Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 5 (क) एक कम (ख) सत्य Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 12 Hindi Solutions Antra Poem 5 (क) एक कम (ख) सत्यRBSE Class 12 Hindi (क) एक कम (ख) सत्य Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. विमुद्रीकरण का अर्थ है-कालेधन को बाहर निकालने तथा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए पुरानी करेंसी पर प्रतिबंध लगाना और नयी करेंसी चलन में डालनां सन् 2014 में प्रधानमंत्री बनने के पश्चात् मोदी जी ने 8 नवम्बर 2016 की आधी रात को देश में विमुद्रीकरण किया और ₹500 तथा ₹ 1000 के कागजी नोटों पर प्रतिबंध लगा दिया और नई मुद्रा के रूप में ₹ 2000 तथा ₹ 500 का संचालन प्रारम्भ कर दिया। इस विमुद्रीकरण के तत्काल लाभ दृष्टिगोचर हुए। कालेधन के रूप में जमा ये नोट बाहर आए और किसी हद तक कालेधन पर रोक भी लगी। भ्रष्टाचार और रिश्वसतखोरी पर भी रोग लगी तथा वस्तुओं की कीमतें भी नियन्त्रण में आ गयीं। किन्तु गत वर्षों में स्थिति फिर पहले जैसी होती जा रही है। प्रश्न 4. प्रश्न 5. (ख) मानता हुआ कि हाँ मैं लाचार हूँ कंगाल या कोढ़ी (ग) तुम्हारे सामने बिलकुल नंगा निर्लज्ज और निराकांक्षी प्रश्न 6.
(ख) मैं तुम्हारा विरोधी प्रतिद्वन्द्वी या हिस्सेदार नहीं
सत्य : प्रश्न 1. विदुर ने इस अन्याय को चुपचाप देखा था। युधिष्ठिर विदुर को इसीलिए पुकार रहे थे और जानना चाहते थे कि उन्होंने सत्य का साथ क्यों नहीं दिया। किन्तु विदुर ने कोई उत्तर नहीं दिया। सत्य पुकारने से नहीं मिलता, वह हमसे दूर होता जाता है। सत्य हमारे अन्तर्मन की शक्ति है जिसे पुकारने की जरूरत नहीं है। उसे प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं ही पाना होता है। प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. योग्यता विस्तार - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. RBSE Class 12 Hindi (क) एक कम (ख) सत्य Important Questions and Answersअतिलघूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. लघूत्तरात्मक प्रश्न - एक कम - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. सत्य : प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. निबन्धात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. वह उनके जीवन-संघर्ष में बाधक नहीं बनना चाहता।, जब कोई भिखारी कवि के सामने हाथ फैलाता है तो वह जान लेता है कि यह ईमानदार व्यक्ति रहा है तभी तो मालामाल नहीं हो सका। हाथ फैलाकर वह अपनी लाचारी और कंगाली को तो व्यक्त करता ही है साथ ही वह यह भी जाहिर है कि वह अब किसी प्रतिस्पर्धा में शामिल नहीं है। अब सामने वाला आदमी उस भिखारी से तो निश्चिन्त रह सकता है कि यह होड़ में शामिल नहीं है। उससे प्रतिस्पर्धा करने वालों में एक तो कम हुआ। अन्यथा यहाँ तो परस्पर होड़ लगी है, दूसरे को पीछे धकेलकर स्वयं आगे निकलने की होड़। प्रश्न 2. सत्य के प्रति संशय बढ़ा है, फिर भी वह हमारी आत्मा की आन्तरिक शक्ति है - यही कवि इस कविता के मा, यम से कहना चाहता है। जो एक व्यक्ति के लिए सत्य है, वही शायद दूसरे के लिए सत्य नहीं है। बदलती हुई परिस्थितियों में हो रहे परिवर्तनों से सत्य की पहचान और पकड़ अत्यन्त कठिन हो गई है, यही इस कविता का कथ्य है। प्रश्न 3. प्रश्न 4.
