Dadabhai Naoroji in Hindi भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने वाले दादा भाई नौरोजी को भारतीय राजनीति का पितामह कहा जाता है। दरअसल वे ऐसे राजनेता थे जिनके आदर्शों और महान विचारों से प्रभावित होकर देशवासियों ने उन्हें राष्ट्र पितामह की संज्ञा दी। उन्हें भारत का ग्रैंड ओल्ड मैन, भारतीय अर्थशास्त्र के
जनक और आर्थिक राष्ट्रवाद के जनक भी कहा जाता है। नौरोजी ने न सिर्फ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष भी रह चुके हैं, जिन्होंने स्वराज की मांग की थी। दादा भाई नौरोजी को वास्तुकार और शिल्पकार के रूप में भी जाना जाता है। उनके अंदर देशप्रेम की भावना भी कूट-कूट कर भरी थी, उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया और राष्ट्र हित में बहुत काम किए। आज हम आपको अपने इस आर्टिकल में ऐसे महान
व्यक्तित्व वाले राजनेता दादाभाई नौरोजी के जीवन के बारे में बताएंगे –
दादा भाई नौरोजी का प्रारंभिक जीवन – Dadabhai Naoroji Biography in Hindiभारत के ग्रैंड ओल्ड मैन कहे जाने वाले दादाभाई नौरोजी 4 सितंबर, 1825 को मुंबई के एक गरीब पारसी पुरोहित परिवार में जन्मे थे। उनके पिता का नाम नौरोजो पलांजी डोरडी था, वहीं जब उन्होंने अपने पिता को सही तरीके से पहचानना ही शुरु किया था तभी उनके पिता इस दुनिया को छोड़कर चल बसे थे। आपको बता दें कि तब वह महज 4 साल के थे। जिसके बाद उनकी माता मनेखबाई ने ही उनका पालन-पोषण किया और उन्हें माता-पिता दोनों का प्यार दिया। यही नहीं इस कठिन दौर का हिम्मत से सामना करते हुए उनकी मां ने एक पिता की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई और उन्होंने दादा भाई नौरोजी को निर्धनता के बाबजूद भी उच्च शिक्षा हासिल करवाई। दादाभाई नौरोजी का विवाह – Dadabhai Naoroji Marriageमहज 11 साल की छोटी सी उम्र में ही दादाभाई नौरोजी की शादी गुलबाई से की गई, जिनकी उम्र उस दौरान 7 साल थी। दादाभाई को अपनी इस शादी से तीन संताने भी प्राप्त हुईं थी। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि जिस समय नरौजी जी की शादी हुई थी उस समय भारतीय समाज में बाल विवाह की प्रथा कायम थी और फिर बाद में इस प्रथा को हटा दिया गया था। दादाभाई नौरोजी की शिक्षा – Dadabhai Naoroji Educationभारत के ग्रैंड ओल्ड मैन नौरोजी ने अपनी शुरुआती शिक्षा तो नेटिव एजुकेशन सोसायटी स्कूल से ली थी लेकिन बाकी की पढ़ाई उन्होंने मुंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज से पूरी की थी। बचपन से ही नौरोजी पढ़ाई-लिखाई में काफी अच्छे थे और बुद्धिमान भी थे, उन्हें कोई भी चीज बेहद जल्द समझ आती थी। उन्हें 15 साल की उम्र में ही स्कॉलरशिप भी मिली थी। वहीं उनकी बुद्धिमत्ता, कुशलता, सादगी, और विनम्रता को देखकर प्रिंसिपल ने उन्हें इंग्लैण्ड जाकर शिक्षा पूरी करने के लिए वित्तीय सहायता भी देनी चाही लेकिन दुर्भाग्य से वह इंग्लैण्ड नही जा पाए। दादाभाई नौरोजी जी का करियर – Dadabhai Naoroji Careerपारसी पुरोहित परिवार से तालुक्क रखने वाले दादाभाई नौरोजी ने 1 अगस्त साल 1851 को रहनुमाई मज्दायास्त्री सभा का भी गठन किया