श्रीकृष्ण ने सुदामा को घर कैसे लौटाया? - shreekrshn ne sudaama ko ghar kaise lautaaya?

नीचे लिखे काव्यांशों को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आदर की बात।
वह पठवनि गोपाल की, कछू न जानी जात।।
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।
कहा भयो जो अब भयो, हरि को राज-समाज।
हौं आवत नाहीं हुतौ, वाही पठयो ठेलि।।
अब कहिहौं समुझाय कै, बहु धन धरी सकेलि।।
कृष्ण ने सुदामा को कैसे लौटाया?

  • खाली हाथ
  • धन-दौलत देकर
  • राजपाठ का एक अंश देकर
  • राजपाठ का एक अंश देकर

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सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए। 


सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण व्यथित हो गए और दूसरीं पर करुणा करने वाले दीनदयाल स्वयं रो पड़े।

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कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।।
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।


इस दोहे में रहीम जी का कहना है कि जब मनुष्य के पास धन-संपत्ति होती है ता बहुत से लोग उसके मित्र बन जाते हैं, लेकिन जो मुश्किल समय में साथ देते हैं वही सच्चे मित्र कहलाते हैं।
सुदामा चरित के अनुरूप यह दोहा पूर्णतया सही है क्योंकि कृष्ण व सुदामा बचपन के मित्र तो। थे लेकिन बड़ होकर कृष्ण द्वारिकाधीश बने और सुदामा गरीब के गरीब ही रहे। एक बार पत्नी के आग्रह करने पर कि आप अपने मित्र कृष्ण के पास जाओ वे अवश्य हमारी सहायता करेंगे। सुदामा जब कृष्ण के पास जाते हैं तो वे उसे सर- आँखों पर बिठाते हैं। उनका आदर सत्कार कर उनकी दीन दशा हेतु व्यथित हो उठते हैं। जब सुदामा वापिस घर जाते हैं तो मार्ग मैं सोचते हैं कि कृष्ण के पास आना व्यर्थ रहा। उन्होंने कुछ भी सहायता नहीं की। लेकिन जब अपने गाँव पहुँचते हैं ताे देखकर हैरान हो जाते हैं कि उनके राजसी ठाठ-बाट बन चुके हैं। मन-ही-मन कृष्ण के प्रति कृतज्ञ हो जाते हैं कि प्रत्यक्ष रूप से कुछ देकर उन्होंने मित्रता को छोटा नहीं किया।

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“पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।” पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।


जब सुदामा दीन-हीन अवस्था में कृष्ण के पास पहुँचे तो कृष्ण उन्हे देखकर व्यथित हो उठे। उनकी फटी हुई एड़ियाँ व काँटे चुभे पैरों की हालत उनसे देखी न गई। परात में जो जल सुदामा के चरण धोने हेतु मँगवाया गया था उसे कृष्ण ने हाथ न लगाया। अपने आँसुओं के जल से ही उनके पाँव धो डाले। कृष्ण के मैत्री भाव को देखकर सब चकित थे।

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द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे, इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए।


श्रीकृष्ण सुदामा की प्रत्यक्ष रूप में सहायता नहीं करना चाहते थे क्योंकि देने का भाव आते ही मित्रता बड़े-छोटे की भावना में बदल जाती है जबकि कृष्ण ऐसा नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सुदामा की सहायता प्रत्यक्ष रूप में न करके अप्रत्यक्ष रूप में की।
द्रुपद और द्रोणाचार्य भी मित्र थे एक साथ आश्रम में पढ़ते थे। द्रुपद बहुत अमीर व द्रोणाचार्य बहुत गरीब थे। द्रुपद ने द्रोणाचार्य से कहा कि जब मैं शासन-सत्ता की संभाल करूँगा तो आधा राज्य तुम्हें सौंप दूँगा ताकि तुम्हारी गरीबी समाप्त हो जाए। इस प्रकार मित्रता का वचन निभाउँगा। समय आता है, द्रुपद राजा बनता है लेकिन अपना वायदा भूल जाता है। द्रोणाचार्य ने अपने जीवन में अत्यधिक कठिनाइयाँ झेली थीं। एक दिन सहायता हेतु द्रुपद के पास जाते हैं तो वह उस गरीब ब्राह्मण मित्र का अपमान कर उन्हें दरबार से बाहर निकलवा देता है।
इन दोनों वक्तव्यों में अंतर यह है कि कृष्ण ने अप्रत्यक्ष रूप में मित्र की सहायता कर मित्रता का मान बढ़ाया और द्रुपद ने मित्र को अपमानित करके मित्रता को कलंकित किया।

