आपके लाडले बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं कथन से उमा क्या कहना चाहती थी? - aapake laadale bete ke reedh kee haddee bhee hai ya nahin kathan se uma kya kahana chaahatee thee?

अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं, उचित क्यों नहीं है?


अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं, सरासर गलत है। एक तो वे अपनी पढ़ी-लिखी लड़की को कम पढ़ा- लिखा साबित कर रहे हैं और उसे सुन्दरता को और बढाने के लिए नकली प्रसाधन सामग्री का उपयोग करने के लिए कहते हैं जो अनुचित है। साथ ही वे यह भी चाहते हैं कि उमा वैसा ही आचरण करे जैसा लड़के वाले चाहते हैं। परन्तु वे यह क्यों भूल रहे हैं कि जिस प्रकार लड़के की अपेक्षाएँ होती ठीक उसी प्रकार लड़की की पसंद-नापसंद का भी ख्याल रखना चाहिए। क्योंकि आज समाज में लड़का तथा लड़की को समान दर्जा प्राप्त है।

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'...आपके लाड़ले बेटे के की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ....', उमा इस कथन के माध्यम से शंकर की किन कमियों की ओर संकेत करना चाहती  है?


उमा गोपाल प्रसाद जी के विचारों से पहले से ही खिन्न थी। परन्तु उनके द्वारा अनगिनत सवालों ने उसे क्रोधित कर दिया था। आखिर उसे अपनी चुप्पी को तोड़कर गोपाल प्रसाद को उनके पुत्र के विषय में अवगत करना पड़ा।
(1) शंकर एक चरित्रहीन व्यक्ति था जो हमेशा लड़कियों का पीछा करते हुए होस्टल तक पहुँच जाता था। इस कारण उसे शर्मिंदा भी होना पड़ा था।
(2) दूसरी तरफ़ उसकी पीठ की तरफ़ इशारा कर वह गोपाल जी को उनके लड़के के स्वास्थ्य की ओर संकेत करती है जिसके कारण वह बीमार रहता है और सीधी तरह बैठ भी नहीं पाता।
(3) शंकर अपने पिता पर पूरी तरह आश्रित है। उसकी रीढ़ की हड्डी नहीं है अर्थात् उसकी अपनी कोई मर्ज़ी नहीं है।

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रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है?


आधुनिक समाज में सभ्य नागरिक होने के बावजूद उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की खातिर रूढ़िवादी लोगों के दवाब में झुकाना पड़ रहा था। उपर्युक्त बात उनकी इसी विवशता को उजागर करता है।

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गोपाल प्रसाद विवाह को 'बिजनेस' मानते हैं और रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा छिपाते हैं क्या आप मानते हैं कि दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं? अपने विचार लिखिए।


मेरे विचार से दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं - गोपाल प्रसाद विवाह जैसे पवित्र बंधन में भी बिजनेस खोज रहे हैं, वे इस तरह के आचरण से इस सम्बन्ध की मधुरता, तथा सम्बन्धों की गरिमा को भी कम कर रहे हैं।
रामस्वरूप जहाँ आधुनिक सोच वाले व्यक्ति होने के बावजूद कायरता का परिचय दे रहे हैं ।वे चाहते तो अपनी बेटी के साथ मजबूती से खड़े होते और एक स्वाभिमानी वर की तलाश करते न की मज़बूरी में आकर परिस्तिथि से समझौता करते ।

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रामस्वरूप और रामगोपाल प्रसाद बात-बात पर 'एक हमारा जमाना था ....' कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं । इस प्रकार की तुलना कहाँ तक तर्कसंगत है?


इस तरह की तुलना करना बिल्कुल तर्कसंगत नहीं होता यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है कि वह अपने बीते हुए समय को याद करता है, तथा उसे ही सही ठहराता है। समय के साथ समाज में, जलवायु में, खान-पान में सब में परिवर्तन होता रहता है। हर समय परिस्थितियां एक सी नही होतीं हैं। हर ज़माने की अपनी स्थितियाँ होती हैं, जमाना बदलता है तो कुछ कमियों के साथ सुधार भी आते हैं।

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आपके लाडले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ऐसा कौन कहता है?

शंकर अपने लिए अत्यंत सुंदर लड़की की खोज में था जबकि उसमें खुद अनेक बुराइयां और बहुत सारी कमियां थी। उसकी रीढ़ की हड्डी न होना और ठीक से खड़ा न हो पाना उसकी सबसे बड़ी कमी थी। उमा ने यहां उसकी इसी कमी की ओर संकेत किया है। आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।।

रीढ़ की हड्डी एकांकी का उद्देश्य क्या है?

Answer: इस एकांकी का उद्देश्य समाज में औरतों की दशा को सुधारना व उनको उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कराना है। यह एकांकी उन लोगों की तरफ़ अँगुली उठाती है जो समाज में स्त्रियों को जानवरों या सामान से ज़्यादा कुछ नहीं समझते।

रीढ़ की हड्डी एकांकी में किस समस्या को उठाया गया है क्या आज भी हमें इस समस्या का भयंकर रूप दिखाई देता है?

1) औरतों की दशा को सुधारना व उनको उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कराना है। 2) लड़कियों के विवाह में आने वाली समस्या को समाज के सामने लाना। 3) स्त्री -शिक्षा के प्रति दोहरी मानसिकता रखने वालों को बेनकाब करना। 4) स्त्री को भी अपने विचार व्यक्त करने की आज़ादी देना।

रीढ़ की हड्डी जैसे एकांकी और नाटकों से समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा तर्क सहित उत्तर दीजिए?

उत्तर: इस एकांकी का उद्देश्य है समाज की विडंबनाओं को दिखाना। एक ओर समाज आगे बढ़ने की इच्छा रखता है तो दूसरी ओर उसकी बेड़ियाँ उसे आगे नहीं बढ़ने दे रही हैं। लेकिन हर काल में हर समाज में कुछ ऐसे लोग आगे आते हैं जो पुरानी बेड़ियों को तोड़ने की कोशिश करते हैं।