वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का वर्णन कीजिए - vaiyaktik adhyayan paddhati ka varnan keejie

1. समस्या का गहन अध्ययन :- अध्ययन का केन्द्र एक समस्या होती है। अतः वैयक्तिक कार्यकर्ता उस समस्या से सम्बन्धित सभी पहलुओं का अध्ययन करता है। उसके स़्त्रोत का पता लगाता है। प्रभावकारी कारकों का अवलोकन करता है, समस्या के स्वरूप  का निर्धारण करता है तथा सूक्ष्म से सूक्ष्म को प्रकाश में लाने का प्रयास करता है। 

2. व्यक्तिपरक पहलुओं का अध्ययन :- सेवार्थी की भावनाओं धारणाओं तथा व्यवहारों का अध्ययन करते है। व्यक्ति की समस्त विशेषताओं का अध्ययन वैयक्तिक कार्य में आवश्यक समझा जाता है। 



3. वैयक्तिक मान्यता :- वैयक्तिक अध्ययन में कार्यकर्ता सामान्यीकरण सिद्धान्त का अनुसरण नहीं करता है। वह प्रत्येक व्यक्ति को समस्या व परिस्थिति को अनौखा देखता है तथा उसी सन्दर्भ में अध्ययन भी करता है। 

4. सर्वांगीण अध्ययन :- सेवार्थी के किसी एक पहलू का अध्ययन कर पूर्ण स्थिति का अध्ययन किया जाता है। वैयक्तिक सामाजिक मनौवैज्ञानिक आर्थिक सांवेगिक विकासात्मक आदि सभी विशेषताओं का अध्ययन सम्मिलित होता है। 

पी.वी. यंग (1977) का कहना है कि, "किसी एक सामाजिक इकाई चाहे वह इकाई एक व्यक्ति, एक समूह, एक संस्था, एक जिला अथवा एक समुदाय ही हो, का विस्तृत अध्ययन वैयक्तिक अध्ययन कहलाता है।" सरलतम शब्दों में हम कह सकते हैं कि इसमें किसी भी सामाजिक इकाई को सम्पूर्णता की दृष्टि से देखा जाता है। ऐसा ही विचार गुड़े और हाट (1952 ) ने भी व्यक्त किया है। बीसेन्ज तथा बीसेन्ज ने अपनी पुस्तक माडर्न सोसाईटी (1982) में लिखा है कि, “वैयक्तिक अध्ययन गुणात्मक विश्लेषण का एक विशेष स्वरूप है जिसके अन्तर्गत किसी व्यक्ति, परिस्थिति अथवा संस्था का अत्यधिक सावधानीपूर्वक और पूर्ण अवलोकन किया जाता है।"


सिन पाओ येंग ने अपनी पुस्तक, फैक्ट फाईंडिंग विद रूरल पीपुल (1971)' में लिखा है कि, · वैयक्तिक अध्ययन पद्धति को किसी एक छोटे, सम्पूर्ण तथा गहन अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है,

जिसके अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में पर्याप्त सूचनाओं का व्यवस्थित संकलन करने के लिए अपनी समस्त क्षमताओं और विधियों का उपयोग करता है, जिससे यह ज्ञात हो सके कि एक स्त्री अथवा पुरुष समाज की एक इकाई के रूप में किस प्रकार कार्य करता है।" उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि, वैयक्तिक अध्ययन से अभिप्राय सामाजिक शोध में प्रयुक्त एक विधि (पद्धति) से है, जो एक व्यक्ति, परिवार, संस्था अथवा समुदाय के रूप में एक सामाजिक इकाई से संबंधित गुणात्मक सामग्री के संग्रह को सम्भव बनाती है। इस विधि की प्रकृति को समुचित रूप से समझने के लिए यह आवश्यक है कि इस प्रत्यय से संबंधित प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट किया जाये।


