सिंध पर अरब आक्रमण की व्याख्या करें क्या यह परिणाम के बिना जीत की - sindh par arab aakraman kee vyaakhya karen kya yah parinaam ke bina jeet kee

 सिंध का क्षेत्र आज के पाकिस्तान. के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में स्थित है।  भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट  के इस क्षेत्र का लंबा इतिहास रहा है। प्राचीन काल से ही यह वाणिज्य. और व्यापार का केंद्र रहा है। अरब व्यापारियों के अपने भारतीय और दक्षिण-पूर्वी एशियाई प्रतिपक्षियों के साथ सक्रिय व्यापारिक संबंध थे।

उन्हें भारत के पश्चिमी तट के सागर में मार्ग की जानकारी थी। वास्तव में, ये व्यापारी फारस की खाड़ी में सोतः सिराफ और होरमूज से सिंध के मुख तक और फिर सपेरा और कैम्बे से होते हुए आगे कालीकट तक मालाबार तट के अन्य बंदरगाहों पर आते थे। अपने साथ भारतीय संपदा की खबरें और विलासिता की वस्तुएँ जैसे सोना, हीरा, रत्नजड़ित मूर्तियाँ आदि अरब ले जाते थे। क्योंकि भारत लंबे समय से अपनी संपदा के लिए प्रसिद्ध था, अत: अरब उस पर विजय पाना चाहते थे। अपने 'इस्लामीकरण' के बाद, उनके अंदर धर्म प्रचार की भावना थी जिसके कारण वे मध्य-पूर्व यूरोप, अफ्रीका और एशिया के अनेक क्षेत्रों में फैल गए।

   अरबों की भारतीय महाद्वीप में सिंध के तटीय शहरों में घुसपैठ 636 सी.ई. से ही खलीफा उमर के शासनकाल में आरंभ हो गई थी, जो पैगंबर के दूसरे उत्तराधिकारी थे। लूट के अभियान, जैसा कि एक 837 सी.ई. में थाणे (बॉम्बे के निकट) में हुआ था, लंबे समय तक जारी रहे। लेकिन ये अभियान सिर्फ लूटपाट के लिए आक्रमण थे, विजय नहीं। क्रमबद्ध अरब विजय 712 सी.ई. में उम्मयद-खलीफा अल-वालिद के शासन काल में ही हुई थी। तभी सिंध को मुस्लिम साम्राज्य में सम्मिलित किया गया था।

   जैसा कि हमने बताया है, भारतीय दौलत को पाने की कामना के साथ ही सिंध की विजय का कारण अरबों की इस्लाम के प्रसार की इच्छा भी थी। लेकिन तात्कालिक कारण समुद्री डाकू थे जिन्होंने दाबोल ,/“देबुल अथवा कराची के तट के निकट कुछ अरब जहाजों को लूट लिया था। ऐतिहासिक प्रमाण दर्शाते हैं कि इन जहाजों में लंका के राजा द्वारा बगदाद के खलीफा और इराक के नियंत्रक/ शासक अल-हज्जाज के लिए भी उपहार ले जाए जा रहे थे। लेकिन जहाज को समुद्री डाकुओं द्वारा सिंधु नदी के मुहाने पर लूट लिया गया और अरबों को दाबोल के बंदरगाह पर नज़रबंद कर लिया गया। सिंध के राजा दहर से इस अपमान की क्षतिपूर्ति के लिए प्रत्यपण और अपराधियों को दंडित करने की माँग की गई। लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया। उन्होंने अपने इंकार का कारण समुद्री डाकुओं को नियंत्रित करने में अपनी अक्षमता बताया। लेकिन, उनका भरोसा नहीं किया गया बल्कि बगदाद ने उन पर समुद्री डाकुओं का संरक्षण करने का आरोप लगाया | अतः हज्जाज ने खलीफा वालिद से सिंध पर हमला करने की अनुमति ले ली। इसके बाद, राजा के विरुद्ध एक के बाद एक तीन सैन्य हमले किए गए। देबाल में मोहम्मद बिन कासिम द्वारा तीसरे हमले मेँ दहर की हार हुई और वह मारा गया। इसके बाद, निरून, रेवाड़, ब्राहमनाबाद, अलोर और मुलतान के सभी पड़ोसी शहरों पर कब्जा कर लिया गया। इस प्रकार, सिंध राज्य पर अरबों द्वारा 712 सी.ई. में अंततः विजय प्राप्त कर ली गई।

सिंध पर विजय : बगौर परिणामों की जीत?

