सतावर का बीज कैसा होता है - sataavar ka beej kaisa hota hai

  • सतावर की खेती (Asparagus Racemosus) से सम्बंधित जानकारी
  • सतावर की खेती कैसे होती है (Asparagus Racemosus in Hindi)
    • सतावर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Satavar Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)
  • सतावर की उन्नत किस्में (Satavar Improved Varieties)
    • सतावर के बीजो की रोपाई का तरीका (Satavar Seeds Planting Method)
    • नर्सरी तैयार करने की विधि (Nursery Preparation Method)
    • सतावर के पौधों की सिंचाई (Satavar Plants Irrigation)
    • सतावर के खेत की तैयारी (Farm Preparation)
    • सतावर के पौधों में लगने वाले रोग (Satavar Diseases and their Prevention in Plants)
    • सतावर के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control)
    • सतावर की ओषधि का उपयोग और लाभ (Satavar Uses and benefits)
    • सतावर के जड़ो की खुदाई (Satawar Root Digging)
    • सतावर के रेट क्या है (Satavar Price)

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सतावर की खेती औषधीय फसलके रूप में की जाती है | यह एक ऐसा पौधा है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से औषधीय दवाइयों को बनाने में किया जाता है | सतावर की खेती भारत के अलावा चीन, नेपाल, अफ्रीका, बांग्लादेश और ऑस्ट्रेलियाव अन्य देशो में भी की जाती है, वही भारत में राजस्‍थान, उत्‍तराखंड, गुजरात, मध्‍य प्रदेश और यूपी के (बाराबंकी, बरेली,  प्रतापगढ़, रायबरेली, इलाहाबाद, सीतापुर, शाहजहांपुर, बदायूं, लखनऊ) जैसे जिलों में इसकी खेती को मुख्य रूप से किया जाता है |

सतावर का बीज कैसा होता है - sataavar ka beej kaisa hota hai

सतावर का बीज कैसा होता है - sataavar ka beej kaisa hota hai

सतावर के पौधों का इस्तेमाल पशुओ में दुग्ध को बढ़ाने के अलावा भूख बढ़ाने, पाचन शक्ति, चर्म रोग को सुधारने के साथ-साथ अनेक प्रकार की बीमारियों दूर करने के लिए भी किया जाता है,जिस कारण सतावर के पौधों की अधिक मांग होती है | सतावर के पौधों का ऊपरी हिस्सा कांटेदार होते है, जिस वजह से इसे जानवर भी नहीं खा पाते है, और न ही इसमें किसी तरह के रोग देखने को मिलते है, जिससे किसानभाई सतावर की खेती कर अच्छा लाभ भी प्राप्त करते है | इस पोस्ट में आपको सतावर की खेती कैसे होती है (Asparagus Racemosus in Hindi) इससे जुड़ी जानकारी दी जा रही है, तथा यहाँ सतावर के रेट क्या है, इसकी जानकारी से भी अवगत कराया गया है |

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सतावर की खेती कैसे होती है (Asparagus Racemosus in Hindi)

सतावर का बीज कैसा होता है - sataavar ka beej kaisa hota hai

सतावर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Satavar Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)

सतावर की जड़े भूमि के अंदर लगभग 6 से 9 इंच गहराई में पाई जाती है | इसलिए इसकी खेती में रेतीली भूमि की आवश्यकता होती है | रेतीली भूमि में इसकी जड़ो को फैलने के लिए सुविधा प्राप्त हो जाती है | इसके अतिरिक्त इसे हल्की कपासिया तथा चिकनी मिट्टी में भी उगाया जा सकता है | सतावर की खेती को अच्छी जल निकासी वाली भूमि में ज्यादा उपयुक्त माना जाता है |

