समाजवादी राज्य का क्या अभिप्राय है? - samaajavaadee raajy ka kya abhipraay hai?

6. लोकतांत्रीय शासन में आस्था- समाजवादी विचारक राजय के लोकतंत्रीय स्वरूप में विश्वास रखते है। ये मताधिकार का विस्तार करके संसद को उसकी व्यवस्था चलाने के लिये एक महत्वपूर्ण साधन मानते है। इस व्यवस्था से व्यक्तियों को राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति होती है। 

समाजवाद के प्रकार 

स्पष्ट है कि समाजवाद के आज अनेक रूप पाए जाते हैं, किंतु इनमें सहकारी समाजवाद, राज्य समाजवाद, माक्र्सवाद समाजवाद, स्वप्नलोकी समाजवाद, समष्टिवादी समाजवाद, प्रजातांत्रिक समाजवाद, साम्यवादी समाजवाद, श्रम संघवाद, पेफबियनवाद, श्रेणी संघवादी समाजवाद आदि प्रमुख हैं। इनमें से कुछ का हम यहाँ संक्षेप में उल्लेख करेंगे- 

1. सहकारी समाजवाद

इस प्रकार के समाजवाद में मजदूर अपनी सहकारी समितियाँ बनाकर उद्योगों का संचालन करते हैं। वे स्वयं उद्योग के मालिक भी होते हैं और मजदूर भी। इस प्रकार का समाजवाद स्केण्डिनेविया में पाया जाता है। 

2. राज्य समाजवाद 

इसमें राज्य को बुराई के रूप में नहीं मानकर उत्तम वितरण की व्यवस्था करने वाली संस्था माना जाता है। इसमें उत्पादन के साधनों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाता है, राज्य को एक कल्याणकारी संस्था माना जाता है, व्यक्ति को राज्य के एक अंग के रूप में स्वीकार किया जाता है। यह प्रजातंत्र में विश्वास करता है, स्वतंत्राता एवं समानता में विश्वास करता है और समाज का आधार वर्ग-संघर्ष नहीं वरन् वर्ग-सहयोग मानता है। 

3. पेफबियनवाद 

पेफबियनवादी समाजवाद को धीरे-धीरे एवं प्रजातंत्राीय ढंग से लाने में विश्वास करते हैं। वे क्रांति एवं रक्तपात में विश्वास नहीं करते। पेफबियनवाद का उद्देश्य भूमि और उद्योग में होने वाले मुनापेफ का लाभ समस्त समाज को पहुँचाना है। इसके लिए पेफबियनवादी कई उपाय अपनाने का सुझाव देते हैं, जैसे-(i) काम के घंटे, बेकारी, बीमारी, न्यूनतम मजदूरी, सफाई व सुरक्षा से संबंधित कानून बनाना (ii) सार्वजनिक वस्तुओं पर सरकार का नियंत्रण स्थापित करना (iii) उत्तराधिकार में प्राप्त होने वाली संपत्ति पर कर लगाना, आदि। 

4. प्रजातांत्रिक समाजवाद 

इसे विकासवादी समाजवाद भी कहा जाता है।  भारत में इसी पद्धति को अपनाया गया है। यह पूँजीवाद के स्थान पर समाजवाद की स्थापना के लिए बल और हिंसा के प्रयोग को अनुचित मानता है। यह इनके स्थान पर शांतिपूर्ण एवं संवैधानिक तरीकों को अपनाने पर बल देता है। 

5. श्रम-संघवाद 

श्रम-संघवाद को परिभाषित करते हुए ह्यूवर लिखते हैं, ‘‘वर्तमान युग में श्रम-संघवाद से अभिप्राय उन क्रांतिकारियों के सिंधान्तों और कार्यक्रमों से है जो पूँजीवाद को नष्ट करने तथा समाजवादी समाज की स्थापना करने के लिए औद्योगिक संघों की आर्थिक शक्ति का प्रयोग करना चाहते हैं।’’ श्रम-संघवादी राज्य के विरु( हैं क्योंकि वे राज्य को पूँजीपतियों का मित्र एवं श्रमिकों का विरोधी मानते हैं। ये लोग संघर्ष एवं क्रांति में विश्वास करते हैं और प्रजातंत्रा के विरोधी हैं। ये राज्य समाजवाद के पक्ष में नहीं हैं। 

