उपभोग व्यय क्या है in Hindi? - upabhog vyay kya hai in hindi?

किसी अर्थव्यवस्था में उपभोग पर किये जाने वाले कुल व्यय को उपभोग व्यय कहा जाता है। कुल आय में से लोग अपनी आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सन्तुश्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के लिए जो राशि खर्च करते है उसे कुल उपभोग व्यय या उपभोग कहते है। उपभोग और आय में पाए जाने वाले सम्बन्ध को उपभोग फलन कहते है। 

अर्थात्

        C = f (Y)

यहां, उपभोग (C), आय (Y) का फलन (f) है।

ब्रुमैन के अनुसार, “उपभोग फलन यह बताता है कि उपभोक्ता आय के प्रत्येक सम्भव स्तर पर उपभोग पदार्थों पर कितना खर्च करना चाहेंगे।”

उपभोग फलन कुल उपभोग व्यय तथा राष्ट्रीय आय के सम्बन्ध को प्रकट करता है। उपभोग फलन के लिये उपभोग प्रवृत्ति ब्द का प्रयोग किया है।

उपभोग फलन के प्रकार

उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति दो प्रकार के होते है:

  1. औसत उपभोग प्रवृत्ति
  2. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति

1. औसत उपभोग प्रवृत्ति

कुल व्यय तथा कुल आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। इससे ज्ञात होता है कि लोग अपनी कुल आय का कितना भाग उपभोग पर खर्च करेंगे।

कुरीहरा के अनुसार, “औसत उपभोग प्रवृत्ति, उपभोग व्यय और एक विषेश स्तर पर आय का अनुपात है।”

औसत उपभोग प्रवृत्ति को निम्नलिखित सूत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:

औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) =उपभोग/आय

APC = "C" /"Y" 

2.  सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति

कुल आय में परिवर्तन से कुल व्यय में परिवर्तन के अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है।

कुरीहरा के अनुसार, “सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति उपभोग में होने वाले परिवर्तन तथा आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात है।”

सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति को निम्नलिखित सूत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:

सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = उपभोग में परिवर्तन/आय में परिवर्तन

MPC = "∆C" /"∆Y" 

3. औसत उपभोग प्रवृत्ति और सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति में सम्बन्ध

1. औसत उपभोग प्रवृत्ति आय के एक निश्चित स्तर पर कुल उपभोग तथा आय का अनुपात है अर्थात् APC = "C" /"Y" जबकि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति व्यय में होने वाले परिवर्तन और आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात है अर्थात् MPC = "∆C" /"∆Y" 

2. APC या MPC के गुणांक की सीमा शून्य और 1 के बीच में होती है।

3. विकसित देशों की तुलना में अल्पविकसित देशों में APC और MPC के गुणांक ऊंचे होते है क्योंकि अल्पविकसित देशों में आय का स्तर नीचा होने के कारण उसके बड़े भाग का उपभोग कर लिया जाता है।

4. अल्पकाल में C = Co + bY जब होता है तब औसत उपभोग प्रवृत्ति कम होती जाती है। परन्तु सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति स्थिर रहती है। इस स्थिति में औसत उपभोग प्रवृत्ति, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से अधिक होती है अर्थात् APC > MPC

5. दीर्घकाल में C = bY होता है इसलिए औसत उपभोग प्रवृत्ति और सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति स्थिर रहती है तथा औसत उपभोग प्रवृत्ति, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के बराबर होती है अर्थात् APC = MPC

उपभोग फलन के निर्धारक तत्व

उपभोग फलन निम्नलिखित दो मुख्य तत्वों पर निर्भर करता है:

  1. भावगत तत्व
  2. वस्तुगत तत्व

1. भावगत तत्व

भावगत तत्व वे तत्व हैं जिनका सम्बन्ध मानव प्रकृति की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं तथा सामाजिक रीति रिवाजों से है। इन तत्वों द्वारा यह निर्धारित होता है कि मनुष्य तथा व्यावसायिक संस्थाएं कौन सी स्थितियों में उपभोग कम और बचत अधिक करेंगे। ये तत्व उपभोग वक्र की स्थिति और ढलान को निर्धारित करते है। इन तत्वों को दो भागों में बांटा जा सकता है:

1.  व्यक्तिगत तत्व - एक व्यक्ति के उपभोग तथा उसकी बचत को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित है:

  • दूरदर्शिता
  • आर्थिक स्वतन्त्रता
  • भविष्य में अधिक आय
  • व्यावसायिक उद्देश्य
  • उत्तराधिकार में सम्पति सौंपना
  • कंजूसी
  • सावधानी उद्देश्य

2.  व्यावसायिक तत्व - व्यावसायिक क्षेत्र की बचत तथा उपभोग को प्रभावित करने वाले तत्व इस प्रकार है:

  • व्यावसायिक विस्तार
  • तरलता अधिमान
  • वित्तीय विवेक
  • नवीनीकरण
  • सफल प्रबन्ध

2. वस्तुगत तत्व

वस्तुगत तत्वों के कारण उपभोग प्रवृति में इस प्रकार का परिवर्तन आता है कि उपभोग प्रवृति वक्र ऊपर या नीचे खिसक जाता है। अन्य शब्दों में, उपभोग वक्रों में परिवर्तन आ जाता है। ये तत्व है:

