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वैसे तो इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन माना जाता है कि भारत में ट्रेड यूनियन मूवमेंट के पिता कहे जाने वाले नारायण मेघाजी लोखंडे के चलते रविवार की छुट्टी मिलनी शुरू हुई। अंग्रेजों के शासन में भारत में अधिकतर मजदूर सातों दिन काम किया करते थे। इसकी वजह से उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता था। कई जगह तो मजदूरों को खाना तक खाने के लिए पर्याप्त वक्त नहीं दिया जाता था। मेघाजी लोखंडे ने इसके खिलाफ आवाज उठाई और मजबूत होकर 10 जून 1890 को अंग्रेजी हुकूमत ने रविवार के दिन छुट्टी घोषित की। रविवार को ही छुट्टी क्यों?अगर मान लें कि मेघाजी लोखंडे के प्रयासों के चलते रविवार की छुट्टी शुरू हुई, तो भी ये सवाल उठता है कि आखिर छुट्टी के लिए रविवार को ही क्यों चुना गया। दरअसल, रविवार को ही छुट्टी के लिए इस वजह से चुना गया, क्योंकि उस दिन अंग्रेजों की छुट्टी रहा करती थी। रविवार को अंग्रेज चर्च जाते थे। ऐसे में जब हफ्ते में एक दिन छुट्टी देने की बात आई तो अंग्रेजों ने रविवार को सबकी छुट्टी करने का फैसला किया। कई देशों में नहीं होती है रविवार की छुट्टीआज भी कई ऐसे देश हैं, जहां पर रविवार की छुट्टी नहीं होती है। यह इस्लामिक देश हैं, क्योंकि वह शुक्रवार को नमाज अदा करते हैं। ऐसे में वह रविवार की जगह शुक्रवार को छुट्टी करते हैं। अधिकतर पश्चिमी देशों में रविवार को ही छुट्टी होती है। अमेरिका, कनाडा, चीन, फिलीपीन्स और दक्षिणी अमेरिका में रविवार को छुट्टी रहती है और इस दिन लोग चर्च जाते हैं। अमेरिका और कनाडा में ब्लू लॉ (Blue Law) के हिसाब से शनिवार और रविवार को अधिकतर सरकारी दफ्तर बंद रहते हैं। अब हफ्ते में 3 दिन छुट्टी की हो रही बातएचआर सॉल्यूशन्स जीनियस कंसल्टेंट्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर लोग चाहते हैं कि हफ्ते में 4 दिन छुट्टी हो। उनका मानना है कि इससे प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी और वर्क लाइफ बैलेंस भी होगा। इससे तनाव और चिंता का स्तर भी कम होगा। यह रिपोर्ट 1,113 नियोक्ताओं और कर्मचारियों पर एक फरवरी से सात मार्च के बीच कराए गए एक ऑनलाइन सर्वेक्षण पर आधारित है। सर्वे में नियोक्ताओं से पूछा गया था कि एक अतिरिक्त दिन का अवकाश मिलने पर क्या वे रोजाना 12 घंटे से अधिक समय तक काम करने को तैयार हैं, तो उनमें से 56 फीसदी लोग फौरन ही इसके लिए राजी हो गए। हालांकि, 44 फीसदी कर्मचारी कामकाजी घंटों को बढ़ाने के पक्ष में नहीं दिखे। इसी के साथ 60 फीसदी कर्मचारियों ने एक और दिन का अवकाश मिलने पर 12 घंटे से अधिक काम करने के लिए खुद को तैयार बताया। यह वीडियो भी देखें
Billionaires Wealth Increased in Corona Period : कोरोना काल में आम आदमी बेहाल, पर इन अरबपतियों की दौलत दोगुनी Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें Harish Chandra’s PostSee other posts by Harish200 से अधिक लाशों के पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल को सजाया जा रहा है, किसी के आने की जानकारी पर जश्न का माहौल बनाया जा रहा है, कसम है 200 लोगों की मौत की इस बार चुनावी जीत का जश्न मैं भी