ठेस कहानी के आधार पर सिरचन का चरित्र-चित्रण कीजिए - thes kahaanee ke aadhaar par sirachan ka charitr-chitran keejie

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'ठेस' की कथावस्तु

 कथावस्तु-' ठेस' फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है। इस कहानी का नायक सिरचन नामक कारीगर है, जो चिक और शीतलपाटी बनाने में बहुत कुशल है। काम के दौरान वह किसी प्रकार की बाधा को सहन नहीं कर पाता है, जिसके लिए वह काम करता है, उनसे अपेक्षा करता है कि उसका सम्मान किया जाए तथा उसे अच्छा खाना दिया जाए, परन्तु बाद में सिरचन काम छोड देता है। वह काम क्‍यों छोड़ता है। यही कहानी का मूल्य कथ्य है। सिरचन कहानीकार के घर काम करने जाता है। मानू कहानीकार की बहन हे। वह सिरचन को भी अपने भाई की तरह मानती है। इसलिए जब मानू के ससुराल वाले चिक और शीतलपाटी की माँग करते हैं, तो काम के लिए सिरचन को बुलाया जाता है। कहानीकार को यह मालूम हे कि यदि सिरचन से काम लेना है तो उसका आदर-सत्कार करना होगा, परन्तु वहां सिरचन का अपमान होता है। सबसे पहला व्यंग्य कहानीकार की मंझली भाभी करती है, उसके बाद कहानीकार की चाची भी सिरचन के चटोरेपन पर व्यंग्य करती हे। जब सिरचन चाची से पान के लिए जर्दा माँगता हे, तो चाची भड़क उठती है तथा सिरचन को बुरी तरह डांटती है। इस अपमान के कारण सिरचन काम छोड़कर चला जाता है। लेखक सिरचन को मनाने जाता है, परन्तु सिरचन कभी भी इस काम को न करने का संकल्प लेता हे। लेखक समझ जाता हे कि एक कलाकार के दिल को ठेस लगी हे।

लेखक अपनी बहन मानू को ससुराल छोड़ने जाता हे। स्टेशन पर अचानक सिरचन आ जाता है। वह मानू को शीतलपाटी, चिक तथा कुश की बनी एक आसानी भेंट करता है। इसके लिए सिरचन मानू से कोई दाम नहीं लेता। इतने अपमान के बावजूद सिरचन का मानू के प्रति स्नेह, मानू को भावुक कर देता हे। वह फूट-फूटकर रोने लगती हे।

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ठेस: फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी 

ठेस कहानी के आधार पर सिरचन का चरित्र-चित्रण कीजिए - thes kahaanee ke aadhaar par sirachan ka charitr-chitran keejie

ठेस कहानी के आधार पर सिरचन का चरित्र-चित्रण कीजिए - thes kahaanee ke aadhaar par sirachan ka charitr-chitran keejie


लेखक: फणीश्वरनाथ रेणु
खेती-बारी के समय, गांव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते. लोग उसको बेकार ही नहीं, ‘बेगार’ समझते हैं. इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को. क्या होगा, उसको बुला कर? दूसरे मजदूर खेत पहुंच कर एक-तिहाई काम कर चुकेंगे, तब कहीं सिरचन राय हाथ में खुरपी डुलाता दिखाई पड़ेगा-पगडंडी पर तौल तौल कर पांव रखता हुआ, धीरे-धीरे. मुफ़्त में मज़दूरी देनी हो तो और बात है.
आज सिरचन को मुफ़्तखोर, कामचोर या चटोर कह ले कोई. एक समय था, जबकि उसकी मड़ैया के पास बड़े-बड़े बाबू लोगों की सवारियां बंधी रहती थीं. उसे लोग पूछते ही नहीं थे, उसकी ख़ुशामद भी करते थे. 