1. यह सापेक्षतया अधिक गुणात्मक है।


2. यह विधि एक विशिष्ट सामाजिक इकाई का सम्पूर्ण अध्ययन है।


3. इस विधि द्वारा किया जाने वाला अध्ययन अत्यधिक सूक्ष्म एवं गहन होता है। 


4. इस विधि में अतीत एवं वर्तमान दोनों का समन्वय होता है। इस विधि में अध्ययनकर्ता किसी इकाई से संबंधित अतीत के तथ्यों को जानने के साथ ही उनका वर्तमान स्थिति से सह-सम्बन्ध ज्ञात करने का प्रयत्न करता है।


5. इस विधि के द्वारा अध्ययन की इकाई के विभिन्न तत्वों के एकीकरण एवं समग्रता की स्थिति को स्वीकार करते हुए विभिन्न सूचनाओं को एकत्रित करने का प्रयास किया जाता है।


6. इस विधि का प्रमुख उद्देश्य किसी चयनित इकाई की विभिन्न परिस्थितियों के बीच कार्य-कारण के सम्बन्धों को ज्ञात करना है। इस विधि के माध्यम से चयनित इकाई के व्यवहार को प्रेरणा अथवा प्रोत्साहन देने वाले कारकों के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है तथा यह जानने का भी प्रयत्न किया जाता है कि वर्तमान परिस्थितियाँ अतीत की परिस्थितियों से किस प्रकार प्रभावित अथवा अप्रभावित हैं।


संक्षेप में, वैयक्तिक अध्ययन विधि की उपर्युक्त विशेषताओं के सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है कि, इस विधि का प्रयोग करते हुए यह ज्ञात होता है कि, प्रमुख रूप से किसी चयनित इकाई के आन्तरिक संरचना संबंधित पहलू क्या है तथा इस आन्तरिक संरचना के अतीत एवं वाप्य वातावरण के बीच क्या सम्बन्ध हैं इसी आधार पर वैयक्तिक अध्ययन विधि को बर्गेस (1949) ने सामाजिक सूक्ष्मदर्शक यंत्र (सोशल माइक्रोस्कोप) नाम से सम्बोधित किया है।


वैयक्तिक अध्ययन विधि की विशेषताओं को ज्ञात कर लेने के पश्चात यह भी आवश्यक प्रतीत हो जाता है कि, सामाजिक विज्ञानों के अन्तर्गत इस विधि के उद्विकास पर प्रकाश डाला जाये। हॉवर्ड ओडम तथा कैथरीन जोचर (1929) ने वैयक्तिक अध्ययन के उद्विकास पर अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए हैं. वास्तव में सामाजिक विज्ञानों के अन्तर्गत वैयक्तिक विधि के सबसे पहले प्रयोग इतिहासकारों के व्यक्तियों एवं राष्ट्रों के विवरण थे,

जिनका अनुगमन बाद में अधिक छोटे समूहों गुटों एवं व्यक्तियों के विस्तृत अध्ययनों द्वारा किया गया।" सर्वप्रथम फ्रेडरिक लीप्ले (1806.1882) ने सामाजिक विज्ञान में वैयक्तिक अध्ययन विधि का प्रयोग पारिवारिक बजट के अपने अध्ययनों के अन्तर्गत किया। तत्पश्चात् हरबर्ट स्पेन्सर (1820.1903) ने नूशास्त्रीय अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन का प्रयोग किया। बाद में बाल अपराधियों के अध्ययन में मनोचिकित्सक विलियम हीली ने इस पद्धति को अपनाया। पी. बी. यंग (1977) ने वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के उद्विकास पर विस्तृत प्रकाश डाला है। थामस और नैनिकी की पुस्तक 'दी पोलिश पीजेन्ट इन यूरोप एण्ड अमेरिका के प्रकाशन होने के बाद ही इस अध्ययन विधि को एक व्यवस्थित समाजशास्त्रीय क्षेत्र शोध के वास्तविक प्रयोग एवं स्वीकृति मिल पायी। इस पुस्तक में वैयक्तिक दस्तावेजों- डायरियाँ, पत्रों, आत्मकथाओं का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया गया था। इस विषय पर बेन्जामिन पाल की पुस्तक वेल्थ कल्चर एण्ड कम्युनिटी' महत्वपूर्ण है, जिसने विश्व के विभिन्न भागों में सामुदायिक स्तर पर किए गये वैयक्तिक अध्ययनों को सम्मिलित कर विश्व समुदाय के समक्ष इस विधि को प्रकाशित किया।


