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महाभारत:युद्ध खत्म होने के बाद अर्जुन और श्रीकृष्ण जैसे ही रथ से उतरे, रथ जल गया था
- अर्जुन का रथ श्रीकृष्ण चला रहे थे और स्वयं शेषनाग ने रथ के पहियों को पकड़ रखा था, ताकि दिव्यास्त्रों के प्रहार से भी रथ पीछे न खिसके
महाभारत में कौरव सेना में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण जैसे महारथी थे। इसीलिए दुर्योधन को लग रहा था कि वह आसानी से पांडवों को युद्ध में हरा देगा, लेकिन पांडव पक्ष में श्रीकृष्ण स्वयं थे। वे अर्जुन के सारथी बने और युद्ध शुरू होने से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हनुमानजी से प्रार्थना करो और अपने रथ के ऊपर ध्वज के साथ विराजित करो। श्रीकृष्ण की बात मानकर अर्जुन ने ऐसा ही किया। जानिए अर्जुन के रथ से जुड़ी एक प्रचलित कथा...
कथा के अनुसार अर्जुन का रथ श्रीकृष्ण चला रहे थे और स्वयं शेषनाग ने रथ के पहियों को पकड़ रखा था, ताकि दिव्यास्त्रों के प्रहार से भी रथ पीछे न खिसके। अर्जुन के रथ की रक्षा श्रीकृष्ण, हनुमानजी और शेषनाग कर रहे थे। जब युद्ध समाप्त हो गया तो अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि पहले आप रथ से उतरिए मैं आपके बाद उतरूंगा। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि नहीं अर्जुन पहले तुम उतरो।
भगवान की बात मानकर अर्जुन रथ से उतर गए, इसके बाद श्रीकृष्ण भी रथ उतर गए। शेषनाग पाताल लोक चले और हनुमानजी रथ के ऊपर से अंतर्ध्यान हो गए। जैसे ही ये सब उतर गए तो अर्जुन के रथ में आग लग गई। थोड़ी ही देर में रथ पूरी तरह जल गया। ये देखकर अर्जुन हैरान गए। उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा कि भगवान ये कैसे हुआ?
श्रीकृष्ण ने कहा कि ये रथ तो भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों के प्रहारों से पहले ही खत्म हो चुका था। इस रथ पर हनुमानजी विराजित थे, मैं स्वयं इसका सारथी था, इस वजह ये रथ सिर्फ मेरे संकल्प की वजह से चल रहा था। अब इस रथ का काम पूरा हो चुका है। इसीलिए मैंने ये रथ छोड़ दिया और ये भस्म हो गया है।
महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने
हनुमानजी का आवाहन कर उनको रथ के ऊपर पताका के साथ विराजित किया। अर्जुन का रथ श्रीकृष्ण चला रहे थे और शेषनाग ने पृथ्वी के नीचे से अर्जुन के रथ के
पहियों को पकड़ा था, जिससे रथ पीछे न जाए। इतना सब कुछ अर्जुन के रथ की रक्षा के लिए भगवान ने व्यवस्था की थी। महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद अर्जुन ने भगवान से कहा पहले आप उतरिए मैं बाद में उतरता हूं, इस पर भगवान बोले नहीं अर्जुन पहले तुम उतरो। भगवान के आदेशनुसार अर्जुन रथ से उतर गए, थोड़ी देर बाद श्रीकृष्ण भी रथ से उतर गए, तभी शेषनाग पाताल लोक चले गए। हनुमानजी भी तुरंत अंतर्ध्यान हो गए। रथ से उतारते ही श्रीकृष्ण अर्जुन को कुछ दूर ले गए। इतने में ही अर्जुन का रथ तेज
अग्नि की लपटों से धूं-धूं कर जलने लगा। अर्जुन बड़े हैरान हुए और श्रीकृष्ण से पूछा, भगवान ये क्या हुआ! कृष्ण बोले- ‘हे अर्जुन- ये रथ तो भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और
कर्ण के दिव्यास्त्रों के वार से बहुत पहले ही जल गया था, क्योंकि पताका लिए हनुमानजी और मैं स्वयं रथ पर बैठा था, इसलिए यह रथ मेरे संकल्प से चल रहा था। अब जब कि तुम्हारा काम पूरा हो चुका है, तब मैंने उसे छोड़ दिया, इसलिए अब ये रथ भस्म हो गया।’ नोट: व्यक्ति को लगता है कि उसके प्रभाव, बल, बुद्धि से सब हो रहा है, लेकिन जीवन में
ऐसा बहुत कुछ होता है जो प्रभु कृपा या गुरु कृपा से हो रहा है, पर हमारा अहंकार कृपा को मानने को तैयार नहीं होता, जिस कारण अहंकार बढ़ता जाता है।
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