कौन थे बजरंगबली के गुरु ?
ऐसा कहा जाता है कि बच्चे के जन्म से पहले गर्भ में ही बच्चा अपनी माता से संस्कार पाने लग जाता है। उसके बचपन का आधा समय माता की छाया में ही गुज़रता है।
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ऐसा कहा जाता है कि बच्चे के जन्म से पहले गर्भ में ही बच्चा अपनी माता से संस्कार पाने लग जाता है। उसके बचपन का आधा समय माता की छाया में ही गुज़रता है। इसलिए माना जाता है ज्यादातार बच्चे में संस्कार उसकी मां से ही आते हैं। परंतु आज हम आपको एक ऐसे बच्चे के बारे में बताने जा रहे
हैं, जो खुद लोगों के गुरू हैं। हम बात कर रहे हैं श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी की। हम सब इनसे अच्छे से वाकिफ हैं कि इनका जन्म कैसे हुआ, कैसे इनका बचपन बीता और कैसे ये श्रीराम के परमभक्त के नाम से प्रसिद्ध हुए। मगर आज हम आपको इनके बारे में कुछ ऐसा बताने वाले हैं, जिसके बारे कोई जानता तो क्या किसी न इस बारे में किसी दूसरे से सुना तक नहीं होगा।
जी हां, हनुमान से जुड़ी एक ऐसी बात है जो किसी को पता नहीं होगी कि भक्तों के कष्ट काटने वाले गुरुओं के गुरु कहे जाने वाले बजरंगबली का भी कोई गुरू था। शायद आप सबको नहीं पता होगा लेकिन बजरंगबली के जीवन में उनका एक गुरू था, जिनसे उन्होंने जीवन के कई सूत्र सीखें।
एक बार माता ने हनुमान जी को राम अवतार की कथा सुनाना शुरु की। बालक हनुमान बड़े ध्यान से कथा सुनने लगे। इस तरह अपने बालक को देखकर माता को उनकी शिक्षा की चिंता सताने लग गई थी। देवी अंजनी और केसरी ने विचार किया कि क्यों न बजरंगी को किसी अच्छे गुरु के पास भेजा जाए। उनके विचार से बालक को सूर्य से अच्छे गुरु नहीं मिल सकते।
कुछ समय बाद हर्ष उल्लास के साथ माता-पिता ने अपने प्रिय श्रीहनुमानजी का उपनयन-संस्कार कराया और उन्हें विद्यार्जन के लिए गुरु-चरणों की शरण में जाने की सलाह दी। माता अंजना ने प्रेम स्वर में से हनुमान को भगवान सूर्यदेव से शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा। हनुमान जी माता-पिता के श्रीचरणों में प्रणाम करके सूर्यदेव के पास चल पड़े।
सुर्यदेव ने उनके आने का कारण पूछा तो हनुमान जी बोले मेरा यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न हो जाने पर माता ने मुझे आपके चरणों में विद्यार्जन के लिए भेजा है। आप कृपा पूर्वक मुझे ज्ञानदान कीजिए। सूर्यदेव ने कहा कि तुम तो मेरी स्थिति देखते ही हो। मैं तो किसी न किसी कारण से अपने रथ पर सवार दौड़ता रहता हूं। सूर्यदेव की बात सुनकर भगवान हनुमान ने कहा कि वेगपूर्वक चलता आपका रथ कहीं से भी मेरे अध्ययन को बाध्त नहीं कर सकेगा। मैं आपके सम्मुख रथ के वेग के साथ ही आगे बढ़ता रहेगा।
श्रीहनुमानजी सूर्यदेव की ओर मुख करके उनके आगे-आगे स्वभाविक रूप में चल रहे थे। सूर्यदेव को ये देख हैरानी नहीं हुई क्योंकि वे जानते थे कि हनुमानजी खुद बुद्धिमान हैं लेकिन प्रथा के अनुसार गुरु द्वारा शिक्षा गृहण करना जरुरी है इसलिए सूर्यदेव ने कुछ ही दिनों में उन्हें कई विद्याएं सिखा दी जिससे वे विद्वान कहलाएं।
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