1. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के क्या कारण थे?

Solution : ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गांधी जी के नेतृत्व में 1930 ई. में छेड़ा गया सविनय अवज्ञा आंदोलन दूसरा ऐसा जन आंदोलन था जिसका सामाजिक आधार काफी व्यापक था ।असहयोग आंदोलन की समाप्ति के पश्चात भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक शून्यता स्थिति पैदा हो गई थी। परंतु इसी बीच कुछ ऐसे घटनाक्रम की पुनरावृत्ति हुई जिसने मृतप्राय राष्ट्रवाद को एक नया जीवन प्रदान किया। <br> सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों को निम्नलिखित रुप से देख सकते हैं : <br> (i) साइमन कमीशन की नियुक्ति- 1919 ई. के एक्ट को पारित करते समय सरकार ने यह घोषणा की थी कि 10 वर्षों पश्चात पुनः सुधारों की समीक्षा होगी। परंतु समय से पूर्व भी नवंबर 1927ई. में साइमन कमीशन की नियुक्ति हुई जिसके सारे सदस्य अंग्रेज थे।इस कमीशन का उद्देश्य संवैधानिक सुधारों के प्रश्न पर विचार करना था। कमीशन में एक भी सदस्य भारतीय नहीं था। भारत में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। प्रदर्शनकारियों ने साइमन वापस जाओ का नारा बुलंद किया। इस प्रकार साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन ने तत्कालिक रूप मैं एक व्यापक राजनीतिक संघर्ष को जन्म दिया।<br> (ii) नेहरू रिपोर्ट - साइमन कमीशन के बहिष्कार के समय तत्कालीन भारतीय सचिव ने भारतीयों को एक ऐसे संविधान के निर्माण की चुनौती दी जो सभी दलों एवं गुटों को मानने हो। कांग्रेस ने फरवरी, 1988 में दिल्ली में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया था।इस सम्मेलन में मोतीलाल नेहरू को अध्यक्ष बनाया गया। इस समिति ने ब्रिटिश सरकार से डोमिनियन स्टेट की दर्जा देने की मांग की जिससे कांग्रेस का एक वर्ग असहमत था। यद्यपि नेहरू रिपोर्ट स्वीकृत नहीं हो सका लेकिन इसमें अनेक महत्वपूर्ण निर्णय को जन्म दिया। संप्रदायिकता की भावना जो अंदर थी अब उभर कर सामने आई। मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा दोनों ने इसे चलाने में सहयोग दिया। अतः गांधीजी ने इससे निपटने के लिए सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम प्रस्तुत किया। <br> (iii) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव - 1929-30 ई. की विश्वव्यापी मंदी का प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा पड़ा। मूल्य में बेतहाशा वृद्धि हुई। भारत का निर्यात कम हो गया। अनेक कारखाने बंद हो गए। पूरे देश का वातावरण सरकार के खिलाफ था। इस प्रकार सविनय अवज्ञा आंदोलन हेतु एक उपयुक्त अवसर दिखाई पड़ रहा था। <br> (iv) समाजवाद का बढ़ता प्रभाव - समाजवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण वामपंथी दबाव को संतुलित करने हेतु एक आंदोलन के एक नए कार्यक्रम की आवश्यकता थी। <br> (v) क्रांतिकारी आंदोलन का उभार - देश में क्रांतिकारी आंदोलन विस्फोटक हो चली थी, ऐसे में देश के नव युवकों के लिए एक नई दिशा में पहल की आवश्यकता थी। <br> (vi) पूर्ण स्वराज की मांग दिसंबर 1929 ई. के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की गई।26 जनवरी 1930 ई. को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की गई। इस प्रकार पूरे देश के में उत्साह की एक नई लहर जागृत हुई। गांधी जी का नहीं मिलेगी। इसलिए हम ब्रिटिश सरकार से यथासंभव शिक्षा कौन किसी भी प्रकार का सहयोग न करने की तैयारी करेंगे और सविनय अवज्ञा एवं कर बंदी तक के साथ सजाएंगे। <br> (vii) गांधीजी का समझौता वादी रुख- आंदोलन आरंभ करने से पूर्व गांधी ने वायसराय इरविन के समक्ष अपनी 11 सूत्री मांग को रखा और सरकार द्वारा इसे पूरा किए जाने की स्थिति में प्रस्तावित आंदोलन को स्थगित करने की बात कही। इरविन ने गांधी से मिलने से भी इंकार कर दिया इस बीच सरकार का दमन चक्र और भी तेज हो गया। अथवा दे होकर गांधी ने अपना आंदोलन दांडी मार्च से प्रारंभ करने का निश्चय किया।

जानें सविनय अवज्ञा आन्दोलन के बारे में

महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की गयी जिसका प्रारंभ गाँधी जी के प्रसिद्ध दांडी मार्च से हुआ| 12 मार्च, 1930 में साबरमती आश्रम से गाँधी जी और आश्रम के 78 अन्य सदस्यों ने दांडी, अहमदाबाद से 241 मील दूर स्थित भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एक गाँव, के लिए पैदल यात्रा आरम्भ की|

1. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के क्या कारण थे?

1. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के क्या कारण थे?

Civil Disobedience Movement

1930 में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की गयी जिसका प्रारंभ गाँधी जी के प्रसिद्ध दांडी मार्च से हुआ| 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से गाँधी जी और आश्रम के 78 अन्य सदस्यों ने दांडी, अहमदाबाद से 241 मील दूर स्थित भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एक गाँव, के लिए पैदल यात्रा आरम्भ की|

वे 6 अप्रैल ,1930 को दांडी पहुंचे,जहाँ उन्होंने नमक कानून तोड़ा| उस समय किसी के द्वारा नमक बनाना गैर क़ानूनी था क्योंकि इस पर सरकार का एकाधिकार था| गाँधी जी ने समुद्री जल के वाष्पीकरण से बने नमक को मुट्ठी में उठाकर सरकार की अवज्ञा की| नमक कानून की अवज्ञा के साथ ही पूरे देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रसार हो गया|

इस आन्दोलन के प्रथम चरण में नमक बनाने की घटनाएँ पूरे देश में घटित हुई और नमक बनाना लोगों द्वारा सरकारी अवज्ञा का प्रतीक बन गया| तमिलनाडु में सी.राजगोपालाचारी ने दांडी मार्च जैसे ही एक मार्च का आयोजन तिरुचिरापल्ली से वेदारंयम तक किया| प्रसिद्ध कवयित्री सरोजिनी नायडू,जो कांग्रेस की महत्वपूर्ण नेता थी और कांग्रेस की अध्यक्ष भी रही थी, ने सरकार के धरसना (गुजरात) स्थित नमक कारखाने पर अहिंसक सत्याग्रहियों के मार्च का नेतृत्व किया| सरकार द्वरा बर्बरतापूर्वक किये गए लाठी चार्ज में 300 से अधिक लोग घायल हुए और दो लोगों की मौत हो गयी| धरना, हड़ताल व विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और बाद में कर देने से भी मना कर दिया गया| महिलाओं की बड़ी संख्या सहित लाखों लोगों ने इस आन्दोलन में भाग लिया था|

भारत छोड़ो आंदोलन क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है?

साइमन आयोग द्वारा प्रस्तावित सुधारों पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा नवम्बर 1930 लन्दन में प्रथम गोलमेज सम्मलेन का आयोजन किया गया| कांग्रेस,जो उस समय देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रही थी ने इसका बहिष्कार किया. इसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए इस कारण इस सम्मलेन का कोई निष्कर्ष नहीं निकला| ब्रिटिश सरकार जानती थी कि कांग्रेस की भागीदारी के बिना कोई भी संवैधानिक बदलाव भारतीय लोगों द्वारा स्वीकृत नहीं होगा|

वायसराय लॉर्ड इरविन के द्वारा वर्ष 1931 में कांग्रेस को द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने के लिए तैयार करने हेतु प्रयास आरम्भ किये गए| अंततः गाँधी और लॉर्ड इरविन के बीच एक समझौता हुआ जिसके तहत सरकार उन सभी राजनीतिक कैदियों को छोड़ने के लिए तैयार हो गयी जिनके खिलाफ हिंसा का कोई मुक़दमा दर्ज नहीं था और सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित करने के लिए भी  तैयार  हो गयी थी| अनेक राष्ट्रवादी नेता इस समझौते से खुश नहीं थे|

मार्च 1931 में करांची में वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में इस समझौते को कांग्रेस द्वारा अनुमोदित कर दिया गया और कांग्रेस ने द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में भाग लिया| सितम्बर 1931 में हुए इस सम्मलेन में भाग लेने के लिए कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में गाँधी जी को चुना गया |

कांग्रेस के करांची अधिवेशन में मूल अधिकारों व आर्थिक नीति से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया गया| इसने देश में व्याप्त सामाजिक व आर्थिक समस्याओं से सम्बंधित राष्ट्रवादी आन्दोलन की नीति को निर्माण किया| इसमें उन मूल अधिकारों का वर्णन था जिन्हें जाति व धर्म के भेदभाव के बिना सभी लोगों को प्रदान किया जायेगा| साथ ही कुछ उद्योगों के राष्ट्रीयकरण,भारतीय उद्योगों के प्रोत्साहन और कामगारों व कृषकों के कल्याण हेतु योजनाओं का भी इसमें समर्थन किया गया था|

