वीणा वादिनी कविता में कवि किस की वंदना कर रहे हैं और क्यों? - veena vaadinee kavita mein kavi kis kee vandana kar rahe hain aur kyon?

वीणा वादिनी कविता में कवि किस की वंदना कर रहे हैं और क्यों? - veena vaadinee kavita mein kavi kis kee vandana kar rahe hain aur kyon?

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वर दे, वीणावादिनि, वर दे।
प्रिय स्वतन्त्र रव, अमृत मन्त्र नव
भारत में भर दे !

काट अन्ध उर के बन्धन स्तर,
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर,
कलुष भेद, तम हर, प्रकाश भर,
जगमग जग कर दे !

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव,
नवल कंठ, नव जलद मन्द्र रव,
नव नभ के नव विहग वृन्द को
नव पर, नव स्वर दे!

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

कविता का अर्थ

पद 1. वर दे, वीणावादिनि, वर दे।
प्रिय स्वतन्त्र रव, अमृत मन्त्र नव
भारत में भर दे !

प्रसंग- प्रस्तुत पद्य हिन्दी पाठ्य पुस्तक भाषा-भारती के पाठ 1 'वर दे' कविता से लिया गया है। इस कविता के रचनाकार श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हैं।

संदर्भ- उक्त पद में कवि माता सरस्वती से स्वतंत्रता का अमृत मन्त्र प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं।

व्याख्या- कवि माँ सरस्वती से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे वीणा का वादन करने वाली माँ सरस्वती ! तुम हमें ऐसा वरदान दो एवं मेरे देश भारत के नागरिकों में स्वतन्त्रता की भावना का अमृत (अमर) मन्त्र भर दो।

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पद 2. काट अन्ध उर के बन्धन स्तर,
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर,
कलुष भेद, तम हर, प्रकाश भर,
जगमग जग कर दे !

प्रसंग- उपरोक्तानुसार।

संदर्भ- उपरोक्त पंक्तियों में कवि सरस्वती माता की वंदना करते हुए अज्ञानता को दूर कर ज्ञान भरने का आह्वान करते हैं।

व्याख्या- कवि माता सरस्वती की वंदना करते हुए कहते हैं कि हे माँ सरस्वती ! तुम भारतवासियों के अन्धकार अर्थात अज्ञानता से भरें हृदय के सभी बन्धनों की तहों को काट दो अर्थात दूर कर दो और ज्ञान का स्रोत बहा दो। हमारे अन्दर जितने क्लेश रुपी दोष और अज्ञानता हैं, उन्हें दूर कर दो। हमारे हृदय में ज्ञान रुपी प्रकाश भर दो। इस समूचे संसार को जगमगा दो।

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पद 3. नव गति, नव लय, ताल-छंद नव,
नवल कंठ, नव जलद मन्द्र रव,
नव नभ के नव विहग वृन्द को
नव पर, नव स्वर दे!

प्रसंग- उपरोक्तानुसार

संदर्भ- कवि उक्त पद्य में माता सरस्वती से इस संसार में नवीनता प्रदान करने के लिए प्रार्थना करते हैं।

व्याख्या- कवि प्रार्थना करता है कि हे माता सरस्वती ! तुम हम सभी भारतवासियों को नवीन उन्नति (गति), नवीन तान (लय), नवीन ताल एवं नवीन गीत (छन्द), नवीन स्वर और मेघ के समान गम्भीर स्वरूप को प्रदान कर दो। तुम इस नवीन आसमान में विचरण अर्थात उड़ने वाले इन नए-नए पक्षियों को नवीन पंख प्रदान कर नवीन कलरव (स्वर) को प्रदान करो।
हे माँ सरस्वती! आप हम सबको ऐसा वरदान दो।

कविता का अर्थ जानने के लिए नीचे दिए गए वीडियो को भी अवश्य देखें। आशा है, आपको इस कविता का अर्थ समझ आया होगा और आप आसानी के साथ अभ्यास के प्रश्नों को हल भी कर सकते हैं।
धन्यवाद।

RF Temre
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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)

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कविता में कवि किसकी वंदना कर रहा है?

Answer. Answer: कवि एक सच्चे देशभक्त की भांति देश की वंदना कर रहा है। कविता की शैली सहज और बोधगम्य है।

वर दे वीणा वादिनी में कभी ने क्या हर लेने की प्रार्थना की है?

वर दे, वीणावादिनी वर दे। जगमग जग कर दे! वर दे, वीणावादिनी वर दे। नव पर, नव स्वर दे!

सरस्वती को कवि ने वर दे क्यों कहा है?

अर्थ:— हे माता! हे सरस्वती!

वीणा वादिनी का मतलब क्या होता है?

वीणा वादिनी संज्ञा अर्थ : विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री देवी।