साहित्यिक परिचय का प्रश्न - प्रश्न : कला - पक्ष-विष्णु खरे की भाषा सशक्त और वर्ण्य-विषय के अनुकूल है। आपने तत्सम शब्दों के साथ ही बोलचालन के प्रचलित शब्दों को अपनाया है। आपकी भाषा में प्रवाह है तथा भाव-व्यंजना के लिए सर्वथा उपयुक्त है। आपने मुक्त छ। को अपनाया है तथा जो अलंकार स्वाभाविक रूप से आ गये हैं, उनको अपनी कविताओं में स्थान दिया है। कवि ने लक्षणा, बिम्ब विधान तथा पौराणिक सन्दर्भो और पात्रों का भी सहारा लिया है। प्रमुख कृतियाँ :
प्राप्त सम्मान -
(क) एक कम (ख) सत्य Summary in Hindiकवि परिचय : जन्म - सन् 1940, छिन्दवाड़ा (मध्य प्रदेश)। शिक्षा - एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य) क्रिश्चियन कालेज, इंदौर से सन् 1963 में। मध्य प्रदेश तथा दिल्ली के कॉलेजों में अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे। दैनिक 'इंदौर समाचार' में उपसम्पादक (1962 63), लघु पत्रिका 'व्यास' के सम्पादक (1966-67)। साहित्य अकादमी में उपसचिव (कार्यक्रम) (1976-84)। नवभारत टाइम्स तथा टाइम्स ऑफ इण्डिया के सम्पादक रहे (1985-93)। जवाहरलाल नेहरू स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय में दो वर्ष वरिष्ठ अध्येता रहे। सम्प्रति स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य में संलग्न रहे। 19 सितम्बर, 2018 को आपका निधन हो गया। साहित्यिक परिचय - भाव-पक्ष - विष्णु खरे कवि, लेखक और अनुवादक हैं। कवि के रूप में वह जनता की समस्याओं से जुड़े हैं। अपनी कविताओं में अपनी भाषा के माध्यम से अभ्यस्त जड़ताओं और अमानवीय स्थितियों के विरुद्ध एक शक्तिशाली नैतिक विरोध:को अभिव्यक्ति प्रदान की है। स्वतंत्रता के विरुद्ध एक शक्तिशाली नैतिक विरोध को अभिव्यक्ति प्रदान की है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारतीय समाज में प्रचलित हो रही जीवन शैली को व्यक्त किया है और स्वतंत्रता के बाद भारत में स्वतंत्रता सेनानियों की कल्पना के विपरीत निर्मित हो रहे समाज को भारतीय जन-जीवन के हित . में नहीं माना है। अपने कथ्य पर कवि की अच्छी पकड़ है और उसकी व्यंजना में आपको पूर्ण सफलता मिली है। कला-पक्ष - विष्णु खरे की भाषा सशक्त और वर्ण्य-विषय के अनुकूल है। आपने तत्सम शब्दों के साथ ही बोलचाल के प्रचलित शब्दों को अपनाया है। आपकी भाषा में प्रवाह है तथा भाव-व्यंजना के लिए सर्वथा उपयुक्त है। आपने मुक्त छन्द को अपनाया है तथा जो अलंकार स्वाभाविक रूप से आ गये हैं, उनको अपनी कविताओं में स्थान दिया है। अपनी बात कवि ने सीधे-सपाट ढंग से कही है। कहीं-कहीं अपने कथ्य को प्रभावशाली बनाने के लिए कवि ने लक्षणा, बिम्ब विधान तथा पौराणिक सन्दर्भो और पात्रों का भी सहारा लिया है। कृतियाँ -
प्राप्त सम्मान - 1. नाइट आफ द आर्डर आफ द व्हाइट रोज (फिनलैण्ड का राष्ट्रीय सम्मान) 2. रघुवीर सहाय सम्मान। 3. शिखर सम्मान। 4. साहित्यकार सम्मान-हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा प्रदत्त। 5. मैथिलीशरण गुप्त सम्मान। सप्रसंग व्याख्याएँ एक कम 1. 1947 के बाद से शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ विष्णु खरे द्वारा रचित कविता 'एक कम' से ली गई हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है। प्रसंग : आजादी मिलने के बाद देश में किस प्रकार प्रतिस्पर्धा का दौर चला है और लोग एक-दूसरे को धक्का देकर आगे निकलने की होड़ में लगे हैं इसका अनुभव कवि ने किया है। स्वार्थपरता, बेईमानी, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के बल पर धनवान होते हुये लोगों को उसने देखा है किन्तु ऐसे में जब कोई भिखारी उसके सामने हाथ फैलाता है