अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- 13 Sep 2019
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चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने एक कार्यशाला में कहा है कि कार्यपालिका, न्यायपालिका और नौकरशाही की आलोचना को देशद्रोह नहीं कहा जा सकता है।
प्रमुख बिंदु:
- प्रत्येक भारतीय को नागरिक के रूप में सरकार की आलोचना करने का अधिकार है और इस प्रकार की आलोचना को राजद्रोह के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। आलोचना को राजद्रोह के रूप में परिभाषित करने की स्थिति में भारत का लोकतंत्र एक पुलिस राज्य के रूप में परिणत हो जाएगा।
- इस प्रकार देशद्रोह (Sedition) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom Of Expression) को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना आवश्यक है, जिससे नागरिकों के मूलाधिकारों को संरक्षित किया जा सके।
देशद्रोह (Sedition): भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (A) में देश की एकता और अखंडता को व्यापक हानि पहुँचाने के प्रयास को देशद्रोह के रूप में परिभाषित किया गया है। देशद्रोह के अंतर्गत निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल हैं-
- सरकार विरोधी गतिविधि और उसका समर्थन।
- देश के संविधान को नीचा दिखाने का प्रयास।
- कोई ऐसा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, लिखित या मौखिक कृत्य जिससे सामाजिक स्तर पर देश की व्यवस्था के प्रति असंतोष उत्पन्न हो।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom Of Expression):
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लिखित और मौखिक रूप से अपना मत प्रकट करने हेतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान किया गया है।
- किंतु अभियक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार निरपेक्ष नहीं है इस पर युक्तियुक्त निर्बंधन हैं।
- भारत की एकता, अखंडता एवं संप्रभुता पर खतरे की स्थिति में, वैदेशिक संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव की स्थिति में, न्यायालय की अवमानना की स्थिति में इस अधिकार को बाधित किया जा सकता है।
- भारत के सभी नागरिकों को विचार करने, भाषण देने और अपने व अन्य व्यक्तियों के विचारों के प्रचार की स्वतंत्रता प्राप्त है।
- प्रेस/पत्रकारिता भी विचारों के प्रचार का एक साधन ही है इसलिये अनुच्छेद 19 में प्रेस की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है।
- संविधान में स्पष्ट रूप से नहीं लिखे गए अधिकार जैसे- विचार की स्वतंत्रता का अधिकार ( The Right Of Freedom Of Opinion), अंतरात्मा की स्वतंत्रता का अधिकार (Freedom Of Conscience) और असंतोष का अधिकार (Right To Dissent) को स्वस्थ्य और परिपक्व लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए। इस प्रकार की व्यवस्थाओं के बाद ही लोकतंत्र में लोगों की सहभागिता बढ़ेगी।
- प्रत्येक समाज के कुछ स्थापित नियम होते हैं। समय के साथ इन नियमों में परिवर्तन आवश्यक है। अगर समाज इन नियमों की जड़ता में बंधा रहता है तो इससे समाज का विकास रुक जाता है।
- समाज में नए विचारों का जन्म तात्कालिक समाज के स्वीकृत मानदंडों से असहमति के आधार पर ही होता है। यदि प्रत्येक व्यक्ति पुराने नियमों और विचारों का ही अनुसरण करेगा तो समाज में नवाचारों का अभाव उत्पन्न हो जाएगा, उदाहरण के लिये नये विचारों और धार्मिक प्रथाओं का विकास तभी हुआ है जब पुरानी प्रथाओं से असहमति व्यक्त की गई।
- समाज की प्रगति का आधार उस समाज में उपस्थिति नवाचार की प्रवृत्ति होती है। समाज में नवाचार और जिज्ञासा में ह्रास इसकी जड़ता को प्रतिबिंबित करता है। जिज्ञासा के अभाव में समाज का विकास रुक जाता है और वह तात्कालिक अन्य समाजों से पीछे रह जाता है।
- समय के साथ न चलने की स्थिति एक दिन भयावह रूप ले लेती है और इस प्रकार का असंतोष विध्वंसक होता है जिससे समाज को व्यापक और दीर्घकालिक हानि उठानी पड़ती है।
- भारत के बड़े क्षेत्रों में फैले सामाजिक असंतोष कहीं न कहीं इन राजनीतिक व्यवस्थाओं में उनके विचारों के प्रतिभाग का अभाव है।
- भारत जैसे सामासिक संस्कृति वाले देश में सभी नागरिकों जैसे आस्तिक, नास्तिक और आध्यात्मिक को अभिव्यक्ति का अधिकार है। इनके विचारों को सुनना लोकतंत्र का परम कर्तव्य है, इनके विचारों में से समाज के लिये अप्रासंगिक विचारों को निकाल देना देश की शासन व्यवस्था का उतरदायित्व है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषयसूची
- 1 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या अर्थ है आपकी राय में इस स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबंध क्या होंगे?