सिंच पर अरब विजय को स्टेनली लेन पूल, एल्फिंसटन इत्यादि जैसे विद्वानों ने “बगैर परिणामों की जीत' कहा है क्योंकि इसमें मुस्लिम, अरबों और भारतीय शासकों में से किसी की भी कोई बड़ी विजय नहीं हुई थी। उनका मत है कि अरब की जीत का भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास पर कोई प्रभाव अथवा परिणाम नहीं हुआ था। वह शेष भारत की राजनीतिक अथवा सैन्य स्थितियों को प्रभावित नहीं कर सकी थी। अरब शासन सिर्फ सिंच क्षेत्र में सीमित था और भारतीय शासक अरबों को अपने सीमांत क्षेत्रों से बाहर निकाले अथवा उनसे डरे बगैर अपने राज्यों पर शासन करते थे। अरबों का प्रभाव उपमहाद्वीप के एक छोटे भाग तक सीमित था। वे तुर्कों के विपरीत भारतीय उपमहाद्वीप में अपने पैर नहीं जमा पाए थे, जिन्होंने कुछ शताब्दियों बाद ही अपनी पूर्ण सल्‍्तनत (अर्थात्‌ 12वीं शताब्दी से शुरू दिल्‍ली सल्तनत) स्थापित कर ली थी।

   इस मत की आलोचना करने वाले विद्वानों ने इसके खंडन के लिए अनेक तर्क दिए हैं। उनका मानना है कि भले ही विजय का भारत के राजनीतिक भूगोल पर खास प्रभाव नहीं पड़ा था, लेकिन इसका दोनों पक्षों पर निश्चित रूप से राजनीतिक असर हुआ था। जैसा कि स्रोतों से पता चलता है, मुहम्मद बिन कासिम उतना ही कुशल प्रशासक था जितना कुशल योद्धा था। अपनी विजयों के बाद उसने क्षेत्र की कानून व्यवस्था को बनाए रखा था और वह मुस्लिम शासन के तहत्‌ अच्छा प्रशासन देने में यकीन रखता था। गैर-मुस्लिमों के साथ उसके द्वारा की गई व्यवस्थाओं ने उपमहाद्वीप में बाद में मुस्लिम राज्य नीति प्रदान करने का आधार बनाया। अपने चाचा हज्जाज के कुशल मार्गदर्शन में उसने पराजित जनता को सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता दी थी। जब तक इस्लामी कानून को बनाया जा रहा था, तब तक मूर्ति पूजकों के लिए सख्त प्रावधान दिए गए थे। इन प्रावधानों को हिंदुओं द्वारा क्यों नहीं अपनाया जाता था इसका कारण मुख्य रूप से कासिम की उदारवादी नीतियाँ थीं। उसने मूल देसी रीति-रिवाजों और परंपराओं को अक्षुण्ण रखने के लिए राजनीतिक कुशाग्रता का प्रदर्शन किया। न ही उसने मैर-मुस्लिमों को बलात मुसलमान बनाया और न ही सामाजिक व्यवस्थाओं जैसे जाति प्रथा को खत्म किया। इस प्रकार जाति प्रथा अप्रभावित रही और पहले के समान ही अपनायी जाती रही।

   इस प्रकार की प्रथाओं के पाए जाने से अरब और मुस्लिम जगत को भारतीय सामाजिक और राजनीतिक तंत्रों की कमज़ोरियों का पता चला। इसलिए, सामाजिक ताने.बाने में इन दरारों का उपयोग उनके द्वारा अपने लाभ के लिए किया गया। जैसे कि पहले चर्चा की गई है, संभवत: ब्राहमनाबाद के ब्राह्मणों को उनके द्वारा भरोसेमंद व्यक्ति माना गया जिससे अरबी राज्य-व्यवस्था और प्रशासन को चलाने में उनका पूर्ण सहयोग मिलता रहे। निःसंदेह, अरब हमले ने भारत की राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित नहीं किया था, लेकिन इसने निश्चित रूप से क्षेत्र की सामाजिक कमज़ोरियों को उजागर किया। इनका उपयोग हमलावरों द्वारा कुछ शताब्दियों बाद किया गया।

   साथ ही, भारतीय और अरब संस्कृतियों के बीच सांस्कृतिक मेल का प्रभाव विभिन्‍न अन्य क्षेत्रों जैसे साहित्य, चिकित्सा, गणित, खगोल विज्ञान इत्यादि पर भी दिखाई दिया | बौद्धिक स्तर पर ऐसे संपर्कों से दोनों संस्कृतियों की परस्पर वृद्धि और विकास हुआ। पहला अभिलेखित हिंद, अरब बौद्धिक संपर्क 771 सी.ई. में हुआ था जब एक हिंदू खगोल विज्ञानी और गणितज्ञ ब्रहमगुप्त की अहम भ्िद्धांत नामक संस्कृत पुस्तक के साथ बगदाद पहुंचे । इस पुस्तक का एक अरब गणितज्ञ के द्वारा अरबी में अनुवाद किया गया था जिसे सिंध (हिंद नाम दिया गया | इसका अरब खगोल विज्ञान के विकास पर अत्यधिक प्रभाव हुआ यद्यपि गणित

