कवयित्री परिचय कविता का सारांश इस कविता में दोनों पक्षों का यथार्थ चित्रण हुआ है। बृहतर संदर्भ में यह कविता समाज में उन चीजों को बचाने की बात करती है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक-प्राकृतिक परिवेश के लिए जरूरी है। प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आज आदिवासी समाज संकट में है, जो कविता का मूल स्वरूप है। कवयित्री को लगता है कि हम अपनी पारंपरिक
भाषा, भावुकता, भोलेपन, ग्रामीण संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। प्राकृतिक नदियाँ, पहाड़, मैदान, मिट्टी, फसल, हवाएँ-ये सब आधुनिकता के शिकार हो रहे हैं। आज के परिवेश, में विकार बढ़ रहे हैं, जिन्हें हमें मिटाना है। हमें प्राचीन संस्कारों और प्राकृतिक उपादानों को बचाना है। कवयित्री कहती है कि निराश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अभी भी बचाने के लिए बहुत कुछ शेष है। व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 1. अपनी बस्तियों की
बचाएँ डूबने से शब्दार्थ नंगी होना-मर्यादाहीन होना। आबो-हवा-वातावरण। हड़िया-हड्डयों का भंडार। माटी-मिट्टी। झारखंडीपन-झारखंड का पुट। विशेष- अर्थग्रहण
संबंधी प्रश्न उत्तर – 2. ठडी होती दिनचय में भोलापन दिल का शब्दार्थ विशेष
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
उत्तर –
3. भीतर की आग नदियों की निर्मलता शब्दार्थ विशेष-
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
उत्तर –
4. नाचने के लिए खुला आँगन बच्चों के लिए मैदान शब्दार्थ खिलखिलाहट-खुलकर हँसना। मुट्ठी भर-थोड़ा-सा। एकांत-अकेलापन। विशेष-
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
उत्तर –
5. और इस
अविश्वास-भरे दौर में आओ, मिलकर बचाएँ शब्दार्थ- विशेष
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
उत्तर –
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न 1. अपनी बस्तियों को हड़िया में प्रश्न
उत्तर –
2. ठंडी होती दिनचर्या में भोलापन दिल का प्रश्न
उत्तर –
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न कविता के साथ प्रश्न 1: प्रश्न 2: प्रश्न 3: प्रश्न 4: प्रश्न 5: प्रश्न 6: प्रश्न 7: कविता के आस-पास प्रश्न 2: अन्य हल प्रश्न लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 2:
प्रश्न
3: NCERT SolutionsHindiEnglishHumanitiesCommerceScience आओ मिलकर बचाएं कविता में कवयित्री क्या बचाना चाहती है और क्यों?इस कविता में प्रकृति और सामाजिक व्यवस्था को बचाने के लिए प्रयास करने का आह्वान किया गया है। कवयित्री को लगता है कि हम अपनी पारंपरिक भाषा, भावुकता, भोलापन, ग्रामीण संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। प्राकृतिक नदियाँ, पहाड़, मैदान, मिट्टी, फ़सल, हवाएँ आधुनिकता का शिकार हो रही हैं। हमें इन सबको बचाना है।
कवयित्री क्या क्या बचाना चाहती है?कवयित्री क्या-क्या बचाना चाहती है? उत्तर: कवयित्री पर्यावरण, आदिवासियों की पौराणिक संस्कृति, उनके प्राकृतिक वास अर्थात बस्ती को शहरी अपसंस्कृति से बचाना चाहती हैं।
कविता आओ मिलकर बचाएँ में कवयित्री द्वारा क्या क्या बचाने का आह्वान किया गया है?यह कविता संथाली भाषा से अनूदित है। कवयित्री अपने परिवेश को नगरीय अपसंस्कृतिक से बचाने का आहवान करती है। व्याख्या-कवयित्री लोगों को आहवान करती है कि हम सब मिलकर अपनी बस्तियों को शहरी जिंदगी के प्रभाव से अमर्यादित होने से बचाएँ। शहरी सभ्यता ने हमारी बस्तियों का पर्यावरणीय व मानवीय शोषण किया है।
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