अबकी बार लौटा तो Show
अबकी बार लौटा तो बृहत्तर लौटूँगा चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं कमर में बाँधे लोहे की पूँछे नहीं जगह दूँगा साथ चल रहे लोगों को तरेर कर न देखूँगा उन्हें भूखी शेर-आँखों से अबकी अगर लौटा तो मनुष्यतर लौटूँगा घर से निकलते सड़कों पर चलते बसों पर चढ़ते ट्रेनें पकड़ते जगह बेजगह कुचला पड़ा पिद्दी-सा जानवर नहीं अगर बचा रहा तो कृतज्ञतर लौटूँगा अबकी बार लौटा तो हताहत नहीं सबके हिताहित को सोचता पूर्णतर लौटूँगा
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Additional information availableClick on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher. Don’t remind me again OKAY rare Unpublished contentThis ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left. Don’t remind me again OKAY इस कविता के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? इस कविता के माध्यम से कवि ने आजादी के महत्त्व को बतलाने का प्रयास किया है। इसमें कवि ने बताने का प्रयास किया है कि आजादी के साथ आने वाली जिम्मेदारियों का अहसास हमें होना चाहिए। स्वतंत्र होना सभी को अच्छा लगता है लेकिन स्वतंत्रता का सही उपयोग कम ही लोग कर पाते हैं। इतना ही नहीं आज़ाद होने पर व्यक्ति को आत्मनिर्भर होना पड़ता है। आज़ादी पाने के बाद हमें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर आश्रित नहीं रहा जा सकता। अतः आजादी के बाद आत्मनिर्भर होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त अपनी आज़ादी को बनाए रखने के लिए कोशिश करते रहना पड़ता है। भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए अबकी बार लौटा तो / कुंवर नारायणKavita Kosh से
कुंवर नारायण »
अबकी बार लौटा तो अबकी बार लौटा तो अगर बचा रहा तो अबकी बार लौटा तो Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 पद्य खण्ड Chapter 8 एक वृक्ष की हत्या Text Book Questions and Answers, Summary, Notes. Bihar Board Class 10 Hindi एक वृक्ष की हत्या Text Book Questions and Answersकविता के साथ प्रश्न 1. प्रश्न
2. कवि इसका उत्तर देता-मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। इसी संवाद के साथ वह उसके निकट बैठकर भविष्य में आने वाले पर्यावरण संबंधी खतरों की अंदेशा करता है। प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. (ख) प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि भविष्य में आने वाले प्राकृतिक संकट, मानवीयता पर खतरा एवं ह्रास होते सभ्यता की ओर ध्यानाकर्षण कराते हुए भावी आशंका को व्यक्त किये हैं। साथ ही इन सबकी रक्षा संरक्षण एवं विकास हेतु चिंतनशील होने पर बल दिया है। प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि अगर हम इस अंधाधुंध विकास क्रम में विवेक से काम नहीं लेंगे तो वृक्ष कटते रहेंगे और भविष्य में जंगल मरुस्थल का रूप ले लेगा। साथ ही मानवता की सभ्यता की रक्षा के प्रति सचेत नहीं होंगे तो मानव भी जंगल का रूप ले सकता है। मानवीयता पशुता में परिवर्तित हो सकता है। मानव दानवी प्रवृत्ति अपनाता दिख रहा है और इस बढ़ते प्रवृत्ति को रोकना आवश्यक होगा। कवि मानवीयता स्थापित करने हेतु चिंतनशील है, सभ्यता की सुरक्षा हेतु प्रयत्नशील होने की प्रेरणा दे रहे हैं। साथ ही पर्यावरण संरक्षण हेतु सजग करने की शिक्षा दे रहे हैं। प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. लेकिन