मनाऊंगा मैं लिखना तो कुछ भी नहीं चाहता था क्योंकि किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता, हमारे लिखने और बोलने से पर मन में लगता है कि तानाशाही के खिलाफ लिखते रहना चाहिए, जानता को फर्क नहीं पड़ता तो क्या हुआ मीडिया में हेडलाइन "मोरबी का मुजरिम कौन", मुझे याद है मुंबई में आतंकी हमला हुआ, गुजरात के रास्ते आतंकवादी आए और 3 दिन में 164 लोगों की जाने ले ली फिर क्या देश के गृह मंत्री का इस्तीफा हुआ, राज्य के गृह मंत्री का इस्तीफा हुआ, कपड़े बदलने पर इतना बबाल हुआ की बाद में मुख्यमंत्री को भी इस्तीफा देना पड़ा पर तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओवरॉय होटल के बाहर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राजनीति की सरकार पर सवाल उठाए, सोचो आज के टाइम ऐसा हो तो नंगी हो चुकी मीडिया के मानसिक दीवालिया एंकर क्या करेंगे, वो आज के कार्यक्रम देख लो या फिर उन नीच एंकरों के सोशल मीडिया एकाउंट देख लो चाहो तो आज के सत्ता में बैठे लोगों के बयान और सोशल मीडिया एकाउंट देख लो या फिर उस समय के सत्ता में बैठे नेताओं बयान देख लो, प्रधानमंत्री ने आज तीन बार कपड़े बदले और किसी मौत पर टोपी उतारते देखा होगा पर आज वो टोपी पहने भाषण दे रहा था, तो मणिशंकर अय्यर का वो बयान याद आ गया पुल सुधरने का काम जिस कंपनी को दिया FIR में उसका नाम नहीं, CMO नगर पालिका का नाम नहीं, बेचारे 3 गरीब चौकीदार (सेक्रेटरी गार्ड ) 3 टिकिट काटने वाले और लोकल ठेकेदार के मैनेजर पिता- पुत्र को गिरफ्तार कर लिया 200 से अधिक लोग मारे कल रात को स्वास्थ्य मंत्री जन्मदिन की पार्टी कर रहा था, प्रधानमंत्री कार्यक्रम पर करा है, देश का गृह मंत्री हर समय की तरह गायब है लेकिन उस सब के बीच यह नीचे जो तस्वीरें हैं वो उसी अस्पताल की हैं जहां 200 लाशें पोस्टमॉर्टम के लिए रखी हैं और दर्जनों लोगों का ईलाज चल रहा है, वहां कल मणिशंकर अय्यर के शब्दों में एक नीच व्यक्ति आ रहा है और इसलिए रंगाई-पुताई का काम चल रहा है एक आदमी कितना नीच हो सकता है वो आपकी कल्पना से भी अधिक नीच है, हलाकि मुझे व्यक्तिगत तौर पर किसी भी मरने वाले के लिए कोई सहानुभूति नहीं है क्योंकि इनमें बच्चों को छोड़ कर लगभग सभी 27 साल से इस नीच विचारधारा के समर्थक रहे हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो साल 2017 में एक कोचिंग क्लास में 20 से अधिक बच्चे जल कर मर गए थे, और उसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव हुए नीच जीता और खुशी मनाई 2019 में 26 सीटों पर लोकसभा चुनाव हुए नीच जीता खुशी मनी, कोरोना में लाखों मरे या मार दिए गए 2020 में बिहार और 2022 चुनाव हुआ नीच जीता खुशी मनी मानते रहो जीत का जश्न मातम के लिए न्योता आपने दिया है, दिल्ली हाईकोर्ट में पीएम केयर फंड पर केस की सुनवाई के दौरान PMO के बड़े अधिकारी प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया , "पीएम केयर फंड भारत सरकार का फंड नहीं है, इसे RTI के तहत नहीं लाया जा सकता" अब सवाल यह है कि : १) अगर यह भारत सरकार का फंड नहीं है तो इसके साथ प्रधानमंत्री शब्द क्यों जुड़ा हुआ है ?? इसका नाम मोदी केयर फंड टाइप का कुछ होना चाहिए था । २) अगर यह भारत सरकार का फंड नहीं है तो सरकारी कर्मचारियों की सैलरी काट कर इस फंड में क्यों डाली गयी ?? ३) अगर यह प्राइवेट फंड हैतो सरकारी संस्थानो ने इसे चंदा क्यों दिया?