विश्वकर्मा जयंती का क्या मतलब है? - vishvakarma jayantee ka kya matalab hai?

विश्वकर्मा जयंती का क्या मतलब है? - vishvakarma jayantee ka kya matalab hai?

श्री विश्वकर्मा पूजा दिवस भारत के कर्नाटक, असम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओडिशा और त्रिपुरा आदि प्रदेशों में यह आम तौर पर हर साल 17 सितंबर की ग्रेगोरियन तिथि को मनायी जाती है। यह उत्सव प्रायः कारखानों एवं औद्योगिक क्षेत्रों में (प्रायः शॉप फ्लोर पर) मनाया जाता है। विश्वकर्मा को विश्व का निर्माता तथा देवताओं का वास्तुकार माना गया है। यह हिंदू कैलेंडर की 'कन्या संक्रांति' पर पड़ता है।[1]

त्योहार मुख्य रूप से कारखानों और औद्योगिक क्षेत्रों में मनाया जाता है, अक्सर दुकान के फर्श पर। न केवल अभियन्ता और वास्तु समुदाय द्वारा बल्कि कारीगरों, शिल्पकारों, यांत्रिकी, स्मिथ, वेल्डर, द्वारा पूजा के दिन को श्रद्धापूर्वक चिह्नित किया जाता है। औद्योगिक श्रमिकों, कारखाने के श्रमिकों और अन्य। वे बेहतर भविष्य, सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों और सबसे बढ़कर, अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए प्रार्थना करते हैं। श्रमिक विभिन्न मशीनों के सुचारू संचालन के लिए भी प्रार्थना करते हैं।

श्री विश्वकर्मा पूजा दिवस, एक हिंदू भगवान विश्वकर्मा, दिव्य वास्तुकार के लिए उत्सव का दिन है।[३] उन्हें स्वायंभु और विश्व का निर्माता माना जाता है।उन्होंने द्वारका के पवित्र शहर का निर्माण किया जहां कृष्ण ने शासन किया, पांडवों की माया सभा, और देवताओं के लिए कई शानदार हथियारों के निर्माता थे।उन्हें निर्माणकार्ता, इंजीनियर , वैज्ञानिक जगतकार्ता ईश्वर कहते हैं। इन्हीं से पाँच वैज्ञानिक , निर्माणकार्ता हुये अनेक वैज्ञानिक , निर्माणकार्ता है। ', ऋग्वेद में उल्लेख किया गया है, और इसे यांत्रिकी और वास्तुकला के विज्ञान, स्टैप्टा वेद के साथ श्रेय दिया जाता है। विश्वकर्मा की विशेष प्रतिमाएँ और चित्र सामान्यतः प्रत्येक कार्यस्थल और कारखाने में स्थापित किए जाते हैं।सभी कार्यकर्ता एक आम जगह पर इकट्ठा होते हैं और पूजा (श्रद्धा) करते हैं। विश्वकर्मा पूजा के तीसरे दिन हर्षोल्लास के साथ सभी लोग विश्वकर्मा जी की प्रतिमा विसर्जित करते हैं।.[2]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • विश्वकर्मा
  • अभियन्ता दिवस

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Melton, J. Gordon (13 September 2011). Religious Celebrations: An Encyclopedia of Holidays, Festivals, Solemn Observances, and Spiritual Commemorations. ABC-CLIO. पपृ॰ 908–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-59884-205-0.
  2. "Vishwakarma Puja 2021 : विश्वकर्मा पूजा आज, जानिए पूजा विधि, महत्व और कथा". Hindustan (hindi में). अभिगमन तिथि 17 September 2021.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • विश्वकर्मा जयंती: स्वर्ग लोक से लेकर द्वारिका तक के रचयिता (जागरण)
  • विश्वकर्मा जयंती (नवभारत टाइम्स)
  • विश्वकर्मा जयंती पर विशेष (पंजाब केसरी)

विश्वकर्मा
सृजन, निर्माण, वास्तुकला, औजार, शिल्पकला, मूर्तिकला एवं वाहनों समेत समस्त संसारिक वस्तुओं के अधिष्ठात्र देवता
विश्वकर्मा जयंती का क्या मतलब है? - vishvakarma jayantee ka kya matalab hai?

भगवान विश्वकर्मा अपने सिंहासन पर विराजमान और अपने पुत्रों से घिरे हुए
अन्य नाम विश्वकर्मा, देव शिल्पी, जगतकर्ता और शिल्पेश्वर
निवासस्थान विश्वकर्मा लोक
अस्त्र कमंडल, पाश,
प्रतीक औजार
माता-पिता वास्तुदेव (पिता), अंगिरसी (मां)
संतान बृहस्मति, नल-निल,संध्या, रिद्धि, सिद्धि और चित्रांगदा
त्यौहार विश्वकर्मा पूजा (१७ सितंबर हर साल)

विश्वकर्मा जयंती का क्या मतलब है? - vishvakarma jayantee ka kya matalab hai?

