बच्चे के पैदा होने के साथ ही उसके भविष्य के बारे में प्लानिंग करना शुरू हो जाता है और माता पिता एवं परिवार उसके एजुकेशन के बारे में सोचने लगते हैं। बच्चा जब 2 से 3 साल का हो जाता है तब से ही बच्चे को पढ़ाने के बारे में चिंतन आरंभ हो जाता है। बच्चे को एलकेजी में कैसे पढ़ाएं या फिर बच्चा 3 से 5 साल का हो जाता है तो बच्चे को कैसे पढ़ाया जाए, यह माता पिता के लिए एक विचार विनिमय का और गंभीर प्रश्न खड़ा हो जाता है। छोटे बच्चे को कैसे पढ़ाएं? Show
छोटे बच्चे को LKG में कैसे पढ़ाया जाए? बच्चे को 3 साल में कैसे पढ़ाया जाए या फिर बच्चा 5 साल का हो गया है तो छोटे बच्चे को कैसे पढ़ाएं यह प्रश्न अक्सर माता-पिता को परेशान करता है तो आज इस पोस्ट में हम जानेंगे कि 3 साल से लेकर 6 साल तक के बच्चे को किस तरह पढ़ाया जाए जिससे वह अपने समान छोटे बच्चों की तरह बुद्धि और प्रतिभा मे समानता या अधिकता प्राप्त कर सकें। और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, बच्चे के मनोभावों को समझना और उसको समझाना तो इस पोस्ट में उन सब सवालों के के जवाब हैं। छोटे बच्चों को कैसे पढ़ाएं? एल के जी एवं 3 साल से लेकर के 6 साल तक के छोटे बच्चे को समझने और पढ़ाने के बेहतरीन तरीके उदाहरण के साथ। छोटे बच्चों की श्रेणी हम 2 साल से लेकर 6 साल तक मान सकते हैं। छोटे बच्चों जैसे एलकेजी, यूकेजी और पहली क्लास अर्थात 2 से 6 साल तक के बच्चों को कैसे और क्या पढ़ाया जाए, इस बारे में हम निम्न बिंदुओं के अंतर्गत अध्ययन करेंगे।
2 sal ke bacche ko kya padhaayenछोटे बच्चों का बौद्धिक और शारीरिक विकास एक निश्चित गति से होता है, हालांकि अलग-अलग बच्चों में यह बौद्धिक विकास भिन्न भिन्न हो सकता है। बच्चा जन्म के आरंभ से ही सीखने की प्रक्रिया प्रारंभ कर देता है, अपने आसपास के वातावरण और परिचितों को पहचानने लगता है और उसके अनुसार क्रिया प्रतिक्रिया करने लगता है। 2 साल का बच्चा सहज रूप से सीखता है इसलिए उस पर किताबी ज्ञान का अतिरिक्त बोझ नहीं डालना चाहिए। अक्षर ज्ञान या संख्या ज्ञान बच्चे को 3 साल के बाद ही सिखाना चाहिए। मौखिक रूप से भले ही आप उसे 1,2,3 समझा सकते हैं। जैसे यह एक रोटी है। बेटा आज तुमने आधी रोटी खाई। बेटा यह पूरी एक रोटी खा लो। मैं दो रोटी खाती हूं। बेटा तुम्हारी दीदी तीन रोटी खाती है, आदि आदि करके बच्चा धीरे-धीरे समझने लगता है एक और दो क्या है? 2 साल के बच्चे को लिखना सिखाने की आवश्यकता नहीं है परंतु उसे विभिन्न प्रकार के चित्र आदि दिखा सकते हैं जिससे वह चित्र में चित्र और अपने आसपास की चीजों को पहचानने लगेगा। जैसे आपने उसे चम्मच गिलास का चित्र दिखाया और ऐसा ही वह रसोई में देखेगा। या फिर उसे आपने आइसक्रीम समोसा या अन्य कोई खाद्य पदार्थ लड्डू आदि का चित्र दिखाया और यही चीजें वास्तविक रूप में देखेगा तो वह उन चीजों को समझने और भेद करने में सक्षम होगा। बच्चा आपके आसपास के कुत्ते बिल्ली कबूतर आदि सभी जानवरों को जानता है पर जब वह इनको चित्र में देखेगा तो आप से विभिन्न सवाल पूछेगा। फिर उसे धीरे-धीरे पता चलेगा कि यह चित्र में है और वास्तविक बिल्ली, कबूतर आदि बाहर हैं। बच्चा तरह-तरह के सवाल पूछेगा इसलिए धैर्य के साथ जवाब दें। 2 साल के बच्चे को इस तरह से सिखाएं
