शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव? - shaayar raakhee ke lachchhe ko bijalee kee chamak kee tarah kahakar kya bhaav?

गोदी के चाँद और गगन के चाँद का रिश्ता।


गोदी का चाँद नन्हा बालक है और दूसरा चाँद आसमान में चमकने वाला चाँद है। बच्चों को आज भी चाँद प्यारा लगता है। एक चाँद दूसरे चाँद की माँग करता है। दोनों में गहरा रिश्ता है। बालक आसमान के चाँद को खिलौना समझता है और लेने की हठ करता है। माँ चाँद की छाया दर्पण में दिखलाकर उसे बहलाती है। चाँद की परछाईं भी तो चाँद ही है।

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खुद का परदा खोलने से क्या आशय है?


खुद का परदा खोलने से यह आशय है कि अपने वास्तविक स्वरूप को दर्शाना। जब हम किसी दूसरे को नंगा करने का प्रयास करते हैं तब हम स्वयं नंगे हो जाते हैं। दूसरे के रहस्य को उजागर करना अपने को बेपर्दा करना है। यदि कोई व्यक्ति दूसरे की निंदा करता है तो वह स्वयं की बुराई कर रहा होता है। इसलिए शायर ने कहा है कि मेरा रहस्य खोलने वाले अपने रहस्यों को भी बता रहे हैं।

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‘किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो लें हैं’- इस पंक्ति में शायर की किस्मत के साथ तना-तनी का रिश्ता अभिव्यक्त हुआ है। चर्चा कीजिए।


किस्मत शायर पर रोती है अर्थात् उससे गिला-शिकवा करती है जबकि शायर अपनी किस्मत पर रोता है। उसकी किस्मत ही खराब है। इस प्रकार शायर और किस्मत में तना-तनी चलती रहती है। दोनों का संबंध अटूट जो है। कवि कहता है कि उसका भाग्य भी कभी उसके साथ नहीं रहा। किस्मत सदैव उसके खिलाफ रही। इसलिए वह किस्मत पर भरोसा नहीं करता। जब भी भाग्य की चर्चा होती है तो वह उसके नाम पर रो लेता है।

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शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है?


शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर यह भाव व्यंजित करना चाहता है कि जो संबंध बादलों की घटा का बिजली के साथ है, वही संबंध भाई का बहन के साथ है। राखी कोई साधारण वस्तु नहीं है। इसके लच्छे बिजली चमक की तरह रिश्तों की पवित्रता को व्यंजित करते हैं। बिजली चमककर किसी सत्य का उद्घाटन कर जाती है, इसी प्रकार राखी के लच्छे भी चमककर संबंधों के उत्साह का उद्घाटन कर जाते हैं। शायर ने रक्षाबंधन के त्योहार का रोचक वर्णन किया है। रक्षाबंधन के कच्चे धागे ऐसे हैं जैसे बिजली के लच्छे। रक्षाबंधन सावन मास में आता है। सावन मास में बादल होते हैं। घटा का जो संबंध बिजली से है वही संबंध भाई का बहन से है। कवि कहना चाहता है कि यह पवित्र बंधन बिजली की तरह चमकता है।

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सावन की घटाएँ व रक्षाबंधन का पर्व।


रक्षाबंधन का त्योहार सावन में आता है। सावन के महीने में आकाश में घटाएँ घिर आती हैं। घटाओं के मध्य बिजली चमकती है। इन घटाओं का संबंध रक्षाबंधन के पर्व से है। सावन का जो संबंध झीनी घटा से है और घटा का जो संबंध बिजली से है-रक्षाबंधन के पर्व मंं वही संबंध भाई का अपनी बहन से है।

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Short Note

शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है?

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Solution

शायर राख के लच्छे को बिजली की चमक कहकर भाई-बहन के संबंध की घनिष्टता को व्यक्त करना चाहता है। भाई-बहन को शायर बादल की घटा तथा बिजली के रूप में अभिव्यक्त करता है। राखी उसी घनिष्टता का प्रतीक है, जो प्रत्येक भाई के हाथ में राखी के धागे के रूप में दिखाई देता है। यह दोनों के मध्य प्रेम तथा पवित्रता का सूचक है।

Concept: काव्य भाग

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Chapter 9: फ़िराक गोरखपुरी (रुबाइयाँ, गज़ल) - अभ्यास [Page 60]

Q 1.PrevQ 2.

