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लेक्चर -1 भारतीय इतिहास जानने के स्रोत
को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता हैं- साहित्यिक साक्ष्य साहित्यिक साक्ष्य के अन्तर्गत साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त ऐतिहासिक वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है।
साहित्यिक साक्ष्य को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- धार्मिक साहित्य धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर साहित्य की चर्चा की जाती है।
वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृति ग्रन्थ आते हैं।
लौकिक साहित्य लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक ग्रन्थ, जीवनी, कल्पना-प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जाता है। धर्म-ग्रन्थ प्राचीन काल से ही भारत के धर्म प्रधान देश होने के कारण यहां प्रायः तीन धार्मिक धारायें- वैदिक, जैन एवं बौद्ध प्रवाहित हुईं। वैदिक धर्म ग्रन्थ को ब्राह्मण धर्म ग्रन्थ भी कहा जाता है। ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ ब्राह्मण धर्म – ग्रंथ के अन्तर्गत वेद, उपनिषद्, महाकाव्य तथा स्मृति ग्रंथों को शामिल किया जाता है। वेद वेद एक महत्त्वपूर्ण ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ है। वेद शब्द का अर्थ ‘ज्ञान‘ महतज्ञान अर्थात ‘पवित्र एवं आध्यात्मिक ज्ञान‘ है। यह शब्द संस्कृत के ‘विद्‘ धातु से बना है जिसका अर्थ है जानना। वेदों के संकलनकर्ता ‘कृष्ण द्वैपायन’ थे। कृष्ण द्वैपायन को वेदों के पृथक्करण-व्यास के कारण ‘वेदव्यास’ की संज्ञा प्राप्त हुई। वेदों से ही हमें आर्यो के विषय में प्रारम्भिक जानकारी मिलती है। कुछ लोग वेदों को अपौरुषेय अर्थात दैवकृत मानते हैं। वेदों की कुल संख्या चार है-
ब्राह्मण ग्रंथ
आरण्यक
उपनिषद
वेदांग वेदों के अर्थ को अच्छी तरह समझने में वेदांग काफ़ी सहायक होते हैं। वेदांग शब्द से अभिप्राय है- ‘जिसके द्वारा किसी वस्तु के स्वरूप को समझने में सहायता मिले’। वेदांगो की कुल संख्या 6 है, जो इस प्रकार है- ब्राह्मण ग्रन्थों में धर्मशास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
स्मृतियाँ
महाकाव्य ‘रामायण‘ एवं ‘महाभारत‘, भारत के दो सर्वाधिक प्राचीन महाकाव्य हैं। यद्यपि इन दोनों महाकाव्यों के रचनाकाल के विषय में काफ़ी विवाद है, फिर भी कुछ उपलब्ध साक्ष्यों के आधर पर इन महाकाव्यों का रचनाकाल चौथी शती ई.पू. से चौथी शती ई. के मध्य माना गया है। रामायण
महाभारत
पुराण
जैन साहित्य
विदेशियों के विवरण विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भी हमें भारतीय इतिहास की जानकारियाँ मिलती है। इनको तीन भागों में बांट सकते हैं-
पुरातत्त्व
चित्रकला चित्रकला से हमें उस समय के जीवन के विषय में जानकारी मिलती है। अजंता के चित्रों में मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है। चित्रों में ‘माता और शिशु‘ या ‘मरणशील राजकुमारी‘ जैसे चित्रों से गुप्तकाल की कलात्मक पराकाष्ठा का पूर्ण प्रमाण मिलता है। PAHUJA LAW ACADEMY लेक्चर – 2 पाषाण काल समस्त इतिहास को तीन कालों में विभाजित किया जा एकता है-
प्राक् इतिहास या प्रागैतिहासिक काल इस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण नहीं रखा। इस काल में विषय में जो भी जानकारी मिलती है वह पाषाण के उपकरणों, मिट्टी के बर्तनों, खिलौने आदि से प्राप्त होती है। आद्य ऐतिहासिक काल इस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद भी उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं। ऐतिहासिक काल मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है, जिसके लिए लिखित विवरण उपलब्ध है। मनुष्य की कहानी आज से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ होती है, पर ‘ज्ञानी मानव‘ होमो सैपियंस Homo sapiens का प्रवेश इस धरती पर आज से क़रीब तीस या चालीस हज़ार वर्ष पहले ही हुआ। पाषाण काल यह काल मनुष्य की सभ्यता का प्रारम्भिक काल माना जाता है। इस काल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। –
पुरापाषाण काल
मध्य पाषाण काल
नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल
ताम्र-पाषाणिक काल
प्रश्न 1 . निम्न में से किस एक पुरास्थल से पाषाण संस्कृति से लेकर हड़प्पा सभ्यता तक के सांस्कृतिक अवशेष प्राप्त हुए हैं (a) मेहरगढ़ b . कोटदीजी c .कालीबंगा d . आम्री 2 . राख का टीला किस नवपाषाणिक स्थल से संबंधित है
.(a) . पुरा पाषाण काल (Paleolithic Age) (b) . मध्य पाषाण काल (MesolithicAge) (c ). नव पाषाण काल अथवा उत्तर पाषाण काल( Neolithic Age)
a . मांडो b . काकोरिया c .महदहा d .नाहरगढ़
a . धौलावीरा से b .कालीबंगा c .किले गुल मोहम्मद d . मेहरगढ़ 6 .निम्नलिखित में से किस स्थान पर मानव के साथ कुत्ते को दफनाए जाने का साक्ष्य मिला है a . बुर्जहोम b.कोल्डिहवा c .चोपानी मांडो d .मांडव LEC-2 पाषाण काललेक्चर – 2 पाषाण काल समस्त इतिहास को तीन कालों में विभाजित किया जा एकता है-
प्राक् इतिहास या प्रागैतिहासिक काल इस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण नहीं रखा। इस काल में विषय में जो भी जानकारी मिलती है वह पाषाण के उपकरणों, मिट्टी के बर्तनों, खिलौने आदि से प्राप्त होती है। आद्य ऐतिहासिक काल इस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद भी उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं। ऐतिहासिक काल मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है, जिसके लिए लिखित विवरण उपलब्ध है। मनुष्य की कहानी आज से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ होती है, पर ‘ज्ञानी मानव‘ होमो सैपियंस Homo sapiens का प्रवेश इस धरती पर आज से क़रीब तीस या चालीस हज़ार वर्ष पहले ही हुआ। पाषाण काल यह काल मनुष्य की सभ्यता का प्रारम्भिक काल माना जाता है। इस काल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। –
पुरापाषाण काल
मध्य पाषाण काल
नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल
ताम्र-पाषाणिक काल
प्रश्न 1 . निम्न में से किस एक पुरास्थल से पाषाण संस्कृति से लेकर हड़प्पा सभ्यता तक के सांस्कृतिक अवशेष प्राप्त हुए हैं (a) मेहरगढ़ b . कोटदीजी c .कालीबंगा d . आम्री 2 . राख का टीला किस नवपाषाणिक स्थल से संबंधित है
.(a) . पुरा पाषाण काल (Paleolithic Age) (b) . मध्य पाषाण काल (MesolithicAge) (c ). नव पाषाण काल अथवा उत्तर पाषाण काल( Neolithic Age)
a . मांडो b . काकोरिया c .महदहा d .नाहरगढ़
a . धौलावीरा से b .कालीबंगा c .किले गुल मोहम्मद d . मेहरगढ़ 6 .निम्नलिखित में से किस स्थान पर मानव के साथ कुत्ते को दफनाए जाने का साक्ष्य मिला है a . बुर्जहोम b.कोल्डिहवा c .चोपानी मांडो d .मांडव LEC-3 सिंधु घाटी सभ्यता : (Indus Valley Civilization)lecture-3 सिंधु घाटी सभ्यता : (Indus Valley Civilization) मुख्य परीक्षा प्रश्न सिन्धु सभ्यता की नगर संरचना का संछिप्त वर्णन करें? PAHUJA LAW ACADEMY lecture-3 सिंधु घाटी सभ्यता : (Indus Valley Civilization) सिंधु घाटी सभ्यता :Indus Valley Civilization) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। यह हड़प्पा सभ्यता और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है। आज से लगभग 77 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के ‘पश्चिमी पंजाब प्रांत’ के ‘माण्टगोमरी ज़िले’ के निवासियों को शायद इस बात का किंचित्मात्र भी आभास नहीं था कि वे अपने आस-पास की ज़मीन में दबी जिन ईटों का प्रयोग इतने धड़ल्ले से अपने मकानों के निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई साधारण ईटें नहीं, बल्कि लगभग 5,000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह विकसित सभ्यता के अवशेष हैं। इसका आभास उन्हें तब हुआ जब 1856 ई. में ‘जॉन विलियम ब्रन्टम’ ने कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईटों की आपूर्ति के इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे इस सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता‘ का नाम दिया गया। उद्भव