2 साल के बच्चे के लिए इस प्रकार के काफी सारे कार्य किए जा सकते हैं और सहज रूप से सिखाते हुए उनकी बुद्धि का तीव्र विकास किया जा सकता है। 2 साल के बच्चे पर किताबी ज्ञान या कुछ रटने आदि की प्रवृत्ति पर बिल्कुल जोर नहीं देते हुए सहज रूप से पढ़ाएं। एलकेजी के बच्चों को कैसे पढ़ाएंढाई साल के बच्चे का स्तर LKG से प्रारंभ हो जाता है। एलकेजी अर्थात Lower kindergarten. यहां से बच्चे की पूर्व प्राथमिक शिक्षा आरंभ कर देनी चाहिए। आधुनिक शिक्षाविदों का भी मानना है कि 3 साल के बाद बच्चे को विधिवत और सहज रूप से शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। यह शैशव अवस्था का आरंभिक काल होता है इसलिए एलकेजी स्तर पर बच्चे को नवीन और गूढ़ ज्ञान ग्रहण करने की उत्सुकता और क्षमता होती है। एलकेजी स्तर का बच्चा अपने आसपास के परिवेश, अपनी आवश्यकताओं और कठिनाइयों को समझने लगता है और परस्पर दो भिन्न स्थितियों की तुलना करने लगता है हालांकि इस अवस्था में सामंजस्य की भावना विकसित नहीं होती परंतु बच्चा दो विभिन्न परिस्थितियों में से किसी एक को स्वीकार और किसी एक को नकार सकता है। एलकेजी स्तर के बच्चे को किसी भी प्री प्राइमरी अच्छे स्कूल में प्रवेश दिला सकते हैं परंतु इसके लिए विद्यालय के स्टैंडर्ड एवं बालक की वर्तमान परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए एक अच्छे विद्यालय का चयन किया जाना चाहिए। पहले पूर्व प्राथमिक कक्षाएं नहीं चलती थी परंतु वर्तमान में बच्चों की आयु और सीखने के स्तर को देखते हुए विभिन्न प्री प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को बहुत ही स्टैंडर्ड और आधुनिक तरीकों से सिखाया जाता है। सरकार भी इस बात को जानती है इसलिए जगह जगह पर पूर्व प्राथमिक शिक्षा केंद्र या आंगनवाड़ी केंद्र खोले गए हैं। पाश्चात्य देशों में किंडर गार्डन के बच्चों पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है और उनकी शिक्षा व्यवस्था एक बेहतरीन और सिस्टेमैटिक तरीके से की जाती है परंतु हमारे भारत देश में अभी भी ग्रामीण क्षेत्र में छोटे बच्चों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता। एलकेजी में 3 साल के बच्चे को कैसे पढ़ाएं3 साल के बच्चे के लिए विधिवत शिक्षा आरंभ कर देनी चाहिए। 3 साल के बच्चे को स्कूल और घर पर कैसे पढ़ाएं, इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। आपका बच्चा यदि 3 साल का हो गया है तो ज्यादा चिंतित ना हो, उसका प्रारंभिक स्तर है और सीखने के लिए बहुत सारी अपार संभावनाएं हैं इसलिए मन में कभी भी ऐसी भावना न पालें कि मेरा बच्चा पीछे रह जाएगा या जिंदगी में आगे कुछ नहीं कर पाएगा, प्री प्रारंभिक शिक्षा का महत्व है परंतु इतना भी नहीं कि किसी की योग्यताओं को असफल कर सकें। यह सीखने का प्रारंभिक स्तर है, सहज भाव से सीखने दें परिणाम आपकी प्रत्याक्षा से अधिक होगा।
