April 17, 2021 Show (A) तमिलनाडु Question Asked : Delhi Forest Guard Exam 2021 Answer : महाराष्ट्रExplanation : वर्ष 1940 में भारत के महाराष्ट्र राज्य में वारली विद्रोह हुआ था। वारली आदिवासी विद्रोह वर्ष 1940 में महाराष्ट्र के ठाणे में हुआ था। वारली आदिवासी महाराष्ट्र और गुजरात के सीमा के तटीय क्षेत्रों और आसपास में निवास करते थे। इस विद्रोह के माध्यम से व्यापक बंधुआ मजदूरी और शादी कर गुलाम बनाने की सामंती व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया गया था।....अगला सवाल पढ़े Useful for : UPSC, State PSC, IBPS, SSC, Railway, NDA, Police Exams Latest QuestionsI’m a freelance professional with over 10 years' experience writing and editing, as well as graphic design for print and web. मुंडा आदिवासीयों ने 18वीं सदी से लेकर 20वीं सदी तक कई बार अंग्रेजी सरकार और भारतीय शासकों, जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किये। बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 19वीं सदी के आखिरी दशक में किया गया मुंडा विद्रोह उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनजातीय आंदोलनों में से एक है।[1] इसे उलगुलान(महान हलचल) नाम से भी जाना जाता है। मुंडा विद्रोह झारखण्ड का सबसे बड़ा और अंतिम रक्ताप्लावित जनजातीय विप्लव था, जिसमे हजारों की संख्या में मुंडा आदिवासी शहीद हुए।[2] मशहूर समाजशास्त्री और मानव विज्ञानी कुमार सुरेश सिंह ने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन पर 'बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन' नाम से बडी महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है।[3] विद्रोह की पृष्ठभूमि[संपादित करें]बिरसा मुंडा ने मुंडा आदिवासियों के बीच अंग्रेजी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लोगों को जागरूक करना शुरू किया। जब सरकार द्वारा उन्हें रोका गया और गिरफ्तार कर लिया तो उन्होंने धार्मिक उपदेशों के बहाने आदिवासियों में राजनीतिक चेतना फैलाना शुरू किया। वह स्वयं को भगवान कहने लग गया। उसने मुंडा समुदाय में धर्म व समाज सुधार के कार्यक्रम शुरू किये और तमाम कुरीतियों से मुक्ति का प्रण लिया। विद्रोह और उसके बाद[संपादित करें]1898 में डोम्बरी पहाडियों पर मुंडाओं की विशाल सभा हुई, जिसमें आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार हुई। आदिवासियों के बीच राजनीतिक चेतना फैलाने का काम चलता रहा। अंत में 24 दिसम्बर 1899 को बिरसापंथियों ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड दिया। 5 जनवरी 1900 तक पूरे मंडा अंचल में विद्रोह की चिंगारियां फैल गई। ब्रिटिश फौज ने आंदोलन का दमन शुरू कर दिया। 9 जनवरी 1900 का दिन मुंडा इतिहास में अमर हो गया जब डोम्बार पहाडी पर अंग्रेजों से लडते हुए सैंकडों मुंडाओं ने शहादत दी। आंदोलन लगभग समाप्त हो गया। गिरफ्तार किये गए मुंडाओं पर मुकदमे चलाए गए जिसमें एक को फांसी, 39 को आजीवन कारावास, 23 को चौदह वर्ष की सजा हुई। बिरसा की गिरफ्तारी और अंत[संपादित करें]बिरसा मुंडा काफी समय तक तो पुलिस की पकड़ में नहीं आये थे, लेकिन एक स्थानीय गद्दार की वजह से 3 मार्च 1900 को गिरफ्तार हो गए। लगातार जंगलों में भूखे-प्यासे भटकने की वजह से वह कमजोर हो चुके थे। जेल में उन्हे हैंजा हो गया और 9 जून 1900 को रांची जेल में उनकी मृत्यु. हो गई। लेकिन जैसा कि बिरसा कहते थे, आदमी को मारा जा सकता है, उसके विचारों को नहीं, बिरसा के विचार मुंडाओं और पूरी आदिवासी कौम को संघर्ष की राह दिखाते रहे। आज भी आदिवासियों के लिए बिरसा का सबसे बड़ा स्था्न है। बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर रांची कारागार ले जाया गया इन्हें भी देखें[संपादित करें]
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