा 899 ही है. हरियाणा में लिंगानुपात 836 है जबकि पड़ोसी पंजाब का 860 है. मध्यप्रदेश में लिंगानुपात 960 से गिरकर 927 तक पहुंच गया है. दादरा नगर हवेली में लिंग अनुपात सबसे अधिक 1013 है.

शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हुआ है, इसलिए इस प्रसूति मौतों के मामलों में कमी आयी है. हालाँकि गांवों की स्थिति अभी ज्यादा नहीं बदली है. यूनिसेफ के अनुसार भारत में प्रसव के दौरान होने वाली मौतें पहले से घटी हैं, लेकिन यह अब भी बहुत ज्यादा हैं. देश में हर साल लगभग 45 हजार महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है.

डॉक्टर महिलाओं की सेहत को लेकर जागरूकता बढ़ाने पर जोर देते हैं. स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ रमा कहती हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं के थोड़े और विस्तार से और जागरूकता अभियान के जरिये प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में कमी लायी जा सकती है. डॉ ईशा वर्मा कहती हैं कि अधिकतर महिलाएं रक्त अल्पता से पीड़ित हैं. अपने परिवार के स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा चिंतित रहने वाली महिलाएं अगर खुद पर ध्यान देने लग जाए तो परिवार का स्वास्थ्य अपने आप अच्छा हो जायेगा. वे कहती हैं, ‘आखिरकार महिला ही तो परिवार का केंद्र है.'

भारत में स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

इसके अतिरिक्त अनैतिक व्यापार( निवारण) अधिनियम 1956, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984, महिलाओं का अशिष्ट रूपण ( प्रतिषेध) अधिनियम 1986, सती निषेध अधिनियम 1987, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, गर्भधारण पूर्वलिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, बाल ...

महिलाओं की स्थिति में कैसे सुधार किया जा सकता है?

Solution : महिलाओं की स्थिति में सुधार- समय बीतने के साथ सरकार ने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए कई कानून बनाए। स्त्री शिक्षा को अनिवार्य किया गया। लड़की की मर्जी के बगैर शादी पर प्रतिबंध लगाया गया| तलाक को कानूनी दर्जा दिया गया| अब महिलाएँ अपनी मर्जी के अनुसार किसी भी हुनर के लिए ट्रेनिंग ले सकती थीं।

क्या कदम उठाए गए हैं भारत में महिलाओं की स्थिति को बेहतर?

हाल के वर्षों में, महिलाओं की स्‍थिति को अभिनिश्‍चित करने में महिला सशक्‍तीकरण को प्रमुख मुद्दे के रूप में माना गया है। महिलाओं के अधिकारों एवं कानूनी हकों की रक्षा के लिए वर्ष 1990 में संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्‍ट्रीय महिला आयोग की स्‍थापना की गई।

महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में शिक्षा की क्या भूमिका है?

महिला शिक्षा की आवश्यकता महिलाओं को शिक्षित करना भारत में कई सामाजिक बुराइयों जैसे- दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या और कार्यस्थल पर उत्पीड़न आदि को दूर करने की कुंजी साबित हो सकती है। यह निश्चित तौर पर देश के आर्थिक विकास में भी सहायक होगा, क्योंकि अधिक-से-अधिक शिक्षित महिलाएँ देश के श्रम बल में हिस्सा ले पाएंगी।