काल निर्धारण
विस्तार
निर्माता
नगर नियोजन
राजनीतिक वयवस्था
सामाजिक वयवस्था
धार्मिक वयवस्था
आर्थिक सभ्यता
सैन्धव कला
लिपि
स्मरणीय तथ्य
सिन्धु सभ्यता का पतन
PAHUJA LAW ACADEMY lecture-3 बहुवैकल्पिक प्रश्न : 1) सिंधु घाटी सभ्यता की खोज किस वर्ष हुई? अ) 1920 ब) 1921 स) 1922 द) 1925 2) मोहन जोदड़ो की खोज किसने की थी ? अ) जॉन मार्शल ब) दयाराम साहनी स) राखलदास बनर्जी द) मेक्समूलर 3) हड़प्पा किस नदी के किनारे स्थित है ? अ) सिंधु ब) रावी स) झेलम द) सरस्वती 4) सिंधु घाटी सभ्यता का स्वरूप था ? अ) ग्रामीण ब) नगरीय स) जंगली द) कबीलाई 5) सिंधु सभ्यता का महान स्नानागार कहा से प्राप्त हुआ है ? अ) हड़प्पा ब) लोथल स) कालीबंगा द) मोहन जोदडो 6) सिंधु घाटी सभ्यता मे गोदीबाड़ा (बन्दरगाह) के अवशेष किस जगह से प्राप्त हुए है ? अ) लोथल ब) रंगपुर स) कालीबंगा द) हड़प्पा 7) सिंधु स्थल कालीबंगा कहा स्थित है ? अ) हरियाणा ब) गुजरात स) राजस्थान द) पंजाब 8) सिंधु घाटी सभ्यता का कोनसा स्थान अब पाकिस्तान मे है ? अ) कालीबंगा ब) हड़प्पा स) दाइमाबाद द) आलमगीरपुर 9) सिन्धु घाटी सभ्यता मे घोड़े के अवशेष कहाँ से मिला है ? 10) हडप्पा वासी किस धातु से परिचित नही थे ? 11) कपास का उत्पादन सबसे पहले सिंधु क्षेत्र में हुआ , जिसे ग्रीक या यूनान के लोग किस नाम से पुकारा ? अ) गुजरात 13) सिन्धु सभ्यता के घर किस से बनाये जाते थे ? अ) ईटो से ब) पत्थर से स) लकड़ी से द) बांसों से 14) सिंधु घाटी के लोग विश्वास करते थे ? अ) आत्मा ओर ब्रह्म मे ब) कर्मकांड मे स) यज्ञ प्रणाली मे द) मातृशक्ति मे 15) प्रसिद्ध नृत्यरत कांसे की स्त्री मूर्ति कहा से प्राप्त हुई है ? अ) मोहन जोदड़ो ब) हड़प्पा स) सुरकोटड़ा द) धौलावीरा 16) धौलावीरा कहा स्थित है ? अ) हरियाणा ब) राजस्थान स) गुजरात द) पंजाब 17) श्रेष्ठ जल प्रबंधन व्यवस्था का साक्ष्य कहा से प्राप्त हुआ है ? अ) आलमगीरपुर ब) कालीबंगा स) धौलावीरा द) लोथल 18) समान्यतः इतिहासकारो के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता थे ? अ) शक ब) आर्य स) कुषाण द) द्रविड़ 19) सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषता नहीं है ? अ) नगर नियोजन ब) मातृ सत्तात्मक स) व्यापार वाणिज्य प्रधान द) ग्रामीण सभ्यता 20) मोहन जोदड़ो को किस एक अन्य नाम से जाना जाता है ? HISTORY LECTURE – 4 (हिन्दी माध्यम) मुख्य परीक्षा
उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की दशा का विश्लेषण कीजिये HISTORY LECTURE – 4 (हिन्दी माध्यम) ऋग्वैदिक काल (1500 ई.पू. से 1000 ई.पू.) सिन्धु सभ्यता के पतन के बाद आर्य सभ्यता का उदय हुआ। आर्यों की सभ्यता वैदिक सभ्यता (Vedic civilization) भी कहलाती है। वैदिक सभ्यता दो काल खंडो में विभक्त है – ऋगवैदिक सभ्यता और उत्तर वैदिक सभ्यता। ऋगवैदिक सभ्यता के ज्ञान का मूल स्रोत ऋगवेद है, इसलिए यह सभ्यता उसी नाम से अभिहित है। ऋग्वैदिक काल से अभिप्राय उस काल से है जिसका विवेचन ऋग्वेद में मिलता है। इस काल के अध्ययन के लिए दो प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं। वैदिक सभ्यता के निर्माता
भौगोलिक विस्तार
राजनीतिक व्यवस्था
सामाजिक व्यवस्था
ऋग्वैदिक धर्म
ऋग्वैदिक देवता
ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था
व्यापार
स्मरणीय तथ्य
वैदिक साहित्य
उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई.पू.) भौगोलिक विस्तार
राजनीतिक व्यवस्था
सामाजिक व्यवस्था
उत्तर वैदिक कालीन अर्थव्यवस्था कृषि एवं पशुपालन
वाणिज्य-व्यापार
उद्योग एवं व्यवसाय
धार्मिक व्यवस्था
स्मरणीय तथ्य
PAHUJA LAW ACADEMY HISTORY LECTURE – 4 (हिन्दी माध्यम) Pre- Questions
HISTORY NOTES Lecture 5 मुख्य परीक्षा
PAHUJA LAW ACADEMY HISTORY NOTES Lecture 5 महाजनपद, बौध जैन प्रारंम्भिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ईसापूर्व को परिवर्तनकारी काल के रूप में महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह काल प्राय: प्रारंम्भिक राज्यों, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के के लिए जाना जाता है। इसी समय में बौद्ध और जैन सहित अनेक दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ। बौद्ध और जैन धर्म के प्रारंम्भिक ग्रंथों में महाजनपद नाम के सोलह राज्यों का विवरण मिलता है। महाजनपदों के नामों की सूची इन ग्रंथों में समान नहीं है परन्तु वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार और अवन्तिजैसे नाम अक्सर मिलते हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि ये महाजनपद महत्त्वपूर्ण महाजनपदों के रूप में जाने जाते होंगे। अधिकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था परन्तु गण और संघ नाम से प्रसिद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था, इस समूह का हर व्यक्ति राजा कहलाता था। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध इन्हीं गणों से संबन्धित थे। महाजनपद राजधानी कुरु – मेरठ और थानेश्वर; इन्द्रप्रस्थ और हस्तिनापुर । पांचाल – बरेली, बदायूं और फ़र्रुख़ाबाद; अहिच्छत्र तथा
कांपिल्य । मगध साम्राज्य Magadh Empireहर्यक वंश (544 ई.पू. से 412 ई.पू.)
अजातशत्रु (492 ई.पू. से 460 ई.पू.)
उदयिन (460ई.पू. से 444 ई.पू.)
शिशुनाग वंश (412 ई.पू. से 344 ई.पू.)
कालाशोक (395-366 ई.पू.)
नंद वंश (344 ई.पू. से 322 ई. पू.)
स्मरणीय तथ्य
धार्मिक आन्दोलन – बौद्ध एवं जैन धर्म बौद्ध धर्म बौद्ध धर्म की स्थापना महात्मा बुद्ध ने की थी। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम महामाया और पिता का शुद्धोदन था।
‘प्रथम बौद्ध संगीति’ का आयोजन 483 ई. पू. में राजगृह (आधुनिक राजगिरि), एक शताब्दी बाद बुद्धोपदिष्ट कुछ विनय-नियमों के सम्बन्ध में भिक्षुओं में विवाद उत्पन्न हो जाने पर वैशाली में दूसरी संगीति हुई। इस संगीति में विनय-नियमों को कठोर बनाया गया और जो बुद्धोपदिष्ट शिक्षाएँ अलिखित रूप में प्रचलित थीं, उनमें संशोधन किया गया। नागार्जुन भी शामिल हुए थे। इसी संगीति में तीनों पिटकों पर टीकायें लिखी गईं, जिनको ‘महाविभाषा’ नाम की पुस्तक में संकलित किया गया। इस पुस्तक को बौद्ध धर्म का ‘विश्वकोष’ भी कहा जाता है। जैन धर्म
PAHUJA LAW ACADEMY HISTORY NOTES Lecture 5 प्रारंभिक परीक्षा
LECTURE – 6 HINDI MEDIUM भारत पर विदेशी आक्रमण मुख्य परीक्षा
PAHUJA LAW ACADEMY LECTURE – 6 HINDI MEDIUM भारत पर विदेशी आक्रमण भारत पर विदेशी आक्रमण
ईसा पूर्व 326 में सिकन्दर की सेनाएँ पंजाब के विभिन्न राज्यों में विध्वंसक युद्धों में व्यस्त थीं। मध्यप्रदेश और बिहार में नंद वंश का राजा धननंद शासन कर रहा था। सिकन्दर के आक्रमण से देश के लिए संकट पैदा हो गया था। धननंद का सौभाग्य था कि वह इस आक्रमण से बच गया। यह कहना कठिन है कि देश की रक्षा का मौक़ा पड़ने पर नंद सम्राट यूनानियों को पीछे हटाने में समर्थ होता या नहीं।
शीघ्र ही राजनीतिक मंच पर एक ऐसा व्यक्ति प्रकट भी हुआ। इस व्यक्ति का नाम था ‘चंद्रगुप्त’। जस्टिन आदि यूनानी विद्वानों ने इसे ‘सेन्ड्रोकोट्टस’ कहा है। विलियम जोंस पहले विद्वान् थे जिन्होंने सेन्ड्रोकोट्टस’ की पहचान भारतीय ग्रंथों के ‘चंद्रगुप्त’ से की है। यह पहचान भारतीय इतिहास के तिथिक्रम की आधारशिला बन गई है। चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई.पू. से 298 ई. पू.)
बिंदुसार (298 ई.पू.-272 ई. पू.)
सम्राट अशोक (273 ई.पू.- 232 ई.पू.)
