परिवार के सभी सदस्यों को संतुलित भोजन प्रदान करने के लिये गृहणी को कर्इ प्रकार के निर्णय लेने पड़ते हैं। जैसे- क्या पकाया जाये, कितनी मात्रा में पकाया जाये, कब पकाया जाये और कैसे परोसा जाये आदि। भोजन बनाने से पूर्व इन सभी प्रश्नों पर विचार करके उचित निर्णय लेना व अपने निर्णय को क्रियान्वित करना ही आहार आयोजन कहलाता है। “भोजन निर्माण से पूर्व परिवार के सभी सदस्यों को
आवश्यकतानुसार पौष्टिक, रूचिकर एवं समयानुसार भोजन की योजना बनाना ही आहार आयोजन कहलाता है।” प्रत्येक गृहणी चाहती है कि उसके द्वारा पकाया गया भोजन घर के सदस्यों की केवल भूख ही शांत न करें अपितु उन्हें मानसिक संतुष्टि भी प्रदान करे। इसके लिये तालिका बनाते समय कुछ सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक है, जो कि है- आहार आयोजन के सिद्धातों से परिचित होने के बावजूद ग्रहणी परिवार के सभी सदस्यों के अनुसार भोजन का आयोजन नहीं कर पाती। क्योंकि आहार आयोजन को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं- गृहणी के लिये आहार का आयोजन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। वह इसके द्वारा परिवार के लिये लक्ष्य प्राप्त कर सकती है- परिवार के लिये आहार आयोजन करने से पूर्व जीवन के विभिन्न सोपान की जानकारी होना आवश्यक है। जीवन के विभिन्न सोपान गर्भावस्था स्त्री के जीवन की वह अवस्था है। जब उसके शरीर में भ्रूण की वृद्धि और विकास होता है। यह अवस्था लगभग 9 माह की होती है। इस 9 माह के पूर्ण काल को तीन त्रिमासों में बाँटा गया है। इन तीनों त्रिमासों में वजन में लगातार वृद्धि होती है, पहले त्रिमास में भ्रूण काफी छोटा होता है इसलिए इसकी आहार सम्बन्धी आवश्यकताएँ कम होती है, इसलिए इस अवधि में माँ को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता नहीं होती। किन्तु दूसरे और तीसरे त्रिमास में भ्रूण की वृद्धि व विकास तीव्रगति से होता है। जिससे इस समय माँ को अतिरिक्त पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। गर्भावस्था में पोषण आवश्यकताएँ-गर्भावस्था में निम्नलिखित क्रियाओं के कारण पोषण आवश्यकताएँ बढ़ जाती है।
गर्भावस्था में पौष्टिक आवश्यकताएँ-इस अवस्था में लगभग सभी पोषक तत्वों की आवश्यकताएँ बढ़ जाती है-
गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याएँ-इस दौरान गर्भवती स्त्री को स्वास्थ्य सम्बन्धी निम्न समस्याओं से गुजरना पड़ता है-
गर्भावस्था के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें-
2. स्तनपान अवस्थायह समय गर्भावस्था के बाद का समय है। सामान्यत: स्तनपान कराने वाली स्त्री एक दिन में औसतन 800 से 850 मि.ली. दूध का स्त्राव करती है। यह मात्रा उसे दिये जाने वाले पोषक तत्वों पर निर्भर करती है। इसीलिये इस अवस्था में पोषक तत्वों की माँग गर्भावस्था की अपेक्षा अधिक हो जाती है। क्योंकि 6 माह तक शिशु केवल माँ के दूध पर ही निर्भर रहता है। धात्री माँ के लिये पोषक आवश्यकताएँ-शुरू के 6 माह में दूध की मात्रा अधिक बनती है। धीरे-धीरे यह मात्रा कम होने लगती है। इसीलिये शुरू के माह में पोषक तत्वों की आवश्यकता अधिक होती है। इस अवस्था में निम्न पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है-
स्तनपान काल ध्यान रखने योग्य बातें-
3. शैशवावस्थाजन्म से एक वर्ष तक का कार्यकाल शैशवावस्था कहलाता है। यह अवस्था तीव वृद्धि और विकास की अवस्था है। यदि इस उम्र में शिशुओं को पर्याप्त पोषक तत्व न दिये जाये तो वे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। शिशुअुओंं की पोषण आवश्यकताएँ शिशुओं को निम्न पोषक तत्वों की आवश्यकताएँ अधिक होती है-