तो वह समझ जाता है कि यह ईमानदार, लाचार या कामचोर इंसान रहा है जो मेरा प्रतिस्पर्धी नहीं है। व्याख्या : भारत को सन् 1947 में आजादी मिली। लोगों को लग रहा था कि अब देश स्वतंत्र है। हम अपने देश में अपने ढंग से ईमानदारी का जीवन व्यतीत करेंगे किन्तु शीघ्र ही आजादी से हमारा मोहभंग हो गया। कवि ने इतने सारे लोगों को भ्रष्ट तरीकों से धनवान होते देखा है कि वह समझ गया कि मालामाल होने और तरक्की करने के लिए व्यक्ति को अव्वल दर्जे का स्वार्थी, चालाक, धोखेबाज और भ्रष्टाचारी होना चाहिए। अनेक लोग स्वतन्त्रता के बाद इन्हीं हथकण्डों से धनवान बने हैं। ऐसी स्थिति में जब कोई आदमी, औरत या बच्चा कवि के आगे हाथ फैलाकर भीख माँगता है - पच्चीस पैसे, एक चाय या रोटी की भीख, तब उस फैले हुए हाथ को देखकर कवि समझ जाता है कि यह व्यक्ति अपने जीवन में ईमानदार रहा है और उन मुणों (दोषों) से स्वयं को नहीं जोड़ सका जो आज उन्नति के लिए या धनी होने के लिए आवश्यक माने गए हैं। भीख माँगता हुआ वह व्यक्ति एक प्रकार से यह साबित कर देता है कि वह लाचार, कंगाल या कोढ़ी इसलिए है क्योंकि वह उन हथकण्डों से दूर रहा जिनसे आज धनवान बना जाता है। हो सकता है कि भीख माँगने वाला वह व्यक्ति भला-चंगा होने पर भी कामचोर (आलसी) या मामूली धोखेबाज रहा हो इसलिए आज भीख माँग रहा है अन्यथा वह भी उन आदमियों की तरह धनवान हो गया होता जो स्वतंत्रता के बाद फले-फूले हैं। विशेष :
2. लेकिन पूरी तरह तुम्हारे संकोच लज्जा परेशानी। शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ विष्णु खरे द्वारा रचित कविता 'एक कम' से ली गई हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा-भाग-2' में संकलित है। प्रसंग : स्वतंत्रता के बाद कई लोगों को कवि ने बेईमानी, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार एवं अनैतिक तरीकों के बल पर धनवान होते देखा है। आज भीख माँगता हुआ व्यक्ति वही है जो इन गुणों (दोषों) से युक्त नहीं है। इस गलाकाट स्पर्धा में प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से आशंकित है। ऐसी स्थिति में भीख माँगने वाला व्यक्ति आश्वस्त करता है कि वह लाचार है, किसी का प्रतिद्वन्द्वी या प्रतिस्पर्धी नहीं। व्याख्या : हाथ फैलाकर भीख माँगने वाला व्यक्ति घोषणा कर रहा है कि वह पूरी तरह लाचार है। किसी के सामने हाथ फैलाने में उसे कोई लज्जा, संकोच नहीं है। वह पूरी तरह दूसरों पर आश्रित है। उसकी कोई आकांक्षा भी नहीं है। वह किसी का विरोधी, प्रतिद्वन्द्वी या प्रतिस्पर्धी नहीं हैं। संसार में सब एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं। किन्तु उस भिखारी ने कम से कम स्वयं को इस प्रतिस्पर्धा से अलग कर लिया है। अपने फैलाए हुए हाथ से वह हमें आश्वस्त कर रहा है कि वह पूरी तरह हमारी कृपा पर आश्रित है, हमारे बराबर का नहीं है, हमसे होड़ नहीं कर रहा है और हम उसकी तरफ से निश्चित रह सकते हैं। कम से कम एक व्यक्ति तो ऐसा है जो इस प्रतिद्वंद्विता। में हमारा प्रतिद्वन्द्वी नहीं है। भले ही हम उसे कुछ दें या न दें फिर भी वह हमारा प्रतिद्वन्द्वी नहीं है। विशेष :