इसके पौधों के अच्छे विकास के लिए गर्म अवं आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है | जिन क्षेत्रों का तापमान 10 डिग्री तापमान से 50 डिग्री तापमान के मध्य होता है, वह क्षेत्र इसकी उपज के लिए काफी अच्छा होता है | ठन्डे क्षेत्रों के अलावा इसकी खेती को पूरे भारत में कही भी किया जा सकता है | राजस्थान जैसे रेतीले क्षेत्रों में इसकी उपज अधिक अच्छी पाई जाती है |

सतावर की उन्नत किस्में (Satavar Improved Varieties)

सतावर की भी कई किस्मे पाई जाती है, जिन्हे कुछ अलग नाम से भी जाना जाता है | इसके अलावा इन किस्मो को जलवायु और पैदावार के हिसाब से उगाया जाता है | सतावर की किस्मे :- एस्पेरेगस एडसेंडेस, एस्पेरेगस सारमेन्टोसस, एस्पेरेगस स्प्रेन्गेरी,  एस्पेरेगस आफीसीनेलिस, एस्पेरेगस फिलिसिनस, एस्पेरेगस कुरिलस, एस्पेरेगस गोनोक्लैडो, एस्पेरेगस प्लुमोसस आदि | इसमें एस्पेरेगस एडसेन्डेस को सफ़ेद मूसली के रूप में जाना जाता है, तथा एस्पेरेगस सारमेन्टोसस को महाशतावरी कहा जाता है, जो हिमालय क्षेत्रों में उगाई जाती है | इसकी एक किस्म एस्पेरेगस आफीसीनेलिस है, जिसे सूप तथा सलाद बनाने के लिए उपयोग में लाते है |

सतावर के बीजो की रोपाई का तरीका (Satavar Seeds Planting Method)

सतावर के बीजो की रोपाई को बीज के रूप में किया जाता है | बीजो की रोपाई को कंद के रूप में किया जाता है, जिनसे पौधे तैयार होते है | इससे प्राप्त हुए अंकुरों को पौधों से अलग कर पॉलीथीन बैग में रख दिया जाता है | इसके बाद इन अंकुरों को 25 से 30 दिन में पॉलीथीन से बाहर निकाल कर खेत में स्थानांतरित कर दे | बीजो की रोपाई के लिए बीजो को तैयार करने के लिए नर्सरी को तैयार करना जरूरी होता है |

नर्सरी तैयार करने की विधि (Nursery Preparation Method)

सतावर की खेती को व्यापारिक रूप से करने के लिए इसके बीजो को नर्सरी में तैयार करना होता है | एक एकड़ के खेत में सतावर की फसलकरने के लिए तक़रीबन 100 वर्ग फ़ीट में नर्सरी को तैयार करना होता है | इसके लिए भूमि में खाद डालकर अच्छे से तैयार कर ले | नर्सरी में पौधों की ऊंचाई पर्याप्त होनी चाहिए, जिससे इन्हे आसानी से उखाड़ कर स्थानांतरित किया जा सके |

एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 2 KG बीजो की आवश्यकता होती है, इसके बीजो को मध्य माह में लगाया जाता है | बीजो की रोपाई के बाद उसके ऊपर गोबर मिश्रितमिट्टी को चढ़ा देना चाहिए | इससे बीज अच्छी तरह से ढक जायेंगे | इसके बाद स्प्रिंकलर्स विधि द्वारा बीजो की हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए | इनके बीजो का अंकुरण 10 से 15 दिनों में आरम्भ हो जाता है, तथा 40 से 45 दिनों बाद इसके पौधों को पॉलीथीन की थैलियों में रखकर भी तैयार कर सकते है |

सतावर का बीज कैसा होता है - sataavar ka beej kaisa hota hai

सतावर के पौधों की सिंचाई (Satavar Plants Irrigation)

सतावर के पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है,किन्तु इसके पौधों की एक महीने में सिंचाई अवश्य करनी चाहिए | सिंचाई के लिए फ्लड पद्धति का भी इस्तेमाल कर सकते है | पर्याप्त मात्रा में सिंचाई होने से पौधों की जड़ो का अच्छे से विकास होता है | सिंचाई के समय यह जरूर ध्यान दे की कही जल-भराव तो नहीं हो रहा है, क्योकि जलभराव की स्थिति में इसकी पैदावार प्रभावती होती है |