अशोक और उसका धर्म
अशोक के 14 शिलालेख( 14 परिक्छेद , पैराग्राफ ) विभिन्न लेखों का समूह है जो आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गये हैं- (१) धौली– यह उड़ीसा के पुरी जिला में है। (२) शाहबाज गढ़ी– यह पाकिस्तान (पेशावर) में है। (३) मान सेहरा– यह पकिस्तान के हजारा जिले में स्थित है। (४) कालसी– यह वर्तमान उत्तराखण्ड (देहरादून) में है। (५) जौगढ़– यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है। (६) सोपरा– यह महराष्ट्र के थाणे जिले में है। (७) एरागुडि– यह आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित है। (८) गिरनार– यह काठियाबाड़ में जूनागढ़ के पास है। अशोक के शिलालेख और उसके विषय
सम्राट अशोक के स्तम्भ लेखों की संख्या 7 है, ब्राह्मी लिपि, अलग-अलग स्थानों से प्राप्त हुआ है.
कुछ अन्य तथ्य – कौशाम्बी अभिलेख को रानी का अभिलेख कहा जाता है. नगर प्रशासन
जिला प्रशासन जिले को को विषय या आहार कहा जाता था, जिसका प्रधान विषयपति होता था।
स्थानीय प्रशासन या ग्राम प्रशासन
मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था
मौर्यकालीन कला संस्कृति
मौर्योत्तर काल
मौर्योत्तर कालीन भारतीय राजवंश शुंग राजवंश
शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति की हत्या इसके मंत्री वासुदेव ने कर के कण्व वंश की स्थापना की कण्व वंश इसके केवल चार शासक ही हुए वसुदेव, भूमि मित्र, नारायण वासु सरमन अंतिम शासक सुशर्मन की हत्या 30 ईसा पूर्व में सिमुक ने कर दी और एक नवीन ब्राम्हण वंश आंध्र सातवाहन की नींव रखी पहलव वंश
कुषाण वंश
कनिष्क वंश
सातवाहन वंश
PAHUJA LAW ACADEMY LECTURE – 6 HINDI MEDIUM भारत पर विदेशी आक्रमण प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न
LECTURE -7 HISTORY (HINDI MEDIUM) गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल मुख्य परीक्षा
PAHUJA LAW ACADEMY LECTURE -7 HISTORY (HINDI MEDIUM) गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल
चंद्रगुप्त प्रथम (319 ई. से 335 ई.)
समुद्रगुप्त (335 ई. से 375 ई.)
चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ (380-412 ई.)
कुमारगुप्त (415 ई. से 454 ई.)
स्कंदगुप्त (455 ई. से 467 ई.)
हूणों का आक्रमण
राजनीतिक व्यवस्था
केन्द्रीय प्रशासन
साम्राज्य का केन्द्रीय प्रशासन अनेक विभागों में विभक्त था, जिसका उत्तरदायित्व विभिन्न अधिकारीयों को सौंपा गया था। प्रांतीय शासन
जिला प्रशासन
स्थानीय प्रशासन
न्याय व्यवस्था
सामाजिक व्यवस्था
आर्थिक व्यवस्था
कला और साहित्य
जैनाचार्य सिद्धसेन ने तत्वानुसारिणी तत्वार्थटीका नामक ग्रन्थ की रचना की।
हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद इसका राज्य छिन्न-भिन्न हो गया और हर्षवर्धन अंतिम हिन्दू शासक के रूप में जाना गया। साथ ही हर्षवर्धन को अंतिम बौद्ध शासक और संस्कृत के महान विद्वान व लेखक के रूप में भी जाना जाता है। हर्षवर्धन के पश्चात कोई भी हिन्दू शासक इतिहास के पन्नों में अपनी छाप नहीं छोड़ सका। PAHUJA LAW ACADEMY LECTURE -7 HISTORY (HINDI MEDIUM) गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न
11.किस शासक ने मंदिरों एवं ब्राह्मणों को सबसे अधिक ग्राम अनुदान में दिया था
गुप्त राजवंश के राजा तथा कामरुप की राजकुमारी की प्रेम गाथा LEC-8 संगम युगHISTORY HINDI LECTURE – 8 संगम युग मुख्य परीक्षा
PAHUJA LAW ACADEMY HISTORY HINDI LECTURE – 8 संगम युग संगम युग सुदूर दक्षिण भारत में कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदियों के बीच के क्षेत्र को ‘तमिल प्रदेश’ कहा जाता था। इस प्रदेश में अनेक छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व था, जिनमें चेर, चोल और पांड्य प्रमुख थे। दक्षिण भारत के इस प्रदेश में तमिल कवियों द्वारा सभाओं तथा गोष्ठियों का आयोजन किया जाता था। इन गोष्ठियों में विद्वानों के मध्य विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श किया जाता था, इसे ही ‘संगम’ के नाम से जाना जाता है। 100 ई. से 250 ई. के मध्य दक्षिण भारत में तीन संगमों को आयोजित किया गया। इस युग को ही इतिहास में “संगम युग” के नाम से जाना जाता है। सर्वप्रथम इन गोष्ठियों का आयोजन पांड्य राजाओं के राजकीय संरक्षण में किया गया था, जिसकी राजधानी मदुरई थी। तमिल परंपरा से तीन साहित्यिक परिषदों का विवरण मिलता है। वे पांडय राजाओं की राजधानी में आयोजित की गयी थीं। प्रथम संगम- यह मदुरै में आयोजित हुआ। आचार्य अगस्त्य ने इसकी अध्यक्षता की। अगस्त्य ऋषि को ही दक्षिण भारत में आर्य संस्कृति के प्रसार का श्रेय दिया गया है। तमिल भाषा में प्रथम ग्रन्थ के प्रणेता भी इन्हें ही माना गया है। माना जाता है कि प्रथम संगम में देवताओं और ऋषियों ने भाग लिया था, किन्तु प्रथम संगम की सभी रचनाएँ विनष्ट हो गई। दूसरा संगम- यह कवत्तापुरम या कपाटपुरम में आयोजित हुआ। इसके अध्यक्ष-अगस्त्य और तोल्कापियम हुए। इसकी भी सभी रचनाएँ विनष्ट हो गई, केवल एक तमिल व्याकरण तोल्कापियम बचा रहा। तीसरा संगम- मदुरै में आयोजित हुआ। नकीर्र ने इसकी अध्यक्षता की। तीसरे संगम में रचित साहित्य 8 संग्रह ग्रन्थों में संकलित है। इन्हें ऐत्तुतोगई कहते हैं। आठ ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं-
उपर्युक्त आठ ग्रन्थ एवं दस ग्राम्य गीत मेलकन्कु के नाम से जाने जाते हैं। ये दस ग्राम्य गीत पतुपतु में संकलित हैं। मेलकन्कु आख्यानात्मक साहित्य को कहा गया है। शिलप्पादिकारम यह ‘तमिल साहित्य’ का प्रथम महाकाव्य है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘नूपुर की कहानी’। इस महाकाव्य की रचना चेर शासक ‘सेन गुट्टुवन’ के भाई ‘इलांगो आदिगल’ ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी में की थी। इस महाकाव्य की सम्पूर्ण कथा नुपूर के चारों ओर घूमती है। इस महाकाव्य के नायक और नायिका ‘कोवलन’ और ‘कण्णगी’ हैं। मणिमेखलै
जीवक चिन्तामणि
महत्वपूर्ण संगम शासकचोल वंश
चेर शासक
पांड्य
संगम युगीन प्रशासन राज्य एक प्रकार के कुल राज्य संघ थे। इस प्रकार के राज्य का उल्लेख अर्थशास्त्र में भी हुआ है। संगमयुगीन शासन राजतंत्रात्मक तथा वंशानुगत था। राजा को मन्नम, वेन्दन राजा का मुख्य आदर्श दिग्विजय प्राप्त करना, प्रजा को संतान रूप में स्वीकार करना तथा पक्षपात रहित होकर शासन करना था। राजा की सहायता के लिए अधिकारियों का एक समूह होता था जो 5 समूहों में विभाजित था।
संक्रमण काल या राजपूत काल
गुर्जर-प्रतिहार वंश
बंगाल के पाल एवं सेन वंश
राष्ट्रकूट
चौहान वंश
गहड़वाल वंश
मालवा का परमार वंश
गुजरात का चालुक्य वंश
बुंदेलखंड के चंदेल
चेदि राजवंश
सेन वंश
PAHUJA LAW ACADEMY HISTORY HINDI LECTURE – 8 संगम युग प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न
LECTURE – 9 (HINDI HISTORY) सल्तनत काल Mains Question
PAHUJA LAW ACADEMY LECTURE – 9 (HINDI HISTORY) सल्तनत काल मामलूक वंश 1206 से 1290 ई. के मध्य दिल्ली सल्तनत के सुल्तान गुलाम वंश के संतानों के नाम से विख्यात हुए।गुलाम वंश को मामलूक वंश के नाम से भी जाना जाता है। ‘मामलूक’ शब्द से अभिप्राय स्वतंत्र माता-पिता से उत्पन्न हुए दास से है।इस वंश में पहला शासककुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.) था
खिलजी वंश (1290 ई. से 1320 ई.)
तुगलक वंश 1320 ई. – 1411 ई.
सैय्यद वंश (1414-1451 ई.) खिज्र खां (1414-1421 ई.)
मुबारक शाह (1421-1434 ई.)
लोदी वंश (1451-1526 ई.) बहलोल लोदी
सिकंदर लोदी (1489-1517 ई.)
इब्राहिम लोदी (1517-1526 ई.)