(सत्य) 1. जब हम सत्य को पुकारते हैं शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि विष्णु खरे द्वारा रचित 'सत्य' नामक कविता से ली गई हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है। प्रसंग : महाभारत के मिथकीय पात्रों (युधिष्ठिर, विदुर आदि) और मिथकीय घटनाओं के माध्यम से कवि ने 'सत्य' की व्याख्या वर्तमान सन्दर्भो में की है। व्याख्या : कवि का मत है कि जब हम सत्य को बुलाते हैं तो वह हमसे उसी तरह दूर भागता है, जैसे महाभारत काल में अपने प्रति हुए अन्याय के कारण युधिष्ठिर ने अपने काका नीति विशारद विदुर के पास जाकर गुहार लगाई थी किन्तु विदुर के पास उनके प्रश्नों का कोई सटीक उत्तर न था इसलिए युधिष्ठिर की करुण पुकार को अनसुना करके विदुर घने जंगलों में चले गए थे। युधिष्ठिर ने फिर भी उनका पीछा नहीं छोड़ा और वे विदुर के पीछे-पीछे घने जंगलों में प्रवेश कर गए थे। ठीक इसी तरह सत्य आसानी से प्राप्त नहीं होता और एक बार पुकारने पर ही सामने नहीं आ जाता। वह हमसे दूर भागता है क्योंकि वह यह जानना चाहता है कि हम उसके पीछे (सत्य के पीछे) कितनी दूर तक आ सकते हैं अर्थात् सत्य के प्रति हमारी निष्ठा कितनी है इसकी वह परीक्षा करना चाहता है। संभवतः विदुर भी युधिष्ठिर की निष्ठा की परीक्षा लेने हेतु ही घने जंगल की ओर पलायन कर गए थे। आगे जाता सत्य कभी हमें दिखता है तो कभी आँखों से ओझल हो जाता है और हम सत्य को रोकने का प्रयास करते हुए पुकारते रहते हैं - अरे भाई सत्य जरा ठहरो, देखो यह मैं हूँ, मेरे लिए रुक जाओ। पर सत्य है कि युधिष्ठिर की गुहार को अनसुना करने वाले विदुर के समान आगे ही बढ़ता जाता है। युधिष्ठिर द्वारा बार-बार रुकने की प्रार्थना (गुहार, दुहाई) करने पर भी विदुर ठहरते नहीं और आगे बढ़ते जाते हैं। शायद यह परखने के लिए कि देखें यह मेरे पीछे कितनी दूर तक आता है। सत्य के पीछे दूर तक चलने का साहस बहुत कम लोग दिखा पाते हैं। ज्यादातर लोग तो बस सत्य का थोड़ी देर तक अनुगमन करने के बाद हताश होकर लौट जाते हैं अर्थात् सत्य को छोड़ देते हैं। सत्य का दूर तक पीछा करना, उसका अनुगमन करना साहस की बात है। विरले लोग ही जीवन-पर्यन्त सत्य का साथ दे पाते हैं, उसे छोड़ते नहीं। विशेष :
2. यदि हम किसी तरह युधिष्ठिर जैसा संकल्प पा जाते हैं शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ विष्णु खरे द्वारा रचित कविता 'सत्य' से ली गई हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित हैं। प्रसंग : महाभारत के मिथकीय चरित्रों युधिष्ठिर, विदुर आदि को लेकर लिखी हुई इस कविता में कवि ने सत्य की विशेषताओं को उद्घाटित किया है। सत्य उसी को प्राप्त होता है जो दृढ़ निश्चयी एवं संकल्पवान होता है। व्याख्या : सत्य हमारी परीक्षा लेने के लिए हमसे दूर होता जाता है और यह परखने का प्रयास करता है कि हम कब तक उसका अनुगमन कर सकते हैं। विदुर को युधिष्ठिर पुकारते हुए रुकने के लिए कह रहे थे पर विदुर थे कि उनकी पुकार को अनसुना करके घने जंगल में आगे बढ़े जा रहे थे। युधिष्ठिर संकल्पवान एवं दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे। वे लगातार विदुर का पीछा करते रहे और अन्ततः विदुर को रुकना ही पड़ा। ठीक इसी तरह सत्य भी हमारे दृढ़ निश्चय की परीक्षा करता है। यदि हम संकल्प-शक्ति से युक्त हैं तो अन्ततः सत्य को पा ही लेते हैं। विशेष :
3. जैसे शमी वृक्ष के तने से टिककर शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ विष्णु खरे द्वारा रचित कविता 'सत्य' का अंश हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है। प्रसंग : कवि ने महाभारत के पात्र युधिष्ठिर, विदुर आदि के माध्यम से प्रस्तुत काव्यांश में सत्य के स्वरूप का उद्घाटन किया है। उसने बताया है कि सत्य दृढ़ निश्चय और अथक प्रयास से प्राप्त होता है। व्याख्या : विदुर अन्ततः रुक गए और पलटकर युधिष्ठिर की ओर देखने लगे। ठीक इसी तरह दृढ़ संकल्प वाले उस व्यक्ति को सत्य की प्राप्ति हो जाती है जो लगातार सत्य का अनुगमन करता है। शमी वृक्ष के तने से टिककर खड़े विदुर ने जैसे धर्मराज को पहचानने का प्रयास करते हुए अन्तिम बार बिना पलक झपकाए एकटक दृष्टि से युधिष्ठिर को देखा