इस अवस्था में बच्चे सवाल बहुत करते हैं इसलिए उनके प्रत्येक प्रश्न का धैर्य के साथ जवाब दें और उन्हें सामाजिक तथा नैतिक बनाने की सोचें। 3 साल के बच्चे को ऐसे पढ़ाएं
एक तरह से 3 साल के बच्चों को सामान्य और अक्षर ज्ञान तथा संख्याओं का आरंभिक ज्ञान देना चाहिए परंतु इसमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि कोई कठिन शब्द या वर्ण है या कोई कठिन संख्या है तो उसे बाद में सिखाएं पहले उसे सामान्य और सीधे तौर पर लिखे जाने वाले वर्णों और अक्षरों का ज्ञान करवाना चाहिए। 4 साल के बच्चे को कैसे पढ़ाएं4 साल के बच्चे में अद्भुत क्षमता विकसित हो जाती है वह अपने आप सीखने लगता है। खास तौर से अनुकरण करके। इसलिए 4 साल के बच्चे के सामने जो भी एक्टिविटीज करें उन्हें वह बहुत जल्दी अनुकरण करके सीखता है। प्राय: माता-पिता या अभिभावक इस उम्र में बच्चे पर ध्यान नहीं देते हैं और बहुत सारी गलत बातें भी वह इसलिए सीख जाता है क्योंकि माता-पिता या परिवार या आसपास के परिवेश में कोई इस तरह से कर रहा होता है। जैसे झूठ बोलना, चोरी करना या धूम्रपान अथवा कोई मादक पदार्थों का सेवन। इसलिए 4 साल के बच्चे के सामने कभी भी ऐसे कार्य नहीं करना चाहिए और ध्यान रखें कि इस उम्र में बालक वही बोलता और सीखता है जिस तरह से आप बोल रहे हैं या कर रहे हैं इसलिए चार साल के बच्चे के सामने इस तरह का व्यवहार न करें।
4 साल के बच्चे में नैतिक और अच्छे गुणों का विकास हो सके इसलिए उसके सामने इस तरह का व्यवहार करना चाहिए।
5 साल के बच्चे को कैसे पढ़ाएं3 से 4 साल का बच्चा जहां पर यह सीखता है कि कौन क्या है उसी प्रकार 5 से 6 साल के बच्चे के मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि यह अमुक चीज वस्तु या क्रिया क्यों और कैसे हैं? 5 साल के बच्चे की जिज्ञासा उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है और वह सवाल में से भी पूरक सवाल पूछने लगता है इसलिए उसके सवालों का तब तक जवाब देना चाहिए जब तक कि वह संतुष्ट ना हो जाए। बच्चा दो ही परिस्थितियों में संतुष्ट होता है जब या तो वह अपने प्रश्नों का उत्तर पा जाता है या उसका दिमाग समझने में समर्थ नहीं होता तो वहीं दूसरी चीजों पर ध्यान हटाने की कोशिश करता है या फिर जब उसे आपके द्वारा समझाए की प्रक्रिया समझ में नहीं आती तब भी वह दूसरी चीजों पर ध्यान लगाने की कोशिश करता है और उस टॉपिक को छोड़ देता है। बच्चे निरंतर जिज्ञासु होते हैं इसलिए 5 साल की उम्र में बहुत ही ज्यादा सवाल करते हैं इसलिए उनकी जिज्ञासाओं का समझ बूझ के साथ जवाब देना चाहिए परंतु उसे निराश करने या डांटने से उसके सवाल तो खत्म नहीं होंगे परंतु उसका दिमाग नेगेटिव चीजों में डाइवर्ट होगा इसलिए उसे जहां तक संभव हो सरल भाषा में और आत्मीयता के साथ समझाने की कोशिश करें। 5 साल के बच्चे को पढ़ाने के टिप्स5 साल तक के बच्चे को हिंदी अंग्रेजी एवं गणित तथा मानसिक बुद्धिमता बढ़ाने संबंधी ज्ञान देना चाहिए। 5 साल के बच्चे की सीखने की आरंभिक अवस्था होती है इसलिए उसको छोटे-छोटे शब्दों में और उदाहरणों के माध्यम से समझाना चाहिए। 5 साल के बच्चे को हिंदी पढ़ाने के टिप्स
