हिन्दुस्तान को आजाद हुए 70 साल हो चुके हैं. इस 15 अगस्त को हम आजादी की 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. देश को आजाद कराने में लाखों लोगों ने अपनी जान की आहूती दे दी. हजारों लोगों ने अपने घर-द्वार छोड़ दिए. सैकड़ों लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध हुई क्रांति का नेतृत्व किया. जुर्म आज तक ऐसे ही क्रांति वीरों पर एक सीरीज पेश कर रहा है, जो अंग्रेजों की नजर में अपराधी थे, लेकिन उनके द्वारा किए गए अपराध की वजह से देश को आजादी मिली. इस कड़ी में पेश है वासुदेव बलवंत फड़के की कहानी. Show वासुदेव बलवंत फड़के की दास्तान - वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म 4 नवंबर, 1845 को महाराष्ट्र के रायगड जिले के शिरढोणे गांव में हुआ था. - ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का संगठन करने वाले फड़के भारत के पहले क्रांतिकारी थे. - उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की विफलता के बाद आज़ादी के महासमर की पहली चिनगारी जलाई थी. - प्रारंभिक शिक्षा के बाद उनके पिता चाहते थे कि वह एक दुकान पर काम करें, लेकिन उन्होंने पिता की बात नहीं मानी और मुंबई आ गए. - उन्होंने जंगल में एक अभ्यास स्थल बनाया, जहां ज्योतिबा फुले और लोकमान्य तिलक भी उनके साथी थे. यहां लोगों को हथियार चलाने का अभ्यास कराया जाता था. - 1871 में उनको सूचना मिली की उनकी मां की तबियत खराब है, उन दिनों वो अंग्रेजों की एक कंपनी में काम कर रहे थे. वो अवकाश मांगने गए, लेकिन नहीं मिला. - अवकाश नहीं मिलने के बाद भी फड़के अपने गांव चले गए, लेकिन तब तक मां की मृत्यु हो चुकी थी. इस घटना ने उनके मन में अंग्रेजों खिलाफ गुस्सा भर दिया. - फड़के ने नौकरी छोड़ दी. अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की तैयारी करने लगे. उन्हें आदिवासियों की सेना संगठित करने की कोशिश शुरू कर दी. - 1879 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की घोषणा कर दी. पैसे एकत्र करने के लिए कई जगहों पर डाके भी डालने शुरू किए. - महाराष्ट्र के सात जिलों में वासुदेव फड़के का प्रभाव फैल चुका था. उनकी गतिविधि से अंग्रेज अफसर डर गए थे. कहा जाता है कि अंग्रेज उनसे थर-थर कांपते थे. - अंग्रेज सरकार ने वासुदेव फड़के को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया. अंग्रेज उनके पीछे पड़ गए. - 20 जुलाई, 1879 को फड़के बीमारी की हालत में एक मंदिर में आराम कर रहे थे. उसी समय उनको गिरफ्तार कर लिया गया. - उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और कालापानी की सजा देकर अंडमान भेज दिया गया. - 17 फरवरी, 1883 को कालापानी की सजा काटते हुए जेल के अंदर ही देश का वीर सपूत शहीद हो गया. 75th independence day 2021 पर जानिए देश के लिए शहीद होने वाले 10 महान योद्धाओं के बारे में1.अहिंसा के रास्ते पर चलकर अंग्रेजों को झुकने पर मजबूर करने वालों में महात्मा गांधी का नाम सबसे पहले आता है। उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन करके भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ब्रिटिशर्स की ओर से नमक पर टैक्स लगाए जाने के विरोध में गांधी जी की ओर से शुरू किया गया दांडी मार्च बहुत सफल हुआ था। इसके अलावा उन्होंने समाज की कुरीतियों को खत्म करने की भी कोशिश की थी। पीएम मोदी ने बेयर ग्रिल्स को बताएं अपनी जिंदगी के 10 सीक्रेट्स, जानकर रह जाएंगे हैरान2.भारत की आजादी में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई ने भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने राज्य झांसी को अंग्रेजों के चंगुल से बचाने के लिए जंग छेड़ी थी। साल 1858 में हुए दो हफ्तों के इस युद्ध में लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिशर्स को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। हालांकि बाद में अंग्रेजों से लड़ते हुए वो वीरगति को प्राप्त हुईं। Independence Day 2021: ओलंपिक्स में भारत ने आज़ादी से पहले भी जीते हैं मेडल, जानिए 1947 से पहले और बाद की विजय गाथा3.