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NCERT Class 12 Hindi - Aaroh [हिंदी - आरोह १२ वीं कक्षा]

Chapter 9 फ़िराक गोरखपुरी (रुबाइयाँ, गज़ल)
अभ्यास | Q 1. | Page 60

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Solution : शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर यह बताना चाहता है कि सावन मास में रक्षाबंधन के दिन बरसा में जिस तरह बिजली चमकती है उसी प्रकार बहन चमकती राखी बाँधकर भाई के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती है। रक्षाबंधन एक मीठा बंधन है। सावन का जो संबंध झीनी घटा से है, घटा का जो संबंध बिजली से है वही संबंध भाई का बहन से होता है।

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Solutions For All Chapters Aroh Class 12

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है?

उत्तर:
शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर यह भाव व्यंजित करना चाहता है कि रक्षाबंधन सावन के महीने में आता है। इस समय आकाश में घटाएँ छाई होती हैं तथा उनमें बिजली भी चमकती है। राखी के लच्छे बिजली कौधने की तरह चमकते हैं। बिजली की चमक सत्य को उद्घाटित करती है तथा राखी के लच्छे रिश्तों की पवित्रता को व्यक्त करते हैं। घटा का जो संबंध बिजली से है, वही संबंध भाई का बहन से है।

प्रश्न 2.
खुद का परदा खोलने से क्या आशय है?

उत्तर:
परदा खोलने से आशय है – अपने बारे में बताना। यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे की निंदा करता है या बुराई करता है। तो वह स्वयं की बुराई कर रहा है। इसीलिए शायर ने कहा कि मेरा परदा खोलने वाले अपना परदा खोल रहे हैं।

प्रश्न 3.
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं – इस पंक्ति में शायर की किस्मत के साथ तनातनी का रिश्ता अभिव्यक्त हुआ है। चर्चा कीजिए।

उत्तर:
कवि अपने भाग्य से कभी संतुष्ट नहीं रहा। किस्मत ने कभी उसका साथ नहीं दिया। वह अत्यधिक निराश हो जाता है। वह अपनी बदकिस्मती के लिए खीझता रहता है। दूसरे, कवि कर्महीन लोगों पर व्यंग्य करता है। कर्महीन लोग असफलता मिलने पर भाग्य को दोष देते हैं और किस्मत उनकी कर्महीनता को दोष देती है।

टिप्पणी करें।

(क) गोदी के चाँद और गगन के चाँद का रिश्ता।

(ख) सावन की घटाएँ व रक्षाबंधन का पर्व।

उत्तर:
(क) गोदी के चाँद से आशय है – बच्चा और गगन के चाँद से आशय है – आसमान में निकलने वाला चाँद। इन दोनों में गहरा और नजदीकी रिश्ता है। दोनों में कई समनाताएँ हैं। आश्चर्य यह है कि गोदी का चाँद गगन के चाँद को पकड़ने के लिए उतावला रहता है तभी तो सूरदास को कहना पड़ा ”मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों।”

(ख) रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार सावन के महीने में आता है। सावन की घटाएँ जब घिर आती हैं तो चारों ओर खुशी की बयार बहने लगती है। राखी का यह त्यौहार इस मौसम के द्वारा और अधिक सार्थक हो जाता है। सावन की काली-काली घटाएँ भाई को संदेश देती हैं कि तेरी बहन तुझे याद कर रही है। यदि तू इस पवित्र त्यौहार पर नहीं गया तो उसकी आँखों से मेरी ही तरह बूंदें टपक पड़ेगी।

कविता के आसपास

प्रश्न 1.
इन रुबाइयों से हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के मिले-जुले प्रयोग को छाँटिए।

उत्तर:

हिंदी के प्रयोग-

आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों में झुलाती है उसे गोद-भरी
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
दीवाली की शाम घर पुते और सजे
रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी

उर्दूके प्रयोग-

उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
देख आईने में चाँद उतर आया है

लोकभाषा के प्रयोग-

रह-रह के हवा में जो लोका देती है।
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े
आँगन में दुनक रहा है जिदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है

आपसदारी

प्रश्न 1.
कविता में एक भाव, एक विचार होते हुए भी उसका अंदाजे बयाँ या भाषा के साथ उसका बर्ताव अलग-अलग रूप में अभिव्यक्ति पाता है। इस बात को ध्यान रखते हुए नीचे दी गई कविताओं को पढ़िए और दी गई फ़िराक की गज़ल-रूबाई में से समानार्थी पंक्तियाँ ढूंढ़िए

शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव? - shaayar raakhee ke lachchhe ko bijalee kee chamak kee tarah kahakar kya bhaav?

