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संस्मरण और रेखाचित्र परस्पर मिली-जुली आधुनिक गद्य विधाएँ हैं। इन दोनों विधाओं में कई समानताएँ प्रतीत होती हैं, इसलिए कुछ आलोचक इन दोनों के बीच उतना भेद नहीं मानते। लेकिन दोनों ही विधाओं की गहराई से जाँच पड़ताल करें तो मालूम पड़ता है कि ये समानताएँ केवल आकार और प्रकृति की हैं। जबकि दोनों की अन्तः सत्ता में बहुत बड़ा अंतर है। साथ ही दोनों के भाव एवं रचना तन्त्र भी एक दूसरे से बिल्कुल अलग-अलग हैं। जिसके कारण दोनों का अलग-अलग अस्तित्व मालूम होता है। जिन्हें हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:
रेखाचित्र और संस्मरण में अंतर बताइए – Rekhachitra aur sansmaran mein antarहमने रेखाचित्र और संस्मरण में अंतर (Rekhachitra aur sansmaran mein antar) को नीचे क्रम से बताया हैं –
संस्मरणस्मृ धातु से सम् उपसर्ग तथा ल्यूट प्रत्यय (अन्) लगाकर संस्मरण शब्द बनता है। इसका व्युत्पत्तिपरक अर्थ सम्यक् स्मरण है। किसी घटना, दृश्य, वस्तु या व्यक्ति का पूर्णरूपेण आत्मीय स्मरण संस्मरण कहलाता है। यह आधुनिक काल में नवविकसित, सर्वाधिक विवादों से घिरी साहित्य-विधा है। यह विधा कभी तो जीवनी, रेखाचित्र, रिपोर्ताज और कभी निबन्ध के अन्तर्गत परिगणित की गई है। किन्तु उसकी विशाल परम्परा ने आज इस साहित्य रूप को स्वतंत्र अस्तित्व प्रदान किया है। संस्मरण है क्या?संस्मरण लेखक व्यक्तिगत अनुभव को भावप्रवणता के साथ इस रूप में प्रस्तुत करता है कि उसका चित्र उपस्थित हो जाता है। यह अनुभव काल्पनिक न होकर सत्यकथा होता है। इसके विश्वसनीय होने पर संदेह नहीं किया जा सकता। इसके द्वारा व्यक्ति विशेष के जीवन या किसी घटना के महत्त्वपूर्ण पक्ष को उद्घाटित करना लेखन का उद्देश्य होता है। संस्मरण के उपकरणसंस्मरण के नियामक उपकरण पाँच हैं – भाव प्रवणता, चित्रोपमता, वैयक्तिकता, जीवन के खंड विशेष का वर्णन तथा सत्यात्मकता। संस्मरण की सत्यात्मकतासंस्मरण की सत्यात्मकता, दोषों को भी ज्यों का त्यों चित्रित करने को बाध्य करती है। वैसे भी संस्मरण जीवनी के लिए सामग्री एकत्र करने वाले होते हैं। जीवनी संस्मरण के लिए सामग्री प्रस्तुत नहीं करती। संस्मरण तथा रेखाचित्र को भी एक समझने की भूल की जाती रही है। संस्मरण और अन्य विधाओं में अंतरसंस्मरण का अन्य साहित्य विधाओं से तात्विक भेद होता है। कुछ प्रमुख अंतर और उनका विवरण निम्नलिखित है-
जीवनी और संस्मरण में अंतरजीवनी और संस्मरण में मूल अंतर यह है कि जीवनी के लिए आवश्यक नहीं है कि हम जिसकी जीवनी लिखें उससे हमारा व्यक्तिगत सम्पर्क हो, जबकि संस्मरण में वैयक्तिक सम्पर्क अनिवार्य है। साथ ही जीवनी लेखक अपने नायक के गुणों का ही चित्र प्रस्तुत करता है। संस्मरण और रेखाचित्र में अंतरडॉ. नगेन्द्र ने लिखा है कि संस्मरण और रेखाचित्र में कोई मौलिक अंतर नहीं है। उन्होंने संस्मरण को रेखाचित्र का एक प्रकार माना है। परंतु ये दोनों पृथक् विधाओं के रूप में स्वीकृत हैं।
संस्मरण और रिपोर्ताज में अंतररिपोर्ताज से भी संस्मरण भिन्न है। दोनों में ही वैयक्तिक सम्पर्क की प्रधानता होती है। संस्मरण में स्मृति का आश्रय अधिक रहता है जबकि रिपोर्ताज तो प्रत्यक्ष पर आधृत है। घटना विशेष के घटित होते ही रिपोर्ताज की रचना प्रक्रिया की उपयोगिता है। अतीत की घटना तो संस्मरण का ही रूप लेगी। इसी प्रकार रिपोर्ताज में रचनाकार का दृष्टिकोण तटस्थ रहता है। कभी-कभी वह उपदेशात्मक भी हो सकता है जबकि संस्मरण में इन दोनों की आवश्यकता नहीं है। संस्मरण और निबन्ध में अंतरनिबन्ध तो मूलत: विचार-तर्क पद्धति से व्याख्यायित