- 2 स्वतंत्रता की विशेषताएं क्या है?
- 3 भारतीय संविधान में निम्नलिखित स्वतंत्रताओं में से कौन सी स्वतंत्रता नहीं दी गई है?
- 4 संविधान के अनुच्छेद 19 में कौन सा मौलिक अधिकार जोड़ा गया है?
- 5 आर्टिकल 25 क्या कहता है?
- 6 अनुच्छेद 19 में कितने अधिकार है?
- 7 सामाजिक के प्रतिबंधों से क्या आशय है?
- 8 प्र 20 सामाजिक प्रतिबंधों से क्या आशय है क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है?
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या अर्थ है आपकी राय में इस स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबंध क्या होंगे?
इसे सुनेंरोकेंअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है कि प्रत्येक नागरिक को भाषण देने तथा अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है। कोई भी नागरिक बोलकर या लिखकर अपने विचार प्रकट कर सकता है। उससे प्रतिबंध कर सकता हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी भी व्यक्ति को किसी के निजी मामलों में दखल देने की अनुमति नहीं देती।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या अर्थ?
इसे सुनेंरोकेंअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) या वाक स्वतंत्रता (freedom of speech) किसी व्यक्ति या समुदाय द्वारा अपने मत और विचार को बिना प्रतिशोध, अभिवेचन या दंड के डर के प्रकट कर पाने की स्थिति होती है। यह भाषण द्वारा या समाचार-पत्रों द्वारा किया जा सकता है।
स्वतंत्रता की विशेषताएं क्या है?
इसे सुनेंरोकेंस्वतंत्रता आधुनिक काल का प्रमुख राजनैतिक दर्शन है। यह उस दशा का बोध कराती है जिसमें कोई राष्ट्र देश या राज्य द्वारा अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने पर किसी दूसरे व्यक्ति/ समाज/ देश का किसी प्रकार का प्रतिबन्ध या मनाही नहीं होती। अर्थात स्वतंत्र देश/ राष्ट्र/ राज्य के सदस्य स्वशासन (सेल्फ-गवर्नमेन्ट) से शासित होते हैं।
इसे सुनेंरोकेंअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है कि प्रत्येक नागरिक को भाषण देने तथा अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है। कोई भी नागरिक बोलकर या लिखकर अपने विचार प्रकट कर सकता है। उसे लिखने, कार्य करने, चित्रकारी करने, बोलने की आजादी होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रतिबंधित नहीं होनी चाहिए।
निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद 19 2 के तहत भाषण की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने का वैध आधार नहीं है?
इसे सुनेंरोकेंसंविधान के अनुच्छेद 19 (2) के अंतर्गत सम्मेलन के इस अधिकार को निर्बंधित भी किया जा सकता है। इस अधिकार पर प्रतिबंध निम्नांकित आधारों पर किया जा सकता है। किसी भी नागरिक को ऐसी सभा या सम्मेलन आयोजित करने की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती जिससे लोग शांति भंग हो अथवा देश की प्रभुता एवं अखंडता या लोक व्यवस्था संकट में पड़ जाए।
भारतीय संविधान में निम्नलिखित स्वतंत्रताओं में से कौन सी स्वतंत्रता नहीं दी गई है?
इसे सुनेंरोकेंभारत के संविधान में उल्लिखित उपरोक्त सभी प्रावधानों का उद्देश्य राज्य अथवा किसी अन्य समुदाय के दखल के बिना पूरी धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करना है। इसीलिये भारत एक पंथ निरपेक्ष राज्य है। (ii) भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता ।
इसे सुनेंरोकेंअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) या वाक स्वतंत्रता (freedom of speech) किसी व्यक्ति या समुदाय द्वारा अपने मत और विचार को बिना प्रतिशोध, अभिवेचन या दंड के डर के प्रकट कर पाने की स्थिति होती है। इस स्वतंत्रता को सरकारें, जनसंचार कम्पनियाँ, और अन्य संस्थाएँ बाधित कर सकती हैं।
आपकी राय में इस स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबंध क्या होगा उदाहरण सहित बताइए?