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सतावर के खेत की तैयारी (Farm Preparation)

सतावर के पौधे को तैयार होने में 18 से 24 माह का समय लग जाता है | इसलिए इसके खेत को प्रारम्भ से ही अच्छे से तैयार कर लेना चाहिए | इसके लिए खेत को मई-जून के माह में गहरी जुताई कर लेनी चाहिए | जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही छोड़ दे, फिर उसमे प्राकृतिक खाद के रूप में 2 टन पुरानी सड़ी गोबर की खादको डाल दे | इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में 120 KG प्रॉम जैविक खाद की मात्रा को प्रति एकड़ के हिसाब से देना चाहिए | खाद को खेत में डालने के बाद जुताई कर खाद को अच्छे से मिला दे | इसके बाद खेत में 60 CM की दूरी रखते हुए 9 इंच की मेड़ को तैयार कर ले |

सतावर के पौधों में लगने वाले रोग (Satavar Diseases and their Prevention in Plants)

सतावर के पौधों में बहुत ही कम रोग देखने को मिलते है, साथ ही इसके पौधों को जानवरो के खा जाने का खतरा भी कम होता है, क्योकि इसके पौधों का ऊपरी हिस्सा कांटेदार होता है | जिस वजह से जानवर इसके पौधों को नहीं खाते है, किन्तु आरम्भ में इसके पौधों को थोड़ी देख-रेख की आवश्यकता होती है, क्योकि उस दौरान इसमें काटे नहीं निकले होते है | एक बार जब इसके पौधों में काटे निकाल आते है, तब इन्हे देख-रेख की आवश्यकता नहीं होती है |

सतावर के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control)

सतावर के पौधों में प्राकृतिक तरीके से खरपतवारनियंत्रण किया जाता है | इसके पौधों को जरूरत पड़ने पर ही खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए | इससे खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई – गुड़ाई करने से भूमि की मिट्टी भी नर्म बनी रहती है, और पौधों की जड़ो के लिए उपयुक्त वातावरण भी मिल जाता है |

सतावर की ओषधि का उपयोग और लाभ (Satavar Uses and benefits)

  • सतावर के उपयोग करने से माताओ एवं पशुओ के स्तन में दुग्ध की मात्रा को बढ़ाने में काफी लाभदायक होता है |
  • सतावर अनिद्रा जैसी बीमारी के निवारण तथा मस्तिष्क की शांति के लिए अधिक लाभकारी होता है |
  • सतावर का इस्तेमाल मानसिक रोगो से छुटकारा पाने के लिए भी किया जाता है |
  • सतावर को यौनशक्ति व काम वासना को बढ़ाने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है |
  • भूख को बढ़ाने एवं पाचन क्रिया को सुधारने के लिए भी सतावर औषधि का इस्तेमाल किया जाता है |
  • गर्भाशय के दर्द को दूर करने के लिए सतावर को शहद और पीपल के साथ इस्तेमाल करे |
  • सतावर अनेक प्रकार की बीमारियों जैसे :- घुटने एवं हाथो का दर्द, पेशाब और मूत्र संस्थान से सम्बंधित रोग, सरदर्द, पैरो के तलवो में जलन ठीक करने जैसे कार्यो में अधिक लाभकारी माना जाता है |
  • सतावर अर्धपाक्षाघात,गर्दन का अकड़न को ठीक करने में लाभकारी साबित होता है |
  • सतावर का उपयोग पीलिया, स्नायु तंत्र (Nervous System), टायफाइड, मलेरिया जैसी बीमारियों के निवारण के लिए भी किया जाता है |
  • सतावर की जड़ को गाय के उबले हुए दूध के साथ मिलाकर पीने से अधिक लाभ प्राप्त होता है |
  • चर्म रोग (त्वचा का सूखापन, कुष्ठ रोग) के उपचार में भी सतावर की जड़ का इस्तेमाल किया जाता है |