क़ानूनन सरकारी संस्थान किसी प्राइवेट फ़ंड को चंदा नहीं दे सकते ४)अगर यह प्राइवेट फंड हैतो इसकी वेब्सायट पर gov.in क्यों लिखाहै?क्या कोईभी प्राइवेट फंड वेब्सायट केलिए प्लैट्फ़ॉर्म को इस्तेमाल करता? ५) अगर यह प्राइवेट फंड है तो इसकी मॉनिटरिंग से लेकर अदालत के मामलों तक में PMO के अधिकारी क्यों जा रहे है ?? सवाल हज़ारों हैं लेकिन जवाब नदारद है । अगर नियत साफ़ होती तो पहले से मौजूद प्रधानमंत्री राहत कोष में चंदा माँगा जाता लेकिन वहाँ तो हिसाब देना पड़ता , RTI के जवाब देने पड़ते इसलिए एक अलग फंड बना लिया और अब हिसाब देने से भाग रहे हैं ।. वैसे मैंने आज तक किसी ईमानदार आदमी को हिसाब देने से घबराते हुए नहीं देखा । Note- अगर ये प्राइवेट ट्रस्ट है तो इसकी वेबसाइट पे भारत सरकार की मुहर क्यों है!और ये सरकारी डोमेन gov.in का इस्तेमाल क्यों करती है।पिछले लॉकडाउन में अदालतों ने भी कुछ मामलो में जुर्माना राशि pm care fund में जमा कराया था। गोगल के सीईओ माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ एडोब के सीईओ ट्विटर के सीईओ मास्टरकार्ड के सीईओ पेप्सी के सीईओ आईबीएम के सीईओ अल्बर्टसन के सीईओ नेटप्प के सीईओ नोकिया के सीईओ पालो ऑल्टो के सीईओ अरिस्टा के सीईओ नोवार्टिस के सीईओ डेलॉइट के सीईओ और अब ब्रिटेन के प्रधान मंत्री। यह मानव पूंजी विकास का अंतिम परिणाम है। एक देश के रूप में भारत और लोगों के रूप में भारतीयों ने मानव पूंजी में निवेश को प्राथमिकता दी है और इसके परिणामस्वरूप उसके नागरिक पूरी दुनिया में मानव प्रयास के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका मानव पूंजी विकास केवल बौद्धिक कार्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उनमें अद्भुत कार्य नैतिकता और उच्च स्तर की सत्यनिष्ठा भी है जो उन्हें संभावित नियोक्ताओं के लिए अमूल्य बनाती है। एक व्यक्ति के रूप में, हम इससे क्या सबक सीख सकते हैं जब हम अपने देश को सूक्ष्म और स्थूल स्तरों पर विकसित करने का प्रयास करते हैं? मुखिया घर चलाने को चुना जाता है। सीधा हिसाब है, कि आपकी कमाई आपके खर्च पूरे करने चाहिए। अगर कमाई बढ़ी, तो खर्च बढा सकते हैं। नही तो खर्च में कटौती कीजिए। लिज ट्रस ने एक तरफ खर्चे बढाने का वादा किया, और दूसरी कमाई घटाने का भी, याने टैक्स कट का। छह हफ्ते में अपनी बेवकूफी समझ मे समझ आ गयी, और शरमा कर चलती बनी। अब ब्रिटेन रेडी फ़ॉर ऋषि है। "रेडी फ़ॉर टैक्स इनक्रीज" भी है, "रेडी फ़ॉर कंजूसी" भी है। याने अलोकप्रियता के रिस्क के बावजूद सरकारी खर्चे घटेंगे, औऱ अमीरों पर टैक्स बढ़ेंगे। ये किसी लोकतांत्रिक सरकार के लिए दुःस्वप्न है। पर ऋषि को यह करना पड़ेगा, जब तक खजाना दबावमुक्त न हो जाये। ऋषि की राह कठिन है। ब्रिटेन के हालात शीघ्र सुधरने की गुंजाइश नही। ब्रेग्जिट का झटका तगड़ा था, अब युद्ध और मंदी मुंह बाये खड़ी है। ऋषि क्या करेंगे, देखना दिलचस्प होगा। दिलचस्प मामला भारत मे भी है। हमारे यहां 2018 से यही हालात हैं। बिना युद्ध, बिना मंदी, बिना कोरोनॉ हमने अपना पैर, कुल्हाड़ी पर मारकर काट लिया था। फिर टैक्स कट, बैंक फ्रॉड, सम्पत्तियों की सस्ती बिकवाली, रिजर्व बैंक की जमा पूंजी साफ, व्यापार घाटा, गिरता विदेशी मुद्रा भंडार, घटता निवेश...