‘...अरे, सिरचन भाई! अब तो तुम्हारे ही हाथ में यह कारीगरी रह गई है सारे इलाक़े में. एक दिन भी समय निकाल कर चलो.’
‘कल बड़े भैया की चिट्ठी आई है शहर से-सिरचन से एक जोड़ा चिक बनवा कर भेज दो.’
मुझे याद है... मेरी मां जब कभी सिरचन को बुलाने के लिए कहती, मैं पहले ही पूछ लेता,‘भोग क्या क्या लगेगा?’
मां हंस कर कहती,‘जा-जा, बेचारा मेरे काम में पूजा-भोग की बात नहीं उठाता कभी.’
ब्राह्मणटोली के पंचानंद चौधरी के छोटे लड़के को एक बार मेरे सामने ही बेपानी कर दिया था सिरचन ने,‘तुम्हारी भाभी नाखून से खांट कर तरकारी परोसती है. और इमली का रस साल कर कढ़ी तो हम कहार-कुम्हारों की घरवाली बनाती हैं. तुम्हारी भाभी ने कहां से बनाईं!’
इसलिए सिरचन को बुलाने से पहले मैं मां को पूछ लेता...
सिरचन को देखते ही मां हुलस कर कहती,‘आओ सिरचन! आज नेनू मथ रही थी, तो तुम्हारी याद आई. घी की डाड़ी (खखोरन) के साथ चूड़ा तुमको बहुत पसंद है न... और बड़ी बेटी ने ससुराल से संवाद भेजा है, उसकी ननद रूठी हुई है, मोथी के शीतलपाटी के लिए.’
सिरचन अपनी पनियायी जीभ को संभाल कर हंसता,‘घी की सुगंध सूंघ कर आ रहा हूं, काकी! नहीं तो इस शादी ब्याह के मौसम में दम मारने की भी छुट्टी कहां मिलती है?’
सिरचन जाति का कारीगर है.
मैंने घंटों बैठ कर उसके काम करने के ढंग को देखा है. एक-एक मोथी और पटेर को हाथ में लेकर बड़े जातां से उसकी कुच्ची बनाता. फिर, कुच्चियों को रंगने से ले कर सुतली सुलझाने में पूरा दिन समाप्त... काम करते समय उसकी तन्मयता में जरा भी बाधा पड़ी कि गेंहुअन सांप की तरह फुफकार उठता,‘फिर किसी दूसरे से करवा लीजिए काम. सिरचन मुंहजोर है, कामचोर नहीं.’ बिना मज़दूरी के पेट-भर भात पर काम करने वाला कारीगर. दूध में कोई मिठाई न मिले, तो कोई बात नहीं, किंतु बात में ज़रा भी झाल वह नहीं बर्दाश्त कर सकता.
सिरचन को लोग चटोर भी समझते हैं... तली-बघारी हुई तरकारी, दही की कढ़ी, मलाई वाला दूध, इन सब का प्रबंध पहले कर लो, तब सिरचन को बुलाओ; दुम हिलाता हुआ हाज़िर हो जाएगा. खाने-पीने में चिकनाई की कमी हुई कि काम की सारी चिकनाई ख़त्म! काम अधूरा रख कर उठ खड़ा होगा,‘आज तो अब अधकपाली दर्द से माथा टनटना रहा है. थोड़ा-सा रह गया है, किसी दिन आ कर पूरा कर दूंगा... ‘किसी दिन’ माने कभी नहीं!
मोथी घास और पटरे की रंगीन शीतलपाटी, बांस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोर के मोढ़े, भूसी-चुन्नी रखने के लिए मूंज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, हलवाहों के लिए ताल के सूखे पत्तों की छतरी-टोपी तथा इसी तरह के बहुत-से काम हैं, जिन्हें सिरचन के सिवा गांव में और कोई नहीं जानता. यह दूसरी बात है कि अब गांव में ऐसे कामों को बेकाम का काम समझते हैं लोग- बेकाम का काम, जिसकी मज़दूरी में अनाज या पैसे देने की कोई ज़रूरत नहीं. पेट-भर खिला दो, काम पूरा होने पर एकाध पुराना-धुराना कपड़ा दे कर विदा करो. वह कुछ भी नहीं बोलेगा...
कुछ भी नहीं बोलेगा, ऐसी बात नहीं. सिरचन को बुलाने वाले जानते हैं, सिरचन बात करने में भी कारीगर है... महाजन टोले के भज्जू महाजन की बेटी सिरचन की बात सुन कर तिलमिला उठी थी-‘ठहरो! मैं मां से जा कर कहती हूं. इतनी बड़ी बात!’
‘बड़ी बात ही है बिटिया! बड़े लोगों की बस बात ही बड़ी होती है. नहीं तो दो-दो पटेर की पटियों का काम सिर्फ़ खेसारी का सत्तू खिला कर कोई करवाए भला? यह तुम्हारी मां ही कर सकती है बबुनी!’ सिरचन ने मुस्कुरा कर जवाब दिया था.
उस बार मेरी सबसे छोटी बहन की विदाई होने वाली थी. पहली बार ससुराल जा रही थी मानू. मानू के दूल्हे ने पहले ही बड़ी भाभी को खत लिख कर चेतावनी दे दी है,‘मानू के साथ मिठाई की पतीली न आए, कोई बात नहीं. तीन जोड़ी फ़ैशनेबल चिक और पटेर की दो शीतलपाटियों के बिना आएगी मानू तो...’ भाभी ने हंस कर कहा,‘बैरंग वापस!’ इसलिए, एक सप्ताह से पहले से ही सिरचन को बुला कर काम पर तैनात करवा दिया था मां ने,‘देख सिरचन! इस बार नई धोती दूंगी, असली मोहर छाप वाली धोती. मन लगा कर ऐसा काम करो कि देखने वाले देख कर देखते ही रह जाएं.’
