Bharat Ke RashtraPati Ko Pad Se Hatane Ki Prakriya Hai -A. संसद के द्वारा अविश्वास का प्रस्ताव Show
Comments Ayan on 19-10-2022 Baarat ke rastpati ko hatane ki vidhi Poonam sen on 12-10-2022 राष्ट्रपति को हटाने की विधि बताइए Rajkumar on 21-09-2022 Rashtrapati ko pad se hatane ki prakriya kya hai Lllllll on 06-01-2022 राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का क्या तरीका है मन्जू on 06-01-2022 भारत के राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का क्या तरिका है Manoj on 29-09-2021 Rastrapti ko apne pad se hatane ki prakriya ko samjhaie Sumit on 24-08-2018 Bharat Ke RashtraPati Ko Pad Se Hatane Ki Prakriya kya Hai जब किसी बड़े अधिकारी या प्रशासक पर विधानमंडल के समक्ष अपराध का दोषारोपण होता है तो इसे महाभियोग कहा जाता है। इंग्लैंड में राजकीय परिषद क्यूरिया रेजिस के न्यासत्व अधिकार द्वारा ही इस प्रक्रिया का जन्म हुआ। समयोपरान्त जब क्यूरिया या पार्लियामेंट का हाउस ऑफ लार्ड्स तथा हाउस ऑफ कामंस, इन दो भागों में विभाजन हुआ तो यह अभियोगाधिकार हाउस ऑफ़ लार्ड्स को प्राप्त हुआ। किन्तु जब से (1700 ई) न्यायाधीशों एवं मंत्रियों के ऊपर अभियोग चलाने का रूप अन्य प्रकार से निर्धारित हो गया है, महाभियोग का प्रयोग समाप्तप्राय है। इंग्लैंड में कुछ महाभियोग इतने महत्वपूर्ण हुए हैं कि वे स्वयं इतिहास बन गए। उदाहरणार्थ 16वीं शताब्दी में वारेन हेस्टिंग्ज तथा लार्ड मेलविले (हेनरी उंडस) का महाभियोग सतत स्मरणीय है। संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के अनुसार उस देश के राष्ट्रपति, सहकारी राष्ट्रपति तथा अन्य सब राज्य पदाधिकारी अपने पद से तभी हटाए जा सकेंगे जब उनपर राजद्रोह, घूस तथा अन्य किसी प्रकार के विशेष दुराचारण का आरोप महाभियोग द्वारा सिद्ध हो जाए (धारा 2, अधिनियम 4)।। अमेरिका के विभिन्न राज्यों में महाभियोग का स्वरूप और आधार भिन्न भिन्न रूप में हैं। प्रत्येक राज्य ने अपने कर्मचारियों के लिये महाभियोग संबंधी भिन्न भिन्न नियम बनाए हैं, किंतु नौ राज्यों में महाभियोग चलाने के लिये कोई कारण विशेष नहीं प्रतिपादित किए गए हैं अर्थात् किसी भी आधार पर महाभियोग चल सकता है। न्यूयार्क राज्य में 1613 ई में वहाँ के गवर्नर विलियम सुल्जर पर महाभियोग चलाकर उन्हें पदच्युत किया गया था और आश्चर्य की बात यह है कि अभियोग के कारण श्री सुल्जर के गवर्नर पद ग्रहण करने के पूर्व काल से संबंधित थे। इंग्लैंड एवं अमरीका में महाभियोग क्रिया में एक अन्य मान्य अंतर है। इंग्लैंड में महाभियोग की पूर्ति के पश्चात् क्या दंड दिया जायेगा, इसकी कोई निश्चित सीमा नहीं, किंतु अमरीका में संविधानानुसार निश्चित है कि महाभियोग पूर्ण हो चुकने पर व्यक्ति को पदभ्रष्ट किया जा सकता है तथा यह भी निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में वह किसी गौरवयुक्त पद ग्रहण करने का अधिकारी न रहेगा। इसके अतिरिक्त और कोई दंड नहीं दिया जा सकता। यह अवश्य है कि महाभियोग के बाद भी व्यक्ति को देश की साधारण विधि के अनुसार न्यायालय से अपराध का दंड स्वीकार कर भोगना होता है। भारतीय संविधान में महाभियोगभारतीय संविधान में इस प्रक्रिया को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है। महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है। इसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है. महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ़ तब लाया जा सकता है जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गए हों. नियमों के मुताबिक़, महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है. लेकिन लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तख़त, और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के दस्तख़त ज़रूरी होते हैं. इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें (वे इसे ख़ारिज भी कर सकते हैं) तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है. उस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, एक हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस और एक ऐसे प्रख्यात व्यक्ति को शामिल किया जाता है जिन्हें स्पीकर या अध्यक्ष उस मामले के लिए सही मानें. अगर यह प्रस्ताव दोनों सदनों में लाया गया है तो दोनों सदनों के अध्यक्ष मिलकर एक संयुक्त जांच समिति बनाते हैं. दोनों सदनों में प्रस्ताव देने की सूरत में बाद की तारीख़ में दिया गया प्रस्ताव रद्द माना जाता है. जांच पूरी हो