Show दुर्खीम ने कौन सा सिद्धांत दिया?दुर्खीम ने स्वयं अपने सिद्धान्त के कुछ निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए कहा है, “धर्म का खोत स्वयं समाज है, धार्मिक धारणाएँ समाज की विशेषताओं के प्रतीक के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं, ईश्वर अथवा पवित्रता की धारणा केवल समाज का ही पर्याय है, और धर्म के आवश्यक कार्य केवल समाज में एकता, स्थायित्व तथा निरन्तरता बनाये रखने के लिए ही है।
दुर्खीम ने समाज के बारे में क्या कहा?दुर्खीम का मत है कि श्रम विभाजन के विकास ने जो एक ऐतिहासिक रूप में आवश्यक प्रक्रिया है, उसने उच्चतम एकता को स्थापित किया है जो कभी नहीं थी। निश्चय ही वह बदलते हुए समाज की सामाजिक एकता और सावयव एकता के सम्बन्ध में कहते समाज में व्यक्तियों के विचारों और प्रवृत्तियों में सामान्यता होती है।
दुर्खीम ने समाज के कितने प्रकार बताए हैं?दुर्खीम के अनुसार समाज या समूह व्यक्ति पर जो दबाव डालता है वह दो प्रकार का होता है-- एक सामाजिक प्राणी के रूप मे व्यक्ति की अनेक मानसिक, शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक आवश्यकताऐ होती है जिन्हें वह दूसरों की सहायता से ही पूर्ण कर सकता है।
दुर्खीम के अनुसार धर्म का पवित्र पहलू क्या है?(Naturism) का खण्डन किया है। दुर्खीम का कहना है कि ये दोनों ही सिद्धान्त पवित्र और अपवित्र में अन्तर की व्याख्या नहीं करते। धर्म कोई रहस्य नहीं है। वह किसी परात्पर (transcendental) ईश्वर में विश्वास नहीं है, वह कोई विभ्रम (illusion) नहीं है।
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