प्रत्येक वर्ष '21 सितम्बर' को विश्व शांति दिवस अथवा 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस'सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। यह दिवस सभी देशों और लोगों के बीच स्वतंत्रता, शांति और खुशी का एक आदर्श माना जाता है। Show 'विश्व शांति दिवस' मुख्य रूप से पूरी पृथ्वी पर शांति और अहिंसा स्थापित करने के लिए मनाया जाता है। सयुंक्त राष्ट्र संघ महासभा ने सभी देशों और देश के भीतर लोगों के बीच शांति के आदर्शों को मजबूत बनाने के लिए इस दिन को शांति के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मानाने की घोषणा की है | विश्व शांति दिवस का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र का मुख्य लक्ष्य सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम करना है। अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र का जन्म हुआ है | संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में शान्ति की अहमियत का प्रचार-प्रसार करना बेहद जरूरी और प्रासंगिक हो गया है। इसलिए संयुक्त राष्ट्रसंघ, और उसकी तमाम संस्थाएँ, गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसायटी और राष्ट्रीय सरकारें प्रतिवर्ष 21 सितम्बर को ‘अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस’ का आयोजन करती हैं। शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को शांतिदूत के रूप में भी नियुक्त कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तीन दशक पहले यह दिन सभी देशों और उनके निवासियों में शांतिपूर्ण विचारों को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित किया था | विश्व शांति दिवस का संक्षिप्त इतिहास विश्व शांति दिवस पहली बार 21 सितंबर 1982 में मनाया गया था जिसमे कई देशों, राजनीतिक समूहों , सैन्य समूहों, के लोग शामिल थे | शांति के पहले अंतर्राष्ट्रीय दिवस का विषय था “Right to peace of people.” वर्ष 1982 से शुरू होकर 2001 तक सितम्बर महीने का तीसरा मंगलवार 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' या 'विश्व शांति दिवस' के लिए चुना जाता था, लेकिन वर्ष 2002 से इसके लिए 21 सितम्बर का दिन घोषित कर दिया गया। वर्ष 2012 के 'विश्व शांति दिवस' का विषय था - "धारणीय भविष्य के लिए धारणीय शांति"। विश्व शान्ति दिवस के विषय
संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व शान्ति के लिए उठाये गए कदम संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व शांति की दिशा में किए गए प्रयास सकारात्मक, उपलब्धियो, व्यवधानी तथा असफलताओं का मिश्रित दर्शन कराते है । कुछ प्रकरणो में तो स्थाई एवं पक्के समझौते हो पाये । जैसे सोवियत संघ को 1946 में ईरान तथा 1988 में अफगानिस्तान से अपनी सैनिक टुकड़ियां वापिस बुलानी पडी । इंडोनेशिया की सन् 1950 में एक स्वतन्त्र राज्य के रूप में स्थापना से यहाँ के संकट का हल हो ही गया । इसी तरह, 1990 में नामीबिया की स्वतन्त्र सरकार की स्थापना के पश्चात् नामीबिया विवाद भी हल हो गया । लेबनान, सीरिया तथा स्वेज संकट में संयुक। राष्ट्र के हस्तक्षेप के कारण ब्रिटिश तथा फ्रैंच सैनिक टुकडियों की वापसी हुई । सन् 1908 में बर्लिन संकट संयुक्त राष्ट्र से हटकर सीधे सम्पर्क के आधार पर हुये समझौते से हुआ, किन्तु इस समझौते तक पहुंचने में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी । ग्रीस तथा उसके पडोसी राज्यो के मध्य बलकान सघर्ष में ऐसा ही हुआ, कुछ विवादास्पद मामलों को सुरक्षा परिषद के आइवान पर अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णयार्थ भी ले जाया जा सका ।1946 का कौर्फू चैनल विवाद इसी श्रेणी में आता है । इस संगठन के योगदान के कारण ही यद्यपि कश्मीर एवं फिलीस्तीन जैसे देशों के लड़ाई-झगड़े कम हुये हैं किन्तु फिर भी कोई अन्तिम समझौता नहीं हो पाया है । कुछ मामलों में इन्हें गतिरोधों का सामना करना पडा है तथा हताश भी होना पड़ा । दक्षिण अफ्रीका महासभा द्वारा पारित प्रस्तावों को लगातार नकारता रहा तथा रंगभेद को समाप्त करने के सभी प्रयासों का विरोध करता रहा । संयुक्त राष्ट्र संघ कई बार तो कुछ मामलों के सम्बंध में अपने कर्तव्यों का पालन करने मे असमर्थ भी रहा है । 