था। जिसका मुख्य मकसद पारसी धर्म के लोगों को एक साथ इकट्ठा करना था। वहीं अब यह सोसायटी मुंबई में चलाई जा रही है। इसके अलावा इन्होंने 1853 में फोर्थनाइट पब्लिकेशन के तहत रास्ट गोफ्तार भी बनाया था, जो कि आम आदमी को पारसी अवधारणाओं के बारे में बताने में उनकी मद्द करता था। आपको बता दें कि दादा भाई नौरोजी गणित और अंग्रेजी विषय के एक अच्छे छात्र थे। यही वजह है कि गणित में अपनी मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद वे साल 1855 में मुंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज में ही महज 27 साल की उम्र में गणित और भौतिक शास्त्र के प्रोफेसर बन गए। वहीं उस समय वे किसी स्कूल में प्रोफेसर बनने वाले पहले भारतीय भी थे। आपको बता दें कि एलफिस्टन कॉलेज में प्रोफेसर पद पर सम्मानित होकर उन्होंने 6 साल तक अपनी सेवाएं दी। उन्होंने समाज के लिए भी कई काम किए और लोगों को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया यही नहीं उन्होंने निशुल्क पाठशालाओं की व्यवस्था भी की, ताकि निर्धन व्यक्ति भी आसानी से शिक्षा ग्रहण कर सके और योग्य बन सके। साल 1853 में दादा भाई नौरोजी ने बंबई एसोसिएशन की स्थापना की और साल 1856 में उन्होंने अध्यापक पद से त्याग पत्र दे दिया और इसके बाद साल 1855 में वे दादाभाई ‘कामा एंड को’ कंपनी में नौकरी करने लगे थे, लेकिन कुछ ही समय बाद इन्होने उस कंपनी से भी इस्तीफा दे दिया। दरअसल इस कंपनी में गुटबाजी और अनैतिक नीतियों की वजह से दादाभाई नौरोजी परेशान हो गए थे और इसलिए उन्होंने इस कंपनी में 3 साल नौकरी करने के बाद इस्तीफा देने का फैसला किया। इसके साथ ही आपको बता दें कि यह पहली भारतीय कंपनी थी जो ब्रिटेन में स्थापित हुई थी। इसके बाद साल 1859 में इन्होंने खुद की कपास ट्रेडिंग कंपनी की नींव रखी जो कि बाद में “नौरोजी एंड कंपनी” के नाम से जाने जानी लगी। वहीं 1860 के दशक की शुरुआत में उन्होंने सक्रिय रूप से भारतीयों के उत्थान के लिए काम करना शुरु किया। वहीं भारत में वे ब्रिटिशों की प्रवासीय शासनविधि के सख्त खिलाफ थे। इसके साथ ही इन्होंने ब्रिटिशों के सामने “ड्रेन थ्योरी” भी प्रस्तुत की थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि किस तरह से ब्रिटिशर्स भोले-भाले और बेकसूर भारतीयों पर अत्याचार कर रहे हैं और उनका शोषण कर रहे हैं और हमारे देश को आर्थिक रूप से कमजोर कर रहे हैं। इसके अलावा दादा भाई नौरोजी क्रूर अंग्रेज शासकों की चालाकी का भी इस थ्योरी में जिक्र किया था कि कैसे अंग्रेज योजनाबद्ध तरीके से भारत के धन और संसाधनों में कमी ला रहे हैं और भारतीयों को ही उनके संसाधनों का इस्तेमाल नहीं करने दे रहे हैं। वहीं नौरोजी की इस थ्योरी के बाद गुलाम भारत में अंग्रेजों की नींव को हिलाकर रख दिया था। इसके अलावा इसके बाद दादा भाई नौरोजी का अंग्रेजों पर इतना प्रभाव पड़ा था कि वे इनके नाम से ही खौफ खाने लगी थी। इसके बाद इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के बाद दादाभाई नौरोजी भारत में वापस आ गए थे। साल 1874 में बरोदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय के संरक्षण में भी उन्होंने दीवान के रूप में काम किया था और यहीं से उनकी सामाजिक जीवन की शुरुआत हुई थी। आपको यह भी बता दें कि दादाभाई नौरोजी ने साल 1885 से 1888 के बीच में मुंबई की विधान परिषद के सदस्य के रूप में भी काम किया था। वहीं 1886 उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। इसके अलावा दादाभाई 1893 और 1906 में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। जबकि तीसरी बार साल 1906 में दादाभाई अध्यक्ष बने थे, तब उन्होंने पार्टी में उदारवादियों और चरमपंथियों के बीच एक विभाजन को रोका था। आपको यह भी बता दें कि राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की नींव रखने वाले दादाभाई नौरोजी ने सबके सामने कांग्रेस पार्टी के साथ स्वराज की भी मांग की थी। वहीं वे विरोध के लिए अहिंसावादी और संवैधानिक तरीकों पर भरोसा रखते थे। दादाभाई नौरोजी का राजनैतिक करियर – Dadabhai Naoroji Political Careerदादा भाई नौरोजी के अंदर बचपन से ही देशप्रेम की भावना भरी हुई थी। वे शुरू से ही सामाजिक एवं क्रांतिकारी विचारधारा वाले एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने साल 1853 में ईस्ट इंडिया कंपनी के लीज नवीनीकरण का विरोध भी किया था। वहीं इस मसले में दादा भाई ने क्रूर ब्रिटिश सरकार को तमाम याचिकाएं भी भेजी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी इस बात को सिरे से नकार दिया और लीज को रिन्यू कर दिया था। वहीं भारत के राष्ट्र पितामह और भारत की राजनीति के जनक दादाभाई नौरोजी का मानना था कि भारत के लोगों में अज्ञानता की वजह से ही क्रूर ब्रिटिश शासक, मासूम भारतीयों पर जुल्म ढा रहे हैं और उन पर राज कर रहे हैं। उन्होंने व्यस्कों की शिक्षा के लिए ज्ञान प्रसारक मंडली की भी स्थापना की थी। इसके अलावा उन्होंने भारत की समस्याओं का समाधान करने के मकसद से राज्यपालों और वायसराय को कई याचिकाएं लिखीं। और आखिरी में उन्होंने महसूस किया कि ब्रिटिश लोगों और ब्रिटिश संसद को भारत एवं भारतीयों की दुर्दशा के बारे में अच्छे से पता होना चाहिए। वहीं साल 1855 में महज 30 साल की उम्र में वह इंग्लैंड चले गए थे। दादाभाई नौरोजी जी का इंग्लैंड का सफर – इंग्लैंड पहुंचने के बाद दादाभाई नौरोजी, भारत में विकास के लिए और इसकी दशा सुधारने के लिए वहां कई प्रसिद्ध और प्रबुद्ध संगठनों से मिले और वहां रहने के दौरान उन्होंने कई अच्छी सोसायटी ज्वाइन की। यही नहीं भारत की दुर्दशा बताने के लिए न सिर्फ इंग्लैंड में उन्होंने कई भाषण दिए बल्कि बहुत सारे लेख भी लिखे। उन्होंने 1 दिसंबर 1866 को ‘ईस्ट इंडिया एसोसिएशन’ की स्थापना की। वहीं इस संस्था में भारत के उन उच्च पदस्थ अधिकारियों को शामिल किया गया जिनकी पहुंच ब्रिटिश संसद के सदस्यों तक थी। वहीं साल 1880 में दादाभाई एक बार फिर लंदन गए। और 1892 में वहां हुए आमचुनाव के दौरान उन्हें सेंट्रल फिन्सबरी की तरफ से लिबरल पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुना गया। जहां वे पहले ब्रिटिश भारतीय सांसद चुने गए। इस दौरान उन्होंने भारत और इंग्लैंड में एक साथ आईसीएस की प्रारंभिक