6. श्रेणी समाजवाद 

श्रेणी समाजवादी पूंजीवादी के विरुद्ध हैं। ये समूह तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व पर शोर देते हैं तथा उद्योगों में स्वशासन चाहते हैं। ये उत्पादन का प्रबंध और नियंत्रण राज्य द्वारा नहीं चाहते। ये स्थानीय स्तर पर कम्यून स्थापित करना चाहते हैं जिनमें उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व हो।

समाजवाद के गुण

1. शोषण का अन्त - समाजवाद श्रमिको एवं निर्धनों के शोषण का विरोध करता है। समाजवादियो ने स्पष्ट कर दिया है कि पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजीपतियों के शडयंत्रो के कारण ही निर्धनों व श्रमिकों का शोषण होता है। यह विचारधारा शोषण के अन्त में आस्था रखने वाली है। इसलिये विश्व के श्रमिक किसान निर्धन इसका समर्थन करते है। 

2. सामाजिक न्याय पर आधारित - समाजवादी व्यवस्था में किसी वर्ग विशेष के हितों को महत्व न देकर समाज के सभी व्यक्तियों के हितो को महत्व न देकर समाज के सभी व्यक्तियों के हितों को महत्व दिया जाता है यह व्यवस्था पूंजीपतियों के अन्याय को समाप्त करके एक ऐसे वर्गविहीन समाज की स्थापना करने का समर्थन करती है जिसमें विषमता न्यूनतम हो। 

3. उत्पादन का लक्ष्य सामाजिक आवश्यकता - व्यक्तिवादी व्यवस्था में व्यक्तिगत लाभ को ध्यान में रखकर किये जाने वाले उत्पादन के स्थान पर समाजवादी व्यवस्था में सामाजिक आवश्यकता और हित को ध्यान में रखकर उत्पादन होगा क्योंकि समाजवाद इस बात पर बल देता है कि जो उत्पादन हो वह समाज के बहुसंख्यक लोगों के लाभ के लिए हो। 

4. उत्पादन पर समाज का नियंत्रण - समाजवादियो का मत है कि उत्पादन और वितरण के साधनो पर राज्य का स्वामित्व स्थापित करके विषमता को समाप्त किया जा सकता है। 

5. सभी को उन्नति के समान अवसर - समाजवाद सभी लोगों को उन्नति के समान अवसर प्रदान करने के पक्षपाती है इस व्यवस्था में को विशेष सुविधा संपन्न वर्ग नहीं होगा। सभी लोगों को समान रूप से अपनी उन्नति एव विकास के अवसर प्राप्त होंगे। 

6. साम्राज्यवाद का विरोधी - समाजवाद औपनिवेशिक परतंत्रता और साम्राज्यवाद का विरोधी है। यह राष्ट्रीय स्वतंत्रता का समर्थक है। लेनिन के शब्दों में ‘‘साम्राज्यवाद पजूं ीवाद का अंतिम चरण है।’’ 

समाजवादी का अर्थ उस प्रणाली से है जिसके तहत सरकार द्वारा आर्थिक प्रणाली को नियंत्रित और विनियमित किया जाता है ताकि समाज में लोगों को कल्याण और समान अवसर सुनिश्चित हो सके। समाजवाद का विचार सबसे पहले कार्ल मार्क्स और फ्रेड्रिक एंगेल्स ने अपनी पुस्तक 'द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो' में पेश किया है। समाजवाद शब्द का अर्थ है सभी पुरुषों के लिए सभी चीजें।

समाजवाद का जन्म व्यक्तिवादी विचारधारा के विरूद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुआ। शताब्दी के अंत में व्यक्तिवादी विचारधारा अत्यंत लोकप्रिय थी, परन्तु इस विचारधारा का आर्थिक एवं सामाजिक जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। अतः व्यक्तिवाल का स्थान समाजवाद ने ले लिया। समाजवाद का प्रमुख उद्देश्य समानता की स्थापना करना है। अर्थव्यवस्था पर समाज का नियंत्रण होता है एवं उत्पादन संपूर्ण समाज के हित को ध्यान में रखकर किया जाता हैं। 