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उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता-भाई-बंधुओं से नजर फेरने लग जाता है, ऐसे लोगों के लिए सुदामा चरित कैसी चुनौती खड़ी करता है? लिखिए।


यह सत्य है कि आजकल उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता, भाई-बंधुओं से नजर फेर लेता है। ऐसे लोगों के लिए सुदामा चरित ऐसी चुनौती खड़ी करता है कि उन्हें अपनी सभ्यता व संस्कृति से सीख लेनी चाहिए कि युगों पूर्व ईश्वरीय स्वरूप कृष्ण ने भी अपने मित्र का साथ न छोड़ा जिस मित्र ने बचपन में उनके हिस्से के चने खाकर उन्हें धोखा भी दिया। लेकिन जब वह दीन अवस्था में कृष्ण के समक्ष आया तो उन्होंने गरीबी अमीरी का भेदभाव भुलाकर उसे अपने हदय से लगा लिया। लेकिन हम थोड़ा-सा संपन्न होते हैं तो अपनें माता-पिता जो कि हमें जन्म देने वाले व हमारे मार्ग दर्शक हैं, उन्हें कैसे भूल जाते हैं? भाई-बंधु जो पल-पल के दुख-सुख में हमारा साथ देते हैं उन्हें भुलाना या उनसे नजरें फेरना क्या उचित है? हमें चाहिए कि दुख के क्षण है या सुख की घड़ियाँ सभी के साथ मिल-जुल कर रहें। सामाजिक व पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूर्णरूप से निभाएँ।

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श्री कृष्ण ने सुदामा को कैसे लौटाया?

कृष्ण ने सुदामा को पहले तो खाली हाथ लौटाया। जब सुदामा कृष्ण के पास अपनी दीनहीन अवस्था से निजात पाने के लिए किसी मदद की आस में पहुंचे थे तो कृष्ण ने उनका खूब आदर सत्कार किया। यहाँ तक कि कृष्ण सुदामा के प्रति प्रेम में इतने भाव-विह्वल हो गए कि उनकी आँखों से निकले आँसूओं से ही सुदामा के चरण धो डालें।

श्री कृष्ण ने सुदामा से क्या कहा?

“पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।” पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। जब सुदामा दीन-हीन अवस्था में कृष्ण के पास पहुँचे तो कृष्ण उन्हे देखकर व्यथित हो उठे। उनकी फटी हुई एड़ियाँ व काँटे चुभे पैरों की हालत उनसे देखी न गई।

अपने गाँव लौटने पर सुदामा के मन में क्या समा गया था?

अपने गाँव लौटने पर सुदामा के भ्रमित का कारण था उसके गाँव का बदलाव होना, अब उसका गाँव भी द्वारका की भाँति दिख रहा था। वह यह सोचने लगा कि कहीं गलती से घूम कर फिर से द्वारका ताे नहीं पहुंच गया। वास्तव में यह श्रीकृष्ण की असीम कृपा थी। उन्होंने प्रत्यक्ष नहीं अप्रत्यक्ष रूप से सुदामा को सब कुछ दे दिया।

सुदामा कृष्ण से मिले तो कृष्ण ने क्या किया?

सुदामा एक दरिद्र ब्राह्मण थे। यह अंतर उनकी सच्ची मैत्री में बीच नहीं आया। सुदामा श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका गए। उन्होंने भगवान कृष्ण को भेंट करने के लिए एक बहुत ही विनम्र उपहार रखा।