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सतावर के जड़ो की खुदाई (Satawar Root Digging)

सतावर की फसल को तैयार होने में 18 से 30 माह का समय लग जाता है | इतना समय हो जाने पर इसके पौधों की खुदाई कर लेनी चाहिए| इसके जड़ो की खुदाई के लिए अप्रैल-मई के माह को उचित माना जाता है | जब पौधों पर लगने वाले बीज पके दिखाई देने लगे तब इसकी फसल में कुदाली विधि द्वारा हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए | इससे खेत की मिट्टी थोड़ा नर्म हो जाती है, और पौधों की जड़ो को उखाड़ने में आसानी होती है | सतावर की जड़ो को भूमि से उखाड़ने के बाद जड़ के ऊपर लगे हुए छिलके को उतार दे |

इस छिलके को ट्यूवर्स विधि द्वारा अलग करना जरूरी होता है, जड़ो से छिलका उतारने के बाद इसके कंदो को पानी में डाल कर हल्का उबाल लेना चाहिए | उबलने के बाद कुछ समय के लिए ठन्डे पानी में रख कर छिलाई कर दे | इसके बाद इन जड़ो को हल्की धूप में सूखा ले | जड़ो को उबालने और छिलाई के बाद कंद का रंग हल्का पीला दिखाई देता है |

सतावर के रेट क्या है (Satavar Price)

सतावर की खेती सुरक्षित खेती भी कही जाती है | इसके पौधे 18 से 30 माह के मध्य में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | इसके एक पौधे से लगभग 500 से 600 GM जड़ प्राप्त हो जाती है | जिस हिसाब से एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 12,000 KG से 14,000 KG ताज़ी जड़े प्राप्त हो जाती है | धुलाई, छिलाई और सूखाने के बाद किसान भाइयो को 1,000 से 1,200 KG जड़ प्राप्त हो जाती है | इस बीघे के खेत में 4 क्विंटल सूखी सतावर मिल जाती है, जिसकी बाजारी कीमत तक़रीबन 40,000 रूपए तक होती है,जिस हिसाब से एक एकड़ के खेत में सतावर की खेती कर किसान भाई 5-6 लाख रूपए की अच्छी कमाई कर सकते है |

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सतावर की पहचान कैसे करें?

सतावर की पूर्ण विकसित लता 30 से 35 फीट तक ऊंची हो सकती है। प्रायः मुल से इसकी कई लताएं अथवा शाखाएं एक साथ निकलती हैं। यद्यपि यह लता की तरह बढ़ती है परन्तु इसकी शाखाएं काफी कठोर (लकड़ी के जैसी) होती हैं। इसके पत्ते काफी पतले तथा सूइयों जैसे नुकीले होते हैं।

शतावरी का बीज कहाँ मिलता है?

SHATAVARI-ASPARAGUS RACEMOSUS बीज -10 Gm (प्रति पैकेट 100 बीज) : Amazon.in: बाग-बगीचा और आउटडोर स्टॉक में है.

शतावर का रेट क्या है?

सतावर की किस्में यदि मार्केट से अच्छी क्वालिटी के बीज लिए जाए तो उसकी एक क्विंटल की कीमत 50 से 60 हजार रुपए है।

शतावर का पौधा कौन सा होता है?

सतावर अथवा शतावर (वानस्पतिक नाम: Asparagus racemosus / ऐस्पेरेगस रेसीमोसस) लिलिएसी कुल का एक औषधीय गुणों वाला पादप है। इसे 'शतावर', 'शतावरी', 'सतावरी', 'सतमूल' और 'सतमूली' के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत, श्री लंका तथा पूरे हिमालयी क्षेत्र में उगता है।