एक डर था। हुआ भी वही। गफलत हुई या नादानी कहें पेड़ कट गया। किन्तु यह सिलसिला रहा तो और भी बहुत कुछ होगा। अब सचेत रहना है। घर को बचाना होगा लूटेरों से, शहर को बचाना होगा हत्यारों से, देश को बनाना होगा देश के दुश्मनों से। इतना ही नहीं खतरे और भी हैं। नदियों को नाला बनाने से बचाना होगा, उसमें डाले जानेवाले कचरों और रसायनों को रोकना होगा। वृक्षों को काटने से जो हवा में धुआँ बढ़ता जा रहा है, उसे रोकना होगा और जमीन में रासायनिक उर्वरकों को डालने से रोकना ताकि अनाज जहर न बनें। दरअसल, जंगल को रेगिस्तान नहीं बनने देना होगा। जंगल रेगिस्तान बने कि आफत आई। किन्तु सोचना होगा कि क्यों कर रहा है मनुष्य यह सब? मनुष्य की सोच में जो खोट पैदा हो गयी है, जिससे ये समस्याएँ पैदा हुई हैं उस खोट को निकालना होगा। मनुष्य को जंगली बनने से रोकना होगा, उसे सही अर्थों में मनुष्य बनाना होगा, तभी मानवता बचेगी। भाषा की बात प्रश्न
1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 1. अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था प्रश्न (ख) प्रसग-हिन्दी काव्य धारा के सुप्रसिद्ध कवि कुँवर नारायण ने प्रस्तुत कविता ‘एक वृक्ष की हत्या’ के इस अंश में पर्यावरण की व्यवस्था पर उठते अनेक सवालों की ओर प्रबुद्ध वर्गों को आकर्षित किया है। यहाँ कवि कहना चाहते हैं कि आज प्रबुद्ध वर्ग ही क्षणभंगुर, स्वार्थपरता की लोलुपता में वृक्षों को काटकर शाश्वतता के साथ खिलवाड़ कर रहा है। (ग) सरलार्थ-कवि पूर्ण रूप से संवेदनशील हैं अत: ‘एक वृक्ष की हत्या’ के बहाने मनुष्य और सभ्यता के विनाश की ओर ध्यानाकर्षित करते हुए कहते हैं कि.मेरे घर के बाहर ठीक दरवाजे के सामने एक विशाल छायादार वृक्ष था। कुछ दिनों के बाद जब मैं अबकी बार घर लौटा तो देखा कि उस.वृक्ष को काट दिया गया है। वह बूढा वृक्ष चौकीदार के समान घर के दरवाजे पर तैयार रहता था। वह वृक्ष इतना बूढ़ा और पुराना हो गया था कि उसके तने के बाहरी भाग बिल्कुल काले पड़ गये थे, जैसे लगता था कि वह चौकीदार सख्त और पुराने चमड़े धारण करके खड़ा रहता है। जहाँ-तहाँ वृक्ष के तने में ऊबड़-खाबड़, ऊँच-नीच की स्थितियाँ उत्पन्न हो गयी थीं। कई डालियाँ सूख गयी थीं तो लगता था कि वह बूढ़े वृक्ष के शरीर से झुर्रियाँ लटक रही हैं और कंधे पर राइफल लेकर रखवाली कर रहा है। उसकी ऊँची टहनी पर सुन्दर-सुन्दर फूल के गुच्छे और हरे-हरे पत्ते उसकी पगड़ी के रूप में सुशोभित होते थे। उसके पुराने जड़ फटे-पुराने जूते के समान लगते थे। जैसे लगता था उसके जड़ चरमरा रहे हैं, फिर भी विपरीत परिस्थितियों में शक्ति सामर्थ्य के साथ डटा रहने वाला था। प्रचण्ड गर्मी, मूसलाधार बारिश, कड़ाके की ठंड में हमेशा चौकन्ना रहकर पुराने छाल रूपी खाकी वरदी पहनकर डटा रहता था। (घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश का भाव यह है कि एक तुरन्त काटे गये वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंत:व्यथा को अभिव्यक्त करता है। मानव जो अपने आपको प्रबुद्ध वर्ग कहता है वही क्षणभंगुर स्वार्थ की लिप्सा में पड़कर शाश्वतता के साथ कैसा खतरनाक खिलवाड़ करता है। मानवीय संवेदनाओं और चिंताओं की अभिव्यक्ति अप्रत्यक्ष रूप में दिखाई पड़ती है। (ङ) काव्य सौंदर्य- 2. दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में प्रश्न (ख) प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कहा है कि पर्यावरण, सभ्यता, संस्कृति, राष्ट्र एवं मानवता के