परीक्षाओं के आयोजन के लिए ब्रिटिश संसद में प्रस्ताव पारित करवाया। उन्होंने भारत और इंग्लैंड के बीच प्रशासनिक और सैन्य खर्च के विवरण की सूचना देने के लिए विले कमीशन और रॉयल कमीशन भी पारित करवाया। स्वतंत्रता आंदोलन में दादाभाई नौरोजी का योगदान और कांग्रेस की स्थापना – Congress Party Foundedभारत में स्वतंत्रता आंदोलन की नींव दादाभाई नौरोजी ने रखी थी। आपको बता दें कि दादा भाई नौरोजी को ब्रिटिश सरकार की सूझबूझ नीतियों पर यकीन था। दरअसल भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी दादा भाई नौरोजी का मानना था कि ब्रिटिश शासन प्रणाली में अगर सुधार किया जाए तो उसे जनहितकारी बनाया जा सकता है। वहीं वे ऐसे उदारवादी नेता थे, जो हिंसात्मक आंदोलन के सख्त खिलाफ थे। वे गांधी जी की तरह शांतिपूर्ण तरीके से आजादी पाना चाहते थे। आपको बता दें कि एक सच्चे देशभक्त और सदैव राष्ट्र हित के बारे में कार्य करने वाले दादाभाई नौरोजी को अंग्रेजों की रणनीतियां काफी पसंद आती थी यही नहीं, नौरोजी को अंग्रेजों की न्यायप्रियता और सदाशयता पर भी पूरा भरोसा था। वहीं उन्हें इसकी वजह से कई बार जिल्लतों का भी सामना करना पड़ा था लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह उनकी उदार सोच भी प्रकट करती है। भारत के ग्रैंड ओल्ड मैन दादा भाई नौरोजी ने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना कर भारतीयों की सहायता करने और उनकी स्थिति को सुधारने के लिए तमाम तरह की कोशिश की। दरअसल, दादाभाई नौरोजी एक शिक्षित और सभ्य भारतीय समाज का निर्माण करना चाहते थे, वहीं उन्होंने भारत में फैली गरीबी और अशिक्षा के लिए ब्रिटिश शासन को जिम्मेदार बताया। इसके अलावा उन्होंने इस बात का भी खुलासा किया है कि ब्रिटिश राज्य में रहने वाले भारतीयों की औसत आमदनी 20 रुपए प्रतिवर्ष भी नहीं है। दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक ”पावर्टी एंड अन ब्रिटिश रुल इन इंडिया ” में इस बात का उल्लेख किया है। वहीं आपको यह भी बता दें कि जब उन्होंने ब्रिटिश में रहने वाले भारतीयों की दुर्दशा के बारे में बताया तो अंग्रेजी शासकों को उन पर यकीन नहीं हुआ। जिसके बाद उन्होंने अंग्रेजों की सच्चाई शांतिपूर्ण तरीके से सबके सामने लाने के लिए इस पुस्तक को माध्यम बताया। राष्ट्र पितामह और भारतीय राजीनीति के जनक माने जाने लगे दादाभाई नौरोजी ने साल 1885 में ए ओ ह्यूम और दिन्शाव एदुल्जी के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। इसलिए उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना पुरुष भी कहा जाता है। आपको बता दें कि इस महान राजनेता ने साल 1885 से 1888 तक मुंबई की विधान परिषद के सदस्य के दायित्व का निर्वहन किया। और साल 1886 में इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इसके बाद वे दो बार और साल 1893 और 1906 में दोबारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। हमेशा राष्ट्र हित के बारे में सोचने वाले सच्चे देशप्रेमी दादाभाई नौरोजी ने अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान अपनी पार्टी में नरमपंथी और