जहां नजर फिराओ, सब खण्डहर होता दिखता है। लेकिन जनता, और मुखिया.. दोनों की बेफिकरी काबिलेतारीफ है। अयोध्या, केदारनाथ, हिन्दू, मुस्लिम, नेहरू, 62, 84, भक्त, चमचा, पाकिस्तान, में ही उलझे हुए हैं। मूल काम, याने घर चलाना, कमाई और खर्च का नियोजन, आम बातचीत का विषय ही नही है। सामाजिक सेवाओं.. शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क ,बिजली, पानी सब निजी हाथों में ठेलकर जिम्मेदारी झाड़ ली गयी है। आर्थिक चर्चा 100 लाख करोड़ इंफ्रास्ट्रक्चर, 20 लाख करोड़ पैकेज, पांच लाख करोड़ लोन जैसे भारी भरकम शब्दों में खत्म है। रोज बहस का मुद्दा बदल जाता है, नया टास्क मिल जाता है। परम् च्यूटियापे से अगर कोई देश चलाया जा सकता है, तो इसकी केस स्टडी भारत है। असल डिलीवरी की जगह, सिर्फ बातें करके कैसे देश नियंत्रण में रखा जाए, इसकी केस स्टडी भारत है। एक तीव्रगामी देश का भविष्य अकारण कैसे चौपट किया जाये, इसकी केस स्टडी भारत है। आने वाली पीढियां आश्चर्य करेंगी कि एक शिक्षित देश कैसे एक नॉन परफॉर्मर, मूर्ख, आत्ममुग्ध शासक को झेलता रहा। उसे जाने किस सनक में बार बार चुनता रहा, मौके देता रहा। क्योकि इस दौर की आंच कुछ पीढ़ियों तक जाएगी। उधर ब्रिटेन उबर जाएगा। वह मूर्खो का देश नही, फेलियर को माफ नही करता, ढोता नही। बहस और डाइवर्जन में नही उलझता। दुनिया पर राज कर चुकी कौम के लिए अगला प्रधानमंत्री महज एक नया सीईओ है। फेल हुआ, तो बदल दिया जाएगा। क्योकि वहां मुखिया, घर चलाने को चुना जाता है। Explore topicsरविवार की छुट्टी के पीछे उस महान व्यक्ति का क्या मकसद था जानिए क्या है इसका इतिहास?" . साथियों , जिस व्यक्ति की वजह से हमें ये छुट्टी हासिल हुयी है , उस महापुरुष का नाम है + नारायण मेघाजी लोखंडे नारायण मेघाजी लोखंडे ये जोतीराव फुलेजी के सत्यशोधक आन्दोलन के कार्यकर्ता थे और कामगार नेता भी थे । अंग्रेजों के समय में हफ्ते के सातों दिन मजदूरों को काम करना पड़ता था ।
रविवार की छुट्टी कब से आरंभ हुई और किसने की?माना जाता है कि इसके बाद 10 जून, 1890 को मेघाजी लोखंडे का प्रयास सफल हुआ और अंग्रेजी हुकूमत को रविवार के दिन सबके लिए छुट्टी घोषित करनी पड़ी। - रविवार की छुट्टी को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं भी हैं। हिंदू धर्म के हिसाब से हफ्ते की शुरुआत सूर्य के दिन यानी रविवार से मानी जाती है।
भारत में रविवार की छुट्टी कैसे शुरू हुई?रविवार की छुट्टी की शुरुआत सन 1843 ई० में हुई थी। इसका मकसद सरकारी कार्यालयों में काम कर रहे लोगों को मानसिक रूप से विश्राम प्रदान करना है। पंचांग के अनुसार यह शुभ दिन है। प्रायः इस दिन कार्यालयों में अवकाश रहता है अतः सामाजिक एवं धार्मिक कार्यक्रम रविवार को ज्यादा होते है।
भारत में रविवार की छुट्टी कब शुरू हुई थी?नारायण मेघाजी लोखंडे ने एक आंदोलन चलाया और 7 साल के संघर्ष के बाद, ब्रिटिश सरकार ने रविवार को अवकाश घोषित किया और रविवार को 10 जून 1890 को भारत में छुट्टी हो गई।
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