(ख) आबो ताबे अश्आर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं।
ऐसे में तू याद आए हैं अंजमने मय में रिंदो को,
रात गए गर्दै पे फरिश्ते बाबे गुनह जग खोले हैं।

(ग) “ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी होलें हैं।”

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बच्चे की हँसी सबसे ज्यादा कब पूँजी है?

उत्तर:
जब माँ अपने बच्चे को उछाल-उछाल कर प्यार करती है तो बच्चे की हँसी सबसे ज्यादा पूँजती है। बच्चा खुले वातावरण में आकर बहुत खुशी महसूस करता है। जब वह ऊपर की ओर बार-बार उछलता है तो वह रोमांचित हो उठता है।

प्रश्न 2.
माँ बच्चे को किस प्रकार तैयार करती है?

उत्तर:
माँ बच्चे को छलकते हुए निर्मल और स्वच्छ पानी से नहलाती है। उसके बालों में प्यार से कंघी करती है। उसे कपड़े पहनाती है। यह सारे कार्य देखकर बच्चा बहुत खुश होता है। वह ठंडे पानी से नहाकर ताजा महसूस करता है। अपनी माँ को प्यार से देखता है।

प्रश्न 3.
बच्चा किस वस्तु के कारण लालची बन जाता है?

उत्तर:
बच्चा जब चाँद को देखता है तो उसका मन लालची हो जाता है। वह चाँद को पकड़ने की जिद करता है। वह माँ से कहता है कि मुझे यही वस्तु चाहिए। चाँद को देखते ही उसका मन लालच से भर जाता है।

प्रश्न 4.
क्या शायर भाग्यवादी है?

उत्तर:
शायर बिलकुल भी भाग्यवादी नहीं है। उसे अपने भाग्य पर बिलकुल भरोसा नहीं। वह तो कहता है कि मैं और मेरी किस्मत दोनों मिलकर रोते हैं। वह मुझ पर रोती है और मैं उस पर रो लेता हूँ। दोनों परस्पर विरोधी हैं। इसलिए कह सकते हैं। कि शायर भाग्यवादी नहीं कर्मवादी है। भाग्य की अपेक्षा उसे अपने कर्म पर विश्वास है।

प्रश्न 5.
इश्क की फितरत को शायर ने क्या बताया है?

उत्तर:
इश्क की फितरत अर्थात् आदत है कि इससे व्यक्ति को कुछ प्राप्त नहीं होता। व्यक्ति जितना पाता है उतना ही नँवा भी देता है। इसलिए इश्क में कुछ पा लेना संभव ही नहीं है। किसी ने आज तक इश्क में कुछ भी नहीं पाया केवल खोया ही है। अपना चैन आँवाया है।

प्रश्न 6.
फिराक गोरखपुरी की भाषा-शैली पर विचार करें।

उत्तर:
फिराक गोरखपुरी मूलत: शायर हैं। रुबाइयाँ भी उन्होंने लिखी हैं। इन सबके लिए उन्होंने प्रमुख रूप से उर्दू भाषा का प्रयोग किया है। खास बात यह है कि इनकी भाषा में कठिनाई नहीं है। हाँ, कुछ शब्द उलझाव पैदा करते हैं, लेकिन वे पाठक को कठिन नहीं लगते।

प्रश्न 7.
गोरखपुरी की अलंकार योजना पर प्रकाश डालें।

उत्तर:
फिराक ने कई अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इसलिए उनकी रुबाइयों और गजलों में अलंकारों का प्रयोग थोपा हुआ नहीं लगता। ये भावों और प्रसंगों के अनुकूल इनमें आए हैं। शायर ने मुख्य रूप से रूपक, उपमा, अनुप्रास, संदेह और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का प्रयोग किया है।