साधारण रूप से वैयक्तिक अध्ययन (Case Study ) एवं वैयक्तिक कार्य' (Case Work ) के प्रत्यय सामाजिक शोध के अन्तर्गत प्रयोग में आते रहें हैं। प्रचलन के तौर पर यह कहा जा सकता है कि जहाँ 'वैयक्तिक अध्ययन किसी एक विशेष इकाई के गहन अन्वेषण के रूप में स्थापित है, वहीं 'वैयक्तिक कार्य' विकासात्मक एवं समायोजनात्मक प्रक्रियाएँ जो निदान का अनुगमन करती हैं, के सन्दर्भ में प्रयुक्त होता रहा है। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि ये दोनों विधियाँ एक सामाजिक अथवा वैयक्तिक समस्या के प्रति समान अभिगम/उपागम का स्वरूप हैं, तथा अन्तर्सम्बन्धित एवं अनिवार्यतः दोनों एक-दूसरे के सम्पूरक हैं। वैयक्तिक अध्ययन प्रायः एक पद्धति (विधि). कभी तकनीक अन्य अवसरों पर अभिगम तथा समय-समय पर किसी चयनित इकाई के परिदृश्य में आँकड़ों को संगठित करने के ढंग के रूप में परिभाषित होता रहा है। यह भी समझा जाता रहा है कि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का तात्पर्य अध्ययन के एक ऐसे तरीके से है, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के क्रियाकलापों, मनोवृत्तियों और जीवन इतिहास का गहन अध्ययन किया जाता है।

परन्तु यह भी मत व्यक्त किया जाता रहा है कि, इस विधि के द्वारा केवल एक व्यक्ति का ही गहन अध्ययन नहीं किया जाता है, बल्कि किसी भी एक सामाजिक इकाई जैसे व्यक्ति, परिवार, समूह, संस्था अथवा समुदाय को केन्द्र मानते हुए प्रयोग किया जा सकता है। यहाँ यह कहना उचित होगा कि, "समग्र रूप में वैयक्तिक अध्ययन सामाजिक शोध के अन्तर्गत प्रयोग में लाया जाने वाला एक ऐसा ढंग है जो अनुसंधानकर्ता को तीव्र एवं सूक्ष्म अन्तदृष्टि प्रदान करने, इकाईयों का अधिक गहराई में पैठकर अध्ययन करने, समस्याओं का मनो-सामाजिक अध्ययन करने. निदान करने एवं समाधान के उपाय प्रस्तुत करने, अन्य ढंगों तथा पर्यवेक्षण अत्यादि की सहायता लेते हुए निष्कर्षों को अधिक से अधिक यथार्थ एवं पूर्ण बनाने तथा नवीन परिकल्पनाओं को प्रतिपादित करने के लिए उपयुक्त आधार प्रदान करने में सहायक सिद्ध होता है।" (सुरेन्द्र सिंह, 1975)


उपरोक्त परिपेक्ष्य में, वैयक्तिक अध्ययन का प्रयोग विशेषतया मनोचिकित्सा समाज कार्य तथा सामाजिक शोध में किया जाता है।