और उनमें से उनका तेज (प्रकाशपुंज) निकलकर युधिष्ठिर में समा गया। अन्ततः युधिष्ठिर उस तेज पुंज से सम्पन्न होकर सिर झुकाकर लौट आए क्योंकि विदुर ने उनसे कुछ कहा नहीं, बस अपना प्रकाशपुंज उन्हें सौंप दिया। ठीक इसी प्रकार अपने दृढ़ चय के बल पर हम सत्य को भले ही प्राप्त कर लें पर सत्य पर पहुँचकर भी हम सत्य से वार्तालाप नहीं कर पाते। सत्य विदुर की भाँति अन्त तक हमसे कुछ नहीं बोलता, बस उसमें से निकला प्रकाशपुंज हम देखते हैं जो हम में विलीन हो जाता है अथवा हमारा भी अतिक्रमण कर आगे बढ़ जाता है। विशेष :
4. हम कह नहीं सकते न तो शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ विष्णु खरे द्वारा रचित कविता 'सत्य' से ली गई हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है। प्रसंग : महाभारत के मिथकीय पात्रों के माध्यम से कवि ने सत्य के स्वरूप को बताने का प्रयास इन पंक्तियों में किया है। सत्य की प्राप्ति होने पर भी हम में कोई स्फुरण नहीं होता, कोई खास परिवर्तन अनुभव नहीं होता।। व्याख्या : जैसे दृढ़ निश्चयी युधिष्ठिर के शरीर में विदुर का तेज समा गया उसी प्रकार संकल्पवान व्यक्ति को सत्य की उपलब्धि तो हो जाती है किन्तु सत्य को पाकर भी हम यह नहीं कह सकते हैं कि हमें किसी विशेष परिवर्तन की अनुभूति हुई है। न तो शरीर में कोई स्फुरण होता है न किसी ताप की अनुभूति होती है। हम जीवन भर बस यही सोचते रहते हैं कि पता नहीं सत्य हममें समाया भी है या नहीं। बस कभी-कभी हमारी अग में जो चमक उठती है, लगता है वह सत्य का ही या है, सत्य का ही संकेत है। पर इसे तो स्वयं सत्य ही बता सकता है कि वह हमारे भीतर समाया है या नहीं, ठीक उसी तरह जैसे विदुर ही युधिष्ठिर को बता सकते थे कि उनके प्रश्नों का उत्तर क्या है? युधिष्ठिर ने खाण्डवप्रस्थ से इन्द्रप्रस्थ लौटते समय सिर झुकाए हुए यही सोचा होगा कि काका विदुर चाहते तो उनके प्रश्नों का उत्तर दे सकते थे पर उन्होंने ऐसा न करके अपना तेज मुझे दे दिया। सत्य का संधान करने वाले व्यक्ति को भी अपने प्रश्नों के उत्तर स्वयं ही खोजने पड़ते हैं, सत्य उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं देता। हाँ, वह उन उत्तरों को खोज पाने की शक्ति हमें अवश्य देता है। सत्य कविता में प्रयुक्त हम कौन हैं?कविता में हम शब्द ऐसे लोगों का सूचक है, जो सारी उम्र सत्य की खोज के लिए मारे-मारे फिरते हैं। वे सत्य को पहचानना तथा जानना चाहते हैं। उनकी मुख्य चिंता यह है कि वे सत्य का स्थिर रूप-रंग और पहचान नहीं खोज पा रहे हैं।
सत्य कविता में सत्य का प्रतीक कौन है?➲ 'सत्य' कविता में विदुर सत्य के प्रतीक हैं। 'विष्णु ख़रे' द्वारा रचित 'सत्य' कविता में कवि कहता है... यहाँ पर युधिष्ठिर और विदुर महाभारत के दो पात्र हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने सत्य की खोज का वर्णन किया है।
सत्य कविता मैं बार बार प्रयुक्त हम कौन हैं और उसकी चिंता क्या है किन लोगों के लिए प्रयुक्त हुआ है?कविता में बार बार प्रयुक्त 'हम' कौन है और उसकी चिंता क्या है ? 6. सत्य की राह पर चल | अगर अपना भला चाहता है तो सच्चाई को पकड़ | - इन पंक्तियों के प्रकाश में कविता का मर्म खोलिए ।
सत्य कविता का प्रमुख प्रतिपाद्य क्या है?इस कविता में है कवि ने महाभारत के पात्रों का उदाहरण देते हुए, सत्य के महत्व के बारे में समझाया है ! जब हम सत्य को पुकारते हैं, तो वह और दूर हो जाता है, जैसे युधिष्ठिर के सामने से भागे थे विदुर ( यह दोनों महाभारत के पात्र हैं) ! सत्य शायद जानना चाहता है, उसके पीछे हम कितनी दूर तक भाग सकते हैं !
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