शिशुओं के लिए आहार आयोजन-शिशुओं को दिया जाने वाला प्रथम आहार माँ का दूध है। जो कि बालक के लिये अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि –
माँसपेशियों के संकुचन में सहायक-स्तनपान कराने से गर्भाशय की माँसपेशियाँ जल्दी संकुचित होती है, जिससे वह जल्दी पूर्ववत आकार में पहुँच जाता है। नोट – माँ के दूध की अनपु स्थिति मे शुष्क दूध देना उत्तम होता है क्योंिक इसकी संरचना माँ के दूध के समान होती है। शिशु इसे आसानी से पचा सकता है। पूरक आहार –6 माह के पश्चात् बालक के लिये माँ का दूध पर्याप्त नहीं रहता। अत: माँ के दूध के साथ ही साथ दिया जाने वाला अन्य आहार पूरक आहार कहलाता है और पूरक आहार देने की क्रिया स्तन्यमोचन (Weaning) कहलाती है।उदाहरण – गाय का दूध, भसै का दूध, फल, उबली सब्जियाँ व सबे फल आदि। बच्चों को दिये जाने वाले पूरक आहार को तीन वगोर्ं में वर्गीकृत किया जा सकता है-
4. बाल्यावस्था2 वर्ष से लेकर 12 वर्ष की अवस्था बाल्यावस्था कहलाती है। 2-5 वर्ष की अवस्था प्रारंभिक बाल्यावस्था तथा 6 से 12 वर्ष की अवस्था उत्तर बाल्यावस्था कहलाती है। 6-12 वर्ष के बच्चों के लिये स्कूलगामी शब्द का प्रयोग किया गया है। स्कूलगामी बच्चों के लिये पोषण आवश्यकताएँ इस अवस्था में निम्नलिखित पोषक तत्व आवश्यक होते हैं- ;पद्ध ऊर्जा- इस अवस्था में वृद्धि दर तेज होने से अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। साथ ही साथ इस उम्र में बच्चों की शारीरिक क्रियाशीलता बढ़ने से ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ जाती है। इस अवस्था में लड़कों के मॉसपेशीय ऊतक अधिक सक्रिय होने से ऊर्जा की आवश्यकता लड़कियों की अपेक्षा अधिक होती है।
5. किशोरावस्था13 से 18 वर्ष की अवस्था किशोरावस्था कहलाती है। इस अवस्था में शारीरिक मानसिक तथा भावनात्मक परिवर्तन होते हैं। इसलिये पोषक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है। इसलिए भारतीय अनुसंधान परिषद द्वारा किशोर-बालिकाओं के लिये निम्नलिखित पोषक तत्व आवश्यक है-
6. वृद्धावस्थायह जीवन के सोपान की अन्तिम अवस्था है। इस अवस्था में शारीरिक तथा मानसिक क्रियाशीलता कम हो जाती है। उसकी माँसपेशियाँ कमजोर हो जाती है। अत: पोषक तत्वों की उतनी आवश्यकता नहीं होती। इस अवस्था में निम्नलिखित पोषक तत्व की आवश्यकता होती है-
इन्हें भी आवश्य पढ़े...हमारे बारें मेंMy Name is Jitendra Singh (Rana) और मैं एक सफल शिक्षक बनने की तैयारी कर रहा हूं ! और मैं लखनऊ, उत्तर प्रदेश (भारत) से हूँ। आहार योजना को प्रभावित करने वाले कारक कौन है?प्रत्येक गृहिणी उपलब्ध खाद्यों में से चुनकर आहार बनना तय करती है। फिर भी आहार योजना को कुछ कारक जैसे पोषण आवश्यकता, बजट, मौसम आदि जिसके बारे में पहले अध्यययन कर चुके हैं, प्रभावित करते हैं। ये कारक भिन्न-भिन्न परिवार में भिन्न-भिन्न होते हैं।
पोषण को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं?आयु, लिंग, शरीर का आकार, जलवायु, अन्त:स्रावी ग्रंथियों (एण्डोक्राइम) ग्लैण्ड का स्राव, स्वास्थ्य स्तर, गर्भावस्था और दुग्धपान कराने की अवस्था में परिवर्तित शारीरिक सिथति, आहार का प्रभाव और शारीरिक क्रियाओं की मात्राा आदि घटक तत्त्व ऊर्जा आवश्यकता को प्रभावित करते हैं।
संतुलित आहार क्या है इसे प्रभावित करने वाले कारकों का नाम लिखिए?दरअसल हर व्यक्ति को उसकी शारीरिक आवश्यकताओं, आयु, लिंग के आधार पर संतुलित आहार की जरूरत होती है। जैसे ज्यादा शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्ति को भोजन में ज्यादा मात्रा में कार्बोहाइड्रेट लेना चाहिए। बच्चों की शारीरिक वृद्धि के लिए प्रोटीन जरूरी है। इसी तरह स्त्रियों के लिए लौह तत्व और कैल्शियम की जरूरत होती है।
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