बलुआ पत्थर से निर्मित एक आर्किटेक्चरल पैनेल में भगवान विश्वकर्मा (१०वीं शताब्दी) ; बीच में गरुड़ पर विराजमान विष्णु हैं, बाएँ ब्रह्मा हैं, तथा दायें तरफ भगवान विश्वकर्मा हैं। इस संग्रहालय में उनका नाम 'विश्नकुम' लिखा है।

हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। मान्यता है कि सोने की लंका का निर्माण उन्होंने ही किया था। इनकी ऋद्धि सिद्धि और संज्ञा नाम की तीन पुत्रियाँ थी जिनमें से ऋद्धि सिद्धि का विवाह भगवान चंद्रशेखर और माता पार्वती के सबसे छोटे पुत्र भगवान गणेश से हुआ था तथा संज्ञा का विवाह महर्षि कश्यप और देवी अदिति के पुत्र भगवान सूर्यनारायण से हुआ था यमराज , यमुना , कालिंदी और अश्वनीकुमार इनकी ही संताने हैं।

वेदों में उल्लेख[संपादित करें]

ऋग्वेद मे विश्वकर्मा सुक्त के नाम से 11 ऋचाऐ लिखी हुई है। जिनके प्रत्येक मन्त्र पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता आदि। यही सुक्त यजुर्वेद अध्याय 17, सुक्त मन्त्र 16 से 31 तक 16 मन्त्रो मे आया है ऋग्वेद मे विश्वकर्मा शब्द का एक बार इन्द्र व सुर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है। परवर्ती वेदों मे भी विशेषण रूप मे इसके प्रयोग अज्ञत नही है यह प्रजापति का भी विशेषण बन कर आया है। [1]

प्रजापति विश्वकर्मा विसुचित।

परन्तु महाभारत के खिल भाग सहित सभी पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानतें हैं। स्कंद पुराण प्रभात खण्ड के निम्न श्लोक की भांति किंचित पाठ भेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता हैः-

बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः॥16॥

महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पुर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। पुराणों में कहीं योगसिद्धा, वरस्त्री नाम भी बृहस्पति की बहन का लिखा है। शिल्प शास्त्र का कर्ता वह ईश विश्वकर्मा देवताओं का आचार्य है, सम्पूर्ण सिद्धियों का जनक है, वह प्रभास ऋषि का पुत्र है और महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र का भानजा है। अर्थात अंगिरा का दौहितृ (दोहिता) है संपूर्ण ऋग्वेद में महर्षि अंगिरा तथा उनके वंशजों का एवं शिष्यों का जितना उल्लेख है उतना अन्य किसी ऋषि के संबंध में नहीं है महर्षि अंगिरा से संबंधित वंश और गोत्र ऋग्वेद के नवम मंडल के दृष्टा हैं महर्षि अंगिरा कुल से विश्वकर्मा का सम्बन्ध तो सभी विद्वान स्वीकार करते हैं। जिस तरह भारत मे विश्वकर्मा को शिल्पशस्त्र का अविष्कार करने वाला देवता माना जाता हे और सभी कारीगर उनकी पुजा करते हे। उसी तरह चीन मे लु पान को बदइयों का देवता माना जाता है। प्राचीन ग्रन्थों के मनन-अनुशीलन से यह विदित होता है कि जहाँ ब्रहा, विष्णु ओर महेश की वन्दना-अर्चना हुई है, वही भनवान विश्वकर्मा को भी स्मरण-परिष्टवन किया गया है। " विश्वकर्मा" शब्द से ही यह अर्थ-व्यंजित होता है

"विशवं कृत्स्नं कर्म व्यापारो वा यस्य सः

अर्थातः जिसकी सम्यक् सृष्टि और कर्म व्यपार है वह विशवकर्मा है। यही विश्वकर्मा प्रभु है, प्रभूत पराक्रम-प्रतिपत्र, विशवरुप विशवात्मा है। वेदों में