पान-जैसी पतली छुरी से बांस की तीलियों और कमानियों को चिकनाता हुआ सिरचन अपने काम में लग गया. रंगीन सुतलियों से झब्बे डाल कर वह चिक बुनने बैठा. डेढ़ हाथ की बिनाई देख कर ही लोग समझ गए कि इस बार एकदम नए फ़ैशन की चीज़ बन रही है, जो पहले कभी नहीं बनी.
मंझली भाभी से नहीं रहा गया, परदे के आड़ से बोली,‘पहले ऐसा जानती कि मोहर छाप वाली धोती देने से ही अच्छी चीज़ बनती है तो भैया को ख़बर भेज देती.’
काम में व्यस्त सिरचन के कानों में बात पड़ गई. बोला,‘मोहर छापवाली धोती के साथ रेशमी कुरता देने पर भी ऐसी चीज़ नहीं बनती बहुरिया. मानू दीदी काकी की सबसे छोटी बेटी है... मानू दीदी का दूल्हा अफ़सर आदमी है.’
मंझली भाभी का मुंह लटक गया. मेरे चाची ने फुसफुसा कर कहा,‘किससे बात करती है बहू? मोहर छाप वाली धोती नहीं, मूंगिया-लड्डू. बेटी की विदाई के समय रोज मिठाई जो खाने को मिलेगी. देखती है न.’
दूसरे दिन चिक की पहली पांति में सात तारे जगमगा उठे, सात रंग के. सतभैया तारा! सिरचन जब काम में मगन होता है तो उसकी जीभ ज़रा बाहर निकल आती है, होंठ पर. अपने काम में मगन सिरचन को खाने-पीने की सुध नहीं रहती. चिक में सुतली के फंदे डाल कर अपने पास पड़े सूप पर निगाह डाली-चिउरा और गुड़ का एक सूखा ढेला. मैंने लक्ष्य किया, सिरचन की नाक के पास दो रेखाएं उभर आईं. मैं दौड़ कर मां के पास गया. ‘मां, आज सिरचन को कलेवा किसने दिया है, सिर्फ़ चिउरा और गुड़?’
मां रसोईघर में अंदर पकवान आदि बनाने में व्यस्त थी. बोली,‘मैं अकेली कहां-कहां क्या-क्या देखूं!... अरी मंझली, सिरचन को बुंदिया क्यों नहीं देती?’
‘बुंदिया मैं नहीं खाता, काकी!’ सिरचन के मुंह में चिउरा भरा हुआ था. गुड़ का ढेला सूप के किनारे पर पड़ा रहा, अछूता.
मां की बोली सुनते ही मंझली भाभी की भौंहें तन गईं. मुट्ठी भर बुंदिया सूप में फेंक कर चली गई.
सिरचन ने पानी पी कर कहा,‘मंझली बहूरानी अपने मैके से आई हुई मिठाई भी इसी तरह हाथ खोल कर बांटती है क्या?’
बस, मंझली भाभी अपने कमरे में बैठकर रोने लगी. चाची ने मां के पास जा कर लगाया,‘छोटी जाति के आदमी का मुंह भी छोटा होता है. मुंह लगाने से सर पर चढ़ेगा ही... किसी के नैहर-ससुराल की बात क्यों करेगा वह?’
मंझली भाभी मां की दुलारी बहू है. मां तमक कर बाहर आई,‘सिरचन, तुम काम करने आए हो, अपना काम करो. बहुओं से बतकुट्टी करने की क्या ज़रूरत? जिस चीज़ की ज़रूरत हो, मुझसे कहो.’
सिरचन का मुंह लाल हो गया. उसने कोई जवाब नहीं दिया. बांस में टंगे हुए अधूरे चिक में फंदे डालने लगा.
मानू पान सजा कर बाहर बैठकखाने में भेज रही थी. चुपके से पान का एक बीड़ा सिरचन को देती हुई बोली और इधर-उधर देख कर कहा,‘सिरचन दादा, काम-काज का घर! पांच तरह के लोग पांच किस्म की बात करेंगे. तुम किसी की बात पर कान मत दो.’
सिरचन ने मुस्कुरा कर पान का बीड़ा मुंह में ले लिया. चाची अपने कमरे से निकल रही थी. सिरचन को पान खाते देख कर अवाक हो गई. सिरचन ने चाची को अपनी ओर अचरज से घूरते देख कर कहा,‘छोटी चाची, ज़रा अपनी डिबिया का गमकौआ जर्दा तो खिलाना. बहुत दिन हुए....’
चाची कई कारणों से जली-भुनी रहती थी, सिरचन से. ग़ुस्सा उतारने का ऐसा मौक़ा फिर नहीं मिल सकता. झनकती हुई बोली,‘मसखरी करता है? तुम्हारी चढ़ी हुई जीभ में आग लगे. घर में भी पान और गमकौआ जर्दा खाते हो? ...चटोर कहीं के!’ 
मेरा कलेजा धड़क उठा... यत्परो नास्ति!
बस, सिरचन की उंगलियों में सुतली के फंदे पड़ गए. मानो, कुछ देर तक वह चुपचाप बैठा पान को मुंह में घुलाता रहा. फिर, अचानक उठ कर पिछवाड़े पीक थूक आया. अपनी छुरी, हंसियां वगैरह समेट संभाल कर झोले में रखे. टंगी हुई अधूरी चिक पर एक निगाह डाली और हनहनाता हुआ आंगन के बाहर निकल गया.