प्रशासन व्यवस्था
न्याय और दण्ड व्यवस्था
आर्थिक व्यवस्था
PAHUJA LAW ACADEMY LECTURE – 9 (HINDI HISTORY) सल्तनत काल प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न
विजय नगर एवं मुग़ल शासन Lecture -10 मुख्य परीक्षा
PAHUJA LAW ACADEMY Lecture -10 विजय नगर एवं मुग़ल शासन विजयनगर साम्राज्य (लगभग 1350 ई. से 1565 ई.) की स्थापना राजा हरिहर ने की थी। ‘विजयनगर’ का अर्थ होता है ‘जीत का शहर’। हम्पी के मंदिरों और महलों के खंडहरों को देखकर जाना जा सकता है कि यह कितना भव्य रहा होगा। इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया है। स्थापना
विजयनगर के राजवंशविजयनगर साम्राज्य पर जिन राजवंशों ने शासन किया, वे निम्नलिखित हैं-
संगम वंशविजयनगर साम्राज्य के ‘हरिहर’ और ‘बुक्का’ ने अपने पिता “संगम” के नाम पर संगम वंश (1336-1485 ई.) की स्थापना की थी। इस वंश में जो राजा हुए, उनके नाम व उनकी शासन अवधी निम्नलिखित हैं-
सालुव वंश (1486 से 1505 र्इ.)सालुव वंश का संस्थापक ‘सालुव नरसिंह’ था। 1485 ई. में संगम वंश के विरुपाक्ष द्वितीय की हत्या उसी के पुत्र ने कर दी थी, और इस समय विजयनगर साम्राज्य में चारों ओर अशांति व अराजकता का वातावरण था। इन्हीं सब परिस्थितियों का फ़ायदा नरसिंह के सेनापति नरसा नायक ने उठाया। उसने विजयनगर साम्राज्य पर अधिकार कर लिया और सालुव नरसिंह को राजगद्दी पर बैठने के लिय आमंत्रित किया। सालुव वंश के राजाओं का विवरण इस प्रकार से है-
v तुलुव वंश (1505-1570 ई.)तुलुव वंश (1505-1570 ई.) की स्थापना नरसा नायक के पुत्र ‘वीर नरसिंह’ ने की थी। इतिहास में इसे ‘द्वितीय बलापहार’ की संज्ञा दी गई है। 1505 में नरसिंह ने सालुव वंश के नरेश इम्माडि नरसिंह की हत्या करके स्वंय विजयनगर साम्राज्य के सिंहासन पर अधिकार कर लिया और तुलुव वंश की स्थापना की। नरसिंह का पूरा शासन काल आन्तरिक विद्रोह एवं आक्रमणों के प्रभावित था। 1509 ई. में वीर नरसिंह की मृत्यु हो गयी। यद्यपि उसका शासन काल अल्प रहा, परन्तु फिर भी उसने सेना को सुसंगठित किया था। उसने अपने नागरिकों को युद्धप्रिय तथा मज़बूत बनने के लिय प्रेरित किया था। वीर नरसिंह ने पुर्तग़ाली गवर्नर अल्मीडा से उसके द्वारा लाये गये सभी घोड़ों को ख़रीदने के लिए एक समझौता किया था। उसने अपने राज्य से विवाह कर को हटाकर एक उदार नीति को आरंभ किया। नूनिज द्वारा वीर नरसिंह का वर्णन एक ‘धार्मिक राजा’ के रूप में किया गया है, जो पवित्र स्थानों पर दान किया करता था। वीर नरसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका अनुज ‘कृष्णदेव राय’ सिंहासनारूढ़ हुआ। तुलुव वंश के राजाओं का विवरण इस प्रकार से है-
v अरविडु वंश (1570-1652 ई.)
अरविडु वंश के राजाओं का विवरण इस प्रकार से है-
विजय नगर साम्राज्य के पतन के कारण
इस प्रकार दक्षिण भारत के अंतिम हिन्दू साम्राज्य का अंत हो गया। मुग़ल साम्राज्य (1526-1707 ई.) 1494 में ट्रांस-आक्सीयाना की एक छोटी सी रियासत फ़रग़ना का बाबर उत्तराधिकारी बना बाबर ने लिखा है कि क़ाबुल जीतने (1504) से लेकर पानीपत की लड़ाई तक उसने हिन्दुस्तान जीतने का विचार कभी नहीं त्यागा। लेकिन उसे भारत विजय के लिए कभी सही अवसर नहीं मिला था। “कभी अपने बेगों के भय के कारण, कभी मेरे और भाइयों के बीच मतभेद के कारण।”
हुमायूं (1530 ई.-1556 ई.)
शेरशाह सूरी (1540 ई. –1545 ई.)
अकबर के दरबार के नौ रत्न (नवरत्न) जहाँगीर (1605 ई.- 1627 ई.)
शाहजहाँ (1627 ई. 1658 ई.)
LECTURE – 11 मुग़ल काल में कला और संस्कृत तथा आधुनिक युग का प्रारंभ मुग़ल काल में कला और संस्कृत तथा आधुनिक युग का प्रारंभ फ़ारसी साहित्य मुग़लकालीन फ़ारसी साहित्य की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं- बाबरनामा (तुजुके बाबरी) बाबर द्वारा रचित तुर्की भाषा की यह कृति, जिसका अकबर ने 1583 ई. में अर्ब्दुरहमान ख़ानख़ाना द्वारा अनुवाद करवाया था, भारत की 1504 से 1529 ई. तक की राजनीतिक एवं प्राकृतिक स्थिति पर वर्णनात्मक प्रकाश डालती है। तारीख़-ए-रशीदी हुमायूँ की शाही फ़ौज में कमांडर के पद पर नियुक्त मिर्ज़ा हैदर दोगलत द्वारा रचित यह कृति मध्य एशिया में तुर्कों के इतिहास तथा हुमायूँ के शासन काल पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालती है। क़ानूने हुमायूँनी 1534 ई. में ख्वान्दमीर द्वारा रचित इस कृति में हुमायूँ की चापलूसी करते हुए उसे ‘सिकन्दर-ए-आजम’, ख़ुदा का साया आदि उपाधियाँ देने का वर्णन है। हुमायूँनामा दो भागों में विभाजित यह पुस्तक ‘गुलबदन बेगम’ द्वारा लिखी गयी, जिसके एक भाग में बाबर का इतिहास तथा दूसरे में हुमायूँ के इतिहास का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त इस पुस्तक से तत्कालीन सामाजिक स्थिति पर भी प्रकाश पड़ता है। तजकिरातुल वाकयात 1536-1537 ई. में ‘जौहर आपताबची’ द्वारा रचित इस पुस्तक में हुमायूँ के जीवन के उतार-चढ़ाव का उल्लेख है। वाकयात-ए-मुश्ताकी लोदी एवं सूर काल के विषय में जानकारी देने वाली यह कृति ‘रिजकुल्लाह मुश्ताकी’ द्वारा रचित है। तोहफ़ा-ए-अकबरशाही अकबर को समर्पित इस पुस्तक को ‘अब्बास ख़ाँ सरवानी’ ने अकबर के निर्देश पर लिखा था। इस पुस्तक से शेरशाह मे विषय मे जानकारी मिलती है। तारीख़-ए-शाही बहलोल लोदी के काल से प्रारम्भ होकर एवं हेमू की मृत्यु के समय समाप्त होने वाली यह पुस्तक ‘अहमद यादगार’ द्वारा रचित है। तजकिरा-ए-हुमायूँ व अकबर अकबर द्वारा अपने दरबारियों को हूमायूँ के विषय में जो कुछ जानते हैं, लिखने का आदेश देने पर अकबर के रसोई प्रबंधक ‘बायर्जाद बयात’ ने यह पुस्तक लिखी थी। नफाइस-उल-मासिर अकबर के समय यह प्रथम ऐतिहासिक पुस्तक ‘मीर अलाउद्दौला कजवीनी’ द्वारा रचित है, जिससे 1565 से 1575 ई. तक की स्थिति का पता चलता है। तारीख़-ए-अकबरी 9 भागों में विभाजित यह पुस्तक ‘निज़ामुद्दीन अहमद’ द्वारा रचित है। इसके प्रथम दो भाग मुग़लों के इतिहास का उल्लेख करते हैं तथा शेष भाग दक्कन, मालवा, गुजरात, बंगाल, जौनपुर, कश्मीर, सिंध एवं मुल्तान की स्थिति का आभास कराते हैं। इंशा अबुल फ़ज़ल की रचना ‘इंशा’ (अकबर द्वारा विदेशी शासकों को भेजे गये शाही पत्रों का संकलन) ऐतिहासिक एवं साहित्यिक दोनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। मुन्तखब-उत-तवारीख़ 1590 ई. में प्रारम्भ अब्दुल कादिर बदायूंनी द्वारा रचित यह पुस्तक हिन्दुस्तान के आम इतिहास के रूप में जानी जाती है, जो तीन भागों में विभाजित है। प्रथम भाग जिसे ‘तबकाते-अकबरी’ का संक्षिप्त रूप भी कहा जाता है, सुबुक्तगीन से हुमायूँ की मृत्यु तक की स्थिति का उल्लेख करता है तथा तीसरा भाग सूफ़ियों, शायरों एवं विद्वानों की जीवनियों पर प्रकाश डालता है। पुस्तक का रचयिता बदायूंनी, अकबर की उदार धार्मिक नीतियों का कट्टर विरोधी होने के कारण अकबर द्वारा लागू की गई उसकी हर नीति को इस्लाम धर्म के विरुद्ध साज़िश समझता था। तुजुक-ए-जहाँगारी जहाँगीर ने इस पुस्तक को अपने शासन काल के 16वें वर्ष तक लिखा। उसके बाद के 19 वर्षों का इतिहास ‘मौतमिद ख़ाँ ने अपने नाम से लिखा। अन्तिम रूप से इस पुस्तक को पूर्ण करने का श्रेय ‘मुहम्मद हादी’ को है। यह पुस्तक जहाँगीर के शासन कालीन उतार-चढ़ाव तथा शासन सम्बन्धी क़ानूनों का उल्लेख करती है। इक़बालनामा-ए-जहाँगीरी जहाँगीर के शासन काल के 19वें वर्ष के बाद की जानकारी देने वाली यह पुस्तक ‘मौतमद ख़ाँ बख्शी’ द्वारा रचित है। पादशाहनामा ‘पादशाहनामा’ नाम से कई पुस्तकों की रचना हुई है, जिन रचनाकारों ने इन पुस्तकों की रचना की है, वे निम्नलिखित हैं-