गरमपंथियों के बीच हो रहे विभाजन को रोका और साल 1906 में एक अध्यक्षीय भाषण के दौरान उन्होंने स्वराज की मांग भी की। यही नहीं साल 1892 में उन्होंने लन्दन में हुए आम चुनाव में हिस्सा लिया और उन्होंने लिबरल पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ा और वह अपनी प्रखर प्रतिभा के चलते पहले ब्रिटिश भारतीय सांसद के रुप में भी चुने गए। दादाभाई नौरोजी शांतिपूर्ण तरीके से आजादी पाना चाहते थे और उनका मानना था कि विरोध का स्वरुप अहिंसक और संवैधानिक होना चाहिए। दादाभाई नौरोजी और उनके भारतीय धन की निकासी के सिद्धांत: राष्ट्रहित के बारे में सोचने वाले दादाभाई नौरोजी ने भारतीयों को इस सच्चाई से वाकिफ करवाया कि भारत में गरीबी आंतरिक कारकों की वजह से नहीं है बल्कि, गरीबी अंग्रेजी शासकों की वजह से है। इसके साथ ही उन्होंने अंग्रेजों द्वारा भारत के ‘धन की निकासी’ की तरफ सभी भारतीयों का ध्यान अपनी तरफ खींचा। आपको बता दें कि दादा भाई नौरोजी ने 2 मई, साल 1867 को लंदन में आयोजित ‘ईस्ट इंडिया एसोसिएशन’ की बैठक में धन निकासी के सिद्धान्त को प्रस्तुत किया था। उन्होंने अपने पत्र ‘इंग्लैंड डीबट टू इंडिया ‘ (England Debut To India) को पढ़ते हुए पहली बार भारतीय धन की निकासी के सिद्धान्त को प्रस्तुत किया था। राष्ट्र हित के बारे में सोचने वाले दादा भाई नौरेजी ने कहा था कि “भारत का धन ही भारत के बाहर जाता है, और फिर वही धन भारत को दोबारा कर्ज के रूप में दिया जाता है, यह सब एक दुश्चक्र था, जिसे तोड़ना कठिन था।” इसका जिक्र दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक लिबर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया में किया था। उन्होंने अपनी इस पुस्तक में हर व्यक्ति की वार्षिक आय का अनुमान 20 रुपये लगाया था। दादाभाई नौरोजी ब्रिटिशों को भारत में एक बड़ी बुराई के रूप में मानते थे। वहीं आर.सी. दत्त ने भी दादाभाई नौरोजी से प्रेरित होकर इसी सिद्धांत को बढ़ावा दिया है। इस पुस्तक में इकनॉमिक हिस्ट्री इन इंडिया को एक मुख्य विषय के रूप में रखा गया है। जो धन बाहर गया वह भारत की ही संपत्ति और अर्थव्यवस्था का हिस्सा था, जो कि भारतीयों को इस्तेमाल करने लिए उपलब्ध नहीं था। वहीं दादाभाई नौरोजी की अन्य पुस्तकें, जिसमें उन्होंने धन के निष्कासन सिद्धान्त की व्याख्या की है, ‘द वान्ट्स एण्ड मीन्स ऑफ़ इण्डिया (1870 ई.)’, ‘आन द कॉमर्स ऑफ़ इण्डिया (1871 ई.)’ आदि हैं। आपको बता दें कि दादाभाई नौरोजी ‘धन के बहिर्गमन के सिद्धान्त’ के सबसे पहले और सर्वाधिक प्रखर प्रतिपादक थे। साल 1905 ई. में उन्होंने कहा था कि “भारत से धन की निकासी सभी बुराइयों की जड़ है, और भारतीय निर्धनता का मुख्य कारण भी है।” दादाभाई नौरोजी ने धन निष्कासन को ‘अनिष्टों का अनिष्ट’ की संज्ञा भी दी है। महादेव गोविन्द रानाडे ने भी कहा है कि “राष्ट्रीय पूंजी का एक तिहाई हिस्सा किसी न किसी रूप में ब्रिटिश शासन द्वारा भारत से बाहर ले जाया जाता है। भारत के महान राष्ट्रपिता दादाभाई नौरोजी ने 6 मुख्य कारण बताए हैं, जो धन निकासी के सिद्धांत के कारण बने, जो कि निम्नलिखित है –