जाने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर या अध्यक्ष को सौंप देती है जो उसे अपने सदन में पेश करते हैं. अगर जांच में पदाधिकारी दोषी साबित हों तो सदन में वोटिंग कराई जाती है. प्रस्ताव पारित होने के लिए उसे सदन के कुल सांसदों का बहुमत या वोट देने वाले सांसदों में से कम से कम दो तिहाई का समर्थन मिलना ज़रूरी है. अगर दोनों सदन में ये प्रस्ताव पारित हो जाए तो इसे मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है. किसी जज को हटाने का अधिकार सिर्फ़ राष्ट्रपति के पास है. भारत में सिर्फ राष्ट्रपति को ही महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है राष्ट्रपति के अलावा किसी को नहीं हटाया जा सकता या तो प्रस्ताव को बहुमत नहीं मिला, या फिर जजों ने उससे पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया. हालांकि इस पर विवाद है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी को महाभियोग का सामना करने वाला पहला जज माना जाता है. उनके ख़िलाफ़ मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था. यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया क्योंकि उस वक़्त सत्ता में मौजूद कांग्रेस ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिला. कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन देश के दूसरे ऐसे जज थे, जिन्हें 2011 में अनुचित व्यवहार के लिए महाभियोग का सामना करना पड़ा. यह भारत का अकेला ऐसा महाभियोग का मामला है जो राज्य सभा में पास होकर लोकसभा तक पहुंचा. हालांकि लोकसभा में इस पर वोटिंग होने से पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफ़ा दे दिया. महाभियोग के पिछले मामलेउसी साल सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस पीडी दिनाकरन के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन सुनवाई के कुछ दिन पहले ही दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. 2015 में गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जे बी पार्दीवाला के ख़िलाफ़ जाति से जुड़ी अनुचित टिप्पणी करने के आरोप में महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन उन्होंने उससे पहले ही अपनी टिप्पणी वापिस ले ली. 2015 में ही मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेल के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन जांच के दौरान उन पर लगे आरोप साबित नहीं हो सके. आंध्र प्रदेश/तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के ख़िलाफ़ 2016 और 17 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई लेकिन इन प्रस्तावों को कभी ज़रूरी समर्थन नहीं मिला. उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ 2018 में राज्य सभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया जिसे उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू ने ख़ारिज कर दिया । संदर्भ ग्रन्थ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
भारत के राष्ट्रपति को उनके पद से कौन हटा सकता है?हां। संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पारित होने पर राष्ट्रपति को हटाया जा सकता है। परंतु उसके पूर्व सदन में महाभियोग प्रस्ताव लाना एवं राष्ट्रपति को अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान करना होता है।
राष्ट्रपति को हटाने के लिए कौन सा अनुच्छेद प्रदान करता है?सही उत्तर अनुच्छेद 61 है। भारत के राष्ट्रपति का पद से हटाया जाना महाभियोग की प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 61 राष्ट्रपति के महाभियोग की प्रक्रिया प्रदान करता है।
राष्ट्रपति के महाभियोग में कौन कौन भाग लेता है?संसद के दोनों सदनों के नामित सदस्य राष्ट्रपति के महाभियोग में भाग ले सकते हैं। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों दिल्ली, पुदुचेरी और जम्मू की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के महाभियोग में भाग नहीं लेते हैं हालांकि वे उनके चुनाव में भाग लेते हैं।
भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग कैसे लगाया जाता है?राष्ट्रपति के खिलाफ आरोपों वाले नोटिस पर सदन के कम से कम एक चौथाई सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए। उसके बाद, भारत के राष्ट्रपति को नोटिस भेजा जाता है और 14 दिनों के भीतर महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होती है। राष्ट्रपति पर महाभियोग का प्रस्ताव मूल सदन में विशेष बहुमत (दो-तिहाई) द्वारा पारित किया जाना चाहिए।
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