हिंदी भाषा सभी विषयों को सीखने का आधारभूत ज्ञान है इसलिए हिंदी में सही उच्चारण और समझ के साथ ही बालक में अन्य विषयों को समझने और पढ़ने आदि की योग्यता उत्पन्न होगी। यदि बालक लिखे हुए को अच्छी तरह से पढ़ नहीं पाएगा या पढ़ने में त्रुटि करेगा तो अन्य विषयों को समझने में भी उसे कठिनाई होगी। 5 साल के बालक को गणित पढ़ाने के टिप्स3 से 4 साल की उम्र में बालक गिनती बोलने का प्रारंभिक ज्ञान ही सीख पाता है इसलिए विभिन्न संख्याओं में तुलना करना उसे ज्ञात नहीं होता है। उसे घर पर ही 3 या 4 साल के बीच में यह सिखाएं कि 1 या 3 में क्या फर्क होता है। 5 या 10 क्या होता है। यह हम विभिन्न उदाहरणों के द्वारा समझा सकते हैं जैसे हमारे रोजमर्रा घर में काम आने वाली सामग्री या फिर रुपयों की गिनती से। जैसे यह आइसक्रीम ₹10 में आती है या फिर यह आइसक्रीम ₹20 में आती हैं, यह समझाने के लिए बालक को पैसे देकर अलग-अलग नोट में फर्क करना समझाएं। शुरू में बालक 1,2,5 या 10 सबको एक ही समझता है। परंतु धीरे-धीरे व्यवहारिक जीवन में देखने और प्रयोग करने से वह इस अंतर को समझने लगता है।
गणित एक तार्किक और वैज्ञानिक विषय है इसलिए कभी भी बालकों को मैथ के सवाल रटने के लिए नहीं देने चाहिए। रटने से बालकों की स्वाभाविक मनोवृति अवरुद्ध होती है। वैसे तो किसी भी विषय में रटने या बार-बार स्मरण करने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करना चाहिए क्योंकि जबरदस्ती रटकर अभ्यास किया गया सवाल या अन्य चीजें उनके दिमाग में स्थाई नहीं रहती हैं और थोड़े समय के बाद ही बालक इन सब को भूल जाता है। मैंने देखा है, प्राय छोटे बालकों को बार-बार गिनती या पहाड़े रटाए जाते हैं। यहां तक कि छोटे बालकों को 1 से लेकर 40 तक के पहाड़े बराबर कंठस्थ करवाए जाते हैं जबकि आप जानते हैं कि गणित के विषय में 20 के बाद पहाड़े रटवाने का कोई औचित्य नहीं है और बालक अगली कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते इन सब को भूल भी जाता है। आप किसी भी बड़े गणितीय विशेषज्ञ या मैथ के टीचर को देख लें वह भी 20 के बाद 40 तक के पहाड़े को कभी काम में नहीं लेता क्योंकि गणितीय संकल्पना को हल करने के लिए इन पहाड़ों की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इसलिए हमारे ग्रामीण और कम जानकार माता-पिता के द्वारा यही समझा जाता है कि गणित में 40 तक के पहाड़े रखना आवश्यक है जबकि सभी गणितीय संकल्पनाओं को हल करने के लिए विभिन्न सूत्रों और उनकी संकल्पनाओं को समझना आवश्यक है। 6 साल का बच्चा विद्यालय में जाना प्रारंभ कर देता है परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि अभिभावकों की समस्याएं समाप्त हो गई हैं। 6 साल का बच्चा विद्यालय में जो भी पढ़ कर आएगा उससे संबंधित सवाल आपसे ही पूछेगा, इसलिए उसकी समस्याओं का समाधान आपके सिवा कोई नहीं कर पाएगा। 6 साल के बच्चे को पढ़ाने के लिए जरूरी टिप्स और उसके आचरण व्यवहार आदि के बारे में थोड़ा आप को समझना जरूरी होता है क्योंकि अभी बच्चा कुछ नया सीखने के स्टेज में है और उसके मन में बहुत सारी उत्सुकताएं हैं। इस उम्र में बच्चे का व्यवहार बदलता है, वह अपने आप आसपास की चीजों को समझने और उन पर प्रतिक्रिया देने के लिए तत्परता से तैयार रहता है, उसे सही और गलत का थोड़ा-थोड़ा अभ्यास होने लगता है।