समाजवाद की परिभाषा (samajwad ki paribhasha)

सेलर्स के शब्दों में," समाजवाद एक ऐसी जनतन्त्रात्मक विचारधारा हैं, जिसका उद्देश्य समाज में एक ऐसा आर्थिक संगठन स्थापित करना है जो कि व्यक्ति को अधिकतम न्याय और स्वाधीनता प्रदान कर सके।"

प्रो. डीकिन्सन के अनुसार," समाजवाद समाज का एक ऐसा आर्थिक संगठन है जिसमें उत्पति के भौतिक साधनों पर सामाजिक स्वामित्व होता है तथा उनका संचालन एक सामान्य योजना के अंतर्गत सम्पूर्ण समाज के प्रतिनिधि एवं उनके प्रति उत्तरदायी संस्थाओं के द्वारा किया जाता है। समाज के सभी सदस्य समान अधिकारों के आधार पर ऐसे नियोजन एवं समाजीकृत उत्पादन के लाभों के अधिकारी होते हैं।" 

मारिस डाब के अनुसार," समाजवाद की आधारभूत विशेषता यह है की इसमे सम्पन्न वर्ग की संपत्ति का अधिग्रहण एवं भूमि तथा पूंजी का समाजीकरण करके उन वर्ग संबंधों को समाप्त कर दिया जाता है, जो पूंजीवादी उत्पादन का आधार है।" 

श्री जयप्रकाश नारायण के शब्दों में," समाजवादी समाज एक ऐसा वर्गविहीन समाज होगा, जिसमें सब श्रमजीवी होगें। सारी सम्पत्ति सार्वजनिक अथवा राष्ट्रीय होगी। अनार्जित आय तथा आय से संबंधित भीषण असमानताएँ सदैव के लिए समाप्त हो जायेंगी।" 

समाजवाद की विशेषताएं या लक्षण (samajwad ki visheshta)

एक समाजवादी आर्थिक प्रणाली में पाए जाने वाले लक्षण एवं विशेषताएं निम्नलिखित है--

1. उत्पत्ति के साधनों पर सामूहिक एवं सामाजिक स्वामित्व

समाजवाद की यह एक मुख्य विशेषताओं में से एक है की समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पत्ति के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व नही होता बल्कि समाज का सामूहिक स्वामित्व होता है। इस प्रकार समाजवाद में राज्य का अधिक से अधीक व्यक्तियों का हित करना होता है। 

2. उत्पादन एवं वितरण क्रियाएं राज्य द्वारा संपादित की जाती हैं

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादन एवं वितरण की क्रियाएं राज्य द्वारा ही संपादित की जाती हैं। क्या उत्पादन होगा? कितना होगा? और कैसे होगा? तथा उत्पादन का समाज में किस प्रकार वितरण करना हैं से संबंधी सभी निर्णय समाजवादी व्यवस्था में सरकार स्वयं अधिकतम सामाजिक कल्याण की भावना के आधार पर करती है। 

3. निजी सम्पति का अति सीमित अधिकार 

उत्पत्ति के सभी साधनों पर राज्य के स्वामित्व का यह मतलब नहीं की समाजवाद में निजी संपत्ति का अधिकार पूर्णतः नगण्य होता है। समाजवादी अर्थव्यवस्था में निजी संपत्तियों के अधिकार का सीमित अस्तित्व तो होता है, किन्तु इस संपति का प्रयोग धनोपार्जन के लिए नहीं किया जा सकता।

4. एक केन्द्रीकृत नियोजन सत्ता 

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में आर्थिक क्रियाओं का संचालन करने के लिए एक केन्द्रीकृत नियोजन सत्ता गठित की जाती है। यह केन्द्रीकृत सत्ता उत्पादन एवं वितरण संबंधी महत्वपूर्ण फैसले, अधिकतर सामाजिक कल्याण का भावना के आधार पर करती है। 

5. कीमत संयंत्र की गौण भूमिका 

पूंजीवाद की तरह समाजवाद में कीमतों का निर्धारण कीमत संयंत्र द्वारा नहीं किया जाता बल्कि सरकार स्वयं अपने अनुभव के आधार पर कीमत निर्धारित करती है। आर्थिक क्रियाओं के लिए लेख कीमतों का प्रयोग किया जाता है, जिसका निर्धारण सरकार स्वयं उत्पादन लागत एवं सामाजिक हित को ध्यान में रखकर करती है। 