दुश्मन की आशंका हमेशा है। इनके दुश्मन हमारे बीच विद्यमान हैं और हमें उन्हें बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। इनकी रक्षा हेतु हमें आगे आना होगा। पर्यावरण की रक्षा करके या वृक्षों की रक्षा करके ही हम मनुष्य का बचा सकते हैं। इनके रक्षार्थ हमें इनके प्रति संवेदनशील होना होगा। (ग) सरलार्थ- प्रस्तुत पद्यांश में कवि कुँवर नारायण जी आने वाले पर्यावरण संकट की और ध्यानाकर्षण कराते हैं। घर को लुटेरों का खतरा होता है। शहर को नादिरों से खतरा है। इन्हें बचाने की आवश्यकता है। देश को देश के दुश्मनों से रक्षा करने की आवश्यकता है। अर्थात् मनुष्यता और सभ्यता की रक्षा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए और इसके लिए हमें सचेत होना होगा। कवि आगे कहते हैं कि आने वाले दिनों में पर्यावरण प्रदूषण की खतरा मँडरा रहा है। हम वृक्ष का महत्व नहीं देते हैं और उसे बिना सोचे-समझे काट रहे हैं। वृक्ष, पौधे, वनस्पतियों के बचाव से मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा हो सकती है। हमें नदियों को नाला होने से, हवा को धुआँ होने से, खाने को जहर होने से, जंगल को मरुस्थल होने से एवं मनुष्य को जंगल होने से बचाना होगा। इस बचाव कार्य के सदुपायों पर चिंतन करते हुए पर्यावरण, सभ्यता एवं मनुष्यता की हर हाल में रक्षा करनी होगी। इसके लिए वृक्ष की महत्ता को समझना होगा। उसकी हत्या नहीं करनी होगी। (घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश में कवि समस्त प्रबुद्ध वर्गों के लिए गंभीर चिंता का सवाल खड़ा कर दिया है। यह पद्यांश आज के समय की अपरिहार्य चिंताओं और संवेदनाओं का रचनात्मक बोध कराता है। सहजता और स्वाभाविकता की अंत:कलह कासे पर्यावरण की सुरक्षा की ओर अग्रसर करता है। केवल कोरे कागज पर या खोखले नारेबाजी से पर्यावरण की सुरक्षा का चिंतन करने के बजाय प्रयोगवादी धरातल पर अंजाम देने की आवश्यकता पर कवि जोर दिया है। यदि प्रबुद्ध वर्ग ऐसा नहीं करता है तो शाश्वता के कोपभाजन का शिकार उसे निश्चित रूप से होना पड़ेगा। (ङ) काव्य-सौंदर्य- वस्तुनिष्ठ प्रश्न I. सही विकल्प चुनें प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. व्याख्या खण्ड प्रश्न
1. व्याख्या- बहुत दिनों के बाद जब कवि घर यानी अपने गाँव लौटा तो उसे बड़ा अचरज हुआ। कवि के घर के दरवाजे पर चौकीदार के रूप में तैनात जो बूढ़ा वृक्ष था, वह नहीं था। वृक्ष की हत्या हो चुकी थी। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि वृक्ष के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करता है। उसकी उस वृक्ष के साथ आत्मीयता बढ़ गयी थी। वृक्ष घर का चौकीदार था। वह बूढ़ा हो चुका था। आज उसका नहीं होना कवि के लिए पीडादायक था। एक बूढ़े वृक्ष की हत्या के माध्यम से कवि ने मानवीय जीवन की विसंगतियों पर भी सम्यक् प्रकाश डाला है। आज मनुष्य कितना क्रूर और निष्ठुर बन गया है। अपनी ही जड़ें काटने लगता है। इस कविता में बूढ़े वृक्ष की हत्या यानी संस्कृति की हत्या, बुजुर्गों के प्रति अनादर और अनास्था का भाव परिलक्षित होता है। हम चौकीदार सदृश बूढ़े वृक्ष या घर के बूढ़े किसी का भी सम्मान और सद्व्यवहार नहीं कर रहे हैं। ऐसा क्या हो गया है। वृक्ष हमारी संस्कृति, सभ्यता, अभिभावक, चौकीदार आदि के प्रतीक के रूप में आया है। इन पंक्तियों में कवि ने एक वृक्ष को प्रतीक मानकर जो संवेदनात्मक भाव प्रकट किया है, वह वंदनीय है, प्रशंसनीय है। प्रश्न 2. कवि