  1. मौद्रिक आय में परिवर्तन
  2. वास्तविक आय में परिवर्तन
  3. आय के वितरण में परिवर्तन
  4. आकस्मिक लाभ और हांनियां
  5. निगमों की वित्तीय नीति
  6. आषंसाओं में परिवर्तन
  7. राजकोशीय नीति
  8. ब्याज दर में परिवर्तन
  9. मजदूरी
  10. तरल परिसम्पत्तियां
  11. सामाजिक सुरक्षा व जीवन बीमा
  12. नई वस्तुओं का आकर्षण
  13. उधार एवं किस्तों की सुविधा
  14. भविष्य में आय की सम्भावना
  15. वस्तुओं की उपलब्धता
  16. यातायात के साधनों का विकास
  17. टिकाऊ वस्तुओं का भण्डार
  18. फैलने तथा रुचियों में परिवर्तन
  19. जनसंख्या में परिवर्तन
  20. स्थिर और अस्थिर आय

उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण

  • 26 Nov 2019
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये

उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण क्या है?

मेन्स के लिये

आर्थिक संवृद्धि के मापन में उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने आँकड़ों की गुणवत्ता के मद्देनज़र वर्ष 2017-18 के दौरान उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (Consumer Expenditure Survey) जारी करने से मना कर दिया।

उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण क्या है?

  • यह एक पंचवर्षीय सर्वेक्षण है जिसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वन मंत्रालय के (Ministry of Statistics and Programme Implementation-MOSPI) के राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office-NSSO) द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (Consumer Expenditure Survey-CES), पूरे देश के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों से प्राप्त सूचना के आधार पर घरेलू स्तर पर होने वाले व्यय के पैटर्न को दर्शाता है।
  • इस सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर किसी परिवार द्वारा वस्तुओं (खाद्य एवं गैर-खाद्य) तथा सेवाओं पर किये जाने वाले औसत खर्च एवं मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (Monthly Per Capita Expenditure-MPCE) का अनुमान लगाया जाता है।

उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (CES) की उपयोगिता:

  • मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग के अनुमान से किसी अर्थव्यवस्था में मांग तथा वस्तुओं और सेवाओं को लेकर लोगों की प्राथमिकताओं का अंदाजा लगाया जाता है।
  • इसके अलावा यह लोगों के जीवन स्तर एवं विभिन्न पैमानों पर आर्थिक संवृद्धि को दर्शाता है।
  • यह संरचनात्मक विसंगतियों की पहचान करता है तथा आर्थिक नीतियों के निर्माण में मददगार साबित होता है जिससे मांग के पैटर्न का पता लगाया जा सके एवं वस्तु तथा सेवाओं के उत्पादकों को मदद मिल सके।
  • CES एक विश्लेषणात्मक प्रक्रिया है जिसका प्रयोग सरकारें जीडीपी तथा अन्य वृहत आर्थिक संकेतकों के पुनर्निर्धारण (Rebasing) के लिये करती हैं।

विगत सर्वेक्षण (वर्ष 2011-12) के आँकड़े:

क्षेत्र मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (MPCE) भोजन पर खर्च (MPCE का प्रतिशत) शिक्षा पर खर्च अनाजों पर खर्च घर का किराया
शहरी क्षेत्र 2,630 रुपए 42.6 प्रतिशत 7 प्रतिशत 6.7 प्रतिशत 6.2 प्रतिशत
ग्रामीण क्षेत्र 1,430 रुपए 53 प्रतिशत 3.5 प्रतिशत 10.8 प्रतिशत 0.5 प्रतिशत
  • वर्ष 2011-12 के आँकड़ों के अनुसार, बेहतर सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले राज्य तथा पिछड़े राज्यों के बीच असमानता में वृद्धि हुई है।
  • MPCE के मामले में शीर्ष पाँच प्रतिशत राज्यों में यह ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 2,886 रुपए था, जबकि निचले पाँच प्रतिशत राज्यों के लिये 616 रुपए था।
  • शीर्ष पाँच प्रतिशत राज्यों के शहरी क्षेत्रों के लिये MPCE 6,383 रुपए था, जबकि निचले पाँच प्रतिशत राज्यों के लिये यह 827 रुपए था।

उपभोग व्यय क्या है in Hindi? - upabhog vyay kya hai in hindi?