अमल-ए-सालेह ‘मोहम्मद सालेह’ द्वारा रचित इस कृति में शाहजहाँ के अन्तिम 2 वर्षों का इतिहास मिलता है। तारीख़-ए-शाहजहाँनी शाहजहाँ कालीन शासन के हालातों एवं अफ़सरों के सम्बन्ध में जानकारी देने वाली यह पुसतक ‘सादिक ख़ाँ’ द्वारा रचित है। चहारचमन ‘चन्द्रभान’ द्वारा रचित यह कृति शाहजहाँ की शासन प्रणाली और कार्य प्रणाली का ज़िक्र करती है। शाहजहाँनामा, आलमगीरनामा ये दोनों ही कृतियाँ औरंगज़ेब के शासन काल के प्रथम 10 वर्षों के इतिहास को बताने वाली एकमात्र कृति मानी जाती है। ‘शाहजहाँनामा’ के रचयिता ‘इनायत ख़ाँ एवं ‘आलमगीरनामा’ के रचयिता ‘काजिम शीराजी’ हैं। इन कृतियों में क़ीमते बढ़ने, खेती की हालत बिगड़ने आदि का भी उल्लेख है। काजिम शिराजी, औरंगज़ेब का सरकारी इतिहासकार था। वाकयात-ए-आलमगीरी ‘आकिल ख़ाँ’ द्वारा रचित यह कृति औरंगज़ेब के राज्यारोहण के समय हुई लड़ाईयों का विस्तार से उल्लेख करती है। खुलासत-उत-तवारीख़ औरंगज़ेब कालीन आर्थिक स्थिति, राज्यों की भौगोलिक सीमाओं एवं व्यापारिक मार्गों पर प्रकाश डालने वाली यह पुस्तक ‘सुजान राय भंडारी’ द्वारा रचित है। मुन्तखब-उल-लुबाब ‘खफी ख़ाँ’ द्वारा रचित यह कृति औरंगज़ेब के शासन काल का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत करती है। फतुहात-ए-आलमगीरी औरंगज़ेब के 34 वर्षों के शासन काल पर प्रकाश डालने वाली यह कृति ‘ईश्वरदास नागर’ द्वारा रचित है। नुस्खा-ए-दिलकुशा औरंगज़ेब की शासन कालीन सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति का उल्लेख करने वाली यह पुस्तक ‘भीमसेन कायस्थ’ द्वारा रचित है। मासिर-ए-आलमगीरी ‘साकी मुस्तैद ख़ाँ’ द्वारा रचित यह कृति औरंगज़ेब के शासन काल के 11 वें वर्ष से लेकर 20वें वर्ष तक की स्थिति पर प्रकाश डालती है। ‘जदुनाथ सरकार’ ने इस कृति को ‘मुग़ल राज्य का गजेटियर’ कहा है। फतवा-ए-आलमगीरी मुस्लिम क़ानूनों का अत्यन्त प्रामाणिक एवं विस्तृत सार संग्रह ‘फतवा-ए-आलमगीरी’ के नाम से जाना जाता है, जिसे औरंगज़ेब के आदेश से धर्माचार्यों के एक समूह ने तैयार किया था। मजमा-ए-बहरीन (दो महासागरों का मिलन)- दारा शिकोह द्वारा रचित इस पुस्तक में हिन्दू धर्म और इस्लाम धर्म को एक ही लक्ष्य के दो मार्ग बताया गया है। संस्कृत साहित्य
जहाँगीर ने ‘चित्र मीमांसा खंडन’ (अलंकार शास्त्र पर ग्रंथ) एवं ‘आसफ़ विजय’ (नूरजहाँ के भाई आसफ़ ख़ाँ की स्तुति) के रचयिता जगन्नाथ को ‘पंडिताराज’ की उपाधि से सम्मानित किया था। वंशीधर मिश्र और हरिनारायण मिश्र वाले संस्कृत ग्रंथ हैं- रघुनाथ रचित ‘मुहूर्तमाला’, जो कि मुहूर्त संबंधी ग्रंथ है और चतुर्भुज का ‘रसकल्पद्रम’ जो औरंगज़ेब के चाचा शाइस्ता ख़ाँ को समर्पित है। हिन्दी साहित्य
उर्दू का जन्म दिल्ली सल्तनत काल में हुआ।
दारा शिकोह की रचनायें
महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का अनुवाद मुग़ल सम्राट अकबर ने ‘अनुवाद विभाग’ की स्थापना की थी। इस विभाग में संस्कृत अरबी भाषा, तुर्की एवं ग्रीक भाषाओं की अनेक कृतियों का अनुवाद फ़ारसी भाषा में किया गया। फ़ारसी मुग़लों की राजकीय भाषा थी।
मुग़ल काल में फ़ारसी कविता के क्षेत्र में भी काफ़ी काम हुआ था। बादशाह बाबर ने फ़ारसी कविता के क्षेत्र में ‘मुबइयान’ शैली को जन्म दिया। अकबर भी फ़ारसी एवं हिन्दी कविताओं की रचना करता था।
जहाँगीर के समय छवि-चित्रण की तुलना में पांडुलिपि के चित्रण का महत्त्व कम हो गया।
संगीत कला
स्थापत्य कला
उद्यान
सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव का जन्म 15 अप्रैल, 1469 में ‘तलवंडी’ नामक स्थान पर हुआ था। नानक जी के पिता का नाम कल्यानचंद या मेहता कालू जी और माता का नाम तृप्ता था। नानक जी के जन्म के बाद तलवंडी का नाम ननकाना पड़ा। वर्तमान में यह जगह पाकिस्तान में है। उनका विवाह नानक सुलक्खनी के साथ हुआ था। इनके दो पुत्र श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द थे। उन्होंने कर्तारपुर नामक एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान में है। इसी स्थान पर सन् 1539 को गुरु नानक जी का देहांत हुआ था। गुरु नानक की पहली ‘उदासी’ (विचरण यात्रा) 1507 ई. में 1515 ई. तक रही। इस यात्रा में उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों में भ्रमण किया।
गुरु अंगद देव सिखों के दूसरे गुरु थे। गुरु नानक देव ने अपने दोनों पुत्रों को छोड़कर उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया था। उनका जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 31 मार्च, 1504 को हुआ था। इनके पिता का नाम फेरू जी था, जो पेशे से व्यापारी थे। उनकी माता का नाम माता रामो जी था। गुरु अंगद देव को ‘लहिणा जी’ के नाम से भी जाना जाता है। अंगद देव जी पंजाबी लिपि ‘गुरुमुखी’ के जन्मदाता हैं।
गुरु अंगद देव के बाद गुरु अमर दास सिख धर्म के तीसरे गुरु हुए। उन्होंने जाति प्रथा, ऊंच-नीच, कन्या-हत्या, सती प्रथा जैसी कुरीतियों को समाप्त करने में अहम योगदान किया। उनका जन्म 23 मई, 1479 को अमृतसर के एक गांव में हुआ। उनके पिता का नाम तेजभान एवं माता का नाम लखमी था। गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म को हिंदू धर्म की कुरीतियों से मुक्त किया। उन्होंने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया और विधवाओं के पुनर्विवाह की अनुमति दी। उन्होंने सती प्रथा का घोर विरोध किया।
गुरु अमरदास के बाद गद्दी पर गुरु रामदास बैठे। वह सिख धर्म के चौथे गुरु थे। इन्होंने गुरु इनका जन्म लाहौर में हुआ था। जब गुरु रामदास बाल्यावस्था में थे, तभी उनकी माता का देहांत हो गया।
गुरु अर्जन देव सिखों के पांचवें गुरु हुए। उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 में हुआ था। वह सिख धर्म के चौथे गुरु गुरु अर्जन देव देव जी के पुत्र थे। ये 1581 ई. में गद्दी पर बैठे। सिख गुरुओं ने अपना बलिदान देकर मानवता की रक्षा करने की जो परंपरा स्थापित की, उनमें सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव का बलिदान महान माना जाता है।
गुरु हरगोबिन्द सिंह सिखों के छठे गुरु थे। यह सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव के पुत्र थे। गुरु हरगोबिन्द सिंह ने ही सिखों को अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया व सिख पंथ को योद्धा चरित्र प्रदान किया।
बहादुर शाह प्रथम (1707 ई. से 1712 ई.)
जहांदार शाह (1712 ई. से 1713 ई.)
फरूखसियर (1713 ई. से 1719 ई.)
मुहम्मद शाह (1719 ई. से 1748 ई.)