प्रश्न 8.
गोरखपुरी की रुबाइयों के कला पक्ष के बारे में बताएँ।

उत्तर:
गोरखपुरी की रूबाइयाँ कलापक्ष की दृष्टि से बेहतरीन बन पड़ी हैं। भाषा सहज, सरल और प्रभावी हैं। भावानुकूल शैली का प्रयोग हुआ है। उर्दू शब्दावली के साथ-साथ शायर ने देशज संस्कृत के शब्दों का प्रयोग भी स्वाभाविक ढंग से किया है। लोका, पिन्हाती, पुते, लावे आदि शब्दों के प्रयोग से उनकी रुबाइयाँ अधिक प्रभावी बन पड़ी हैं।

प्रश्न 9.
रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे भाई के हैं बाँधती चमकती राखी”-इस रुबाई का कला सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर:
भाषा सहज, सरल और प्रभावशाली है। शायर ने उर्दू शब्दों के साथ-साथ देशज शब्दों का भावानुकूल प्रयोग किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश और रूपक अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 10.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें-

आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ीं
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी।

उत्तर:
कवि बताता है कि माँ अपने चाँद जैसे बच्चे को आँगन में लिए खड़ी है। वह हाथों के झूले में झुला रही है। वह उसे हवा में धीरे-धीरे उछाल रही है। इस काम से बच्चे की हँसी गूंज उठती है। ‘चाँद के टुकड़े’ में उपमा अलंकार है। ‘रहरह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। बालसुलभ चेष्टाओं का वर्णन है। उर्दू मिश्रित शब्दावली है। गेयता है। दृश्य बिंब है। भाषा सहज व सरल है। उर्दू भाषा है।

प्रश्न 11.
फिराक की रुबाइयों में उभरे घरेलू जीवन के बिंबों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

अथवा
‘फिराक गोरखपुरी की रुबाइयों में ग्रामीण अंचल के घरेलू रूप की स्वाभाविकता और सात्विकता के अनूठे चित्र चित्रित हुए हैं’ – पाठ्यपुस्तक में संग्रहीत रुबाइयों के आधार पर उत्तर दीजिए। 

उत्तर:
फिराक की रुबाइयों में ग्रामीण अंचल के घरेलू रूप का स्वाभाविक चित्रण मिलता है। माँ अपने शिशु को आँगन में लिए खड़ी है। वह उसे झुलाती है। बच्चे को नहलाने का दृश्य दिल को छूने वाला है। दीवाली व रक्षाबंधन पर जिस माहौल को चित्रित किया गया है। वह आम जीवन से जुड़ा हुआ है। बच्चे का किसी वस्तु के लिए जिद करना तथा उसे किसी तरह बहलाने के दृश्य सभी परिवारों में पाए जाते हैं।

प्रश्न 12.
रुबाइयाँ के आधार पर घर आँगन में दीवाली और राखी के दृश्य बिंब को अपने शब्दों में समझाइए।

उत्तर:
दीवाली के त्योहार पर पूरा घर रंगरोगन से पुता हुआ है। माँ अपने नन्हें बेटे को प्रसन्न करने के लिए चीनी मिट्टी के जगमगाते खिलौने लेकर आती है। वह बच्चों के घर में दीया जलाती है। इसी तरह राखी के समय आकाश में काले-काले बादलों की हल्की घटा छाई हुई है। छोटी बहन ने पाँवों में पाजेब पहनी हुई है जो बिजली की तरह चमक रही है।

शायर राखी के लक्ष्य को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यतीत करना चाहता है?

शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है? Solution : शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर यह बताना चाहता है कि सावन मास में रक्षाबंधन के दिन बरसा में जिस तरह बिजली चमकती है उसी प्रकार बहन चमकती राखी बाँधकर भाई के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती है। रक्षाबंधन एक मीठा बंधन है।

खुद का परदा खोलने का क्या आशय है?

खुद का परदा खोलने का तात्पर्य है कि अपना असली चेहरा दूसरों को दिखा देते हैं। शायर कहता है कि जब हम किसी की बुराई कर रहे होते हैं, तो हम यह भूल जाते हैं कि हम सामने वाले को अपना असली चेहरा दिखा देते हैं।