खेल और खेल में प्राथमिक चिकित्सा की क्या भूमिका है - khel aur khel mein praathamik chikitsa kee kya bhoomika hai

खेल चिकित्सा क्या है?


खेल चिकित्सा विज्ञान की एक शाखा है जिसका संबंध खिलाड़ी के स्वास्थ्य को बनाए रखने, शारीरिक प्रदर्शन को बढ़ाने तथा रोगों की रोकथाम से होता है। खेल चिकित्सा सिद्धान्तों का अध्ययन और अभ्यास है, तथा खेल के विज्ञान से संबंधित है, विशेष रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में:

  1. खेल चोट और निदान उपचार
  2. खेल चोट की रोकथाम
  3. खेल प्रशिक्षण सहित एथेलेटिक प्रदर्शन
  4. व्यायाम और कार्य प्रणाली
  5. खेल पोषण
  6. खेल मनोविज्ञान


खेल चोटों से किस प्रकार बचा जा सकता है?


खिलाड़ियों का जीवन बहुमूल्य होता है। खिलाड़ी को कई बार इस प्रकार की चोट लग जाती है कि वह दोबारा कभी नहीं खेल सकता। उसका खेल-जीवन समाप्त हो जाता है। हालांकि बहुत-सी खेल-चोटों का उपचार हो सकता है, लेकिन फिर भी यह एक कटु सत्य है कि ''इलाज से परहेज बेहतर है'' (Prevention is better than Cure) इसीलिए एथलीट्स या खिलाड़ी, खेल-चोटों के खतरों को कम या समाप्त करना चाहते हैं, विशेषकर जब वे प्रशिक्षण या खेल प्रतियोगिता में भाग ले रहे हों। खेल चोटें एक खिलाड़ी के कारण जीवन भर खेल में भाग नहीं ले सकता।

बचाव के उपयुक्त बिन्दुओं पर ध्यान दें विशेष रूप से जिनका वर्णन नीचे दिया गया है:

  1. उचित वार्मिंग (Proper Warming-up): किसी भी खेल प्रतियोगिता या खेल प्रशिक्षण आरंभ करने से पहले उचित ढंग से वार्मिग अप करना अत्यंत आवश्यक है। खेल-चोटों के खतरों को काफी सीमा तक कम किया जा सकता है, क्योंकि उचित वार्मिग अप करने के बाद हमारे शरीर की मांसपेशियां अर्धतनाव की स्थिति में आ जाती है। जो शरीर को शारीरिक क्रिया करने के लिए तैयार कर लेती है।
  2. उचित अनुकूलन (Proper Conditioning): बहुत-सी चोटें शरीर की कमजोर मांसपेशियों के कारण लग जाती है, जो आपके खेल में माँग की पूर्ति के लिए तैयार नहीं होती, इसलिए उचित मांसपेशियाँ शक्ति के लिए शरीर का उचित अनुकूलन आवश्यक है। भार व परिधि प्रशिक्षण विधियाँ उचित अनुकूलन की महत्वपूर्ण विधियाँ है।
  3. संतुलित आहर (Balance Diet): कमजोर अस्थियाँ खेल में चोटों का कारण बन जाती है। अत: संतुलित आहार कुछ सीमा तक खेल-चोटों से बचाव करने में सहायक होता है।
  4. खेल कौशल का उचित ज्ञान (Knowledge of Sports Skills): खेल चोटों से बचाव के लिए खेल कौशलों का उचित ज्ञान या जानकारी लाभदायक होती है। एक खिलाड़ी को सम्बंधित खेल कौशलों को करने में कुशल होना चाहिए। उदाहरण के लिए, ऊँची कूद लगाने वाले एथलीट को अवतरण को अवतरण के कौशल की पूरी जानकारी होनी चाहिए। यदि वह इस कौशल में प्रवीण या कुशल नहीं है तो अवतरण करते हुए उसे चोट लग सकती है, इसलिए यदि आपको खेल कौशल की गहरी जानकारी है उन कौशलों को करने के लिए पूर्ण रूप से कुशल हो तो कुछ सीमा तक आप चोटों से बचाव कर सकते हो।
  5. सुरक्षात्मक उपकरणों का प्रयोग (Use of Protective Equipments) : खेल चोटों से बचाव करने का यह एक आसान तथा सबसे अच्छा तरीका है। केवल इसी कारण खेल-कूद के क्षेत्र में सुरक्षात्मक उपकरणों का प्रयोग आवश्यक है। ये सुरक्षात्मक उपकरण चोटों के लगने से खिलाड़ियों को सुरक्षा प्रदान करते है। इनकी भूमिका को और अच्छा बनाने हेतु सुरक्षात्मक उपकरणों की गुणवत्ता पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।
  6. उचित खेल सुविधाएँ (Proper Sports Facilities): खेल सुविधाओं तथा खेल चोटों के मध्य एक प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। वास्तव में खेल चोटों से बचाव किया जा सकता है। यदि अच्छी गुणवत्ता वाले खेल उपकरण हो तथा अभ्यास व प्रतियोगिता के लिए उचित खेल मैदान उपलब्ध हों। यदि खेल मैदान उचित ढंग से रखे जाएं तो खेल मैदानों पर लगने वाली चोटों के खतरे को कम अवश्य किया जा सकता है।


खेलों में खेल चिकित्सक की क्या भूमिका होती है?


