संस्मरण और स्मरण में क्या अंतर है? - sansmaran aur smaran mein kya antar hai?

संस्मरण और स्मरण में क्या अंतर है? - sansmaran aur smaran mein kya antar hai?

संस्मरण और रेखाचित्र परस्पर मिली-जुली आधुनिक गद्य विधाएँ हैं। इन दोनों विधाओं में कई समानताएँ प्रतीत होती हैं, इसलिए कुछ आलोचक इन दोनों के बीच उतना भेद नहीं मानते। लेकिन दोनों ही विधाओं की गहराई से जाँच पड़ताल करें तो मालूम पड़ता है कि ये समानताएँ केवल आकार और प्रकृति की हैं। जबकि दोनों की अन्तः सत्ता में बहुत बड़ा अंतर है। साथ ही दोनों के भाव एवं रचना तन्त्र भी एक दूसरे से बिल्कुल अलग-अलग हैं। जिसके कारण दोनों का अलग-अलग अस्तित्व मालूम होता है। जिन्हें हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:

संस्मरण और स्मरण में क्या अंतर है? - sansmaran aur smaran mein kya antar hai?

  • संस्मरण विवरण प्रधान होते हैं और रेखाचित्र चित्रण प्रधान क्योंकि रेखाचित्रकार रेखाओं के माध्यम से ही वर्ण्य विषय का चित्र खींचता है।
  • संस्मरण में लेखक का वर्ण्य-विशेष, व्यक्ति या वस्तु से संवेदनात्मक संबंध होता है। लेकिन रेखाचित्र में लेखक निष्पक्ष होकर व्यक्ति या वस्तु का रेखांकन करता है।
  • संस्मरण में प्रसंगों और कथाओं का उपयोग किया जाता है। पर रेखाचित्र में रूप की अभिव्यक्ति पर ही बल दिया जाता है।
  • संस्मरण में वर्ण्य-विशेष के द्वारा भाव-बिम्ब खींचे जाते हैं और रेखाचित्र में वर्ण्य-विषय का शब्द चित्र खींचा जाता है।
  • संस्मरण में देश-काल और परिस्थितियों की प्रधानता होती है। लेकिन रेखाचित्र में वर्णन विषय या वस्तु की प्रधानता है।
  • संस्मरण में मुख्य रूप से पुरानी बातों को याद किया जाता है। लेकिन रेखाचित्र में किसी व्यक्ति या वस्तु के जीवन का चित्रण होता है।
  • संस्मरण के लिए भावना तथा अनुभूति का होना जरूरी है। लेकिन रेखाचित्र के लिए इसमे पैनी दृष्टि की जरूरत होती है।
  • संस्मरण में आत्मीय राग और निजी विशिष्टता होनी जरूरी है। रेखाचित्र में केवल आत्मीय-राग की जरूरत होती है।
  • संस्मरण अनेक शैलियों में लिखे जा सकते हैं, इसलिए उसमें विविधता होती है। रेखाचित्र में सीमित शैलियाँ होती है। इसलिए इसमें शिल्प वैविध्य नहीं होता है।
  • संस्मरण के लिए विवणात्मक शैली अनिवार्य होती है। रेखाचित्र के लिए चित्रात्मक शैली अनिवार्य मानी जाती है।

रेखाचित्र और संस्मरण में अंतर बताइए – Rekhachitra aur sansmaran mein antar

हमने रेखाचित्र और संस्मरण में अंतर (Rekhachitra aur sansmaran mein antar) को नीचे क्रम से बताया हैं –

संस्मरणरेखाचित्र
संस्मरण विवरण प्रधान होते हैं रेखाचित्र चित्रण प्रधान होता है
संस्मरण वास्तविक होता है रेखाचित्र वास्तविक व काल्पनिक दोनो होते है
संस्मरण किसी महान व्यक्ति का होता है रेखाचित्र समान्य से समान्य व्यक्ति का हो सकता है
संस्मरण का ‘विषय’ कोई एक विशेष व्यक्ति या किसी एक घटना से सम्बंधित हो सकता है रेखाचित्र के विषय विभिन्न हो सकते है
संस्मरण संक्षिप्त (आकार में छोटा) होते हैं रेखाचित्र विस्तृत (आकार में बड़ा) होते हैं
संस्मरण में विवणात्मक शैली का प्रयोग होता है रेखाचित्र में चित्रणात्मक शैली का प्रयोग होता है
संस्मरण में मुख्य रूप से पुरानी बातों को याद किया जाता है रेखाचित्र में किसी व्यक्ति या वस्तु के जीवन का चित्र होता है
उदाहरण-
1. श्रीराम शर्मा – शिकार, जंगल के जीव
2. जेनेंद्र कुमार – ये और वे
उदाहरण-
1. महादेवी वर्मा – बीबियाँ, मेरा परिवार
2. महादेवी त्यागी – मेरी कौन सुनेगा

संस्मरण और स्मरण में क्या अंतर है? - sansmaran aur smaran mein kya antar hai?