6 साल के बच्चे को घर में पढ़ाने के टिप्स
यह पोस्ट अभी समाप्त नहीं हुई है प्रियगण छोटे बालकों के अभिभावकों। अभी इस पर और भी विस्तृत विचार-विमर्श किया जाना है। अभी यहां पर दिए गए विचार छोटे बच्चों को कैसे पढ़ाएं यह पूरे नहीं हुए हैं। बड़ों की बजाए छोटे बच्चों को पढ़ाना बहुत कठिन कार्य है और उससे भी अधिक दुष्कर कार्य है छोटे बच्चों की मानसिकता को समझना। छोटे बच्चों को पढ़ाने से पहले हमें पूर्णतया उनकी मानसिकता को समझना होता है, इस पर अभी और भी लेख प्रस्तुत करेंगे। अभी हमने एलकेजी के बच्चे को कैसे पढ़ाएं या फिर 2 से 3 साल के बच्चे को कैसे पढ़ाएं, इस पर विचार मंथन किया है। हमारे बच्चे जैसे जैसे बड़े होते हैं वैसे वैसे हमें उनकी पढ़ाई की चिंता सताने लगती है, इसलिए जरूरी है कि उनकी पढ़ाई पर शुरू से ही ध्यान दिया जाना चाहिए। बच्चा जब 4 से 5 या 6 साल का हो जाता है तो हमें उसकी पढ़ाई की चिंता बहुत ज्यादा परेशान करने लग जाती हैं। हम उसके लिए अच्छे प्री प्राइमरी स्कूलों की खोज करने लगते हैं और ट्यूशन के बारे में सोचने लगते हैं। इसलिए हमें ज्यादा विचार नहीं करना चाहिए कि 3 साल के बच्चे को कैसे पढ़ाएं या 4 साल के बच्चे को कौन से स्कूल में दाखिला दे आजकल बहुत ज्यादा कंपटीशन हो गया है और प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट भी बच्चों की पढ़ाई पर कम और दिखावे पर ज्यादा ध्यान देता है क्योंकि इससे उन्हें आय होती है। लेकिन हां 5 या 6 साल का बच्चा होते होते उसके लिए अच्छे विद्यालय का चयन कर लेना चाहिए। इसलिए आपको जरूर सजग रहकर यह ध्यान रखना चाहिए कि 5 साल के बच्चे को कैसे पढ़ाएं या फिर 6 साल के बच्चे को कैसे पढ़ाना चाहिए और इनके लिए कौन सा विद्यालय सर्वोत्तम होगा। यह भी पढ़ें, राजस्थान महात्मा गांधी गवर्नमेंट स्कूल इंग्लिश मीडियम में अपने बच्चे को प्रवेश दिलाएं। 2 साल के बच्चों को कैसे पढ़ना सिखाएं?2-3 साल के बच्चों को लिखना कैसे सिखाएं / Nursery के बच्चों को लिखना कैसे सिखाएं /kids colouring fun. अपने बच्चे को लिखना कैसे सिखाए I How to Start writing . Video For Good Pencil Grepping.
बच्चे को कितने साल से पढ़ाना चाहिए?सेंट्रल स्कूलों में पहली कक्षा में प्रवेश के लिए इस सत्र से बच्चों की उम्र को बढ़ा दिया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत कक्षा पहली में पंजीयन के लिए सत्र 2022-23 से बच्चे की उम्र 6 साल कर दी गई है. पिछले साल तक प्रवेश के लिए यह आयु सीमा पांच साल थी। नियम अनुसार एक मार्च 2022 तक उम्र छह साल पूरी होनी चाहिए।
बच्चे को क्या सिखाना चाहिए?घर पर सिखाएं ये चीजें
अक्सर हमने देखा है कि माता-पिता अपने बच्चों को स्कूलिंग के पहले अल्फाबेट्स और गिनती सिखाते हैं. यह सिखाने से पहले बच्चों को बॉडी पार्ट्स, शेप, कलर और जानवरों के नाम, बर्ड्स नेम सिखाएं. जिससे बच्चे स्कूल में एकदम ब्लैंक ना हों.
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