संयुक्त राज्य अमेरिका में दास प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं इसे कैसे समाप्त किया गया चर्चा? - sanyukt raajy amerika mein daas pratha ke baare mein aap kya jaanate hain ise kaise samaapt kiya gaya charcha?

अमरीका: दास प्रथा ख़त्म करवाने वाला भारतीय

20 फ़रवरी 2013

संयुक्त राज्य अमेरिका में दास प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं इसे कैसे समाप्त किया गया चर्चा? - sanyukt raajy amerika mein daas pratha ke baare mein aap kya jaanate hain ise kaise samaapt kiya gaya charcha?

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लिंकन फ़िल्म में अमरीकी दासप्रथा उन्मूलन की कहानी है.

अमरीका से 150 साल पहले दास प्रथा ख़त्म करने का श्रेय अब्राहम लिंकन को भले ही जाता हो, लेकिन उनका ये काम तकनीकी और क़ानूनी रूप से पूरा हुआ इसी महीने सात फ़रवरी को.

दिलचस्प बात ये है कि दासप्रथा को ख़त्म करने में भारतीय मूल के डॉक्टर रंजन बत्रा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

दासप्रथा के ख़ात्मे के बाद भी तकनीकी रूप से मिसीसिपी राज्य में इस प्रथा का ख़ात्मा नहीं हो पाया था.

डॉक्टर रंजन बत्रा ने हाल ही में रिलीज़ हुई फ़िल्म लिंकन देखी और फिर उन्हें इस तथ्य का पता चला कि मिसीसिपी में काग़ज़ों पर ये प्रथा अब भी जारी है. हुआ यूं कि पिछले साल नवंबर महीने में मिसीसिपी राज्य के जैक्सन शहर में रहने वाले डॉ रंजन बत्रा हॉलीवुड की लिंकन फ़िल्म देखने गए जो गुलामी ख़त्म करने वाले 16वें अमरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन औऱ अमरीकी संविधान में गुलामी ख़त्म करने संबंधी 13वें संशोधन पर आधारित है.

फ़िल्म देखकर निकलने के बाद डॉ बत्रा को यह उत्सुक्ता हुई कि मिसीसिपी में गुलामी कब ख़त्म हुई.

पड़ताल और कोशिश

डॉ रंजन बत्रा कहते हैं, "मैं फ़िल्म देखकर निकला तो मैंने अपनी पत्नी से कहा कि देखिए फ़िल्म में तो केंद्र में गुलामी ख़त्म करने वाले कानून को मंज़ूर करने के बारे में दिखाया गया है. लेकिन राज्यों के बारे में कुछ नहीं बताया गया है. मुझे उत्सुक्ता हुई और तब मैंने इसकी पड़ताल शुरू की."

उन्होंने इंटरनेट पर खोजा और तब उन्हें यह पता चला कि मिसीसिपी राज्य की असेंबली औऱ सेनेट ने गुलामी ख़त्म करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी तो 1995 में ही दे दी थी लेकिन उसे आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं कराया गया था.

जिसके कारण उस प्रस्ताव की मंज़ूरी का अमल अधूरा ही रह गया था.

डॉ बत्रा कहते हैं, "यह ऐसा मामला था जो सही किया जाना चाहिए था और सही किया जा सकता था."

डॉक्टर रंजन बत्रा की उत्सुकता और कोशिशों के कारण ही मिसीसिपी में दास प्रथा को आधिकारिक तौर पर ख़त्म करने वाला यह ऐतिहासिक क्षण आया.

भारत के कोलकाता में जन्मे डॉ रंजन बत्रा का परिवार 1970 में ही अमरीका आ गया था. उन्होंने अपनी अधिकतर पढ़ाई भी अमरीका में ही की है.

डॉ बत्रा सन 2008 में अमरीकी नागरिक बन गए. औऱ अब वह मिसीसिपी विश्विद्यालय के मेडिकल कॉलेज में न्यूरो बायोलोजी के प्रोफ़ेसर हैं.

ऐतिहासिक क्षण

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रंजन बत्रा को हाल ही में पता चला था कि मिसीसिपी में दास प्रथा काग़ज़ों पर मौजूद है

तो अमरीकी इतिहास के इस ऐतिहासिक क्षण का हिस्सा बनने पर वह कैसा महसूस कर रहे हैं ?

डॉ बत्रा कहते हैं, "मेरा तो बस एक छोटा सा रोल था, लेकिन खास बात यह है कि मिसीसिपी अब ऐसे मुद्दों से उपर उठ रहा है और नस्ल के आधार पर भेदभाव जैसे उस अंधकारमय अतीत को पीछे छोड़ रहा है. "

अब मिसीसिपी राज्य के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट के पास केंद्रीय संग्रहालय के फ़ेडरल रेजिस्टर के निदेशक का आधिकारिक पत्र भी आ गया है जिसमें लिखा है कि 7 फरवरी 2013 को मिसीसिपी राज्य ने अमरीकी संविधान के गुलामी ख़त्म करने संबंधी 13वें संशोधन को मंज़ूरी दे दी है.