ठेस कहानी के आधार पर सिरचन का चरित्र-चित्रण कीजिए - thes kahaanee ke aadhaar par sirachan ka charitr-chitran keejie


चाची बड़बड़ाई,‘अरे बाप रे बाप! इतनी तेजी! कोई मुफ़्त में तो काम नहीं करता. आठ रुपए में मोहरछाप वाली धोती आती है... इस मुंहझौंसे के मुंह में लगाम है, न आंख में शील. पैसा ख़र्च करने पर सैकड़ों चिक मिलेंगी. बांतर टोली की औरतें सिर पर गट्ठर ले कर गली-गली मारी फिरती हैं.’
मानू कुछ नहीं बोली. चुपचाप अधूरी चिक को देखती रही... सातो तारे मंद पड़ गए.
मां बोली,‘जाने दे बेटी! जी छोटा मत कर, मानू. मेले से खरीद कर भेज दूंगी.’
मानू को याद आया, विवाह में सिरचन के हाथ की शीतलपाटी दी थी मां ने. ससुरालवालों ने न जाने कितनी बार खोल कर दिखलाया था पटना और कलकत्ता के मेहमानों को. वह उठ कर बड़ी भाभी के कमरे में चली गई.
मैं सिरचन को मनाने गया. देखा, एक फटी शीतलपाटी पर लेट कर वह कुछ सोच रहा है.
मुझे देखते ही बोला, बबुआ जी! अब नहीं. कान पकड़ता हूं, अब नहीं... मोहर छाप वाली धोती ले कर क्या करूंगा? कौन पहनेगा? ...ससुरी ख़ुद मरी, बेटे बेटियों को ले गई अपने साथ. बबुआजी, मेरी घरवाली ज़िंदा रहती तो मैं ऐसी दुर्दशा भोगता? यह शीतलपाटी उसी की बुनी हुई है. इस शीतलपाटी को छू कर कहता हूं, अब यह काम नहीं करूंगा... गांवभर में तुम्हारी हवेली में मेरी कदर होती थी... अब क्या?’ मैं चुपचाप वापस लौट आया. समझ गया, कलाकार के दिल में ठेस लगी है. वह अब नहीं आ सकता.
बड़ी भाभी अधूरी चिक में रंगीन छींट की झालर लगाने लगी,‘यह भी बेजा नहीं दिखलाई पड़ता, क्यों मानू?’
मानू कुछ नहीं बोली... बेचारी! किंतु, मैं चुप नहीं रह सका,‘चाची और मंझली भाभी की नज़र न लग जाए इसमें भी.’
मानू को ससुराल पहुंचाने मैं ही जा रहा था.
स्टेशन पर सामान मिलाते समय देखा, मानू बड़े जतन से अधूरे चिक को मोड़ कर लिए जा रही है अपने साथ. मन-ही-मन सिरचन पर ग़ुस्सा हो आया. चाची के सुर-में-सुर मिला कर कोसने को जी हुआ... कामचोर, चटोर...!
गाड़ी आई. सामान चढ़ा कर मैं दरवाज़ा बंद कर रहा था कि प्लैटफ़ॉर्म पर दौड़ते हुए सिरचन पर नज़र पड़ी,‘बबुआजी!’ उसने दरवाज़े के पास आ कर पुकारा.
‘क्या है?’ मैंने खिड़की से गर्दन निकाल कर झिड़की के स्वर में कहा. सिरचन ने पीठ पर लादे हुए बोझ को उतार कर मेरी ओर देखा,‘दौड़ता आया हूं... दरवाज़ा खोलिए. मानू दीदी कहां हैं? एक बार देखूं!’
मैंने दरवाज़ा खोल दिया.
‘सिरचन दादा!’ मानू इतना ही बोल सकी.
खिड़की के पास खड़े हो कर सिरचन ने हकलाते हुए कहा,‘यह मेरी ओर से है. सब चीज़ है दीदी! शीतलपाटी, चिक और एक जोड़ी आसनी, कुश की.’
गाड़ी चल पड़ी.
मानू मोहर छापवाली धोती का दाम निकाल कर देने लगी. सिरचन ने जीभ को दांत से काट कर, दोनों हाथ जोड़ दिए.
मानू फूट-फूट रो रही थी. मैं बंडल को खोल कर देखने लगा-ऐसी कारीगरी, ऐसी बारीक़ी, रंगीन सुतलियों के फंदों का ऐसा काम, पहली बार देख रहा था.फ़ोटो साभार: पिंटरेस्ट 