6. शोषण का अंत  

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पत्ति के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व होने के कारण न्यूनतम आर्थिक विषमताएं होती है, जिसके फलस्वरूप समाज का दो वर्गों सम्पन्न वर्ग एवं विपन्न वर्ग में विभाजन नहीं होता। साथ ही वितरण व्यवस्था पर सरकार का स्वामित्व होता है, जिसके कारण मानव द्वारा मानव के शोषण की संभावना समाप्त हो जाती है।

7. प्रतियोगिता का अंत  

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादन एवं वितरण दोनों पर सरकार का अधिकार एवं नियंत्रण होने के कारण पारस्परिक प्रतियोगिता की कोई संभावना नहीं रह जाती है। सरकार द्वारा स्वयं उत्पादन का क्षेत्र उत्पादन मात्रा तथा वस्तु कीमत निर्धारित किए जाने के कारण समाजवाद में प्रतियोगिता उत्पन्न ही नहीं हो पाती, जिसके कारण प्रतियोगिता पर होने वाला उपलब्ध समाजवाद में समाप्त हो जाता है।

समाजवाद के प्रमुख तत्व  

1. समाजवाद एक समष्टि प्रधान दर्शन या विचारधारा है जो व्यक्ति की अपेक्षा समाज को अधिक महत्त्व देती है। अतः यह वैयक्तिक हितों को सामाजिक हितों के अधीन करने पर बल देती है। यह सामाजिक हित व समानता को अपना आदर्श स्वीकार करता है। 

2. समाजवाद स्वतंत्रता का अर्थ बन्धनों का अभाव नहीं मानता। इसके अनुसार स्वतंत्रता से तात्पर्य व्यक्ति को दिये गये अवसरों से है जिनका उपयोग कर व्यक्ति अपने भौतिक व नैतिक जीवन का उत्थान हो सके। 

3. समाजवाद पूंजीवाद को समाप्त करना अपना लक्ष्य मानता है जिससे कि व्यक्ति को न्याय, समानता व स्वतंत्रता सुलभ हो सके। समाजवाद का मानना है कि पूंजीवाद व्यक्तिवाद का व्यावहारिक परिणाम है और पूंजीवाद की शोषण व्यवस्था के विरूद्ध समाजवादी दर्शन की उत्पत्ति हुई इसलिए समाजवाद का लक्ष्य है न केवल पूंजीवाद को अन्त वरन् उससे उत्पन्न आर्थिक विषमताओं को समाप्त कर सामाजिक न्याय की स्थापना करना। 

4. समाजवाद राज्य को आवश्यक बुराई नहीं मानता और न ही न्यूनतम राज्य की अवधारणा को स्वीकार करता है। यह राज्य को व्यक्ति के लिए हितकारी संस्था मानना है समाजवादियों का मानना है कि राज्य जनता के हितों की अभिभावक संस्था है जिसके सक्रिय नेतृत्व एंव योगदान के द्वारा आर्थिक जीवन की उन्नति की जा सकती है। समाजवाद राज्य को लोकतांत्रिक रूप से गठित कर उसे न्यायपूर्ण वितरण तथा उत्पादन प्रणाली का व्यवस्थापक बनाने की योजना प्रस्तुत करना है। सारांश रूप से राज्य के कार्यक्षेत्र सम्बन्धी समाजवाद की धारणा अधिक व्यापक व सकारात्मक है।

6. समाजवाद स्वतंत्र प्रतियोगिता के स्थान पर सहयोग के सिद्धान्त को स्वीकार करता है। समाजवाद मानवीय व्यक्तित्व की गरिमा का प्रबल समर्थक है इसलिए प्रतिस्पर्धा के स्थान पर सहकारिता में विश्वास करता है।

समाजवाद के गुण (samajwad ke gun)

समाजवाद के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं-- 

1. सहयोग का सिद्धांत 

व्यक्तिवाद में पूँजीपति एवं मजदूर वर्ग में संघर्ष होता हैं, पूँजीवादी देश युद्ध को बढ़ावा देता है, जबकि समाजवादी देश में आपस में सहयोग एवं विश्वशांति का दृष्टिकोण रहता हैं। 