आधुनिक समाज की जटिल समस्याओं की गहनता के सन्दर्भ में, वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग मनोचिकित्सा के अन्तर्गत मानसिक बीमारियों का उपचार करने हेतु मनो-सामाजिक अध्ययन करने एवं निदान प्रस्तुत करने के लिए तथा सामाजिक अनुसंधान के अन्तर्गत समस्या समाधान प्रस्तुत करने हेतु आवश्यक सूचना का संग्रह करने के लिए किया जाता है।” (सुरेन्द्र सिंह. 1975) वैयक्तिक अध्ययन के प्रत्यय को प्रमुख रूप से दो दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है : पहला, पद्धति (विधि) के रूप में और दूसरा, उपागम के रूप में। पद्धति के रूप में. वैयक्तिक अध्ययन सामाजिक शोध के अन्तर्गत गुणात्मक सामग्री के संग्रह में सहायता प्रदान करता है और जो इसी सन्दर्भ में गणनात्मक एकत्रीकरण को सम्भव बनाने वाली विधियों जैसे प्रश्नावली तथा साक्षात्कार से भिन्न है। उपागम के रूप में, वैयक्तिक अध्ययन एक अधिक विस्तृत क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले एक सूक्ष्म एवं सीमित क्षेत्र का अध्ययन करने से संबंधित होता है। एक उपागम के रूप में स्वीकार करने पर किसी भी जटिल परिस्थिति तथा उससे समिश्रित कारकों का अध्ययन करना तथा उसे निदानात्मक स्वरूप प्रदान करने में वैयक्तिक अध्ययन को प्रयोग में लाना सम्भव हो जाता है।


प्रायः वैयक्तिक अध्ययन एवं सांख्यिकीय उपागमों के स्वरूपों के बीच अन्तर किया जाता रहा है, तथा दोनों को विरोधी की संज्ञा भी प्रदान की जाती रही है, क्योंकि वैयक्तिक अध्ययन को प्रमुखतया शोध की गैर-सांख्यिकीय प्रणाली के रूप में स्वीकार किया जाता है। एक सांख्यिकीविद विशेषतया गुणात्मक/परिमाणात्मक सूक्ष्मता उपागम से अभिप्रेरित रहता है। वह समाज के समस्तर दृश्य लेते हुए आँकड़ों के एक विस्तृत क्षेत्र को प्रकट करता है। वह एक दी हुई परिस्थिति के अन्तर्गत विभिन्न कारकों के घटित होने तथा अन्तर्सम्बन्धित सामान्यीकरणों के आकार को दर्शाता है। इसके विपरीत, वैयक्तिक अध्ययन सामाजिक प्रक्रियाओं का निर्धारण करता है तथा विभिन्न कारकों की जटिलता को स्पष्ट करते हुए निदानात्मक अभिव्यक्ति हेतु कार्यक्रमों एवं हस्तक्षेप युक्त कार्यप्रणाली को प्रदर्शित करता है। सामाजिक प्रक्रियाओं के निर्धारण में एकरूपता प्रदान करने हेतु वैयक्तिक अध्ययनों की एक कड़ी विशिष्ट एवं सामान्य भिन्नताओं की तुलना करने तथा उनमें विभेद स्थापित करने के उद्देश्य से समानताओं एवं विभिन्नताओं की खोज करती है।


इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सांख्यिकीय उपागम केवल कुछ सीमित कारकों के साथ तुलना करता है, जो किसी भी सामाजिक समस्या पर सूक्ष्म दृष्टि प्रदान करने में सुविधाजनक प्रतीत नही होते हैं। किन्तु यह भी सत्य है कि एक सांख्यिकीविद् साहचर्य की मात्रा, बारम्बारता तथा सीमा को समझते हुए सामाजिक परिस्थिति को अधिक गहराई के साथ समझने का प्रयास करता है। इस रूप में सांख्यिकीय उपागम वैयक्तिक अध्ययन के लिए शोधकर्ता को उत्तरदाताओं के चुनाव में मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है, तथा विशिष्ट एवं अधिक पूर्ण अध्ययन की आवश्यकता रखने वाले कारकों को सामने लाने में सहायक हो सकता है। दूसरी तरफ, वैयक्तिक अध्ययन सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए आधारभूत सामग्री प्रदान कर सकते हैं।


वैयक्तिक अध्ययन एवं सांख्यिकीय उपागम की पारस्परिक निर्भरता को पी.वी. यंग (1977) ने इस प्रकार समझाने की चेष्टा की है- एक विद्यार्थी जो वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग करता है, सापेक्षतया छोटी संख्या में उत्तरदाताओं का प्रयोग करने में समर्थ होता है।