ने बूढ़े वृक्ष का मानवीकरण कर उसमें जीवंतता का दर्शन कराया है। जिस प्रकार बूढ़ा आदमी उम्र की ढलान पर अपने सौंदर्य को खो देता है, ठीक उसी प्रकार बूढ़े वृक्ष की भी स्थिति है। बूढ़े वृक्ष का शरीर सख्त हड्डियों का ढाँचा है। उसके छिलके पुराने चमड़े की तरह दिखते हैं। पूरे तन में पपड़ियाँ पड़ गयी हैं। चेहरे और सारे शरीर में झुर्रियाँ दिखायी पड़ती हैं। शरीर में खुरदुरापन आ गया है। पुराना हो जाने के कारण शरीर मैला-कुचैला-सा दिखता है। सौंदर्य खत्म हो चुका है। उसकी सूखी डाल राइफिल की तरह दिखती है। फूल और पत्तियों से युक्त पगड़ी पहने हुए वृक्ष का रंग-रूप लगता है मानो कोई चौकीदार सदेह खड़ा है। उसकी जड़ें फटी हुई हैं, दरकी हुई हैं-लगता है कि बूढ़े वृक्ष ने अपने पाँवों में फटा-पुराना जूता पहन रखा हो। वह जूता चरमर-चरमर करता है। वृक्ष ऐसे खड़ा है लगता है कि वह अक्खड़ता के साथ अपने . बल-बूते खड़ा है। उक्त काव्य पक्तियों में कवि ने बूढ़े वृक्ष का चित्रण एक बूढ़े झुरींदार खुरदरे चेहरेवाले, मैले-कुचैले कपड़े पहने मनुष्य से किया है। उसने वृक्ष को मानव के रूप में चित्रित कर उसकी उपयोगिता और महत्ता को सिद्ध किया है। बूढ़ा वृक्ष हमारे लिए घर का बूढ़ा अभिभावक है। उसकी उपयोगिता और जीवंतता हमारे लिए अत्यंत आवश्यक है। वह हमारी संस्कृति का, सभ्यता का, कर्तव्यनिष्ठता का, अभिभावक का, लोकहित का संरक्षण करता है, पोषण करता है, रक्षा करता है। अतः, वह बूढ़ा वृक्ष मात्र वृक्ष ही नहीं है वह पहरूआ है अभिभावक हैं, घर का चौकस समझदार और भरोसेमंद संरक्षक है। प्रश्न 3. कवि कहता है कि कोई भी मौसम हो, धूप अथवा बारिश हो, चाहे गर्मी या सर्दी का माह हो, बूढ़े वृक्ष को देखकर लगता है कि वह हमेशा सतर्कता के साथ, निडरता और तत्परता के साथ, खाकी-रूपी वर्दी में सबकी रखवाली में खड़ा है। कवि की ऐसी कल्पना से लगता है कि बूढा वृक्ष एक मामूली वृक्ष नहीं है। बल्कि वह युगों-युगों से हमारी सुरक्षा का प्रहरी है। हमारी संस्कृति का पोषक है। हर मौसम में एक विश्वसनीय, ईमानदार पहरेदार के रूप में हमारी रक्षा कर रहा है। प्रश्न 4. जब कभी कवि अपने घर लौटता था तो बूढ़ा वृक्ष दूर से ही ललकारते हुए पूछता था— ठहरो, बोलो तुम कौन हो? कवि जवाब देता था मैं तुम्हारा दोस्त ! तब कवि घर की ओर पग बढ़ाता था। यहाँ मानवीय संबंधों, पहरेदार के रूप में अपनी कर्त्तव्यनिष्ठता के प्रति दृढ रहने कवि और बूढ़े वृक्ष के बीच के आत्मीय संबंधों आदि का पता चलता है। कवि की कल्पना ने बूढ़े वृक्ष को अभिभावक, चौकीदार पहरूओ के रूप में चित्रित कर मानवीयता प्रदान किया है। यहाँ बूढ़ा वृक्ष निर्जीव नहीं सजीव है। उसमें चेतना है, कर्तव्यनिष्ठता है, आत्मीयता है। प्रश्न 5. कवि यहाँ आंतरिक शत्रुओं की ओर इंगित करते हुए उनसे सावधान रहने की सलाह देता है। कवि का मन पारखी है, वह अपनी पैनी नजर से घर में, शहर में, देश में, रह रहे शत्रुओं को पहचानने की क्षमता रखता है, उनसे दूर रहकर, सचेत रहकर सावधानीपूर्वक अस्तिव और अस्मिता की रक्षा की जा सकती है। भीतरी शत्रुओं से बचाव सर्वाधिक जरूरी है। वे अपने स्वार्थ और संकीर्णताओं के चलते हमारी संस्कृति, प्रगति और आपसी शांति को भंग कर देंगे। कवि की पीड़ा, सोच अत्यंत ही प्रासंगिक है। देश तभी सबल, सुरक्षित रहेमा, शहर सुरक्षित तभी रहेगा जब घर शांतिमय, सुविकसित रूप में रहेगा। यहाँ कवि ने सूक्ष्म रूप से हमारी राष्ट्रीय समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करते