जल के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। जाने कब से हम पानी बचाने की बात करते आ रहे हैं लेकिन अब तक हम वास्तव में पानी के भविष्य के प्रति
उदासीन ही हैं। जल के दिन-प्रतिदिन अत्यधिक दोहन से जल का संकट गहराता जा रहा है। आज भारत ही नहीं अपितु विश्व के अधिकतर देश जल संकट की समस्या का सामना कर रहे हैं। यों तो विश्व के क्षेत्रफल का 70 प्रतिशत भाग जल से ही भरा हुआ है लेकिन इसका लगभग 2.0 प्रतिशत भाग ही मानव उपयोग के लायक है। शेष जल नमकीन (लवणीय) होने के कारण न तो मानव द्वारा निजी उपयोग में लाया जा सकता है और न ही इससे कृषि कार्य हो सकते हैं। उपयोग हेतु 2.0 प्रतिशत जल में से 1 प्रतिशत जल ठण्डे क्षेत्रों में हिम अवस्था में है। इसमें से भी
0.5 प्रतिशत जल नमी के रूप में अथवा भूमिगत जलाशयों के रूप में है, जिसका उपयोग विशेष तकनीक के बिना सम्भव ही नहीं है। इस प्रकार कुल प्रयोज्य जल का मात्र 1 प्रतिशत जल ही मानव के उपयोग हेतु बचता है। इसी 1 प्रतिशत जल से विश्व के 70 प्रतिशत कृषि क्षेत्र की सिंचाई होती है तथा विश्व की 80 प्रतिशत आबादी को अपने दैनिक क्रिया-कलापों तथा पीने के लिये निर्भर रहना पड़ता है। इससे ही बड़े उद्योग तथा कल-कारखाने भी अपना हिस्सा प्राप्त करते हैं। आजकल औद्योगीकरण व नगरीकरण के कारण जल प्रदूषण की समस्या व जनसंख्या वृद्धि तथा पानी की खपत बढ़ने के कारण दिन-प्रतिदिन जल चक्र असन्तुलित होता जा रहा है। भारत में जल संकट की स्थितिप्राचीन समय से पानी के लिहाज से सबसे अधिक समृद्ध क्षेत्र भारतीय उपमहाद्वीप को ही समझा जाता था। लेकिन आज स्थिति यह हो गई है कि विश्व के अन्य देशों की तरह भारत में भी जल संकट की समस्या उत्पन्न हो गई है। यह सचमुच बहुत बड़ी विडम्बना है कि जिस ग्रह का 70 प्रतिशत हिस्सा पानी से घिरा हो, वहाँ आज स्वच्छ जल की उपलब्धता एक बड़ा प्रश्न बन गई है। भारत में तीव्र नगरीकरण से तालाब और झील जैसे परम्परागत जलस्रोत सूख गए हैं। उत्तर प्रदेश में 36 जिले ऐसे हैं, जहाँ भूजल स्तर में हर साल 20 सेन्टीमीटर से ज्यादा की गिरावट आ रही है। उत्तर प्रदेश के इन विभिन्न जनपदों में प्रतिवर्ष तालाबों (पोखरों) का सूख जाना, भूजल स्तर का नीचे जाना, बंगलुरु में 260 जलाशयों में से 101 का सूख जाना, दक्षिणी दिल्ली क्षेत्र में भूमिगत जलस्तर काफी नीचे चला जाना, चेन्नई और उसके आस-पास के क्षेत्रों में प्रतिवर्ष 4 से 6 मीटर भूमिगत जलस्तर में कमी, जल संकट की गम्भीर स्थिति की ओर ही संकेत करते हैं। केन्द्रीय भूजल बोर्ड द्वारा विभिन्न राज्यों में कराए गए सर्वेक्षण से भी यही साबित होता है कि इन राज्यों के भूजल स्तर में 20 सेन्टीमीटर प्रतिवर्ष की दर से गिरावट आ रही है। एक अनुमान के अनुसार भारत के 10 बड़े प्रमुख शहरों में कुल पेयजल की माँग 14,000 करोड़ लीटर के लगभग है, परन्तु उन्हें मात्र 10,000 करोड़ लीटर जल ही प्राप्त हो पाता है। भारत में वर्तमान में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल की उपलब्धता 2,000 घनमीटर है, लेकिन यदि परिस्थितियाँ इसी प्रकार रही तो अनुमानतः अगले 20-25 वर्षों में जल की यह उपलब्धता घटकर मात्र 1,500 घनमीटर ही रह जाएगी। जल की उपलब्धता का 1,680 घनमीटर से कम रह जाने का अर्थ है पीने के पानी से लेकर अन्य दैनिक उपयोग तक के लिये जल की कमी हो जाना। इसी के साथ सिंचाई के लिये पानी की उपलब्धता न रहने पर खाद्य संकट भी उत्पन्न हो सकता है। जिम्मेदार कारकजल संकट की समस्या कोई ऐसी समस्या नहीं है जो मात्र एक दिन में ही उत्पन्न हो गई हो, बल्कि धीरे-धीरे उत्पन्न हुई इस समस्या ने आज विकराल रूप धारण कर लिया है। इस समस्या ने आज भारत सहित विश्व के अनेक देशों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। जल संकट का अर्थ केवल इतना ही नहीं है कि लगातार दोहन के कारण भूजल स्तर सतत गिर रहा है, बल्कि जल में शामिल होता घातक रासायनिक प्रदूषक व फिजूलखर्ची की आदत जैसे अनेक कारक हैं, जो सभी लोगों को आसानी से प्राप्त होने वाले जल की प्राप्ति के मार्ग में बाधाएँ खड़ी कर रहे हैं।