घातक सिद्ध होगा सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण
भारत एक विकासशील देश है। अत: यहां सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण बहुत ही घातक सिद्ध होगा। भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की बड़ी आबादी दो समय का भोजन भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाती हैं। अत: यहां सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण करना एक तरह से गरीब के पेट पर लात मारने के समान है। अत: सरकार को सीधे जनता से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्रों का तो निजीकरण किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए। निजीकरण से जनता का शोषण ही बढ़ेगा। घाटे में
चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करना तो सही है, परन्तु सभी सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण नहीं करना चाहिए।
-कैलाश चन्द्र मोदी, सादुलपुर, चूरू
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व्यवस्था सुधारी जाए
सार्वजनिक संस्थान देश को मजबूत करते हैं। जनहित का ध्यान रखना सरकार का परम कर्तव्य है। निजीकरण की अंधी दौड कहीं लोकतंत्र को कमजोर न कर दे। निजीकरण की बजाय व्यवस्था में सुधार पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए उचित प्रबंधन करना चाहिए।
-कृष्ण कुमार जोशी,
मंदसौर
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सरकारी बैंकों का निजीकरण उचित नहीं
सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण उचित नहीं है। गरीबों और बेरोजगार का बैंक अकाउंट कौन खोल रहा है? सरकारी योजनाओं से जुड़े ऋण कौन बांट रहा है? यह काम सरकारी बैंक ही कर रहे हैं।
-मुकेशभाई व्यास, जामनगर
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बढ़ेगी गरीब-अमीर के बीच की खाई
सार्वजनिक संस्थानों को निजी हाथों में देने से महंगाई बढ़ेगी और गरीब आदमी की जेब पर सीधा असर दिखाई देगा। वर्तमान में अमीर और गरीब के बीच जो
खाई है, वह और बढ़ेगी। इसलिए निजीकरण उचित नहीं है ।
-राजीव मालवीय, अशोकनगर, मप्र
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इनका न हो निजीकरण
सार्वजनिक संस्थानों के निजीकरण से घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों की हालत में सुधार होगा। हां, कुछ विशेष क्षेत्रों में निजीकरण को बढ़ावा देना उचित नहीं है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रेलवे, परिवहन प्रणाली जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र सरकार को अपने पास ही रखने चाहिए।
-गजेन्द्र नाथ चौहान, राजसमंद
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बढ़ेंगी आर्थिक
गतिविधियां
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को निजी निवेशकों के लिए खोले जाने से आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि होगी। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का विकास होगा, जो अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी साबित होगा
-संदीप स्वर्णकार जहाजपुर भीलवाड़ा
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ठीक नहीं है निर्णय
देश के सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण करना अनुचित है। इनके निजीकरण से केवल धनाढ्य लोगों को ही फायदा होगा। इसलिए सार्वजनिक संस्थाओं का निजीकरण देश को गर्त में डालने का काम है
-कमलेश कटारिया, तिंवरी,
जोधपुर
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जनता का शोषण होगा
देश के सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण करना जनता जनार्दन के अधिकारों पर कुठाराघात है। निजीकरण करने से देश की जनता को कई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। अधिक मुनाफा कमाने के लिए जनता का शोषण होगा और जनहित की अनदेखी होगी।
-श्रीकृष्ण पचौरी, ग्वालियर
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जरूरी है निजीकरण