संस्मरण

स्मृ धातु से सम् उपसर्ग तथा ल्यूट प्रत्यय (अन्) लगाकर संस्मरण शब्द बनता है। इसका व्युत्पत्तिपरक अर्थ सम्यक् स्मरण है। किसी घटना, दृश्य, वस्तु या व्यक्ति का पूर्णरूपेण आत्मीय स्मरण संस्मरण कहलाता है।

यह आधुनिक काल में नवविकसित, सर्वाधिक विवादों से घिरी साहित्य-विधा है। यह विधा कभी तो जीवनी, रेखाचित्र, रिपोर्ताज और कभी निबन्ध के अन्तर्गत परिगणित की गई है। किन्तु उसकी विशाल परम्परा ने आज इस साहित्य रूप को स्वतंत्र अस्तित्व प्रदान किया है।

संस्मरण है क्या?

संस्मरण लेखक व्यक्तिगत अनुभव को भावप्रवणता के साथ इस रूप में प्रस्तुत करता है कि उसका चित्र उपस्थित हो जाता है। यह अनुभव काल्पनिक न होकर सत्यकथा होता है। इसके विश्वसनीय होने पर संदेह नहीं किया जा सकता। इसके द्वारा व्यक्ति विशेष के जीवन या किसी घटना के महत्त्वपूर्ण पक्ष को उद्घाटित करना लेखन का उद्देश्य होता है।

संस्मरण के उपकरण

संस्मरण के नियामक उपकरण पाँच हैं – भाव प्रवणता, चित्रोपमता, वैयक्तिकता, जीवन के खंड विशेष का वर्णन तथा सत्यात्मकता

संस्मरण की सत्यात्मकता

संस्मरण की सत्यात्मकता, दोषों को भी ज्यों का त्यों चित्रित करने को बाध्य करती है। वैसे भी संस्मरण जीवनी के लिए सामग्री एकत्र करने वाले होते हैं। जीवनी संस्मरण के लिए सामग्री प्रस्तुत नहीं करती। संस्मरण तथा रेखाचित्र को भी एक समझने की भूल की जाती रही है।

संस्मरण और अन्य विधाओं में अंतर

संस्मरण का अन्य साहित्य विधाओं से तात्विक भेद होता है। कुछ प्रमुख अंतर और उनका विवरण निम्नलिखित है-

  1. जीवनी और संस्मरण में अंतर
  2. संस्मरण और रेखाचित्र में अंतर
  3. संस्मरण और रिपोर्ताज में अंतर
  4. संस्मरण और निबन्ध में अंतर

जीवनी और संस्मरण में अंतर

जीवनी और संस्मरण में मूल अंतर यह है कि जीवनी के लिए आवश्यक नहीं है कि हम जिसकी जीवनी लिखें उससे हमारा व्यक्तिगत सम्पर्क हो, जबकि संस्मरण में वैयक्तिक सम्पर्क अनिवार्य है। साथ ही जीवनी लेखक अपने नायक के गुणों का ही चित्र प्रस्तुत करता है।

संस्मरण और रेखाचित्र में अंतर

डॉ. नगेन्द्र ने लिखा है कि संस्मरण और रेखाचित्र में कोई मौलिक अंतर नहीं है। उन्होंने संस्मरण को रेखाचित्र का एक प्रकार माना है। परंतु ये दोनों पृथक् विधाओं के रूप में स्वीकृत हैं।

  • रेखाचित्र लिखते समय रचनाकार अतिरंजना का आश्रय ले सकता है, जबकि संस्मरण में इसका अवकाश नहीं होता।
  • संस्मरण केवल अतीत होता है, जबकि रेखाचित्र वर्तमान का भी हो सकता है और समर्थ लेखक भविष्य का भी चित्र प्रस्तुत कर सकता है।
  • रेखाचित्र बाहरी विशेषताओं का निरूपण करता है किन्तु संस्मरण लेखक की दृष्टि आंतरिक विशेषताओं पर केन्द्रित रहती है।
  • रेखाचित्र यदि चरित्रचित्र है तो संस्मरण चरित्र का दर्पण है जो नायक के अन्तर्बाहय चरित्र का विश्लेषण एवं संश्लेषण प्रस्तुत करता है।
  • रेखाचित्र कल्पना प्रधान होता है तथा संस्मरण सत्यानुमोदित।
  • रेखाचित्र में एक प्रकार की तटस्थता और निर्वैयक्तिकता का भाव होता है जबकि संस्मरण में ये दोनों ही बातें नहीं होतीं