किन्तु जहाँ तक वैयक्तिक अध्ययन पद्धति से उत्पन्न होने वाले प्रतिबन्धों का सम्बन्ध है, एक व्यक्ति से संबंधित लक्षणों अथवा कारकों की सम्पूर्ण संख्या असीमित होती है। यह वैसे ही है जैसे कि एक सांख्यिकीविद एक समस्तर दृश्य ले रहा हो, जो आँकड़ों के एक विस्तृत क्षेत्र को काटता हो. जबकि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग करने वाला विद्यार्थी कम संख्या में वैयक्तिक उत्तरदाताओं का सीधा दर्शन उन अनेक विस्तारों पर गौर करते हुए करता है जो उसके ध्यान में आते हैं। विस्तार के प्रति मनोवृत्ति की यह भिन्नता कुछ सीमा तक दोनों अभिगमों में विभेद स्थापित करती है, क्योंकि सांख्यिकीविद सामान्य आधारों की प्रकृति से संबंधित होता है, जबकि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग करने वाला विद्यार्थी उस सामग्री को बड़ी मात्रा में सम्मिलित करने के लिए उत्सुक होता है, जो कम से कम उस समय विशिष्ट प्रतीत होती है। इसके अतिरिक्त वैयक्तिक अध्ययन पद्धति द्वारा अध्ययन के अन्तर्गत व्यक्तियों में बड़ी संख्या में प्रतीत होने वाले लक्षणों एवं कारकों को एक साथ जोड़ना तथा अन्तिम रूप से कार्य-कारण सम्बन्धों की स्थापना करना सम्भव है, जबकि सह-सम्बन्ध का सांख्यिकीय ढंग एक समय पर तीन अथवा सम्भवतः चार कारकों से अधिक के साथ कार्य नहीं कर सकता है।"

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति क्या है समझाइए?

वैयक्तिक अध्ययन का अर्थ (vaiyaktik adhyayan kya hai) इसके अन्तर्गत एक इकाई के विषय मे सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास होता है। वैयक्तिक अध्ययन विधि सामाजिक अनुसंधान की प्राचीन पद्धति है। दुसरे शब्दों मे वैयक्तिक अध्ययन का अर्थ, वैयक्तिक अध्ययन पद्धति किसी व्यक्ति, संस्था या समुदाय के गहन अध्ययन से संबंधित है।

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के उद्देश्य क्या है?

(iv) वैयक्तिक अध्ययन का उद्देश्य इकाई का गहन एवं सर्वांगीण अध्ययन है। इस अध्ययन- पद्धति में विषय के 'इस' या 'उस' पक्ष का विश्लेषण नहीं किया जाता, बल्कि उन सभी पक्षों का विश्लेषण कर सर्वांगीण अध्ययन किया जाता है। अतः 'संपूर्णता' वैयक्तिक अध्ययन की प्रमुख विशेषता है।

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति से आप क्या समझते हैं उसकी सीमाओं तथा मूल्यों का उल्लेख कीजिए?

इस विधि मे जीवन के सूक्ष्म से सूक्ष्म पहलू का अध्ययन किया जाता है। इससे वैयक्तिक अनुभवों मे वृद्धि होती है। इसके अंतर्गत व्यक्तिगत भावनाओं एवं मनोवृत्तियों का गहन अध्ययन किया जाता है। इससे मनोवृत्तियों मे परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के जनक कौन है?

वैयक्तिक अध्ययन पद्धतिः- वैयक्तिक अध्ययन पद्धति एक अत्यन्त गहन अध्ययन पद्धति है। इसको एक इकाई के गहन अध्ययन के आधार पर सम्पूर्ण का अध्ययन करने की पद्धति कहा जा सकता है। इसका व्यवस्थित रूप में सर्वप्रथम प्रयोग श्री० हरवर्ट स्पेंसर ने किया, यद्यपि प्रो० लीप्ले भी इस क्षेत्र में अग्रिम माने जाते है।