विशवतः चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वस्पात

कहकर इनकी सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता, शक्ति-सम्पन्ता और अनन्तता दर्शायी गयी है। हमारा उद्देश्य तो यहाँ विश्वकर्मा जी का परिचय कराना है। माना कई विश्वकर्मा हुए हैं और आगे चलकर विश्वकर्मा के गुणों को धारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुष को विश्वकर्मा की उपाधि से अलंकृत किया जाने लगा हो तो यह बात भी मानी जानी चाहिए। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत भी शिल्प संकायो, कारखानो, उद्योगों में भगवान विशवकर्मा की महता को प्रगत करते हुए प्रत्येक वर्ष १७ सितम्बर को श्वम दिवस के रूप मे मनाता हे। यह उत्पादन-वृदि ओर राष्टीय समृद्धि के लिए एक संकलप दिवस है। यह जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान नारे को भी श्वम दिवस का संकल्प समाहित किये हुऐ है। यह पर्व सोरवर्ष के कन्या संर्काति मे प्रतिवर्ष 17 सितम्बर विशवकर्मा-पुजा के रूप मे सरकारी व गैर सरकारी ईजीनियरिग संस्थानो मे बडे ही हषौलास से सम्पन्न होता हे। लोग भ्रम वश इस पर्व को विश्वकर्मा जयंति मानते हे। जो सर्वदा अनुचित हे। भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा कन्या की संक्राति (17 सितम्बर), कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा), भाद्रपद पंचमी (अंगिरा जयन्ति) मई दिवस आदि विश्वकर्मा-पुजा महोत्सव पर्व है। इन पर्वो पर भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा-अर्चना की जाती है।

विश्वकर्मा जयंती का क्या मतलब है? - vishvakarma jayantee ka kya matalab hai?

भगवान विशवकर्मा जी की वर्ष मे कई बार पुजा व महोत्सव मनाया जाता है। जैसे भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा इस तिंथि की महिमा का पुर्व विवरण महाभारत मे विशेष रूप से मिलता है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा अर्चना की जाती है। यह शिलांग और पूर्वी बंगला मे मुख्य तौर पर मनाया जाता है। अन्नकुट (गोवर्धन पूजा) दिपावली से अगले दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा अर्चना (औजार पूजा) की जाती है। मई दिवस, विदेशी त्योहार का प्रतीक है। रुसी क्रांति श्रमिक वर्ग कि जीत का नाम ही मई मास के रुसी श्रम दिवस के रूप मे मनाया जाता है। 5 मई को ऋषि अंगिरा जयन्ति होने से विश्वकर्मा-पुजा महोत्सव मनाया जाता है भगवान विश्वकर्मा जी की जन्म तिथि माघ मास त्रयोदशी शुक्ल पक्ष दिन रविवार का ही साक्षत रूप से सुर्य की ज्योति है। ब्राहाण हेली को यजो से प्रसन हो कर माघ मास मे साक्षात रूप मे भगवान विश्वकर्मा ने दर्शन दिये। श्री विश्वकर्मा जी का वर्णन मदरहने वृध्द वशीष्ट पुराण मे भी है।

माघे शुकले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ।अष्टा र्विशति में जातो विशवकमॉ भवनि च॥

धर्मशास्त्र भी माघ शुक्ल त्रयोदशी को ही विश्वकर्मा जयंति बता रहे है। अतः अन्य दिवस भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा-अर्चना व महोत्सव दिवस के रूप मे मनाऐ जाते है। ईसी तरह भगवान विश्वकर्मा जी की जयन्ती पर भी विद्वानों में मतभेद है। भगवान विश्वकर्मा जी की वर्ष मे कई बार पुजा व महोत्सव मनाया जाता है। निःदेह यह विषय निर्भ्रम नहीं है। हम स्वीकार करते है प्रभास पुत्र विश्वकर्मा, भुवन पुत्र विश्वकर्मा तथा त्वष्ठापुत्र विश्वकर्मा आदि अनेकों विश्वकर्मा हुए हैं। यह अनुसंधान का विषय है। अतः सभी विशवकर्मा मन्दिर व धर्मशालाऔं, विशवकर्मा जी से सम्भधींत संस्थाऔं, संघ व समितिऔं को प्रस्ताव पारित करके भारत सरकार से मांग जानी चाहीए की सम्पुर्ण संस्कृत साहित्य का अवलोकन किया जाय, भारत की विभिन्न युनीर्वशटीजो मे इस विष्य पर शौध की जानी चाहीए, विदेशों में भी खोज की जाय, तथा भारत सरकार विश्वकर्मा वशिंयो का सर्वेक्षण किसी प्रमुख मीडिया एजेन्सी से करवाऐ। श्रुति का वचन है कि विवाह, यज्ञ, गृह प्रवेश आदि कर्यो मे अनिवार्य रूप से विशवकर्मा-पुजा करनी चाहिए