जल संकट के समाधान हेतु किए गए प्रयास1. राष्ट्रीय जल नीति, 1987 जल संसाधनों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिये व जल संकट को दूर करने के उद्देश्य से निम्न योजनाएँ भी चलाई जा रही हैं : गंगा कार्ययोजना (1985), यमुना कार्ययोजना, राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्ययोजना (1995), राष्ट्रीय झील संरक्षण कार्ययोजना आदि। 2. राष्ट्रीय जल नीति, 2002 3. राष्ट्रीय जल बोर्ड 4. राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय (एनआरसीडी) 5. भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण की सलाहकार परिषद 6. गहरे कुओं के जरिये भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण की योजना 7. भूमि जल संवर्धन पुरस्कार और राष्ट्रीय जल पुरस्कार 8. मिशन क्लीन गंगा 9. जल संचयन एवं संवर्धन परियोजना 10. जल संकट के समाधान हेतु सुझाव 2. विद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तर पर समय-समय पर जल संकट जैसे ज्वलंत विषयों पर राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय कार्यशालाओं का आयोजन अनिवार्य रूप से कराया जाना चाहिए। 3. वाराणसी शहर में गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिये बीएचयू प्रौद्योगिकी संस्थान, वाराणसी के छात्रों द्वारा जिस प्रकार से नगरीय स्तर पर गंगा नदी की साफ-सफाई का अभियान चलाया गया है ठीक उसी प्रकार के अभियान विभिन्न विद्यालयों व विश्वविद्यालयों के छात्रों द्वारा अन्य स्थानों पर भी शुरू किए जाने चाहिए। 4. विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में प्रत्येक वर्ष जल संकट को कम करने में सहयोग देने वाले शिक्षकों व विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए ताकि अन्य लोग भी इस समस्या के प्रति जागरूक हो सकें व जल संकट को दूर करने में सहयोग प्रदान कर सकें। 5. शैक्षिक रेडियो के माध्यम से समय-समय पर जल संकट को कम करने के सुझावों से सम्बन्धित कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाना चाहिए। 6. शैक्षिक दूरदर्शन पर जल संकट के कारण निकट भविष्य में उत्पन्न होने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओं व उनसे बचाव सम्बन्धित लघु नाटिका व डाॅक्यूमेंटरी फिल्म आदि का प्रसारण किया जाना चाहिए। 7. जल संकट के समाधान व भूजल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये वर्षाजल संचयन के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। क्योंकि यह इस समस्या का बहुत ही सरल व सस्ता उपाय है। 8. बड़ी नदियों की नियमित रूप से सफाई की जानी चाहिए क्योंकि बड़ी नदियों के जल का शोधन करके उसे पेयजल के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। 9. अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाए जाने चाहिए तथा वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देना चाहिए। 10. तालाबों, नदियों अथवा समुद्र में कचरा व अन्य रासायनिक पदार्थ नहीं फेंकने चाहिए। 11. माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा तालाबों के अतिक्रमण के सम्बन्ध में पारित आदेश का क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा गम्भीरता से कराया जाना चाहिए जिससे जलाशयों का अस्तित्व बचा रहे और जल संरक्षण किया जा सके। 12. घर की छत पर वर्षाजल एकत्र करने के लिये एक या दो टंकी बनाकर उन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढककर जल संरक्षण किया जा सकता है। इसी प्रकार जल संरक्षण की अन्य सरल विधियों का प्रयोग करके जल संकट की समस्या का समाधान किया जा सकता है। सम्पर्क : डाॅ. आदिनाथ मिश्र |