संस्मरण और रिपोर्ताज में अंतर

रिपोर्ताज से भी संस्मरण भिन्न है। दोनों में ही वैयक्तिक सम्पर्क की प्रधानता होती है। संस्मरण में स्मृति का आश्रय अधिक रहता है जबकि रिपोर्ताज तो प्रत्यक्ष पर आधृत है। घटना विशेष के घटित होते ही रिपोर्ताज की रचना प्रक्रिया की उपयोगिता है। अतीत की घटना तो संस्मरण का ही रूप लेगी। इसी प्रकार रिपोर्ताज में रचनाकार का दृष्टिकोण तटस्थ रहता है। कभी-कभी वह उपदेशात्मक भी हो सकता है जबकि संस्मरण में इन दोनों की आवश्यकता नहीं है।

संस्मरण और निबन्ध में अंतर

निबन्ध तो मूलत: विचार-तर्क पद्धति से व्याख्यायित विधा है जबकि संस्मरण में तर्क पद्धति की अपेक्षा आत्मीयता तथा संवेदनात्मक स्वर की प्रमुखता होती है।

संस्मरण साहित्य

हिन्दी में संस्मरण साहित्य का प्रारम्भ द्विवेदी युग में सरस्वती के प्रकाश से स्वीकार किया जाता है। स्वयं आचार्य द्विवेदी ने अनुमोदन का अन्त (1905), सभ्यता की सभ्यता (1907), विज्ञानाचार्य बसु का विज्ञान मन्दिर (1978), आदि की रचना कर इस विधा की श्रीवृद्धि में योग दिया।

इस काल के अन्य संस्मरणकारों में रामकुमार खेमका (इधर-उधर की बातें, 1918), जगतबिहारी सेठ, जगन्नाथ खन्ना तथा भोलादत्त पाण्डेय (मेरी नई दुनिया सम्बन्धी राम कहानी, 1906) आदि प्रसिद्ध हैं।

छायावाद-युगीन संस्मरण

छायावाद युग में सरस्वती, विशाल भारत, सुधा और माधुरी में कृपानाथ मिश्र, राम नारायण मिश्र, भगवानदीन दुबे, रामेश्वरी नेहरू, श्री मन्नारायण अग्रवाल के विभिन्न संस्मरण प्रकाशित हुए हैं।

इस काल के श्रेष्ठ संस्मरण लेखकों में पं. पद्मसिंह शर्मा अग्रगण्य हैं जिनके प्रतिनिधि संस्मरण पद्म पराग में संकलित हैं। इनके उत्तराधिकारियों में श्रीराम शर्मा का नाम सबसे पहले लिया जाता है। इनके पास विषय को शब्दों में मूर्त कर देने की वैसी ही क्षमता है तथा भाषा-शैली में वैसा ही नुकीलापन है जैसा पं. पद्मसिंह शर्मा में था।

छायावादोत्तर काल के संस्मरण

छायावादोत्तर काल की सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ महादेवी वर्मा की हैं। अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, स्मारिका और मेरा परिवार की रचना द्वारा उन्होंने संस्मरण साहित्य के एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति की।

  • प्रकाशचन्द्र गुप्त (पुरानी स्मृतियाँ),
  • राधिका रमण प्रसाद सिंह (मौलवी साहब, देवी बाबा),
  • कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ (जिन्दगी मुस्कुराई),
  • देवेन्द्र सत्यार्थी (रेखाएँ बोल उठीं, क्या गोरी और साँवरी),
  • जैनेन्द्र कुमार (ये और वे)

आदि ने भी विभिन्न संस्मरणों में मामूली व्यक्तियों, अपने परिवारजनों और आत्मीयों, विद्वानों को जैसे मूर्त कर दिया।