हुए भीतरी शत्रुओं से सावधान रहने को कहा है। प्रश्न 6. उक्त काव्य पक्तियों के माध्यम से कवि ने कहा है कि ऐ राष्ट्रवीरों ! सचेत हो जाओ। बाहरी शत्रुओं से ज्यादा भीतरी शत्रुओं से सांस्कृतिक संकट छहराने का खतरा ज्यादा है। अगर समय रहते हम नहीं चेते, नहीं संभले तो नदियाँ नाला के रूप में परिवर्तित हो जाएंगी, हवा शुद्ध न रहकरधुआँ के रूप में वायुमंडल में पसर जाएगी। आज हमारे जो भोज्य पदार्थ हैं वे जहरीले हो जाएंगे। बदलते जीवन-मूल्यों, पर्यावरण के दूषित स्वरूप एवं आंतरिक अव्यवस्थाओं के कारण सबका अस्तित्व संकट में पड़ गया है। कहीं इस जहरीले वातावरण में हम भी जहरीला न बन जायें। अतः, समय रहते सचेत और जागरूक होना आवश्यक है ताकि गहराते संकट से हम बच सकें। प्रश्न 7. कवि कहता है कि जंगल की रक्षा अत्यावश्यक है। जंगल नहीं रहेगा तो हमारी संस्कृति – सुरक्षित नहीं रहेगी न इतिहास ही सुरक्षित रहेगा। सृष्टि का भी विनाश हो जाएगा। मनुष्य भी जंगली रूप को पुनः अख्तियार कर लेगा। मानव और जंगल एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों का रहना संस्कृति और सभ्यता के विकास के लिए बहुत जरूरी है। जंगल में ही मनुष्य वास करता था। अतः, कवि अंत में जोरदार शब्दों में कहता है कि जंगल को रेगिस्तान बनाने से, हे मानवों ! बचाओ। अगर जंगल का अस्तित्व मिटा तो तुम्हारा भी अस्तित्व समाप्त हो जाए। अतः, कवि की दृष्टि में जंगल और जीवन दोनों का स्वस्थ, सुरक्षित और हरा-भरा रहना आवश्यक है। जंगल और मानव का अटूट संबंध युगों-युगों से रहा है, आगे भी रहेगा। एक वृक्ष की हत्या कवि परिचय कुँवर नारायण का जन्म 19 सितंबर 1927 ई० में लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था । कुँवर ।’ नारायण ने कविता लिखने की शुरुआत सन् 1950 के आस-पास की । उन्होंने कविता के अलावा चिंतनपरक लेख, कहानियाँ और सिनेमा तथा अन्य कलाओं पर समीक्षाएँ भी लिखीं हैं, किंतु कविता उनके सृजन-कर्म में हमेशा मुख्य रही । उनको प्रमुख रचनाएँ हैं – ‘चक्रव्यूह’, ‘परिवेश : हम तुम’, ‘अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘इन दिनों’ (काव्य संग्रह); ‘आत्मजयी’ (प्रबंधकाव्य): ‘आकारों के आस-पास’ (कहानी संग्रह); ‘आज और आज से पहले’ (समीक्षा) : ‘मेर साक्षात्कार’ (साक्षात्कार) आदि । कुँवर नारायण जी को अनके पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जो इस प्रकार हैं – ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘कुमारन आशान पुरस्कार’, ‘व्यास सम्मान’, ‘प्रेमचंद पुरस्कार’, ‘लोहिया सम्मान’, ‘कबीर सम्मान’ आदि । कुँवर नारायण पूरी तरह नगर संवेदना के कवि हैं । विवरण उनके यहाँ नहीं के बराबर है, पर वैयक्तिक और सामाजिक ऊहापोह का तनाव पूरी व्यंजकता के साथ प्रकट होता है । आज का समय और उसकी यांत्रिकता जिस तरह हर सजीव के अस्तित्व को मिटाकर उसे अपने लपेटे में ले लेना चाहती है, कुँवर नारायण की कविता वहीं से आकार ग्रहण करती है और मनुष्यंता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलती है। नयी कविता के दौर में, जब प्रबंधकाव्य का स्थान लंबी कविताएँ लेने लगी, तब कुँवर नारायण ने ‘आत्मजयी’ जैसा प्रबंधकाव्य रचकर भरपूर प्रतिष्ठा प्राप्त की । उनकी कविताओं में व्यर्थ का उलझाव, अखबारी सतहीपन और वैचारिक धुंध के बजाय संयम, परिष्कार और साफ-सुथरापन है । भाषा और विषय की विविधता उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। उनमें यथार्थ का खुरदुरापन