इस प्रस्ताव ने राष्ट्रीय आन्दोलन पर समाजवादी विचारों के बढते प्रभाव को प्रदर्शित किया| गाँधी जी,जो कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि थे,के अलावा कुछ अन्य भारतीय भी थे जिन्होंने इस सम्मलेन में भाग लिया था| इनमे भारतीय रजवाड़े, हिन्दू, मुस्लिम और सिक्ख सांप्रदायिक नेता शामिल थे| ये नेता ब्रिटिशों के हाथों की कठपुतली मात्र थे| रजवाड़े मुख्यतः शासकों के रूप में अपनी हितों को सुरक्षित करने में रूचि रखते थे|

सम्मलेन में भाग लेने के लिए सांप्रदायिक नेताओं का चयन ब्रिटिश शासकों ने किया था| उन्होंने दावा किया कि वे अपने अपने समुदायों के प्रतिनिधि है न की देश के,हालाँकि उनके अपने ही समुदाय में उनका प्रभाव बहुत सीमित था| कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में गाँधी जी ने पूरे देश का प्रतिनिधित्व किया| न तो रजवाड़े और न ही सांप्रदायिक नेता भारत की स्वतंत्रता में रूचि रखते थे| इसी कारण द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में कोई समझौता नहीं हो सका और उसे असफल घोषित कर दिया गया|

गाँधी जी ने भारत वापस लौटकर सविनय अवज्ञा आन्दोलन को पुनः आरम्भ किया| सरकार का दमन, सम्मलेन चलने के दौरान भी जारी रहा और अब तो यह और भी ज्यादा तेज हो गया था| गाँधी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया| सरकार द्वरा किये दमन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लगभग एक साल में 120000 लोगों को जेल में डाल दिया गया था|

आन्दोलन को 1934 में वापस ले लिया गया| कांग्रेस ने 1934 में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया जिसमे यह मांग की गयी कि लोगों द्वारा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित संवैधानिक सभा आहूत की जाये| इसमें घोषित  किया गया कि केवल ऐसी ही कोई सभा भारत के लिए संविधान का निर्माण कर सकती है| इसमें यह भी कहा गया कि सिर्फ लोगों को ही यह तय करने का अधिकार है कि वे किस प्रकार की सरकार के तहत रहना चाहते हैं| हालाँकि कांग्रेस अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हुई लेकिन वह देश के दूसरे सबसे बड़े जन-आन्दोलन में लोगों के एक वर्ग को शामिल करने में सफल रही| इसने भारतीय समाज में बदलाव लाने के लिए क्रांतिकारी लक्ष्यों को भी स्वीकार किया|

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रभाव

• इसने ब्रिटिश सरकार के प्रति जन आस्था को हिला दिया और स्वतंत्रता आन्दोलन की सामाजिक जड़ों को स्थापित किया,साथ ही प्रभात फेरी और पर्चे बांटने जैसे प्रचार के नए तरीकों को ख्याति दिलाई|

• इसने ब्रिटिशों की दमनकारी नमक नीति को समाप्त किया.

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1 सविनय अवज्ञा आन्दोलन के क्या कारण थे इसके क्या परिणाम रहे?

समुद्र के पानी के वाष्पीकरण के बाद बने नमक को उठाकर गाँधीजी ने सरकारी कानून को तोड़ा। नमक के उत्पादन पर सरकार का एकाधिकार था, इसलिए किसी के लिए भी नमक बनाना गैर-कानूनी था। नमक कानून को तोड़ने के बाद सारे देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ।

13 सविनय अवज्ञा आन्दोलन के क्या कारण थे?

सविनय अवज्ञा आंदोलन को शुरू करने के कारण के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:.
साइमन आयोग से उत्पन्न निराशा जिसने भारतीयों को कोई विशेष राजनीतिक अधिकार नहीं दिये।.
ब्रिटिश सरकार ने नेहरू रिपोर्ट में की गई डोमिनियन स्टेटस की मांग को स्वीकार नहीं किया।.

सविनय अवज्ञा आंदोलन कब और क्यों हुआ था?

Solution : अत्यधिक महंगाई से उत्पन्न अराजक स्थिति के बीच अंग्रेजों द्वारा नमक कानून लागू करने से जनता में आक्रोश व्याप्त था। गाँधी जी ने आन्दोलन को हिंसात्मक होने से बचाने और सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से डांडी यात्रा के द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। यह 1930 से 1934 ई. तक चला।

सविनय अवज्ञा आंदोलन से आप क्या समझते हैं?

अंततः 1930 ई. में कांग्रेस की कार्यकारिणी ने महात्मा गाँधी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने का अधिकार प्रदान किया. सविनय अवज्ञा आन्दोलन (Civil Disobedience Movement) की शुरुआत नमक कानून के उल्लंघन से हुई. उन्होंने समुद्र तट के एक गाँव दांडी (Dandi, Gujarat) जाकर नमक कानून को तोड़ा.