इसे सुनेंरोकेंअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ समुचित प्रतिबंध लगाए जाते हैं , जैसे – न्यायालय का अपमान करने के कारण (contempt of court) अपमान-जनक शब्द, लेख दूषण , मानहानि, सदाचार एवं नैतिकता के आधार तथा राज्य की सुरक्षा के आधार पर। आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।।
संविधान के अनुच्छेद 19 में कौन सा मौलिक अधिकार जोड़ा गया है?
इसे सुनेंरोकेंभारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लिखित और मौखिक रूप से अपना मत प्रकट करने हेतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान किया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 19 में कौन सा मौलिक अधिकार जोड़ा गया?
इसे सुनेंरोकेंस्वतन्त्रता का अधिकर- अनुच्छेद 19 से 22 तक – सुचना प्राप्त करने का अधिकार – 12 अक्टूबर 2005 से जोड़ा। अनुच्छेद 19(1)(ख) – शान्ति पूर्वक बिना अस्त्र-शस्त्र के सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता। अपवाद – सिखों को कटार धारण करने का अधिकार। अनुच्छेद 19(1)(ग) – संघ या संगम बनाने की स्वतंन्त्रता।
आर्टिकल 25 क्या कहता है?
इसे सुनेंरोकेंअनुच्छेद 25 कहता है कि सभी व्यक्ति समान रूप से अंत:करण की स्वतंत्रता और स्वतंत्र रूप से धर्म के आचरण, अभ्यास और प्रचार के अधिकार के हकदार हैं। यह न केवल धार्मिक विश्वास (सिद्धांत) बल्कि धार्मिक प्रथाओं (अनुष्ठानों) को भी कवर करता है। ये अधिकार सभी व्यक्तियों-नागरिकों के साथ-साथ गैर-नागरिकों के लिए भी उपलब्ध हैं।
अनुच्छेद 19 1 A क्या है?
इसे सुनेंरोकेंअनुच्छेद 19 (1) (a): बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रत्येक नागरिक को भाषण द्वारा लेखन, मुद्रण, चित्र या किसी अन्य तरीके से स्वतंत्र रूप से किसी के विचारों और विश्वासों को व्यक्त करने का अधिकार प्रदान करती है।
अनुच्छेद 19 में कितने अधिकार है?
इसे सुनेंरोकेंArticle 19 of Indian Constitution आपको बता दें कि मूल संविधान में 7 तरह की स्वतंत्रताओं का उल्लेख था , अब सिर्फ 6 हैं ! ( अनुच्छेद 19 (F) में दिया गया संपत्ति का अधिकार 44 वां संबिधान 1978 के द्वारा हटा दिया गया ! )
हमें प्रतिबंधों की आदत को विकसित क्यों नहीं होने देना चाहिए?
इसे सुनेंरोकेंअत:आपसी विचार, विश्वास और मत के अंतरों को स्वीकार करने के लिए इन प्रतिबंधों की आवश्यकता पड़ती हैं। लोगो की स्वतंत्रता के लिए प्रतिरोधों का होना आवश्यक हैं क्योंकि बिना उचित प्रतिरोध या बंधन के समाज में आवश्यक व्यवस्था नहीं होगी जिससे लोगों की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।
सामाजिक के प्रतिबंधों से क्या आशय है?
इसे सुनेंरोकेंसामाजिक प्रतिबंधों से आशय सामाजिक बंधन एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सकारात्मक नियंत्रण से है। यह नियंत्रण कानून, रिति-रिवाज़, धर्म तथा न्यायिक निर्णयों के आधार पर लागू किए जाते हैं, ताकि समाज में सुख-शांति मौजूद रहें।
स्वतन्त्रता कि सकारात्मक व नकारात्मक अवधारणा मे क्या अन्तर है?
इसे सुनेंरोकेंस्वतंत्रता की नकारात्मक अवधारणा का अर्थ हैं बंधनों का न होना। अर्थात् व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कार्य करने की छूट। 1. स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा का अर्थ बंधनों का आभाव नहीं हैं।
प्र 20 सामाजिक प्रतिबंधों से क्या आशय है क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है?
इसे सुनेंरोकेंसामाजिक प्रतिबंधों से आशय सामाजिक बंधन एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सकारात्मक नियंत्रण से है। यह नियंत्रण कानून, रिति-रिवाज़, धर्म तथा न्यायिक निर्णयों के आधार पर लागू किए जाते हैं, ताकि समाज में सुख-शांति मौजूद रहें। समाज में हिंसा पर नियंत्रण और विवाद के निबटारे के लिए इन प्रतिबंधों की आवश्यकता पड़ती हैं।