इस युग के अन्य संस्मरण लेखक

  • चतुरसेन शास्त्री (वातायन),
  • शान्ति प्रिय द्विवेदी (पथ चिह्न),
  • कैलाश नाथ काटजू (मैं भूल नहीं सकता),
  • इन्द्र विद्यावाचस्पति (मैं इनका ऋणी हूँ),
  • विनोद शंकर व्यास (प्रसाद और उसके समकालीन),
  • सम्पूर्णानन्द (कुछ स्मृतियाँ और स्फुट विचार),
  • रायक्रष्ण दास (जवाहर भाई-उनकी आत्मीयता और सहदयता)
  • कुन्तल गोयाल, डॉ. सहरगुलाल, पद्मिनी मेनन, लक्ष्मी नारायण सुधांशु के नाम भी उल्लेखनीय हैं।

उदाहरण

क्रमसंस्मरणसंस्मरण-कार
1. अनुमोदन का अंत (1905 ई.), सभा की सभ्यता (1907 ई.) महावीर प्रसाद द्विवेदी
2. हरिऔध जी का संस्मरण बालमुकुंद गुप्त
3. शिकार (1936 ई.), बोलती प्रतिमा (1937 ई.), भाई जगन्नाथ, प्राणों का सौदा(1939 ई.) जंगल के जीव (1949 ई.) श्रीराम शर्मा
4. लाल तारा (1938 ई.), माटी की मूरतें (1946 ई.), गेहूँ और गुलाब (1950 ई.), जंजीर और दीवारें (1955 ई.), मील के पत्थर (1957 ई.) रामवृक्ष बेनीपुरी
5. अतीत के चलचित्र (1941 ई.), स्मृति की रेखाएँ (1947 ई.), पथ के साथी (1956 ई.), क्षणदा (1957 ई.), स्मारिका (1971 ई.) महादेवी वर्मा
6. तीस दिन : मालवीय जी के साथ (1942 ई.) रामनरेश त्रिपाठी
7. हमारे आराध्य (1952 ई.) बनारसीदास चतुर्वेदी
8. जिंदगी मुस्कराई (1953 ई.), दीप जले शंख बजे (1959 ई.), माटी हो गई सोना (1959 ई.) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
9. ये और वे (1954 ई.) जैनेंद्र
10. बचपन की स्मृतियाँ (1955 ई.), असहयोग के मेरे साथी (1956 ई.), जिनका मैं कृतज्ञ (1957 ई.) राहुल सांकृत्यायन

देखें सम्पूर्ण सूची – लेखक और प्रमुख संस्मरण। देंखें अन्य हिन्दी साहित्य की विधाएँ– नाटक , एकांकी , उपन्यास , कहानी , आलोचना , निबन्ध , संस्मरण , रेखाचित्र , आत्मकथा, जीवनी , डायरी , यात्रा व्रत्त , रिपोर्ताज , कविता आदि।

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स्मरण और संस्मरण में क्या अंतर है?

संस्मरण में वर्ण्य-विशेष के द्वारा भाव-बिम्ब खींचे जाते हैं और रेखाचित्र में वर्ण्य-विषय का शब्द चित्र खींचा जाता है। संस्मरण में देश-काल और परिस्थितियों की प्रधानता होती है। लेकिन रेखाचित्र में वर्णन विषय या वस्तु की प्रधानता है। संस्मरण में मुख्य रूप से पुरानी बातों को याद किया जाता है।

संस्मरण का शाब्दिक अर्थ क्या है?

स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है। यात्रा साहित्य भी इसके अन्तर्गत आता है। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को 'संस्मरणात्मक निबंध' कहा जा सकता है।

संस्मरण कैसे लिखा जाता है?

संस्मरण लिखते समय लेखक एक सर्वनिष्ठ भूल करते हैं वह है संस्मरण को व्यक्तिगत डायरी समझना। यह भ्रम समझने योग्य है क्योंकि यह दोनों लेखन स्वयं अपने बारे में होते हैं, परंतु यही वह स्थान है जहाँ अंतर समाप्त होते हैं। संस्मरण आपके कार्य और जीवन के संबंध में होता है, परंतु इसे केवल आपके अपने लिए नहीं लिखा जाता।

संस्मरण कितने प्रकार के होते हैं?

संस्मरण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। आत्म संस्मरण के केन्द्र में लिखने वाला व्यक्ति मुख्य होता हैं। वह अपनी स्मृति से, अपने देखे, सुने या भोगे हुए यथार्थ को लिखता है। जबकि दूसरे से सुन कर लिखे जाने वाले संस्मरण में लेखक किसी व्यक्ति से बातचीत करके, उसकी स्मृति को टटोल कर, उसे लिपिबद्ध करता है।