इतना ही नहीं दादा भाई नौरोजी भारत की रेलवे जैसी अलग-अलग सेवाओं के माध्यम से ब्रिटेन में भारी रकम पहुंचा रहे थे। दूसरी तरफ भारत में व्यापार और साथ ही श्रम बहुत कम मात्रा में था। इसके साथ ही भारत के उत्पादों को ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीय पैसों से खरीद रही थी। जिसका निर्यात वे ब्रिटेन में कर रहे थे। भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी दादाभाई नौरोजी का निधन – Dadabhai Naoroji Deathदादाभाई नौरोजी, अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में अंग्रेजो द्दारा भारत के बेकसूर लोगों पर अत्याचार करने और उनके शोषण पर लेख लिखा करते थे। इसके अलावा दादाभाई नौरोजी इस विषय पर भाषण दिया करते थे, वहीं दादाभाई नौरोजी ने ही भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन की नींव रखी थी। वहीं 30 जून, 1917 को 91 साल की उम्र में भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी दादाभाई नौरोजी का स्वास्थ्य सही नहीं होने की वजह से ही उनकी मौत हो गई । दादाभाई नौरोजी ने अपनी अंतिम सांस मुम्बई में ही ली। वहीं वे भारत में राष्ट्रीय भावनाओं के जनक थे, जिन्होंने देश मे स्वराज की मांग की थी और स्वतंत्रता आंदोलन की नींव डाली थी। सम्मान और विरासत – Dadabhai Naoroji Awardभारत के महान स्वतंत्रता सेनानी दादाभाई नौरोजी को स्वतंत्रता आंदोलन के समय, सबसे महत्वपूर्ण भारतीयों में से एक के रूप में माना जाता है। जिन्होंने गुलाम भारत को आजाद करवाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके साथ ही दादाभाई नौरोजी द्धारा देश सेवा के लिए किए गए काम और उनके त्याग और बलिदान को हमेशा याद रखने के लिए उनके सम्मान में उनके नाम से रोड का नाम दादाभाई नौरोजी रोड रखा गया है। दादाभाई नौरोजी भारत के ग्रैंड ओल्ड मैन भी माने जाते हैं। दादाभाई नौरोजी का योगदान – Dadabhai Naoroji Contribution
दादाभाई नौरोजी की ग्रंथ संपत्ती – Dadabhai Naoroji Booksपावर्टी। अन ब्रिटिश रुल इन इंडिया।
Please Note: आपके पास About Dadabhai Naoroji In Hindi मैं और Information हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो तुरंत हमें कमेंट मैं लिखे हम इस अपडेट करते
रहेंगे। दादा भाई नौरोजी की पुस्तक का क्या नाम था जिसमें उन्होंने धन निष्कासन के विषय में लिखा था?इनमें दादा भाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक “पावर्टी ऐन्ड अनब्रिटिश रूल इन इन्डिया” (Poverty and Un-British Rule in India) में सर्वप्रथम आर्थिक निकास की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होने धन-निष्कासन को सभी बुराइयों की बुराई (एविल ऑफ एविल्स) कहा है।
दादाभाई नौरोजी की दो पुस्तकें कौन सी हैं?Detailed Solution. सही उत्तर पावर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया है।
दादाभाई नौरोजी का नाम क्या है?दादा भाई नौरोजी का जीवन परिचय (Dadabhai Naoroji Biography In Hindi). ड्रेन ऑफ वेल्थ का लेखक कौन था?Detailed Solution. सही उत्तर दादाभाई नौरोजी है। दादाभाई नौरोजी ने 'ड्रेन ऑफ वेल्थ' पुस्तक लिखी।
|