वर्ष 2017-18 के सर्वेक्षण पर विवाद:

  • हाल ही में मीडिया द्वारा यह दावा किया गया कि MPCE पर वर्ष 2017-18 के आँकड़ों में वर्ष 1972-73 के बाद पहली बार गिरावट दर्ज की गई है जो कि 3.7% है।
  • इसके अनुसार वास्तविक कीमतों पर वर्ष 2011-12 में MPCE 1,501 रुपए (मुद्रास्फीति के अनुसार समायोजित) था जो वर्ष 2017-18 में घटकर 1,446 रुपए रह गया।
  • इसके अलावा मुद्रास्फीति के अनुसार समायोजित उपभोग व्यय (Inflation Adjusted Consumption Expenditure) ग्रामीण क्षेत्रों में 8.8 प्रतिशत घट गया, जबकि शहरी क्षेत्रों में इसमें 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • इसके विपरीत सरकार का मानना है कि वस्तु एवं सेवाओं के वास्तविक उत्पादन को दर्शाने वाले प्रशासनिक आँकड़ों से ज्ञात होता है कि विगत वर्षों में लोगों के उपभोग व्यय में न केवल वृद्धि हुई है बल्कि उनके उपभोग के पैटर्न में भी विविधता आई है।
  • सरकार का यह भी कहना है कि अधिकांश परिवारों में स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी सामाजिक सेवाओं के उपभोग में वृद्धि हुई है।
  • इसलिये सरकार इस सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों को लेकर संतुष्ट नहीं थी तथा इस मामले को विशेषज्ञों की एक समिति के पास भेजा गया।
  • समिति का कहना है कि इस सर्वेक्षण में कई अनियमितताएँ हैं तथा इसमें प्रयुक्त शोध विधि को लेकर भी कई बदलाव किये जाने की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा कुछ अर्थशास्त्रियों का सरकार के विपरीत तर्क है कि मई 2019 में NSSO द्वारा प्रकाशित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey-PLFS) 2017-18 के अनुसार, देश में बेरोज़गारी पिछले 45 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर है तथा वेतन में स्थिरता बनी हुई है।
  • इसके साथ ही केंद्र सरकार द्वारा प्रकाशित जीडीपी के आँकड़ों के मुताबिक, वर्तमान वित्तीय वर्ष के अप्रैल-जून तिमाही में निजी अंतिम उपभोग व्यय (Private Final Consumption Expenditure) पिछली 18 तिमाहियों के न्यूनतम स्तर पर था।

सरकार के निर्णय का प्रभाव:

  • सरकार द्वारा CES के आँकड़े न जारी करने के इस निर्णय से वर्तमान उपभोक्ताओं के व्यय पैटर्न की सही जानकारी नहीं मिलेगी जिससे नीति निर्माताओं को आर्थिक सुधार से संबंधित रणनीति बनाने में मुश्किल होगी।
  • वर्ष 2017-18 के आँकड़े न जारी होने से सरकार अगला सर्वेक्षण वर्ष 2020-21 या 2021-22 में जारी करेगी। इससे वर्ष 2011-12 में जारी आँकड़ों के बाद 9 या 10 वर्षों का अंतराल आएगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) के विशेष आँकड़े प्रसार मानक (Special Data Dissemination Standard-SDDS) का भागीदार होने के नाते भारत वृहत स्तर के आर्थिक आँकड़े (Macro-Economic Data) प्रकाशित करने के लिये बाध्य है।
  • इन मानकों में निम्नलिखित दिशा-निर्देश शामिल हैं-
    • आँकड़ों का समयानुसार, निश्चित समय के अंतराल पर कवरेज
    • आँकड़ों की जनता तक पहुँच
    • आँकड़ों की गुणवत्ता
    • आँकड़ों की अखंडता
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की एनुअल आब्ज़रवेंस रिपोर्ट (Annual Observance Report) 2018 के अनुसार, भारत अपने आर्थिक आँकड़ों के प्रकाशन में प्रायः देरी करता है जो SDDS के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।
  • राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (National Accounts Statistics) पर सलाहकार समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि वर्ष 2017-18 को जीडीपी के आधार वर्ष के तौर पर पुनर्निर्धारण हेतु प्रयोग करना उचित नहीं होगा क्योंकि इसके द्वारा जारी डेटा भविष्य में संदेहास्पद हो सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू

उपभोग का अर्थ क्या होता है?

उपभोग मानव की वह आर्थिक kriya होती है जिसमें मनुष्‍य की आवाश्‍यकताओं की संतुष्टि होती है। संक्षेप में हम जब कोई मनुष्य किसी आर्थिक वस्‍तुओं तथा सेवाओं के द्वारा संतुष्टि को प्राप्‍त करता है तो कहा जाता है उक्‍त वस्‍तु या सेवा का उपभोग हुआ। तथा उस वस्‍तु तथा सेवा से मिलने वाली संतुष्टि को उपयोगिता कहते है।

उपभोग फलन कितने प्रकार के होते हैं?

उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति दो प्रकार के होते है:.
औसत उपभोग प्रवृत्ति.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति.

अर्थशास्त्र के अनुसार उपभोग क्या है?

उपभोग एक क्रिया हैं जिसके द्वारा अपनी प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग किया जाता हैं और इसकी उपयोगिता मूल्य को उपभोक्ता द्वारा चुकाया जाता है।

आय तथा उपभोग में क्या अंतर है?

उपभोग तथा आय के स्तर में संबंध उपयोग फलन कहलाता है। उपभोग फलन बताता है कि उपभोग आय का फलन है अथवा अन्य शब्दों में उपभोग आय के स्तर पर निर्भर करता है । यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यदि करों का भुगतान तथा जुर्माना नहीं है या शून्य है तो प्रयोज्य आय तथा कुल आय एक समान होंगी।