2. प्रजातन्त्र के अनुसार 

प्रजातन्त्रीय व्यवस्था समानता के सिद्धांत पर निर्भर हैं। आर्थिक समानता केवल समाजवाद द्वारा ही स्थापित की जा सकती है। समाजवाद प्रजातन्त्र के लिए सहायक के रूप में कार्य करता हैं। 

3. सावयव सिद्धांत पर आधारित 

व्यक्तिवाद में व्यक्ति एवं समाज के हित परस्पर विरोधी बतलाये गये हैं, जबकि समाजवाद में दोनों का संबंध उसी प्रकार है जैसे शरीर का उसके अंगों से हैं, अर्थात् दोनों के हित समान हैं। 

4. शोषण का अंत 

पूँजीवाद से पूँजीपति स्वयं के हित को ध्यान में रखकर उत्पादन करवाते हैं, श्रमिकों को कम वेतन दिया जाता हैं, उनका शोषण होता है। समाजवाद में उत्पादन के साधनों पर समाज का अधिकार होता हैं और शोषण नहीं होता हैं। यह सभी के हित में हैं।

5. न्याय पर आधारित 

समानता एवं न्याय तभी स्थापित होगें जबकि उत्पादन के साधनों पर समाज का नियंत्रण हो और उचित वितरण की व्यवस्था हो। यह केवल समाजवादी व्यवस्था में ही संभव हैं। 

6. बेरोजगारी का निराकरण 

समाजवादी अर्थव्यवस्था में नियोजन केन्द्रीय बिन्दु होता है जिसके कारण समाज में कार्य करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति एकसमान अवसर प्राप्त करता है। सरकार अधिकतम सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखकर विभिन्न उत्पादन क्रियाएं संपादित करती है, जिसके कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार कार्य पाता है और बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न नहीं होती। 

6. एकाधिकारी शक्तियों की समाप्ति 

समाजवाद में सभी उत्पत्ति के साधनों एवं आर्थिक क्रियाओं पर सरकारी स्वामित्व होने के कारण समाज में धन एवं संपति के साधनों एवं आर्थिक क्रियाओं पर सरकारी स्वामित्व होने के कारण समाज में धन एवं संपति का किसी व्यक्ति अथवा वर्ग विशेष के हाथों में केन्द्रीकरण नहीं हो पाता, जिसके कारण समाज में एकाधिकारी शक्तियां उत्पन्न नहीं होती। 

7. प्रतियोगिता एवं अपव्यय की समाप्ति  

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादन एवं वितरण दोनों पर सरकार का अधिकार एवं नियंत्रण होने के कारण पारस्परिक प्रतियोगिता की कोई संभावना नहीं रहती। सरकार द्वारा स्वयं उत्पादन के क्षेत्र, उत्पादन मात्रा एवं वस्तु कीमत निर्धारित किए जाने के कारण समाजवाद में प्रतियोगिता उत्पन्न नहीं हो पाती, जिसके कारण प्रतियोगिता पर होने वाला अपव्यय समाजवाद में समाप्त हो जाता है।

समाजवाद की आलोचना या दोष (samajwad ke dosh)

पूँजीवाद के अन्त के लिए समाजवाद ने एक उचित मार्ग दिखाया है। इसके बावजूद समाजवाद दोषमुक्त नहीं कहा जा सकता। यही कारण है कि निम्नलिखित आधारों पर समाजवाद की आलोचना की जाती है--

1 . उत्पादन क्षमता में कमी 

कोई भी मानव व्यक्तिगत लाभ की भावना से ही नियमित श्रम करता है। समाजवादी व्यवस्था में उत्पादन कार्य राज्य के हाथ में आ जाने तथा सभी व्यक्तियों का पारश्रमिक निश्चित होने के कारण कार्य के लिए आधारभूत प्रेरणा का अभाव हो जाता है। इससे राज्य की उत्पादन क्षमता में कमी आ जाती है जिसका प्रभाव समाज की आर्थिक उन्नति पर पड़ता है। 