अहमद शाह (1748 ई. से 1754 ई.)
शाहआलम द्वितीय (1759 ई. से 1806 ई.)
बहादुरशाह द्वितीय (1837 ई. –1857 ई.)
मुग़ल काल में कला और संस्कृत तथा आधुनिक युग का प्रारंभ प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न
मुग़ल काल में कला और संस्कृत तथा आधुनिक युग का प्रारंभ मुख्य परीक्षा प्रश्न
LECTURE – 12 HISTORY (GS) 1857 का विद्रोह (कारण और असफलताए) मुख्य परीक्षा प्रश्न
PAHUJA LAW ACADEMY LECTURE – 12 HISTORY (GS) 1857 का विद्रोह (कारण और असफलताए) 1857 का विद्रोह (कारण और असफलताए)
विद्रोह के कारण
विद्रोह से सम्बंधित ब्रिटिश अधिकारी निष्कर्ष: 1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी |हालाँकि इसका आरम्भ सैनिको के विद्रोह द्वारा हुआ था लेकिन यह कम्पनी के प्रशासन से असंतुष्ट और विदेशी शासन को नापसंद करने वालों की शिकायतों व समस्याओं की सम्मिलित अभिव्यक्ति थी|
नवजागरण का आशय है वह दृष्टिकोण जिसके लिए मानवता, इहलौकिकता, तार्किकता, वैज्ञानिकता, समानता, आत्मान्वेषण, राष्ट्रीयता, स्वाधीनता आदि मूल्य अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। हिंदी में पुनर्जागरण शब्द अंग्रेजी के रेनेसां के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है।
रामकृष्ण मिशन थियोसोफ़िकल
सोसाइटी यंग बंगाल आन्दोलन
मुस्लिम सुधार आन्दोलन अलीगढ़ आन्दोलन वहाबी आन्दोलन अहमदिया आन्दोलन
लेकिन इंडियन एसोसिएशन कलकत्ता और इसके नेता सुरेंद्र नाथ बनर्जी का नाम इंडियन नेशनल कॉन्फ्रेंस को संगठित करने में विशेष रुप से उल्लेखनीय हैभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन बंगाल विभाजन एवं स्वदेशी आंदोलन (1905 ई. से 1906 ई.)
उग्र और क्रांतिकारी आंदोलन (1905 ई. से 1914 ई.)
होमरुल लीग आंदोलन (1915 ई. से 1916 ई.)
PAHUJA LAW ACADEMY LECTURE – 12 HISTORY (GS) 1857 का विद्रोह (कारण और असफलताए) प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न
(A) रंगून में, कर्नल नील ने (B) ग्वालियर में, लेफ्टिनेंट हडसन ने (C) बरेली में, जेम्स आउट्रम ने (D) हुमायूँ की कब्र के पास, लेफ्टिनेंट हडसन ने
(A) खान बहादुर (B) कुँवर सिंह (C) मौलवी अहमदशाह (D) बिरजिस कादिर
(A) बेगम हजरत महल (B) नाना साहिब (C) तांत्या टोपे (D) रानी लक्ष्मीबाई
(A) दिल्ली (B) कानपुर (C) लखनऊ (D) झांसी
(A) बेंजामिन डिजरायली (B) वी.डी. सावरकर (C) के. एम. पणिक्कर (D) ताराचंद
(A) आउट्रम (B) चार्ल्स नेपियर (C) कैम्पबेल (D) हैवलॉक
(A) अवध (B) मद्रास (C) पूर्वी पंजाब (D) मध्य प्रदेश
(A) रंगून (B) सिंगापुर (C) साइबेरिया (D) इनमें से कोई नहीं
(A) 34वीं नेटिव इंफैंट्री से (B) 22वीं नेटिव इंफैंट्री से (C) 19वीं नेटिव इंफैंट्री से (D) 38वीं नेटिव इंफैंट्री से
(A) 1857 का विद्रोह (B) चम्पारण सत्याग्रह, 1917 (C) खिलाफत और असहयोग आन्दोलन, 1919-22 (D) 1942 की अगस्त क्रांति
(A) हडसन (B) हैवलाक (C) ह्यूरोज (D) टेलर व विसेंट आयर LEC-13 स्वतंत्रता आन्दोलनदक्षिण अफ्रीका में गांधीजी की गतिविधियां (1893-1914)
खिलाफत-असहयोग आंदोलन तीन मांगें- तुर्की के साथ सम्मानजनक व्यवहार।
गांधीजी की भारत वापसी गांधीजी, जनवरी 1915 में भारत लौटे। दक्षिण अफ्रीका में उनके संघर्ष और उनकी सफलताओं ने उन्हें भारत में अत्यन्त लोकप्रिय बना दिया था। न केवल शिक्षित भारतीय अपितु जनसामान्य भी गांधीजी के बारे में भली-भांति परिचित हो चुका था। भारत की तत्कालीन सभी राजनीतिक विचारधाराओं से गांधीजी असहमत थे। उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में राष्ट्रवादी लक्ष्यों को प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग है- अहिंसक सत्याग्रह। उन्होंने
स्पष्ट शब्दों में घोषित किया कि जब तक कोई राजनीतिक संगठन सत्याग्रह के मार्ग की नहीं अपनायेगा तब तक वे ऐसे किसी भी संगठन से सम्बद्ध नहीं हो सकते। चम्पारण सत्याग्रह 1917
अहमदाबाद मिल हड़ताल 1918- प्रथम भूख हड़ताल
खेड़ा सत्याग्रह 1918- प्रथम असहयोग
चम्पारण, अहमदाबाद तथा खेड़ा में गांधीजी की उपलब्धियां
रौलेट एक्ट 1919 का वर्ष भारत के लिये अत्यन्त सोच एवं असंतोष का वर्ष था। देश में फैल रही राष्ट्रीयता की भावना तथा क्रांतिकारी गतिविधियों को कुलचने के लिये ब्रिटेन को पुनः शक्ति की आवश्यकता थी क्योंकि भारत के रक्षा अधिनियम की शक्ति समाप्त प्राय थी। इसी संदर्भ में सरकार ने सर सिडनी रौलेट (Sidney Rowlatt) की नियुक्ति की, जिन्हें इस बात की जांच करनी थी कि भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों के माध्यम से सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र करने वाले लोग कहां तक फैले हुये हैं और उनसे निपटने के लिये किस प्रकार के कानूनों की आवश्यकता है। इस संबंध में सर सिडनी रौलेट की समिति ने जो सिफारिशें कीं उन्हें ही रौलेट अधिनियम या रौलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है। रौलेट एक्ट के प्रमुख प्रावधान
रौलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह-प्रथम जन आन्दोलन विश्व युद्ध की समाप्ति पर, जब भारतीय जनता संवैधानिक सुधारों का इंतजार कर रही थी, ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी रौलेट एक्ट को जनता के सम्मुख पेश कर दिया, इसे भारतीयों ने अपना घोर अपमान समझा। अपने पूर्ववर्ती अभियानों से अदम्य व साहसी हो चुके गांधीजी ने फरवरी 1919 में प्रस्तावित रौलेट एक्ट के विरोध में देशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया। किन्तु संवैधानिक प्रतिरोध का जब सरकार पर कोई असर नहीं हुआ तो गांधीजी ने सत्याग्रह प्रारम्भ करने का निर्णय किया। एक ‘सत्याग्रह सभा’ गठित की गयी तथा होमरूल लीग के युवा सदस्यों से सम्पर्क कर अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध संघर्ष करने का निर्णय हुआ। प्रचार कार्य प्रारम्भ हो गया। राष्ट्रव्यापी हड़ताल, उपवास तथा प्रार्थना सभाओं के आयोजन का फैसला किया गया। इसके साथ ही कुछ प्रमुख कानूनों की अवज्ञा तथा गिरफ्तारी देने की योजना भी बनाई गयी। आन्दोलन के इस मोड़ के लिये कई कारण थे जो निम्नानुसार हैं
परिणाम
जलियांवाला बाग हत्याकांड
परिणाम
भारत के गवर्नर जनरल एवं
वायसराय लॉर्ड विलियम बैंटिक (1828 ई. से 1835 ई.) Ø लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत मेँ किए गए सामाजिक सुधारोँ के लिए विख्यात है। Ø लॉर्ड विलियम बैंटिक ने कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स की इच्छाओं के अनुसार भारतीय रियासतोँ के प्रति तटस्थता की नीति अपनाई। Ø इसने ठगों के आतंक से निपटने के लिए कर्नल स्लीमैन को नियुक्त किया। Ø लॉर्ड विलियम बैंटिक के कार्यकाल मेँ 1829 मे सती प्रथा का अंत कर दिया गया। Ø लॉर्ड विलियम बैंटिक ने भारत मेँ कन्या शिशु वध पर प्रतिबंध लगाया। Ø बैंटिक के ही कार्यकाल मेँ देवी देवताओं को नर बलि देने की प्रथा का अंत कर दिया गया। Ø शिक्षा के क्षेत्र मेँ इसका महत्वपूर्ण योगदान था। इसके कार्यकाल मेँ अपनाई गई मैकाले की शिक्षा पद्धति ने भारत के बौद्धिक जीवन को उल्लेखनीय ढंग से प्रभावित किया। सर चार्ल्स मेटकाफ (1835 ई. से 1836 ई.) Ø विलियम बेंटिक के पश्चात सर चार्ल्स मेटकाफ को भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया। Ø इसने समाचार पत्रोँ पर लगे प्रतिबंधोँ को समाप्त कर दिया। इसलिए इसे प्रेस का मुक्तिदाता भी कहा जाता है। लॉर्ड