की तीन अन्य पुस्तकों का भी अरबी में अनुवाद किया गया था। गणित में भारतीय संस्कृति का अरब विद्वता पर सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान अरबी अंकों का था।

   इसी प्रकार, अरबों द्वारा भारतीय चिकित्सा शास्त्र पर और भी अधिक ध्यान दिया गया था। कम से कम 15 संस्कृत पुस्तकों का अनुवाद किया गया जिसमें चरक और सुश्रुत की भी थीं। भारतीय चिकित्सकों को बगदाद में अत्यधिक आदर और सम्मान दिया जाता था और इसलिए काफी संख्या में भारतीय चिकित्सक वहां पाए जाते थे। मनका एक ऐसे ही चिकित्सक थे जिन्होंने बीमार खलीफा हारून-अल-राशिद का उपचार करके यश और धन कमाया था। इसके साथ ही, ज्योतिष और हस्त रेखाशास्त्र ने भी अरबों का ध्यान आकर्षित किया और इन क्षेत्रों की अनेक पुस्तकों का अरबी में अनुवाद किया गया। इन्हें भी अरब इतिहास लेखनों में संरक्षित रखा गया है। अन्य अनुवाद शासन कला, युद्ध कौशल, तर्क शास्त्र, नीति शास्त्र, जादू इत्यादि के क्षेत्रों से थे। इसी प्रकार, पंकतत्र की प्रसिद्ध पुस्तक का अरबी में अनुवाद हुआ और अरबी में उसे कलीला और दिमना की कहानी के रूप में जाना गया।

   भारतीय संगीत का अरबी संगीत पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा था। यद्यपि इसकी किसी पुस्तक का अनुवाद नहीं पाया गया है। जाहिज़ नामक अरबी लेखक ने अपनी पुस्तक में बगदाद में भारतीय संगीत को मिले सम्मान के विषय में लिखा है। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप की जनता के संगीत को आनंददायक कहा है। भारतीय संगीत पर एक अन्य ऐसा संदर्भ एक अन्य अरब लेखक का है जिसने लय॒धुनों और तरंगों पर भारतीय पुस्तक की बात की है। कुछ विद्वानों द्वारा यह सुझाया गया है कि अरबी संगीत के अनेक तकनीकी शब्द, फारस और भारत से लिए गए हैं। इसी प्रकार, भारतीय संगीत में अनेक फारसी-अरबी लय /तान हैं जैसे येबत और /हिज्ज।

   अरबी पुस्तकों में भारतीय और अरबी संस्कृतियों के बीच के रिश्तों पर इतनी जानकारी उपलब्ध होने के कारण यह कहना अतार्किक होगा कि सिंध पर अरब की विजय बगैर परिणामों की जीत थी। दूसरे शब्दों में, सिर्फ राजनीतिक परिणामों को ही महत्त्व देना और सामाजिक-सांस्कृतिक अथवा अन्य प्रभावों या परिणामों की अनदेखी करना गलत होगा।

सिंध पर अरब आक्रमण की व्याख्या करें क्या यह परिणाम के बिना जीत थी?

इसके बाद, राजा के विरुद्ध एक के बाद एक तीन सैन्य हमले किए गए। देबाल में मोहम्मद बिन कासिम द्वारा तीसरे हमले मेँ दहर की हार हुई और वह मारा गया। इसके बाद, निरून, रेवाड़, ब्राहमनाबाद, अलोर और मुलतान के सभी पड़ोसी शहरों पर कब्जा कर लिया गया। इस प्रकार, सिंध राज्य पर अरबों द्वारा 712 सी.

अरब आक्रमण के कारण और परिणाम क्या थे?

भारत पर अरबों के आक्रमण के कारण भारत पर अरबों के आक्रमण का एक कारण यह भी कहा जाता है कि मे अरब भारतीयों का धर्म परिवर्तन करना चाहते थे। भारतीयों को लूट कर, लोभ और आतंक का भय दिखाकर धर्म परिवर्तन को इस्लाम की सेवा बताया गया। अभी तक अरब पराजित हुए थे तथा वे भारत पर विजय प्राप्त करके अपनी निराशा और खीज को मिटाना चाहते थे

सिंध पर अरबों की विजय का क्या प्रभाव पड़ा विवेचना कीजिए?

सिंध पर अरबों की विजय का कारण 637 ई. की फारस-विजय ने उन्हें साम्राज्य-विस्तार के लिए प्रेरित किया। मुहम्मद-बिन-कासिम एक कुशल और शक्तिशाली सेनापति था। इस्लाम की मान्यताओं का भी अरब आक्रमणकारियों पर प्रभाव था, जिसके अनुसार 'जिहाद' को उनका धर्म बना दिया गया था।

सिंध पर पहला अरब आक्रमण कब हुआ?

Notes: अरबों ने सिंध पर पहला आक्रमण 712 ई में किया। यह आक्रमण मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में हुआसिंध के राजा दाहिर इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।