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सिरचन कौन है?

सिरचन अपने इलाके का एक निपुण कारीगर है। उसके जैसी मोथी घास और पटेर की शीतलपाटी, बाँस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोरे के मोढ़े, मूंज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, ताल के सूखे पत्तों की छतरी-टोपी कोई नहीं बना सकता। वह एक प्रतिभाशाली कलाकार है। सिरचन एक स्वाभिमानी कलाकार है।

ठेस कहानी का उद्देश्य क्या है?

Answer: ठेस' कहानी का उद्देश्य एक ग्रामीण कलाकार के स्वाभिमान और आत्मगौरव को प्रकट करना है। कलाकार दूसरों से सम्मान प्राप्त करने का आकांक्षी होता है। उसे जब सम्मान की जगह तिरस्कार और अपमान प्राप्त होता है तो उसके संवेदनशील कोमल हृदय को ठेस पहुंचती है।

ठेस कहानी के कहानीकार का क्या नाम था?

खेती-बारी के समय, गांव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते. लोग उसको बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं. इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को.

ठेस कहानी क्या है?

इस इकाई में आप प्रख्यात आंचलिक उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी 'ठेस' का अध्ययन करेंगे। यह बिहार की पृष्ठभूमि में लिखी हुई कहानी है जिसमें एक चिक और शीतलपाटी बनाने वाले कारीगर के आत्मसम्मान को कहानी का विषय बनाया गया है। इसका नायक सिरचन है जो चिक बनाने का काम करता है ।