ऑकलैंड (1836 ई. से 1842 ई.) Ø लॉर्ड ऑकलैंड के कार्यकाल मे प्रथम अफगान युद्ध (1838 ई. – 1842 ई.) हुआ। Ø 1838 में लॉर्ड ऑकलैंड ने रणजीत सिंह और अफगान शासक शाहशुजा से मिलकर त्रिपक्षीय संधि की। Ø लॉर्ड ऑकलैंड को भारत मेँ शिक्षा एवं पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति के विकास और प्रसार के लिए जाना जाता है। Ø लॉर्ड ऑकलैंड के कार्यकाल मेँ बंबई और मद्रास मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की गई। इसके कार्यकाल मेँ शेरशाह द्वारा बनवाए गए ग्रांड-ट्रंक-रोड की मरम्मत कराई गई। लॉर्ड एलनबरो (1842 ई. –1844 ई.) Ø लॉर्ड एलनबरो के कार्यकाल मेँ प्रथम अफगान युद्ध का अंत हो गया। Ø इसके कार्यकाल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना 1843 में सिंध का ब्रिटिश राज मेँ विलय करना था। Ø इसके कार्यकाल मेँ भारत मेँ दास प्रथा का अंत कर दिया गया। लॉर्ड हार्डिंग (1844 ई. से 1848 ई.) Ø लॉर्ड हार्डिंग के कार्यकाल मेँ आंग्ल-सिख युद्ध (1845) हुआ, जिसकी समाप्ति लाहौर की संधि से हुई। Ø लॉर्ड हार्डिंग को प्राचीन स्मारकोँ के संरक्षण के लिए जाना जाता है। इसने स्मारकों की सुरक्षा का प्रबंध किया। Ø लॉर्ड हार्डिंग ने सरकारी नौकरियोँ मेँ नियुक्ति के लिए अंग्रेजी शिक्षा को प्राथमिकता। लार्ड डलहौजी (1848 ई. से 1856 ई.) Ø ये साम्राज्यवादी था लेकिन इसका कार्यकाल सुधारोँ के लिए भी विख्यात है। इसके कार्यकाल मेँ (1851 ई. – 1852 ई.) मेँ द्वितीय आंग्ल बर्मा युद्ध लड़ा गया। 1852 ई. में बर्मा के पीगू राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। Ø लॉर्ड डलहौजी ने व्यपगत के सिद्धांत को लागू किया। Ø व्यपगत के सिद्धांत द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य मेँ मिलाये गए राज्यों मेँ सतारा (1848), जैतपुर व संभलपुर (1849), बघाट (1850), उदयपुर (1852), झाँसी (1853), नागपुर (1854) आदि थे। Ø लार्ड डलहौजी के कार्यकाल मेँ भारत मेँ रेलवे और संचार प्रणाली का विकास हुआ। Ø इसके कार्यकाल मेँ दार्जिलिंग को भारत मेँ सम्मिलित कर लिया गया। Ø लार्ड डलहौजी ने 1856 मेँ अवध के नवाब पर कुशासन का आरोप लगाकर अवध का ब्रिटिश साम्राज्य मेँ विलय कर लिया। Ø इसके कार्यकाल मेँ वुड का निर्देश पत्र आया जिसे भारत मेँ शिक्षा सुधारों के लिए मैग्नाकार्टा कहा जाता है। Ø इसने 1854 में नया डाकघर अधिनियम (पोस्ट ऑफिस एक्ट) पारित किया, जिसके द्वारा देश मेँ पहली बार डाक टिकटों का प्रचलन प्रारंभ हुआ। Ø लार्ड डलहौजी के कार्यकाल मेँ भारतीय बंदरगाहों का विकास करके इन्हेँ अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य के लिए खोल दिया गया। Ø इसके कार्यकाल मेँ हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हुआ। भारत के वायसराय Ø लॉर्ड कैनिंग (1858 ई. से 1862 ई.) Ø यह 1856 ई. से 1858 ई. तक भारत का गवर्नर जनरल रहा। यह भारत का अंतिम गवर्नर जनरल था। तत्पश्चात ब्रिटिश संसद द्वारा 1858 में पारित अधिनियम द्वारा इसे भारत के प्रथम वायरस बनाया गया। Ø इसके कार्यकाल मेँ IPC, CPC तथा CrPCजैसी दण्डविधियों को पारित किया गया था। इसके शासन काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना 1857 का विद्रोह था। Ø इसके कार्यकाल मेँ लंदन विश्वविद्यालय की तर्ज पर 1857 में कलकत्ता, मद्रास और बम्बई विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। Ø 1857 के विद्रोह के पश्चात पुनः भारत पर अधिकार करके मुग़ल सम्राट बहादुर शाह को रंगून निर्वासित कर दिया गया। Ø लार्ड कैनिंग के कार्यकाल मेँ भारतीय इतिहास प्रसिद्ध नील विद्रोह हुआ। Ø 1861 का भारतीय परिषद अधिनियम इसी के कार्यकाल मेँ पारित हुआ। लॉर्ड एल्गिन (1864 ई. से 1869 ई.) Ø लॉर्ड एल्गिन एक वर्ष की अल्पावधि के लिए वायसरॉय बना। इसने वहाबी आंदोलन को समाप्त किया तथा पश्चिमोत्तर प्रांत मेँ हो रहे कबायलियोँ के विद्रोहों का दमन किया। सर जॉन लारेंस (1864 ई. से 1869 ई.) Ø इसने अफगानिस्तान मेँ हस्तक्षेप न करने की नीति का पालन किया। Ø इसके कार्यकाल मेँ यूरोप के साथ दूरसंचार व्यवस्था (1869 ई. से 1870 ई.) कायम की गई। Ø इसके कार्यकाल मेँ कलकत्ता, बंबई और मद्रास मेँ उच्च न्यायालयोँ की स्थापना की गई। Ø अपने महान अभियान के लिए भी इसे जाना जाता है। Ø इसके कार्यकाल मेँ पंजाब का काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया। लॉर्ड मेयो (1869 ई. से 1872 ई.) Ø इसके कार्यकाल मेँ भारतीय सांख्यिकी बोर्ड का गठन किया गया। Ø इसके कार्य काल मेँ सर्वप्रथम 1871 मेँ भारत मेँ जनगणना की शुरुआत हुई। Ø इसने कृषि और वाणिज्य के लिए एक पृथक विभाग की स्थापना की। Ø लॉर्ड मेयो की हत्या के 1872 मेँ अंडमान मेँ एक कैदी द्वारा कर दी गई थी। Ø इसने राजस्थान के अजमेर मेँ मेयो कॉलेज की स्थापना की। लॉर्ड नाथ ब्रुक (1872 ई. से 1876 ई.) Ø नार्थब्रुक ने 1875 में बड़ौदा के शासक गायकवाड़ को पदच्युत कर दिया। Ø इसके कार्यकाल प्रिंस ऑफ वेल्स एडवर्ड तृतीय की भारत यात्रा 1875 में संपन्न हुई। Ø इसके कार्यकाल मेँ पंजाब मेँ कूका आंदोलन हुआ। लार्ड लिटन (1876 ई. से 1880 ई.) Ø इसके कार्यकाल मेँ राज उपाधि-अधिनियम पारित करके 1877 मेँ ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को कैसर-ए-हिंद की उपाधि से विभूषित किया गया। Ø 1878 में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पारित किया गया जिसे एस. एन. बनर्जी ने आकाश से गिरे वज्रपात की संज्ञा दी थी। Ø लार्ड लिटन एक विख्यात कवि और लेखक था। विद्वानोँ के बीच इसे ओवन मेरेडिथ के नाम से जाना जाता था। Ø 1878 मेँ स्ट्रेची महोदय के नेतृत्व मेँ एक अकाल आयोग का गठन किया गया। Ø लिटन ने सिविल सेवा मेँ प्रवेश की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दी। Ø लार्ड रिपन (1880 ई. से 1884 ई.) Ø 1881 में प्रथम कारखाना अधिनियम पारित हुआ। Ø इसने 1882 मे वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया। इसलिए इसे प्रेस का मुक्तिदाता कहा जाता है। Ø रिपन के कार्यकाल मेँ सर विलियम हंटर की अध्यक्षता मेँ एक शिक्षा आयोग, हंटर आयोग का गठन किया गया । Ø 1882 मेँ स्थानीय स्व-शासन प्रणाली की शुरुआत की। Ø 1883 मेँ इलबर्ट बिल विवाद रिपन के ही कार्यकाल मेँ हुआ था। Ø लार्ड डफरिन (1884 ई. से 1888 ई.) Ø इसके कार्यकाल मेँ तृतीय-बर्मा युद्ध के द्वारा बर्मा को भारत मेँ मिला लिया गया। Ø इसके कार्यकाल मेँ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की गई। Ø लॉर्ड डफरिन के कार्यकाल मेँ अफगानिस्तान के साथ उत्तरी सीमा का निर्धारण किया गया। Ø इसके कार्यकाल मेँ बंगाल (1885), अवध (1886) और पंजाब (1887) किराया अधिनियम पारित किया गया। लार्ड लेंसडाउन (1888 ई. से 1893 ई.) Ø इसके कार्यकाल मेँ भारत का तथा अफगानिस्तान के बीच सीमा रेखा का निर्धारण किया गया जिसे डूरंड रेखा के नाम से जाना जाता है। Ø इसके कार्यकाल मेँ 1819 का कारखाना अधिनियम पारित हुआ। Ø ‘एज ऑफ़ कमेट’ बिल का पारित होना इसके कार्यकाल की महत्वपूर्ण घटना है। Ø इसने मणिपुर के टिकेंद्रजीत के नेतृत्व मेँ विद्रोह का दमन किया। लार्ड एल्गिन द्वितीय (1894 ई. से 1899 ई.) Ø लॉर्ड एल्गिन के कार्यकाल मेँ भारत मेँ क्रांतिकारी आतंकवाद की घटनाएँ शुरु हो गई। Ø पूना के चापेकर बंधुओं द्वारा 1897 मेँ ब्रिटिश अधिकारियोँ की हत्या भारत मेँ प्रथम राजनीतिक हत्या थी। Ø इसने हिंदूकुश पर्वत के दक्षिण के एक राज्य की त्रिचाल के विद्रोह को दबाया। Ø इसके कार्यकाल मेँ भारत मेँ देशव्यापी अकाल पड़ा। लार्ड कर्जन (1899 ई. से 1905 ई.) Ø उसके कार्यकाल मेँ फ्रेजर की अध्यक्षता मेँ पुलिस आयोग का गठन किया गया। इस आयोग की अनुशंसा पर सी.