खेल चिकित्सक की चिकित्सक के रूप में निम्नलिखित ड्यूटी रहती है:

  1. खेलों में भाग लेने वाले विश्वविद्यालयीन जवान बच्चों और विकसित युवा, पुरुषों की नियमित चिकित्सकीय जाँच करना।
  2. सभी क्रियाओं के अभिलेखों को तैयार करना एवं रख-रखाव करना।
  3. चोटग्रस्त खिलाड़ियों की चोटों का इलाज एवं चोट पुनर्वास की प्रक्रिया को सम्पूर्ण करना।
  4. आधुनिक खेल चिकित्सक को खेल कार्य की, डोपिंग, पैथालॉजी, मनोविज्ञान, कार्डियोलॉजी, इन्डोक्रायनोलॉजी, ट्रायमेटोलॉजी आदि जैसे विषयों से संबंधित खिलाड़ी की समस्या का हल चिकित्सकीय जाँच के माध्यम से करता है।
  5. प्रशिक्षण के दौरान (During Training)
    1. उचित अनुकूलन व्यायाम
    2. स्वास्थ्य स्तर की जाँच
    3. क्रमबद्ध ट्रेनिंग की जाँच
  6. स्पर्धा के दौरान (During Competition)
    1. चोटों की उचित देख-भाल करना।
    2. औषधि एवं दवाइयों के उचित सेवन पर ध्यान देना।
    3. उचित आराम व नींद पर ध्यान देना।
    4. खिलाड़ी के संतुलित आहार का परीक्षण करना।
  7. स्पर्धा के बाद (After Competition)
    1. खिलाड़ी के प्रदर्शन (Performance) को स्वीकार करना।
    2. निपुणता या अनुभवता को प्रोत्साहित करना।
    3. खिलाड़ी को उत्साहित करना।
    4. खिलाड़ी द्वारा किए गए प्रदर्शन को देखकर उसका उसी समय अंत करना।
    5. पूर्ण क्षतिपूर्ति के महत्त्व पर विश्वास करना।
    6. खिलाड़ी से लगातार प्रदर्शन बढ़ाने की सलाह देना।
    7. एक सलाहकार, पर्यवेक्षक और मेडिकल विशेषज्ञ के रूप में खिलाड़ी के साथ व्यवहार करना।


शारीरिक शिक्षा एवं खेल में खेल चिकित्सक की आवश्यकता एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।


खेल औषधि विज्ञान के लक्ष्य एवं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए खिलाड़ी, खेल प्रशिक्षक, ट्रेनर एवं शारीरिक शिक्षक आदि का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। खेलों के विभिन्न क्षेत्रों में खिलाड़ी की चयन प्रक्रिया, पोषण, ट्रेनिंग विधिया, शारीरिक दक्षता, चोटों से रक्षा, बचाव एवं इलाज, खिलाड़ी का दैनिक कार्यक्रम, नई तकनीकों का उपयोग, खिलाड़ी का पूर्ण परीक्षण खेल केदौरान खिलाड़ी की कार्यकीय एवं मनोवैज्ञानिक दशा तथा खेलों एवं क्रीड़ाओं की वैज्ञानिक उन्नति आदि में इस औषधि विज्ञान की बहुत आवश्यकता पड़ती है।

इन कारकों के कारण भविष्य में भी खिलाड़ी का खेल प्रदर्शन एवं राष्ट्रीय एवं अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर परिणाम प्रभावित होते है, खेल औषधि विज्ञान के उद्देश्यों की पूर्ति की आवश्यकताएं, खिलाड़ी के प्रदर्शन मे इन सभी उपरोक्त कारकों को सही एवं सफलतापूर्वक उपयोग में लाने के लिए खेलों से संबंधित सभी व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है और इन सभी व्यक्तियों संयुक्त प्रभाव ही खिलाड़ी का प्रदर्शन होता है। खेल औषधि विज्ञान इस आधुनिक युग मे बहुत बृहद् स्तर पर अपने कार्य कर रही है जिसकी खेल एवं शारीरिक शिक्षा केक्षेत्र में निम्नलिखित आवश्यकता पड़ती है:

  1. प्रतिभावान खिलाड़ियों के पहचान एवं चयन (To Identification and Selection of talented Sportsmen)।
  2. ट्रनिंग कार्यक्रम तैयार करना (To prepare of training schedule)।
  3. खिलाड़ी का संतुलित आहार तैयार करना (To prepare balance of diet of sportsmen)।
  4. प्रशिक्षकों के लिए ट्रेनिंग विधियों को खोजने का साधन (Device for coaches to identify training methods)।
  5. पूर्ण दक्षता प्राप्त करना (To minimising of total fitness)।
  6. खेल चोटों को कम करना (Minimising the sports injuries)।
  7. खेल चोटों के इलाज एवं पुनर्वास (Treatment and Rehabilitation of sports injuries)।
  8. खिलाड़ी के प्रदर्शन स्तर के नियमित परीक्षण।


खेल चिकित्सा के उद्देश्य एवं लक्ष्य बताइए।


खेल चिकित्सा के मुख्य लक्ष्य इस प्रकार है:

  1. खेल चिकित्सा के प्रथम लक्ष्य के अनुसार: खेलों के दौरान खिलाड़ी को लगने वाली चोटों के बारे में पूर्ण रूप से ज्ञान नहीं होता है और सभी खेलों में चोट के लगने की प्रकृति एवं प्रकार में भिन्नता पाई जाती है। अत: खिलाड़ी जिस खेल में ट्रेनिंग ले रहा है या अभ्यास कर रहा है उस खेल में लगने वाली संभावित चोटों के बारे में खिलाड़ी को पूर्व में खेल चिकित्सक और प्रशिक्षण द्वारा बता देना चाहिए जिससे खिलाड़ी अपने को खेल के दौरान चोट ग्रस्त होने से बचा सके। इसके लिए प्रशिक्षण को भी खिलाड़ी की योग्यताओं, क्षमताओं और मानसिक चिंतन एवं उपकरण की जाँच तथा अन्य मनोवैज्ञानिक कारको का परीक्षण पूर्व में ही कर लेना चाहिए तथा चिकित्सकीय जाँच आदि की सूचना खेल चिकित्सक के माध्यम से प्राप्त कर खिलाड़ी को देना चाहिए।
  2. खेल चिकित्सा के द्वितीय लक्ष्य के अनुसार: यह सर्वविदित है कि खिलाड़ी के शरीर, मनोवैशानिक, चिकित्सीय कारक और अन्य विशेष कारकों को ध्यान में रखकर खिलाड़ी को लगने वाली चोटों से संभावित कारण से अवगत कराना उचित होता है जिससे कि वह खेल या प्रतियोगिता के दौरान अपने को चोटग्रस्त होने से बचा सके। खेलों में लगने वाली चोटों के कारण खिलाड़ी की खेल कौशल तकनीक में कमी, अपर्याप्त् गरमाना, अपर्याप्त् शारीरिक दक्षता, वातावरणीय कारक और अन्य मनोवैशानिक पहलू हो सकते है।
  3. खेल चिकित्सा के तृतीय लक्ष्य के अनुसार: जब खिलाड़ी खेल के दौरान या ट्रैकिंग के दौरान या प्रतियोगिता के दौरान चोटग्रस्त हो जाता है, तो खिलाड़ी था प्रशिक्षक को चाहिए कि वे तुरंत प्राथमिक उपचार के पश्चात सम्बन्धित खेल वैज्ञानिक विशेषज को सूचित करें जिससे कि चोट के इलाज, पुनर्वास और क्षतिपूर्ति का शीघ्र उपाय किया जा सके। चोटों के क्षतिपूर्ति और पुनर्वास के लिए सामान्यत: विभिन्न चिकित्सकीय तरीकों में जैसे जल उपचार (Hydro Therapy), किरणीय उपचार (Dia & Radiation Therapy) और पराध्वनि तरंगों (Vibrating Wave Therapy) आदि को उपयोग में लाया जाता है।
  4. खेल चिकित्सा के चतुर्थ लक्ष्य के अनुसार: खिलाड़ी के खेल के दौरान लगने वाली चोटों के बचाव पक्ष से खिलाड़ी को पूर्व में ही अवगत करा देना चाहिए जिससे कि वह अभ्यास या प्रतियोगिता के दौरान चोटग्रस्त न हो सके। इसके लिए खिलाड़ी, लगने वाली संभावित चोटों से अपना बचाव कर सके।

खेल चिकित्सा के उद्देश्य:

  1. खेल एवं क्रीडाओं की वैज्ञानिक उन्नति: खेल एवं क्रीड़ाओं की वैज्ञानिक उन्नति के लिए कुछ ऐसे पहलू है जिनका खिलाड़ी के प्रदर्शन पर विशिष्ट प्रभाव पड़ता है। वास्तविक परिणामों में शिथिलता एवं कमी आती है। अत: इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखना अति आवश्यक है जिनका वर्णन निम्नलिखित है:
    1. कोचिंग के कार्यक्रमों की योजना तैयार करना
    2. कोचिंग का मूल्यांकन करना
    3. चयनित निर्णय लेना
    4. मनोवैज्ञानिक परामर्श
    5. चोटों की रोकथाम
  2. स्वास्थ्य रक्षा
  3. खेल चिकित्सा विस्तार सेवा:

 अतः कहा जा सकता है कि खेल औषधि विज्ञान के माध्यम से खिलाड़ी की काफी समस्याओं का समाधान आसानी से हो जाता है। इसके लिए प्रत्येक खेल संस्थान में खेल चिकित्सक, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, चिकित्सालय आदि का होना आवश्यक है जिससे खिलाड़ी की समस्याओं, चोटो, रोगों आदि संबंधित कमियों को दूर किया जा सके।


कोमल ऊतकों की चोटों को वर्गीकृत कीजिए? उनके कारणों तथा निवारको का वर्णन करों?


खेलों में कोमल ऊतक मांसपेशी तन्तु, त्वचा, रक्त वाहिनी आदि पर लगने वाली चोटों को कोमल उत्तक चोट कहते है:

  1. रगड़  (Abrasion): ऐसी चोटें जब खेलते समय या शारीरिक क्रिया करते समय नंगी त्वचा किसी खुरदरी सतह के गतिज संपर्क में आती है जिसके कारण त्वचा की ऊपरी सतह पर घर्षण हो जाता है रगड़ कहलाती है।
  2. गुमचोट (Contusion): खेलों में जब सीधे प्रहार पर कुछ वस्तु (Blunt Object) से बार-बार शरीर के किसी भाग को आहत करते है तो त्वचा की ऊपरी भाग पर नुकसान पहुँचाए बिना अंतर्निहित मांसपेशीय तन्तु और सयोजी ऊत्तक कुचल दिया जाता है या किसी कठोर वस्तुव सतह से भी गुमचोट लग सकती है।
  3. विदारण (Laceration): त्वचा के ऊपर खुले घाव अथवा मांस के फट जाने या किसी कुछ वस्तु के टकराने या किसी सतह से टकराने के कारण होती है।
  4. चीरा (Incission): चीरे वाले घाव तीखे कटाव वाली चोटे होती है। जो चाकू या टूटे हुए शीशे आदि से लगते है। घाव के किनारे उस वस्तु की धार की प्रकृति केअनुसार अलग-अलग होते है जिससे चोट लगी है।
  5. मोच (Sprain): अस्थि उपास्थि (Bone Cartilage) में खिंचाव व फट जाने के कारण मोच लग जाती है। अस्थि उपास्थि वे उत्तक होते है जो हड्डियों को जोड़ों पर आपस में जोड़ें रखते है।
  6. खिचांव (Stress): मांसपेशी व स्नायु के खिंच या फट जाने से है। स्नायु वह ऊतक होते है। जो हड्डियों को मांसपेशीयों से जोड़ते है। इन ऊतकों में घुमाव तथा इनके रिवंच जाने से इनमें तनाव पैदा हो जाता है।

कोमल ऊतकों की चोटों के कारण:

  1. अतिप्रयोग (Over-Use)
  2. गिरना (Falls)
  3. ठहराव व मोड़ (Stops & Twists)
  4. अनुचित उपकरण (Improper Equipments)
  5. नया या अपेक्षाकृत क्रियाकलाप (New or Increased Activities)
  6. थकान (Fatigue)
  7. अपर्याप्त वर्म-अप (Poor Warm UP)
  8. टकराव (Clash)
  9. एकपक्षीय गतियाँ (Unilateral Movement)
  10. तकनीक व मुद्रा /आसान (Technique or Postuse)

कोमल उत्तकों की चोटों से बचाव:

  1. समूचित वर्म-अप (Proper Warm-Up)
  2. समूचित अनुकूलन (Appropriate Condition)
  3. समुचित तकनीकी जानकारी (Sound Technical Knowledge)
  4. स्वास्थ्यप्रद आहार (Healthy Diet)
  5. तकनीकों का दक्षतापूर्वक प्रयोग (Efficient use of technique)
  6. सुरक्षा उपकरणों का प्रयोग (Use of Protective Gears)
  7. अति परीक्षण तथा अति प्रयोग (No over training or over use)
  8. सुरक्षा नियमों का पालन करें (Obey Safety Rules)
  9. निष्पक्ष अधिकारी गण (Fair Officiating)
  10. समूचित कूलिंग डाउन (Proper Cooling Down)