अपने जज्बे और जोश से अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर करने में क्रांतिकारी भगत सिंह ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने चाचा के साथ आजादी की लड़ाई में कदम रखा था। बाद में उन्होंने धरती मां को गुलामी से मुक्त कराने का बीड़ा अपने कंधों पर उठा लिया था। उन्होंने सन् 1921 में असहयोग आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। 4.स्वतंत्रता सेनानियों में एक महत्वपूर्ण नाम मंगल पांडे का भी है। वे ईस्ट इंडिया कंपनी में सैनिक थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ साल 1857 में लड़ाई लड़ी थी। उन्होंनो ब्रिटिशर्स की ओर से बनाए जाने वाले कारतूसों को बदले जाने की मांग की थी। क्योंकि इसमें गाय की चर्बी का इस्तेमाल होता था और इसे खींचने के लिए मुंह लगाना पड़ता था। इससे हिंदू धर्म भ्रष्ट हो रहा था। Independence Day 2021: आजादी से पहले की वो कंपनियां जो आज भी हैं भारतीय बाजार की शान5.आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भी बड़ा हाथ था। उन्होंने भारतीय कांग्रेस ज्वाइन करके अवज्ञा आंदोलन में अपनी हिस्सेदारी निभाई थी। नेताजी ने जर्मनी में जाकर इंडियन नेशनल आर्मी का गठन किया था। 6.स्वतंत्रता सेनानियों में लाला लाजपत राय का भी नाम शान से लिया जाता है। उन्होंने जलियावाला हत्याकांड के विरोध में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। इस संघर्ष में हुए लाठीचार्ज के दौरान वे बुरी तरह से घायल हो गए थे, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।7.स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है का नारा देने वाले आंदोलनकारी बालगंगाधर तिलक ने भी आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने पूरे भारत में घूम-घूमकर अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति तैयार की थी। 8.क्रांतिकारी अशफाकउल्ला खान को उनके तेज तर्रार अंदाज के लिए जाना जाता है। वे उग्र विचार धारा के थे। उन्होंने कांकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर ट्रेन से अंग्रेजों का खजाना लूटा था। 9.सन् 1857 की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले बहादुर शाह जफर का नाम भी शान से याद किया जाता है। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी से लोहा लेने के लिए विशाल मोर्चा तैयार किया था। 10.क्रांतिकारी शिवराम राजगुरु का नाम भी आजादी की लड़ाई में शान से लिया जाता है। वे भगत सिंह के साथी थे। अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए वे नौजवानों को जोड़ने और रणनीति बनाने का काम करते थे। देश को आजाद कराने में सबसे बड़ा हाथ किसका था?अहिंसा के रास्ते पर चलकर अंग्रेजों को झुकने पर मजबूर करने वालों में महात्मा गांधी का नाम सबसे पहले आता है। उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन करके भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
भारत का सबसे बड़ा क्रांतिकारी कौन है?लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ। आज उनका जन्मस्थान भाबरा अब 'आजादनगर' के रूप में जाना जाता है।
भारत देश को आजाद कराने में कौन कौन थे?भूमिका भारत को मुक्त कराने के लिए सशस्त्र विद्रोह की एक अखण्ड परम्परा रही है। भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के साथ ही सशस्त्र विद्रोह का आरम्भ हो गया था। बंगाल में सैनिक-विद्रोह, चुआड़ विद्रोह, सन्यासी विद्रोह, भूमिज विद्रोह, संथाल विद्रोह अनेक सशस्त्र विद्रोहों की परिणति सत्तावन के विद्रोह के रूप में हुई।
भारत के सबसे पहले स्वतंत्रता सेनानी कौन थे?भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी कौन था? सबसे पहला भारतीय स्वतंत्रता सेनानी कौन था? सबसे पहला भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे जी थे. जिन्होंने सन १८५६ में अंग्रेजों के खिलाफ, पहेला हमला बोल था.
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