2. नौकरशाही का विकास 

समाजवादी व्यवस्था में राजकीय नियंत्रण होने के कारण उसका प्रबंध सरकारी अधिकारियों द्वारा किया जायेगा। सरकारी अधिकारियों के हाथ में शक्ति आ जाने का स्वाभाविक परिणाम नौकरशाही का विकास होगा। काम की गति मंद हो जायेगी, कार्य में विलम्ब होगा तथा धूसखोरी एवं भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलेगा। 

3. राज्य की कुशलता में कमी 

समाजवादी व्यवस्था में राज्य के अधिकतम व्यापक कार्यक्षेत्र के कारण राज्य की कार्य कुशलता में भी कमी आ जायेगी। समाजवादी व्यवस्था में सार्वजनिक निर्माण संबंधी उत्पादन वितरण तथा श्रमिक विधान संबंधी सभी कार्य राज्य द्वारा होंगे। ऐसी अवस्था में राज्य की कार्य क्षमता प्रभावित होगी तथा अन्ततः राज्य के अस्तित्व के लिए घातक होगी। 

4. मनुष्य का नैतिक पतन 

समाजवादी व्यवस्था के अन्तर्गत सभी कार्यों को करने की शक्ति राज्य के हाथ में आ जाने से आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास, साहस तथा आरम्भक के नैतिक गुणों का अन्त हो जायेगा। यह एक स्वाभाविक सी बात है कि मनुष्य उसी सीमा तक विकास के लिए उन्मुख रहते हैं जिस सीमा तक उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास हेतु क्षेत्र प्राप्त रहता है। समाजवादी व्यवस्था में उसे अपने विकास की नवीन दिशायें प्राप्त न होने के कारण वह हतप्रभ हो जायेगा तथा उसका नैतिक पतन हो जायेगा। 

5 . व्यक्तिवादी स्वतंत्रता का अंत 

समाजवाद में राज्य के कार्य एवं शक्तियों इतनी बढ़ जाती है कि उसे व्यक्ति के प्रत्येक क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अन्त हो जाता है। 

6. खर्चीली व्यवस्था 

समाजवादी व्यवस्था पूंजीवादी व्यवस्था की अपेक्षा अधिक खर्चीली होगी। सरकार द्वारा अधिक कार्य करने से कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि होगी परन्तु कार्यकुशलता में कमी बनी रहेगी।

7 . समाजवाद लूट का प्रतीक 

समाजवाद को अन्यायपूर्ण कहते हुए आलोचकों का मानना है कि धनिक वर्ग अपने विवके तथा परिश्रम के कारण ही धनवान बन सका है तथा धनिकों से उनका धन छीनकर निर्धनों में वितरित करने की बात न्यायपूर्ण नहीं कही जा सकती है। 

समाजवाद राज्य से क्या अभिप्राय है?

समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण के अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक प्रत्यय के तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है। उसकी एक बुनियादी प्रतिज्ञा यह भी है कि सम्पदा का उत्पादन और वितरण समाज या राज्य के हाथों में होना चाहिए।

भारत को समाजवादी राज्य क्यों कहा जाता है?

राजनीतिक दल आपातकाल के दौरान 1976 के 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान के प्रस्तावना में समाजवादी शब्द को जोड़ा गया था। यह सामाजिक और आर्थिक समानता का तात्पर्य है। इस संदर्भ में सामाजिक समानता का मतलब केवल जाति, रंग, पंथ, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर भेदभाव की अनुपस्थिति है।

समाजवादी राज्य कब अस्तित्व में आया?

यह भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में सक्रिय है। यह ४ अक्टूबर १९९२ को स्थापित किया गया था। समाजवादी पार्टी के संस्थापक व संरक्षक स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव, उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री और देश के पूर्व रक्षा मंत्री रह चुके हैं।

समाजवाद का उद्देश्य क्या है?

समाजवाद (Socialism) एक ऐसी विचारधारा है जिसका उद्देश्य समाज में आर्थिक संगठन को स्थापित करना होता है। इस विचारधारा के अंतर्गत नागरिकों को न्याय एवं स्वाधीनता प्रदान की जाती है। साधारण भाषा में कहा जाए तो समाजवाद एक ऐसी प्रणाली है जिसकी मदद से देश की सरकार राज्य व्यवस्था एवं आर्थिक प्रणाली को नियंत्रित करती है।