दरअसल सन 1865 में ही अमरीका के कुल 36 राज्यों में से तीन चौथाई राज्यों ने गुलामी ख़त्म करने संबंधी अमरीकी संविधान के 13वें संशोधन को मंज़ूरी दे दी थी और वह पारित हो गया था.

लेकिन मिसीसिपी राज्य में 1995 में जब गुलामी ख़त्म करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई उस समय के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट के पास राज्य के इस पारित प्रस्ताव की प्रति ही नहीं पहुंची जिसके कारण वह राष्ट्रीय संग्रहालय के फ़ेडरल रेजिस्टर में दर्ज होने के लिए भेजी भी नहीं गई.

जिसके बाद अमरीका में तो दास प्रथा खत्म हो गई थी.

लेकिन उस समय मिसीसिपी राज्य में अधिकतर असेंबली सदस्यों ने मंज़ूरी न देने का फ़ैसला किया था क्यूंकि उनका कहना था कि जिन दासों को आज़ाद किया जाना था उनका सही मुआवज़ा नहीं दिया जा रहा था.

अधूरा काम

उसके बहुत सालों के बाद 1995 में मिसीसिपी राज्य की असेंबली और सीनेट में काले लोगों को गुलाम बनाकर रखने की प्रथा को ख़त्म करने संबंधी अमरीकी संविधान के संशोधन को सर्वसम्मति से मंज़ूरी दे दी गई थी.

लेकिन फिर भी काम अधूरा ही रहा जब तक डॉक्टर रंजन बत्रा ने इस अधूरे सरकारी काम की ओर ध्यान नहीं दिलाया.

उन्होंने अपने एक मित्र केन सलिवन जो राजनीतिज्ञ भी हैं उनसे सलाह मशवेरा किया. सलिवन ने मिसीसिपी राज्य के संबंधित अधिकारी सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट से संपंर्क कर मामला समझाया तो उन्हें भी हैरत हुई.

असल में राज्य के अधिकारी सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट की ही यह कानूनी ज़िम्मेदारी होती है कि वह राज्य असेंबली के प्रस्तावों के पारित होने के बाद उनकी एक प्रति केंद्रीय सरकार के रिकॉर्ड में रखने के लिए भिजवाए तब जाकर इस प्रस्ताव की मंज़ूरी मुकम्मल होती है.

डॉ बत्रा का कहना है कि उन्हें नहीं मालूम कि इसमें किसकी कोताही थी.

लेकिन कोताही तो बहुत महत्वपूर्ण थी.

डॉ बत्रा कहते हैं, "देखिए गुलामी के ख़ात्मे का कानून तो बहुत पहले ही मंज़ूर हो गया था. और अमरीका में पिछले कोई 150 वर्षों से कहीं गुलामी बची भी नहीं थी. तो यह एक औपचारिकता भर थी, लेकिन एक महत्वपूर्ण औपचारिकता थी, जो पूरी हो गई. और अब मिसीसिपी राज्य भी देश और दुनिया से कह सकता है कि अब हमने अतीत का यह अध्याय बंद कर दिया."

दास प्रथा से आप क्या समझते हैं अमेरिका में दास प्रथा का अंत कैसे हुआ?

अमरीका से 150 साल पहले दास प्रथा ख़त्म करने का श्रेय अब्राहम लिंकन को भले ही जाता हो, लेकिन उनका ये काम तकनीकी और क़ानूनी रूप से पूरा हुआ इसी महीने सात फ़रवरी को. दिलचस्प बात ये है कि दासप्रथा को ख़त्म करने में भारतीय मूल के डॉक्टर रंजन बत्रा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

अमेरिका में दासता को कब समाप्त किया गया?

1863 में ज़ब्ती अधिनियम और मुक्ति उद्घोषणा जैसे संघ के उपायों के कारण , युद्ध ने अधिकांश स्थानों पर प्रभावी रूप से संपत्ति की दासता को समाप्त कर दिया।

संयुक्त राज्य अमेरिका में दास प्रथा की समाप्ति की घोषणा किसने और कब की?

1862 - अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने एक जनवरी, 1863 से गुलामों की मुक्ति की घोषणा की. 1865 - अमेरिकी संविधान के 13वें संशोधन में गुलामी पर प्रतिबंध लगाया गया. 1886 - क्यूबा में दासप्रथा को समाप्त किया गया.

अमेरिका की दास प्रथा क्या है?

अमेरिका के उत्तरी राज्यों में दासों की आर्थिक जीवन में कोई निर्णायक जीवन में कोई निर्णायक भूमिका नहीं थी। अतः उनके लिए दासों का महत्व गौण था दूसरी तरफ अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में दास प्रथा जनजीवन में घुल चुकी थी। दक्षिणी राज्यों के मामलें में दास प्रथा का मुद्दा सदैव संवेदनशील बना रहा।