विवाहदिषु यज्ञषु गृहारामविधायके।सर्वकर्मसु संपूज्यो विशवकर्मा इति श्रुतम॥

स्पष्ट है कि विशवकर्मा पूजा जन कल्याणकारी है। अतएव प्रत्येक प्राणी सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी ओर विज्ञान के जनक भगवान विशवकर्मा जी की पुजा-अर्चना अपनी व राष्टीय उन्नति के लिए अवश्य करनी चाहिए।

जगदचक विश्वकर्मन्नीश्वराय नम:॥

आश्चर्यजनक वास्तुकार[संपादित करें]

चार युगों में विश्वकर्मा ने कई नगर और भवनों का निर्माण किया। कालक्रम में देखें तो सबसे पहले सत्ययुग में उन्होंने स्वर्गलोक का निर्माण किया, त्रेता युग में लंका का, द्वापर में द्वारका का और कलियुग के आरम्भ के ५० वर्ष पूर्व हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया। विश्वकर्मा ने ही जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ मन्दिर में स्थित विशाल मूर्तियों (कृष्ण, सुभद्रा और बलराम) का निर्माण किया।

विश्वकर्मा जयंती[संपादित करें]

विश्वकर्मा जयंती हिंदू धर्म में ब्रह्मांड के दिव्य वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है। विश्वकर्मा भाद्र केबंगाली महीने के अंतिम दिन, विशेष रूप से भद्रा संक्रांति पर निर्धारित की जाती है। यही कारण है कि जब सूर्य सिंह सेकन्या पर हस्ताक्षर करता है इसे कन्या सक्रांति के रूप में भी जाना जाता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • अभियन्ता दिवस
  • शिल्पशास्त्र
  • विश्वकर्मा जयन्ती
  • विश्वकर्मा (जाति)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • विश्वकर्मा समाज
  • श्री विश्वकर्मा वंशावली
  • श्री विश्वकर्मा कथा
  • श्री विश्वकर्मा चालीसा
  • विश्वकर्मा भगवान कौन है? क्यों की जाती है इनकी पूजा?
  • विश्वकर्मा विरासत में सुरक्षित हैं भारत की समृद्धि के बीज[मृत कड़ियाँ] (पाञ्चजन्य)
  • श्री विश्वकर्मा भगवान
  • यंत्रों के देव भगवान विश्वकर्मा
  • निर्माण और सृजन के देवता विश्वकर्मा को प्रणाम
  • पहले इंजीनियर, वास्तुविद, मिस्त्री. कारीगर - भगवान विश्वकर्मा
  1. "Vishwakarma Puja 2021 [Hindi]: विश्वकर्मा नही, पूर्ण ब्रह्म कविर्देव हैं विश्व के रचयिता". SA News Channel (अंग्रेज़ी में). 2021-09-17. अभिगमन तिथि 2021-09-18.

विश्वकर्मा पूजा और विश्वकर्मा जयंती में क्या अंतर है?

Vishwakarma Puja 2022 SMS: वास्तुशिल्प के रचनाकार भगवान विश्वकर्मा की जयंती इस साल 17 सितंबर को मनाई जा रही है, इसे विश्वकर्मा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। Vishwakarma Puja 2022 SMS: विश्वकर्मा जयंती भगवान विश्वकर्मा के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। विश्वकर्मा जयंती हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाया जाता है।

विश्वकर्मा जयंती का क्या महत्व है?

विश्वकर्मा पूजा का महत्व नरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि विश्वकर्मा जयंती के दिन सभी कारखानों और औद्योगिक संस्थानों में भगवान विश्वकर्मा की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही व्यापार में तरक्की और उन्नति होती है।

14 फरवरी विश्वकर्मा जयंती है क्या?

बहरोड़:विश्वकर्मा जयंती पर 14 फरवरी को प्रतिभाओं का होगा सम्मान, अलवर रोड़ पर जांगिड़ छात्रावास में कार्यक्रम बहरोड में विश्वकर्मा जयंती एवं प्रतिभा सम्मान समारोह 14 फरवरी को अलवर रोड पर स्थित जांगिड़ छात्रावास में आयोजित किया जाएगा।

विश्वकर्मा जयंती साल में कितनी बार आती है?

विस्तार Vishwakarma Jayanti 2022 Date, Shubh Muhurat And Puja Vidhi: हर वर्ष सूर्य कैलेंडर के आधार पर 17 सितंबर यानी सृष्टि के वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा का जन्मोत्सवको मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है इस पृथ्वी पर जो भी चीजें मौजूद हैं उसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा के द्वारा ही हुआ है।