आई.डी की स्थापना की गई। Ø इसके कार्यकाल मेँ उत्तरी पश्चिमी सीमावर्ती प्रांत की स्थापना की गई। Ø शिक्षा के क्षेत्रत्र मेँ 1904 मेँ विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया। Ø 1904 मेँ प्राचीन स्मारक अधिनियम परिरक्षण अधिनियम पारित करके भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान की स्थापना की गई। Ø इसके कार्यकाल मेँ बंगाल का विभाजन हुआ, जिससे भारत मे क्रांतिकारियो की गतिविधियो का सूत्रपात हो गया। लार्ड मिंटो द्वितीय (1905 ई. से 1910 ई.) Ø 1906 ई. मेँ मुस्लिम लीग की स्थापना हुई। Ø इसके कार्यकाल मेँ कांग्रेस का सूरत अधिवेशन हुआ, जिसमेँ कांग्रेस का विभाजन हो गया। Ø मार्ले मिंटो सुधार अधिनियम 1909 मेँ पारित किया गया। Ø इसके काल काल मेँ 1908 का समाचार अधिनियम पारित हुआ। Ø इसके काल मेँ प्रसिद्ध क्रांतिकारी खुदीराम बोस को फांसी की सजा दे दी गई। Ø इसके कार्यकाल मेँ अंग्रेजों ने भारत मेँ ‘बांटो और राज करो’ की नीति औपचारिक रुप से अपना ली। Ø वर्ष 1908 मेँ बाल गंगाधर तिलक को 6 वर्ष की सजा सुनाई गई। लार्ड हार्डिंग द्वितीय (1910 ई. से 1916 ई.) Ø 1911 मेँ जॉर्ज पंचम के आगमन के अवसर पर दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया। Ø 1911 मेँ ही बंगाल विभाजन को रद्द करके वापस ले लिया गया। Ø 1911 मेँ बंगाल से अलग करके बिहार और उड़ीसा नए राज्य बनाए गए। Ø 1912 मेँ भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। Ø प्रथम विश्व युद्ध में भारत का समर्थन प्राप्त करने में लार्ड हार्डिंग सफल रहा। लार्ड चेम्सफोर्ड (1916 ई. से 1921 ई.) Ø इसके काल मेँ तिलक और एनी बेसेंट ने होम रुल लीग आंदोलन का सूत्रपात किया। Ø 1916 मेँ कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच एक समझौता हुआ, जिसे लखनऊ पैक्ट के नाम से जाना जाता है। Ø पंडित मदन मोहन मालवीय ने बनारस मेँ काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना 1916 मेँ की थी। Ø खिलाफत और असहयोग आंदोलन का प्रारंभ हुआ। Ø अलीगढ विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। Ø महात्मा गांधी ने रौलेट एक्ट के विरोध मेँ आंदोलन शुरु किया। Ø 1919 मेँ जलियाँ वाला बाग हत्याकांड इसी के कार्यकाल मेँ हुआ। Ø 1921 मेँ प्रिंस ऑफ वेल्स का भारत आगमन हुआ। लार्ड रीडिंग (1921 ई. से 1926 ई.) Ø इसके कार्यकाल मेँ 1919 का रौलेट एक्ट वापस ले लिया गया। Ø इस के कार्यकाल मेँ केरल मेँ मोपला विद्रोह हुआ। Ø इसके कार्यकाल मेँ 5 फरवरी, 1922 मेँ चौरी चौरा की घटना हुई, जिससे गांधी जी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। Ø 1923 मेँ इसके कार्यकाल मेँ भारतीय सिविल सेवा की परीक्षाएँ इंग्लैण्ड और भारत दोनोँ स्थानोँ मेँ आयोजित की गई। Ø किसके कार्यकाल मेँ सी. आर. दास और मोती लाल नेहरु ने 1922 मेँ स्वराज पार्टी का गठन किया। Ø दिल्ली और नागपुर में विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई। लार्ड इरविन (1926 ई. से 1931 ई.) Ø लॉर्ड इरविन के कार्यकाल मेँ साइमन आयोग भारत आया। Ø 1928 मेँ मोतीलाल नेहरु ने नेहरु रिपोर्ट प्रस्तुत की। Ø गांधीजी ने 1930 मेँ नमक आंदोलन का आरंभ करते हुए दांडी मार्च किया। Ø कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन मेँ संपूर्ण स्वराज्य का संकल्प लिया गया। Ø प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 मेँ लंदन मेँ हुआ। Ø इसके कार्यकाल मेँ 5 मार्च 1931 को गांधी-इरविन समझौता हुआ। Ø लार्ड इरविन के कार्यकाल मेँ पब्लिक सेफ्टी के विरोध मेँ भगत सिंह और उसके साथियों ने एसेंबली मेँ बम फेंका। लार्ड विलिंगटन (1931 ई. से 1936 ई.) Ø लार्ड विलिंगटन के कार्यकाल मेँ द्वितीय और तृतीय गोलमेज सम्मेलन हुए। Ø 1932 मेँ देहरादून मेँ भारतीय सेना अकादमी (इंडियन मिलिट्री अकादमी) की स्थापना की गई। Ø 1934 मेँ गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु किया। Ø 1935 मेँ गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित किया गया। Ø 1935 मेँ ही बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। Ø लार्ड विलिंगटन के कार्यकाल मेँ भारतीय किसान सभा की स्थापना की गई। Ø लार्ड लिनलिथगो (1938 ई. से 1943 ई.) Ø 1939 ई. मेँ सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस छोड़कर फॉरवर्ड ब्लॉक नामक एक अलग पार्टी का गठन किया। Ø 1939 मेँ द्वितीय विश्व युद्ध मेँ शुरु होने पर प्रांतो की कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने त्याग पत्र दे दिया। Ø 1940 के लाहौर अधिवेशन मेँ मुस्लिम लीग के मुसलमानोँ के लिए अलग राज्य की मांग करते हुए पाकिस्तान का प्रस्ताव पारित किया गया। Ø 1940 मेँ ही कांग्रेस द्वारा व्यक्तिगत असहयोग आंदोलन का प्रारंभ किया गया। Ø 1942 मेँ गांधी जी ने करो या मरो का नारा देकर भारत छोड़ो आंदोलन शुरु किया। लार्ड वेवेल (1943 ई. से 1947 ई.) Ø लार्ड वेवेल ने शिमला मेँ एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसे, वेवेल प्लान के रुप मेँ जाना जाता है। Ø 1946 मेँ नौसेना का विद्रोह हुआ। Ø 1946 मेँ अंतरिम सरकार का गठन किया गया। Ø ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फरवरी 1947 को भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा की। लार्ड माउंटबेटेन (1947 ई. से 1948 ई.) Ø लार्ड माउंटबेटेन भारत के अंतिम वायसरॉय थे। Ø लार्ड माउंटबेटेन ने 3 जून 1947 को भारत के विभाजन की घोषणा की। Ø 4 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वंत्रता अधिनियम प्रस्तुत किया गया, जिसे 18 जुलाई, 1947 को पारित करके भारत की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी गयी। Ø भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा भारत के दो टुकड़े करके
इसे भारत और पाकिस्तान दो राज्यों में बांट दिया गया। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (1948 ई. से 1950 ई.) Ø भारत की स्वतंत्रता के बाद 1948 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को स्वतंत्र भारत का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया। साइमन कमीशन साइमन कमीशन को वर्तमान सरकारी व्यवस्था, शिक्षा के प्रसार तथा प्रतिनिधि संस्थानों के अध्यनोपरांत यह रिपोर्ट देनी थी कि भारत में उत्तरदायी सरकार की स्थापना कहां तक लाजिमी है तथा भारत इसके लिये कहां तक तैयार है। भारतीयों को कोई प्रतिनिधित्व न दिये जाने के कारण भारतीयों ने इसका बहिष्कार किया। नेहरू रिपोर्ट
कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन- दिसम्बर 1928
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन दिसम्बर- 1929
आंदोलन का प्रसार
प्रथम गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1930-जनवरी 1931
कांग्रेस का कराची अधिवेशन -मार्च 1931
साम्प्रदायिक निर्णय
भारत सरकार अधिनियम, 1935
Pre Questions
मुख्य परीक्षा प्रश्न
2. स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान दलित जातियों की मुक्ति के लिए किये गए रयासों का वर्णन करे |