विधा है जबकि संस्मरण में तर्क पद्धति की अपेक्षा आत्मीयता तथा संवेदनात्मक स्वर की प्रमुखता होती है। संस्मरण साहित्यहिन्दी में संस्मरण साहित्य का प्रारम्भ द्विवेदी युग में सरस्वती के प्रकाश से स्वीकार किया जाता है। स्वयं आचार्य द्विवेदी ने अनुमोदन का अन्त (1905), सभ्यता की सभ्यता (1907), विज्ञानाचार्य बसु का विज्ञान मन्दिर (1978), आदि की रचना कर इस विधा की श्रीवृद्धि में योग दिया। इस काल के अन्य संस्मरणकारों में रामकुमार खेमका (इधर-उधर की बातें, 1918), जगतबिहारी सेठ, जगन्नाथ खन्ना तथा भोलादत्त पाण्डेय (मेरी नई दुनिया सम्बन्धी राम कहानी, 1906) आदि प्रसिद्ध हैं। छायावाद-युगीन संस्मरणछायावाद युग में सरस्वती, विशाल भारत, सुधा और माधुरी में कृपानाथ मिश्र, राम नारायण मिश्र, भगवानदीन दुबे, रामेश्वरी नेहरू, श्री मन्नारायण अग्रवाल के विभिन्न संस्मरण प्रकाशित हुए हैं। इस काल के श्रेष्ठ संस्मरण लेखकों में पं. पद्मसिंह शर्मा अग्रगण्य हैं जिनके प्रतिनिधि संस्मरण पद्म पराग में संकलित हैं। इनके उत्तराधिकारियों में श्रीराम शर्मा का नाम सबसे पहले लिया जाता है। इनके पास विषय को शब्दों में मूर्त कर देने की वैसी ही क्षमता है तथा भाषा-शैली में वैसा ही नुकीलापन है जैसा पं. पद्मसिंह शर्मा में था। छायावादोत्तर काल के संस्मरणछायावादोत्तर काल की सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ महादेवी वर्मा की हैं। अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, स्मारिका और मेरा परिवार की रचना द्वारा उन्होंने संस्मरण साहित्य के एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति की।
आदि ने भी विभिन्न संस्मरणों में मामूली व्यक्तियों, अपने परिवारजनों और आत्मीयों, विद्वानों को जैसे मूर्त कर दिया। इस युग के अन्य संस्मरण लेखक
उदाहरण
देखें सम्पूर्ण सूची – लेखक और प्रमुख संस्मरण। देंखें अन्य हिन्दी साहित्य की विधाएँ– नाटक , एकांकी , उपन्यास , कहानी , आलोचना , निबन्ध , संस्मरण , रेखाचित्र , आत्मकथा, जीवनी , डायरी , यात्रा व्रत्त , रिपोर्ताज , कविता आदि।
स्मरण और संस्मरण में क्या अंतर है?संस्मरण में वर्ण्य-विशेष के द्वारा भाव-बिम्ब खींचे जाते हैं और रेखाचित्र में वर्ण्य-विषय का शब्द चित्र खींचा जाता है। संस्मरण में देश-काल और परिस्थितियों की प्रधानता होती है। लेकिन रेखाचित्र में वर्णन विषय या वस्तु की प्रधानता है। संस्मरण में मुख्य रूप से पुरानी बातों को याद किया जाता है।
संस्मरण का शाब्दिक अर्थ क्या है?स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है। यात्रा साहित्य भी इसके अन्तर्गत आता है। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को 'संस्मरणात्मक निबंध' कहा जा सकता है।
संस्मरण कैसे लिखा जाता है?संस्मरण लिखते समय लेखक एक सर्वनिष्ठ भूल करते हैं वह है संस्मरण को व्यक्तिगत डायरी समझना। यह भ्रम समझने योग्य है क्योंकि यह दोनों लेखन स्वयं अपने बारे में होते हैं, परंतु यही वह स्थान है जहाँ अंतर समाप्त होते हैं। संस्मरण आपके कार्य और जीवन के संबंध में होता है, परंतु इसे केवल आपके अपने लिए नहीं लिखा जाता।
संस्मरण कितने प्रकार के होते हैं?संस्मरण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। आत्म संस्मरण के केन्द्र में लिखने वाला व्यक्ति मुख्य होता हैं। वह अपनी स्मृति से, अपने देखे, सुने या भोगे हुए यथार्थ को लिखता है। जबकि दूसरे से सुन कर लिखे जाने वाले संस्मरण में लेखक किसी व्यक्ति से बातचीत करके, उसकी स्मृति को टटोल कर, उसे लिपिबद्ध करता है।
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