सार्वजनिक संस्थानों की दशा कितनी खराब है यह सर्व विदित है। इसके विपरीत निजी संस्थान बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। निजी क्षेत्र
में काम करने वालों की कार्यकुशलता पर नजर रखी जाती है, जिससे वहां बेहतर माहौल होता है। इसलिए निजीकरण जरूरी है।
-ओम हरित ,फागी, जयपुर
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एक सीमा तक ही हितकारी है निजीकरण
देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था को महत्त्व दिया गया। भारत में पूर्ण निजीकरण लाभदायक नहीं है। कुछ संस्थाएं सरकार के नियंत्रण में भी जरूरी हैं, जिससे संतुलन बना रहे। अर्थव्यवस्था को सरकारी और निजी निवेश दोनों की जरूरत है। इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि निजी संस्थान मनमानी न कर पाएं। इसलिए
निजीकरण एक सीमा तक ही हितकारी है।
-डॉ.अजिता शर्मा उदयपुर
Blog: मोदी सरकार सरकारी विभागों को निजीकरण करने जा रही है। जिसके बाद हर कोई जानना चाहता है कि “निजीकरण के फायदे और नुकसान क्या है? इसका गरीब मजदूरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आज जब हर आदमी मंहगाई, बेरोजगारी से तंग आ गया है। ऐसे में सरकार
द्वारा बताया जा रहा है कि निजीकरण होने से सबकी समस्या दूर हो जायेगी। आज हम आपको इसकी सच्चाई बताने जा रहे हैं। हमारे देश में प्रमुख रूप से दो तरह के कर्मचारी काम करते हैं एक स्थाई और दूसरे अस्थाई। जहाँ एक तरफ स्थाई कर्मचारी को सांतवा वेतन के अनुसार सैलरी देने के प्रावधान है तो दूसरी तरफ समान काम करने के वावजूद अस्थाई कर्मचारी (ठेका वर्कर/आउटसोर्स वर्कर आदि) को न्यूनतम वेतन से संतोष करना पड़ता है। अगर सही बात कहें तो सरकारी विभागों में ज्यादातर
चतुर्थवर्गीय कर्मचारी को न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता है। ऐसे में इन अस्थाई कर्मचारियों के द्वारा समय-समय पर स्थाई करनी की मांग की जाती है। जिससे उनके और उनके परिवार की दशा में सुधार आ सके। अब अगर सरकारी विभाग ही निजी हाथों में चला गया तो वो इन अस्थाई कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन भी देंगे यह कहना मुश्किल ही है। देश की आजादी के बाद आम लोगों के मेहनत से अर्थव्यवस्था को खड़ा किया गया है। जिसमें हमारे पूर्वजों के गाढ़ी कमाई के टैक्स के पैसे से एक-एक कंपनी, स्कुल, कॉलेज खड़ा किया गया। जिससे देश
के सभी लोगों को समान रूप से मुफ्त/कम पैसे में अस्पताल, स्कुल, परिवहन आदि की सुविधा मुहैया कराई जा सके। मगर वर्त्तमान की मोदी सरकार सरकारी कंपनियों के निजीकरण करना चाहती है। अब सवाल यह उठता है कि अब आप अपने आप से पूछिए कि जब सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में दे दिया जायेगा तो क्या इस तरह की सुविधा (मुफ्त/कम पैसों में) मिल पायेगी? कल ही एक भाई ने शोसल मिडिया में लिखा कि सरकारी कंपनी में बहुत करप्शन है। निजीकरण से सब ठीक हो जायेगा। मगर हमारा मानना है
कि सरकारी कंपनी में करप्शन के लिए सरकार दोषी है न कि सरकारी कंपनी। अगर आपसे सरकारी काम के लिए रिश्वत मांगा जाता है तो इसके लिए शिकायत की प्रणाली बनी हुई है। जिसको सरकारी तंत्र द्वारा सही से लागू नहीं किया जाता है। अगर कोई इसके खिलाफ आवाज उठता भी है तो उसको उसी सरकारी तंत्र द्वारा उलटे केस मुकदमे में फंसा दिया जाता है।निजीकरण के फायदे और नुकसान क्या है?
सरकारी कंपनी में बहुत करप्शन है?
अब अगर सरकारी और निजी संस्थान आदि में करप्शन की बात की जाए तो इसके लिए सबसे बढ़िया उदहारण प्राइवेट स्कूल से बढ़िया कुछ नहीं होगा। आज आप अपने बच्चे को प्राइवेट स्कुल में 20,000 से लेकर 2 लाख रूपये तक रिश्वत देकर नामांकन करवाते हैं। यही नहीं बल्कि 100 रूपये की किताब आपको झक मारकर 500 रूपये में खरीदनी पड़ती है। आप किसी से भी पूछ लीजिये, वो कहेंगे कि प्राइवेट स्कूल और हॉस्पिटल एक ऐसी जगह है। जहाँ बिना बंदूक दिखाए आम आदमी को खुलेआम लूटा जाता है।
शिक्षा ना पाने की वजह से देश पीछे चला जाएगा?