1950 में कोरिया संकट तथा 1991 में खाड़ी युद्ध इसकी प्रमुख असफलता है । इसके द्वारा की जाने वाली गतिविधियों का परिणाम जो भी रहा हो, इसकी कार्यवाही विविध विपक्षी देशों के मध्य कारगर सम्पर्क बनाने में भी सफल न हो पाई । इस दिशा में सामूहिक सुरक्षा सम्बंधी कार्यवाही के पश्चात् भी कोई प्रगति नहीं हो पाई बल्कि यह विवादों के घेरे में खड़ा ही दिखाई दिया और इसकी निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह लग गया । फिर भी अन्तर्राष्ट्रीय मामलों अथवा विवादों के समाधान की दिशा में इसका योगदान विशेष रूप से सराहनीय रहा है । इसके योगदान की एक विशेषता इसका व्यवहारवादी दृष्टिकोण रहा है । प्रत्येक मामले में इसने ऐसे आधार ढूंढने के प्रयत्न किए जिससे विवादास्पद मुददे पर बातचीत करने के लिए उस विवाद से सम्बंधित सभी पक्ष स्वेच्छा से तैयार हो जाए । भारत और विश्व शांति भारत सयुंक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक सदस्यो में से है।भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्रों के बीच शांति की स्थापना पर विशेष रूप से जोर देने वाला राष्ट्र है । इसने समस्त विश्व में गुटनिरपेक्षता की नीति के अंतर्गत शांति की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । भारत की विदेश नीति का यह एक आधारभूत सिद्धांत विश्व शान्ति को बनाए रखना है। भारत विश्व में शांति और व्यवस्था बनाए रखने में एव मानव अधिकारों के संरक्षण आदि में संयुक्त राष्ट्र के क्रियाकलापों में सक्रिय रूप से भाग लेता रहा है । भारत द्वारा विश्व शांति के लिए सयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत समय - समय पर शान्ति सेनाएं भी भेजी गई है।भारत द्वारा किसी भी राज्य के क्षेत्र पर जबरदस्ती अधिकार करने या किसी देश द्वारा दूसरें देश के मामलों में हस्तक्षेप करने को संयुक्त राष्ट्र में अनुचित ठहराया गया है । भारत इसे राज्यों की प्रभुसत्ता और क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांतों का उल्लंघ्न मानता है । भारत ने समस्याओं के समाधान के लिए बातचीत और शांतिपूर्ण उपायों का समर्थन किया । भारत ने मिस्र, हंगरी, कांगो, लेबनान के प्रभुसत्तात्मक अधिकारों का जोरदार समर्थन किया और उन देशों के बीच युद्ध को बिना शर्त समाप्त करने का आग्रह किया चाहे वह युद्ध किसी भी देश ने शुरू किया हो और चाहे उसका कुछ भी कारण रहा हो । शांति के प्रयास में भारत का दृष्टिकोण बहुत लचीला रहा है । पंचशील का सिद्धांत पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने विश्व में शांति स्थापित करने के लिए पाँच मूल मंत्र दिए थे, इन्हें 'पंचशील के सिद्धांत' भी कहा जाता है। यह पंचसूत्र, जिसे 'पंचशील' भी कहते हैं, मानव कल्याण तथा विश्व शांति के आदर्शों की स्थापना के लिए विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के पाँच आधारभूत सिद्धांत हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित पाँच सिद्धांत निहित हैं-
माना जाता है अगर विश्व उपरोक्त पाँच बिंदुओं पर अमल करे तो हर शान्ति होगी। [printfriendly] संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व शांति में क्या भूमिका है?संयुक्त राष्ट्र के कार्यों में अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना, मानवाधिकारों की रक्षा करना, मानवीय सहायता पहुँचाना, सतत् विकास को बढ़ावा देना और अंतर्राष्ट्रीय कानून का भली-भाँति कार्यान्वयन करना शामिल है।
5 विश्व शान्ति स्थापित करने में संयुक्त राष्ट्र संघ की क्या भूमिका है ?`?शांति सेना के रूप में कार्य करते समय यह सेना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रभावी नियंत्रण में होती है और शांति रक्षा का हर कार्य सुरक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित होता है। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में सुरक्षा परिषद को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिये संयुक्त कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की क्या भूमिका है?भारत और संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य के तौर पर भारत संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धांतों का पुरजोर समर्थन करता है साथ ही भारत नें संयुक्त राष्ट्र के विशेष कार्यक्रमों और एजेंसी के चार्टर और मूल्यांकन के लक्ष्यों को लागू करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के बारे में आप क्या जानते हैं?संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO: United Nation organisation) इसकी स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई. को हुई थी, जिसका उद्देश्य- कानून को सुविधाजनक बनाने में सहयोग अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा आर्थिक विकास सामाजिक विकास मानवाधिकार और विश्व शांति के लिए कार्य करना है।
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