भी मिलता है और उसक सहज सौंदर्य भी। तुरंत काटे गए एक वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंतर्व्यथा को अभिव्यक्त करती यह कविता आज के समय की अपरिहार्य चिंताओं और संवेदनाओं का रचनात्मक अभिलेख है । यह कविता कुँवर नारायण के कविता संग्रह ‘इन दिनों से संकलित है। एक वृक्ष की हत्या Summary in Hindiपाठ का अर्थ नई कविता काल के प्रखर कवि कुंवर नारायण नगर संवेदना के कवि हैं। उनकी रचनाओं में वैयक्तिक और सामाजिक उहापोह का तनाव पूरी व्यंजकता के साथ प्रकट होती है। आज का समय और उसकी यांत्रिकता जिस तरह हर सजीव के अस्तित्व को मिटाकर उसने अपने लपेटे में ले लेना चाहती है, कुँवर नारायण की कविता वहीं से आकार ग्रहण करती है और मनुष्यता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलती हैं। भाषा और विषय की विविधता उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं।। प्रस्तुत कविता में कवि तुरंत काटे गये वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंतर्व्यथा को अभिव्यक्त किया है। कवि के घर के सामने ही वर्षों पुराना एक बड़ा पेड़ था जो काट लिया गया है। कभी यह पेड़ दूसरों को छाया देकर उसकी थकान दूर करता था। उसके घर की रखवाली करता था किन्तु आज वह निर्जीव बन पड़ा है। पुराना होने के कारण उसके छाल धूमिल हो गये थे। उसकी डालियाँ राइफल की तरह तनी हुई रहती थी अक्खड़पन उसके नस-नस में था, धूप, वर्षा, सर्दी, गर्मी में वह सदा चौकन्ना रहता था किन्तु आज वह बेजान हो गया है। दूर से परिचय पूछकर दोस्तों को एक नई ताजगी देकर मन की व्यथा को हरण करने वाला वृक्ष दुश्मनों के द्वारा काट लिया गया। वस्तुतः यहाँ कवि बताना चाहता है कि गाँव, शहर वातावरण को बचाना है तो पहले पेड़ को बचाना चाहिए। वृक्ष हमारे मित्र हैं। मित्र को दुश्मन समझ कर उसका विनाश करना मानव जाति को विनाश करना है। शब्दार्थ अक्खड़ : विपरीत परिस्थितियों में डटा रहने वाला अबकी अगर लौटा तो कविता के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते है?ऐसा किफ़ायत-शुआर कवि जब कहता है 'अबकी बार लौटा तो / बृहत्तर लौटूंगा' तो यह एक बहुत बड़ा वक्तव्य बन जाता है, एक साथ विश्वसनीय और लगभग पौराणिक. कुंवर नारायण का हुनर यही है : उन्हें मालूम है कि उनकी सामर्थ्य का बिन्दु कब और कहाँ आ रहा है. उन्हें उसे पाने के लिए ज़ोरआज़माईश नहीं करनी पड़ती.
इस कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहते हैं?'मनुष्यता' कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि हमें अपना जीवन परोपकार में व्यतीत करना चाहिए। इस कविता में कवि ने दधीचि, करण, रंतिदेव और उशीनर क्षितिश का उदाहरण देकर मनुष्यता का सन्देश दिया हैं। सच्चा मनुष्य दूसरों की भलाई के काम को सर्वोपरि मानता है।
कविता का माध्यम क्या है?कविता भाषा का एक ऐसा ही माध्यम है, जिसके द्वारा भावनाएँ व्यक्त की जाती हैं। कविता में सौंदर्य तथा भावना की सहज अभिव्यक्ति होती है, जो पाठक के मन को आसानी से छू जाती है। प्रस्तुत पाठ में हम कविता क्या है, इसे क्यों और कैसे पढ़ा जाना चाहिए आदि प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास करेंगे।
मैं तो तेरे पास में के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?Answer. Explanation: कवि कहना चाहता है कि उसे वह सुख नहीं मिल सका जिसकी वह कल्पना कर रहा था। उसे सुख मिलते-मिलते रह गया।
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