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हमारे देश में गरीबों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। अगर सही से देखें तो प्राइवेट स्कूल में सरकारी स्कूलों की तुलना में ऐसा क्या पढ़ाया जाता है कि उनकी फ़ीस इतनी ज्यादा होती है? अब अगर आने वाले समय में सरकारी स्कूल को प्राइवेट स्कूल कर दिया जाता है तो गरीब का बच्चा पढ़ नहीं पायेगा। जिसके कारण शिक्षा ना पाने की वजह से हमारा देश काफी पीछे चला जाएगा। आपने कभी सोचा है कि हमारे देश के बच्चों का भविष्य क्या होगा? अरे भाई “पढ़ेगा इंडिया तभी तो आगे बढ़ेगा इंडिया”।
सरकारी कंपनियों के निजीकरण में आम आदमी की सवारी रेल गाड़ी का नंबर भी है। अब जैसा कि हमारा यह टॉपिक निजीकरण के बारे में है तो “क्या रेलवे का निजीकरण होना सही फैसला है? सरकार के इस फैसले से आम गरीब मजदूरों का क्या फायदा और क्या नुकसान हो सकता है?” पिछले वर्ष मुझसे कुछ ऐसा ही सवाल बीबीसी न्यूज के रिपोर्टर ने अपने एक रिपोर्ट के लिए फोन कर पूछा था। मैं एक लेबर एक्टिविस्ट हूँ और पिछले कई वर्षों से मजदूरों के लिए लिखता हूँ। यही नहीं बल्कि भारतीय रेलवे के एक उपक्रम आईआरसीटीसी में काम करने का भी अनुभव है।
रेलवे के निजीकरण के बारे में कुछ अहम् बात
ऐसे तो “रेलवे के निजीकरण” को सरकार के द्वारा पहले इंकार किया जा रहा था। मगर अब खुलेआम सरकार ने घोषणा कर दी है। मैंने रेलवे के निजीकरण के बारे में कुछ अहम् बात BBC Hindi News बताई थी। जिससे न केवल आम आदमी बल्कि वहाँ काम करने वाले कर्मचारियों को भी जानना आवश्यक है। वह कुछ इस प्रकार से है –
1. ये सिर्फ़ रेलवे कर्मचारियों ही नहीं बल्कि यात्रियों की जेब पर भी वार है। ट्रेन के किराए का 43 फ़ीसदी सब्सिडी यात्रियों को मिलती है। निजी कंपनियां तो ये रियायत यात्रियों को नहीं देंगी। ऐसे में ग़रीब और मध्यम वर्ग के यात्रियों की जेब पर भार बढ़ेगा।
2. अभी लोगों को लग रहा है जब निजीकरण होगा तो अच्छी सेवा मिलेगी लेकिन वास्तव में ऐसा होगा इस पर शक है। रेलवे में केटरिंग तो पहले से ही आईआरसीटीसी के हाथ में है, ये भी रेलवे की निजी कंपनी ही है, क्या केटरिंग से लोग संतुष्ट हैं?
3. जब सरकार की कमाई होती है तो वो पैसा देश के विकास में लगता है। स्कूल खुलते हैं, स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होती हैं, लेकिन जब रेलवे की कमाई निजी हाथों में जाएगी तो ये पैसा जनहित में नहीं लगेगा।”
निजीकरण के फायदे और नुकसान क्या है, गरीब मजदूरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
आप मोटे तौर पर जानिए कि सरकार का मक़सद देश में कॉर्पोरेट को फ़ायदा पहुंचाना है। निजीकरण से आम कर्मचारियों के शोषण की व्यवस्था और मज़बूत होगी। आप ही सोचिए कि रेलवे का टिकट 4 महीने पहले फूल हो जाता है। स्लीपर ट्रेनों में सीट से अधिक यात्री सफर करते और जेनरल बोगी का तो बाथरूम भी खचाखच भरा होता है। ऐसे में ट्रेन का घाटे में होने का सवाल ही कहाँ उठता है? आप ही जरा सोचिए कि “अगर कंपनी घाटे में है तो उसको उधोगपति खरीद क्यों रहे हैं और अगर कंपनी घाटे में नहीं है तो सरकार बेच क्यों रही है”? आप अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बतायें। धन्यबाद ।
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